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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, October 31, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 77

आप कौन हैं?
इंसान? 
या 
कोई ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? फिक्स्ड डिपोसिट या सेविंग अकॉउंट? या नौकरी? या ऐसा ही कुछ और?  

आपका मालिक कौन है? 
आप खुद? 
या 
कोई और? यहाँ बच्चों की बात नहीं हो रही। वयस्क इंसानों की हो रही है। यहाँ लोकतंत्र वाले विचारों वाले समाज की बात हो रही हैं। 

फिर एक और भी समाज है। 
पितृसत्ता वाले समाज में तो शायद, पुरुष ही औरतों के मालिक हैं? पहले बाप, फिर भाई,फिर पति, फिर बेटा? औरतें यहाँ पुरुषों के अधीन रहती हैं, जिंदगी भर। सिर्फ अधीन नहीं, बल्की डर की हद तक अधीन? अकसर वो अपनी बहनों या बेटियों को कहती मिल सकती हैं, ये मत बोल, वो मत बोल, तेरा बाप, भाई या पति या बेटा सुन लेगा? या धीरे बोल वैगरैह? यहाँ औरतों के सब अहम फैसले पुरुष ही लेते हैं। क्यूँकि, वो मालिक हैं उनके? इंसानों के भी मालिक होते हैं? ठीक ऐसे जैसे, ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? या शायद नौकरी के भी? दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार या लक्ष्यद्वीप ऐसा-सा ही साँग है?       

और भी कितनी ही तरह के समाज हो सकते हैं। जैसे ठेकेदारी प्रथा? यहाँ खून के रिश्तों से आगे चलकर भी, समाज के बहुत से ठेकेदार होते हैं। जो औरों की ज़िंदगियों के फैसले लेते हैं। फिर क्या औरत और क्या पुरुष। ये प्रथा खुलम-खुला, सीधे-सीधे भी हो सकती हैं और गुप्त भी। जैसे कंगारु कोर्ट्स और टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान का दुरुपयोग कर मानव-रोबॉट्स घड़ना। मानव-रोबॉट्स घड़ाई सबसे खतरनाक है। जहाँ पर आपको ये तक पता नहीं होता की जो आप कह या कर रहे हैं, वो आपसे कोई कहलवा या करवा रहे हैं। और इसके घेरे में आज पूरा समाज है। कहीं कम, तो कहीं ज्यादा।  

हकीकत में दुनियाँ में कहीं भी लोकतंत्र नहीं है। आप किसी न किसी रुप में किसी न किसी के अधीन हैं। वो अधीनता फिर, सीधे-सीधे हो या गुप्त रुप में। पैसा, ज़मीन-जायदाद या प्रॉपर्टी के इर्द-गिर्द घूमती सत्ताओं या कहो राजनीती ने, बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर एक ऐसा घिनौना जाल गूँथा हुआ है, की दुनियाँ की ज़्यादातर कुर्सियाँ, उन्हें ही अपने कंट्रोल में रखने का खेल खेलती नज़र आती हैं। अगर आपके पास ठीक-ठाक ज़मीन-जायदाद या पैसा है, तो आप कुछ हद तक इस जाल से बाहर हैं। मगर बिल्कुल बाहर तब भी नहीं हैं। हो सकता है, ज्यादा और ज्यादा के चक्करों में लगे हुए हों? इसका या उसका हड़पने के चक्करों में लगे हुए हो? उसके लिए बहाना कुछ भी हो सकता है। कहीं गरीबों की ज़मीने हड़पे बैठे हों? और कहीं, किसी बड़े या छोटे शहर के पास वाले छोटे-मोटे किसानों की उपजाऊ ज़मीनों को कीड़े-मकोड़े से जनसंख्याँ के घनत्व में बदलकर, अपनी किस्मत चमकाने के चक्कर में? या अपना साम्राज्य खड़ा करने के चक्करों में? जालसाजी, धोखाधड़ी या कुर्सियों को अपने साथ लेकर? सब मिलीभगत से चलता है। कहीं सरकारों या ईधर या उधर की राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर, बड़ी-बड़ी कंपनियों के बड़े-बड़े साम्रज्य? तो कहीं, ऐसे-ऐसे लोगों को अपना आदर्श समझने वाले और ज्यादातर ऐसे ही लोगों की छाँव में पलते छोटे-मोटे, चिंटू-पिंटु?        

Monday, October 28, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 76

कई बार यही अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा इंसान भी काफी कुछ ऐसा बोल जाता है की आप भी सोचते ही रह जाएं की कह तो सही ही रहे हैं। 

"कोई भैंस या बैल, किसी के खेत में जुगाली कर जाएँ या गौबर या मूत, तो इससे वो खेत थोड़े ही उसका हो जाएगा? या उसकी जमीन-जायदाद या संसाधन थोड़े ही उनके नाम हो जाएंगे?"  

मगर, राजनीती तो कुछ-कुछ ऐसा ही खेलती नज़र आ रही है। दादर नगर हवेली, अंडमान निकोबार, लक्ष्यद्वीप जैसी कहानियाँ? कहाँ से कहाँ तक? भला कैसे भीड़ा देते हैं लोगबाग, ऐसे-ऐसे कोड?     

ठीक ऐसे ही जैसे, कोई इंसान अगर इस घर से उठा है, दुनियाँ से ही, तो वो कहीं और कैसे आ जाएगा? या उसकी जगह कोई और कैसे ले सकता है? कोढ़-कोढ़ जाले जैसे?  

चलो आसपास के ही कुछ अनोखे से रहस्यों से अवगत होते हैं। जिनकी जानकारी मेरी भी नई ही है। या कहना चाहिए की अभी तक भी सही से समझ से बाहर। और ये अनोखे किस्से, हर घर या जगह के अपने हैं। अगर आप भी उन्हें ऐसे ही पढ़ना चाहें तो। 

तब तक फाइनल नहीं था, की मुझे इस दौरान रहना कहाँ है। मैंने गाँव थोड़ा ज्यादा आना शुरु ही किया था। तो यहाँ-वहाँ मीटरों के नंबर, घरों के बाहर की दिवारों पर जाने क्यों कह रहे हों जैसे, पढ़ो हमें। गली से गुजरते-गुजरते ही, आप उस मकान का मीटर नंबर जान सकते हैं। उसके बाद मीटर कितना पुराना या नया है और उस पर क्या कुछ लिखा है? और रीडिंग क्या दे रहा है? मेरे अपने घर के नंबर ने ही रोक दिया जैसे। एक बार फिर से पढ़ो मुझे। ऐसा क्या खास?

ऐसा-सा ही फिर एक-आध, ईधर-उधर के मीटरों से लगा। पता नहीं क्यों? आपको पता हो, तो थोड़ा और प्रकाश डालना। 

मीटर के बाद दादा का कमरा और भाई के घर के बदलाव। भला इतने से सालों में इतने सारे बदलाव कौन करता है? खामखाँ, पैसा वेस्ट जैसे? मगर ये बदलाव कब हुए और क्या-क्या हुए और क्यों हुए? ये शायद समझने लायक है। मगर ऐसा ही फिर कुछ, आसपास के घरों में नजर आया। 

चलो इस खँडहर के डिज़ाइन से ही शुरू करें?

पीछे स्टोर (हरियान्वी में ओबरा), आधा इधर, आधा उधर। ईधर माँ वाले में क्या कुछ रुका पड़ा है? जाने दो। नहीं तो मेरी खैर नहीं। कुछ खास नहीं है। मेरे हिसाब से तो ज्यादातर कबाड़। मगर फिर भी रखने वाले के लिए खास होता है। और अकसर वही अड़चन या रुकावट या गले का फंदा जैसे? उसी ताला लगाने वाले के लिए? 19 या 20 -कड़ियाँ? 20 वीं बीच वाली दिवार में जैसे? 

उसके आगे एक छोटी-सी रसोई और अंदर की तरफ छोटा-सा आँगन। रसोई की पथ्थरों और दो कड़ियों की छत, जो पुरानी को तोड़कर बनाई गई थी, जब हम इस घर रहने आए। तब मैं शायद स्कूल में ही थी। आँगन में सिरियों वाला जाल। रसोई के साथ निकली हुई सीढ़ियाँ V-Shape, जो ऊप्पर से N जैसा-सा दिखता है। जो पहले रसोई के अंदर से ही जाती थी, जिनकी वजह से अँधेरा रहता था। वो पहले वाली सीढ़ियाँ भी शायद बाद में बनी होंगी। जब कभी दादाओं का बटवारा हुआ होगा। इस सीढ़ी में 14-सीढ़ी ऊप्पर जाने के लिए। जिनमें नीचे से ऊप्पर जाते हुए 7 वें नंबर पर और ऊप्पर से नीचे आते हुए 9-वें नंबर पर बड़ा पैड़ा। इस रसोई के पिछे वाली साइड दादा दलजीत का घर, उनका अपना खरीदा हुआ। जिन्हें ज्यादातर जीत दादा कह कर ही बोलते हैं। मुझे भी अभी कुछ वक़्त पहले ही पता चला उनका पूरा नाम। जो फौज से रिटायर हैं। जो घर कम, आसपड़ोस की कार पार्किंग ज्यादा है। जीत दादा का रहने वाला घर इस पार्किंग वाले घर के सामने ही है। ये हमारे इस खँडहर के साथ वाली जगह दादा जीत ने चार मकानों को खरीद कर बनाई हुई है। हमारे बिल्कुल साथ वाला, जो पहले दयानन्द दादा का था। उससे आगे वाला राजबीर दादा का। उससे आगे वाला प्रताप दादा का। और गली के आखिरी कोने पर उन्हीं के बेटे हरिपाल दादा का। ये चारों, जीत दादा ने अलग-अलग वक़्त पर खरीदे हुए हैं। हरिपाल और प्रताप दादा वाला तो ज्यादातर खाली ही रहता है। दयानन्द दादा वाला हिस्सा और राजबीर दादा वाला हिस्सा, ज्यादातर आसपास की कारों की पार्किंग के काम आता है। 

दयानन्द दादा बहुत पहले हांसी जा चुके। और राजबीर दादा रोहतक। राजबीर दादा, थोड़े अजीबोगरीब हालातों की वजह से। मगर ये सालोँ या दशकों पहले की बातें हैं। उसके आगे वाले भी दोनों काफी सालों पहले बेचकर जा चुके। हरिपाल दादा के बच्चे गॉंव ही रहते हैं, गाँव के बाहर की तरफ।      

चलो वापस माँ के खँडहर पर आते हैं। रसोई से आगे माँ का ठीक ठाक साइज का कमरा (हरियाणवी में साल?) और ड्राइंग रुम भी वही। या कहो Multipupose है। 24-कड़ियाँ सहतीर के एक तरफ और 24 कड़ियाँ सहतीर के दूसरी तरफ। बीच में पथ्थर का पोल सहतीर के सुप्पोर्ट के लिए, और ईंटो से बना पहले वाले घरों जैसा-सा डिज़ाइन। 

इनके ऊप्पर? पिछे वही स्टोर। जिसे छोटा-सा कमरा भी बोल सकते हैं। 19 -कड़ियाँ ? पीछे की तरफ निकला हुआ एक होल जैसा-सा, छोटा-सा जँगला। 10 वीं कड़ी के साथ। 9 कड़ी ईधर और 9 कड़ी उधर। इन छोटे से जंगलो से ऐसा समझ आता है की जब ये हवेली बनी होगी तो शायद इसके चारों तरफ खाली जगह ही रही होगी। वैसे भी इसके आसपास के मकान इसके बहुत बाद के बने हुए हैं।  

रसोई की छत और उसके साथ वाली थोड़ी-सी जगह खाली है। आगे मेरा कमरा। आधे में 24 और आधे में 23-कड़ियाँ। यहाँ लकड़ी का पोल सहतीर के सपोर्ट के लिए। इस घर में मेरी पसंदीदा जगह, मेरे कमरे के साथ बाहर की तरफ का लकड़ी और लोहे के डिज़ाइन से बना बारजा। बाकी, मुझे इस घर में कुछ पसंद नहीं।   

साथ वाला ताऊ का खंडहर भी बिल्कुल ऐसा ही है। थोड़ा-सा बदलाव। उनके पिछे वाला ऊप्पर का कमरा भी गुल है। बहुत पहले ही ताऊ ने तोड़ दिया था या कहो की टूटा ही पड़ा था। बीच में वही एक तरफ रसोई और अन्दर की तरफ छोटा-सा खाली आँगन। उसके आगे वही कमरा (साल और सीढ़ियाँ) यहाँ सीढ़ियों की वजह से कड़ियाँ बच गई, 16 सहतीर के एक तरफ और 16-सहतीर के दूसरी तरफ? सीढ़ियों की 10 पैड़ियाँ और एक 4 या 5 पटियों-सा, चबुतरा जैसा पैड़ा? इन सीढ़ियों के पीछे दादा समँदर का घर। इन सबका ददारी (पड़-दादा) या दादरी (भिवानी) या दादर नगर हवेली कोड से क्या लेना-देना? या शायद अंडमान-निकोबार और लक्ष्यद्वीप से भी? मतलब इस खँडहर के एक तरफ कोंग्रेस है और दूसरी तरफ? बीजेपी? ना। ये हैं शायद जैसे पार्टियों के A, B, C, D? ईधर, उधर, आगे या पीछे? 

