About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, September 26, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 55

जैसे चौटाला परिवार की या कहो देवीलाल के परिवार की राजनीतिक जंग है, वैसे ही दो और लालों की। वैसे चौटाला परिवार का गौत्र तो शायद सिहाग है? फिर ये चौटाला लगाने के पीछे की कहानी क्या है? शायद कहीं पढ़ने-सुनने को मिले, तो उस पर भी आएँगे आगे। 

मगर अभी दूसरे राजनीतिक परिवारों को जानते हैं  

रोहतक और राजनीती के बारे में कभी सुना था की यहाँ से प्रदेश की ही नहीं, बल्की, देश की राजनीती को दशा और दिशा मिलती है। ये उन दिनों की बात है, जब राजनीती का abc नहीं पता था और ना ही आज की तरह इसे जानने-समझने की कोई उत्सुकता थी। अब तो जो समझ आता है वो ये, की सिर्फ देश की ही नहीं, बल्की, दुनियाँ भर की राजनीती को शायद प्रभावित करता है, ये छोटा-सा जिला। दिल्ली के पास होने का राज शायद?

रोहतक और हुड्डा   ( राजनीती के चौधरी जैसे?) 

पहले मैं मदीना (दांगी) और रोहतक (हुड्डा) की कांग्रेस को अलग-अलग देखती थी। मगर, राजनीती में शायद ना कुछ साथ होता और ना ही अलग। सिर्फ महत्वाकांक्षाएँ और जरुरतें होती हैं। यहाँ ना कोई अपना होता और ना ही पराया। आपकी पार्टी तभी तक आपकी अपनी है, जब उसे आपने बनाया हुआ है और आप ही चला रहे हैं। नहीं तो, जितने ज्यादा शेयर-हॉल्डर, उतनी ही ज्यादा खीँच-तान। अब दीपेंदर हुड्डा है ही इकलौता, तो क्या दरार और क्या रार? या शायद है भी? शायद इसीलिए भूपेंदर हुड्डा को बहन-बेटियों को मनाना पड़ रहा है? या शायद, मुझे राजनीती की अभी उतनी समझ नहीं। 

ऐसे ही जैसे पहले मारपीट-राजनीती, चौटाला या दांगी जैसे लोगों की राजनीती को ही मानती थी। 2019 के बाद काफी कुछ, कुछ-एक कांग्रेस के सोशल मीडिया पे भी हज़म होने जैसा नहीं था। खासकर, दीपेंदर हुड्डा के। खैर। 2019 में एक तरफ वोट डालने जाना छोड़ा। तो दूसरी तरफ, इलेक्शन क्या हैं? इन्हें कौन और कहाँ लड़ता है? EVM या बैलट पेपर का रोल क्या है? इन सब प्रश्नों के उत्तर भी अजीबोग़रीब मिले। परिणाम वाले दिन भी, वोट पड़ते हैं क्या? वो भी उस वक़्त, जब परिणाम TV चैनलों पर Live चल रहा हो?     

परिणाम TV चैनलों पर Live?

ये क्या बला है? आप स्क्रीन पर परिणाम देखते और सुनते हैं? और परिणाम बताने वालों तक वो परिणाम कैसे पहुँचता है? 

फ़ोन? सैटलाइट? केबल? इंटरनेट?     

इलेक्शन करवाता कौन है? इलेक्शन कमिशन कौन है? कहीं भटक तो नहीं गए हम, अपने विषय से? रोहतक, राजनीती का गढ़? रोहतक राजनीती मतलब? हुड्डा? 

ज़मीनो के हेरफेर और हुड्डा और चौटाला का उनसे सम्बन्ध? मुद्दा है क्या ये भी कोई?

नौकरियाँ और हुड्डा या चौटाला का सम्बन्ध? बीजेपी ने तो सुना है किसी को ऐसा कुछ दिया ही नहीं। सिर्फ लेने का काम किया है? हुड्डा और चौटाला के भी अजीबोगरीब-से जुबानी-युद्ध होते हैं, इन नौकरियों पर। नौकरियाँ पार्टियों की होती हैं क्या? जो करते हैं, उनकी नहीं? और नौकरी का मतलब, सिर्फ कागजों तक होता है? उसके बाहर कुछ और ही चलता है? मतलब, जो कुछ उस नौकरी को करने लायक माहौल के बारे में लिखा होता है, उसका कोई अर्थ ही नहीं होता? यही नहीं, कहीं कोई पार्टी इलेक्शन भी ऐसे ही मुद्दे के साथ तो नहीं लड़ रही, की हम आएँगे तो, ये साफ़, वो साफ़? इतनी खतरनाक धमकियाँ, बनने से पहले ही? साम, दाम, दंड, भेद, सब जायज़ है? डर का माहौल तो पहले ही घड़ रहे हैं आप? बाद में तो ऐसा कुछ हो गया तो, खानदान के खानदान खाएँगे? डरा-डरा के लोगों को अपनी साइड करते हो?  Hang on guys, hang on. ऐसे में तो बैलेंस बहुत जरुरी है।                  

मारपीट की राजनीती और हुड्डा, चौटाला या बीजेपी का सम्बन्ध? सभी बराबर हैं क्या? या कोई कम तो कोई खूँखार जैसे?   

सोचो, ज़मीन पार्टियों की? पैसा, नौकरियाँ पार्टियों के? तो उनमें काम करने वाले? वो भी पार्टियों की प्रॉपर्टी जैसे? कंपनियाँ और राजनीतिक पार्टियाँ, और इंसानों का उनका महज़ नौकर होना? मतलब, Human Robotication. बाजार के भी हाल यही बताए। हालाँकि, अभी उसकी समझ थोड़ी कम है। 

इन लालों से और हुड्डा से अलग एक और राजनीतिक किरदार सुना है, हरि याणा की राजनीती में घुसने की फिराक में है? कौन है ये? "मैं बिजली मुफ्त कर दूँगा और आपका बिजली का बिल जीरो।" पहुँचो जी, आप भी पँहुचो। छोटे से राज्य में, पहले ही दंगल कम है शायद?       

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 54

 आओ थोड़ा अपने नेताओं को, पार्टियों को और उनके मुद्दों को जानने की कोशिश करें। 

AC Vs DC? 

चाचा और भतीजा? 

ये तो जैसे घर की घर में जुत बज रहे हैं?

आज तक की खाट पंचायत 

नीचे दी गई फोटो 2 अलग-अलग खाट पंचायत की हैं 

एक चाचा की और दूसरी भतीजे की 











नीचे दी गई फोटो में, रंगों के मतलब और AC, DC को ढूँढें 
और पता चले तो CBI और ED को भी। 

ये आसपास के लोगों के लिए। अगर ये विडियो समझ आ जाएँ, तो थोड़ा-बहुत अपनी ज़िंदगियों को भी इनके सन्दर्भ में जानने-समझने की कोशिश करें। आपको पता चलेगा, की आप किस तरह के आदम-रोबॉट हैं? जितना ज्यादा इस राजनीती को जानने-समझने की कोशिश करोगे, उससे ये भी समझ आएगा की कैसे इंसान को रोबॉट बनाया जाता है? 

Tuesday, September 24, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 53

आओ थोड़ा अपने नेताओं को जानने की कोशिश करें। 

"हूबहू-हूबहू, कॉपी-कॉपी करती रहती है और शकुंतला खटक नहीं समझ आ रही?" 

ये क्या था? ऐसे तो --

केजरीवाल नवरात्रों में घर छोड़ेंगे?  

मोदी USA यात्रा पर?

दुष्यंत चौटाला बच्चोँ के साथ खेलते हुए मैदान में?

बड़े हुड्डा, कुछ बहन-बेटियों को मनाने में वयस्त?

और ?

कुछ दिनों पहले कोई संवाद या इंटरव्यू सुन रही थी किसी नेता का। नया-नया शौक पैदा हुआ है, नेताओं को और उनके मुद्दों को जानने का।  

बुआ ये कैसी आवाज़ है?

बड़ी मस्त-सी चाल है। बहुत दिनों बाद सुनी। और बुआ-बेटी बारजे से नीचे देखते हुए। 

                                                     टगबग-टगबग? सुना, सुना-सा है ना?   

मासूम से 


"भारती का घोड़ा" जा रहा था?
या?
गाएँ, भैंस, साँड़, बैल, कुत्ते, बिल्ली तक ही सीमित क्यों रहें ड्रामे?
तो, ये लो एक और जानवर, घोड़ा।   

ठीक ऐसे ही जैसे, किसी की चौपाल सज रही है, हरे-भरे खेतों के बीच। तो किसी की अस्तबल के आसपास। किसी की स्टूडियो में और पीछे स्क्रीन पर शो गाड़ियों का। किसी की अपने घर या ऑफिस और किसी की गाड़ियों की रैली के रुप में। 

और भी कितने ही रुप-स्वरुप हैं, इलेक्शंस में वोट माँगने के अलग-अलग नेताओं के, अलग-अलग पार्टियों के। ठीक ऐसे ही जैसे, खास-म-खास उनके चिन्ह या झंडे? गाड़ियों की या जानवरों की किस्में या कम्पनियाँ, उनके रंग-रुप या Configrations, उनके नंबर या खास IDs, और कहाँ-कहाँ पर लगी हुई हैं? और भी अहम, वो कब, किस वक़्त, किसके या किनके साथ और कहाँ-कहाँ से गुजर रहे हैं? आपका माहौल क्या है, वो इन सबसे पता चलता है।

उस माहौल का आप पर या आसपास की ज़िंदगियों पर प्रभाव क्या पड़ता है या पड़ेगा? सब इसी में छुपा है। क्यूँकि, एक तो आप खुद एक सिस्टम हैं। ठीक ऐसे जैसे, किसी भी मशीन का कोई सिस्टम होता है, उसे चलाने का या ठीक-ठाक रखने का या खराब करने का या तोड़फोड़ करने का। उसपे, आपके आसपास के सिस्टम या कहो, माहौल मिलकर एक बड़ा सिस्टम बनाते हैं। जिसका सीधा-सीधा प्रभाव आप पर पड़ता है। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो सीधे-सीधे या गुप्त रुप से धकाया हुआ होता है, इन्हीं पार्टियों का, इसी सिस्टम का। 

जैसे, मान लो ये एक तस्वीर है    
क्या आप बता सकते हैं, की ये क्या है?     
           

