About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Saturday, November 30, 2024

What the hell is this eco nomy?

Wonder, if eco nomy and PAN card are also cooperative modelling to fit into bigger designs of political system? -- to fit the rich people? Not the poor ones?

जाने क्यों मुझे अपने PAN card को पढ़ कर ऐसे लगा? उसके नंबर ही जैसे सीधा-सीधा कंट्रोल कहीं और बता रहे हैं। 

कहीं पढ़ा की राजनीतिक पार्टियाँ सिस्टम डिज़ाइन करती हैं। जिनमें अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरह के चैक पॉइंट हैं। पार्टियाँ इन चैक पॉइंट्स के जरिए, लोगों को कंट्रोल करती हैं। एक तरफ जहाँ मानव सँसाधन हैं। तो दूसरी तरफ IDs सबसे बड़ा कंट्रोल का तरीका हैं। कोढ़ के सिस्टम में ये IDs बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। भारत में आधार कार्ड  और PAN card, IDs में सबसे महत्वपूर्ण हैं। उसके साथ आपकी जन्म की तारीख और नाम।  

किसी भी महत्वपूर्ण ID में कम से कम एक शब्द या नंबर आपके अपने नाम का पहला शब्द या आपके जन्म का कोई खास नंबर जरुर होना चाहिए। 

कैसे डिज़ाइन करती हैं ये महत्वपूर्ण ID देने वाली एजेंसीयाँ, इनके नंबर या कोड? 

Friday, November 29, 2024

Time to get rid of aadhar

Time to get rid of aadhar. Aadhar is exploitation, without information, without consent, the worst way possible. This is dh of Hydra? Who needs it? And why? By this way common people become the subject of abuse by political parties, directly or indirectly.

The worse, even childrens are at risk of exploitation and possible abuses by birth. I wonder, for what purpose, it was invented? What was the intention behind this invention?


Thursday, November 28, 2024

महारे बावली बूच, अर घणे श्याणे? 1

बावली बूचाँ  के अड्डे? 

एंडी न्यूं कह सै, बावली बूच, जै बावली बूच बना दिए तै के होग्या? साले हैं ए इस जोगे। 

ये साले तो जैसे यहाँ की मधूर जुबाँ का abcd है। 

जब आपको ये ना समझ आए की ये पढ़े-लिखे और कढ़े आदमी, या पैसे वाले और दिमागों को अपने अधीन रखने वाले नेता-वेता, सेठ-वेठ,  कैसे-कैसे, ऐसे-ऐसे आदमियों का दुनियाँ भर में शोषण कर रहे हैं? अगर शोषित होने वाले बावली बूचाँ  के अड्डे? तो पढ़े-लिखे और कढ़े आदमी, या पैसे वाले और दिमागों को अपने अधीन रखने वाले? घणे श्याणा के अड्डे?  

रोज-रोज के कारनामे या प्रवचन यहाँ वहाँ जैसे 

आपके बहन या भाई को बुखार हो रखा है, गला खराब और खाँसी भी। उसने कहा, Honitus Syrup और Teblets लाने को। और आप मूँगफली गुड़ टिक्की उठा लाए?

ले ये खा ले। Honey-wonitus ना मिलती यहाँ। 

मिलती है। ये कह की लाया नहीं या देने वाले ने दी नहीं। 

अच्छा? तो खुद-ए ले आइए। 

और आप सोचें, बावली बूच? 


आपके बहन या भाई का कुछ सामान आया है, कहीं से। उसको रखने के लिए जगह चाहिए। आपके पास जगह है, मगर बहाने पे बहाने। तंग आकर उसने माँ से लड़झगड़ और अपने कुछ सामान का उलटफेर कर, माँ के खँडहर में ही जगह बना ली। 

अगले दिन एंडी आवै चालया, मैंने जगह बना ली अपने वहाँ, सोफे के लिए। वो पड़ोसियों के यहाँ 2-साल से पड़ा सोफा और टेबल मैं कल ले जाऊँगा (20 11 2024 को)। 

और आप सोचें, अब जब मैंने बैड की अलमारी और पुराने सोफे को टुकड़ों में बाँट दिया, कुछ इधर, कुछ उधर तब? आज किसने बता दिया इसे, की मैंने कुछ ईधर-उधर रखे सामान के लिए जगह बना ली? एक तै बढ़ कै एक बावली बूच? इस सामान के यहाँ आने का मतलब, ये सामान यहीं रहना था, तब भी और अब भी। ये भी पड़ गए चक्करों में, इन खास तारीखों के राजनितिक ड्रामों वालों के? इसको इन वालों ने पकड़ा हुआ हो जैसे और उसको उस राजनीतिक पार्टी ने?      


पानी क्यों नहीं है यहाँ। पहले तो था। और कोई नहीं बातएगा, है, जब तक आप कहीं ऑनलाइन कुछ VALVE Closure टाइप या 10-15 के हेरफेर नहीं पढ़ लेते। उसके बाद, ड्रामे चलेंगे, खोल के दिखा। या नरेश 21- 11- 2024 को सुबह-सुबह खोल जाएगा? 

अरे तुम (नरेश) तो खाती हो ना? ये दरवाजा क्यों नहीं ठीक कर देते? अब ये घर पुराना खंडहर है, तो पता नहीं यहाँ क्या-क्या खराब पड़ा है। 

नरेश: उसके लिए श्याम को आऊँगा। 

और श्याम कब की आई गई हुई। 

आप सोचें, एक तै बढ़ कै एक बावली बूच? 


बादाम का दूध पी ले बे। 

बढ़िया सेहत बन रही है। 

हाँ। 

पी लो। थोड़ा-सा पी लो। मेरी ज़िंदगी ठीक हो जागी। 

क्या? 

ए बावली बूच सै यो तो, मत सुण घणी इसकी। बिमार पड़ा सै।  

Almond Milk? कोड?

दादी जाने से पहले एक एंडी शब्द दे गई। कहीं भी कुछ ऐसा होता और वो बोलते, ए बावली बूच सै यो तो।  

ऐसे-ऐसे कितने ही रोज-रोज के, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे वाक्या होते ही रहते हैं यहाँ। तो सोचा क्यों ना बावली बूचाँ  के अड्डे पै ए कुछ लिखना शुरू कर दूँ? ताकी इन्हें भी समझ आए की लोगबाग कम पढ़े-लिखे लोगों का कैसे-कैसे फद्दू बनाते हैं?  

अब दूसरी तरह के भी हैं, जो आपको या आपके अपनों को जैसे लूटने पे लगे हुए हों? या आपकी पहचान धूमिल करने को? घणे श्याणे? और वो ये सब करवाते किससे हैं? बावली बुचां तैं?   

तो ये सीरीज शुरू होती है, महारे बावली बूच, अर घणे श्याणे? 

जैसे Fear and Folies वाले? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 99

एक्टिंग स्पीकर?

कोई हमारे नेताओं से पूछे ये क्या होता है?

ये हरियाणा की विधान सभा में एक्टिंग स्पीकर हैं क्या?

कुर्सी बीच से जैसे चाँद? वैसे ये चाँद हरा कब से होने लगा?  


और ये क्या बहस हो रही है, हरियाणा विधान सभा में? 
 

ऐसी-सी ही और राज्यों या देशों की विधानसभाओं में बहस होती होंगी? 

आम आदमी, या मेरे जैसों का जिनका बहुत ही कम ज्ञान है, ऐसे-ऐसे विषयों का, उन्हें भी तो अवगत कराएँ,
 की क्या-कुछ होता है, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों की सभाओं में?  
 

और ये USA में?


वैसे राजनीती के कौन से नियमों से तहत राजनेता एक्टिंग करते हैं?
सुना है, अलग-अलग देशों के सँविधान के, कुछ खास नियम (गुप्त-गुप्त) तरीके से ऐसी अनुमति देते हैं? नेताओं को एक्टिंग की पर्मिशन, वो भी विधान या राज्य सभाओं के अंदर? बताओ कौन-से गुप्त नियम हैं वो? कहीं पढ़ा कुछ दिन पहले या सुना और देखा शायद? किसी यूट्यूब के विडिओ में? कोई फिरसे वो विडिओ सामने लाएगा प्लीज?   
अगर किसी के पास एक या दो पर इतना कुछ हो, तो ये कहानियाँ तीर्थों या चौथों तक या उससे भी आगे कैसे पहुँचती होंगी? धोखाधड़ी? हेराफेरी? खासकर जब जुर्म करने पर, टैक्स लगता हो? और टैक्स भी किसपे, जुर्म करने वाले पर नहीं ?       

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 98

देश के नाम के कोढ़ क्या हैं या हो सकते हैं? 

Cou nt r y? 

R ast ra?

Nat ion?

De sh?

State? States?  

ऐसे से ही कुछ और भी कितने ही? 

उनके साथ, अब जिस किसी देश से आप अपने आपको मानते हैं उसका नाम और कोढ़ जानने की कोशिश करें?

 जैसे आप Bha r at भारत से हैं? या Ind ia से? 

Pakistan से? 

China से? 

या Japan से? 

या U-S?

या U-K?

या F r an ce?

या Aust r alia?

कोई और भी देश का नाम लिख सकते हैं? 

इनके कोढ़ को कैसे, जोड़ेंगे, तोड़ेंगे या मड़ोड़ेंगे? 

Ind ia?

साथ में उसका झंडा, मुद्रा (Currency) और भी कितने ही विवरण उसके बारे में समझने की कोशिश करें तो?

बच्चों वाला कोढ़ ज्ञान?

जैसे गूगल बाबा ज्ञान IA इनपुट के साथ? 





वैसे इस वक़्त दुनियाँ में कितने देश हैं? आपका अड़ोस-पड़ोस उतना ही रंग-बिरंगा या ranga, billa हो सकता है? कितने महाद्वीप है? उतना ही पिछड़ा या अगड़ा? कैसे-कैसे जियोग्राफिक एरिया हैं? उतना ही हरा-भरा, रुखा-सूखा, पानी से घिरा, समतल मैदानों से या ऊँचे-नीचे पहाड़ों से? ये सब डाटा एनालिसिस की दुनियाँ का हिस्सा है। और दुनियाँ भर की सरकारें बनाने और गिराने का भी?

डाटा एनालिसिस से दूर आप, आपका घर और आसपास हकीकत में क्या हैं? 

दिल्ली वाले? एनसीआर वाले? हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, UP, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि? ऐसे ही देशों का है।  
  
हिन्दू? मुस्लिम? सिख? ईसाई? जाट? राजपूत? धानक? कुम्हार? चमार? चूड़े? बहुत गरीब? गरीब? निम्न मध्य वर्ग? 
मध्य वर्ग? उच्च मध्य वर्ग? अमीर? थोड़े ज्यादा अमीर?
सड़ाँध की हद तक अमीर?
ये सड़ाँध की हद तक अमीर? ये तो गरीब पर लागू होता है ना?     

