Sunday, September 28, 2025

Views and Counterviews 95

जाने क्यों ये विडियो बार-बार मेरे यूट्यूब पर आ रहे हैं? कह रहे हों जैसे, सुनो हमें?

जाने क्यों लगा, की ये तो रौचक हैं    

प्रशांत किशोर  Vs अशोक चौधरी 

बिहार की राजनीती और इलेक्शंस?

और?

आरोप, प्रत्यारोप और हकीकत?

कोई जाना पहचाना सा नाम, और लगे किस्सा कहानी भी जैसे एक जैसा सा है? अब है या नहीं, ये वाद विवाद का विषय हो सकता है। क्यूँकि, अब तक जो ऐसे-ऐसे केसों से समझ आया, वो ये, की हर केस अलग है। लोगबाग, उनके हालात और औकात का भी अक्सर काफी फर्क मिलता है और कभी-कभी तो केस बहुत ही hyped, manipulated और twisted भी लगते है। शायद इसीलिए, वो सामान्तर घड़ाई जैसे हैं। पता नहीं इस तरह के विडियो टार्गेटेड आपके यूट्यूब पर मिलते हैं या लोगों को लगता है की वो शायद कोई सहायता कर सकते हैं? और शायद ऐसे मैं उनका अपना भी कोई हित निहित हो? और हो सकता है, ये सिर्फ एल्गोरिथ्म्स का धमाल हो? क्यूँकि, ऐसा सा कुछ मेरे ब्लॉग पर एक अलग सीरीज करके पोस्ट हुआ है। 

"जमीनखोरों का जमीनी धँधा, राजनीती और शिक्षा के नाम पर"        

https://zameenkhoronkezameenidhandhe.blogspot.com/

इससे सम्बंधित अब तक कई विडियो देख चुकी। उसका निचोड़ जो मुझे समझ आया 

अशोक चौधरी ने 2021 से 2023 या 24 (?) तक कुछ प्रॉपर्टी खरीदी। ज्यादातर किसी ट्रस्ट के नाम पर। वो ट्रस्ट जिसने इतने सालों में कोई खास प्रॉपर्टी नहीं खरीदी हुई, अचानक से इतनी प्रॉपर्टी 2-3 सालों में ही खरीद ली? कैसे? इतना पैसा कहाँ से आया?

ट्रस्ट का ज्यादातर पैसा हर साल कहीं न कहीं लगाना होता है।  आप उसे इकठ्ठा करके नहीं बैठ सकते। अगर ऐसा करोगे, तो टैक्स रिटर्न्स में दिखाना होगा। अगर टैक्स रिटर्न्स में नहीं दिखा रहे, इसका साफ़ मतलब छुपा रहे हो। अब ट्रस्ट क्यूँकि कई लोगों के नाम होता है, तो ऐसे घपले की संभावना ज्यादा रहती है?   

ऐसे घपलों को रोकने का एकमात्र उपाय कोई भी या किसी भी तरह का ट्रस्ट हो, वो अपनी प्रॉपर्टी की सारी जानकारी अपने पोर्टल पर उपलभ्ध कराए। अगर किसी को वहाँ जानकारी न मिले, तो कोई भी ऐसी जानकारी उस ट्रस्ट से माँग सकता है। और RTI के तहत उन्हें उपलब्ध करानी पड़ेगी। तो बहुत से घपले तो यहीं ख़त्म हो जाते हैं। 

ऐसे घपले विवाद कब बनते हैं? जब मेरे जैसा कोई ऐसे किसी घपले को जनता के सामने रखता है और ऐसा कोई हिसाब-किताब माँगने लगता है। और जिसे ये हिसाब-किताब बिना माँगे देना चाहिए, वो या तो दादागिरी दिखाने लगता है या बचकर भागने लगता है। स्कूल जैसे ट्रस्टों के हाल ये हैं की वो जिनकी कमाई का खाते हैं (अध्यापक), उन्हीं को निचोड़ देते हैं और खुद धन्ना सेठ बन जाते हैं। अध्यापक, एक घर बनाने को तरस जाता है और ये धन्ना सेठ? करोड़ों अरबों के मालिक? यही नहीं, ऐसे जानकारी माँगने वाले लोगों को, ये धन्ना सेठ हद दर्जे के गिरे हुए स्तर तक टारगेट भी करते हैं। कहीं-कहीं तो लोग अपनी जान तक गवाँ देते हैं। जैसे भाभी के केस में हुआ। हाँ। आज के दौर में रिसोर्सेज वाले लोगबाग मार ऐसे करते हैं की मारता कोई है और नाम कहीं और अपनों पे ही गढ़ने की कोशिशें होती हैं।  