  तस्वीरें नहीं, पहेलियाँ जैसे, "बूझो तो जाने?"  

लोगों को ड्रामों में तो उलझा दिया गया है, चाहे उनकी जानकारी से या अज्ञानता से। मगर उन ड्रामों के दुस्प्रभावों को बताए बिना। इसका किस तरह का असर, कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों पर हो सकता है या होगा? ऐसी-सी ही, कुछ और तस्वीरों को जानने की कोशिश करते हैं आगे।       

Sunday, September 22, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 52

राजनीतिक चालबाजियाँ  (Political Maneuvers)

शिव देखा? 

कृष्ण देखा? 

देख लिए सब भगवान? 

कौन रचता है इन्हें?

आते हैं कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे? 

और किन-किनके ये काम? 

ऐसे ही हैं सब जग में, जैसे Jag प्रधान?  

Jai Jagannath?

Jaggu को जानते हो?

और Jagga को?

ऐसे ही जैसे, कितने ही तरह के और nath?

इनके जोड़तोड़ से ही बनता है क्या, ये जग-प्रधान?

Jai Jagannath?   

और इनमें सबसे ऊँचा? 

Shri shri shri .....?

Shari? Ganesh-प्रधान?

या कोई और भी? 

ये चल क्या रहा है आजकल? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 51

Shadows Circus of Governance around the world is about day by day experience of over a decade’s observations, ranting and venting of extreme form of surveillance and human rights violations.

It’s about living in an invisible Bio-Chem, Physio, Psycho and Electric Warfare in a hostile zone.
The words and sentences revolve mostly around the impact and survival of living in an abusive and enforced big boss campus houses – H#16, Type-3 and H#30, Type-4.

While pouring all these emotions on my blogs “Rhythms of Life” and “Raaz Fiction, Illusion or High Tech. Crime?”, there was a conscious try and efforts to understand the circus of live theatre of governance around the world. In that try, I had to go throw official and unofficial humiliation, bullying, fraud cases after cases especially from 2017- 2021, violence and sedition charges and jail threats. At times, speaking the truth has its own consequences. Probably, that’s why there are some hurdles and delay in the publication of Campus Crime Series.

While trying to understand and write all this, came to know about this strange system, strange governance codes, strange elections, strange wars and peace accords, strange countries, strange boundaries, strange defense and civil system.

It’s like watching live political diseases, their origin, propagation methods and treatment strategies. Everything is wrapped up and entangled in secrecy, codes, metaphors or so-called classified information. Some of those codes are there in Shadows’ Circus of Governance, the way I could understand them.

Yes! Everything is strange in Orwellian World. Common people need to understand this, to make this world a bit better place to live. We are in that world, where accidents are planted, diseases are political, but operations and deaths are real and planted and assisted murders. Medicine and treatments of these diseases are designed codes of gamble!

Feeling like you have read it somewhere? Probably yes, if you are reading this blog since blah, blah time. My first book after resignation in 2021, Shadows Circus of Governance. 


आज कहाँ से आ गया ये पेज सामने?
 
Politial Maneuvers? 

कब क्या सामने लाना है, और क्या छुपाना है?
  
मैं तो ये सब लिखने के बाद, आगे और आगे ही चलती रही। इतना कुछ जो था लिखने को। कभी ऐसी पाबन्दियों के बीच, तो कभी वैसी। धन्यवाद करना चाहिए उन सबका, जिन्होंने इन सब अजीबोगरीब रुकावटों के बीच साथ दिया या रस्ते सुझाए। खासकर उनका, जिनकी वजह से आज तक ज़िन्दा हूँ। 

Elections and Hyper Dramas continue. लोगों को रोज़-रोज़ के भद्दे और खतरनाक ड्रामों से बचने की जरुरत है। ना की उनका हिस्सा होने की।  

Saturday, September 21, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 50

"Strange happenings" continue. Password diary containing almost all password is missing.

सीधा-उल्टा या उल्टा-सीधा? 



राजनीतिक चालबाजियाँ  (Political Maneuvers)

सोचो आपकी पासवर्ड बुक गुम गई, जिसमें आपके सब पासवर्ड थे। कहाँ गई होगी? घर पे तो आप ही रहते हो। आपके कमरे पे कोई आता-जाता भी नहीं। पहला शक़, अगर कोई आता-जाता होगा, तो उसपे होगा। मगर एक बच्चे पे पासवर्ड डायरी के गुम जाने का शक? बच्चा क्या करेगा भला? उसे इतनी जानकारी ही नहीं है। उसे तो पढ़ाया ही अब जा रहा है की पासवर्ड क्या होता है और उसे किसी को भी नहीं देना चाहिए। किसी दोस्त को भी नहीं। कल ही पढ़ा है उसने। हो सकता है बच्चे को कहीं कोई बहला-फुसला रहा हो? आखिर बच्चा तो बच्चा ही है। हो भी सकता है और नहीं भी। अगर बच्चा किसी के कहने पर ऐसा करेगा भी, तो गलती किसकी होगी? बच्चे का उस डायरी से कोई लेना-देना नहीं। खैर। 

आसपास निगाह दौड़ाओ। बदला है क्या कुछ? अरे। ये क्या? पड़ोस का खिड़की वाला काला फ़िशिंग नेट वाला हुक, ये क्या बन गया? और वहाँ से होकर, ये काली तार और कहाँ पँहुच गई? अकसर चीज़ें, जो कुछ चल रहा होता है, उसके आसपास घुमती नज़र आती है। हाँ, वो बढ़ाई-चढ़ाई हुई भी हो सकती हैं और बिल्कुल इधर-उधर घुमाई हुई भी। और भी कुछ बदला हुआ है शायद? ओह हो। कोई इधर से आया है क्या? या ये फिर से कलाकारी? बारजे के बाहर की रेलिंग को जोड़ने वाला V आकार का जोड़, थोड़ा बाहर की तरफ निकला पड़ा है। किसी के बैगर निकाले, अपने आप तो ऐसा संभव नहीं। या बारजे की साइड से चढ़ने की कोशिश में तो ऐसा हो सकता है। और कुछ भी बदला है क्या? अरे। ये कुत्ता कहाँ भोंक रहा है? खंडहर के खाली वाले ताऊ के घर के अंदर। ये भी पहली ही बार हुआ है। चाचा के लड़के ने, दादा के घर वाली कड़ीयां, जो इस खँडहर में पड़ी थी वो बेच दी। चलो, थोड़ी-बहुत तो सफाई हुई। इसी दौरान लगता है, उसने इसका बाहर का टूटा दरवाजा भी ढंग से बंद नहीं किया। तो शायद कुत्ते को अंदर आने की जगह मिल गई होगी। वो मौसी के खास 2-चेन्नई वाले कुत्ते शायद? (चेन्नई? ये कहाँ से आ गया? इसे हम "फ्लोरिडा डायरी" में पढेंगे। मेरी अपार्टमेंट-शेयर वाली लड़की थी उधर से)। ये काली तार वाले बदलाव भी उन्हीं के घर हुए हैं। हमारे इस खंडहर के बिलकुल सामने है उनका घर। और इस मौसी वाले चाचा (मौसा) का नाम  JAS ..., पता नहीं Duffers ज़ोन है आगे या DU या राम  जस कॉलेज, दिल्ली  से भी कोई लेना-देना हो सकता है?  वैसे तो तार सुना है और भी कई जगह भीड़ सकते हैं। जैसे सिविल लाइन्स दिल्ली, IP College For Women, Delhi, Communicable Diseases Research Institute के सामने। उस कॉलेज के बाहर उन दिनों पुलिस की गाड़ी आकर खड़ी होने लगी थी। कुछ खास हुआ था क्या? कोई शर्त लगी थी कहीं या कोई जुआ खेला जा रहा था? जिनके साथ खेला जा रहा था, उन्हें पता ही नहीं था। हॉस्टल में भी काफी कुछ चल रहा था। मगर तब ये सब समझ कहाँ थी? और सबकुछ, ऐसे पता कहाँ था? उस पर तो अलग से पोस्ट बनती है। वैसे आजकल केजरीवाल Jagadhari में रोड शो कर रहा है। ये भाई के पास कौन-सी Jagadhari और कहाँ से पहुँचती थी? या पहुँचाने वाले लोगों के नाम क्या हैं? सुरँग खोजो। कहाँ बनती है? बनाने वाले कौन हैं? और सप्लाई वाले कौन? कब-कब पहुँचती है? और कितना कमाते हैं वो इससे? और ऐसी राजनीती, कितनी ही ज़िंदगियाँ बर्बाद करती है। Investigation Process . एक ऐसा प्रोजेक्ट, जिसपे आप अपना वक़्त और पैसा लगा रहे हैं। फंड करती है क्या ऐसे प्रोजेक्ट्स को भी कोई एजेंसी? शायद?       

चलो, वापस पासवर्ड डायरी गुम है पर आते हैं। ऐसा क्या खास है उस डायरी में? बैंक या NSDL अकॉउंट पासवर्ड? बैंक में कुछ खास है नहीं। जिसपे महाभारत है, जो मुझे लगता है, Meagre Amount, उसकी कोड की राजनीती शायद काफी कुछ है। ज्यादातर राजनितिक पार्टियों के मुद्दे, उसी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। वो जो फाइल संगीता मैम की टेबल पर पड़ी है, अभी तक। वो अकॉउंट आसानी से नहीं खुलता। उसे मैं ही नहीं खोल पाती अकसर। वही फाइल, कहीं AAP पार्टी की हलचल बता रही है, तो कहीं दूसरी पार्टियों के मुद्दे? जाने क्यों, मुझे ऐसा लगा। हो सकता है मैं गलत हों। आप क्या कहते हैं?

