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Tuesday, September 10, 2024
Monday, September 9, 2024
Today's Dhamaal
I sent a mail today to university.
In response? I got some interesting mails.(Rare happenings)
10 special effects?
To know the truth of these mails, which seems fake, I called these offices.
No-one was there to pick the calls?
When something like that happened in the past?It's Joining Back
Release My Saving Or It's Joining Back?
उस मेल के बाद भी बात होती रही concerned file holders से।
अकादमिक ब्रांच, टीचिंग।
संगीता मैम, फाइल क्लियर हो गई क्या? एक साल से ऊप्पर तो फाइल शायद आपकी ही टेबल पर है?
जब वो कहें की एक दो-दिन में क्लियर हो जाएगी, तो यूनिवर्सिटी कोई बारिश का ड्रामा चलाएगी। जी यूनिवर्सिटी। पीछे केजरीवाल की बेल होनी थी। तारीख़ क्या थी? तारीख़ पे तारीख़ चल रहा यहाँ भी। अपनी तो समझ से बाहर है। किसी को आए तो बताना?
उस दिन या उसके अगले दिन फाइल क्लियर होनी थी। मगर, नहीं हुई। क्या? बेल या फाइल? दोनों ही। अब कोई पूछे की ये किसी टीचर की बचत की फाइल का, केजरीवाल की बेल से क्या लेना-देना? खैर! मैं उसके बाद यूनिवर्सिटी गई और क्या हुआ?
Academic Branch
संगीता मैम कहाँ हैं?
कोई एम्प्लोयी: मैडम वो तो डीन के वहाँ मिटिंग में गए हैं।
कब तक आएँगे?
पता नहीं
और मैं थैंक यू बोलकर डीन ऑफिस आ गई।
डीन असिस्टेंट रुम: अंदर कोई मीटिंग चल रही है?
अभी शुरु नहीं हुई है मैडम। शुरु होने ही वाली है।
संगीता मैम हैं वहाँ, ऐकडेमिक से?
शायद हैं।
एक बार बोल दो, की विजय दांगी मिलने आई हुई हैं।
मैम, मीटिंग शुरु हो गई।
कितनी देर चलेगी, कुछ आईडिया है?
जी, पता नहीं।
कौन-कौन हैं मीटिंग में?
राहुल ऋषि सर, गिल सर। और भी कई हैं।
एजेंडा क्या है?
स्टूडेंट से रिलेटेड ही है, कोई।
और आप थैंक यू बोलकर यहाँ से भी आगे बढे। थोड़ी देर इधर-उधर गप्पे हाँक के, रजिस्ट्रार ऑफिस के वेटिंग रुम में बैठ गए, जो डीन ऑफिस के साथ ही है।
मोबाइल की बैटरी भाग गई। अभी तो 10% दिखा रहा था? खैर, साथ में ही चार्ज होने के लिए रख दिया।
उधर एक फीमेल सिक्योरिटी गार्ड और दो बन्दे और बैठे हैं, जिन्हें मैं नहीं जानती।
उनसे पूछा तो एक ने बताया, ड्राइवर परमिंदर दलाल? और दूसरा भी ड्राइवर, देवेंदर हूडा। एक प्रोफेसर राहुल ऋषि का और दूसरा प्रोफ़ेसर गिल का?
इसी दौरान थोड़ी बहुत फीमेल गार्ड से भी बात होती है, जिसे मैं पहले से जानती हूँ, नीम केस और एक दो मीटिंग के दौरान थोड़ी बहुत बात हो रखी थी, मनीषा।
बाहर से तेज-तेज आवाज़ आ रही हैं। स्टूडेंट्स का कोई प्रोटैस्ट चल रहा है, शायद?
मीटिंग भी उसी सन्दर्भ में है क्या?
पता नहीं, मैडम।
थोड़ी देर बाद दो और लेडी आकर फीमेल गार्ड से बात करने लगती हैं। और शायद यही बताती हैं की बाहर तो बारिश हो रही है। जिसकी आवाज़ अंदर तक आ रही थी। क्यूँकि, इन ऑफिस के बीच, फाइबर कवरिंग है शायद? जिसपे बारिश पड़ते ही बहुत तेज आवाज़ होती है।
इन सबके बीच, मैं कुछ मीडिया वालों की खबरें पढ़ रही थी, मोबाइल पे।
गार्ड्स अपना खाना खा रही थी।
लंच ब्रेक ख़त्म हुआ और मैं वापस ऐकडेमिक ब्रांच।
संगीता मैम से पूछा, फाइल फाइनेंस ऑफिस पहुँची की नहीं?