डाटा एनालिसिस वाली दुनियाँ में और आपकी हकीकत की दुनियाँ में कितना फर्क है?  
जितना फर्क है शायद उतना ही आप राजनीती के रोज-रोज के ड्रामों, कुर्सियों के हेरफेरों और सिस्टम को समझ पाने में असमर्थ हो?        
  
ऐसे ही जैसे किसी भी देश की मुद्रा या currency का महत्व?

Wednesday, November 27, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 97

Constitution Day? Or Samvidhan Divas? Or Samvidhan Diwas?

किसी ने कहा, ये Ch ud है, बच इससे। 

किसने?   

आलतू-फालतू कमेंटरी यहाँ-वहाँ? या कहूँ की शुरु-शुरु का ही कोई CJI Chanderchud का विडियो, जब एक अलग ही रुप में जैसे, सँवाद करता नजर आया, तब?

उसके बाद कितने ही ऐसे से कोढ़, यहाँ-वहाँ देखने, सुनने या समझने को मिले। 

Chand? e? r? ch ud?

जैसे मोदी "जी" कहें की ऑप्शन ही नहीं है। 

क्यों?

3 पे R रुपी रोड़ा है। 

फिर से कमेंटरी कहीं। 

ऐसा क्यों?

कुछ वो जो तुम्हें पता है। और बहुत कुछ वो जो डिफ़ेन्स के लिए जरुरी है। 

तो यहाँ डिफ़ेन्स क्या है? ये भी वो नहीं है, जो आम व्यक्ति समझता है?

अब ये कौन-से और किधर वाले राज से पूछें?    

ऐसे ही जैसे, मोदी (या कहें B  J P?) के संविधान के कवर का रंग काला? राहुल गाँधी या कहें (Cong r ess?)  संविधान का रंग लाल और काला उसे जोड़ने वाला हिस्सा? कोई काला कमांडो या रक्षक जैसे? ऐसे ही जैसे ट्रम्प का सविंधान बाइबिल? 3-1 जैसे CJI चंदरचुड़ का? या Data analysis वालों का? Cambridge analytica जैसे? कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा, घप्पन में 56 जैसे? और ये तो abcd हैं, इस कोढ़ की दुनियाँ के?   

ठीक ऐसे ही इस संविधान रुपी किताब की तरह हमारा सँविधान? रंग-बिरँगा? या कहें जैसे, Ranga और  Billa?  किसी का 26/11 N  ove  m  ber को? किसी का 4 Ju ne को? किसी का फिर किन्हीं और तारीखों, महीनों या सालों को होगा? वो भी एक ही देश में?

और कोढ़ हैं? 

Country? 

Rastra?

Nation?

Desh?

उनके साथ अब जिस किसी देश से आप अपने आपको मानते हैं उसका नाम और कोढ़ जानने की कोशिश करें। साथ में उसका झंडा, मुद्रा (Currency) और भी कितने ही विवरण उसके बारे में। बच्चों वाला कोढ़ ज्ञान? अगली पोस्ट में? 

Tuesday, November 26, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 96

आप उस दुनियाँ में रहते हैं, जहाँ बारिश कृत्रिमधुंध कृत्रिमछोटे-मोटे भूकंप और आँधी तक कृत्रिम होते हैं? कैसे? कौन करवाता है? और क्यों?

क्या पर्दे इधर वाले उधर या उधर वाले इधर करने से कुछ फर्क पड़ेगा? या शायद मधुसुदन MAGIC (?) से परहेज से? या Mario से बचाव से?

आँखों में जलन, साँसों में परेशानी-सी क्यों है?

गले में खरास और तापमान थोड़ा बढ़ा-सा क्यों है?

गले में खीच-खीच? Vicks की गोली खाओ, खीच-खीच दूर भगाओ? या शायद Strepsils? या Honitus? और भी कोई ऐसी सी ही टॉफी कहो या टैबलेट? 

या शायद अदरक और तुलसी के कुछ पत्ते एक कप पानी में उबालो और एक चमच शहद मिलाओ। इसे (ग्रीन चाय)  दिन में कई बार पिओ, जब तक आराम ना हो?  

अरे इलाज तो और भी बहुत हैं। Air Purifier भी हैं। भला ऐसे-ऐसे धंधे कब चलेंगे? मगर धुँध होने पर ये आँखों में जलन कब होती है? हवा में एसिड जैसी-सी दुर्गन्ध भी तो नहीं? ये क्या खेल है भई? स्वास्थ्य से खेल है? कौन खेल रहा है?             




ये पोस्ट थोड़ा देर से है। जब ये सब हकीकत में चल रहा था या ड्राफ्ट में ये पोस्ट लिखी जाने लगी थी तो कोंग्रेस और आम आदमी पार्टियाँ, ये सब कर रहे थे। और बीजेपी? जानना बहुत ही अहम है, अपने आसपास में होने वाली घटनाओँ को और समाज में घटने वाले घटनाक्रमों को। उससे भी अहम, उस सबके आम व्यक्ति पर पड़ने वाले प्रभावों को। इन पार्टियों की तारीफ की जानी चाहिए? या इनसे इन सबसे सम्बंधित प्रश्न पूछे जाने चाहिएँ की आप क्या कर रहे हैं? कह रहे हैं या लिख रहे हैं और क्यों? आप परोस क्या रहे हैं, समाज को?

अगर ये सब समझ आ जाएगा तो नफरत हो जाएगी सब राजनीतिक पार्टियों से और उनके तौर-तरीकों से।

Friday, November 22, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 95

Neo Saang? Zero Makers?

Or Hero Makers? या Legends? 

एक ही बात हैं?

आप उस दुनियाँ में रहते हैं, जहाँ बारिश कृत्रिम? धुंध कृत्रिम? छोटे-मोटे भूकंप और आँधी तक कृत्रिम होते हैं? कैसे? कौन करवाता है? और क्यों? Neo, Hero, Zero या Legends का इन सबसे क्या लेना-देना है?         

अपने-अपने MP या MLA से ये पूछें?

आजकल धुंध हो रखी है? Fog या Smog? दोनों में क्या फर्क है? कैसे होती है? और उसका हल क्या है? ठीक ऐसे ही जैसे किसी भी बिमारी का इलाज या हल होता है।   

Pollution हो रखा है? क्या लेवल है? 201-300? 301-400? इनका मतलब क्या है? कैसे होता है? और कैसे निपटा जा सकता है?        

कहीं डेंगू (Dengue) का प्रकोप है? तो कहीं Malaria? या Viral? या कोई भी बीमारी जो ज्यादा बड़े स्तर पर फैली हुई है? कैसे होती हैं ये बिमारियाँ? और इनके हल क्या हैं? 

शुरु-शुरु में शायद आपको थोड़ा बहुत समझ आने लगे। धीरे-धीरे राजनीती वालों की हेरा-फेरियाँ समझने लगोगे। आपको ये समझ आने लगेगा की वो कैसे-कैसे आपका फद्दू काट रहे हैं। और हमारी इस राजनीती से कैसे निपटा जा सकता है? क्यूँकि, इनके हेरफेर भी उन्हें ही बेहतर मालूम हैं। सीधी-सी बात, जो हेराफेरी करेंगे, उन हेराफेरी की बारीकियाँ भी या तो उन्हें पता होंगी या उनके साथ काम करने वाले या आसपास वालों को?   

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 94

Neo Saang? 

या शायद मुन्ना भाई MBBS? ये कहानी फिर कभी। अभी Neo वाली सुनो। 

Neo? ऐसे नहीं लग रहा जैसे किसी Sci-Fi मूवी में कोई नाम है?    

Neo Saang? Zero makers? Or hero makers? Or maybe legends? एक जैसे-से ही साँग हैं? या अलग-अलग पार्टीयों के हैं? राजनीती के भद्दे जुए के ABCD जैसे?  

जुलाई 2023? क्या खास हुआ था? ऐसे ही कोई छोटी मोटी नौटँकी आसपास? चलता ही रहता है। इसमें भला क्या खास है? मुझे माँ के इस खंडहर में बिजली का थोड़ा सा काम करवाना था। पड़ोस की एक ऑन्टी को बोला और एक इलेक्ट्रीशियन आ गया। उसने कहा gindhran (Madina-B) से है। हालाँकि, बीच में थोड़ा ड्रामा चला की वो तो Rohtak से आता है। खैर। काम हो गया। शायद थोड़ा ज्यादा। थोड़ा ऐसा भी, जो कहा ही नहीं था। उसने मीटर के साथ वाला मैन स्विच हटाकर वहाँ पर कोई Neo के दो स्विच लगा दिए। मुझे जाने क्यों अजीब लगा? खैर काम तो हो गया ना? 

शायद?

जाने क्यों मुझे लगा की इसी से सम्बंधित किसी ट्विटर अकाउंट पर कोई खास पोस्ट आई जैसे? लगा? और कहीं किसी और मीडिया पेज पर ऐसा ही कोई आर्टिकल? Neo से सम्बंधित? ये चल क्या रहा है? क्या है ये? खेल? सेनाएँ तक यही खेलती हैं?   


इस ट्विटर अकॉउंट में सिर्फ और सिर्फ 6 पोस्ट हैं? मुझे इतनी ही दिखाई दी? आपको कितनी दिखाई दे रही हैं? January 2010 में ये प्रोफाइल बनाया गया? January 2010 में ही कोई काँड भी हुआ था क्या?

उसके बाद March 2010 में किसी की सगाई? और फिर वो सगाई की फोटो फाड़कर भी लगाई थी क्या? क्यों?

उसके बाद 6- 6- 2010 को शादी? और शादी की फोटो में एक का मुँह ईधर तो दूसरे का उधर? शादी ही इतने शुभ मुहरत में हुई थी शायद? काँड पे ढक्कन जैसे? कहीं ज्यादा तो नहीं बोल गई?      

वापस प्रोफाइल पर आते हैं। 23 Following और 12 Followers? ऐसा ही दिख रहा है आपको भी? हर पोस्ट एक खास वक़्त या कहो की तारिख को लिखी गई है? और कुछ खास बता रही है, कोड-सा जैसे? ये कम शब्दों या बिना शब्दों के भी ज्यादा कहने या बताने वाले माहिरों में से हैं। 

जब मैं गॉंव आई, तो जैसे पहले भी किन्हीं पोस्ट में लिखा, की यहाँ भी चारों तरफ ऐसे लग रहा था, जैसे ईंट, पथ्थर से लेकर, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे तक कुछ कहना चाह रहे हों। और संवाद का दायरा बढ़ता गया। एक ऐसा-सा ही संवाद, Neo वाली घटना के बाद नोटिस किया गया। बिजली का वो काम करवाने के बाद, माँ के इस घर के मीटर के नंबर अचनाक से कुछ के कुछ हो गए। और तभी से फिक्स हैं? अरविंद केजरीवाल दिल्ली में ऐसे ही खेले करके तो फ्री बिजली नहीं देता लोगों को? दिल्ली सरकार आपके द्वार? आप यूनिवर्सिटी के 16 नंबर में हैं? हम भी हैं आपके साथ? 30 में हैं? हम भी साथ-साथ? अच्छा गाँव पहुँच गए, वो भी माँ के खँडहर में? हम आपकी सेवा में यहाँ भी हाज़िर हैं? मुझे तो लगता है ये हॉस्टल से ही चले आ रहे हैं साथ-साथ? या शायद उससे पहले भी, ये खेल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी ऐसे-से ही चले आ रहे हैं?        