और कौन से पासवर्ड हैं, उस डायरी में? मेल्स, ऑफिसियल मेल्स, पर्सनल मेल्स, कुछ-एक यूनिवर्सिटी के लॉगिन या रजिस्ट्री? मतलब कुछ खास नहीं। जो मेल्स हैं, वो तो कहीं भी मिल जाएगा। कुछ भी ऑनलाइन रखने की इतनी-सी सहूलियत तो है। 

तो इसके इलावा क्या खास हो सकता है, इस पासवर्ड डायरी के गुम होने का मतलब? किसी खास तारीख को हुआ है ये ड्रामा? जिन लोगों के आसपास मौतों के अम्बार लगे हों, उसके बावजूद, वो लोग ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे ड्रामों का हिस्सा हो रहे हैं? क्या कहा जाए? डायरी अहम नहीं है। राजनीती के संदर्भ में, लोगों को ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे ड्रामों का हिस्सा बना, उसमें उलझाना अहम है। ये ड्रामे ही लोगों में बेवजह के झगड़े, फासले और तनाव पैदा करते हैं। ये ड्रामों में उलझाना ही, कहीं ना कहीं बिमारियों, हादसों और मौतों तक का राज है।   
"ज्यादा 5-7 मत कर, 9-2, 11 कर दूँगी" कहाँ पढ़ा था, ऐसा-सा कुछ? अपने हरियान्वी, पढ़े-लिखे पुलिसऐ बताएँगे शायद? इस दौरान कुछ और भी हुआ है शायद? ये खास 5-7 की धमकी वाली काली चप्पलें, कहाँ से और किसके पैरों में आ पहुँची? जहाँ से आई हैं, उस घर में क्या चल रहा है? किसका है वो घर? एक बच्चे तक को अपने झगड़ों का हिस्सा क्यों बना रहे हैं वो? अरे। ये कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाईयाँ चल रही हैं, लोगों की ज़िंदगियों में? और कौन चला रहा है? राजनीतिक पार्टियाँ? मगर कितनी सफाई से? बोले तो, ऐसा-सा ही कुछ चल रहा है? राजनीतिक पार्टियाँ अपने-अपने नंबरों और कोडों को लोगों पर थोंप देती हैं। फिर वो कुछ नंबरों को आपके दुश्मन के रुप में आप तक पहुँचाती हैं। वो कोई भी सामान या सिर्फ कोई विषय या आपका विचार तक हो सकता है। और आपको उनसे लड़ने के लिए तैयार करती हैं। मतलब आपके दिमाग (software) को बदलना शुरु करना। सब कुछ सामने होते हुए भी, अदृश्य रुप से चलता है। ठीक ऐसे, जैसे बीमारियाँ। आपको जिसकी खबर तक नहीं होती की ऐसे हो रहा है। और आप इन राजनीतिक पार्टियों के शिकार होने लगते हैं। आगे पोस्ट में विस्तार से पढ़ने को मिलेगा ये सब, आपके अपने आसपास के ही उदाहरणों से।               
How to make human robots? क्या-क्या ingredients चाहिएँ उसके लिए? 
 
आओ थोड़ा सेफ्टी पर ध्यान दें ?
  

ज्यादातर मटेरिल, जो मैं किसी भी वेबसाइट से लेती हूँ, यूँ लगता है, जैसे कुछ कह रहा हो। अक्सर, यूट्यूब या सर्च में आगे रखा होता है जैसे। जरुरी नहीं, मैं उस सबसे सहमत हों। और ईरादा कहीं किसी को ऑफेंड करने का भी नहीं होता। बस, जैसे मुझे समझ आता है, मेरी जानकारी के अनुसार, वैसे रख देती हूँ। खासकर, अगर वो समाज के किसी फायदे का हो तो। ऐसे ही, ये UVM (University of Vermont, USA) का Tips For Personal Safety, Video सामने आ गया जैसे, Youtube खोलते ही।    
    
ये CBI आ गई या ED? या दोनों ही? :) 

या हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई वाली, राजनीती महज़? 


और वो Someone Else कौन है इस ड्रामे में? जिसे मुसीबत में डाला जा रहा है?  

Thursday, September 19, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 49

F is 

feminism for some 

funny for some 

and favroite for some 

and maybe final for some. 

Depends. 

The way 

D is di for some

dee for some 

dementia for some 

and maybe dangerous for some.

From R to M

seems an interesting change

M to ?

A, B, C, D, E, F, G, H, I, -----Z?

can be another interesting change.

This is an interesting world of possibilities.

But

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 48

Editing is much more than that.

As far as I could understand, 

It changes papers and edit them as per time and political requirements. It changes ranks of people, who are nomore. It changes degrees or make them missing, lost in some cases. How does it would make a difference to the people who are nomore? That's the point. It makes living beings dead and dead ones living, that's the real drama; political and systematic. It was happening with classes, labs records, I noticed that and thought, how much difference it would make? Then it started happening with official documents. But almost at the same time, I started realizing that it would not make much difference. As almost whole data was online. 

Then when I came home and started realizing few such things, then allowed kalakars of whatever side, those changes. 

Where those changes happened?

What difference such changes or alterations could make in people's lives?

Can they create diseases?

Can they kill people?

Would it make any difference to politics of this side or that side? Probably, lilbit. And probability is a big word in politics. It's interesting to watch parties and politicians so closely, doing those political maneuvers.

Tuesday, September 17, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 47

 A revolution in drug discovery

Defying the incurable

Interesting topic as well as presentation. 

What would happen if something can be rotated 180°?  

Can each word define something good or some terrible happening of future in such rotation?

Or depends, how day by day so many things change in the surrounding, along with such codes? And in so many cases, so many mishappenings could be avoided? But by whom? Sure, not by politicians or coded world fighters. But by people who work for the betterment of living beings.

Somewhat like this


Image from wikipedia

Wonder, if unicorn and unicode are one and same thing?

A = V down and blocked and broked into 2 pieces
B = E Blocked
D = C Blocked
E = 3 blocked
F = 2 blocked
K = V block or V up and down
R = V zero
and so on

Tried to understand some such alphabets in Times of India editorials. What does that mean? Something same? Few such designs somewhere were the indication of some danger zone? And still they are? Also took some lives? Or those lives were already on some danger zone or point or place and these signs were just danger signals? Or somehow such designs also help in amplifications or some kinda manifestations like some catalysts? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 46

 और एक ये कलाकार हैं  

They are eating the dogs

They are eating the cats

Donald Trump and भुझो तो जाने? 


वक़्त-वक़्त और समाजों के हिसाब-किताब की बातें जैसे? 

वैसे हमारे यहाँ जब-जब Monkeys दिखाई देते हैं, जाने क्यों दिमाग में आता है, की ये कौन-सी पार्टी या नेता/ओँ को रिप्रेजेंट कर रहे हैं, इस कोडेड ड्रामे के अनुसार?    


ऐसा-सा ही कुछ, "बुझो तो जाने?"  


थोड़ा-सा Edited Version, 
(जहाँ से ये फोटो ली गई है, फिलहाल उसकी पहचान छुपाने के लिए।)
 
आगे आएँगे ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, बुझो तो जाने के सवालों-जवाबों या शायद कुछ खास प्रोजेक्ट्स पर ऐसी-सी ही कुछ जगहों से। 

Monday, September 16, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 45

 किताबवाड़े से: लेखन, पत्र और पात्र

कुछ रौचक किस्से- कहानियाँ, अपने बुजर्गों के किताबवाड़े से। इधर-उधर, बड़े-बड़े लोग, अपने पुरखों के फरहे निकालते हैं और सोशल मीडिया पे रख देते हैं। अपनी सम्पनता की धरोहर के रुप में? अगर यही धरोहर है, तो थोड़ी-बहुत तो ये हमारे पास भी है। जाने कैसे बची हुई? क्यूँकि, हमारे बच्चे किसी बुजर्ग के जाने के बाद ऐसी धरोहर नहीं, बल्की ज़मीन-जायदाद के कागज, कॉपी या सोना-चाँदी या प्रॉपर्टी जैसा ही कुछ संभाल कर रखते हैं। और उसपे भी झगड़ते ही रहते हैं, ताउम्र जैसे। बजाय की ऐसा कुछ खुद भी कमाने के। एक-आध, थोड़ा आगे निकल, वो सब बेच भी देते हैं शायद? बाकी को वो, जाने कहाँ चलता कर देते हैं? उसमें से थोड़ा-बहुत, बचा-कुचा, उसकी कद्र करने वालों को मिल जाता है, बेक़द्र-सा पड़ा हुआ कहीं। रुचियाँ अपनी-अपनी? पसंद अपनी-अपनी?       

आपके दादा, पापा, चाचा-ताऊ, मामा-नाना वैगरह क्या बात करते होंगे आपस में? वो भी पत्रों के माध्यम से? यहाँ से दादी-माँ, चाची-ताई, मामी-नानी वैगरह के पत्रों की कोई बात क्यों नहीं है? शायद वो इतनी पढ़ी-लिखी नहीं रही होंगी? या ऐसा कोई शौक नहीं रहा होगा? एक झलक उस वक़्त की, जिसे हमने या तो देखा ही नहीं, क्यूँकि, बाद में पैदा हुए। या बहुत छोटे रहे होंगे। जैसे कोई चाचा-ताऊ या मामा-बुआ के लड़के आपस में बात करते होंगे, तो क्या लिखेंगे? निर्भर करता है, कैसे समाज या माहौल में रहते हैं और क्या करते हैं? भाषा क्या रही होगी? हिंदी, इंग्लिश के साथ-साथ, उर्दू और पंजाबी भी शायद? डिग्रीयाँ कैसी और कहाँ से होंगी? पत्रों पर टिकट कैसे होंगे? कोई बेटा घर छोड़ गया या कहीं मर गया शायद, तो किसी बाप ने कहाँ-कहाँ धक्के खाए होंगे? उस वक़्त के कितने ही लोगों को अपने जन्मदिन या शादी की सालगिरह तक पता नहीं होंगी। मगर कहीं न कहीं, इन्हीं पत्रों में शायद उनके भी जवाब होंगे?  