और इस खँडहर के पीछे? और भी रौचक बन जाएगा, फिर तो? 

और आगे? क क क वालों का वीटा मिल्क प्लाँट, सॉरी घर। जसदेव अंकल और कविता मौसी का। और उनके पीछे, दादा कमेर का घर और डेरी । और इन आगे या पीछे वालों के आजू-बाजू? ऐसे पढ़ने लगो तो सब रौचक ही रौचक जैसे। 

जीत दादा वाले कार पार्किंग से आगे इससे बड़ी गली। इस हवेली वाली इस छोटी गली के सामने ठीक T पॉइंट पर, दादा बलदेव सिंह का मकान, जो बटवारे के बाद दो भाइयों में बंट गया।  आगे वाले हिस्से पर भाई का मकान और चाचा का पीछे, साइड से उनकी अपनी गली से जाते हुए। इस पढ़ाई के हिसाब से तो, वो आसपास भी बड़ा ही रौचक है। शायद हर जगह ही ऐसे है। खासकर, जब शुरु-शुरु में आपको ऐसा कुछ बताया, पढ़ाया या समझाया जाय? या कुछ हद तक खुद भी समझ आने लगे?   

सुना है, या कहो की कहीं पढ़ा है, की सेनाओं या राजनीती के चैस को ऐसे पढ़ा जाता है। जिसमें वक़्त के साथ या कहो की राजनीती के हिसाब से सबकुछ बदलता रहता है। जमीन-जायदाद, घर और उनमें रहने वाले भी। वैसे, यूँ तो और भी बहुत से तरीके हो सकते हैं, ऐसे पढ़ने के?                          

तो आपके या आपके आसपास वालों के लिए कितनी सही है ये जगह? जितना मुझे समझ आया, उसके हिसाब से तो किसी के लायक भी नहीं। खासकर, अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो। राजनीतिक पार्टियों की चैस के बिमारियों और लड़ाई-झगड़ों और केसों वाले खाने हैं ये? राम सिंह वाली पड़-दादी से चलके, कहाँ-कहाँ निकल के जैसे? या कहना चाहिए की बलदेव सिंह और पार्वती की माँ। क्यूँकि, ये उनकी दूसरी शादी थी। पहली शादी से दादा हरदेव सिंह थे। जिनका स्कूल है और जो गाँव के बाहर की साइड और रोहतक रहते हैं। ददारी, दादरी, दादर नगर हवेली से लक्षयद्वीप तक के जमीन-जायदादों के कोढ़ वहाँ तक भी पहुँचते हैं। जैसे पीछे 2-कैनाल जमीन वाला किस्सा।   

वैसे कोई जगह किसी के कितनी रहने लायक है। उसके लिए वहाँ का पढ़ाई-लिखाई का स्तर या सुविधाओं को जानना बहुत नहीं होगा शायद? घरों या ऑफिसों के डिज़ाइन की कहानियाँ तो ऐसे नहीं लगती, जैसे, कुछ भी फेंकम फेंक? गाँवों में, वो भी खँडहरों में या उसके आसपास की जगहों में कौन रहता है? इतना बहुत नहीं है कहना? रच दी गाथा। मगर शायद फिर भी काफी कुछ सिस्टम के बदलावों के बारे में तो बताते ही हैं। और कहीं का भी सिस्टम, वहाँ की ज़िंदगियों के हालातों से सीधा-सीधा जुड़ा है और उन्हें प्रभावित करता है। घरों के नंबर ही जैसे? गाँवों में घरों के नंबर नहीं होते? मगर यहाँ तो हैं। इस हवेली वाली गली में। बचपन से ही देख रही हूँ वो मैं।  मगर शायद सब घरों पर नहीं हैं। ये नंबर हैं 196, 197, 199, 200. इनमें भी कुछ नंबर लगता है, इधर-उधर बदले हैं?  बाहर वाली गली में नहीं हैं क्या? दिखाई नहीं दे रहे कहीं भी।         

आप भी किसी भी घर को या उसके आसपास के माहौल को ऐसे भी पढ़ सकते हैं शायद? इन घरों में स्टोर में रखे हुए सामान कबाड़ जैसे होते हुए भी खास हैं शायद? कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, ज्यादातर, रखने वालों के खुद ही जी का जंजाल? और हम कैसे-कैसे सामान से कितना लगाव रखते हैं? क्यूँकि, वो हमारे या हमारे पुरखों की यादें हैं? तो सँभाल कर रखना सही भी है शायद? मगर पुराने, सिर्फ यादों या इतिहास तक सिमट कर रह जाना कहाँ सही है? आगे बढ़ने वाले लोगों के पास तो उससे आगे कुछ अपना खुद का कमाया या अर्जित किया हुआ भी होगा ना? इसलिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी या तीसरी पीढ़ी का भी वहीं तक सिमित रह जाना, रुकावट ही है। या शायद पीछे रह जाने जैसा? उससे भी खतनाक है, एक बार बाहर निकल कर फिर से वहीं आकर टिक जाना शायद? या शायद निर्भर करता है की आप क्या कर रहे हैं या आपकी जरुरतें क्या हैं? कहीं जबरदस्ती तो नहीं धकेले हुए? ये जानना भी अहम है शायद?      

Sunday, October 27, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 75

वो आपको या आपके किसी भी बच्चे को क्या सिखा रहे हैं? सामने वाले का सब तुम्हारा है? मगर, तुम पर उसका या उनका कोई अधिकार नहीं है? वो मात्र तुम्हारे लिए काम करने वाले अवतार हैं?

अब ऐसा कौन सिखाता है? या कौन करता है? जिन्हें फायदा होगा? कौन हैं ये लोग? और इनका आपके घर के किसी इंसान या बच्चे से क्या लेना-देना हो सकता है? आप या आपके बच्चे भी उनकी प्राइवेट लिमिटेड या पब्लिक लिमिटेड के उत्पाद मात्र हैं? जिनपे वो अपना कंट्रोल, उसके जन्म के साथ ही शुरू कर देते हैं? या शायद उससे भी पहले? क्यूँकि आपके यहाँ कौन पैदा होगा और कौन नहीं, ये निर्णय भी यही लोग लेते हैं? क्या सारे समाज के यही हाल हैं? क्या आप उस दुनियाँ में हैं, जहाँ पर कुछ इंसान, बाकी सब इंसानो को, उनके बच्चों को और उनकी ज़िंदगियों को own करते हैं? या मालिक बने बैठे हैं? Owner जैसे कोई? कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, किसी भी कंपनी के उत्पाद होते हैं? घर, मोबाइल, फ़ोन, मीटर, बस, कार, हवाईजहाज,या कुछ भी और बनाने वाली, कोई भी कंपनी जैसे? या किसी भी और कंपनियों के उत्पाद मात्र? तो क्या मानव रोबोट्स बनाने वाली कम्पनियाँ भी हैं दुनियाँ में? राजनीती, सिस्टम और MNCs यही सब तो कर रहे हैं?              

Mistaken identity cases? या Crisis? या Enforcement Politics? हर चीज़ को तोड़-मरोड़, जोड़ कर अपना निहित स्वार्थ साधने वाली राजनीती? सबके घरों, ज़िंदगियों और रिश्तों की ठेकेदारी इन्होने ही ली हुई है? या खुद वो घर, आसपास और लोगबाग भी ज़िम्मेदार हैं, कुछ हद तक?

इन्हें रोजरोज के ड्रामों से आसानी से समझा जा सकता है शायद?  

जैसे फाइल-फाइल, ये प्रोजेक्ट या वो प्रोजेक्ट, ये सिलेबस या वो सिलेबस, ये पेपर या वो पेपर, इस टाइप के पेपर या उस टाइप के पेपर, इस टाइप की डिग्री या उस टाइप की डिग्री, इस टाइप की नौकरी या उस टाइप की नौकरी, इस टाइप का कोई काम या उस टाइप का कोई काम, खेलने वाले लोग या जगहें या घर या ऑफिस? 

एक आजकल कुछ ज्यादा ही ट्रेंड में है शायद, डिजिटल मीडिया और उसका जहाँ? ये भी कितनी ही प्रकार का है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर रिसर्च या एंटरटेनमेंट तक। लोगों को जानकारी उपलब्ध कराने से, भ्रामक या अपने ही तरह का एजेंडा फैलाने तक।  

फिर खेती, डेरी या और ऐसे ही काम करने वाले ज्यादातर गाँव के लोग, खासकर भारत जैसे देशों में?   

दूसरी तरफ, लाठी या डंडा? चाकू या मार-पिटाई? गंडासी, दराती और पता नहीं और भी कैसे-कैसे औज़ार या हथियार? या ड्रामे करवाने वाली राजनीतिक पार्टीयों के हथियार? सबसे ज्यादा ठाली या शायद सबसे ज्यादा आसानी से भड़कने या भड़काया जाने वाला समाज का हिस्सा? ज्यादातर, सबसे ज्यादा शोषित भी?  

अब जितना किसी भी समाज का स्तर होगा, उसी के हिसाब से तो कारनामे होंगे? लोग प्रयोग या दुरुपयोग भी उसी हिसाब से होंगे? तो ऐसे समाज की राजनीतिक पार्टियों का स्तर भी यही होगा? आप अगर ऐसी किसी राजनीती का शिकार हो जाएँ या हो रहे हों तो? आम इंसान को इन सबमें देखना ये है की खुद भी सुरक्षित रह जाएँ और सामने वाला भी। खुद भी आगे बढ़ें, समृद्ध हों और आसपास भी। कोई भी समर्द्ध और आगे बढ़ता हुआ समाज ही ऐसी राजनीती से पार पा सकता है। 

ऐसी जगह की राजनीती ज्यादातर इसके विपरीत खेलती है? तो जहाँ कहीं आपको ऐसा कुछ समझ आए की आपको भड़काया जा रहा है, वो भी किसी दूर के इंसान के खिलाफ नहीं, बल्की, आपके अपने या आसपास के इंसान के खिलाफ ही। तो सावधान हो जाएँ। अपना कोई पक्ष रखने की बजाय, सामने वाले को ध्यान से सुने। मगर, जो कुछ सुनाया या दिखाया या समझाया गया है या करने या कहने को बोला गया है। वो ना करें। पहले अपने दिमाग को उस भड़कावे से साफ़ कर शाँत करें। 

उसके बाद जिस किसी के खिलाफ कहा, सुनाया, दिखाया या समझाया गया है, उससे जरुर बात करें। शायद वहाँ आपको कोई और ही तथ्य सामने मिलें। हो सकता है जो कुछ बताया, समझाया या दिखाया गया है, वो सिर्फ चाल (trick) मात्र हो। जैसे जादू में होता है। उसके पीछे का अगर आपको दिख या समझ आ गया तो राजनीती का फूट डालो और राज करो खेल खत्म। 

जैसे बहुत-सी, आम-सी बातें आसपास ही मिल जाएँगी आपको। जैसे 

ये इंसान यहाँ से खिसकेगा तो वो इंसान यहाँ आएगा?

यहाँ से ये रस्ते बंद होंगे तो वहाँ रस्ते खुलेंगे?

इनका ये घर छुटेगा तो उन्हें वो घर मिलेगा? 

ये यहाँ से निकलेंगे तो वो यहाँ आएँगे? 

या अभी पीछे के अजीबोगरीब राजनीतिक बोल? इनकी नौकरी जाएगी तो इन्हें मिलेगी? अरे आपके पास खुद का कुछ नया नहीं है क्या देने या बनाने को? बसे हुओं को उखाड़ के, वंचितों को उनका हिस्सा मिलेगा? जिनके पास कई-कई घर, नौकरी या बेहिसाब जमीन-जायदाद हैं, उनसे क्यों नहीं ले लेते? उनके सहारे तो लगता है, आपका साम्राज्य चलता है? या ये कुर्सियाँ मिलती हैं?       

