मेरा वश चले तो
हर मंदिर-मस्जिद,
गिरजाघर-गुरूद्वारे की जगह,
हर हुक्का बैठक,
और शराब के ठेके की जगह,
एक पुस्तकालय बना दूँ
और रख दूँ वहाँ
वो सब किताबें, वो सब ज्ञान
जो आम-आदमी को बनाये
मस्तिष्क से करे बलवान
सिर्फ भर्म से नहीं।
मेरा वश चले तो
हर खाली पड़े मकान, दुकान,
सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान में,
एक पुस्तकालय बना दूँ
जहाँ सिर्फ किताबें ही न हों
बल्कि नयी-नयी तकनीकों का
सुलभ हो जाए, आमजन को ज्ञान।
मेरा वश चले तो
हर खाली पड़े प्लॉट, जमीन-जायदाद को-
बदल दूँ, एक उद्यान में, बाग़ान में,
जहाँ हरियाली हो, शुद्ध हवा हो
खुला-खुला सा, आसमां हो
कंक्रीट जालों से बाहर, आमजन को साँस मिले
चहल-पहल रहे जहाँ पक्षियोँ की
टहल-कदमी बच्चों की, बुज़र्गों की, युवाओं की।
मेरा वश मतलब, आप-सबका, आमजन का वश है।
आपका आसपास कैसा हो, ये आपके अधीन है
सरकारों का इन सबसे लेना देना, सिर्फ खाने-पीने
या आमजन को निचोड़ने तक ही होता है शायद।
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