Monday, October 10, 2022

जहाँ विद्यालय, वहीं चारों धाम

जहाँ विद्यालय, वहीं चारों धाम 

वहीं श्रद्धा, वहीं विश्वास

वहीं मंदिर, वहीं मस्जिद 

वहीं गुरुद्वारा, चर्च वहीं  

वहीं मतभेदों के बीच भी, संवाद। 

वहाँ पुजारियों-मौलवियों जैसों का 

ये मेरा धर्म

या ये तेरा धर्म 

तू-तड़ाक, और खामखा के 

लड़ाई-झगड़ों से 

भला क्या लेना-देना ?


जहाँ पुस्तकालय, वहीं देवालय 

भला पुस्तक का या पुस्तकालय का 

शराब या ठेके से क्या लेना-देना?

धर्मों के नाम पे पनपे, अधर्मों पे 

या गुनाहों पे, रोक के लिए 

अज्ञानता को भगाना भी जरूरी है 

ऊँच-नीच के भेदभाव को 

असमानता को दूर करने के लिए 

ज्ञान का होना भी जरूरी है। 

वो शराब या ठेके से नहीं 

दिमाग को नशे के जाल में फँसाने से नहीं 

बल्की उस नशे के जाले से 

बाहर निकालने पे मिलेगा। 


बस यही फर्क है

मंदिर-मस्जिद वाले धामों पे 

पीछे धकेलते, ज़िंदगियों को रोकते  

गुनाह मिलेंगे और मिलेंगे वृंद्धावन।

मगर शिक्षण संस्थानों और पुस्कालयों में 

दिमाग के जाले उतरेंगे 

अज्ञानता में बंद पड़े, द्वार खुलेंगे 

और आगे बढ़ने के रस्ते मिलेंगे।   

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