उस वक़्त के पाकिस्तान वाले पंजाब से लेकर, बॉम्बे (मुंबई अब), कोचीन, विशाखापटनम और विज़ाग (या दोनों एक ही हैं?) तक हिस्सों से, आम आदमी की ज़िंदगियों को बयाँ करते कुछ किस्से-कहानी, इन पत्रों की ज़ुबानी। वैसे तो ये थोड़े-बहुत पहले भी पढ़े हुए थे। मगर, अब शायद थोड़ा और कोड वाले इस जहाँ को और इसके ज़िंदगियों पर प्रभावों को समझने के लिए फिर से उठा लिए। तो अबसे आपको कहीं-कहीं इनसे सम्बंधित पोस्ट भी मिलेंगी।  

Saturday, September 14, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 44

Code-Decode, Politics, Governance and Coded World Impact on Life 

जानने की कोशिश करें, थोड़ा-खट्टा, थोड़ा-मीठा, थोड़ा-कड़वा और थोड़ा-तीखा? 

हरियाणा के इलेक्शंस के अबकी बार मुद्दे क्या हैं?

वही, जो सालों से रहे हैं? दशकों से रहे हैं? आरोप-प्रत्यारोप भी वही? या कोई खास बदलाव है?

घौटाले?

जमीन घौटाले?

शराब और ड्रग्स भी हैं क्या? वो शायद दिल्ली और पंजाब के ज्यादा अहम हैं?


बिजली? पानी? स्कूल? कॉलेज? यूनिवर्सिटी? नौकरियाँ? बेरोजगारी? क्या आज भी रोटी, कपड़ा और मकान तक ही अटके हैं हम? अरे नहीं, थोड़ा-सा तो आगे बढ़े हैं शायद? 

जैसे अब एक रैंक, एक पेंशन मुद्दा नहीं है? उसका समाधान तो कब का हो चुका? अब तो सेनाओं के मुद्दे उससे थोड़ा आगे निकल गए? जैसे अग्निवीर? सैलरी नहीं, पेंशन। सिर्फ पेंशन नहीं, बल्की पुरानी या नई? बल्की, कहना चाहिए बुढ़ापा पेंशन? अब बुजर्गों को भी कुछ तो चाहिए, ना? और अजीबोगरीब से वादे। कोई कहे 3000, कोई कहे 6000 हर महीना?

सैलरी की कोई बात नहीं है। लगता है, हमारे यहाँ बुजर्गों की जनसँख्या ज्यादा हो गई है, युवाओँ की बजाए? या शायद चीन में कोरोना के बाद खासकर। तो इलेक्शन कमिशन वाले (?) बता रहे हैं की वहाँ अब रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा दी गई है। भारत के इलेक्शन कमिशन वालों को, चीन की खबरें ज्यादा रहती हैं शायद। पता नहीं इसका, ऑफिसर्स खा गए फलाना-धमकाना से भी कोई लेना देना है क्या?   

और भी इसी तरह के थोड़े अटपटे से मुद्दे हैं। पहली बार सुना, तो सच में अजीब लगा था सुनकर। शमशान घाटों का रखरखाव? अरे, ऐसे-ऐसे भी मुद्दे होते हैं? ये तो कभी सुना या सोचा ही नहीं, की दुनियाँ से गए हुए लोगों को भी इस तरह का सम्मान चाहिए? 

g R ave ya R ds?   

पहले किसी ऑनलाइन किताब में पढ़ा था। और फिर किसी नेता के प्रोग्राम्स इनके आसपास थे। ऑनलाइन लाइब्रेरीज और शमशानघाटों के रखरखाव के लिए पैसे।  

Online libraries, चलो ये तो अच्छा मुद्दा है। 

अब हरियाणा का जिक्र हो और किसान का जिक्र ना हो, तो ये तो नाइंसाफी है, हरियाणा के साथ। तो ये तो खास मुद्दा हो गया। MSP, जैसे टमाटरों का रेट? जैसे 6 Rs में खरीद कर 2.5 में बेचोगे तो? वैसे ये कौन से और कहाँ के टमाटरों का हिसाब-किताब है? ये तो कहने वाले नेता ही बेहतर बता सकते हैं। 

वैसे हरि याणा के सरकारी स्कूलों के हालातों की कोई बात नहीं करता। क्यों? क्या करना है, सरकारी स्कूलों का? प्राइवेट करो सब? वैसे सुना खट्टर ने तो 5000 सरकारी स्कूल ही बंद कर दिए? कोई खटारा नेता ही कर सकता है ऐसा काम तो। नहीं? कैसे-कैसे तो कोड धरे हैं ना? समझ ही ना आए, की क्या का क्या बना देते हैं ये नेता लोग?

ऐसे ही जैसे, teacher और adhyapak अलग होता है? ऐसे-ऐसे कोढ़ो के अनुसार जब समाज चलेंगे, तो क्या होगा? अब ये खटारा वाला जहाँ तो, सच में खटारा हो जाएगा। ऐसे ही जैसे शमशान वाला? शमशान-शमशान हुआ? या फिर ऐसे ही जैसे वायरल वाला world take over हुआ? कैसे-कैसे Closure हैं ना दुनियाँ में? मैं भी सोचूँ, ये रोज-रोज क्या closure-closure वाली ऑफिसियल मेल आ रही थी ना उन दिनों? जब दुनियाँ भर में मौतों की भरमार हो रही थी? जाने वो कैसा System Shutdown था? कैसी OXYGEN खत्म हो गई या कैसे-कैसे valve closure होते हैं?

खुरापाती दिमाग या उत्सुक या जिज्ञासु दिमाग, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे कोड जानकर, कितनी ही मौतों के Type of closure के बारे में तो जानना चाहेगा। जैसे सुनन्दा पुष्कर की मौत का बहाना कौन से type का closure रहा होगा? ऐसी-सी और भी कई विवादित या सेलेब्रिटीज़ की मौतें? मगर ये वाले कोड शायद कुछ ज्यादा ही गुप्त रहते हैं? जो इन्हें बाहर निकालने लगता है, उनपर शिकंजे कसने लगते हैं? मगर सब पर नहीं शायद? और ऐसे-ऐसे विषय इलेक्शन के मुद्दे भी नहीं होते। गुप्त भी नहीं। उन्हें तो और ज्यादा परतों के अंदर रखने की कोशिशें होती हैं। 

एक और कोई ऐसे ही किसी नेता को सुन रही थी तो कह रहे थे, हम अच्छे-अच्छे सरकारी स्कूल बनवा सकते हैं, वो इनके वश का नहीं। हम सरकारी हॉस्पिटल्स की अच्छी सुविधाएँ दे सकते हैं, वो इनके वश का नहीं। या फिर कोई कहे जैसे, की हमने इतने कम समय में इतनी यूनिवर्सिटी बनवाई, IIM बनवाए या AIIMS खोले। यहाँ पे पॉइन्ट बनता है। जो जिसमें बढ़िया है और जितना बढ़िया है, क्यों ना उसे, उसी अनुसार उतनी सीट दे दी जाएँ? इतने काम के लोगों को जेल देने की बजाय, उतना ही ज्यादा, उनकी खुबियों के अनुसार काम ना दे दिया जाए। 

जेल और बेल कैसे होती हैं, ये भी शायद थोड़ा-बहुत अभी समझ आया है। उस पर फिर कभी। वैसे ये CBI को Caged Parrot क्यों कहते हैं? क्या, King is Singh (थोड़ा उल्टा पुल्टा हो गया शायद?) के कलाकारों से कोई लेना-देना है इसका?   

जैसे एक तस्वीर है टोटे की 

और एक टाबर या मैना की?

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 43

 महम काँड से MDU काँड तक (Organized violence against a female faculty within campus residence) 

कुछ लोग इनको दंडवत सलाम करते हैं? 

और कुछ?

गुंडा कहकर इनके कारनामे बताते हैं?  

क्या आज भी ज्यादातर नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के यही हाल हैं?

जैसे की पहले भी लिखा, राजनीती, सिस्टम और गुप्त-गुप्त (Coded) संसार, और उसका प्रभाव जीवों पर, खासकर इंसानों पर, कैसे और क्यों पड़ता है? ये मेरे अध्ययन का विषय है। मेरी ना ही कभी राजनीती में कोई रुची रही और ना ही खास मीडिया में। राजनीती से नफरत की वजह मेरा अपना गाँव, जो हिंसक राजनीती का गढ़ रहा है कभी और उस दौर के नेता। वो फिर चाहे कांग्रेस हो या चौटाला। कांग्रेस को मैं हमेशा अपने गाँव के नेता आनंद दांगी से जोड़कर देखती हूँ। इस नेता के कारनामों का बचपन में जो असर मानसपटल पर पड़ा, वो कभी गया ही नहीं। मीडिया की भूमिका को थोड़ा पास से जाना, जब 2014 में सेक्रेटरी, मडूटा बनने का मौका मिला। इसी दौरान मीडिया से भी मुलाकात हुई। मतलब कोई भी खबर कैसे दिखानी है या बतानी है, वही आम लोगों की धारणा बनाता है। चाहे वो हकीकत के बिल्कुल विपरीत ही क्यों ना हो। ऐसे से ही कुछ एक बहुत ही छोटे-मोटे से कारनामे, उस छोटे से एक साल के सफर में भी रहे। वहीं से ये भी समझ आया की बड़े स्तर पर फिर मीडिया की क्या भूमिका होती होगी?          

