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Sunday, November 3, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 81

Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Political Enforcements? Cult Politics? 

10-15 दिन में पानी आता है? 

कहाँ से? 

हर रोज पानी आता है? 

कहाँ से?    

साफ आता है या गन्दा आता है?

पीने या प्रयोग करने लायक है?

पीने का पानी आप कहाँ से लाते हैं? 

कहीं से हैंडपंप का लाते हैं या पानी वाला टैंकर आता है? अब पीने के पानी के भी अलग-अलग लोगों के टैंकर हैं और अलग-अलग जगह से आते हैं। वैसे ही जैसे, पानी की बोतलें अलग-अलग ब्रांड की? या घर में ही कोई वाटर प्यूरीफायर लगाया हुआ है? किस कंपनी का? ये सब किसी भी जगह पर लागू होता है। वो गाँव हो या शहर? ये राज्य हो या दूसरा राज्य? ये देश या कोई और देश?     

आपके यहाँ कैसा पानी आता है और कैसा नहीं, भला उसका कहीं की भी सरकार या राजनीती से क्या लेना-देना? या होता है? ये काम तो सरकार की बजाय प्राइवेट कंपनियों का होता होगा ना? या शायद खुद आपका? या अड़ोस-पड़ोस का? पब्लिक या प्राइवेट सुविधा है या नहीं, भला उससे पानी का क्या लेना देना?   

आपके बच्चे पानी कहाँ का पीते हैं? या प्रयोग करने के लिए पानी कहाँ से लाते हैं? पड़ोसिओं के यहाँ से? या शायद अपना इंतजाम खुद करते हैं? इसमें भला राजनीती का क्या लेना-देना? क्या हो अगर पता चले की किसी या किन्हीं घरों में ऐसा कुछ उस घर वाले नहीं, बल्की, बाहर वाले या राजनीती कंट्रोल कर रही है? आप कहेंगे की ऐसा कैसे संभव है? गुप्त-गुप्त जहाँ? उसके गुप्त-गुप्त कोड? राजनीती के एनफोर्समेंट के गुप्त-गुप्त छिपे हुए तरीके? चलो यहाँ तक आपको शायद समझ आ गया की घर की घर में भी जूत या कम से कम फूट डालने के भी कितने ही तरीके हो सकते हैं?    

जिन्हें अभी तक भी समझ नहीं आया। शायद थोड़ा और आगे चलें?

पीछे एक पोस्ट लिखी थी, "शशी थरुर को VALVE Closure पसंद है, System Closure नहीं?" 

अरे नहीं, ऐसे नहीं कहा शशी थरुर ने। ये तो थोड़ा जोड़-तोड़ हो गया?

Closure मतलब किसी चीज़ का अंत? समाधान नहीं? अब Closure भी कितनी ही तरह के हो सकते हैं?

Valve Closure?

Nerve Closure?

Oxygen nonavailability?

या शायद System Closure?

जैसे, आपकी हर बातचीत (जैसे हर पोस्ट, या लेक्चर या कुछ और ऐसा ही), एक अलग ही तरह का कुछ विचार या व्यवहार या ascending या descending आर्डर-सा कुछ देती नजर आ रही हो? तो क्या वो कोई समाधान दे रही है किसी समस्या का? या एक कोड सिस्टम से उपजी हुई बेवजह की आम आदमी की रोज-रोज की समस्यायों को बता रही है? और इन कोड वाले कोढ़-सी समस्याओं में ही समाधान भी छिपा है, ये भी बता रही है? अब ये समाधान कितना आसान या कितना मुश्किल है? ये शायद इस पर निर्भर करता है की आप समाधान चाहते हैं या समस्या को यूँ का यूँ बनाए रखना? तो क्या ऐसे ही खाने-पीने के कोड समझकर भी कुछ बिमारियाँ या मौतें तक रोकी जा सकती हैं?                     

निर्भर करता है आप कौन हैं? और उससे आपको क्या फायदा होगा? किन्हीं का फूट डालो राज करो-सा अभियान और किन्हीं की खामखा-सी समस्याएँ शायद?  