लोगों की ज़िंदगियाँ कहीं ऐसे भी फ़िक्स होती हैं क्या? 
पूछो अपने-अपने नेताओं से? राजनेताओं से?

या शायद ऐसे-ऐसे राजों के राजाओं से?
या रक्षा मंत्रियों से शायद?    

भला ऐसे-ऐसे राज में, कैसे-कैसे नाथ छुपे हो सकते हैं? 

हे धर्त (या धूर्त?) -राष्ट्रो। आपके राज्यों में, नहीं दरबारों में, कैसे-कैसे काँड होते हैं?
जिस घर का भी रुख करो, हम वहीँ हैं? 
आदमी हैं आप, या साए हैं?  

Thursday, November 21, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 93

Done

Testing starts now

ये हो क्या रहा है?

Elections 

अब कौन-से elections?

USA 

अमेरिका के इलेक्शंस और टैस्टिंग इंडिया में? संभव है?

हो नहीं रहा? 

What non-sense psychopaths! मुझे पहले भी एक-दो बार लगा, मगर लगा coincidence है। या तुझे फालतू में उकसाने के लिए है। ऐसे कैसे?

Still don't you know physio, psycho control and manipulations? 

F***istan @*_:",{  :(

क्या था ये?    

मान लो, आप रोबॉट्स की दुनियाँ में पँहुच चुके हैं। भारत में कहाँ, क्या और कैसे होगा या करना है, ये दुनियाँ के दूसरे कोने में बैठे बड़े-बड़े बिजनेसमैन, कंपनियाँ, डिफेंस और राजनीती मिलकर करती है। आप इस दुनियाँ में महज़ एक गोटी हैं। आपको नहीं मालूम, आपकी बॉडी में जो हो रहा है, वो नार्मल है या सिंथेटिक। ऐसे से कुछ-एक मैजिकल फूड, आप तक पहुँचे और तमाशा लाइव दुनियाँ के किसी भी हिस्से तक पहुँचा। 

जो कोई खाना आप लेते हैं, उसके ऊप्पर जो कुछ भी लिखा है, उसे पढ़ने और समझने की कोशिश करें। शायद कुछ वक़्त बाद समझ आने लगे। मगर ये तो शायद बता या उल्टा सीधा-समझा दिया गया। बहुत-सा खाना तो हम ऐसा खाते हैं, जिस पर कुछ लिखा ही नहीं होता। उसे कैसे पढ़ें या समझें? खतरनाक दुनियाँ में हैं हम?

सुना है, यहाँ आजकल कुछ एक ऐसे-से डेरी प्रोडक्ट्स आ रहे हैं। ये चेतावनियाँ दिवाली से दो-एक महीने पहले से आनी शुरु हुई थी।   

Where are you located?

Located?

Location

यूँ नहीं लग रहा, जैसे गूगल वाले या ऐसी-सी ही कोई और कंपनी आपकी location चैक कर रही है? नहीं, रिकॉर्ड कर रही हैं? भला, उन्हें क्या फायदा इससे? और ऐसे-से ही कितने सारे और टैस्ट? बल्की बोलना चाहिए जानकारी? भला क्या करती हैं, ये कंपनियाँ इस सबका? यही डाटा हमें manipulate करने के काम भी तो आता है। हेराफेरी। सिर्फ manipulate? नहीं। बीमारी करने और मारने तक के लिए प्रयोग होता है, जिनमें आत्महत्याएँ तक शामिल हैं।   

दिवाली सफाई के चक्कर में किताबें पता नहीं कहाँ-कहाँ फैली पड़ी थी। और बच्चा पूछता है, ये Goliath क्या है? 

कुछ किताबें हम खरीद लेते हैं। मगर पढ़ नहीं पाते। या शायद लगता है, ये तो पढ़ा जा चुका या ऐसा कुछ तो हो चुका। कई सारी और ऐसी-सी ही किताबें हैं, जो कई साल पहले खरीदी थी। एकाध तो, repeat version जैसे। जिनके सिर्फ कुछ पन्ने खोलते ही लगेगा जैसे, oversurveillance world. Shadow World? कहीं-कहीं तो जैसे, न्याय के नाम पर क्रुरता के उस पार? 

Fight to create more and more data either by hook or crook to exploite more. Degrading humans and destroying humanity.

Synthetic data creation: Food adulterants and different kinda manipulations

Blurring lines of natural instict in synthetic world

Implants, Legal minefields and clickbaits    

आगे पोस्ट्स में पढ़ेंगे इनके बारे में भी थोड़ा बहुत। 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 92

Mistaken Identity Crisis 

क्या है पहचान धूमिल करना या धूमिल करने की कोशिश करना? कौन कर रहा है या कर रहे हैं ये सब?

मोदी का वो भाषण सुना है, "घर में घुस कर मारेंगे?" क्या ये सिर्फ मोदी के प्रवचन हैं? या सभी पार्टियाँ यही तो नहीं  खेल रही हैं? वो सिर्फ आपके घरों में ही नहीं घुसी हुई, बल्की आपके दिमागों को भी कंट्रोल कर रही हैं। Pros and Cons: Bio-Chem-Physio-Psycho and Electric Warfare 

कैसे?  

Once upon a time friend कहो या batchmate, जो आर्मी में हैं। उनके बड़े भाई भी आर्मी में हैं। और सबसे बड़े मीडिया। जितना मैं जानती हूँ, वो अपने माँ बाप को भी अच्छे से रखते थे और तीनों भाई भी शायद कोई खास मनमुटाव नहीं रखते बल्की मिलजुलके ही रहते हैं। गलत तो नहीं कहा? ये आम आदमियों या मिडल क्लास जनमानस का घर है? खाते-पीते आम आदमी? क्या हो अगर इन्हें हम अदानी और मोदी से जोड़कर देखने लगें? ये तो इक्कट्ठा रहते हैं, खुद को एक कहते हैं, सब हज़म करने के लिए? यहाँ शायद लोगों को यकीन भी हो जाएगा? मगर केस तो mistaken identity ही कहलाएगा ना? कहाँ मोदी अडानी और कहाँ कोई मिडल क्लास परिवार? 

अब ऐसा ही कुछ हम एक ऐसे घर वाले बहन-भाइयों से जोड़ते हैं, जिनमें सिर्फ एक ठीक-ठाक नौकरी करती थी और उसी खाते-पीते मिडल क्लास श्रेणी में रख सकते हैं। एक भाई-भाभी जैसे-तैसे अपना ठीक-ठाक गुजारा कर रहे थे। मगर जाने क्यों किन्हीं लोगों को हज़म नहीं हुआ। मोदी की तरह घर घुसे और उजाड़ दिया। एक और भाई जो पीता था, उसको दो बोतल देके अपने कब्ज़े धर लिया, जितना भी उनसे हो पाया। अब ये भाई गॉंव रहते हैं तो आसपास भी ऐसा-सा होगा। थोड़ा कम या थोड़ा ज्यादा? वो मोदी बीजेपी घर घुसा या आनन्द, हुडा-कोंग्रेस या अरविन्द केजरीवाल, आम आदमी पार्टी, या कोई और राजनीतिक पार्टी, रिसर्च का विषय हो सकता है? या शायद सभी पार्टियाँ ऐसे-ऐसे घरों में भी घुसने की कोशिश करती हैं? क्यों? क्या मिलता है, उन्हें वहाँ से? और घुस के उन्होंने क्या मचाया या अभी तक रुके नहीं हैं? क्या हो, अगर इस घर को मोदी-अडानी से जोड़कर कारनामे शुरु हो जाएँ? या ऐसे ही किसी भी आम आदमी के घर? क्यूँकि आसपास का भी कुछ-कुछ ऐसा-सा है? 

मोदी-अडानी का कुछ नहीं बिगड़ना। किसी टाटा-बिरला या जिंदल का भी नहीं बिगड़ना। ऊप्पर वाले खाते-पीते घर का भी कुछ नहीं बिगड़ना। मगर ऐसे-ऐसे डाँवाडोल घर किधर भी खिसकाए जा सकते हैं। कुछ एक आसपास जो घर बिल्कुल ख़त्म हो चुके, उन्हें भी ऐसे ही रिसर्च का विषय बनाया जा सकता है। सिर्फ खिसकाए नहीं जा सकते, बल्की बिल्कुल ख़त्म भी किए जा सकते हैं। ऐसा ही कुछ चल रहा है या कोशिशें हो रही हैं। Mistaken Identity Crisis कह सकते हैं इसे? एक जो थोड़ा ठीक-ठाक था, उसे उस नौकरी से लूट-कूट-पीट के निकाला जा चुका। या शायद उनके शब्दों में कहें तो, वो खुद ही रिजाइन कर चुकी? तकरीब साढ़े तीन साल पहले? मगर अब तक उसे धेला नहीं दिया गया है। क्यों? सबकुछ खाके, वो अपने नाम करेंगे? 

सोचो किया कैसे है? वो पागल हो गई थी, बंद लैब्स के ताले खोलकर फोटो लेने लगी थी? पड़ोस के खाली पड़े घर तक को साफ़ करवा रही थी तो कहीं मीटर चैक कर रही थी और फोटो ले रही थी? उसपर नौकरी करने लायक नहीं बची थी? अब ऐसे इंसान को धेला देकर भी क्या करेंगे? भाई-भाभी को कुछ आसपास के ठीक-ठाक घरों ने कहना शुरू कर दिया था, सबका खा गया। और आपको समझ ना आए, दो मेहनत करने वाले मियाँ-बीबी भला किसका खाएँगे? अब पीने वाले को तो कहना ही क्या। अरे नहीं, अब वो पीना छोड़ चुका, बिना किसी deaddiction सेंटर गए? है ना गज़ब? या जादू? इसके लिए शायद food adulterants को जानना समझना पड़ेगा?            

तीनों बहन-भाइयों को यहाँ पहुँचाकर भी वो चाह रहे हैं, नहीं, लगातार कोशिश कर रहे हैं, की उन्हें और बाँटे और काँटे?   

क्या चल रहा है Mr. Vice Chancellor? या कहना चाहिए MDU Authorities? किसी की कोई फाइल एक ही टेबल पर कितना वक़्त रह सकती है? पिछले डेढ़ साल से तो सुना है, academic branch, teaching, deputy registrar की टेबल पर पड़ी है। क्या VC या रजिस्ट्रार के इशारे के बिना संभव है ये?    

अरे, अपने convenience के हिसाब से देंगे, ऐसी भी क्या जल्दी है? कुछ एक चिंटू-पिंटू शायद, ऐसा कुछ भी तो नहीं कह रहे?     