ज्यादातर नेताओँ के अगर आप इंटरव्यू देखेंगे, तो कुछ-कुछ ऐसे ही मिलेंगे। 

जैसे ये  


भोले-भाले, जैसे, कितने बेचारे?
पाक-साफ़? 
तन के उज्जवल?
मन के काले?
और कारनामों के भी? 

या हो सकता है मैं गलत हों? 
   
जानने की कशिश करते हैं हरियाणा के कुछ नेताओं या पार्टियों के बारे में। तो क्यों ना अपने घर (गाँव) से ही शुरू किया जाए?   

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 42

Code-Decode, Politics, Governance and Coded World Impact on Life 

Soni -

Fication?

No VIP-sm Please 

LADDU Khao?


Employement or Pension?

Old or New?

3000 per month?

"अब तो खट्टर साहब कह रहे थे की, 45 की उम्र के बाद भी मिलेंगे" फलाना-धमकाना को? 

Or 6000?

अरे वो आपके उनको भी तो मिलेंगे 6000?

1-लाख सालाना घर की बुजुर्ग महिलाओँ को भी देंगे?

     

Land Grabbers 17 to 47? 

जमीन हड़पू, कितने से कितने करोड़ी हो गए? खासकर कोरोना के बाद?

या पहले भी ऐसे किसी खास ऑपरेशन्स के बाद?   

Ki    ss    an?           Fa    R    meR?

ये हमारे  हरि       याणा की राजनीती के महान योद्धाओं Errr राजनेताओं के वचन हैं। या कहना चाहिए की उनके मैनिफेस्टो के अहम मुद्दे? असलियत में इन सबके मायने क्या हैं, आम आदमी के लिए? आम आदमी इन्हें कैसे देखता है? और इनकी हकीकत का आईना क्या है?

जानने की कोशिश करें थोड़ी? थोड़ा-खट्टा, थोड़ा-मीठा, थोड़ा-कड़वा और थोड़ा-तीखा? 

Thursday, September 12, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 41

Micromanagement?

The 

Edit?


And what kinda edit is this?

टाँग तोड़कर हॉस्टल से out करना और 
सैक्टर 14 पहुँचा कर टुनटुन बनाना?  


SUV Edit?

ये editors की जानकारी वाले बताएँगे की editor कैसे बनते हैं?

What kind of edit is this? 

Y Edit?
SUV Edit?
RG Edit?
3D Edit? Or 4X4?

How many types of technologies and resources are used or abused? 
 
They can be chapters of reflections? Y Edit? SUV Edit? RG Edit, 3D Edit? Or 4X4?

इंडिया के इलेक्शन का साँग समझ लूँ थोड़ा, उसके बाद US के इलेक्शन की रिपोर्टिंग पे आऊँगी। 
System, governanace and coded world impact on life? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 40

4X4 Design? and "Security Threatre"?

Theatre of Extreme Suveillance Abuse and Human experimentation? 

That's also without consent or information to the concerned person?

Assests Or Liabilities?

What if you come to know or have been told something that, "Kejriwal is attached with your saving as a liability? And that's known as 614?"

If so, then what about any other party or politician, who is an assest or a liability within the same criteria? 

Modi?

Rahul Gandhi?

Hoodas?

Chautalas?

Any Other?

What kind of liability or assest are these politicians? Academic jobs and politicians as assests or liabities in academics service saving of any employee? And these strange hidden liabities or assests will decide, what someone would get from that saving or what not and when? Like some commissionkhor? 10% commision, 20% commission, 30% commission and so on? Hafta wasooli?

If liability, then all people who got jobs on this coded design in October 2008 must go or out?

And all others also, after that so called edit? 2010, 2012 jobs within the same institute or oragnization? That is UIET and MDU? 

Or this list must be extended outside also, then be it civil or defence? As outsiders are bigger stakeholders or human experimenters and theatre of extreme surveillance abusers? And what is their relation with jobs since 1999?

Start from 2000? Or 2001 "Air" "Force" Design? Or wonder, if Army was there even before that? What someone informed about some army person hostel, Dev Colony? And some joinings or jobs since 1999 to "Army"? Same must be true about Navy or any other field?

It means, all types of jobs are under dubious clouds? As they say even CJI, PM, CM etc.? Even if people have earned them by sincere efforts and hard work and had no idea about any such hidden coded world or fights? But so many knew even then within this circle also, as per their own revealing?

Scheme SFS, what I know about this is Self Financing Scheme (at par with government service) except, "there will be no job in case of non survival of this department". 

Wonder, if that department is still there or nomore? If it's still surviving and doing well or nomore?

And how much outsiders interference in this institute UIET as well as MDU, are responsible for this mess? 

I came across some interesting code SFS?

School of Foreign Service?
Georgetown University, Washington

Your views about this? 
Special Interview?

Student Faculty Student?
Or RSS?
Or Rahul Gandhi (RG?), Liability or Assest?

Wednesday, September 11, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 39

 Closure से आप क्या समझते हैं? 

आम आदमी की भाषा में? या कोड की भाषा में? 

Closure के साथ Valve जोड़ दिया जाए तो?

Valve Closure?

मतलब?

नीचे दिए गए ट्वीट को पढ़ें, बड़ा ही रौचक है।      


https://www.onmanorama.com/content/mm/en/kerala/top-news/2024/09/09/thiruvananthapuram-water-crisis-kwa-issues-shutdown.html

जाने क्यों, इन ट्वीट में कुछ missing है, जो मैंने पढ़ा था? या वो temporary पढ़ाने या समझाने के उद्देश्य से ही किया गया था?
System Shutdown?     

और Valve Closure में क्या फर्क है?

ये सिर्फ दो शब्द, कितनी मौतों का सन्दर्भ हो सकते हैं? कोड वाले राजनीतिक सिस्टम की भाषा में?

आप सोचिए, जो ये सब पढ़ रहे हैं। 

थोड़ा इंतजार करते हैं मीडिया का और इधर-उधर के जानकारों से और जानकारी का। वैसे, काफी-कुछ शायद, मुझे समझ आ रहा है। 

More information please    

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 38

देखने समझने में जो आया, वो ये, की कुछ-कुछ ऐसे ही अखाड़े, आसपास की बहुत-सी बिमारियों और मौतों तक का कारण बने, या कहो की जबरदस्ती जैसे, बना दिए गए।    

जबरदस्ती भला कैसे? 

दो अलग-अलग लोगों, परिवारों या परिवेशों या हालातों या परिस्थितियों को एक जैसा-सा दिखाकर। लोगों से उनकी पहचान (Identity) छीन कर। वो भी, अदृश्य ना होते हुए भी, गुप्त तरीकों से। छोटे-मोटे लालच, डर या मानसिक अत्याचार करके। कैसे भला?

आपको मोदी पसंद है?

ना 

क्यों?

कल पैदा हुआ बच्चा बोल रहा हो जैसे, मेरे से पहले कुछ था ही नहीं और ना ही आगे होगा। 

मतलब?

मतलब, 2014 से पहले भी दुनियाँ थी और है। या कहना चाहिए की 26 मई, 2014 से पहले भी दुनियाँ थी, है और रहेगी। वैसे ही जैसे 28 दिसंबर, 2013 से पहले या बाद में। ऐसे ही किसी भी नंबर के बारे में सच है। फिर वो मोदी हो या नेहरू। हूडा हो या चौटाला। केजरीवाल हो या कोई और। मगर, शातिर लोगों ने उसे आपसे जोड़कर, मानसिक अत्याचार जैसा शुरू कर दिया है। वो खुद उससे फायदा लेने, और आपका नुकसान करने या करवाने में लगे हुए हैं। राजनीती में किसी भी नंबर का महत्व, कुछ वक़्त के लिए और उस खास वक़्त में भी किसी खास जगह के लिए होता है। उसके बाद जरुरी नहीं हो। या उससे अलग जगह पर भी वैसा ही हो। 

जैसे मोदी तो 2014 से पहले भी था। मगर PM नहीं ,बल्की CM और उससे पहले भी था। मगर CM नहीं, कुछ और। राजनीती में किसी भी नंबर का महत्व हमेशा एक जैसा नहीं होता। ऐसे ही सबके लिए, उस नंबर का महत्व एक जैसा नहीं होता है। वैसे भी मोदी का जन्मदिन 2014 में या केजरीवाल का जन्मदिन 2013 में नहीं हुआ। वो किसी खास राजनीतिक कुर्सी के जन्मदिन के नंबर हैं। उसपे जिस तारीख या साल को वो CM या PM बने, आपका जन्मदिन भी जरुरी नहीं, उस दिन का हो। वो अगर CM या PM नहीं रहेंगे, तो भी आपके घर में आपकी जरुरत या अहमियत थोड़े ही खत्म हो जाएगी। मगर, राजनीतिक पार्टियाँ, ऐसे-ऐसे कुकर्मों में, घड़ाईयों में लगी हुई हैं। और बच्चों तक को बेवकूफ बना रही हैं। इसीलिए, वो किसी को किसी के घर से या नौकरी से या किसी जगह से कहीं और ही धकेलने लगते हैं। वो भी जबरदस्ती, खासकर उन्हें, जिन्हें ये सब समझ आने लगा हो।       