कुछ-कुछ ऐसे जैसे, किसी घर में पानी का एक ही पाइप हो वाटर सप्लाई का और वो भी गन्दा सा 10-15 दिन में आता हो? कोई सालों बाद आया हो और उसे पता ना हो की यहाँ पानी सप्लाई के ये हाल क्यों हैं? पहले तो ऐसे ना थे। बताया जाए, ऐसे ही है यहाँ तो। सब इसी से काम चलाते हैं। काफी वक़्त परेशान होने के बाद कहीं पढ़ने को मिले, पानी तो और भी है जो रोज आता है। मगर, तुमसे छुपाया हुआ है और यहाँ उसका वाल्व क्लोज है। तुम्हारे इस या उस अड़ोस-पड़ोस में भी वही आता है। वो नहीं चाहते वो यहाँ आए।  

और आप कहें किसी और के चाहने या ना चाहने से क्या फर्क पड़ता है? वाल्व ही तो है, तो खुल जाएगा। उसमें क्या लगता है? 

पैसे देने पड़ेंगे। वो प्राइवेट है। 

हाँ, तो इतने से पैसे में क्या जाता है? 

और आपको ऐसे कैसे खुल जाएगा, जैसे कारनामे देखने को मिलें फिर?   

क्या कहेंगे इसे? राजनीती? बेवकूफ लोग? अपनी ही समस्याओँ और जान के दुश्मन खुद? या?    

आगे पोस्ट में और भी ऐसे-से ही बेवकूफ से कारनामे पढ़ने को मिलेंगे। और ऐसी-सी ही छोटी-मोटी समस्याओँ की वजह से बीमारियाँ तक।    

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 80

T-point मतलब डेढ़? One and Half? या? और भी कितना कुछ हो सकता है?  

जहाँ आप खड़े हैं, वहाँ पीछे की तरफ बैक है। आगे की तरफ सीधा रस्ता जाता है। कहाँ? ये आपको देखना है। आजू-बाजू? आधे-से इधर हैं? और आधे-से उधर हैं? मतलब, आपको 50-50 कर दिया गया है? नहीं, ये भी हो सकता है की ये भी दो रस्ते हैं। चाहें तो ईधर का रुख भी कर सकते हैं। और चाहें तो उधर का भी। नहीं तो, बीच से सीधा-सा रस्ता तो है ही। फिर वो आपको कहीं भी ले जाए? वैसे तो ऐसे भी सोच सकते हैं की आप वहाँ हैं ही क्यों? अगर वो दिशाएँ या रस्ते पसंद नहीं, तो कहीं और खिसक लें।  

या मान लो, आपके पास चार दिशाओं में से तीन दिशाओं के रस्ते तो हैं ही? इससे ज्यादा चाहिएँ तो घुमफिर के मिल वो भी जाएँगे। एक शब्द या विषय को कितना भी घसीटा जा सकता है। नहीं?

जिन दिनों मैं H#30, Type-4 रहती थी, उन दिनों इधर-उधर, जाने किधर से 2-3 बार ऐसा सुनने को मिला, की आपका घर T-पॉइंट पर है। T-पॉइंट पर घर अच्छा नहीं होता। मुझे, ऐसे-वैसे फालतू-से, बिन माँगे सलाह जैसे शब्द लगते थे। क्या आ जाते हैं, खामखाँ दिमाग में कुछ भी उल्टा-पुल्टा घुसेड़ने? हालाँकि, उस घर के वक़्त की महाभारत, थोड़ी भयंकर-सी ही थी। मगर, मुझे उसकी लोकेशन बड़ी मस्त लगती थी। उस घर को लेने की वजह ही लोकेशन थी। नहीं तो एक और चॉइस भी थी H#13, टाइप 9J । H#30, Type-4 के पीछे Rose-Garden था। किसी भी सुबह-श्याम घुमने के शौकीन (Walk) इंसान के लिए, इससे बढ़िया जगह क्या होगी भला? उसपे Nature-Lover, और छत से पीछे देखो तो एक दम हरा-भरा, साफ-सुथरा। वैसे तो यूनिवर्सिटी में हर जगह ही हरा-भरा होता है। मगर यहाँ क्यूँकि मकान भी थोड़े बड़े थे, तो हरियाली और स्पेस हर जगह ठीक-ठाक ही था। ज्यादातर मेरी सुबह की चाय उसी तरफ वाले मेरे बैड रुम की तरफ आगे की छत पर बैठ कर होती थी। जब यूनिवर्सिटी छोड़ा, तो गाँव में भी कुछ-कुछ ऐसी-सी ही, छुटियों के लिए लिखाई-पढ़ाई की अपनी जगह बनाने का मन था या कहो अभी तक है। बिमारियों और मौतों की खास जानकारी की वजह से भी, एक तरह का अपना ही छोटा-सा फील्ड ऑफिस और छुटियों में रुकने की जगह बनाने का मन। उसका बनते-बनते क्या हुआ, वो अलग ही खुँखार-सी कहानी है। और चालबाज़ों द्वारा मुझे रोक दिया गया, इस खँडहर तक। इसे बोलते हैं, जमीन, पैसा, आदमी, नौकरी और ठीक-ठाक ज़िंदगी, सब पर अटैक जैसे।   