क्या किसी इंसान की जगह कोई और ले सकता है? इस घर से गया हुआ इंसान, उस घर में आ सकता है? गया हुआ मतलब, दुनियाँ से ही गया हुआ? पुनर्जन्म जैसा कुछ होता है क्या? वो भी बच्चे के रुप में नहीं, बल्की, साक्षात बड़े के रुप में? तलाक जैसे रिश्तों में तो शायद होता है। मगर, दुनियाँ से ही गए हुए लोगों के केसों में? शायद Cult Politics यही है? Cult Politics चलती ही ऐसी गुप्त मारधाड़, धोखाधड़ी और यहाँ-वहाँ फूट या भडकावोँ के सहारे है।   

जैसे, वो युवा यहाँ से गया और बुजुर्ग वहाँ पैदा हो गया?

जादू कोई? 

ऐसे जैसे, यहाँ से नौकरी छोड़ कर कहीं और चले जाएँ और फिर वापस आ जाएँ?

इंसान में और भौतिक साधनों में कोई तो फर्क होगा? या घर, नौकरी, पैसा, और इंसान एक ही बात हैं? यहाँ से खत्म और वहाँ पे पैदा हो गए? या इतने सालों कहीं स्टोर या तालों में बंद और फिर इतने सालों या दशकों बाद वो स्टोर और ताले खुले और वापस आ गए? 

फिक्स्ड डिपोसिट या सेविंग अकॉउंट जैसे? सबकुछ बैंकिंग, जमीनों-जायदाद से सम्बंधित जैसे? ये स्टोरों और घरों या ऑफिसों के डिज़ाइन की कहानियाँ कुछ ज्यादा ही हैरान-सी करने वाली नहीं हैं? इनपे और पोस्ट लिखने की जरुरत है शायद?                       

भला किसी को, किसी आम से इंसान की नौकरी से क्या लेना-देना? और उसका यहाँ या वहाँ नौकरी करने से, किसपे और कैसा फर्क पड़ जाएगा? या शायद ना करने से? या इस घर या उस घर में रहने से? या इस गली, मौहल्ले, गाँव, शहर या देश में रहने से? इतना कुछ बदलने पे तो पड़ जाएगा शायद? 

You know perspective change with the surrounding?          

थोड़ा और आगे जाने? शायद आपके साथ-साथ, मुझे भी थोड़ा-बहुत समझ आ जाए? क्यूँकि, बहुत-सी गुथियाँ लिखने भर से भी हल हो जाती हैं शायद?  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 74

 तुम मर चुके हो। अपनी सम्पति किस के नाम करना चाहते हो?

और सामने वाला सोचे, कौन कुतरु हैं ये? अपने जैसे-से फालतू sms या emails भेझने वाले? 

1-2 महीने बाद फिर से, ऐसा-सा ही sms या email मिलेगा। 

तुम मर चुके हो। चाहो तो अभी भी अपनी सम्पति (saving) किसी के नाम कर सकते हो। तुम्हारे पास सिर्फ ये और ये ऑप्शन हैं। 

और आप फिर से सोचें, ये कौन गैंगस्टर हैं? और इन्हें तुम्हारी सेविंग से क्या लेना-देना? जो ऐसे-ऐसे sms या email कर रहे हैं? ये तो बताओ, की कौन से गैंग के सदस्य हो? और ये छुपम-छुपाई कितने दशकों या सालों से खेल रहे हो? जब मर ही चुकी, तो तुम भी मरे हुए होगे? सुना है, मरे हुए एक-दूसरे से बात करते हैं? सुना है, हकीकत किसे पता है? मरने के बाद भी कुछ बचता है क्या? या तुम जैसे लोगों के पास इतनी टेक्नोलॉजी या चालबाजियाँ आ गई की ज़िंदा को मुर्दा कहकर संबोधित करो और खुद को ज़िंदा समझो? छुपम-छुपाई वाले तो आधे से वैसे ही मुर्दे हैं। क्यूँकि, ये सब खेलने का मतलब ही ये है, की गढ़े-मुर्दे ना बोलने लग जाएँ? और अपने साथ हुई हकीकतें बकने लग जाएँ?       

फिर से कुछ महीने बाद ऐसे से ही sms या emails मिलेंगे। थोड़े और जोड़तोड़ के शब्दों के साथ। 

अब भी वक़्त है, सोच लो। इसके बाद, कोई भी फलाना-धमकाना तारीख, सब अपने आप किसी और के नाम हो जाएगा। अगर अब भी खुद को ज़िंदा समझ रहे हो, तो भूल कर रहे हो। 

जब से मैंने यूनिवर्सिटी से अपनी सेविंग माँगना शुरू किया है, तब से ही ये ड्रामा चालू है। माँगना? ये तो अधिकार नहीं है किसी भी एम्प्लॉई का? कब का अपने आप हो जाना चाहिए था।   


इस ड्रामे के कुछ एक और पहलू भी हैं। कहीं न कहीं के इलेक्शंस के दौरान, ऐसे-ऐसे मैसेज का बढ़ जाना? और साथ में इधर-उधर से कुछ और सलाह, नसीहतें या जानकारी मिलना। 

7 जीरो है। 

6 जीरो है। या फलाना-धमकाना नंबर जीरो है। 

 1 पर 9 है या 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 या 9 पर 9 है। 

अब ये सब क्या है?

मीटर चैक करो। यहाँ का, वहाँ का, वहाँ का etc. समझ आया किस्सा? यूनिवर्सिटी में क्या चल रहा था? वही सब यहाँ भी? मतलब, घर कोई भी हो, जगह कोई भी हो। उससे ज्यादा फर्क टेक्नोलॉजी और कोढ़ से पड़ता है। उसे आप कितना समझ और उससे  कितना निपट पाते हो। और उससे भी ज्यादा, वो आपके दिमाग में क्या कुछ घुसेड़ पाने में समर्थ हो पाते हैं। तुमने मान लिया मर गए, तो मर गए समझो। तुम्हें मालूम है, ज़िंदा हो, तो ज़िंदा हो। रस्ते और भी हैं।         

KYA? या KYC? और भी ऐसे-से ही कोढ़ हैं। 

आप क्या करते हैं, ऐसे-ऐसे मैसेज पाकर? 

कुछ नहीं? या शायद यहाँ-वहाँ कुछ और आर्टिकल्स पढ़ते हैं? या शायद यूनिवर्सिटी को फिर से लिखते हैं? क्या धंधा कर रहे हो? मुझे मेरी सेविंग क्यों नहीं दे रहे?

कहीं से तो और भी महान मैसेज मिलेंगे। सेविंग कहीं नहीं गई। वो बढ़ ही रही है। तुम आराम से तमाशे देखो और आगे के रास्ते तलाशो। 

मतलब? जब किसी इंसान को जरुरत हो, तभी वो सब ना मिले तो उसके बढ़ने या घटने से क्या फर्क पड़ेगा?  

इस दौरान एक-आध बार यूनिवर्सिटी गई, तो कुछ एक और ड्रामे हुए। पीछे कहीं पोस्ट होंगी उनपर। 

ये मैसेज भी शायद कहीं न कहीं, इन्हीं कुर्सियों के इधर या उधर की पार्टियों से आ रहे हैं? राजनीतिक पार्टियाँ और आम आदमी से खेल? 

यहाँ-वहाँ के आर्टिकल्स क्या कह रहे हैं? जाने उन्हें?    

Saturday, October 26, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 73

 Magnetic Show?


Or?

Or?


या?

गुरुत्वाकर्षण? गुरुत्वाकर्षण की वजह से वस्तुएँ हवा में नहीं टिक पाती और पृथ्वी पर गिर जाती हैं? जैसे चुम्बक लोहे को अपनी तरफ आकर्षित करता है? किसी डंडे के सहारे हवा में ऐसे-ऐसे कृत्य दिखाने के लिए कलाकार क्या कुछ करते होंगे? खासकर जहाँ दाँव पे बहुत कुछ लगा हो? ऐसे ही शायद Micheal Jackson डांस मूव्स के बारे में कहीं पढ़ा या सुना होगा? जुत्तों में या स्टेज पर ऐसा कुछ खास होता था?

जादू?

Tricks?

Magic? 

Science?

Knowledge abuse?  

कोरोना के बाद खासकर, घर पे उगाए या बनाए खाने-पीने का ट्रेंड बढ़ा शायद? जब खाना-पीना ज्यादा ही मिलावटी आने लगा? मान लो कोई किसान हैं। गाँव रहते हैं। अपने घर के लिए दूध-दही के स्वाद के लिए एक गाएँ ले आए। उनका गाँव के बाहर की साइड एक प्लाट है। वहाँ उसको रखने का और उसकी देखभाल के लिए एक परिवार (बिहार से शायद) भी आ गया। ये कई महीने पहले की बात है। फिर एक दिन वो हमारे घर आए और माँ को कोई मैगनेट दे गए, की भाई से लेकर गए थे। मैंने ऐसे ही पूछ लिया, ये मैगनेट किस काम का। तो उन्होंने बताया की डॉक्टर ने मँगवाया था, गाएँ के पेट में लोहे के टुकड़े थे, उन्हें निकालने के लिए। हालाँकि ऐसे मैगनेट वापस घर नहीं रखने चाहिएँ। बिमारियों का, खासकर अनचाहे इन्फेक्शंस का खतरा रहता है।   

और मैंने पूछा, अब गाएँ ठीक है? 

नहीं, वो तो 2-महीने बाद ही मर गई थी।   

हैरान?

गाएँ के पेट में लोहे के टुकड़े? पशु ऐसा कुछ अपने आप तो नहीं खाएगा? उसपे जो पशु घर पे रहता हो? जानभुझकर ही दिया गया होगा, शायद किसी जाहिल इंसान द्वारा? ये कैसा देश है? यत्र पूज्यन्ते ब्लाह-ब्लाह वाला? और सबसे ज्यादा दयनीय स्तिथि, शायद वहाँ उन्हीं ब्लाह, ब्लाह की मिलेगी? गाएँ हमारी माता है, वाला देश? और बक्सा उसे भी कहाँ जाता है?

Magnet and Magic?  

Curd and Magic?

Milk and Strong?

और भी बहुत कुछ हो सकता है। 

सोचो ये कैसे क्राइम हो सकते हैं? Food Adulterants? बहुत बड़ी वजह हैं ये बिमारियों और मौतों की। वो फिर चाहे इंसान हो या फिर दूसरे जीव-जंतु या जानवर। 

Kinda, "They are eating the cats?" Donald Trump

Not rats, bats or rabbits?

And creating the dogs or maybe gods?

Interesting world?

त्यौंहारों का मौसम है, तो थोड़ा सोच-समझकर ही खरीदें। 

कंपनियाँ अपने उत्पादों का ख्याल करें और ब्रांड का भी। कई कंपनियों के नाम पर काफी कुछ ऐसा आ रहा है, जो सही नहीं है।  

Wednesday, October 23, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 72

 बच्चे और हथियार? लोगों को कंट्रोल करने का? 

बच्चों का किसी भी तरह का सन्दर्भ देकर, किसी भी माँ-बाप या परिवार या हितैषी को भावनात्मक तरीके से बड़ी आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है? और कितना भी संकिर्ण या सही में हो सकने वाला तथ्य, चोरी-छुपे या सीधे-सीधे किसी के भी दिमाग में घुसेड़ा जा सकता है? 