मैडम, अभी एक-दो दिन और लगेंगे।
अब क्या रह गया?
आपने वो मेल नहीं किया उन्हें (GB को), आपका रेंट माफ़ कर दें।
अरे मैडम, आपको पहले भी तो बोला, कटने दो और फाइल आगे बढ़ाओ।
मैडम, मैं तो आपके भले के लिए ही कह रही हूँ।
वो GB वाले वो गुंडे हैं, जो भाभी की मौत के बाद, मेरे रेजिडेंस के रेंट का फरहा, मेरे नॉमिनी को भेझते हैं। जैसे की मैं मर गई हों।
मैडम, क्या जाता है, एक मेल से काम हो जाए तो।
मुझे अच्छा नहीं लग रहा कोई ऐसी रिक्वेस्ट करना। वो भी किनसे? जो आदमखोरों की तरह, भाभी की मौत के बाद, मेरे रेंट का फरहा, मेरे नॉमिनी को भेझे? कैसी बेहूदा और भद्दी नौटंकियाँ हैं ये? इंसानियत कहाँ है? और फिर इतने थोड़े-से पैसे के लिए, ऐसे लोगों को रिक्वेस्ट करना?
मैडम देख लो, हो सके तो, कर देना मेल।
आप ऐसे ही जाने दो इस फाइल को प्लीज। वैसे भी बहुत लेट हो चुकी ये फाइल।
अभी कहीं और मुझे नौकरी करनी नहीं। अपना ही कोई प्रोजेक्ट करना है और मुझे पैसों की जरुरत है।
कितनी अजीब बात है ना, की आप अपने ही पैसों के लिए धक्के खा रहे हैं? मन में सोचते हुए, मैं वहाँ से आ गई। क्या तारीख थी, उस दिन? 21. 08. 2024?
पहले वो यूनिवर्सिटी में आपकी नौकरी हराम करते हैं। हर जगह रोड़े अटकाते हैं। मार-कूट के वहाँ से निकालते हैं। और फिर घर पे अर्थियाँ उठाते हैं। ज़मीन-ज़ायदाद या किसी की थोड़ी बहुत बचत को भी हड़पने के चक्कर में लग जाते हैं?
एक तरफ आम आदमी और एक तरफ बड़े लोग? एक निम्न मध्य वर्ग को वो बिल्कुल मिट्टी में मिलाने का काम करते हैं। कोई पता तो करे, की इस कोरोना नाम के फर्जीवाड़े के बाद, कैसे-कैसे लोगों की प्रॉपर्टीज़ में अचानक कितना उछाल आया है या बढ़ी हैं? और किनकी उन्होंने बिल्कुल ही जैसे साफ़ कर दी?
इसी से आपको समझ आ जाएगा की ये ज़मीनों या प्रॉपर्टी के धंधों के पीछे छुपी असली कहानी क्या है? हर केस में, समाज के ऊप्पर वाला वर्ग मार सबसे कम खाता है और फायदा हमेशा सबसे ज्यादा। उससे जैसे-जैसे, नीचे वाले वर्ग पे जाते जाओगे, पता चलेगा की वो वर्ग उतना ही ज्यादा भुगतान करता है।
अब तो मुझे अपनी नौकरी भी चाहिए और मेरा रेजिडेंस भी। धँधाकर्मियों ने हर चीज़ को अपने बाप की प्राइवेट लिमिटेड बना लिया है। फिर वो सरकारी क्या और प्राइवेट क्या? ये कैसे लोग कुर्सियों पे बैठे हैं? जो कहते हैं, यहाँ शिक्षा का या रिसर्च का माहौल देना, हमारा काम नहीं या हमारे वश में नहीं। इतनी सिक्योरिटी वाली जगह पे, कायरों की तरह मिलजुलकर एक महिला को पीटना या पिटवाना इनका काम है? वो है जो इनके वश में है? उसी के लिए तो ये कुर्सियां मिलती हैं इन्हें?