वो H#13, टाइप- 9J किसे मिला? मेरे अपने ही इंस्टिट्यूट के डॉ राजेश लाठर को। हालाँकि, बाद में उन्होंने भी छोड़ दिया शायद, और कोई और मकान ले लिया? जब इन दो मकानों की चॉइस थी तो मैं दोनों को ही देखने गई थी। वैसे तो वजह लोकेशन खास थी। मगर, H#13, टाइप- 9J की कहानी भी थोड़ी अजीब। मुझे बताया गया की उसमें कैंपस स्कूल में रहने वाली कोई मैडम आत्महत्या कर गई थी और तब से ही वो मकान खाली पड़ा है। हालाँकि, ये मकान भी खाली था पिछले कई साल से। प्रोफेसर KC, केमिस्ट्री के खाली करने के कई सालों बाद, ये रिपेयर किया गया था। कौन, कहाँ, किस जगह या पते पर रहता है, क्या उसका असर सिर्फ आज पर नहीं, बल्की, आने वाले कुछ वक़्त के घटनाक्रमों पर भी पड़ता है? शायद? अगर आपको राजनीतिक घटनाक्रमों या दाँव-पेंचों या कुर्सियों के खास लड़ाई-झगड़ों की खबर तक ना हो? 

अगर जानकारी हो तो शायद उतना नहीं पड़ता? इसलिए जानकारी अहम है, सही जानकारी। एक तो आप आगाह हो जाते हैं। दूसरा, जो कुछ आपके आसपास गुप्त रुप से चल रहा होता है, उसकी खबर होती है। वही आपको बहुत-से अवरोधों और मुसीबतों से पार लगा देता है। इसलिए कोई भी सही जानकारी अहम है। जितना ज्यादा आप सही जानकारी से दूर हैं। उतनी ही सही ज़िंदगी आपसे दूर। 

ये कुछ-कुछ ऐसे ही है, जैसे किसी को कुछ सीधे-सीधे या उल्टे-सीधे भड़काऊ-सा कुछ बताया गया हो, किसी नाम का जिक्र करके। या शायद उसने आपकी कोई पोस्ट पढकर वो अपने से जोड़ लिया हो? बिना ये सोचे-समझे, की वो जहाँ रह रही है, वहाँ के आसपास का लिख रही है। जो तुमने अपने से भिड़ा लिया है, वैसे से नाम और जगहें शायद उसके आसपास भी हैं। और उनकी अपनी ही कोई कहानी हो सकती है। नाम से आगे, माँ-बाप का नाम, भाई-बहन, जगह, पढ़ाई-लिखाई, या समाज का स्तर बदलने से, उसके साथ सारा का सारा आसपास का सिस्टम ही बदल जाता है। शायद इसीलिए, एक तरह के गुप्त कोड, आदमी और जगह के बदलने से भी पूरी की पूरी कहानी ही बदल देते हैं?

जैसे कोई पूछे, और क्या चल रहा है आजकल?

या काम हो गया, ऐसे ही आते-जाते रोज-रोज का आम-सा संवाद? 

तो सोचो परिवेश या अलग-अलग इंसानो के पूछने से ही कितना कुछ बदल जाता है ना?  