जैसे आपका कोई खंडहर खाली पड़ा है सालों से। और किसी आपके अपने को ही घर की सख्त जरुरत आ पड़ी। आपके दिमाग में परिस्थितियाँ और हालात देखकर आए, अभी के लिए ये जगह सही है। वक़्त के साथ कोई ढंग का समाधान निकल आएगा। आपके घर में कितने ही तरीकों से घुसी हुई, इस या उस पार्टी को ये खल गया। क्यूँकि, उन्होंने तो उसका ऐसा हाल करने की सोची थी की सड़क पर भी जगह ना मिले। कहाँ घर घुसाने की बातें चल पड़ी। उन्हें तो उसका राम नाम सत्य है, आसपास दिख रहा था। फिर ये क्या हो रहा है? पहले ज़माने में ऐसे-ऐसे सन्देश गुप्तचरों के माध्यम से जाते थे। आज सर्विलांस टेक्नोलॉजी ने सब आसान कर दिया है। अब सुन, देख और समझ तो वो दूर बैठे लेते हैं। और गुप्तचर? वो आज भी हैं। मगर उसका काम वो आपके अपनों से लेते हैं। ऐसे, जैसे उन्हें अपनी सेना का हिस्सा बना लिया हो। ये ना आपको पता और ना उस गुप्तचर को, जो उनका सन्देश आपके दिमाग में घुसेड़ेगा। एक होता है, पहुँचाना और एक होता है, घुसेड़ना। मतलब जबरदस्ती और बिना आपके या उस इंसान के पता चले, जिसे उन्होंने गुप्त रुप से अपना गुप्तचर बना लिया है। इसे टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान का धमाल कहते हैं। दुरुपयोग, जिसका सदुपयोग भी किया जा सकता है। 

आप कोई विडियो देख रहे हैं यूट्यूब पे और वहाँ ज्ञान मिलता है, जिसे कोई ऋषि-महृषि दे रहा है। "अपना पुस्तैनी घर ना बेंचें, ना ही किसी को दें, इससे आपके बच्चों के विवाह में दिक्कत हो सकती है।" चाहे दशकों से वो बिना देखभाल खंडहर हो चुका हो। सोचो, ज्ञानियों को इस ज्ञान की याद अभी आई? पहले क्यों नहीं?    

कुछ दिन बाद आप किसी के यहाँ गए हुए हैं और उनके घर कोई शादी-ब्याह की बात चल रही है, किसी के बच्चे की।  वो बातों-बातों में कहते हैं, "छोरा देखण आए थे, सबकुछ पसंद आ गया। हाँ भी हो गई। फिर किसी ने लड़की वालों को बोला, अरे कहाँ के खाते-पीते घर, वो तो अपना पुस्तैनी मकान तक बेचें हांड्य-स। और वहाँ के गाँव के लोगों के खेतों की ज़मीन तो पता नहीं कितने सालों पहले सरकार ले चुकी। "  

ईधर-उधर और भी ऐसे ही कई गुप्त-गुप्त प्रोग्राम चलते हैं। इसे बोलते हैं, साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। Enforcement ways, गुप्त तरीकों से दिमाग के सॉफ्टवेयर को बदलना (alter, manipulate) । कितने ही ऐसे तरीके इंसान को दूर बैठे कंट्रोल करने के काम आते हैं। आप किसी का भला चाहते हैं। आपने अपनी तरफ से हर कोशिश और संसाधन उस तरफ लगा दिए। मगर परिणाम? आज की टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान में माहिर लोग ले निकले? चालें और घातें भी ऐसी, की आपस में ही मनमुटाव या फूट तक डालने का काम भी कर जाएँ? और आप सोचते रहें, की आपने तो किसी का भला ही चाहा था? फिर ये क्या हुआ या हो रहा है?

कुछ वक़्त बाद, आप बातों-बातों में ये सब बता भी जाते हैं शायद? क्यूँकि, आपके दिमाग में काला नहीं है। मगर ऐसा करवाने वालों के दिमाग में तो था और है। 

इसी दौरान वो सामने वाले को धमकी भी दे जाते हैं, वो भी गुप्त, ऑनलाइन। तेरा ऐसा हाल करेंगे की तेरे ये, तुझ पे मरने वाले ही तेरे ना बचेंगे। और यही तुझे शमशान घाट विदा करेंगे। अब शमशान घाट तो विदा अपने ही करते हैं, तुम क्या किसी और के कंधो पे जाओगे, जाहिलो?   

और कितनी ही तो कोशिशें हुई। परिणाम? कितनों को खा गए ये आदमखोर? और कितनों को और खाएँगे? उनमें से कुछ एक को कैसे खा गए, उसके पिछे यही गुप्त ज्ञान भंडारण है। सबसे बड़ी बात, जिन्हें खा गए, वो कौन थे? आम आदमी, इधर भी और उधर भी। क्यूँकि, ऐसे कुर्सियों की मारा-मारी वाले ज्ञानी-लोग जिनके दिखते हैं, वो उनके भी नहीं होते। इंसान तक इनके इस खेल में एक गोटी मात्र है।            

ये तो एक छोटा-सा उदाहरण है, गुप्त तरीकों से इंसान के दिमाग में हेरफेर करने का। ऐसे कितने ही छोटे-छोटे से जाले, इन बड़े लोगों ने यहाँ-वहाँ फैलाए हुए हैं। रोज कहीं न कहीं, वही गुप्त तरीके से Mind Alteration या Control हो रहा है, ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर। इसे और ज्यादा अच्छे से समझाया, यहाँ के वाद-विवादों, हादसों, बेवजह के रोज-रोज के ड्रामों ने। कुछ आसपास की ना हुई सी बिमारियों ने, मौतों ने, आत्महत्याओं या जमीनी झगड़ों ने। कभी-कभी यूँ लगता है, की अगर मैंने गाँव की तरफ रुख ना किया होता, तो ऐसे-ऐसे राज कहाँ पता चलते? और इसीलिए शायद ये सब दिखाने, बताने या समझाने वालों का भी धन्यवाद करना चाहिए।  

Tuesday, October 22, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 71

 6620?

अरवी? खाई है आपने? और दाल? पराँठों के साथ हों तो? या दाल वाले पराँठे, सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट में? Yummy ना? कहीं Mummy तो नहीं बन गया ये?

ये अरविन्द केजरीवाल मॉडलिंग क्या है?

पता नहीं। आप सोचो।  

रोटी, रायता, शक्कर, लस्सी और गुड़? साथ में आलू या घीया की तरी वाली सब्जी? दोपहर या रात का खाना?

अब ये क्या आ गया? कांग्रेस या CPM मॉडल?

ये भी नहीं पता। बीजेपी भी तो हो सकता है? चलो छोड़ो।

ये 6620 क्या है?  

अरविंद केजरीवाल फ्री में बिजली और पानी देता है, दिल्ली में?

कहीं किन्हीं मीटरों को किन्हीं नंबरों पर सैट कर, मीटर रीडिंग फिक्स तो नहीं कर दी जाती? जैसे कोई मैच फिक्सिंग? और इसी को बोलते हों, फ्री बिजली?

खास जगह कुछ ऐसी चिप तो काम नहीं करती जो दूर बैठे इलेक्ट्रिक एप्लायंस को कहीं से भी कंट्रोल कर सकें? इसीलिए, जब ये खास कंट्रोलर चाहें वो इंस्ट्रूमेंट (instrument) चल जाएँ और जब चाहें वो जल जाएँ? या चलने से मना कर दें? मगर फिर कभी उनकी तारीख आएँ और वो फिर चलने लगें? ये सब तो IOT (Internet of Things) वाले आसानी से कर लेते होंगे?

और ये तरंगों के खेल क्या हैं? वो कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे कंट्रोल होते हैं? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 70

इंसान के हाथ में आखिर इतना ही होता है, जितना वो दुनियाँ में लेकर आता है। ना उससे कम और ना ही ज्यादा। फिर वो चाहे राजा हो या रंक। तो लोग अकड़ किस बात की रखते हैं? यहाँ तो यही समझ नहीं आता। और इंसान (?), इंसान का ही शोषण करे? वो इंसान कैसे कहला सकता है? हाँ। वो भगवान, भगवानी या कोई देव या देवी जरुर कहला सकता है? या शायद राक्षस भी?    

शोषण के तरीके कितने अनोखे हो सकते हैं? जानने की कोशिश करें?

इन पिछले कुछ सालों में कुछ ऐसे नज़ारे सामने आए या कहो की देखने को मिले, की एक बार तो आप भी हैरान ही रह जाएँ, की ये क्या था? आपको लगे ये ऐसे है, और उसका परिणाम देखते-देखते वैसे निकले? कैसे? अगर आप कोई एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं, तो ज्यादातर ऐसा नहीं होता। क्यूँकि, आप एक्सपेरिमेंट से पहले अपनी थ्योरी के ABC दुरुस्त कर चुके होते हैं। और अगर हो जाए, तो आपको अपनी तरह का परिणाम लाने के लिए, उस थ्योरी में बदलाव कर, कितने ही रस्ते और तरीके पता होते हैं। मगर आम आदमी को वो सब पता नहीं होता। या कहना चाहिए, की जिस एक्सपेरिमेंट की आपको थ्योरी तक सही से ना पता हो, उसका परिणाम कैसे पता होगा? आम आदमी ऐसे कहाँ सोच पाता है? वो कोई एक्सपेरिमेंट थोड़े ही कर रहा होता है? वो तो हकीकत की ज़िंदगी जी रहा होता है। आम आदमी में और Social Engineering के महारथियों में यही फर्क होता है। राजनीती और कहीं का भी सिस्टम, उस सोशल इंजीनियरिंग का सबसे खतरनाक या आखिरी स्तर है। सारे समाज को चैस का बोर्ड समझ, हर जीव-निर्जीव को गोटी समझकर या बनाकर, कठपुतलियों-सा अपने-अपने अनुसार चलाना या नचाना? जहाँ हर तरह के ज्ञान-विज्ञान, कर्म-काँड, लोभ-लालच और डर के तड़के लगते हैं।  

आसपास की कुछ अनोखी-सी, मगर बहुत ही आम-से, मानसिक तड़को और भड़कावोँ वाली कहानियाँ और किस्से?   

आप एक ऐसे परिवेश में हैं, जहाँ घर का छोटा-मोटा काम सब आप ही करते हैं? गर्हिणी हैं शायद? बाहर के भी ज्यादातर काम आपको ही करने पड़ते हैं? क्यों? कोई और नहीं है क्या घर में? शायद अकेले रहते हैं? हैं ना। उन्हें आपके खिलाफ और खुद उनके अपने खिलाफ लगाया हुआ है काम पे? मगर कैसे? कैसे अहम है। आप लड़का भी हो सकते हैं और लड़की भी। जेंडर से फर्क नहीं पड़ता। 

शब्दों के हेरफेर 

House Wife?

House या Home या Land Lord या Lady? 

Home Partner? 

Home Minister?

Home Maker?

और भी कितने ही शब्द हो सकते हैं। पुराना शब्द है शायद House Wife? क्यूँकि ज्यादातर औरतें घर ही रहती थी? Land Lord या Lady? शायद घरों को किराए पर भी दिया जाता है यहाँ? ताकी मालिक और किराएदार में फर्क किया जा सके? Home Partner? शायद नए दौर का बराबरी का किस्सा या हिस्सा? Home Minister? राजे महाराजाओं के घर के दरबारी? Home Maker? बराबरी के हिस्सों से थोड़ा और आगे निकल और शायद युद्धों के घातक दौर के अटैक रुपी अवतार भी? Braker का make over भी हो सकता है और मारकाट से बचने का हथियार भी? संजीदा भाषा में शायद बेहतर भी? तो आप क्या बोल रहे हैं और क्यों बोल रहे हैं? वो निर्णय कौन लेता है? आपका आसपास? या उस आसपास का सिस्टम? ये किसी भी रिश्ते-नाते पर या बोलचाल के तरीके पर लागू होता है। 

कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे, आपके बोलचाल के तरीकों से या रहने वाले समाज या घर से जुड़े काम? जो कोई काम आप करते हैं या आप पर थोंप दिए जाते हैं? आपकी जानकारी के बिना या जानकारी से? हर काम आप खुद नहीं कर सकते। ना ही करना चाहिए। ज़िंदगी आसान होगी। जहाँ-जहाँ जरुरत पडे, वहाँ अपने आसपास से सहायता लें। उस आसपास में आपके अपने घर के इंसान भी आते हैं। और आसपास के भी। उसके आलावा बाहर के भी। अगर हर काम आप खुद ही कर रहे हैं। या कोई आपकी सहायता करने वाला है ही नहीं। तो ये दयनीय स्थिति है। अब वो हमेशा से ही ऐसी स्थिति थी या बना दी गई है? या बनाने की कोशिशें हो रही हैं? ये जानकारी का विषय है। और ये अहम है। 

किसी भी घर की या इंसान की या अपने आसपास की जब ये चीज़ें आपको समझ आना शुरु हो जाएँगी तो शायद ज्यादातर समस्याओं के हल भी अपने आप निकल आएँगे। उसके लिए आपको कहीं बाहर, किसी की तरफ देखने की जरुरत नहीं पड़ेगी। और ना ही बाहर वालों की इतनी औकात रहेगी की वो आपके घर में या आसपास ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे हादसे कर पाएँ। 

राजनीती मतलब? हर इंसान को हर इंसान के खिलाफ भड़काना? हर रिश्ते को हर रिश्ते से दूर करना? अड़ोस-पड़ोस को एक दूसरे के घरों में अनचाहे दखल का औज़ार बनाना, ना की सहायता का? पुरे समाज में तोड़फोड़ मचा, सिर्फ और सिर्फ मैं और मेरे अपने? राजे महाराजे या रानियाँ-महारानियाँ? या नए दौर के तानाशाह? करते कैसे हैं ये लोग, ये सब? आपको अँधा, बहरा कर, सिर्फ और सिर्फ वो दिखा सुना कर, जो ये दिखाना या सुनाना चाहते हैं? सिर्फ और सिर्फ, ऐसी कैद तक रखकर? क्यूँकि, ज्यादातर घरों के या रिश्तों की कहानी यहाँ यही है। लोगों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काकर एक खास दायरे में कैद कर लेते हैं। एक दूसरे से बोलचाल, मिलना-जुलना बंद और उधर काँड शुरु। 

या? हकीकत को धर्तराष्ट्र और गाँधारी बना, अपने ही तथ्योँ या मोहमाया जाल के लबादे औढ़ा कर? 