सोचो क्या फायदा है उन्हें ऐसा करके? और इसे आदमखोर होना नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे?

यहाँ आसपास ही जब मैंने निगाह दौड़ाई, तो पता चला की कुछ ख़त्म हुए घरों की कहानियाँ भी उतनी ही रौचक हैं, जितनी आगे बढ़ने वाले घरों की। दोनों को ही जानना बहुत जरुरी है शायद। 

Monday, November 18, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 91

तो? स्वास्थय टमाटर तक सिमित है? फूल आए, नहीं आए? फल आएँगे या नहीं आएँगे?

या स्वास्थ्य का मतलब, इससे आगे भी बहुत कुछ है? ऐसे-ऐसे पेड़-पौधे, तो सिर्फ आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं, की आपका वातावरण या माहौल या इकोसिस्टम कितना सही है, एक स्वस्थ ज़िंदगी के लिए? और कितना नहीं? और भी बहुत से पेड़-पौधे होंगे आपके आसपास, जो बहुत कुछ बता रहे हैं, बिमारियों के बारे में? रिश्तों की खटास या मिठास के बारे में? और खुशहाल या बदहाल ज़िंदगी या मौतों तक के बारे में? संभव है क्या? पेड़-पौधे इतना कुछ बता पाएँ? या आसपास के पशु और पक्षी या दूसरे जीव-जंतु भी?  

जो मुझे समझ आया, अगर आपके यहाँ राजनीती आपके लिए सही नहीं है तो? वैसे राजनीती सही किसके लिए होती है?

चलो इसे यूँ भी समझ सकते हैं, आप जितना अपने घर पर रहते हैं या उस पर ध्यान देते हैं, उतना ही आपका घर सही रहेगा। जितना वहाँ नहीं रहते, उतना ही कबाड़? शायद नहीं। फिर तो कितनी ही दुनियाँ घर से दूर नौकरी करती है, उनका क्या? शायद ये कह सकते हैं की जितना अपने घर को सँभालते हैं या उसकी देखभाल करते हैं, उतना ही सही वो घर रहेगा। जैसे कोई भी माली कितना देखभाल कर रहा है या कितना जानकार है, ये उसके देखभाल वाले बगीचे को देखकर ही बताया जा सकता है। वो कहते हैं ना, की जिस बगीचे का या खेत का कोई माली नहीं होता, वही सबसे पहले उजड़ते हैं। जिनकी जितनी ज्यादा सुरक्षा और देखभाल रहती है, वो उतने ही ज्यादा फलते-फूलते हैं। बहुत बार आपात परिस्थितियों में भी? देखभाल पर बाद में आएँगे, पहले सुरक्षा को समझें?

आपके घर की सुरक्षा कितनी है? ऐसे ही जैसे किसी भी खेत या बगीचे की? खुरापाती, नुकसान पहुँचाने वाले तत्वों से? जीव हैं, तो बिमारियों से? प्रदूषण वाले वातावरण से? भीड़-भाड़ से? एक खास दूरी या हर किसी का अपना सुरक्षित दायरा बहुत जरुरी होता है, किसी भी तरह के विकास या वृद्धि के लिए। 

पीछे जैसे घरों के डिज़ाइन और किसी भी वक़्त की पॉलिटिक्स के डिज़ाइन की बात हुई। वैसे ही पेड़-पौधों के डिज़ाइन की या खाने-पीने से सम्बंधित खाद्य पदार्थों की? या शायद खाने-पीने से भी थोड़ा आगे, किसी भी तरह के पेड़-पौधों या पशु-पक्षियों की? पेड़-पौधों से ही शुरु करते हैं। मुझे थोड़ी बहुत बागवानी का शौक है। तो यूनिवर्सिटी के घर या आसपास के पेड़-पौधों से आते-जाते एक तरह का संवाद होता ही रहता था। पेड़-पौधों से संवाद? हाँ। इंसानों की आपसी बातचीत के द्वारा। कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे घर या गली से आते-जाते कुत्तों या गायों से? यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर यूँ लगता है, जैसे सभी को बागवानी का शौक होता है, थोड़ा-बहुत ही सही या दिखावे मात्र के लिए। आप कहेंगे की यहाँ तो फुर्सत ही नहीं होती। ऐसा नहीं है, शायद आसपास भी प्रभावित करता है। गाँवों में भी देखा है की जिन घरों में छोटा-मोटा बगीचा होता है, वो अकेले उस घर में नहीं होता, आसपास और भी मिलेंगे। ऐसे जैसे कहीं-कहीं सिर्फ गमलों के पौधों के शौक? या कहीं-कहीं सिर्फ सीमेंट, ईंटो-पथ्थरों के शौक, जैसे पेड़-पौधे तो आसपास दिखने भी नहीं चाहिएँ? मगर ऐसे घरों के आसपास किन्हीं खाली जगहों पे झाँको। कहीं जहरीला कुछ तो नहीं उग रहा? या एलर्जी वाला? या खामखाँ की बीमारी देने वाला? या शायद सिर्फ ऐसे से जानवरों या जीव जंतुओं के घर? ये सीधे-सीधे या उल्टे-सीधे, आपके घर की सुरक्षा का दायरा है। अब वो दायरा कितना पास है और कितना दूर, ये तो आप खुद देखें। एक जैसे खिड़की या दरवाजे के एकदम बाहर? या घर से बाहर निकल इधर या उधर, जहाँ से आप शायद सुबह-श्याम गुजरते हों? या शायद और थोड़ा दूर? गाँव या शहरों से बाहर के मौहल्ले जैसे? या ऐसे मौहल्लों या कॉलोनियों में कभी-कभी घरों के पीछे वाली जगहें या आजु-बाजू वाली जगहें?  

आसान भाषा और कुछ शब्दों में कहें, तो सब आर्थिक स्तर पर निर्भर करता है? 
आर्थिक स्तर बढ़ता जाता है तो लोगबाग सिर्फ अपने घर का ही नहीं, बल्की आसपास का भी ख्याल रखने लग जाते हैं? और उसी के साथ-साथ सुरक्षा का दायरा भी बढ़ता जाता है और आपात परिस्तिथियोँ से निपटने के सँसाधन भी। उस बढे हुए दायरे में राजे-महाराजे मध्य में होते हैं? और उनसे आगे जितना दूर जाते, जाते हैं, उतने ही असुरक्षित दायरे? क्यूँकि, बाकी सब उन्हें ही बचाने के लिए तो काम करते हैं और जीते-मरते हैं? कहने मात्र के लोकतंत्रों में ये सब आसानी से दिखता नहीं, गुप्त रुप से चलता है। जिन समाजों में जितना ज्यादा अमीर और गरीब में फर्क है, उतना ही ज्यादा वहाँ पर ये वाला नियम काम करता है। और उतने ही ज्यादा भेद-भाव और क्रूरता से। 

अँधेरे और रौशनी से ही समझें? 
सोचो आप, कैसे? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट से।      

Saturday, November 16, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 90

टमाटर हटा दो। 

हटा दिए। सब गए डस्टबिन। 

फिर कोई आवाज़ आई जैसे, अरे रुको। क्या पता ?????? बचा लो कुछ एक। 

और आपने कुछ एक छोड़ दिए। बाकी चलते कर दिए, डस्टबिन की राह। कहीं एक ही गमले में कई-कई थे। तो कहीं एक ही गमले में कई तरह के पौधे एक साथ। जैसे हरे वाली तुलसी, जामुन और एक टमाटर का पौधा। तो कहीं मरवा, तुलसी और टमाटर। मिक्स वाले टमाटर के पौधे चलते कर दिए। मगर जिन गमलों में सिर्फ टमाटर थे, वहाँ कुछ और भी बीज बो दिए। जैसे मेथी, पालक, बड़े गमलों में खासकर । मगर एक अभी भी सिर्फ टमाटर वाला गमला भी है। नहीं, इसमें भी कुछ और भी उग आया है? जिस दिन हरी तुलसी वाले गमले वाला टमाटर का पौधा चलता किया, उस दिन?

सच में? हरी (?) तुलसी आ गई, अमेरिका में?

कुछ-कुछ ऐसे? जैसे हरियाणा में Vidhanshabha ( या Vidhan Sauda?) की ये कुर्सी है?   


कुर्सी ओ कुर्सी?
कितनी ही तरह की कुर्सियाँ होती हैं ना दुनियाँ में?
एक ये भी?
क्या डिज़ाइन है ना?
बीच में हरा है और उस हरे पे भी कोई खास डिज़ाइन है। उसके ऊप्पर अशोका, पीतल (Cooper?)? और साइड में? और भी बहुत कुछ है? 
और ईधर? 
80% (या 20?) अमेरिका का संविधान?
 
कह रहा हो जैसे?

(above images are taken from internet)

ये अमेरिकन ग्रीन कार्ड पे सच में इतनी मारा-मारी है क्या? 

वापस अपने टमाटर पर आएँ?


लोगों को मारा-मारी से बचा लो तो?
स्वास्थय बस इतना-सा विषय है दुनियाँ में? या इससे आगे भी बहुत कुछ है? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

Thursday, November 14, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 89

टमाटर और तुलसी ( अदला-बदली?)


टमाटर 6 में खरीद के, 2.50 में बेचोगे? 

?????

क्यों खरीदना और क्यों बेचना?  टमाटर हटाओ, तुलसी के लिए जगह बनाओ। 

और लो जी, तुलसी हाज़िर हैं?

तुलसी या Basil या ?

अगर भारत में तुलसी का जन्मदिन 25 दिसंबर (?) को हुआ?

तो अमेरिका में कब हुआ होगा?

बोले तो कुछ भी फेंकम फेंक? ये राजनीती में ईधर से उधर कितना होता है ना? 

:)


टेस्ला या संतरो?

तसला कहाँ गया?

गया? या गई? टेस्ला तो आपने ही नहीं बेच दी? और फिर ध्यान आया, टेस्ला या संतरो? भारत की संतरो को ही तो अमेरिका वाले टेस्ला नहीं कहते?   

बोले तो कुछ भी फेंकम फेंक? :)  


अर एक लाइट बाहर जले सै 

ये लाइट नहीं है क्या? बाहर की लाइट गुल है। 

लाइट तो है। इस बल्ब के साथ दिक्कत है। 

मास्को ते ब्लिंकिंग सीख ग्या लागे सै यो भी।  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 88

Watching or reading anything online is like, is this true or fake? Then be it official or government websites or media pages. At times difficult to judge like, I mean seriously? It's like the same google doc, office word or PDF pages seemed a bit different yesterday and something missing or have been manipulated today? 

Earlier this impression was about search engines like google results or youtube videos or social sites like twitter, where following and followers results were like some match fixing. Difficult to identify or judge and differentiate what's fake and what's real?