राजनीती के लिए कोई खास नंबर, कोई कुर्सी पाने का तरीका, मतलब गोटी भर हो सकता है। मगर, किसी परिवार के लिए, वो ना तो कोई कहा गया राजनेता या कुर्सी है और ना ही कोई गोटी। जिसे जब जहाँ चाहे, जैसे, राजनीतिक स्वार्थ के लिए गोटी-सा चल दिया जाए या चलता कर दिया जाए। कितने ही बच्चों और बुजर्गों तक के साथ ऐसा हो रहा है। वो भी उनकी जानकारी के बैगर। आम आदमी को राजनीतिक गोटियाँ बनने से बचना होगा। फिर वो कोई भी नंबर हो या कोड या जगह या समय। गोटी बनना खतरनाक है। आपके कुछ खास नंबर, आपके अपने हैं और हमेशा वही रहने हैं। राजनीती के तो बदलते रहते हैं। आपके अपने, आपके अपने हैं और हमेशा रहेंगे। मगर, राजनीती में तो माँ-बेटा तक या बहन-भाई या भाभी तक एक दूसरे के खिलाफ लड़ सकते हैं या होते हैं। कितने ही राजनीतिक घरानों को देख लो। वो आपके रिश्तों और ज़िंदगी का आदर्श नहीं हो सकते और ना ही होने चाहिएँ। नहीं तो जो उनके यहाँ मचा हुआ है, उससे कहीं खतरनाक आपके परिवार और आसपास होना शुरू हो जाएगा। उनके पास संसाधन, ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी सब है, बुरे प्रभावों से बचने के लिए। आपके पास इनमें से शायद कुछ भी नहीं? या बहुत कुछ नहीं है। उस स्तर के आसपास भी नहीं। 

जिस गोटी को वो आज लालच दिखाएंगे, कल जरुरत पड़ने पर खा भी जाएँगे। मतलब, बिमार कर देंगे या किसी भी तरह का नुकसान कर देंगे। या खत्म ही कर देंगे। आपके अपने ऐसा नहीं कर सकते। आसपास हुई मौतों की कहानियाँ या बीमारियाँ ऐसी-सी ही हैं। राजनीती ने उन्हें अपने हिसाब से गोटी-सा यहाँ-वहाँ चला। जहाँ जैसे चाहा, प्रयोग किया और जहाँ जैसे चाहा दुरुपयोग या खत्म ही कर दिया। क्यूँकि, उन नंबरों की अब उन्हें जरुरत ही खत्म हो गई। या वही लाभदायक नंबर या कोड, उनके लिए नुकसान का सौदा हो गए। तो चलते कर दिए। उसमें किसी का बाप, किसी की माँ, किसी की बहन, किसी का भाई, किसी का बच्चा, बुआ, चाचा, ताऊ,  दादा, दादी, नाना, नानी, मामा, मामी, और भी कितनी ही तरह के करीबी अपने थे। राजनीती और सर्विलांस एब्यूज सिर्फ मारता ही नहीं है बल्की आत्महत्याएँ भी करवाता है। वो भी अपने चाहे नंबरों पर? आदमी को राजनितिक गोटियाँ भर समझने वाले इतना सब खा गए। उनके अपनों को, उन लोगों की अब भी जरुरत थी या है। और दशकों रहनी थी। किसी अनाथ हुए बच्चे से या खाली-खाली से घर से पूछो। अपने आसपास नज़र दौड़ाओ। इस बेहूदा और क्रूर राजनीती को और इन राजनीती वालों को अपने घर ही नहीं, बल्की, आसपास तक मत फटकने दो। और आप इन्हीं के इशारों पर, एक दूसरे के ही खिलाफ लगे पड़े हैं?    

कोई बच्चा पूछे की उसके अपने को अब वापस कैसे ला सकते हैं?

तो राजनीती बताएगी ना। उसकी जगह और गोटियाँ रखके। ये, ये नंबर और ये, फलाना-धमकाना नंबर आ गया, राजनीती का घड़ा हुआ। कैसे? कोड थोड़ा जटिल विषय है। इसलिए अभी सिर्फ नाम से ही समझो। कौन नाम कहाँ गया, आपके आसपास से? उसकी जगह कौन-सा नाम कहीं और से उठकर आ गया? या इसका उल्टा भी शायद? रोशनी, रितु, पूजा, विराज, सिर्फ कुछ एक उदाहरण हैं। जटिल कोड को समझने की कोशिश करोगे तो आसपास की सब मौतें गिन लो। राजनीती, सिर्फ लोगों को मारती ही नहीं है या यहाँ या वहाँ ही नहीं धकेलती, बल्कि, एक-दूसरे से जैसे, बदलने का काम भी करती है। 

और भी बहुत कुछ है, इस कोड में। इन सबसे निपटने के हल भी इन्हीं कोड में हैं। कैसे? जानने की कोशिश करते हैं आगे, जितना मुझे समझ आया।                  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 37

मान लो आपको किसी ने घर से निकाल दिया या परेशान होकर आप खुद ही छोड़ आए। वो घर, आपका अपना भी हो सकता है, ससुराल का भी और कोई सरकारी मकान भी। 

आप छोटे-मोटे, रोज-रोज के लड़ाई-झगड़ों से बचने के लिए और अपनी या अपने बच्चे की शांति और समृद्धि के लिए छोड़ आए हों या जबरदस्ती किसी भी तरीके से निकाल दिए हों, तो क्या करेंगे? अपने माँ-बाप या किसी रिस्तेदार या दोस्तों के घर रहने लगेंगे? मगर कब तक? और क्यों? आपका अपना घर क्यों नहीं हो, जहाँ किसी की औकात ना हो, आपको निकालने की या ऐसा कुछ अहसास करवाने की, की ये घर आपका नहीं है?

उसके लिए पैसे चाहिएँ, शायद वो नहीं हैं आपके पास, जिस किसी वजह से? शायद होते हुए भी ना हों? किसी ने कब्ज़ा किया हुआ है उसपर, खास आपको कंट्रोल करने के लिए? खेल ही सारा कंट्रोल का है। जाने कैसे लोग, किसी दूसरे की ज़िंदगी का कंट्रोल चाहते हैं? वो कोई सास-ससुर, पति, नन्द भी हो सकते हैं। और कोई और, किसी भी तरह के रिस्तेदार भी। या सरकारी माई-बाप भी? आप जिस चीज़ से परेशान हैं, कहीं वही सब ये राजनीतिक पार्टियाँ, आपको भी तो नहीं सिखा रही? 

आप किसी के अनचाहे कंट्रोल से परेशान हैं? वही ये राजनीतिक पार्टियाँ, आपको सिखा रही हैं? और आपको समझ तक नहीं आ रहा? और कुछ केसों में तो ऐसा है, की सारा पैसा भी सामने वाले के कंट्रोल में नहीं है। अपना घर बनाने लायक, आपके पास पैसा है या ऐसा कोई जुगाड़ हो सकता है? हमारे पारम्परिक बुजर्गों ने तो नहीं रोक दिया कहीं आपको? आप क्या करोगे घर का? ससुराल वाले कब तक रखेंगे ऐसे? या माँ-बाप का घर तो आपका ही है ना? चलो मान लिया। फिर भी अगर, एक आपका घर या कोई ज़मीन-जायदाद आपके नाम भी हो जाए, तो बुराई क्या है? बाप, भाई, पति या बेटे के नाम ही घर या ज़मीन-जायदाद क्यों हो? क्या हो, अगर वो आपके नाम भी हो तो? आधी दादागिरी या निकल मेरे घर से की ऐंठ तो, वहीं खत्म। वो खत्म, तो ज्यादातर लड़ाई-झगड़े भी। अगर ये सब करने भर से ज्यादातर लड़ाई-झगड़े खत्म हो रहे हों, तो इसका मतलब क्या है? सामने वाला लालची है। उसे इंसान या रिश्तों की कदर नहीं है, सिर्फ प्रॉपर्टी, पैसे और जमीन-जायदाद की है। तो ऐसे लालची इंसान से अपना हिस्सा लेने में कैसी दिक्कत और क्यों? यहाँ पे भी हमारे घोर पारम्परिक, शायद ये कहें, अरे तुम क्या करोगे लेकर? बच्चों के नाम करवा दो? तो एक कदम और आगे बढ़ाओ। बच्चों के भी और अपने नाम भी क्यों नहीं? 

जो खाते-पीते घर का होने का दावा करते हैं, तो क्या उन्हें ये नहीं मालूम की खाते-पीते घरों में तो प्रॉपर्टी सबके नाम होती है। क्या बेटा, क्या बेटी, क्या भाई या बहन फिर? अब आप इसलिए तो चुप नहीं हो गए, की ऐसे तो बुआ की भी बनती है। माँ की भी और बेटी की भी। और पति की भी बहन या बहनें हैं? कितने दोगले हैं आप भी? खैर। आपको अपना घर फिर भी बनाना चाहिए। अगर आपके पास किसी भी तरह का पैसा या ज़मीन जायदाद है या कोई नौकरी है, तो वो बहुत मुश्किल नहीं। आज के वक़्त में खासकर, अपनी इज्जत करवाना चाहते हो, तो बंध करो बहुत वक़्त किसी के भी घर रहना या किराए के घर में रहना। हाँ। अगर सरकारी मकान है, तो शायद, बात अलग हो सकती है। क्यूंकि, उसके लिए HRA मिलता है। और किराए के रुप में जो देना पड़ता है, वो कोई खास नहीं होता। 

वैसे पक्षी, जानवर तक अपने बच्चों को अपना घर बनाना और कम से कम अपने लिए कमाना तो सीखा ही देते हैं। इंसान, वो भी नहीं सीखा पाता क्या? इसका मतलब, वहाँ के सामाजिक ताने-बाने में कंट्रोल की भावना हद से ज्यादा है। और समाज को कंट्रोल करने वाले ये ठेकेदार नहीं चाहते, की लोग उनके कंट्रोल से बाहर अपनी ज़िंदगियाँ जिएँ। कुछ तो ऐसे-ऐसे महान भी हैं, जिन्होंने अपनी बहनों या बेटिओं और माओं तक के नाम प्रॉपर्टी करवाई हुई है और दूसरों को ज्ञान पेल रहे हैं, अरे तुम क्या करोगे?      