जैसे यही T? T-पॉइंट बोलें तो रस्ते, दिशाएँ या किसी जगह की लोकेशन जैसे? T-20 बोलें, तो अंग्रेजों का क्रिकेट का खेल, जो बाकी भी कितने ही और देश भी खेलने लगे? अंग्रेजों ने जिसपे लगान भी लगाया? लगान मूवी जैसे? और Tea बोलें तो चाय? अब जगह और बाजार के हिसाब से वो भी कितनी ही तरह की हो सकती है? जहरीली भी जैसे? पीछे जहरीली चाय पे भी कोई पोस्ट पढ़ी होगी आपने? चाय और जहरीली? और केमिकल्स और धरती के उपजाऊ जीवों की मौत? और भी एक ही शब्द से मिलते-जुलते से कितने ही तर्क-वितर्क हो सकते हैं? तो हर शब्द खुद से या किसी से भी खामखाँ जोड़ने की बजाय, खासकर अगर भड़काऊ लगे तो ये सोचें, की वो अगर सीधे-सीधे आप पर या जिसे आप सोच रहे हैं उस पर नहीं लिखा हुआ या बोला गया, तो अलग ही विषय, वस्तु भी हो सकता है।   

Saturday, November 2, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 79

Mistaken Identity Issues? Or Direct-Indirect Enforcements? 

इंसानों के भी मालिक होते हैं? ठीक ऐसे जैसे, ज़मीन-जायदाद? प्रॉपर्टी या वसीयत? या शायद नौकरी के भी? दादर नगर हवेली, अंडमान-निकोबार या लक्ष्यद्वीप ऐसा-सा ही साँग है? और भी ऐसे-ऐसे से कितनी ही तरह के इधर के या उधर के कोड हैं।    

थोड़ा पीछे चलते हैं, या दादर नगर वाली हवेली से थोड़ा आगे लक्ष्य की तरफ?  

या शायद Mistaken Identity Crisis? आप जो हैं, उस पर थोंपी हुई अपनी-अपनी किस्म की मोहरें? अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा? अलग-अलग वक़्त पर, अपने-अपने कोढ़ वाली कुर्सियाँ पाने के लिए? अपनी-अपनी स्वार्थ सीधी के लिए? इससे आगे कुछ भी नहीं?

जैसे अगर आप कोई केस एक नंबर पर शुरु करते हैं तो उसका अंत कितने नंबर पर होगा? अंत? समाधान नहीं? मुझे तो यही नहीं समझ आया की न्याय-न्याय करके, आप किसी भी इंसान पर कितनी तरह के स्टीकर चिपका सकते हैं? अगर न्याय का ये जहाँ सच में इतना न्यायविद होता, तो अंत तो 29 पर ज्यादा भला नहीं था? उससे आगे, उसे ऐसे-वैसे या कैसे भी क्यों घसीटा गया? वो भी जहाँ पर so-called experiments का स्तर गिरता जाए? क्यूँकि, राजनीती में गिरावट की कोई लिमिट नहीं है। और आम इंसान उसे भुगत नहीं पाता। इसीलिए अंत हो जाता है। ऐसे, वैसे या कैसे भी। ऐसे में कोई भी आम इंसान क्या कहेगा? अब और फालतू स्टिकर नहीं। इन फालतू के नंबरों से बेहतर है की अपने सारे स्टीकर इक्क्ठा करो और कहो all । बहुत हो गए इस तरह के और उस तरह के एक्सपेरिमेंट्स और स्टीकर।           

अगर आप इनकी या उनकी मोहरों को मान लेते हैं, तो क्या होगा? वही जो हो रहा है। जहाँ सही हो रहा है, वो तो चलो सही है। मगर जहाँ गलत हो रहा है? अब सही और गलत दोनों को देखना और समझना पड़ेगा? 

घर के नंबरों को ही समझने की कोशिश करो। आपके घर के बाहर जो नंबर प्लेट लगाई हुई हैं, उनपे और क्या लिखा है? नंबर के इलावा? या कुछ भी नहीं लिखा? वो नंबर प्लेट कब लगी आपके घर की चौखट या दरवाजे पर? उससे पहले भी कोई थी क्या? अगर हाँ, तो याद है उसका नंबर? अब वो किसके घर के बाहर लगी है? उनके घर के बाहर पहले क्या थी? ये अदल-बदल क्या है? घर के नंबर भला ऐसे भी बदलते हैं क्या? शहरों का तो पता नहीं गाँवों में शायद? जहाँ लोगों को यही नहीं पता होता, की ये क्या लगा के जा रहे हैं और क्यों? चोरी और लूट बोलते हैं इसे? या शायद धोखाधड़ी भी? या सिर्फ एक्सपेरिमेंट कहना बेहतर रहेगा? और मीटरों के नंबर बाहर दिवारों पे लिखने का मतलब? कहीं-कहीं तो रीडिंग तक? और आजकल ये नए मीटर, क्या कुछ खास है इनमें? किसी के घर के अंदर और किसी के घर के बाहर?  