उनके लिए जो कहते हैं की हिंदी में लिखो 
जो भी आप देख रहे हैं या सुन रहे हैं या पढ़ रहे हैं या समझ रहे हैं, वो कितना सच है? या कैसे पढ़ेंगे या समझेंगे उसे? 

चलो थोड़ा आसान से शुरू करते हैं  
पढ़ो, क्या समझ आया? 













रौचक? 

ऐसे ही बाकी सोशल मीडिया बताया। आप इसे पढ़ो और समझो। मुझे थोड़ा-बहुत जो समझ आया, वो आगे पोस्ट में। जानकार अपना ज्ञान पेलते रहें। 

Food for thought

 


महाराष्ट्र चुनाव? 

हरियाणा में क्या था?

या शायद कहीं का भी इलेक्शन उठा लो?  

Tuesday, November 12, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 87

अगर किसी बच्चे के पास पैसे ना हों, तो वो 12वीं से आगे की पढ़ाई कैसे करेगा?
क्या? 
अगर किसी बच्चे के पास पैसे ना हों, तो वो 12वीं से आगे की पढ़ाई कैसे करेगा?
अगर बच्चा पढ़ना चाहता है तो उसे कहीं न कहीं से तो पैसे मिल ही जाएँगे। 
कहाँ से?
उसके घर वाले देंगे। 
अगर घर वाले ना हों तो या उनके पास पैसे ना हों तो?
कोई न कोई तो देगा ही। नहीं तो स्कॉलरशिप होती हैं। Crowd Funding होती है। और बहुत तरीके होते हैं। 
तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो?
ऐसे ही। 
आपके पैसे बुआ देंगे। 
नहीं, मैं तो किसी और के बारे में सोच रही थी। क्या पता किसी के घर वाले 12 वीं के बाद पढ़ाना ही ना चाहें।
ये तो बड़ी समस्या हो सकती है। 
 
वैसे तो कितने ही बच्चे हैं ऐसे, जिनके बारे में हमें सोचने की जरुरत है। किसी भी सभ्य समाज को सोचने की जरुरत है। भला बच्चों तक के दिमाग में ऐसे ख्याल ही क्यों आएँ? वो फिर किसी का भी बच्चा हो।    

जबकि आपको समझ आ रहा है की क्यों पूछ रहा है ये सब, ये बच्चा। 
Insecurity पैदा करना, बातों ही बातों में, यहाँ-वहाँ से। ये सब स्कूल में भी हो सकता है और उसके बाहर भी। घर में भी हो सकता है, उन प्रोग्राम्स के द्वारा, जो वो टीवी पर देख रहा है। या शायद आसपास कहीं से सुनकर भी। अमेरिकन ट्रम्प-हर्रिस यही राजनीती है। भारतीय कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी भी यही कर रही है। या यूँ भी कह सकते हैं की किसी भी देश की राजनीती आम लोगों को ऐसे ही अपने कब्ज़े में करके, उन्हें अपने गुलाम बना रहे हैं। 

तो क्या राजनीती लोगों को गुलाम बनाने का खेल है?      
गुमराह करके गुलाम बनाने का खेल, बेहतर होगा कहना? 

जब राजनीती और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, हर सँसाधन पर अपना कंट्रोल करना चाहें तो क्या कहेंगे उसे? फिर इंसान तो सबसे बड़ा सँसाधन है। राजनीती को नहीं आता, संसाधनों का सदुपयोग करना? राजनीती को आता है, संसाधनों का दुरुपयोग करना? तो जो भी राजनीतिक पार्टी जीत रही है, मान के चलो की कहीं न कहीं उसने लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा कैसे पैदा की जाए का मंत्र ढूँढ लिया है? इसी असुरक्षा की भावना को अपना हथियार बना वो राजनीती कर रहे हैं? तुम्हारे पास ये नहीं है, हम देंगे? शायद आपका ही आपसे छिनकर? और बन्दर बाँट की तरह सिर्फ रुंगा देंगे? बाकी सब खुद खा जाएँगे?  
    
और वो करेंगे ऐसे जैसे, आपको असुरक्षा की भावना नहीं दे रहे, बल्की सुरक्षा की भावना या कवच दे रहे हैं? अब उन्होंने आपको असुरक्षित कैसे बनाया है, ये थोड़े ही आपको दिखाया या बताया है? वो तो गुप्त-गुप्त तरीके से करते हैं। बाँटो, फूट डालो और काटो?     

या शायद कहीं किन्हीं देशों में इसके अपवाद भी हैं? क्यूँकि, असुरक्षा की भावना पैदा करके आप बहुत वक़्त कुर्सियों पर नहीं टिक सकते। एक न एक दिन लोगों को समझ आना ही है की आप क्या कर रहे हैं।   

Monday, November 11, 2024

जो चाहते हो ज़िंदगी सरल और आसान

नंबरों से, स्टीकरों से, 

राजनीती से दूर भी एक जहाँ है 

और वो जहाँ खुबसुरत है। 

वो इंसान को इंसान के रुप में पहचानता है 

उसे उसके नाम से जानता है 

ना की उसके पिछे छिपे किसी कोड से  

किसी राजनीतिक नंबर से। 


शायद यहाँ आप लोगों को तब से जानते हैं 

जब ना किसी ऐसी राजनीती की खबर थी 

और ना ही ऐसे किन्हीं राजनीतिक नंबरों की 

या कोड़ों में बटे सिस्टम के कोढ़ की। 

यहाँ मतभेद भी हो सकते हैं 

संवाद ही नहीं, बल्की, वाद-विवाद भी 

मगर एक दूसरे का बूरा चाहने वाले नहीं। 


जो चाहते हो ज़िंदगी सरल और आसान 

तो ऐसे से कुछ लोगों को साथ रखिए 

पढ़िये, देखिए, सुनिये  या याद रखिए 

ज़िंदगी कैसी भी मुसीबत से पार निकल 

सजती-संवरती और आगे बढ़ती जाएगी।  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 86

तुझे ये भंडोला कैसे पसंद आया? तेरे आसपास तो और बेहतर से ऑफर हुआ करते थे, सुना है। 

ये सालों बाद, सिर्फ कहीं ऑनलाइन सुनने या पढ़ने को नहीं मिला, बल्की, तभी से चला आ रहा है। अब किसको क्या पसंद आता है और क्या नहीं और क्यों? इसका सिर्फ किसी के शरीर की बनावट से या रंग-रुप से या हाव-भाव से, या पढ़ाई-लिखाई से या परिवेश से या शायद इनसे आगे भी बहुत से फैक्टर्स से लेना-देना हो सकता है? 

हाँ, जहाँ एक्सपेरिमेंट्स हों, वहाँ तो एक्सपेरिमेंट्स करने वालों के, अपने ही किस्म के, कितनी ही तरह के तथ्य हो सकते हैं? ऐसे लोगों बीच और स्टीकरों वालों के बीच फँसना, जैसे ज़िंदगी बर्बाद करना। बस, शायद ऐसा ही कुछ हुआ यहाँ? सुना है दो तरह के इंसान और दो ही तरह के खाने हैं दुनियाँ में?

Food for Thought 




और?
 Food for Hydra या केकड़ा? 


किसका परिणाम है ये? 

Jealousy?
Ugly Fights?
Dirty Politics?
Whatever?
और पता नहीं क्या-क्या और कैसे-कैसे ऑपरेशन्स? जो आज तक पीछा कर रहे हैं?  
 
Reflections   
वैसे ज्यादा पर्सनल चीजें ऑनलाइन नहीं रखनी चाहिएँ। क्यूँकि, ऑनलाइन कुछ पर्सनल नहीं होता। फिर आज की दुनियाँ में तो ऑनलाइन क्या, ऑफलाइन भी नहीं होता। जाने किधर का रुख हो, तो चेप दे इन्हें भी मेल्स में? अब मेल्स में ही जो आ गया, तो Reflections में क्यों नहीं?  
बोतड़ू, ईमेल दिखावें सैं? "Males do need reply.." type?  
अब बेचारों के पास पत्र तो हैं नहीं, और क्या दिखाएँगे? इंटरनेट की दुनियाँ के डिजिटल? वैसे डिजिटल आजकल एक फैशन स्टेटमेंट भी है शायद? जहाँ, जिधर देखो, उधर ही ये शब्द मिलेगा। शायद आज की दुनियाँ की जरुरत भी? क्यूँकि, आप किसी भी क्षेत्र में हों, इसके बिना तो गुजारा है नहीं।         

Sunday, November 10, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 85

Thorns and Fools or Flowers?

Blacks and Whites?

Confusion and Realities?

Love and Hate?

If you cannot convince then confuse?


इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी एमर्जेन्सी? 

आपकी नशबंदी कर दी। लो ये हरियाली ओढ़ लो या पहन लो? और जनसँख्या कंट्रोल के नाम पर गरीब लोगों का या परिवार के परिवारों का खात्मा? उनके अपनों या आसपास वालों को ही साथ में लेकर? 

नशबंदी से खात्मा हो जाता है क्या?

हाँ। अगर आपको बच्चा गोद लेना या और कोई तरीके पता ना हों तो परिवार के मतलब के नाम पर या कोई ठीक-ठाक ज़िंदगी के नाम पर? या शायद ये राजदरबारी साम्राज्यवादी समझ से आगे, इंसान की ज़िंदगी के और कोई मायने ही ना हों?

सुना है की आज भी साम्राज्यवाद मधुमख्खी के छत्ते वाले कॉन्सेप्ट पर आगे बढ़ता है? इंसानी मधुमख्खियोँ के छत्ते? जहाँ एक रानी होती है और बाकी सब उसके सेवक और सेविकाएँ? क्या हो यही सब अगर आम से लोगों के दिमाग में भी घुसेड़ने की कोशिश की जाए? बाकी सब बहन, भाइयों का सफाया कॉन्सेप्ट? सुना है यहाँ-वहाँ सालों, दशकों या सदियों से गुप्त रुप से थोंपा हुआ आज तक चल रहा है? हकीकत तो जानकार ज्यादा जाने।           

या अमेरिकन ट्रम्प और कमला हर्रिस लड़ाई  (गोरा-काला)? 

घने गोरे बणे हॉन्डें सैं। गोरे भगा क आड़े हिडम्बा धर दो। बावली-बूच सैं। सालें क समझ थोड़े-ए आवेगा, अक नाश कितनी ढाला ठाया जा सके सै। उन गौबर पाथन आलें न पकड़ों, वें बढ़िया करवावेंगे यो साँग भी, और वो साँग भी।

सिर्फ संसाधनों पर कब्ज़ा नहीं, बल्की एसिड अटैक से भी आगे बढ़कर तोड़फोड़?