देखने समझने में जो आया वो ये, की कुछ-कुछ ऐसे ही अखाड़े, आसपास की बहुत-सी बिमारियों और मौतों तक का कारण बने, या कहो की जबरदस्ती जैसे, बना दिए गए।    

जबरदस्ती भला कैसे? जानते हैं आगे 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 36

आपका फोकस कहाँ है?

आपकी अपनी और आसपास वालों की ज़िंदगी को आगे बढ़ाने में है? या किसी और की ज़िंदगी को खराब या खत्म करने में? 

राजनीतिक पार्टियाँ, आपको क्या सीखा रही हैं?

इसकी नौकरी छुटवानी है?

इसका घर छुटवाना है?

इसके पैसों पे ताला लगाना है?

या इसके पैसे या ज़मीन-जायदाद, इधर-उधर बाँटना है?

या उन्हें अपने कब्जे में करके, कुत्तों की तरह टुकड़ों में जब चाहे देना है या नहीं देना?

ऐसा कौन और कैसे लोग सिखाते हैं किसी को?  


ये राजनीतिक पार्टियाँ, आपको ये क्यों नहीं सीखा रही - -

आपको अपना कोई रोजगार, काम या नौकरी करनी है?

आपको अपना खुद का घर बनाना है?

आपको अपने आसपास से भी ज्यादा पैसा, अपनी मेहनत से कमाना है, ना की किसी का हड़प कर?

आपको अपना घर और आसपास साफ़ स्वच्छ रखना है?

ये सब आपके अपने हित में है। और आपके आसपास के भी।        

और हम इस सबमें आपकी सहायता करने के लिए बने हैं। ना की बेवजह के खूँटे गाडने के लिए या लोगों को आपस में भीड़वाने के लिए। या किसी का बुरा करवाने के लिए नहीं। 

और आप इस काबिल हैं। बल्की, मुझे तो लगता है की हर इंसान, सिर्फ इतना ही काबिल नहीं है, बल्की, इससे भी कहीं ज्यादा काबिल है। वो ना सिर्फ अपने और अपने आसपास के लिए बहुत-कुछ कर सकता है, बल्की, उससे आगे समाज के लिए भी। बशर्ते, आप राजनीती के इन जालों में ना उलझें, जो आपको नाकाबिल, निक्क्मा, नालायक और भी न जाने क्या-क्या बनाने पे तूली हुई हैं।     

कहीं ये राजनीतिक पार्टियाँ, ये सब सीधे-सीधे कह रही हैं या करवा रही हैं। और कहीं? बड़े ही मझे हुए खिलाडियों की तरह, "फूट डालो और राज करो", वाले साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर। कैसे? जानते हैं आगे, कुछ एक उदाहरणों से।               

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 35

आभाषी?

कहानी?

कोई स्क्रीप्ट?

इंसान या रोबॉट?

फाइलों तक समान्तर घड़ाईयाँ घड़ना आसान है। मगर, लोगों को किसी कहानी-सा ढालना, मतलब रोबोट बनाना? कितना आसान या मुश्किल होगा?

सर्विलांस एब्यूज की लोगों को रोबॉट बनाने में बहुत बड़ी भूमिका है। जैसे आप किसी वक़्त क्या कर रहे हैं? क्या कह या सुन या देख रहे हैं? क्या खा रहे हैं या पढ़ रहे हैं? जाग रहे हैं, या सो रहे हैं? किसके साथ हैं? उनसे क्या बात हो रही है? हग रहे हैं, मूत रहे हैं, नहा रहे हैं? पसीना तो नहीं आया हुआ? आया हुआ है, तो कितना? साँस सही चल रही है, या हाँफ रहे हैं? आपका तापमान कितना है? आपका वज़न कितना है? शरीर या दिखने में कैसे हैं? आपको कोई बीमारी है? कबसे? इलाज कहाँ से ले रहे हैं? और इलाज क्या हो रहा है, दवाईयाँ सिर्फ या ऑपरेशन? और भी कितनी ही चीज़ें, जो शायद आप खुद अपने बारे में या आसपास वालों के बारे में नोट नहीं करते या आपको नहीं मालूम, ये एक्सट्रीम सर्विलांस का जहाँ रिकॉर्ड करता है। सिर्फ नोट नहीं करता, बल्की रिकॉर्ड करता है। और इंसान की मौत के बावजूद, उस रिकॉर्ड को पैसे बनाने और कुर्सियों की वर्चव लड़ाई तक में प्रयोग करता है। आप भी रखते हैं क्या ऐसी कोई रिकॉर्डिंग अपने पास? आप तो शायद, अपना या अपनों का मेडिकल रिकॉर्ड तक नहीं रखते? ये एक्सट्रीम सर्विलांस एब्यूज वाले वो रिकॉर्डिंग ऐसे रखते हैं, वो भी परमानैंट। और जहाँ भर में कितनी ही कम्पनियाँ या पार्टियाँ रखती हैं। वो सरकारी भी हैं और प्राइवेट भी। सिविल भी हैं और डिफेन्स वाली भी। और वो सब समाज को कोई दिशा या दशा देने का काम करती हैं। उनमें बहुत कुछ टारगेटेड होता है। जितना इन सबके बारे में आपको नहीं पता, उतना ही आसान टारगेट हैं आप। सोचो, आप आम होते हुए भी कितने अहम हैं, इन एक्सट्रीम सर्विलांस एब्यूज वाली कंपनियों या पार्टियों के लिए? ये लोग, गरीब से गरीब इंसान से भी पैसा कमाते हैं। वो भी उसकी जानकारी के बिना। उसके गोबर, मूत, पसीने तक का रिकॉर्ड रखते हैं। क्यूँकि, वो स्वास्थ्य से जुडी और कितनी ही रोजमर्रा के काम में आने वाले उत्पादों का बहुत बड़ा बाजार है। इस जानकारी के आधार पर, ये कम्पनियाँ कितने ही ऐसे उत्पाद बाजार में उतारती हैं जो आपके स्वास्थ्य को लाभ नहीं नुकसान करते हैं। आपकी ज़िंदगी मुश्किल करते हैं। आपके संसाधनों को खत्म करने का काम करते हैं। और इसी जानकारी का दोहन कर, वो प्रचार-प्रसार ऐसे करते हैं, जैसे, गंजे को कंघी बेचना।  

कैसे?

चलो छोटे-छोटे से रोजमर्रा के उदहरण लेते हैं।

आप सो रहे हैं और आपके घर के बाहर आके कोई गाय या कुत्ता या बिल्ली या कबूतर सुस्ता रहे है, किसी पार्टी के  खास डिजाइनिंग के हिसाब से। 

आपने किसी सफ़ेद जीन्स और किसी को कोई सफेदी नाम की so-called बीमारी के बारे में कुछ लिखा है। मगर अभी वो ड्राफ्ट में ही है। पब्लिश नहीं किया हुआ। और कोई खास किस्म की गाएँ, किसी खास घर के बाहर आकर बैठ गई, किसी पानी की टंकी के पास। या पड़ोस के खास नंबर और नाम के घर के बाहर, जो वहाँ रहते ही नहीं।  वो भी ऐसी ही किसी खास physiological कंडीशन (सफेदी नाम की so-called बीमारी) में है। नेचुरल है या कुछ खिला-पिला के? दोनों ही सच हो सकते हैं। निर्भर करता है ये सब करवाने वाली पार्टी या पार्टियों की डिजाइनिंग के अनुसार। उस गाय को पता है? इंसानो तक को पता नहीं होता, की कब कोई फिजियोलॉजिकल कंडीशन नैचरल है और कब जाने कहाँ से और कैसे खिला-पीला के। पार्टियों की तारीखों और वक़्त के हिसाब पे निर्भर करता है। इसमें वो बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बक्शते।   

आपको पीरियड शुरू हो रखे हैं और गंदे ब्लड स्टेंड पैड्स आपके सामने वाले बॉस के घर के बाहर साइड वाली ग्रीन बैल्ट वाली जगह पड़े हैं। ऐसा एक बार नहीं होता, बार-बार हो रहा है। इसी दौरान, यही पैड्स बिना ब्लड स्टेंड, किसी ऐसी जगह भी पड़े मिल सकते हैं, जिसका मतलब है, जब तक आपके पीरियड्स की ज़िंदगी है, कम से कम तब तक तो शादी नहीं होने देंगे। जगहों के नाम लिखना सही नहीं होगा शायद। ऐसा ही और कितनों के साथ कर रहे होंगे ये लोग? एक-आध ऐसा केस तो जरुर आसपास ही होगा।       

आपको हल्का-फुल्का बुखार है या और कोई फिजियोलॉजिकल स्ट्रेस और आपसे कोई उसी से सम्बंधित गोली माँगने आती है। एक बार नहीं, कई बार ऐसे ही होता है। अगर वो इंसान किसी भी वजह से वहाँ नहीं है, तो वही गोली आपको आते-जाते कहीं रस्ते में दिख सकती है।  

आपने कुछ पढ़ा है, कंप्यूटर या लैपटॉप पर नहीं, बल्की, किसी पेपर में और उसके बारे में कहीं कोई आर्टिकल लिखा हुआ है। 

आपने खाना बनाया है और बहुत अच्छा नहीं बना। उसपे कहीं कोई कमेंट्री है, किसी नेशनल या इंटरनेशनल मीडिया में, उसी वक़्त। 

आपने कुछ खाया है, ऐसे ही कुछ रुखा-सूखा सा और कहीं कोई विज्ञापन है, गायों को आजकल सूखा चारा मिलता है। 