मगर कैसे? सरकारों या राजनितिक पार्टियों की मिलीभगत के बगैर ये संभव है क्या? जानते हैं आगे     

Wednesday, September 24, 2025

Views and Counterviews 94

Rajdeep Sardesai Book Show 

on Former CJI DY Chanderchud's book

Why The Constitution Matters


That's an interesting interview

And an interesting library having two big experts of their own field


Conspiracy: "Jagadhary to Indri"
Wonder, if that version also suits here?
Topic for some other post.

Straight talk on coded matters, from my viewpoint?

University commitees and most commitee members bhagti of this or that political party, destroyed much than one can even imagine. These committee members are not just murderers of democracy, but of so many people outside that University boundary. And directly or indirectly, they are bearing the fruits of those results in their own life or near and dear ones lives also. How strange? How some things in some files impact lives far away from those files? Somehow even firing back those people or their surrounding, who took decisions in dadagiri or fear, just because they could? Kinda ripple effects or echo sounds? The voice or the decision you took, gone far away and then came back to you, ditto same? No. In some cases, not even ditto same, but highly amplified and so many times even manipulated or twisted by political parties. They say, that's how system is working worldwide?

Fact is constitution is nowhere in the world, forget in India. The more anyone realises the ways of working of this system, the more one feels disgust about that. Amid such chaos, I wonder at times, how people are managing whatever remains on the name of democary in this world? In India, it's total dictatorship, there is no such thing as democracy. 

Go a bit deeper to the system and you will realise the impact at that micro level or hit at that concious level, where you can watch and even feel diseases initiation point, proliferation and then full blown diseases. Full blown diseases? Or highly manipulated and twisted angles, facts of such a synthesis, in reality can be entirely something else. At that level, you can watch and feel deaths err murders or suicides (again murders), happening in front of your eyes. And interestingly enough, they are opening your eyes to those facts like showing and telling you about the "Show, Don't Tell".

Here show is the stage of real people and their lives, which are changing day by day, minute by minute, second by second, by the impulses of the system they are living or the enforcements by political parties in that system. And what if someone says in a court, that look these are the proofs of what I said?

The subtle difference between proof and synthesis is again matter of expertise? It's something like the difference between natural and artificial. Then be it intelligence or years or decades after synthesis of something. Beyond that, resources also matters. That's why with more and more tech integrated systems, inequalities between people will only grow further.
Most people in the less educated societies like India cannot even understand these systems. They are available only to selected. Then how they would fight such tech integrated mighties? 

Education
Only education can dissolve these inequalities in any society, irrispective of anyone's birth and related circumstances. Quality education, not the kind of education, we have in most states of India. So people who talk about such education do catch attention. But question is, if catching the attention only would do that magic to get rid of such inequilities? Or these are only ways to generate money for such purposes or other purposes like for politics only? Topic for some other posts. People who are enganged in such conversastion or task would be the focus in these posts.

Friday, September 19, 2025

Report card? 1

Report card?

Hustle culture?

Balanced culture?

Or sometimes?


Strange things happen in life?

Wednesday, September 17, 2025

Computer Interactions, Human and Humanoid? 4

 मान लो आपने कहीं लिखा या कहा की इस विषय पर जानकारी चाहिए। 

पैसा तो बहुत कमा लेते हैं, ठीक-ठाक गुजारे लायक, 

मगर, मेरे जैसे निक्क्मों के पास वो टिकता नहीं।  

और आपको कोई विडियो देखकर लगता है, अरे वाह !

ये सलाह तो ठीक-ठाक लग रही है।? 

बिलकुल Personalized Medicine के जैसी सी? 

जैसे?

ये? 


और ये क्या? 