और भी कितने ही तरीके हैं। जैसे कुरडियों या खँडहरों तक के ड्रामों से जुड़ाव? इससे ज्यादा क्या हो सकता है? कैसे? अजीबोगरीब तानेबाने बुनकर? जैसे मकड़ी बुनती है जाला, किसी भी शिकार को अपने जाल में उलझाने के लिए? मामा के यहाँ रहने नहीं गई की कहानी के पीछे यही ताने-बाने रहे। जब यहाँ आकर रहने की सोची तो? यही सब थोड़ा खुंखार रुप में चला? ये सब चलाने वाले कौन? ये अहम है। आप तो सिर्फ गोटियाँ भर हैं उनकी। मशीन (इंसान भी) आपकी होती हैं,  मगर, उस मशीन  को कंट्रोल करने वाले दिमाग? उनके? किनके? जानते हो उन्हें? उन्हें जानना अहम है। जो-जो अहम है, वही आप नहीं जानते?  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 69

वैसे तो हर जगह, हर घर और हर इंसान की अपनी ही कहानी होती है। और उन कहानियों के कितनी ही तरह के कोड हो सकते हैं। ऐसे ही जैसे, किसी भी PM, CM, MP, MLA या उनके आसपास के लोगों, घरों, ऑफिसों या जगहों की होती होंगी? ये खास उनके लिए, जिन्हें इलेक्शन रिजल्ट्स या नई हरियाना गवर्नमेंट पर मेरे से किसी आर्टिकल की उम्मीद थी। जब से ये राजनीती का साँग थोड़ा बहुत समझ आना शुरु हुआ है, तब से मैं राजनितिक पार्टियाँ कम, उनके ABCD ज्यादा समझने की कोशिश करती हूँ। तो जानकार लोग, इधर के या उधर के, अपना ABCD का ज्ञान पेलते रहें। कौन किसकी A टीम, किसकी B, और किसकी फलाना-धमकाना टीम?   

यहाँ Control Freak और उसपे कम पढ़े-लिखे लोगों को निक्क्में बनाने में माहिरों के राजे-महाराजाओं और रानी-महारानियों या राजकुमार-राजकुमारियों से थोड़ा आगे जानने की कोशिश करते हैं। हम जहाँ जिस जगह रह रहे होते हैं, अक्सर हमारा जहाँ भी वहीँ तक सिमित होकर रह जाता है। उससे आगे देखना ही नहीं चाहते या निकलना ही नहीं चाहते? जब बात इंसान पे कंट्रोल की होती है, तो वो हर जगह थोड़ा-सा अलग तरह का होता है। मगर उसके पीछे छुपे कारक, एक जैसे से ही होते हैं? दूसरे को अपने अधीन रखने की इच्छा? उनका शोषण कर, उनसे अपने लिए या अपनों के लिए काम करवाने की इच्छा? उनको अपने निहित स्वार्थों से आगे ना बढ़ने देने की इच्छा? उनको अपनी खुद की सिमित सोच के दायरे से आगे ना सोचने, ना कुछ करने देने की इच्छा? जहाँ स्तर और भी ज्यादा गिर जाता है, वहाँ जो लोग हैं या जो कुछ उनके पास होता है, उनको उससे भी पीछे धकेलने की इच्छा? जहाँ स्तर इससे भी ज्यादा गिर जाए, वहाँ लोगों को जबरदस्ती जैसे कैद करने या रखने की इच्छा? और बहुत से केसों में तो बिल्कुल ही खत्म करने या रोंदने की इच्छा? इंसानों के समाज के ज्यादातर दुखों की वजह यही है। 

जो समाज जितना ज्यादा दुखी है, उसका साफ़-सा मतलब ये है की वहाँ का सिस्टम और वहाँ की राजनीती control freak है। वो लोगों से संवाद करके समस्यायों के हल नहीं निकालते। बल्की, अपने घड़े तथ्य लोगों पे थोंपने की कोशिश करते हैं। और उन्हीं तथ्यों के आधार पर समाधानों का दिखावा करते हैं? जहाँ-जहाँ जितना ज्यादा छुपम-छुपाई है, वहाँ-वहाँ मान के चलो की बहुत कुछ छुपाया जा रहा है। और बहुत कुछ तोड़-मरोड़ के या बिना हुआ भी आपको परोसा जा रहा है। जहाँ किसी भी तरह का सँवाद ही नहीं होगा, वहाँ परिणाम क्या होंगे?    

बहुत ही छोटे से स्तर पर देखें तो भारतीय समाज के सास-बहु किस्से? और बड़े स्तर पर देखने की कोशिशें करें तो? किसी भी समाज का सिस्टम और राजनीती? ये ज्यादातर प्रश्न क्यों जड़ देती हूँ मैं? आपकी अपनी भी एक सोच समझ है ना? उसी के दायरे में जानने-समझने की कोशिश कर लें।    

Monday, October 21, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 68

सत्ता की सतरंज के गलियारों की खिड़कियों के माध्यम से इन अजीबोगरीब पीढ़ियों (generations) को जब जानना समझना शुरु किया तो पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया। जो थोड़ा बहुत समझ आया वो ये, की सतरंज की चैस के रिश्तों (गोटियों) के ये अनोखे गठजोड़ ईधर-उधर और जाने किधर-किधर, अपने आप में बहुत बड़ा हथियार हैं, लोगों को और उनकी ज़िंदगियों को कंट्रोल करने का। 

जैसे पहले भी कई बार लिखा, लोगों के दिलों-दिमाग में आपस में ज्यादातर बुरा नहीं होता। बल्की, बहुत बार तो भला होता है। मगर, जोड़तोड़ कुछ ऐसे भिड़ाए जाते हैं की ना चाहते हुए भी शायद लोगबाग वैसा करते हैं। 

पहली बार ये सब समझ आया, जब पहली बार अपना घर बनाने की सोची। किन्हीं खास परिस्तिथियों में ही सोची होगी? नहीं तो हम जैसों को तो इतना तक लालच नहीं होता की सिर्फ और सिर्फ अपना सोचें? सरकारी नौकरी, सरकारी मकान और सुविधाएँ, इतना भी क्या हाय-तौबा मचाना? या शायद, थोड़ी बहुत इकोनॉमिक समझ तो होनी ही चाहिए? समझ तो नहीं थी। मगर जब वो जरुरत हुई तो विकास सिवाच और पार्टी बीच में दिखी, जब SBI MDU तमाशा चला, की Home Loan नहीं मिलेगा। सैलरी, ग्रेड, बैंक बैलेंस, क्रेडिट सब सही होते हुए। 

नाना का घर (गाँव) यूनिवर्सिटी के ज्यादा पास पड़ता है, बजाय की मेरे अपने गाँव के। मामा के लड़के ने बोला, वहाँ रह लो, जब तक अपना नहीं बनता। वैसे भी नाना नानी के जाने के बाद से वहाँ कोई नहीं रहता। मुझे भी लगा, ये भी सही है। फिर तो वहीँ कहीं मैं अपना ही ना बना लूँ। यूनिवर्सिटी के पास भी पड़ता है। उनकी तरफ से ना नहीं थी। मगर एक घर या अब तो वो भी पुराना खँडहर, जब दो के नाम हो, तो शायद बहुत कुछ बीच में आ जाता है? भाई-बंधों के दिमाग में किसी तरह का कोई विरोद्ध? या? ये या अहम है। क्या है ये या? इसे जानना बहुत जरुरी है।  

धीरे-धीरे जो समझ आया, वो किस्सा कुछ-कुछ ऐसे ही था ,जब अपने घर की तरफ (गाँव) रुख किया। कहाँ तो आपको गाँव के पास वाला आधा किला (ताऊ के स्कूल के पास) इसके लिए दिया जा रहा था। जब मुझे खुद और बड़ा कहीं और चाहिए था। जहाँ माँ और भाई-भाभी को लग रहा था की सुरक्षित जगह नहीं है, रहने के लिए। गाँव से दूर भी है और पानी भी मीठा नहीं है वहाँ। और कहाँ प्लान बदलते-बदलते, कौन-कौन चाचे-ताऊ, और कैसे-कैसे दादे बीच आ खड़े हुए? जो भाभी को खा गए? या शायद कहना चाहिए की जो राजनीती भाभी को खा गई। 

दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार, लक्ष्यद्वीप? ऐसे से ही और भी बहुत से कोढ़ हैं, इधर उधर, आसपास ही। ये क्या है? कोढ़? राजनीती का? जमीनों घरों, रिश्तों में फूट, बिमारियों और मौतों तक का राज? गए हुए कल और आज की राजनीती? आगे किसी पोस्ट में।     

वो भी तब, जब वो सब आपको खुद अपने नाम नहीं करवाना था। और अगर करवा भी लेती, तो वो सब कहाँ और किसके पास जाना था? सोचने की सबसे बड़ी बात? मगर लोगों को इस कदर अँधा कर दिया जाता है या कहना चाहिए, की भावनात्मक भड़काओं में उलझा दिया जाता है, की उन्हें इतना तक समझ ना आए की यही "फूट डालो और राज करो राजनीती है"। 

मामा के यहाँ जब बात चल रही थी या कहना चाहिए की खुद उन्होंने मुझे बोला था और बाद में मेरे दिमाग में ऐसा आया था। फिर क्या हुआ वहाँ? चलो वो तो मामा थे? या शायद वो मेरे लिए यहाँ से भी ज्यादा थे? और वहाँ तो मैं खरीदने की बात कर रही थी, ना की ऐसे ही लेने या बनाने की। 

यहाँ अपने घर, जहाँ आप पैदा हुए, वहाँ क्या दिक्कत हो गई थी? यहाँ भी सलाह खुद घर से निकल कर आया थी,  की वहाँ नहीं रहना तो यहाँ बना लो। फिर होते-होते ये सब क्या हुआ? ना मेरा कोई अपना सिर छुपाने का ठिकाना बना और ना भाभी ही बचे। कैसे? उसपे गुड़िया को भी घर से निकालने की कोशिशें हुई। इन्हीं चाचे-ताऊ, दादों द्वारा। यही आसपास से आग लगाने वाले अपनों द्वारा? क्या आप भी इनके घरों में ऐसे ही घुसे हुए हैं? 

"औकात कहाँ है? ये तो औकात हमारी की अपने घर भी चला लें और औरों के भी?"

बहुत बाद में समझ आया, ये औकात वाले कौन हैं? वो नहीं, जो इंसान बोल रहा होता है। या शायद कर भी रहा होता है। ऐसा हमें दिखता है। हकीकत में यहाँ किसी की भी औकात नहीं। ये औकात है, बड़े-बड़े लोगों की, राजनितिक पार्टियों की और बड़ी-बड़ी कंपनियों की। बहुत ही जबरदस्त ताना-बाना और सुरँगे उनकी। जो अपने मनचाहे काम, आपसे, आपके ही द्वारा या आपके अपनों द्वारा या आसपास वालों द्वारा ही करवाते हैं। खुद आपके और आपके अपनों के भी खिलाफ। ये वो लोग हैं, जिन्हें आप नहीं जानते और शायद जानते भी हैं? फिर आपको वो सब क्यों नहीं दिखता या सुनता या समझ आता? उन्हें कैसे इतना कुछ पता होता है? और कैसे इतनी दूर बैठे, खुद आपसे, अपने ही खिलाफ या आपके अपनों के खिलाफ इतना कुछ करवा जाते हैं? जानते हैं आगे, अपना, खुद का एक छोटा-सा आशियाँ बनाने की जद्दो-जहद के किस्से से? तुम इतना पढ़लिख कर, इतना कुछ होते हुए भी, इतना-सा नहीं कर सकते? जिनके पास कुछ भी नहीं होता, इतना-सा तो वो भी कर लेते हैं। नहीं? 