इसका जवाब आपको भी शायद यही मिलेगा की राजनीती में या किसी भी समाज में, जिस किसी विषय, वस्तु का ज्यादा दिखावा हो रहा हो। मान के चलो हकीकत उसके विपरीत ही मिलेगी। जैसे कन्याओं या देवियों को पूजने वाला समाज या राजनीतिक पार्टी? गाएँ बचाओ, अरे नहीं, बेटी बचाओ वाले पोस्टर्स लगाने वाले, या गाने, गाने वाले लोग? या चीनी, गुड़-शक्कर से मीठे लोग? अब सबको तो एक लाठी से नहीं हाँका जा सकता, मगर, ज्यादातर ऐसे समाज के हाल कुछ-कुछ ऐसे ही मिलेंगे? जो वो गाते, सुनाते या दिखाते हैं, उसके विपरीत? 

ऐसा भी नहीं है की ये सिर्फ किसी एक के साथ या किसी एक ही परिवार के साथ हो रहा हो। मगर करने के तरीके इतने खतरनाक हैं की आपको खुद से प्रश्न करने पड़ जाएँ, आप कौन हैं? और कब से? और कैसे?

आप कौन हैं? कब से? और कैसे?

ये प्रश्न किसी को खुद से ही क्यों करने पड़ें?

आप शायद उस माहौल में पले-बढ़े हैं, जहाँ दोस्त बनाते वक़्त या खाना खाते वक़्त या किसी से भी कोई काम करवाते वक़्त आपने कभी सोचा ही नहीं की उसकी जाति क्या है? धर्म क्या है? मजहब क्या है? दिखता या दिखती कैसी है? सबसे बड़ी बात, इन्हीं बातों पर कई बार कुछ घर या आसपास के बड़ों तक से बहस तक हुई हैं। फिर अब क्या हुआ? ऐसा क्यों?  

लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब से किसी पर या किसी परिवार पर कुछ जबरदस्ती थोंपना या थोंपने की कोशिश करना, उस पर इलज़ाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करना या अपने कीचड़ से भेझे के स्टीकर चिपकाने की कोशिश करना? तो अंजाम क्या होगा? या वापस किस तरह के प्रसाद की उम्मीद करते हैं आप?

लूटमार, मारकाट, धोखाधड़ी और फरेब में ये जाति, धर्म, काला या गोरा कहाँ से आ गया? या कैसे वाद-विवाद का विषय हो गया?     

ये शायद कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे कहना, की किसी को लाइट या गहरे रंग ही पसंद क्यों है? तड़क-भड़क क्यों नहीं? बच्चों से रंग पसंद क्यों हैं? बुजर्गों वाले क्यों नहीं? और भी कितने ही ऐसे से विषय, या पसंद ना पसंद हो सकती हैं। हालाँकि, इन सबको भी बदला जा सकता है। या कहना चाहिए की बदला जा रहा है, यहाँ-वहाँ। कैसे? सर्विलांस एब्यूज और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी के दुरुपयोग से। वो भी ऐसे, की सामने वाले को समझ ही ना आए की हो क्या रहा है और कैसे। बाजारवाद की बहुत बड़ी वजह है ये। कम्पनियाँ अपने गंदे से गंदे उत्पाद तक बेचने के लिए इस सबका प्रयोग कहो या दुरुपयोग करती हैं। एक छोटा-सा उदहारण लें?

चलो अगली पोस्ट में।      

Saturday, November 9, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 84

मान लो कहीं कोई आत्महत्या हुई हो और कहीं किसी आर्टिकल में कुछ-कुछ ऐसा पढ़ने को मिले, 70% कृत्रिम (synthetic) और 30% मारा-मारी (enforced)

भला ऐसे पर्सेंटेज कैसे निकाली जा सकती है? वो भी किसी आत्महत्या या मौत के केस में? शायद ठीक ऐसे ही, जैसे, बिमारियों के कारणों या कारकों की? जब बिमारियों की बात होती है तो पहला प्र्शन होता है की समस्या क्या है? उसके बाद आता है समस्या आँखों से दिखाई दे रही है, जैसे चोट या सिर्फ अनुभव हो रही है, जैसे कोई भी दर्द? दिखाई दे रही है तो समाधान थोड़ा आसान हो जाता है? और दिखाई नहीं दे रही तो उसके पीछे कारण क्या हो सकते हैं? वैसे तो जो दिखाई दे रहा हो, कारण या कारक उसके पीछे भी अक्सर छुपे हुए ही होते हैं और जानने जरुरी होते हैं। बहुत-सी बिमारियों के पीछे एक जैसे से ही कारण होते हैं। बहुत बार तो सिर्फ आपके आसपास के वातावरण या माहौल को जानकार ही बताया जा सकता है की क्या हो सकता है। 

माहौल क्या है? के बारे में जानना और आपके बारे में जानना या किसी भी तरह की बीमारी के बारे में जानना ही, ईलाज को काफी आसान बना देता है। आप किसी भी समस्या के बारे में जितना जानते हैं, उसका समाधान भी उतना ही आसान हो जाता है। ऐसे ही, अगर किसी गलत मंशा वाले इंसान को आपके बारे में जितना पता होता है, उतना ही आसान आपको नुकसान पहुँचाना या ख़त्म करना हो जाता है। राजनीती अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है। जितनी ज्यादा मारकाट राजनैतिक कुर्सियों को लेकर होगी, उतना ही ज्यादा उसका असर वहाँ के समाज पर होगा। राजनीती में अगर पैसे से कुर्सियों की खरीद-परोख्त होगी, तो ऐसी राजनीती इंसानों तक को खरीद-परोख्त करने योग्य वस्तु बनाकर छोड़ देगी।   

खरीद-परोख्त से भी आगे क्या है? 

मान लो दो सेनाएँ हैं। और दोनों के पास सँसाधन हैं। ऐसे ससांधन, जिनके दम पर वो मनचाहा माहौल घड़ सकते हैं। मनचाहा माहौल घड़ना? और मनचाहे रोबॉट बनाना? क्या सच में इतना आसान है? लैब में तो है?

मगर लैब का साइज अगर 7-करोड़ के पार हो तो? 7-करोड़ तो इंसान हैं सिर्फ। उनसे कहीं ज्यादा जनसंख्याँ दूसरे जीवों की है। और फिर निर्जीव भी तो चाहिएँ, माहौल घड़ने के लिए। क्यूँकि, कोई भी लैब सिर्फ experimental material से नहीं बनती। जिस पर अनुसंधान करना है, या जिनको अपने अनुसार चलाना है, उनके लिए सिस्टम तो थ्योरी के अनुसार घड़ना पड़ेगा।  Stackable and Movable Units? बड़े साइज या नंबर को छोटे-छोटे सिस्टम में बाँट कर, ऐसा संभव हो पा रहा है। चलते-फिरते इंसान, या चलते-फिरते मानव रोबॉट? छोटी-छोटी सी कोलोनियाँ या गाँव या मौहल्ले, ये सब जानने, समझने और सच में आँखों के सामने होते देखने के लिए सही हैं।   


तो 70% पर जो हुआ वो आत्महत्या थी क्या? ठीक ऐसे ही जैसे, और कितनी ही मौतें ?                     

Friday, November 8, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 83

बीमारी भी राजनीती की मारी? और सिस्टम की भी? सिस्टम किसका बनाया हुआ? सिर्फ राजनीती का बनाया हुआ? या हम सबका?

ऐसे ही मौतें और आत्महत्याएँ भी? सिस्टम और राजनीती की मिलीभगत की देन? कितने % सिस्टम का जाल और कितने % राजनीती का? जैसे दबाव या तनाव कोई? प्रेशर (Pressure) और स्ट्रेस (Stress)? और उनसे जुड़े हुए कारण या कारक?             

भांझ टमाटर, अमरुद, जामुन या शायद कोई और पेड़-पौधा आपके आसपास? जो हरे-भरे हैं? सुन्दर, स्वस्थ हैं? और ढेरों फूल भी लदे हुए हैं? मगर देखते ही देखते, फूल भी ख़त्म होने लगते हैं और फल कोई भी नहीं लगा? और अब वो हरे भरे और स्वस्थ भी नहीं दिख रहे? Control Freaks Effects at different level? 



या शायद सूखेपन की समस्या? सुखना पड़ जाना और ख़त्म हो जाना? या शायद कोई खास बीमारी लग जाना? होता रहता है। इसमें भी क्या खास है? 

ऐसा-सा ही फिर आसपास पशुओं के साथ?

और ऐसा-सा ही आसपास के इंसानों के साथ भी तो नहीं हो रहा? या शायद हो चुका?    

मगर इसे पढ़ेंगे कैसे? एक-दूसरे से जोड़कर? कहाँ पेड़-पौधे? कहाँ गाएँ-भैंस और बाकी जानवर? और कहाँ इंसान?

सूक्ष्म स्तर (Molecular Level) पर सब एक जैसे-से ही हैं। और राजनीती के लिए भी इनमें कोई खास फर्क नहीं है। कैसे?

जैसे ट्रम्प कार्ड?

Trump? या खागड़?   

या Smart Hunk? 


कहाँ ये खँडहर?
और कहाँ? Mar-A-Lago? 
या Hydra-effect? 


या Boxer?
या Xbox? Microsoft Gaming?

कितने भी पढ़ लिख-जाएँ? कैसी भी कुर्सियाँ पा जाएँ? मगर तमीज़? वो तो ?????
जानवरोँ-सी ही रही ना? या खुंखार जैसे आदी मानवों-सी? या फर्क है कोई? 

और अगर आप गूगल बाबा से पूछेंगे तो पता है क्या परोसेगा? 

जानते हैं आगे पोस्ट में, कुछ-एक ऐसे-से ही प्रयोगों (Experiments) से, या ईधर-उधर के अवलोकन (Observation) से।  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 82

दिवाली नहीं मनाई आपने?

जब से पता चला है की त्यौहार या शुभ-अशुभ सत्ता के हिसाब-किताब से निकाले जाते हैं, तब से सत्ता या सरकार या राजनीतिक पार्टियों के हिसाब-किताब को अंधभक्त बन मनाने की बजाए, समझने की कोशिश ज्यादा होती है। क्यूँकि मेरे त्यौहार, शुभ-अशुभ, महज़ सरकारी या राजनीतिक या बाजारू नहीं हो सकते। इसलिए जिस किसी का जन्मदिन दिवाली के आसपास हो, उस दिन दिवाली। जिसका होली के आसपास हो, उस दिन होली। बाकी कितने सारे त्यौहारों की तारीखें तो हैं ही फिक्स। तो जो इस साल ईधर की राजनीतिक पार्टी वाली तारीख और दूसरे साल उधर वाली राजनीतिक पार्टी वाला शुभ-अशुभ नहीं हों, उन्हें उसी दिन मना लो। जैसे नया साल। 

वैसे तो ये पिछले कुछ सालों से ही ऐसे है। उसपे यहाँ गाँव के हाल पता नहीं कब से ऐसे ही देख रही हूँ, की अबकी बार दिवाली नहीं मनेगी, ये गया। अबकी बार होली नहीं मनेगी, वो गई। कोरोना और उसके बाद जो देखा या समझ आया, वो ये, की दिवाली के आसपास कोई ईधर से उठा या उठी, तो होली के आसपास नंबर मान के चलो उधर का है। ये ईधर-उधर कौन हैं? राजनीतिक पार्टियाँ और उनके घड़े कोड। और उठते कौन हैं? आम इंसान, ईधर से भी और उधर से भी। जो आपका ही आसपड़ोस, कुनबा या रिस्तेदारी होती है। अब पता नहीं, कितना गलत समझ आया और कितना सही?      