वो, विडियो कहाँ गया?

मैं जब उसे देख रही थी, तभी कुछ गड़बड़ घौटाला-सा लग रहा था। वैसा सा ही कोई मैसेज, जैसा वो "You are not alone. iCall on this number  ..... "

ये मैसेज, अबकी बार आपको किसी वेबसाइट पर ले जाता है, जो ना सिर्फ बहुत ज्यादा biased है, बल्की cybersecurity के नाम पर direct-indirect आपको भी target कर रही है। अब ये जिसका विडियो है, वो इंसान या चैनल और वो मैसेज क्या एक ही हैं? या अलग-अलग? ऑनलाइन दुनियाँ के हेरफेर?

वैसे ये इस तरह के पर्सनलाइज्ड मैडिसन जैसे से ज्ञान, कई चैनल्स पर चलते मिलेंगे। जिनमें कुछ आपको अपने काम का लगेगा और कुछ नहीं नहीं भी। और बहुत कुछ टारगेटेड भी। मगर, ऐसे पहले कोई विडियो दिखाना और फिर उस लिंक को मेरे ही लैपटॉप की हिस्ट्री तक से उड़ा देना, दूर, बहुत दूर बैठे? ये थोड़ा ज्यादा ही हो गया। कम से कम हिस्ट्री को तो हिस्ट्री ही रहने दो। ये जिसका लैपटॉप है उसपे छोड़ दो, की वो कब तक कोई हिस्ट्री रखे और कब डिलीट करे।  

ये तो वही वाला सिंथैटिक जहाँ नहीं हो गया की, "मैं चाहु ये यादास्त लाऊँ और ये यादास्त मिटाऊँ, मेरी मर्जी?" Human Robotics में आपका स्वागत है।    

Computer Interactions, Human and Humanoid? 3

 पर्सनलाइज्ड मैडिसन क्या है? 

ये ऐसे है, जैसे किसी टेलर का आपका सूट सिलना। आपके स्टाइल और सुविधानुसार।  

ठीक ऐसे, जैसे आपका घर डिज़ाइन करना, आपकी जरुरत और सुविधानुसार। 

और आपकी औकात के अनुसार भी? 

जैसे?

आ चलके तुम्हें मैं ले के चलूँ, एक ऐसे जहाँ में, 

जहाँ कोई बेघर ना हो?

इत्ता सा घर तो हर किसी का अधिकार हो?

जैसे टेस्ला का ये गाड़ीनुमा घर  






रौचक है ना?
मगर यहाँ एक लफड़ा तो हो सकता है, इनका एड्रेस क्या होगा?
क्या वो एड्रेस आपकी किसी ऐसी ID से जुड़ा होगा, जो पासपोर्ट के लिए भी मान्य हो?

ये भविष्य के movable home या आपके घर के लॉन का एक अनोखा-सा कोना तो जरूर हो सकते हैं?
जब इधर उधर कहीं घूमने जाना हो, तो गाडी से जोड़ो और चल दो। 
और गरीबों के ठिकाने भी। 

Computer Interactions, Human and Humanoid? 2

Silly Co?

In Silico?

In Silico Analysis?

and Personalized Medicine?









Computer Interactions, Human and Humanoid? 1

 Human Computer Interactions and ? Inbetween connecting links?

आदमी, मशीन और इनके बीच के तत्व (खुरापाती?)

या आदमी-आदमी और इनके बीच के तत्व (मशीनें) 

या?

और भी कई तरह के कॉम्बिनेशन हो सकते हैं?    

चलो कुछ-एक, ईधर-उधर के उदाहरणों से जानने की कोशिश करें? 

मान लो आपको कोई दिक्कत है या आपका कोई जानबूझकर कहीं कोई काम अटका रहा है या अटका रहे हैं? आपके पास उसके या उनके खिलाफ सबूत हैं, खुद उनके दिए हुए? मान लो ऑफिसियल मेल्स या नोटिस? आपको उसको जगजाहिर करना है, अपने ब्लॉग पर रखना है या उसकी किताब निकालनी है। निकाल दो, दिक़्क़त क्या है? जिन्होंने गड़बड़ की हुई है, वो इतनी आसानी से ऐसा करने देंगे क्या? वो आपको रोकने की कोशिश करेंगे, जहाँ तक हो सके। ये रोकने की कोशिश कितनी या कितने तरह की होगी ये इस पर निर्भर करता है की ऐसे लोगों का गुनाह या के गुनाह कितने बड़े या संगीन हैं? और उनके खिलाफ सबूत कितने मजबूत हैं?