और इन्हीं पढ़े-लिखे और कढ़े शातिरों ने हमारे बच्चे-बड़े सब उलझा रखे हैं, अपने जालों में। सामान्तर घड़ाईयों द्वारा। वो कुछ उल्टा-पुल्टा कहलवायेंगे या करवाएंगे भी इन्हीं से। और फिर उसकी मार भी इन्हीं को देंगे। कैसे? आते हैं उसपे भी आगे पोस्ट्स में।
जैसे कोई कहे, इसकी नौकरी छुडवानी है।
और कोई कहे रेजिडेंस छुड़वाना है।
कोई कहे बचत का आना नहीं मिलने देना या मिलना।
और लम्बी लिस्ट है। जिनसे ये ऐसी-ऐसी कमेंटरी कहलवाई या करवाई, उन्हीं का इतना कुछ खा गए ये सामान्तर घड़ाईयों वाले, की जिसकी ज़िंदगी भर भरपाई नहीं हो सकती। सोचो, आपसे या आपके आसपास ही ऐसा कुछ किन-किन से कहलवाया गया या करवाने की कोशिशें हुई? और कैसे कहलवाया या करवाया? तरीके? और अंजाम? आप सोचो अभी। पढ़ेंगे को मिलेगा आगे।
Release My Saving Or It's Joining Back?
2021 में Resignation Accept हुआ। उससे पहले क्या चल रहा था? सबको नहीं तो बहुतों को मालूम है अभी तो शायद। कैंपस क्राइम सीरीज पढ़ने वालों को खासकर।
इधर-उधर से सलाह आने लगी, Resignation की बजाय छुट्टी ले लो। मेरा मन भी कोई खास पढ़ाई का था, तो वो भी लिख दिया। और कैंपस क्राइम सीरीज पब्लिश करना शुरु कर दिया। 6 महीने बाद GB (General Branch) वालों ने परेशान करना शुरू कर दिया। रेंट ज्यादा लगेगा, रेजिडेंस छोड़ दो। मेरा कहीं और ठिकाना ही नहीं था। अपना कोई घर लिया नहीं हुआ था और बाहर रहने का मन नहीं था। तो लिख दिया, काट लेना जो बने। कुछ वक़्त बाद उन्होंने और ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया। और ये GB पता है कौन है? Big Boss Houses के ठेकेदार? इनका काम ठीक-ठाक रहने लायक घर देना होता है, एम्प्लॉयीज को। और कोई कंप्लेन हो तो ठीक करना। इन्होंने जो किया है, अगर सही से करवाई हो तो ये ज़िंदगी भर जेल में सड़ें।
खैर, मैंने माहौल को देखते हुए, कहीं बाहर रहने की बजाय, घर का रुख कर लिया। महाभारत, यहाँ भी नहीं रुकी, बल्की कुछ ज्यादा ही बढ़ गई और इस राजनीतिक पार्टियों की महाभारत ने लोगों को खाना शुरू कर दिया। इस सबके दौरान भी corresspondence होती रही।
यूनिवर्सिटी ने ना तो जॉइनिंग दी और ना ही पैसा। मना भी नहीं किया। क्या कहके करते? हाँ, इधर-उधर से जरुर कहलवाया की कुछ नहीं बचा हुआ तुम्हारा। कुछ यूनिवर्सिटी को अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी समझने वालों ने? मगर unofficial या इधर-उधर के बुजर्गों के कहने का क्या? यूनिवर्सिटी ने सिर्फ बहाने पे बहाने दिए। फाइल यहाँ है। फाइल वहाँ है। कभी ये समस्या है, तो कभी वो समस्या है। जो समझ आया, वो ये की समस्या कुछ नहीं है। गुंडागर्दी है। उसी गुंडागर्दी ने पर्सनल और प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी की राह में रोड़े अटकाए हुए हैं। कुछ साल पहले तक कुछ शक थे, बिमारियों पे, मौतों पे। धीरे-धीरे वो शक हकीकत का आईना भी दिखाने लगे। और एक बहुत-ही बेहुदा और घटिया, गुप्त-सिस्टम को भी। ये पीछे जो यूनिवर्सिटी को मेल की, वो है।