Sunday, November 3, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 81

Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Political Enforcements? Cult Politics? 

10-15 दिन में पानी आता है? 

कहाँ से? 

हर रोज पानी आता है? 

कहाँ से?    

साफ आता है या गन्दा आता है?

पीने या प्रयोग करने लायक है?

पीने का पानी आप कहाँ से लाते हैं? 

कहीं से हैंडपंप का लाते हैं या पानी वाला टैंकर आता है? अब पीने के पानी के भी अलग-अलग लोगों के टैंकर हैं और अलग-अलग जगह से आते हैं। वैसे ही जैसे, पानी की बोतलें अलग-अलग ब्रांड की? या घर में ही कोई वाटर प्यूरीफायर लगाया हुआ है? किस कंपनी का? ये सब किसी भी जगह पर लागू होता है। वो गाँव हो या शहर? ये राज्य हो या दूसरा राज्य? ये देश या कोई और देश?     

आपके यहाँ कैसा पानी आता है और कैसा नहीं, भला उसका कहीं की भी सरकार या राजनीती से क्या लेना-देना? या होता है? ये काम तो सरकार की बजाय प्राइवेट कंपनियों का होता होगा ना? या शायद खुद आपका? या अड़ोस-पड़ोस का? पब्लिक या प्राइवेट सुविधा है या नहीं, भला उससे पानी का क्या लेना देना?   

आपके बच्चे पानी कहाँ का पीते हैं? या प्रयोग करने के लिए पानी कहाँ से लाते हैं? पड़ोसिओं के यहाँ से? या शायद अपना इंतजाम खुद करते हैं? इसमें भला राजनीती का क्या लेना-देना? क्या हो अगर पता चले की किसी या किन्हीं घरों में ऐसा कुछ उस घर वाले नहीं, बल्की, बाहर वाले या राजनीती कंट्रोल कर रही है? आप कहेंगे की ऐसा कैसे संभव है? गुप्त-गुप्त जहाँ? उसके गुप्त-गुप्त कोड? राजनीती के एनफोर्समेंट के गुप्त-गुप्त छिपे हुए तरीके? चलो यहाँ तक आपको शायद समझ आ गया की घर की घर में भी जूत या कम से कम फूट डालने के भी कितने ही तरीके हो सकते हैं?    

जिन्हें अभी तक भी समझ नहीं आया। शायद थोड़ा और आगे चलें?

पीछे एक पोस्ट लिखी थी, "शशी थरुर को VALVE Closure पसंद है, System Closure नहीं?" 

अरे नहीं, ऐसे नहीं कहा शशी थरुर ने। ये तो थोड़ा जोड़-तोड़ हो गया?

Closure मतलब किसी चीज़ का अंत? समाधान नहीं? अब Closure भी कितनी ही तरह के हो सकते हैं?

Valve Closure?

Nerve Closure?

Oxygen nonavailability?

या शायद System Closure?

जैसे, आपकी हर बातचीत (जैसे हर पोस्ट, या लेक्चर या कुछ और ऐसा ही), एक अलग ही तरह का कुछ विचार या व्यवहार या ascending या descending आर्डर-सा कुछ देती नजर आ रही हो? तो क्या वो कोई समाधान दे रही है किसी समस्या का? या एक कोड सिस्टम से उपजी हुई बेवजह की आम आदमी की रोज-रोज की समस्यायों को बता रही है? और इन कोड वाले कोढ़-सी समस्याओं में ही समाधान भी छिपा है, ये भी बता रही है? अब ये समाधान कितना आसान या कितना मुश्किल है? ये शायद इस पर निर्भर करता है की आप समाधान चाहते हैं या समस्या को यूँ का यूँ बनाए रखना? तो क्या ऐसे ही खाने-पीने के कोड समझकर भी कुछ बिमारियाँ या मौतें तक रोकी जा सकती हैं?                     

निर्भर करता है आप कौन हैं? और उससे आपको क्या फायदा होगा? किन्हीं का फूट डालो राज करो-सा अभियान और किन्हीं की खामखा-सी समस्याएँ शायद?  

कुछ-कुछ ऐसे जैसे, किसी घर में पानी का एक ही पाइप हो वाटर सप्लाई का और वो भी गन्दा सा 10-15 दिन में आता हो? कोई सालों बाद आया हो और उसे पता ना हो की यहाँ पानी सप्लाई के ये हाल क्यों हैं? पहले तो ऐसे ना थे। बताया जाए, ऐसे ही है यहाँ तो। सब इसी से काम चलाते हैं। काफी वक़्त परेशान होने के बाद कहीं पढ़ने को मिले, पानी तो और भी है जो रोज आता है। मगर, तुमसे छुपाया हुआ है और यहाँ उसका वाल्व क्लोज है। तुम्हारे इस या उस अड़ोस-पड़ोस में भी वही आता है। वो नहीं चाहते वो यहाँ आए।  

और आप कहें किसी और के चाहने या ना चाहने से क्या फर्क पड़ता है? वाल्व ही तो है, तो खुल जाएगा। उसमें क्या लगता है? 

पैसे देने पड़ेंगे। वो प्राइवेट है। 

हाँ, तो इतने से पैसे में क्या जाता है? 

और आपको ऐसे कैसे खुल जाएगा, जैसे कारनामे देखने को मिलें फिर?   

क्या कहेंगे इसे? राजनीती? बेवकूफ लोग? अपनी ही समस्याओँ और जान के दुश्मन खुद? या?    

आगे पोस्ट में और भी ऐसे-से ही बेवकूफ से कारनामे पढ़ने को मिलेंगे। और ऐसी-सी ही छोटी-मोटी समस्याओँ की वजह से बीमारियाँ तक।    

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 80

T-point मतलब डेढ़? One and Half? या? और भी कितना कुछ हो सकता है?  

जहाँ आप खड़े हैं, वहाँ पीछे की तरफ बैक है। आगे की तरफ सीधा रस्ता जाता है। कहाँ? ये आपको देखना है। आजू-बाजू? आधे-से इधर हैं? और आधे-से उधर हैं? मतलब, आपको 50-50 कर दिया गया है? नहीं, ये भी हो सकता है की ये भी दो रस्ते हैं। चाहें तो ईधर का रुख भी कर सकते हैं। और चाहें तो उधर का भी। नहीं तो, बीच से सीधा-सा रस्ता तो है ही। फिर वो आपको कहीं भी ले जाए? वैसे तो ऐसे भी सोच सकते हैं की आप वहाँ हैं ही क्यों? अगर वो दिशाएँ या रस्ते पसंद नहीं, तो कहीं और खिसक लें।  

या मान लो, आपके पास चार दिशाओं में से तीन दिशाओं के रस्ते तो हैं ही? इससे ज्यादा चाहिएँ तो घुमफिर के मिल वो भी जाएँगे। एक शब्द या विषय को कितना भी घसीटा जा सकता है। नहीं?

जिन दिनों मैं H#30, Type-4 रहती थी, उन दिनों इधर-उधर, जाने किधर से 2-3 बार ऐसा सुनने को मिला, की आपका घर T-पॉइंट पर है। T-पॉइंट पर घर अच्छा नहीं होता। मुझे, ऐसे-वैसे फालतू-से, बिन माँगे सलाह जैसे शब्द लगते थे। क्या आ जाते हैं, खामखाँ दिमाग में कुछ भी उल्टा-पुल्टा घुसेड़ने? हालाँकि, उस घर के वक़्त की महाभारत, थोड़ी भयंकर-सी ही थी। मगर, मुझे उसकी लोकेशन बड़ी मस्त लगती थी। उस घर को लेने की वजह ही लोकेशन थी। नहीं तो एक और चॉइस भी थी H#13, टाइप 9J । H#30, Type-4 के पीछे Rose-Garden था। किसी भी सुबह-श्याम घुमने के शौकीन (Walk) इंसान के लिए, इससे बढ़िया जगह क्या होगी भला? उसपे Nature-Lover, और छत से पीछे देखो तो एक दम हरा-भरा, साफ-सुथरा। वैसे तो यूनिवर्सिटी में हर जगह ही हरा-भरा होता है। मगर यहाँ क्यूँकि मकान भी थोड़े बड़े थे, तो हरियाली और स्पेस हर जगह ठीक-ठाक ही था। ज्यादातर मेरी सुबह की चाय उसी तरफ वाले मेरे बैड रुम की तरफ आगे की छत पर बैठ कर होती थी। जब यूनिवर्सिटी छोड़ा, तो गाँव में भी कुछ-कुछ ऐसी-सी ही, छुटियों के लिए लिखाई-पढ़ाई की अपनी जगह बनाने का मन था या कहो अभी तक है। बिमारियों और मौतों की खास जानकारी की वजह से भी, एक तरह का अपना ही छोटा-सा फील्ड ऑफिस और छुटियों में रुकने की जगह बनाने का मन। उसका बनते-बनते क्या हुआ, वो अलग ही खुँखार-सी कहानी है। और चालबाज़ों द्वारा मुझे रोक दिया गया, इस खँडहर तक। इसे बोलते हैं, जमीन, पैसा, आदमी, नौकरी और ठीक-ठाक ज़िंदगी, सब पर अटैक जैसे।   

वो H#13, टाइप- 9J किसे मिला? मेरे अपने ही इंस्टिट्यूट के डॉ राजेश लाठर को। हालाँकि, बाद में उन्होंने भी छोड़ दिया शायद, और कोई और मकान ले लिया? जब इन दो मकानों की चॉइस थी तो मैं दोनों को ही देखने गई थी। वैसे तो वजह लोकेशन खास थी। मगर, H#13, टाइप- 9J की कहानी भी थोड़ी अजीब। मुझे बताया गया की उसमें कैंपस स्कूल में रहने वाली कोई मैडम आत्महत्या कर गई थी और तब से ही वो मकान खाली पड़ा है। हालाँकि, ये मकान भी खाली था पिछले कई साल से। प्रोफेसर KC, केमिस्ट्री के खाली करने के कई सालों बाद, ये रिपेयर किया गया था। कौन, कहाँ, किस जगह या पते पर रहता है, क्या उसका असर सिर्फ आज पर नहीं, बल्की, आने वाले कुछ वक़्त के घटनाक्रमों पर भी पड़ता है? शायद? अगर आपको राजनीतिक घटनाक्रमों या दाँव-पेंचों या कुर्सियों के खास लड़ाई-झगड़ों की खबर तक ना हो? 

