Saturday, October 28, 2017

सुबह


गर्जन भी है
शोर भी है
चुप-सी खामोश भी
ताज़गी का अहसास भी


हवाएँ भी हैं
घटायें भी हैं
पंछी भी हैं
चहचाहट भी है


अठखेलियाँ करते-से
बादल भी हैं
छिपता-निकलता-सा
सूरज भी है 


फूहारें भी
धूंधलका भी
रोशनी भी
अंधेरा भी 


गोरे भी हैं 
काले भी हैं 
जाना-पहचाना-सा मौसम
विभिनता में एकता का वास

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