आपके यहाँ पानी खराब आ रहा है। दिल्ली या कहीं और की ऐसी ही खबर है। 

आपके घर के बाहर किन्हीं खास तारीखों को कोई खास किस्म का और उम्र का खागड़ राम्भते हुए जा रहा है या घर के थोड़ा इधर या थोड़ा उधर खड़ा हो गया है। या रास्ता रोककर गली में टेड़ा बैठ गया है। ऐसे ही खास किस्म की और खास उम्र की गाएँ, खास तारीखों को कहीं दाना-पानी लेने आ रही हैं या आ रही है। वो कुछ खास तारीखों या महीनों तक ही वहाँ दिखाई देंगी। उसके बाद दूसरी किस्म या उम्र वाली गाओं या खागड़ों की खास पॉलिटिकल रैंप परेड जैसे शुरू हो जाएगी। क्या ये सब किसी एक को प्रभावित करेगा? नहीं, आसपास सबको। बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बक्सा जाएगा। ये सब अपने आप नहीं हो रहा। ये सब किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी की खास तौर पे लाई हुई हैं। उस पार्टी की तारीखें और वक़्त खत्म होते ही, वो वापस जहाँ से लाई गई थी, वहीं पहुँचा दी जाएँगी या मार दी जाएँगी या मर जाएंगी। इसमें हिन्दू, मुसलमान का कोई लेना-देना नहीं है। ये सब राजनीती के खूँखार खेल हैं और इंसानो का मानसिक दोहन। इसीलिए, जहाँ तक हो सके जानवरों को गलियों में ना रहने दें। या तो गौशालाओं में छोड़ आएँ या कहीं उनके रहने का इंतजाम करें। और ऐसे लोगों को पहचानकर उनपर करवाई। इससे जो पशुओं, कुत्ते, बिल्लिओं, बंदरों और कितनी ही तरह के जानवरों पर ऐसे-ऐसे अत्याचार कर रहे हैं, उनके मनसूबों पे रोक लगेगी। आप उन्हें एक-दो दिन या एक-दो महीना रोटी देकर कोई पुण्य नहीं कमा रहे। क्यूँकि, वो दो-दिन का दाना-पानी इस समस्या का समाधान नहीं है। बल्की, ऐसी भद्दी और बेहुदा राजनीती वालों के अत्याचारों का हिस्सेदार बनना है। जिनके दुष्परिणाम सामान्तर घड़ाईयोँ के रुप में आसपास के कितने ही लोग भुगतते हैं। रिश्तों की तोड़फोड़, बेवजह के लड़ाई-झगड़े, किसी एक माँ या बाप को खा जाना। बच्चों को छोटी-सी उम्र में अनाथ करना और हॉस्टलों या बुरे परिवेश के हवाले करना। लोगों को बच्चे पैदा ना होने देना या एक के बाद बंधे लगा देना। अबोरशंस, कम उम्र में ही किसी भी बहाने बच्चों को खत्म कर देना, बुजर्गों के हाल-बेहाल करना और भी कितना कुछ आसपास भुगतता है। और उन्हें अहसास तक नहीं होता, की ये सब वो गन्दी राजनीती की वजह से भुगत रहे हैं।                 

और भी कितना कुछ हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी से जाने कहाँ-कहाँ हो सकता है। दुनियाँ के इस कोने में भी और उस कोने में भी। वो भी उसी वक़्त या उसके कुछ वक़्त बाद। 

हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी का कितना कुछ हमें याद नहीं रहता। या शायद हम नोटिस तक नहीं करते। मगर ये एक्सट्रीम सर्विलांस वाला जहाँ, वो सब ना सिर्फ नोटिस करता है, बल्की उसका रिकॉर्ड भी रखता है। लोगों के दुनियाँ से चले जाने के बाद भी। ऐसा करने से इस एक्सट्रीम सर्विलांस वाले जहाँ को मिलता क्या है? कंट्रोल। समाज पे कंट्रोल। और अपने फायदे वाली सोशल इंजीनियरिंग में सहायता। इसी जानकारी का प्रयोग या दुरुपयोग कर, लोगों की ज़िंदगियों को अपने मंसूबों के हिसाब से ढालता है। ये एक्सट्रीम सर्विलांस ही लोगों को रोबॉट बनाने का काम करता है।          

Tuesday, September 10, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 34

राजनीती और उम्मीद? 

किसी भी सरकार के बदलने से कितना फर्क पड़ता है? आप क्या सोचकर वोट देते हैं? मैंने तो वैसे वोट डालनी 2019 (?) से ही छोड़ी हुई है। खासकर, जबसे पता चला है की वोट कहाँ और कैसे डलती हैं। आपको अभी तक भी नहीं पता? इसलिए मैं तो अपनी वोट ऑनलाइन ही डाल देती हूँ, अपनी भड़ास निकाल कर। मेरी वोट, किसी पार्टी को नहीं, बल्की कैंडिडेट को जाती है। 

जिसे मैं नहीं जानती, उसे नहीं जाती। 

जिसके उल्टे-पुल्टे कामों का पता होता है, उसे भी नहीं जाती। 

उल्टे-पुल्टे कामों वाले का कोई बेटा, बेटी, बहु या कोई भी रिस्तेदार अगर उठा हुआ है, और उसने ना कोई खास उल्टे-पुल्टे और ना ही ठीक-ठाक काम किए हुए, तो उसे भी नहीं जाती। 

जो सिर्फ इलेक्शन के वक़्त कहीं से भी आ टपकता है, उसे तो बिल्कुल ही नहीं जाती। 

पिछले कुछ एक सालों में किस नेता ने कितना कमाया है? कहाँ-कहाँ से और कैसे? और आम लोगों पर कितना खर्च किया है? कहाँ-कहाँ और कैसे? अगर जनता की सेवा का ही किसी नेता को शौक नहीं है, तो अपने ऊप्पर राज करवाने के लिए, जनता उसे क्यों बनाए? इलेक्शन का इतना तामझाम और तमाशा क्यों?       

किसी ने आपका थोड़ा बहुत बुरा किया हुआ है। वो भी सीधे-सीधे नहीं, उसके किन्हीं आदमियों ने? मगर, जनता का किसी भी तरह भला कर रहा है, वो भी अपने पैसे फूँककर? हो सकता है, पैसे भी सिर्फ दिखने में अपने हों? कोई नहीं, अंधों में काना राजा तो फिर भी लग रहा है ना? अपना भला खुद कर लो। सबका भला कौन, कहाँ कर पाता है ना? 

 या नोटा सही है?            

आप क्या सोचकर वोट डालते हैं?

आगे किसी पोस्ट में थोड़ा-बहुत और मिलेगा, पार्टियों और उनके कुछ-एक नेताओं पर।  

Monday, September 9, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग? 33

राजनीती और उम्मीद? 

किसी भी सरकार के बदलने से कितना फर्क पड़ता है?

क्या कोई ऐसी राजनीतीक पार्टी है, जो सच बोलने लगो या थोड़ी बहुत ही सही बुराई करने लगो उनके गलत कामों की और वो आपको ब्लॉक ना करे? और कुछ नहीं तो, इंटरनेट ही भगा देंगे या सिगनल। 

जैसे गब्बर कहे, "कितनी पोस्ट्स हैं हमारे खिलाफ?"

ये नहीं कहेंगे, हमारे कारनामों के खिलाफ। 

"इससे पहले वो और ऐसा कुछ और फेंके, जाओ उसे बंद करवा के आओ।"

और लो जी, गब्बर के आदमी क्या करेंगे?

इंटरनेट बंद और सिगनल आउट।

या फिर और भी हैं जो चुपके-चुपके, चोरी-छुपे डाँट जाते हैं। जैसे आप कहें, इन्होंने तो पीटा था और उनका सोशल मीडिया indirectly, आपको कोई धमकी तक दे जाए। या ये कहता नज़र आए, हाँ! तो क्या कर लिया तूने?

और आप सोचते ही रह जाएँ, क्या हैं ये? जनता को दिखाएँ, जैसे आपके साथ और चोरी-छुपे कहते नज़र आएँ, तो क्या कर लिया तूने?

अब कोई क्या करेगा भला? अब तुम कोई नेता तो हो नहीं, जो रैलियाँ करते फिरोगे। वैसे नेता लोग रैलियाँ क्यों करते हैं? अपनी भोली-भाली जनता को बहकाने के लिए?

क्या हो, अगर रैलियों की बजाय, अलग-अलग पार्टियों के नेता, एक ही मंच पर हों और वहाँ बताएँ, की किसने क्या-क्या किया है? या कौन क्या-क्या कर रहा है? जनता को सुनाने या दिखाने के लिए या उनसे संवाद के लिए, स्क्रीन लगा दें, उनके मोहल्लों के कम्युनिटी सेन्टर पर। और उन मोहल्लों के ही कामों को बताएँ, की उन्होंने वहाँ क्या-क्या किया है? ताकी जनता भी बता सके की क्या किया है और क्या नहीं। 

इतना सारा पैसा, जो इलेक्शन के नाम पर और जाने किस-किस की और कैसी-कैसी रैलियाँ पीटने के लिए निकालने में लगाते हैं, वही आम लोगों के so-called विकास पर खर्च हो जाय। कितना पैसा तो बर्बाद करते हैं, ये लोग इलेक्शन के नाम पर? आप क्या कहते हैं? सबसे बड़ी बात, वो ज्यादातर का अपना भी नहीं होता। 

Today's Dhamaal

 I sent a mail today to university.

                                                   In response? I got some interesting mails.

(Rare happenings)


10 special effects?

To know the truth of these mails, which seems fake, I called  these offices.

No-one was there to pick the calls?

When something like that happened in the past?
"Mara" special call and drama, the day, I filed PIL in Supreme Court regarding murders of common people, corona times.
And what kidos call that? 
IPL? As they don't know the truth of many mishappenings in their own homes?
People are so stupid that they cannot even differentiate between PIL and IPL?
Wanna know about that "Mara" special call and drama? Maybe, some other post.