अगर जानकारी हो तो शायद उतना नहीं पड़ता? इसलिए जानकारी अहम है, सही जानकारी। एक तो आप आगाह हो जाते हैं। दूसरा, जो कुछ आपके आसपास गुप्त रुप से चल रहा होता है, उसकी खबर होती है। वही आपको बहुत-से अवरोधों और मुसीबतों से पार लगा देता है। इसलिए कोई भी सही जानकारी अहम है। जितना ज्यादा आप सही जानकारी से दूर हैं। उतनी ही सही ज़िंदगी आपसे दूर। 

ये कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे किसी को कुछ सीधे-सीधे या उल्टे-सीधे भड़काऊ-सा कुछ बताया गया हो, किसी नाम का जिक्र करके। या शायद उसने आपकी कोई पोस्ट पढकर वो अपने से जोड़ लिया हो? बिना ये सोचे-समझे, की वो जहाँ रह रही है, वहाँ के आसपास का लिख रही है। जो तुमने अपने से भिड़ा लिया है, वैसे से नाम और जगहें शायद उसके आसपास भी हैं। और उनकी अपनी ही कोई कहानी हो सकती है। नाम से आगे, माँ-बाप का नाम, भाई-बहन, जगह, पढ़ाई-लिखाई, या समाज का स्तर बदलने से, उसके साथ सारा का सारा आसपास का सिस्टम ही बदल जाता है। शायद इसीलिए, एक तरह के गुप्त कोड, आदमी और जगह के बदलने से भी पूरी की पूरी कहानी ही बदल देते हैं?

जैसे कोई पूछे, और क्या चल रहा है आजकल?

या काम हो गया, ऐसे ही आते-जाते रोज-रोज का आम-सा संवाद? 

तो सोचो परिवेश या अलग-अलग इंसानो के पूछने से ही कितना कुछ बदल जाता है ना?  

जैसे यही T? T-पॉइंट बोलें तो रस्ते, दिशाएँ या किसी जगह की लोकेशन जैसे? T-20 बोलें, तो अंग्रेजों का क्रिकेट का खेल, जो बाकी भी कितने ही और देश भी खेलने लगे? अंग्रेजों ने जिसपे लगान भी लगाया? लगान मूवी जैसे? और Tea बोलें तो चाय? अब जगह और बाजार के हिसाब से वो भी कितनी ही तरह की हो सकती है? जहरीली भी जैसे? पीछे जहरीली चाय पे भी कोई पोस्ट पढ़ी होगी आपने? चाय और जहरीली? और केमिकल्स और धरती के उपजाऊ जीवों की मौत? और भी एक ही शब्द से मिलते-जुलते से कितने ही तर्क-वितर्क हो सकते हैं? तो हर शब्द खुद से या किसी से भी खामखाँ जोड़ने की बजाय, खासकर अगर भड़काऊ लगे तो ये सोचें, की वो अगर सीधे-सीधे आप पर या जिसे आप सोच रहे हैं उस पर नहीं लिखा हुआ या बोला गया, तो अलग ही विषय, वस्तु भी हो सकता है।   

Saturday, November 2, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 79

Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Enforcements? 

इंसानों के भी मालिक होते हैं? ठीक ऐसे जैसे, ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? या शायद नौकरी के भी? दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार या लक्ष्यद्वीप ऐसा-सा ही साँग है? और भी ऐसे-ऐसे से कितनी ही तरह के इधर के या उधर के कोड हैं।    

थोड़ा पीछे चलते हैं, या दादर नगर वाली हवेली से थोड़ा आगे लक्ष्य की तरफ?  

या शायद Mistaken Identity Crisis? आप जो हैं, उस पर थोंपी हुई अपनी-अपनी किस्म की मोहरें? अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा? अलग-अलग वक़्त पर, अपने-अपने कोढ़ वाली कुर्सियाँ पाने के लिए? अपनी-अपनी स्वार्थ सीधी के लिए? इससे आगे कुछ भी नहीं?

जैसे अगर आप कोई केस एक नंबर पर शुरु करते हैं तो उसका अंत कितने नंबर पर होगा? अंत? समाधान नहीं? मुझे तो यही नहीं समझ आया की न्याय-न्याय करके, आप किसी भी इंसान पर कितनी तरह के स्टीकर चिपका सकते हैं? अगर न्याय का ये जहाँ सच में इतना न्यायविद होता, तो अंत तो 29 पर ज्यादा भला नहीं था? उससे आगे, उसे ऐसे-वैसे या कैसे भी क्यों घसीटा गया? वो भी जहाँ पर so-called experiments का स्तर गिरता जाए? क्यूँकि, राजनीती में गिरावट की कोई लिमिट नहीं है। और आम इंसान उसे भुगत नहीं पाता। इसीलिए अंत हो जाता है। ऐसे, वैसे या कैसे भी। ऐसे में कोई भी आम इंसान क्या कहेगा? अब और फालतू स्टिकर नहीं। इन फालतू के नंबरों से बेहतर है की अपने सारे स्टीकर इक्क्ठा करो और कहो all । बहुत हो गए इस तरह के और उस तरह के एक्सपेरिमेंट्स और स्टीकर।           

अगर आप इनकी या उनकी मोहरों को मान लेते हैं, तो क्या होगा? वही जो हो रहा है। जहाँ सही हो रहा है, वो तो चलो सही है। मगर जहाँ गलत हो रहा है? अब सही और गलत दोनों को देखना और समझना पड़ेगा? 

घर के नंबरों को ही समझने की कोशिश करो। आपके घर के बाहर जो नंबर प्लेट लगाई हुई हैं, उनपे और क्या लिखा है? नंबर के इलावा? या कुछ भी नहीं लिखा? वो नंबर प्लेट कब लगी आपके घर की चौखट या दरवाजे पर? उससे पहले भी कोई थी क्या? अगर हाँ, तो याद है उसका नंबर? अब वो किसके घर के बाहर लगी है? उनके घर के बाहर पहले क्या थी? ये अदल-बदल क्या है? घर के नंबर भला ऐसे भी बदलते हैं क्या? शहरों का तो पता नहीं गाँवों में शायद? जहाँ लोगों को यही नहीं पता होता, की ये क्या लगा के जा रहे हैं और क्यों? चोरी और लूट बोलते हैं इसे? या शायद धोखाधड़ी भी? या सिर्फ एक्सपेरिमेंट कहना बेहतर रहेगा? और मीटरों के नंबर बाहर दिवारों पे लिखने का मतलब? कहीं-कहीं तो रीडिंग तक? और आजकल ये नए मीटर, क्या कुछ खास है इनमें? किसी के घर के अंदर और किसी के घर के बाहर?  

इनका आपके पिन कोड या गाँव के कोड से कोई खास लेना-देना? जितने ज्यादा IDs, उतना ही ज्यादा अपनी ही तरह का कंट्रोल आम लोगों पर, अलग-अलग पार्टियों का। आपका हर किस्म का पहचान पत्र, एक तरह के जाल-तंत्र का हिस्सा है, जो पैदाइशी आपको इस जाल-तंत्र का रोबॉट बनाने में सहायता करता है। इसलिए ज्यादातर अनचाहे से पहचान पत्र खत्म होने चाहिए। 

किसे और क्यों जरुरत है किसी भी पहचान पत्र की? 

कहाँ-कहाँ और किसलिए जरुरत है, किसी भी पहचान पत्र की? 

क्या उसके बिना काम नहीं चल सकता? अगर चल सकता है तो उसे जारी करना या उसका जरुरी होना बंद होना चाहिए।   

शायद नाम, माँ-बाप का नाम और पता काफी है। उससे आगे जितने भी पहचान पत्र हैं, वो गैर जरुरी हैं। हर घर का पता होना चाहिए। फिर वो गाँव ही क्यों, चाहे झुग्गी-झोपड़ी ही क्यों ना हो। एक घर का पता ना होने से 10-10 या 20-20 साल पहले आए हुए या जबरदस्ती लाए हुए जैसे लोगबाग तक, कितनी ही सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं? 

हरियाणा ही में ही कितनी ही औरतें हैं ऐसी? जो शादी के नाम पर दूसरे राज्यों से लाई गई हैं। ज्यादातर खरीद-परोख्त? जिनके बच्चे तक हैं। मगर वहाँ का अपना ऐसा कोई पहचान पत्र नहीं, जिससे वो वहाँ की छोटी-मोटी सुविधाएँ तक ले सकें? ये इतने सारे पहचान-पत्रों की बजाय, अगर एक सोशल-सिक्योरिटी जैसा कोई पहचान-पत्र पैदाइशी दे दिया जाए, तो कम से कम, एक ही देश में तो इतना भेद-भाव ना हो। भेद-भाव सिर्फ इस बात से की आप पैदा कहाँ हुए हैं? किस तबके या राज्य में हुए हैं? ऐसी औरतों के पास कोई भी प्रमाण पत्र तक कहाँ होंगे? वो खुद अपनी मर्जी से थोड़े ही आई होंगी? बेच दिया गया होगा उन्हें? उनके अपनों द्वारा?

"हैप्पी भाग जाएगी" 

ये फिल्म का टाइटल थोड़ा गड़बड़ नहीं है? कहीं किसी साउथ इंडियन ने तो नहीं रखा ये टाइटल? क्यूँकि, उन्हें गा, गी, ता, ती में भेद करने में थोड़ी मुश्किल होती है शायद? जैसे जाएगी या जाएगा? आएगी या आएगा? आती है या जाती है?     

वैसे हमारे यहाँ हैप्पी लड़की का नाम है। जिसका आसाम से कोई नाता नहीं है? जैसे मोनी का पंजाब से? ये यहाँ से आती है? वो वहाँ जाती है या जाता है? पता नहीं कौन? कहाँ? और कैसे-कैसे? और भी जाने कैसे-कैसे किस्से कहानियाँ? और कितनी ही तरह के कोड?

वैसे हमारे यहाँ हैप्पी काम करने कब आएगी और कब नहीं, ये कौन बताता है? लेबर कंट्रोल सैल? किधर वाली? हैप्पी ही नहीं कोई भी लेबर। 

लेबर कंट्रोल के साथ-साथ और क्या कुछ कंट्रोल करती है राजनीती? 

हाउस हैल्प? 

ऑफिस हैल्प? 

और लाइफ हैल्प तक?  

इन सहायताओं की बंद होने या जबरदस्ती जैसे कर देने की भी अपनी ही तरह की कहानीयां है। सबसे बड़ी बात, इस सबको बंद करने या करवाने में जिस आम इंसान की सहायता ली जाती है, वही या उसका आसपास इसे किसी ना किसी रुप में भुगतता भी है।  

बहुत-सी मौतों के राज ऐसे भी हो सकते हैं क्या? जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है? जैसे पीने या प्रयोग करने लायक पानी तक पर इधर या उधर का कंट्रोल? या कहना चाहिए की राजनीतिक गुंडों का कंट्रोल? 

ऐसा ही कुछ फिर बाकी खाने के सामान पर भी लागू होता है?  

और मौतों के राज कैसे-कैसे? इसे जानते हैं, आगे आने वाली पोस्ट में।