इंसान हो तुम? इंसानों के जहाँ में रहते हो या शैतानों के? इतना-सा तो पक्षी, कीट-पतंगे और जानवर तक कर लेते हैं। नहीं? कभी ये आकर बोले, मेरे घर से निकल और कभी वो आकर बोले, की मेरे घर से निकल। वो खुद बोल रहे हैं क्या? या ड्रामों वाली महान कम्पनियाँ तैयार करती हैं उन्हें? और उन्हें समझ तक नहीं आता की वो क्या बोल रहे हैं? क्यों बोल रहे हैं? सबसे बड़ी बात, किसे बोल रहे हैं? क्या लगती है वो उनकी? कैसा कुतरु समाज है ये? और कैसे कुतरुओं के महान कुतरु, ये सब करने-करवाने वाले? थोड़ा ज्यादा तो नहीं हो गया? ओह हो। कुत्तों को क्यों गाली? उनको तो, चलो कुत्तोँ पे फिर कभी। वैसे भी कुत्ते तो ऐसे इंसानो से तो बेहतर ही होते हैं शायद?                 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 67

कभी-कभी बस ऐसे ही, यहाँ-वहाँ की कहानियां, जाने कहाँ-कहाँ, क्या कुछ कहती-सुनती मिलती हैं? मैं भी ना जाने कहाँ-कहाँ, क्या-कुछ पढ़ लेती हूँ ना? 

जैसे ये?

 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 66

दावेदारियाँ और राजनीती? 


ऐसा नहीं था की हैरान होने को कुछ बचा था 

ऐसा भी नहीं था की, 

राजनीती के गलियारों का abc तक नहीं पता था।  

शायद इसीलिए राजनीती से नफरत थी, है और रहेगी। 

मगर, तब इसे जानने की भी कोई जिज्ञाषा नहीं थी 

जो वक़्त और हालातों ने पैदा कर दी। 


दावेदारियाँ और राजनीती?

इसे बचपन से, युवावस्था तक ऐसे ही जाना था। 

मगर हैरानियाँ, अभी भी बाकी थी?

साँप के सपोले, राम की दावेदारी पर थे? 

तन-मन से नहीं,

बल्की,  

उसी राजनीती और दावेदारियों वाले बल के दम्भ से?  


कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे 

माँ, 

बीबी या भाभी संबोधित हो जाएँ?

"और कितना गिरोगे  तुम?"

"यही राजनीती है?"  

या बेटा, 

सुहाग या पति?

बेटियाँ, 

पत्नी के आईने में ढालने लायक?

किसी और के लिए नहीं, 

बल्की, खुद बाप के अपने लिए?


क क क किरन (सूरज की या रौशनी की किरण) 

स्मृति (याद) और श्रुति (कान) से लेकर

पूजा-अर्चना के विधि-विधानों तक? 

Cult Politics के खुँखार जंजालों तक 

या नारायण-नारायण के CM ताज तक? 

तो ये CM तो बस, नारायण-नारायण करते 

इस लोक से उस लोक तक घुमने के लिए हैं? 


Check & mate? 

Checkmate के च च च साज़ (जालसाज़?) तक?

Dummy (पुतला) और Duffers के E वाले इतिहास तक?

CBI से ED वाले घाट (घात) तक?

हाँक रहे थे (हैं), बरसों से वो,  

इंसानों को यहाँ से वहाँ, कैसे-कैसे?  

क्या से क्या बनाते हुए?

और कैसे-कैसे बहाने लिए हुए? 

किस-किस भेष में बदलते हुए?  


एक रिस्ता या भेष वो था, 

"जय हिन्द साहिबा" से "स्नेह सहित" वाला   

और एक भेष, आज ये है? 

जिम्मेदार कौन? 

या शायद,

"जब भी कोई वादा किया, 

हदों से अपनी ज्यादा किया?"

Sunday, October 20, 2024

ईधर-उधर, उधर-ईधर? किधर?

कुछ कदम कहीं ठहरे से 

तो कुछ कदम प्रवाह में हैं? 

कुछ जमीन पे ना आसमां पे 

कुछ शायद मझधार में हैं? 

बिछड़े हुए बिछड़े नहीं हैं, 

पाए हुओं को ना पाया हुआ।  


जाने कहाँ खोए हुए? 

इतिहास भी हैं, और 

कुछ परतों के उधड़ने से, 

जिज्ञासा का विषय भी हैं। 

वो परतें जिनपे ताले भी हैं? 

नाम भर मात्र शायद अब 

और जैसे खुले दरबार भी हैं? 


शिकार की घात वाला प्राणी, 

शिकार करता है, अपना पेट भरने को। 

खुद डरा हुआ इंसान डराता है 

निडर कब घुड़खी दिखाता है?

वो तो है बंदरों का काम 

या साँप जैसे, खुद डरा शैतान?


आभार उनका भी, आभार इनका भी 

ये भी कुछ दिखा रहे हैं और वो भी? 

ये भी कुछ समझा रहे हैं और वो भी? 

रस्ते इधर भी हैं और शायद उधर भी? 

जाना किधर है?

कदम दिखें किधर भी, ठहराव इधर है? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 65

मैडम क लाग्या इलेक्शन समझ ना आए। कोई पोस्ट नहीं लिखी इलेक्शन रिजल्ट पे। 
हाँ। NEO इलेक्ट्रिक (Remote) कंट्रोल समझ आए, तो इलेक्शन समझ आएँ?
  
NEO पे भी पोस्ट है कहीं और शायद EVM पे भी।  थोड़ा और समझने के लिए EURO समझना पड़ेगा शायद?
 
और ये Forbes Vaccum Cleaner वाले कहाँ गुल गए? पहुँचे नहीं ठीक करने अभी तक? 
लगता है ये खुद ही चल पड़ेगा फिर से, जैसे आज चला थोड़ा-सा?

जानने-समझने की इसी कड़ी में कुछ न कुछ चलता ही रहता है। उस hyper active curiosity zone (2018-2021) से आगे, बहुत कुछ जैसे अपने आप भी खुलता-चलता है। इसी कर्म के चलते, एक छोटी-सी नर्सरी भी बन गई। जिसमें कुछ एक खास गमले हैं। कुछ एक अप्लायंस के खोखे। जैसे फ्रीज (2009), माइक्रोवेव (2009), कूलर्स (2), छोटा-सा वाटर टैंक दो गमलों में बंटा, बाल्टी वैगरह। 

पेड़-पौधों में खास होता है, जब सूखा-सा, मरा-सा कोई पौधा या उसकी टहनी या ग्राफ्ट जैसे, कुछ वक़्त मरा-सा दिखने के बाद, अचानक हरी हरी-सी कोंपलें दिखाने लगे? अक्सर जैसे गुलाब या बोगेनविलिया (bougainvillea) जैसे पौधों के साथ होता है? और ऐसा सब जीवों के साथ होता है। उनकी Stress Tolerance और Adaptability या शायद Movability के गुणों के आधार पर?    

कल एक पुराना सोफा खोल रही थी, नीचे से ऊप्पर शिफ्ट करने के लिए। तो भतीजी को लगा, शायद ये भी गया नर्सरी की तरफ। और वो स्कूल से आने के बाद उसे पुर्जे-पुर्जे देख, थोड़ी हैरान-सी होकर बोली, बुआ इसका भी गमला बनेगा? और मैंने उसकी हैरानी पे थोड़ा हँसते हुए कहा, अभी तो नहीं, बाद में कभी शायद? 2009 में टाँग टूटने के बाद, जब पहली बार हॉस्टल से बाहर रहने के लिए सामान खरीदा, तो वो भी एक था। चॉको कलर, कार्बोर्ड से बना हुआ। लाल से रंग के गद्दे। वही, जो सज्जन दहिया ने घर से बाहर रख, लिखित में झूठ फेंका, की फलाना-धमकाना सामान, साथ के प्लॉट में मिला है। वो सोफा अंदर से भी गजब है। कैसे? मैथ्स पढ़ें? या AI? या Ballot या EVM?
   
कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, 2016 या 2017 (?) में खरीदा गया ये सफ़ेद डबलबैड? VISTA स्पेशल डिज़ाइन? माइक्रोसॉफ्ट विंडो विस्टा या पार्लियामेंट विस्टा? पता नहीं। कुछ एक डिज़ाइन पे आएँगे धीरे-धीरे। जिन्हें जानने के बाद, आपको खुद अपने घर, ऑफिस या आसपास के डिज़ाइन पे हैरानियाँ होने लगें शायद?     
या तकरीबन इसी दौरान खरीदी गई एक मल्टीपर्पज़ टेबल?
या सालों पहले खरीदी गई, 2 सफ़ेद कंप्यूटर-स्टडी टेबल?  
ऐसे ही जैसे ऑनलाइन खरीदी गई, ये खास बुक्स अलमीरा?
क्या खास है, इन सबमें? और बाकी सब एप्लायंस या फर्नीचर या और किसी तरह के आइटम्स में?
सिस्टमैटिक अपडेट्स? ठीक ऐसे जैसे मोबाइल, कार, फ्रीज़, लैपटॉप या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक आइटम की होती हैं? कंपनियों के हिसाब से? बाजार या गवर्नमेंट्स या पार्टियों के हिसाब-किताब से? निर्भर करता है, की आपने कहाँ से, कब और किस कंपनी से, या मार्किट से कोई सामान लिया है।        

EVM Vs Ballot?    

Wednesday, October 16, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 64

खंडहर से बातें जैसे? 


दिवार पे टाँग दो कैलेंडर को, 

अपने पसंदीदा डिजाईन में कहीं 

मन करे तो,

तारीखें, साल और महीने बदल दो। 

नहीं तो?

मान लो, रोक रखा है वक़्त हमने कहीं 

इतना भी क्या भागम-भाग ज़िंदगी?

ठहरो कुछ वक़्त तो, रुककर आराम से कहीं। 

  

दरवाजों को बना, बड़े-से फ्रेम

उनमें सजा दो आकृतियाँ पसंदीदा अपनी 

जिन्हें स्लाइड कर सकें, इधर से उधर 

और उधर से ईधर 

आकृतियों के डिज़ाइन बदलने को? 

या कमरे को ही छोटा या बड़ा करने को? 


हर जगह दीवारें ही क्यों रहें तनी?  

जैसे बन गई एक बार 

तो खिसका ही ना सकें कहीं, 

बिन तोड़फोड़ के?

ऐसी-सी ही छत हो, 

किसी एक हिस्से की कम से कम  

जिसे जब चाहे ढक लो 

जब चाहे हटा दो 

कर दो साइड में कहीं। 


किसी दिवार पे उगता सूरज 

तो किसी पे चाँद-सी चाँदनी? 

छत, जो कभी दिखाए 

इंसान की बनाई कर्तियाँ 

तो कभी हटाने पर?

साक्षात तारों से भरा आसमां?


किसी दिवार पे घूरती आँखें?

शिकार की ताक में छिपा

शेर, चीता या भेड़िया कोई?

या शायद?

नए जमाने की कृत्रिम आँखें जैसे?

जाने कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ लगे 

दिखाई देते या गुप्त कैमरों की?  


कहीं उछल-कूद करते, खेलते 

हिरण, खरगोश, गिलहरी, बन्दर 

या कुत्ते, बिल्ली, घोड़े 

कहीं पानी में तैरते जीव कितने ही 

तो कहीं उड़ते पंछी खुले आसमां में। 

और भी कितना कुछ तो कह सकती हैं 

ये दीवारें या छतें?


भला मकड़ीयों, चीटियों, भिरड़ों, चूहों 

या चमगादड़ों को ही क्यों पालें ये खँडहर?

खँडहरों पे भी तो दिख सकते हैं 

दुनियाँ भर के सिस्टम के ताने-बाने?

सर्कस कैसे-कैसे? 

या शायद प्रकृति के ही नज़ारे? 

Saturday, October 12, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 63

AI और इलेक्शन्स?  

