कुछ कदम कहीं ठहरे से
तो कुछ कदम प्रवाह में हैं?
कुछ जमीन पे ना आसमां पे
कुछ शायद मझधार में हैं?
बिछड़े हुए बिछड़े नहीं हैं,
पाए हुओं को ना पाया हुआ।
जाने कहाँ खोए हुए?
इतिहास भी हैं, और
कुछ परतों के उधड़ने से,
जिज्ञासा का विषय भी हैं।
वो परतें जिनपे ताले भी हैं?
नाम भर मात्र शायद अब
और जैसे खुले दरबार भी हैं?
शिकार की घात वाला प्राणी,
शिकार करता है, अपना पेट भरने को।
खुद डरा हुआ इंसान डराता है
निडर कब घुड़खी दिखाता है?
वो तो है बंदरों का काम
या साँप जैसे, खुद डरा शैतान?
आभार उनका भी, आभार इनका भी
ये भी कुछ दिखा रहे हैं और वो भी?
ये भी कुछ समझा रहे हैं और वो भी?
रस्ते इधर भी हैं और शायद उधर भी?
जाना किधर है?
कदम दिखें किधर भी, ठहराव इधर है?
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