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Saturday, August 10, 2024

किताबवाड़ा, बैठक या गतवाड़ा?

मतलब, जमवाड़ा? जमघट? किताबों का? 

मगर, राजनीती ने उसकी दुर्दशा करके यूँ लगता है, जैसे, गतवाड़ा बना दिया हो। बहुतों को शायद गतवाड़ा क्या होता है, यही नही मालूम होगा। हरियाणा और आसपास के राज्यों में, गरीब लोग गाएँ-भैंसों के गोबर के उपले बनाते हैं। वो भी हाथ से। फिर, उन उपलों को सूखा कर, स्टोर करते हैं। गरीब हैं, तो स्टोर करने तक को कोई जगह नहीं होगी, जहाँ उन्हें बारिश से बचाया जा सके। तो उपलों को खास तरकीब से तहों पे तहें रख कर, बाहर से गोबर से लेप देते हैं। उसे गतवाड़ा कहते हैं। ये गोबर से बने उपले, गैस की जगह प्रयोग होते हैं। गतवाड़े को ठेठ हरियाणवी में बटोड़ा और उपलों को गोसे भी कहते हैं।  

एक कहावत भी है, अगर कोई कुछ ढंग का बोलने की बजाय या दिखाने या समझाने की बजाय, या करने की बजाय, अगर फालतू की बकवास करे तो? हरियाणा में उसे "नरा बटोड़ा स। बटोड़े मैं त गोसे ए लकड़ेंगे।" भी बोला जाता है। राजनीती के अपमानकर्ताओं के कुछ ऐसे से ही हाल बताए। ये, ईधर के अपमानकर्ता और वो उधर के। इन हालातों को सुधारने के थोड़े शालीन तरीके भी हैं। 

जैसे, गतवाड़े अगर किताबवाड़े हो जाएँ? तो क्या निकलेगा उनमें से? तो चलो मेरे देश के खास-म-खास महान नेताओ, और कुछ नहीं तो अपने-अपने नाम से या खास अपनों के नाम से ही सही, कुछ एक किताबवाड़े ही बनवा दो? जहाँ से "फुक्कन जोगे", "अपमानकर्ता गोसे", नहीं, ज्ञान-विज्ञान के पिटारे निकलेंगे, किताबों के रुप में। और आसपास के बच्चों, बड़ों या बुजर्गों को इक्क्ठे बैठने के लिए या आपसी संवाद के लिए, या कुछ नया या पुराना सीखने के लिए, न सिर्फ जगह मिलेंगी, बल्की समाज का थोड़ा स्तर भी बेहतर होगा। उन्हें किताबवाड़े की जगह बैठक भी बोल सकते हैं। जहाँ हुक्के, ताशों या तू-तू, मैं-मैं की बजाय, थोड़ा बेहतर तरीके से संवाद हो। वैसे, जिनके पास थोड़ी बड़ी बैठकें हैं या जो अपनी बैठकों को खास समझते हैं, वो भी उन्हें कोई खास नाम देकर, ऐसा कुछ बना सकते हैं। 

ऐसे ही शायद, जैसे भगतों या शहीदों के नाम पर सिर्फ पथ्थरों की मूर्तियाँ घड़ने के, वहाँ ऐसा कुछ भी हो? तो शायद लोगों को ऐसी जगहें ज्यादा बेहतर लगेंगी।    

"चलती-फिरती गाड़ी, कबाड़ की। लाओ, जिस किसी माता-बहन ने कबाड़ बेचना है। कबाड़ लाओ और नकद पैसे लो। चलती-फिरती गाडी कबाड़ की।" अब ये क्या है?

किताबों पे या इनके आसपास के विषयों पे, जब कुछ ऐसा लिखा जाता है, तो जाने क्यों, बाहर कोई ऐसा-सा बंदा जा रहा होता है। या फिर, "काटड़ा बेच लो।"  कुछ भी जैसे? है ना :) 

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