Artificial intelligence, एक तरफ सिस्टम के या राजनीतिक पार्टियों के abcd फिक्स करने में सहायता करती है तो दूसरी तरफ लोगों को उनकी जानकारी के बैगर ट्रेन करने में। टेक्नोलॉजी अहम है। 

इस सूक्ष्म स्तर के मैनेजमेंट में क्या कुछ आता है? 

आप कहाँ रहते हैं और कहाँ नहीं? 

किसके साथ रहते हैं और किससे दूर?

किस से बात करते हैं और किससे नहीं? 

कितनी देर बात करते हैं और कितनी देर नहीं? 

किससे कब मिलते हैं? कितनी देर? कहाँ और कैसे?

कहाँ, किनके साथ या आसपास ज्यादा वक़्त गुजारते हैं?

क्या देखते या सुनते हैं या पढ़ते हैं?

क्या खाते हैं, पीते हैं? 

कब सोते हैं और कब उठते हैं?

भगवान को मानते हैं या नहीं मानते हैं?

मानते हैं तो किसे? और उसकी पूजा कैसे और कहाँ करते हैं?

घर या किसी मंदिर? अगर किसी मंदिर तो कौन से मंदिर?

आप क्या सामान खरीदते हैं? और कहाँ-कहाँ से?  

आपको कैसे डिज़ाइन या रंग पसंद हैं?      

बीमार होने पर ईलाज के लिए कहाँ जाते हैं?

और भी कितना कुछ। आपकी ज़िंदगी से जुड़ा हर पहलु। 

सोचो ये सब आप खुद ना कर रहे हो? बल्की आपसे कोई करवा रहा हो? इतना कुछ सम्भव है क्या? अगर हाँ, तो कैसे? ये जानना अहम है। 


ये कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे घरों, गली-मौहल्लों या गाँव या शहरों के डिजाईन। जिन्हें शायद घरों के या अपने घरों के आसपास के, आगे या सामने कौन हैं, पीछे कौन हैं? आजू-बाजू कौन हैं? घर का कौन-सा कौना, किसके घर के कौन-से या हिस्से से लगता है? उन हिस्सों में क्या कुछ है? वो, राजनीतिक कोढ़ में विवादों की जगह हैं? या शांती और समृद्धि की? देखो, शायद कुछ झगड़े, वाद-विवाद, बीमारी या मौतें तक वहीं से तो नहीं जुड़ी हुई? और शायद समृद्धि भी इसी में बसती है क्या? आपको लगता है, की ये डिजाईन तो आपने खुद ही बनावाया हुआ है? या आपके पुरखों ने? भला किसी तरह की राजनीती का उस सबसे क्या लेना-देना? या शायद बहुत कुछ लेना-देना है? जानने की कोशिश करें? 

ठीक ऐसे ही, आपके जीवन के हर छोटे-बड़े पहलू का? तो पहले किससे शुरू करें? घरों या गली-मौहल्लों के डिजाईन से? या आम आदमी की ज़िंदगी से जुड़े, हर छोटे-बड़े पहलू से?                       

Wednesday, October 9, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 62

"ये तुम्हें क्या देंगे? ये तो खुद ही भिखारी हैं।"

ये राजनीती और ज्यादातर नेताओं पर फिट होता है। वो आपसे भीख माँगते हैं, कुर्सियों के लिए, आपके वोट के रुप में। और उसके बाद? आपको भिखारी बना देते हैं, अगले पाँच साल? या जब तक भी वो कुर्सी स्थिर रहे? 

आज के युग में इलेक्शंस क्या हैं? या शायद कहना चाहिए की सिस्टम क्या है?

बल?

Mechanical Vs Mental?

मैकेनिकल Vs टैक्टिकल? Tactics आपसे कोई खास काम करवाने के लिए? तो सूक्ष्म स्तर पर आपको कंट्रोल करने के लिए क्या चाहिए? 

अगर आपको दूरदर्शन का Interruption के लिए खेद है, याद है, तो बस इतना-सा ही चाहिए। आपको interrupt करना है। जो प्रोग्राम चल रहा है, वो गुल जाएगा। आप अचानक से कहीं और डाइवर्ट हो जाओगे। अब इस diversion में आपको वापस, उसी प्रोग्राम पर भी लाया जा सकता है। और आपको वहाँ से उठाकर, किसी और काम पर भी लगाया जा सकता है। ये "दूर - दर्शन", रिमोट कंट्रोल से दुनियाँ के किसी भी कोने में बैठकर किया जा सकता है। ये कोई जादू नहीं है। ये विज्ञान है, टेक्नोलॉजी है, और बहुत ही ज्यादा मिक्स्ड खिचड़ी है। मतलब, Highly interdisciplinery. ऑपरेशन जैसे, कंप्यूटर और इंटरनेट की मदद से, दुनियाँ के एक कोने से दुनियाँ के दूसरे कोने में।  

ये कोई भी आदत बनाने या छुड़वाने के लिए भी कारगार हो सकता है। जैसे सोने या उठने की आदत, कोई भी नशा या सिस्टम का पूरा का पूरा ढाँचा ही। अब आप क्यूँकि खुद एक स्मार्ट मशीन हैं तो आपका ढाँचा और ज़िंदगी भी ऐसे ही बदली जा सकती है। बुरे के लिए भी और भले के लिए भी। सोचो, दुनियाँ में इतना कुछ हो रहा है और उसके बावजूद, दुनियाँ का कितना बड़ा हिस्सा कैसे-कैसे हालातों या माहौल में रहता है? हमारी राजनीती को लड्डू और जलेबी से फुर्सत मिले तब ना?  

A micromanaged algorhythmic world, system? Err Algorithmic? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 61

मानसिक शोषण और अत्याचार

मानसिक शोषण और अत्याचार क्या है? जब कोई आपकी किसी दुखती रग, आज की या बीते हुए कल की, का प्रयोग या दुरुपयोग कर, अपना हित साधने लगे? ऐसा करने में चाहे उसे आपको और दुखी ही क्यों ना करना पड़े? गाँव आने पर यहाँ आसपास के जब हालात देखे, तो यूँ लगा की ये राजनीतिक पार्टियाँ कितना तो फद्दू बना रही हैं इन लोगों का। इन लोगों की ये दुखती रगें, इन राजनीतिक पार्टियों की ही देन हैं। और उसी को ये पार्टियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी, दूसरी से तीसरी पीढ़ी, उसी ढर्रे से निरन्तर बढ़ा-चढ़ा कर, एक दूसरे के ही खिलाफ करके और ज्यादा लूटने और दोहन करने में लगी हुई हैं। 

कुछ एक उदहारण लें 

कोई छोटी बहन कहे 50-50 हो गया। जिन्हें आपकी विचारधारा का अंदाजा तक ना हो की कोई रिश्तों को पर्सेंटेज में नहीं जिता। इधर या उधर। यहाँ बीच का गोबर-गणेश नहीं टिकता। और कोई ऐसा कहके, किन्हीं अंजान लोगों के लिए, अपना आधा क्यों खोने की सोचे?

मैं इधर वाले खँडहर को गिरा दूँगा तो ताई का भी अपने आप गिर जाएगा। भाई, ताई का तो गिरेगा या पता नहीं गिरेगा, तुझे हर जगह खामखाँ में भुंड अपने सिर लेनी जरुरी होती है? ताई कहीं भी रहे, मगर इस अपनी साइड के खंडहर को ना छोड़ने वाली, अपने जीते जी। 

एक और छोटी बहन, यो आधा खंडहर तो भाई ने मेरे को गिफ्ट दे दिया। मैं भी आती हूँ यहाँ रहने, अपनी लड़की के साथ। फिर 3 बहनें एक ही row में हो जाएँगे। दो पहले ही बैठी हैं यहाँ। एक इस खण्हर के आधे हिस्से में। और दूसरी, खाली वाले आधे हिस्से के अगले वाले घर में।    

कर लो बात। ये भाई इस ए जोगे सैं? पर ये बहन तो यहाँ और ज्यादा नहीं टिकने वाली। मौका लगते ही इस खंडहर से निकलने वाली है। हाँ। माँ की बजाय, अगर ये इस बड़ी बहन के पास होता तो सारा ही तेरे को देके, तेरे वारे न्यारे कर देती, अगर तेरी उम्मीद इस खंडहर तक ही है तो?

ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे अजीबोगरीब संवाद होते हैं यहाँ। संवाद? या शायद कहना चाहिए, वाद-विवाद? ये सब Mistaken Identity के केस हैं। जिन्हें राजनीतिक पार्टियाँ अपनी स्वार्थ-सीधी के लिए, लोगों के भेझे में घुसेड़ देती हैं। और इसी को Mindwash या Mind Manipulations कहा जाता है शायद।   

और लोगों की ज़िंदगियाँ, इन्हीं के इर्द-गिर्द घुम कर रह जाती हैं। पता नहीं, लोग इन सबसे क्यों नहीं निकल पाते?  

वजहें? 

Mistaken Identity Case? is known as dangal?

और ये जलेबीकार कौन है?

हमारे नेता लोग?
जो जनता को लुटते हैं, बन्दर बनकर?
और जनता कौन है? दो बिल्लियाँ?
मैं तो देख ही नहीं पा रही अपने आपको यहाँ पर। ऐसे जलेबीकार जाएँ भाड़ में। 

Simple Funda is अकेला चलो रे। 

ये इलेक्शन भी हो चुके। तो मैडम, फाइल कहाँ तक पहुँची, डॉ विजय दांगी की? अभी तक आपकी ही टेबल पर है? जिन्हें आप माहौल ही नहीं दे सकते नौकरी करने लायक, उन्हें अटकाए रखने की बजाय, चलता करने की सोचें। शायद, सबका भला इसी में है।   

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 60

AI and Human Robotication?

AI and Elections?


आपकी अपनी पहचान से खिलवाड़ और राजनीतिक चालें और घातें? 

(Mistaken Identities and Political Maneuvers)

मानसिक शोषण या अत्याचार? आपकी पहचान धूमिल कर या मिटाने की कोशिश?   

कोई भी और किसी भी तरह की कमी, लालच या डर? 

Metaphores Vs Facts

घोर सर्विलांस एब्यूज के इस दौर में आपकी पहचान क्या है? वो राजनीती और सिस्टम के हिसाब से कैसे बनती और बिगड़ती है?

आप अपने बारे में क्या सोचते हैं, इससे बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है। उस सोच को कौन-कौन और कैसे-कैसे आपके आसपास के तत्व तोड़ते-मड़ोड़ते हैं? अगर इसकी जानकारी और आपको गिराने या पीछे धकेलने वाले ऐसे कारणों और कारकों को आप पहचानना शुरू कर देंगे, तो बहुत-से ज़िंदगी के अवरोधों से वैसे ही निपट लेंगे। क्यूँकि, आपको शायद समझ आए की जो समस्या आपको दिखाई, बताई या समझाई जा रही है या आपके दिमाग में फिट की जा रही है, वो आपकी समस्या ही नहीं है। तो आप क्यों उससे 2-4 हो रहे हैं? या बुरे-भले हो रहे हैं? अगर आप कम पढ़े-लिखे हैं और आज के टेक्नोलॉजी शोषण से बिल्कुल अंजान, तो? ये समस्या कुछ ज्यादा ही विकराल हो सकती है। 

मानसिक शोषण और अत्याचार   

आप कम पढ़े-लिखे हैं और कोई जीविका का साधन या नौकरी या व्यवसाय भी नहीं है? तो शायद राजनीती के जालों में ज्यादा उलझे मिलेंगे। अगर आपका कोई खास अपना राजनीती में नहीं है, तो ये खेल दूर से देखने और समझने का विषय है। ना की किसी की भी भक्ती करने का। 

पास से अगर इसे देखने-समझने लगोगे तो पता चलेगा, आज के राजनीती के दौर में राजनीतीक पार्टियाँ हैं ही नहीं। सिर्फ गुट हैं। और एक ही पार्टी में कितने ही गुट हो सकते हैं। इस पार्टी का कोई एक गुट या नेता किसी दूसरी पार्टी के ज्यादा करीब हो सकता है, बजाय की अपनी राजनीतिक पार्टी के। इसीलिए, उन्हें फलाना-धमकाना की A-टीम, B-टीम वैगरह कहा जाता है।  मुझे तो ये A B C टाइप ग्रेडिंग ज्यादा लगता है। 

ठीक ऐसे-ही, आपके कितने ही मत या विचार, आपके अपने नहीं होते। बल्की, किसी खास पार्टी द्वारा आप पर थोंपे हुए हो सकते हैं। और आपने उन्हें अपने पैदल भेझे का इस्तेमाल किए बिना, ना सिर्फ मान लिया है, बल्की, उनके नाम पर अपने ही लोगों को उल्टा-पुल्टा बोलना या उनसे अजीबोगरीब झगड़े भी ले लिए हैं। ये सब मानसिक शोषण और अत्याचार है, राजनीतिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा लोगों पर थोंपा हुआ । ऐसी राजनीतिक पार्टियाँ और कंपनियाँ, जिन्हें आपकी ज़िंदगी की खुशहाली से कोई लेना-देना नहीं है। मगर, आप उनके उपयोग का अनोखा संसाधन है। जिसका दोहन, वो आपकी जानकारी के बिना और इज्जाजत के बिना कर रही हैं। अब आप अपने लिए या अपनों तक के लिए काम नहीं करेंगे, तो कोई ना कोई तो आपका प्रयोग या दुरुपयोग करेगा ही? 