इनका आपके पिन कोड या गाँव के कोड से कोई खास लेना-देना? जितने ज्यादा IDs, उतना ही ज्यादा अपनी ही तरह का कंट्रोल आम लोगों पर, अलग-अलग पार्टियों का। आपका हर किस्म का पहचान पत्र, एक तरह के जाल-तंत्र का हिस्सा है, जो पैदाइशी आपको इस जाल-तंत्र का रोबॉट बनाने में सहायता करता है। इसलिए ज्यादातर अनचाहे से पहचान पत्र खत्म होने चाहिए। 

किसे और क्यों जरुरत है किसी भी पहचान पत्र की? 

कहाँ-कहाँ और किसलिए जरुरत है, किसी भी पहचान पत्र की? 

क्या उसके बिना काम नहीं चल सकता? अगर चल सकता है तो उसे जारी करना या उसका जरुरी होना बंद होना चाहिए।   

शायद नाम, माँ-बाप का नाम और पता काफी है। उससे आगे जितने भी पहचान पत्र हैं, वो गैर जरुरी हैं। हर घर का पता होना चाहिए। फिर वो गाँव ही क्यों, चाहे झुग्गी-झोपड़ी ही क्यों ना हो। एक घर का पता ना होने से 10-10 या 20-20 साल पहले आए हुए या जबरदस्ती लाए हुए जैसे लोगबाग तक, कितनी ही सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं? 

हरियाणा ही में ही कितनी ही औरतें हैं ऐसी? जो शादी के नाम पर दूसरे राज्यों से लाई गई हैं। ज्यादातर खरीद-परोख्त? जिनके बच्चे तक हैं। मगर वहाँ का अपना ऐसा कोई पहचान पत्र नहीं, जिससे वो वहाँ की छोटी-मोटी सुविधाएँ तक ले सकें? ये इतने सारे पहचान-पत्रों की बजाय, अगर एक सोशल-सिक्योरिटी जैसा कोई पहचान-पत्र पैदाइशी दे दिया जाए, तो कम से कम, एक ही देश में तो इतना भेद-भाव ना हो। भेद-भाव सिर्फ इस बात से की आप पैदा कहाँ हुए हैं? किस तबके या राज्य में हुए हैं? ऐसी औरतों के पास कोई भी प्रमाण पत्र तक कहाँ होंगे? वो खुद अपनी मर्जी से थोड़े ही आई होंगी? बेच दिया गया होगा उन्हें? उनके अपनों द्वारा?

"हैप्पी भाग जाएगी" 

ये फिल्म का टाइटल थोड़ा गड़बड़ नहीं है? कहीं किसी साउथ इंडियन ने तो नहीं रखा ये टाइटल? क्यूँकि, उन्हें गा, गी, ता, ती में भेद करने में थोड़ी मुश्किल होती है शायद? जैसे जाएगी या जाएगा? आएगी या आएगा? आती है या जाती है?     

वैसे हमारे यहाँ हैप्पी लड़की का नाम है। जिसका आसाम से कोई नाता नहीं है? जैसे मोनी का पंजाब से? ये यहाँ से आती है? वो वहाँ जाती है या जाता है? पता नहीं कौन? कहाँ? और कैसे-कैसे? और भी जाने कैसे-कैसे किस्से कहानियाँ? और कितनी ही तरह के कोड?

वैसे हमारे यहाँ हैप्पी काम करने कब आएगी और कब नहीं, ये कौन बताता है? लेबर कंट्रोल सैल? किधर वाली? हैप्पी ही नहीं कोई भी लेबर। 

लेबर कंट्रोल के साथ-साथ और क्या कुछ कंट्रोल करती है राजनीती? 

हाउस हैल्प? 

ऑफिस हैल्प? 

और लाइफ हैल्प तक?  

इन सहायताओं की बंद होने या जबरदस्ती जैसे कर देने की भी अपनी ही तरह की कहानीयां है। सबसे बड़ी बात, इस सबको बंद करने या करवाने में जिस आम इंसान की सहायता ली जाती है, वही या उसका आसपास इसे किसी ना किसी रुप में भुगतता भी है।  

बहुत-सी मौतों के राज ऐसे भी हो सकते हैं क्या? जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है? जैसे पीने या प्रयोग करने लायक पानी तक पर इधर या उधर का कंट्रोल? या कहना चाहिए की राजनीतिक गुंडों का कंट्रोल? 

