"पीलिया बाज़ार
"ए हैप्पी, हैप्पी
उह्की गाड़ी कड़े सै? आशीष की?
उह्की गाड़ी मैं बैठ जाईए।"
ये किसकी गाडी की बात हो रही है?
आप तो शायद ऐसी किसी गाडी में कभी नहीं बैठे?
ये गाड़ियों के रहस्य, आम जनता को जैसे समझाए जाते हैं या समझ आते हैं, अक्सर वो वैसे नहीं होते।
शायद ऐसा कुछ?
या शायद कुछ वैसा, जहाँ कोई कम पढ़े लिखे वाले कबाड़ी या जुगाड़ी वाले इंसान से, कोई पार्टी पिस्तौल वाली कोई नौटँकी करवाए?
या फिर शायद, किसी और ऐसे से ही किसी इंसान के नाम पर, कोई और तरह का ड्रामा?
राजनीतिक पार्टियाँ आपसे ड्रामे भी आपके और आपके आसपास के स्तर के अनुसार ही करवाती हैं? और फिर उनके परिणाम भी, वैसे से ही होते हैं? क्यूँकि, समाज के हर स्तर पर, राजनीतिक पार्टियों के पास, एक जैसे से नाम और बहुत बार एक जैसी सी सूरत वाले भी कई-कई इंसान (कोड) होते हैं। कोई एक आज यहाँ से जायगा, तो वो किसी दूसरे को, कहीं और से रख देंगे। मगर, क्या दुनियाँ से ही जाने वाला वापस आएगा?
इसलिए किसी भी मंच पर सिर्फ कोई नौटंकी करना और सच के हथियारों से खेलना या मार पिटाई या हिँसा के परिणामों के फर्क, ऐसे ही हैं जैसे, जमीन और आसमान का फर्क।
ऐसे ही जैसे, किसी का सिर्फ खुद ही खाना खाना या किसी को खिलाना। और दूसरी तरफ, किसी का किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक शोषण करना। दोनों में ज़मीन और आसमान सा फर्क है।
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