कोई भूख से कैसे मर सकता है? अगर हट्टा-कट्टा और स्वस्थ है तो? हाँ शायद, न्यूट्रिशन की कमी से जरुर मर सकता है? मगर थोड़ी-सी भी न्यूट्रिशन की जानकारी हो तो शायद नहीं? शायद?
लोग बिमारियों से मरते होंगे? शायद जबरदस्ती जैसे थोंपी हुई बिमारियों से? या मार-पिटाई से? या उससे उपजे दर्द या तकलीफों से? खासकर अगर वक़्त पर ईलाज न हो तो? शायद?
और कितने तरीकों से मर सकते हैं लोग? या शायद मारे जा सकते हैं?
गुप्त तरीकों से मार कर, आत्महत्या दिखाई जा सकती है? जैसे पीछे 70% केस, पहले से बताकर किया गया? मगर हकीकत में करने वालों ने (राजनीतिक पार्टियाँ) उसका माहौल कैसे इज़ाद किया होगा? आम आदमी को कैसे समझ आएगा ये सब? क्यूँकि, जो यहाँ दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं?
जैसे कोरोना के दौरान कितने ही लोगों को आदमखोरों ने मौत के घाट उतार दिया? वो भी दुनियाँ भर में। वो दिखा क्या?
चलो, आपको एक और मौत दिखाते हैं। उसकी मौत, जिसको आप यहाँ पढ़ते आ रहे हैं? वो मौत आत्महत्या होगी? या खून? इन्हीं खुँखारों द्वारा, जो इधर-उधर से लोगों को किसी ना किसी बहाने उठा रहे हैं। मगर वहाँ आपको क्या दिख रहा है? यहाँ देखने की कोशिश कीजिए। शायद कुछ समझ आए।
विजय 4 बीजेपी?
जय कांग्रेस? विजय कांग्रेस?
आम आदमी की विजय?
जय JJP? विजय JJP?
और भी कुछ लिख सकते हैं? विजय या जीत तो हर किसी को चाहिए। ऐसे या वैसे, जैसे भी चाहिए। उसके लिए चाहे आदमियों को खाना पड़े? कुछ भी, कैसे भी, जैसे भी जोड़ना, तोड़ना या मड़ोड़ना पड़े? इन सब पार्टियों के जीत हासिल करने के अपने-अपने खास तरह के नंबर हैं या कहो की कोढ़ हैं, abcd हैं। सब पार्टियाँ उसी के लिए माहौल बनाने की कोशिश करती हैं। जी, माहौल बनाने की कोशिश करती हैं। वो माहौल अगर आदमियों को खाकर भी बने, तो इन्हें परहेज नहीं। उसी माहौल बनाने में वो घरों के, ऑफिसों के माहौल बिगाड़ देते हैं, अपने-अपने अनुसार।
जैसे अगर किसी को, किसी यूनिवर्सिटी ने पढ़ाने के लिए रखा है, टीचर की पोस्ट पर। तो वे उसे पढ़ाने के इलावा और ढेरों तरह की अनाप-शनाप फाइलें पकड़ा सकते हैं। अगर वो उनके अनुसार काम ना करे तो तरीके हैं, उसे यूनिवर्सिटी से उखाड़ फेंकने के।
ये विजय 4 बीजेपी, वाली पार्टी का 75 वाले अमृतकाल का हिस्सा हो सकता है। जहाँ B को घर बैठे जैसे, B (ED) के लिए 75000 का दान चाहिए? घर बैठे अहम है यहाँ। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे रजिस्ट्रार बोले, मैडम आपके पैसे मिलने में 5-7 दिन लगेंगे? उस मैडम को यूनिवर्सिटी से खदेड़ने के बाद। और वो 5-7 दिन मौत से पहले नहीं आते? मौत के बाद, सब किसी B का है, क्यूँकि ED उस आदमी को खा जाएगी।
ये जय कांग्रेस? विजय कांग्रेस? इनका कोई 1, 3, 4 का हिसाब-किताब है शायद? इनके अनुसार आप अब भारत में काम नहीं कर सकते? कितने लाचार हैं? ये पीछे बारिश वाली नौटँकी इन्हीं की थी क्या? आप रजिस्ट्रार ऑफिस के वेटिंग रुम बैठे हैं और बारिश के साथ-साथ कोई ड्रामा चलता है। ऐसी-ऐसी नौटंकियाँ, देखने और झेलने के बावजूद, आप जाना चाहेंगे ऐसे-ऐसे ऑफिस?