ऐसा ही कुछ फिर बाकी खाने के सामान पर भी लागू होता है?  

और मौतों के राज कैसे-कैसे? इसे जानते हैं, आगे आने वाली पोस्ट में। 

Friday, November 1, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 78

Cult Politics? धर्म के नाम पर धर्मान्धता?

होलिका दहन (7.3.2023)

क्या हो अगर होली की बजाय दिवाली पर ऐसा कुछ हो? और वो भी शिव के जय-जयकारों के साथ? और तारीख, महीना, साल और वक़्त? इस सबके साथ-साथ ट्रैक्टर, ट्रॉली की टाइप, उनपर लिखा हुआ? उनको चलाने या उनमें बैठे लोगों और कर्म-काँड (हवन ट्रॉली में ?) के नाम वैगरह भी जान लो। कोड-सा चलता है जैसे सब? मगर, अब की बार दूसरी गली? अब की दिवाली ऐसा कुछ हुआ क्या? Cult Politics? धर्म के नाम पर धर्मान्धता?

जिन्हें मालूम ही नहीं की उनके साथ ये हो क्या रहा है? यही नहीं, इन्हें लगता है की ये सब खुद ही कर रहे हैं? ठीक ऐसे, जैसे कैंपस क्राइम सीरीज? मगर वहाँ झूठ, धोखाधड़ी, फाइल्स, प्रोजेक्ट्स या ज्यादा से ज्यादा किसी को यूनिवर्सिटी से ही उखाड़ फेंकने की थी। या शायद था तो उससे आगे भी, एतियातों या आगाह करने वालों ने यहाँ-वहाँ बचा लिया? हाँ। उसके दुर्गामी प्रभाव जरुर रह गए और मोहर रुपी निशान भी। मगर यहाँ गाँव में? ऐसे से ही सामान्तर केस, मगर, आदमी ही निगल लिए जाते हैं? और मरता कौन है? आम आदमी? जनमानस? ईधर भी और उधर भी? वो भी जानकारी और सुविधाओं के अभाव में? कैसे? उसपे भी आएँगे आगे की पोस्ट्स में।   

फिर से पढ़ें, भाभी की मौत के बाद वाली होली के बाद हुआ साँग अब क्या ऐसी-सी ही पोस्ट, दिवाली के नाम पर लिखना?  

बचपन से बहुत बार होलिका दहन देखा या ज्यादातर सुना। बहुत सालों बाद, अबकी बार जो देखा, वो होलिका दहन के नाम पर एक डरावना-सा सांग था। किसी मंदिर के नाम पे कोई राजनीतिक तांडव जैसे। आगे ट्रैक्टर, पीछे ट्रॉली। ट्रॉली में आग की लपटें ऐसे जैसे -- (some assisted murder). 

(I will write with time about that in details, how that happened? Rather must say kinda enforced by creating such conditions? And creations of such conditions are not that difficult by experts of political designs and political fights. Common people must be aware about such things to stop them). Read somewhere some term about that I guess, Cult Politics? Sinister designs, by twisting or altering, manipulative ways to represent something contrary? 

उन लपटों से पहले आसमान में धुएँ का कहर, सामने गली से ऐसे गुजर रहा था, जैसे लीलता जा रहा हो, गली दर गली, धुआँ ही धुआँ। 

कहते हैं, किसी समाज को, वहाँ के जनमानस को, उनकी खुशहाली या समस्याओं को जानना है तो उनके रीति-रिवाज़ों को जानना बहुत जरूरी है। रीति-रिवाज़ बताते हैं वो समाज अपने जनमानस को कैसे जोड़ता है या तोड़ता है। ऐसे ही, शायद जानना जरुरी है उन रीति-रिवाज़ों में आते बदलाओं को -- क्यूँकि वो बदलाव आईना होते हैं उस बदलते समाज का, भले के लिए या बुरे के लिए। बदलाव आगे बढाते हैं या पिछड़ा बनाते हैं? औरतोँ को, बच्चोँ को, समाज के कमज़ोर तबके को शशक्त करते हैं या दबाते हैं?