मानसिक शोषण आपकी समस्याएँ, आपकी ताकत और कमजोरियों के आँकलन के बाद ही संभव है। उसमें कुछ भी हो सकता है। जैसे अगर कोई विधवा है तो उसके उसी स्टेटस और उससे उपजी किसी खास सामाजिक परिवेश की समस्याओं को भूना कर, खुद आपके और आपके अपनों के ही खिलाफ भी प्रयोग किया जा सकता है। या कहना चाहिए की किया जा रहा है। अब आसपास ही कितने ही तो ऐसे इंसान हैं, जिनके साथ ऐसा हो रहा है। सबसे बड़ी बात, इसमें पुरुष या महिला होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। हाँ, सामाजिक परिवेश के हिसाब से अलग-अलग तरह के शोषण हो सकते हैं। 

ऐसे ही, किसी ससुराल छोड़ या निकाल दी गई लड़की के केस में हो सकता है। या कोर्ट के अधीन सालों से पड़े, किसी लड़की या लड़के के केस में। 

ऐसे ही, किसी अविवाहित लड़की या लड़के के केस में। सामाजिक परिवेश और आपकी खुद की सोच भी उसमें काफी प्रभाव डालते हैं। 

ये सब तो जैसे सदियों से चल रहा हैं। मगर, बहुत कुछ ऐसा भी है जो टेक्नोलॉजी की देन ज्यादा हैं शायद। जैसे, Mistaken Identities and Political Maneuvers आपकी अपनी पहचान से खिलवाड़ और राजनीतिक चालें और घातें। कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, अश्व्थामा मारा गया। इतने से हेरफेर में, अगर टेक्नॉलजी या ज्ञान-विज्ञान के थोड़े और तड़के लग जाएँ तो? 

नाम के हदभेद?

जगह के हदभेद?

खंडहरों तक पर मारा-मारी?

या और भी कितनी ही तरह की राजनीतिक चालें या घातें हो सकती हैं? जानने की कोशिश करते हैं आगे।  

ये BSNL के इंटरनेट को कल से क्या हो रखा है?

और मेरा वोडाफ़ोन नंबर, मेरे घर पर होते हुए कब तक इंटरनेशनल लोकेशन के अनुसार इंटरनेट रॉमिंग में रहेगा? 

पढ़ने में आया है, की आसपास ही कुछ फालतुओं ने किया हुआ ये सब। ऐसे लोग, जो हमेशा इस पर निगाह रखते हैं, की आप उनके अनुसार क्या बोल सकते हैं और क्या लिख सकते हैं। चुनावों के आसपास ज्यादा खतरा हो जाता है क्या?

कहीं ऐसे से ही कारनामों को EVM hack तो नहीं बोलते?     

Saturday, October 5, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 59

Civil?

Defence? 

War/s?

Lord/s?


Machine and Human Being

How much same, yet different?

Laptops, PCs, Phones and Humans? And so many other machines?

बावलीबूच, यो टीन्स (teens) पटी ड्रामा क्यों चला रखा है? और ड्रामा 04-10 2024 को थोड़ा और आगे बढ़ा। पता नहीं, ये टीन्स-पटी का सारा का सारा हिसाब-किताब था या अब स्क्रीन-पटी हो गया? मल्टीमीडिया, मगर भद्दे वाला? धोलू और नीलू की बाज़ी बताई? धोला बोले तो, राम? और नीला बोले तो, श्याम? या शिव-शंकर? या इसका उल्टा-पुल्टा है? 

भगवाना की भी आपस मैं बाज़ा करे? ये कैसे भगवान? 

जब से ये साँग देखने शुरू किए, तब से इंसान भगवानों से बेहतर हो गए। अब अगर भाई-बंध कहें, की तू ते भगवान न भी ना मानती। कितके भगवान? नीरे मिलावटी सौदे हैं। बेरा ना किसे-किसे कबाड़े, प्रैक्टिकल्स के नाम पे करने लगे हुए हैं। पापी कहीं के। 

सुना है, भगवान नाचया भी करेँ? और रास-लीला भी रचा करेँ? अब किसी का शौक नाच-गाना हो तो, कुछ ऐसा-सा कटाक्ष भी आ सकता है, जैसे, नाच ना जाने, आँगन टेढ़ा? हमारे यहाँ कितनी ही तरह के तो भगवान होते हैं। बच्चों के, बच्चोँ जैसे-से। बड़ों के, बड़ों जैसे-से। और बुजर्गों के, बुजर्गों जैसे-से। उनमें भी उतने ही आकार-प्रकार हैं, जितने आकार-प्रकार इंसानों के।     

भगवानों पे गाने भी वक़्त की नज़ाक़त के हिसाब-किताब से होते हैं शायद? याद करो कोई भी गाना या भझन, किसी भी भगवान या भगवानी, देव या देवी के नाम पर। और कौन-सा और कैसा गाना याद आता है?   

बच्चों का होगा तो शायद भम्म-भम्म भोले, तारे जमीन पर से? बड़ों का होगा तो? पुराना राजेश खन्ना वाला? या भाँग रगड़ क पिया करूं, मैं कुंडी-सोटे आला सूं? वैसे, नए दौर का एक गाना भी है, जय-जय शिव-शंकर, मूढ़ है भयंकर? या ऐसे-से ही कृष्ण पर भी मिल जाएँगे शायद? जैसे वो तो किशना है? ऐसे से ही मिलेँगे, कृष्ण के नाम पर सब गाने? राम, सीता, संतोषी, दुर्गा जैसे भगवानों या देवियों पर तो शायद भझन ही मिल सकते हैं?

तो आपको क्या पसंद है? पुराना या नया? गाने या भझन? आज की राजनीती में भझन कहाँ मिलेंगे? सट्टे, अर् र  सत्ते के यहाँ? वो क्या बोलते हैं उसे बुजुर्ग लोग? सत्संग? चलो सत्संग पे फिर कभी बात करेँगे। वैसे तो ये सब राजनीती की ही माया है? और इंसान की? मोह-माया या लालच या जरुरत भी शायद? निर्भर करता है। 

Friday, October 4, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 58

Architecture and Design

आप क्या समझते हैं इन दो शब्दों से?

वास्तु और घर का डिज़ाइन या कहीं का भी डिज़ाइन जैसे? कितना कुछ गूँथ दिया गया है इस सबमें? कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे,  रीति-रिवाज़, श्रद्धा, और धर्म-कर्म एक तरफ। तो दूसरी तरफ? उन्हीं सब में गूँथा हुआ, ज्ञान-विज्ञान, टेक्नोलॉजी, राजनीती और सिस्टम। हमारा और आप-सबका, भूत, भविष्य और आज भी?  

सोचो, आप जो तुलसी घर में लगाते हैं, कभी सोचा की वो किस प्रजाती की है? अब इतना वक़्त भला किसके पास? यही ना? उसका तुलसी के इलावा भी कोई नाम है क्या? आपके घर में पहले कौन-सी थी? और न जाने कब और कहाँ से कौन-सी आ गई? और वो भी आपकी जानकारी के बिना? मगर जिन्होंने उसे आपके घर तक पहुँचाया है, उनके नाम पता हैं क्या? अरे अब माली या किसी लाने वाले के सर मत होना। उन्हें शायद से खुद कुछ नहीं पता होगा। या शायद, किसी ने चोरी-छिपे वो बीज वहाँ डाल दिए, जहाँ आपकी पहले वाली तुलसी थी। और इसके उगने के बाद उसे चलता कर दिया या शायद आपसे ही करवा दिया हो? कुछ भी कहकर? भला इसका  Architecture and Design से क्या लेना-देना? अगर कोड की भाषा में बात करें, तो A  rchitecture and D esign भी एक नहीं है। इसके भी कितने ही मतलब हो सकते हैं, अलग-अलग पार्टियों के हिसाब से।  

कुछ-कुछ ऐसे, जैसे 

A for?

D for?

या AR for?

De for?   

अब तुलसी भी राम या श्याम हों तो? वैसे रहीम क्यों नहीं?

राम-श्याम का झगड़े से सम्बन्ध?

तो राम-रहीम का शांती से?  

अरे नहीं, ये भी निर्भर करता है, किसके राम-श्याम और किसके राम-रहीम? अब किसी का राम-रहीम तो वो भी है, जो इलेक्शंस से खास पहले पैरोल पे बाहर आता है, जेल से?   

तो क्या फर्क पड़ जाएगा, की आपके घर कब कौन-सी तुलसी आई और कब कौन-सी तुलसी गई? या दोनों ही घर में हैं या किसी वक़्त रही? तुलसी तो तुलसी है? क्या काली और क्या धोली (सफेद)? ये हर पेड़-पौधे और जीव-जंतु पर लागू होता है। 

ठीक ऐसे ही, जैसे 

क्या फर्क पड़ता है हिलेरी क्लिंटन राट्रपति हो या बराक ओबामा? या पड़ता है शायद? वैसे ये हिलेरी क्लिंटन ईमेल घपला क्या था? क्या वो भी कोई वजह बनी हिलेरी क्लिंटन के हारने की? या वही अहम वजह थी? पता नहीं ये तो राजनीती के जानकार ज्यादा बता सकते हैं। 

मगर बहुत ही छोटी-छोटी सी चीज़ें हैं, जिन्हें कितना भी बढ़ाया-चढ़ाया भी जा सकता है और बिल्कुल ही नगण्य मान, ख़ारिज भी किया जा सकता है। ऐसे ही कितने ही उदहारण, आगे पोस्ट्स में आपके अपने आसपास से भी हो सकते हैं। ऐसे ही जैसे, घरों के छोटे-मोटे designs से लेकर, आपके घर के बर्तन-भांडे तक, आपके बोलने-चलने के लहजे से लेकर, आपके खाने-पीने तक, आपके कपड़ों के रंग, आकार-प्रकार से लेकर आपके हुलिए तक।  

Thursday, October 3, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 57

ओए कालू, कालू ओए?

ओए धोलू, धोलू ओए?

ओए रंग-बिरँगे, ओए रँग-बिरँगे ओए?

ओए बदरंग, ओए बदरँग ओए?


क्या है ये?

Architecture या Design?

रामा या श्यामा? R  ama या S  hyama? 

आज़ाद या गुलाम? A  azad या G  ulam?

और भी कितना-कुछ हो सकता है, इन सबके बीच? आप सोचो। धीरे-धीरे आएँगे इस सब पर भी आगे पोस्ट में। 

हिंट के लिए 

सोचो अगर काली झाड़ू, सफ़ेद हो जाए?


या?
सविंधान की कॉपी या कवर कोई रंग बदल जाए?
तो?
सूरज हुआ मध्यम, चाँद जलने लगा?
या 
ज़रा तस्वीर से निकल के तू सामने आ?
या 
ज़िंदगी आ रहा हूँ मैं? 


या शायद अगर राजनीती और हरियाणा के इलेक्शन या शायद कहीं के भी इलेक्शन की बात हो तो?

जहाँ तेरी ये नज़र है, जैसे-जैसे और कैसे-कैसे दाँव-पेंच चलाने लगी हुई हैं, सब पार्टियाँ? महज़ कुछ-एक कुर्सियों के चक्करों में?


और भी कितने ही गाने हो सकते हैं?

या शायद कुछ खास-म-खास प्रोग्राम्स?  

यही सब राजनीती है? या इससे आगे भी कुछ?  

Wednesday, October 2, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 56

 What happens to Biology when it leaves earth?

"Probably, it starts looking towards west especially USA?"

NASA decides?




Dr. Rob Ferl

Molecular Biologist who specializes in the molecular mechanisms involved in gene expression.