About Me

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Saturday, March 23, 2024

रंगो को मिलाओ ना ऐसे

तेरी होली, 

मेरी होली, 

इसकी होली, 

उसकी होली, 

सबके इन त्यौहारों को समझने के,

मनाने के, शायद तौर-तरीक़े अलग हों। 


क्यूँकि, मेरी समझ 

तेरी समझ 

इसकी समझ 

उसकी समझ 

जरुरी नहीं, एक हो 

और सबके लिए नेक हो। 


अपनी समझ 

अपनी सोच 

रखो पास अपने

अगर समझा ना सको 

बातों से।  

उसे जबरदस्ती 

इसपे या उसपे 

थोंपने का काम ना करो। 


जरुरी नहीं,

हर कोई खेलना चाहे 

कोई तो दर्शकदीर्घा भी हो 

और ये भी जरुरी नहीं 

की हर कोई 

तुम्हारे तौर-तरीकों से खेलना चाहे 

और ये भी तो हो सकता है 

की कोई बिमार हो 

या किसी को एलर्जी हो 

तुम्हारे खुँखार रंगों से 

या तुम्हारे गंदे पानी से 

या शायद किसी को 

तुम्हारे साफ़ पानी और रंगों से भी 

परेशानी हो। 


तो क्यों जोर जबरदस्ती?

खेलो उनसे, जो तुमसे खेलना चाहे

थोड़ा दूर उनसे 

जो सिर्फ दर्शक-दीर्घा बनना चाहें  

या अपने काम काज़ से 

कहीं निकलना चाहें। 


इस होली, 

रंगो को मिलाओ ना ऐसे, 

की वो कालिख़ बन जाएँ। 

उन्हें सजाओ तुम ऐसे, 

की वो इंदरधनुष-से खिल जाएँ। 

Friday, March 15, 2024

तेरे आगमन पे

तेरे आगमन पे 

ये तबके आज भी यूँ, दबके-दुबके से क्यों हैं? 

बच्चा आया हो तो, माहौल क्यों ना खुशनुमा हो?

तेरे जन्म पे यूँ क्यों, दुबका-दुबका सा रहता है - 

आज भी समां-सा यहाँ?

ये कौन-से तबके हैं?

कैसे-कैसे, दबके-दुबके से हैं?

मिठाइयाँ क्यों ना बटें?

क्यों ना इनके थाल पीटें?

ठीक वैसे, 

जैसे पीटते हैं ये, लड़के के जन्म पे? 

ये कौन-से तबके का जहाँ है?

तेरे आगमन पे मौसम यहाँ, 

क्यों जैसे दबका-दुबका सा है?  

राजनीती के कोढ़ से परे भी 

क्यों ना इनकी अपनी कोई दुनियाँ हो?