आम आदमी की विजय, के नंबरों के हिसाब-किताब से तो? आप बसों में मार्शल लग सकते हो या सफाई कर्मचारी शायद?
जय JJP? विजय JJP? इनके नंबरों के हिसाब-किताब से आप नौकरी ही नहीं कर सकते, भारत में? हाँ, कोई अपना काम कर सकते हो, वो भी गाँवों में?
ऐसे ही और पार्टियों के हिसाब-किताब होंगे?
तो माहौल कहाँ तक पहुँचा बनते-बनते? या इन राजनीतिक पार्टियों द्वारा बनाते-बनाते?
EC वाली स्टेज आपको पार करवाई जा चुकी है, 2021 में। ED तैयार बैठी है निगलने के लिए? अभी तक यूनिवर्सिटी द्वारा पैसे ना देने का बस इतना-सा खेल है? आप कोई और नौकरी भी नहीं कर सकते, ऑनलाइन भी नहीं। वहाँ के माहौल पर भी टाइट कंट्रोल है। वहाँ पे भी खास तरह के ड्रामे हैं।
अपना कुछ आप शुरु ना कर सकें, स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर कब्जे की और यूनिवर्सिटी वाली सेविंग पर कुंडली मारने की कहानी यही है। उसके लिए क्या कुछ माहौल बनाए इन पार्टियों ने? भाभी को खा गए।
रायगढ़ धँधा? इंस्टेंट क्लिक लोन, YONO Fraud? जिसका मतलब था, इधर लोन खाते में और उधर नौकरी खत्म। और आपको लगा, आप पढ़ने-लिखने के लिए ले रहे हैं? हेरफेरियाँ, हेरफेरियोँ में माहिर लोगों की। चलो, ये तो छोटा-सा लोन था।
चलो वो सब भी आया गया हुआ। कम से कम बचा-खुचा पैसा तो मिले। ऐसे कैसे? अभी आखिरी कील नहीं ठोंकेंगे ताबूत में अपने जाहिलनामे की?
माहौल?
पानी के नाम पर पीने या प्रयोग करने लायक पानी नहीं है ।
खाने के नाम पर खाना नहीं है। चल रहा है, जैसे-तैसे।
बीमार हो जाओ तो, दवाई नहीं।
रहने को घर नहीं और पहनने को कपड़े नहीं। रह रहें हैं जैसे-तैसे। चल रहा है काम चीथड़ों में।
"महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?" में कुछ-कुछ झलक मिल सकती है, इस सबकी की, की ये राजनीतिक पार्टियाँ माहौल कैसे घड़ती हैं?
तो कितना चलेगा कोई ऐसे माहौल में? बाहर अभी कहीं जाना नहीं। अब ED के वेश्यावर्ती के धंधे वाले जाल में नहीं फँसोगे, तो कोई न कोई रस्ता तो ढूँढेंगे ना ठिकाने लगाने का? तो घड़ दिया माहौल?
गर्मियों में बिजली, AC और गर्मी या कूलर में आग लगने का तमाशा चल रहा था। तो कुछ वक़्त पहले? धूंध और acidic air? बिमार करो और मारो। माहौल ऐसा घड़ दो, की छोटी से छोटी बीमारी ले निकले। जो होता है वो दिखता नहीं, और जो दिखता है वो होता नहीं?
नौकरी से खदेड़ने के बाद, यूनिवर्सिटी सेविंग का क्या किस्सा-कहानी चल रहा है? जाने?
तो Enforced Resignation के बाद Enforced Murder? और इसके लिए उन्हें आपके पास चलके नहीं आना पड़ता, ये सब वो दूर बैठे-बैठे ही कर देते हैं।
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