उन दिनों पैनड्राइव बड़ी गुल होती थी। कभी एयरपोर्ट से, तो कभी बैग से और कभी-कभी तो घर की स्टडी टेबल तक से। और मुझे लगता था, की ऐसे ही कहीं गिर गई होगी। फिर एक दिन घर पर (H # 16, Type-3) कुछ हुआ मिला लैपटॉप के साथ। घर को देखकर ऐसा लगा, जैसे कोई घुसा हो। कुछ एक चीज़ें वहाँ नहीं थी, जहाँ वो अकसर होती थी। कुछ एक collegues को साथ लेकर VC को शिकायत की और सुनने को मिला, "भूत आ गए होंगे, हवन करा लो"। "कल को तुम कहोगे मुझे अपने लैपटॉप पर ख़ून के छींटे पड़े मिले"। और ब्लाह, ब्लाह। और आप सोचें, ये इंसान सच में VC है क्या? कहाँ से उठकर आया है? 2012 या 2013, कब की बात है ये? एक अरसा हो गया जैसे। उसके बाद तो पता ही नहीं, और क्या कुछ देखा, सुना या समझ आया। वो दुनियाँ ही कोई और थी।
जब गाँव आई, तो बहुत सी चीज़ें या कहो की ड्रामे जैसे अपने आपको उस वक़्त के आसपास दोहरा रहे थे। और आपको लगे, ये सच में कितने बच्चे हैं या कहो की अनभिज्ञ हैं। दुनियाँ वहाँ से कहाँ जा चुकी? अब कितना कुछ, कितना खुले आम पढ़ने, देखने और सुनने को मिल रहा है। मगर इनके जैसे आँख, कान और दिमाग आज तक भी सब बँध हैं। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, कहीं कोई पत्रकार लिखे की "बिहार में कुछ खास नहीं बदलता, बस वहाँ की राजनीती बदलती है"। ये बिहार शायद हर वो तबका या समाज है, जो आज भी उतना शिक्षित नहीं है, जितना उसे होना चाहिए। और ऐसी जगहों की राजनीती ऐसा चाहती भी नहीं। नहीं तो फिर वो चोर-उचक्के ना बनाएँ। सुबह-सुबह उठते ही जैसे मुँह हग दौरे (गाली गलौच) ना बने। बिन सोचे समझे दिमाग की बजाय हाथ, पैर उठाने या चलाने वाले ना बनाएँ। फिर लाठी, डंडा, गोली बुल्लेट तो बहुत दूर की बला हैं। कितना आसान होता है ऐसे कमजोर, असुरक्षित और दिमाग से पैदल लोगों को अपने अनुसार घड़ना। Human Robotics के सबसे आसान दाँव-पेंच शायद ऐसी जगहों पर, सबसे आसानी से समझ आते हैं?
सोचो, बिमारियों की घड़ाई भी इतनी ही आसान हो? और मौतों की भी कहानियाँ ऐसी-सी ही? इसका मतलब?
जिन्हें ये घड़ाईयाँ इतनी आसानी से आती हैं, उनके पास इन बिमारियों के ईलाज भी इतने ही आसान से हैं? शायद हाँ? और शायद ना? निर्भर करता है, की ऐसा जानने वाले उस इंसान के सिस्टम या आसपास के माहौल को कितना बदल पाते हैं। और उस इंसान की बिमारी की स्टेज या उम्र क्या है। भला किसी आम इंसान के लिए इतना कौन करेगा? या करेंगे? हाँ, population level पर जरुर, ऐसा चाहने या करने वाले लोगों का असर हो सकता है।
No comments:
Post a Comment