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Wednesday, December 25, 2024

How Was The Year 2024?

कैसा रहा ये साल? क्या है आपका हाल? 

ये वो साल था जब लिखना और इंटरनेट ही जैसे एकमात्र सहारा था, बाहर की दुनियाँ से इंटरैक्शन का। फोन तकरीबन बंद था जैसे। चल रहा था शायद कुछ अजीबोगरीब सन्देश या कॉल्स सुनने के लिए। कुछ कोड से जैसे ईधर के, और कुछ उधर के? और कुछ खामखाँ भी। 

इतने सालोँ बाद कार गुल थी ऐसे, जैसे, दुनियाँ ही थम-सी गई हो? कार हमें सच में Independent बनाती है या शायद काफी हद तक Dependent भी?

एक तरफ "Reflections" के लिए वक़्त था तो दूसरी तरफ कुछ अजीबोगरीब बावलीबूचों के कारनामों से निकला, "महारे बावली बूचां के अड्डे अर घणे श्याणे?" चाहें तो खीझ सकते हैं और चाहें तो हँस सकते हैं? Refelections से पहले शायद "दादा जी का छोटा-सा खजाना" किताब बन निकले? जिसके साथ लगता है, काफी छेड़-छाड़ हुई है। क्यों? ऐसा क्या खास था उनमें? कुछ जो मुझे पता है और कुछ शायद ही कभी पता चले। क्यूँकि, उनके ज्यादातर पत्र मैं पढ़ती थी। जब घर होती तो पढ़वाते ही मुझसे थे, खासकर हिंदी वाले। ये कुछ कहाँ से आ टपके? और एक-आध जो उनकी मर्त्यु के बाद भी मेरे पास था, वो कहाँ और कैसे गुल गए? पता नहीं। ऐसा तो कोई बहुत खास भी नहीं था उनमें। या शायद इधर-उधर हिंट आ चुके? 

वैसे पापा से सम्बंधित सिर्फ एक ही पत्र पढ़ा था मैंने, दादा जी के रहते। वो भी उनकी अलमीरा की सफाई करते वक़्त मेरे हाथ लग गया था इसलिए। कुछ बहुत पुराने हैं, मेरे जन्म से भी पहले के तो शायद कभी सामने नहीं आए। दुबके पड़े थे जैसे, इस, उस डायरी में। उनसे कुछ लोग शायद अपने जन्मदिन या आसपास के कुछ इवेंट्स जान पाए, जिन्हें आज तक नहीं पता?

बाकी जो पहले से लिखने वाले प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वो तो वक़्त लेंगे। क्यूँकि, वो सिर्फ Reflections, यादें या खीझने की बजाए, satire जैसा विषय नहीं हैं।

इतने बुरे के बीच शायद, कुछ आसपास के लिए अच्छा भी रहा? बहुत सालों से ठहरी-सी या मरते-मरते बचती-सी ज़िंदगियाँ, शायद फिर से चल निकलें? उम्मीद पे दुनियाँ कायम है। ऐसी-सी ही कुछ ज़िंदगियाँ, आपको किसी भी हाल में जैसे प्रेरित करती नज़र आती हैं। कह रही हों जैसे, और कुछ ना हो सके तो थोड़ा-बहुत हमारे लिए ही कर दो। और जो शायद आप कर भी सकते हैं। शायद कोई छोटा-मोटा प्रोजेक्ट ही?   

आपका कैसा रहा ये साल? Merry XMAS & Happy New Year!

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