मान लो आपने सब सबूत इक्क्ठ्ठे कर लिए और उन्हें कोई किताब की सूरत देने की कोशिश कर रहे हैं। वो आपके लैपटॉप या मोबाइल में छुपे बैठे हैं और डाक्यूमेंट्स को या तो उड़ा रहे हैं या उनमें गड़बड़ कर रहे हैं। आप ऐसे-ऐसे उनके कारनामों को पहले भी काफी भुगत चुके हैं। और ऐसे-ऐसे अवरोधों के बावजूद उनके काले कारनामों की फाइल्स ऑनलाइन रख चुके हैं। या किन्हीं सुरक्षित जगह पहुँचा चुके हैं। तो ये फाइल नहीं गई होगी क्या?

अब ये सब रोकना उनके बस की बात ही नहीं। हर बाप का बाप होता है? और हर बॉस का बॉस? तो ये लोग वो सब रोकेंगे, जो उनके बस की बात है। वहाँ भी कितना वश चल पाता है, वो अलग बात है? ऐसे खतरनाक युद्धों में, ऐसे लोग बड़ी मार, इंसानों या ज़िंदगियों पर करते हैं। और इनका सबसे बड़ा भुगतान समाज का सबसे कमजोर वर्ग करता आया है और करता रहेगा। क्यूँकि, वो सबसे आसानी से खिसकाई जाने वाली कड़ी होते हैं। साइकोलॉजी, inbetween links या बिचौलियों की यहाँ हमेशा से अहम भूमिका रही है। जितना ज्यादा ऐसे लोगों को अपने बीच से हटाया जा सके, उतना ही आसान ऐसे-ऐसे लोगों के जालों से बचना होता है।                   

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 28

"पीलिया बाज़ार 

"ए हैप्पी, हैप्पी 

उह्की गाड़ी कड़े सै? आशीष की? 

उह्की गाड़ी मैं बैठ जाईए।"  

ये किसकी गाडी की बात हो रही है? 

आप तो शायद ऐसी किसी गाडी में कभी नहीं बैठे? 

ये गाड़ियों के रहस्य, आम जनता को जैसे समझाए जाते हैं या समझ आते हैं, अक्सर वो वैसे नहीं होते।  

शायद ऐसा कुछ? 

या शायद कुछ वैसा, जहाँ कोई कम पढ़े लिखे वाले कबाड़ी या जुगाड़ी वाले इंसान से, कोई पार्टी पिस्तौल वाली कोई नौटँकी करवाए? 

या फिर शायद, किसी और ऐसे से ही किसी इंसान के नाम पर, कोई और तरह का ड्रामा? 

राजनीतिक पार्टियाँ आपसे ड्रामे भी आपके और आपके आसपास के स्तर के अनुसार ही करवाती हैं? और फिर उनके परिणाम भी, वैसे से ही होते हैं? क्यूँकि, समाज के हर स्तर पर, राजनीतिक पार्टियों के पास, एक जैसे से नाम और बहुत बार एक जैसी सी सूरत वाले भी कई-कई इंसान (कोड) होते हैं। कोई एक आज यहाँ से जायगा, तो वो किसी दूसरे को, कहीं और से रख देंगे। मगर, क्या दुनियाँ से ही जाने वाला वापस आएगा?

इसलिए किसी भी मंच पर सिर्फ कोई नौटंकी करना और सच के हथियारों से खेलना या मार पिटाई या हिँसा के परिणामों के फर्क, ऐसे ही हैं जैसे, जमीन और आसमान का फर्क।  
     
ऐसे ही जैसे, किसी का सिर्फ खुद ही खाना खाना या किसी को खिलाना। और दूसरी तरफ, किसी का किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक शोषण करना। दोनों में ज़मीन और आसमान सा फर्क है।