वक़्त और अगली पीढ़ी के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता है। काफी कुछ अच्छा और शायद कुछ ऐसा भी की लगे, अच्छा नहीं है। सूचनाओं का संसार, उनमें से एक है। 24 घंटे इंटरनेट की पहुँच और टीवी भी शायद। जब बच्चों को मजाक लगे, अच्छा आप जब छोटे थे, तो टीवी पे हर वक़्त प्रोग्राम नहीं आते थे? या इंटरनेट नहीं था? ये सीरियल्स भी नहीं थे? तो क्या था?
जो भी हो, गुजरा वक़्त और बचपन हमेशा अच्छा होता है?
बड़े होकर जब आप अपने बच्चों को जाने क्यों वो खँडहर दिखाने आते हैं? और बताते हैं, ये रसोई थी। मैं यहाँ पढता था या यहाँ सोता था। और आप पूछें, भैया ये स्टूडेंट कौन है, आपके साथ? क्यूँकि, वो शायद स्कूल यूनिफार्म में ही है। अरे। ये नहीं पहचाना? यक्षशांश। क्या नाम बताया? यक्षसांश? ओह। ये इतना बड़ा हो गया? और ये अंदर कौन है भैयी?
या फिर आपके यहाँ कोई पूछे, बुआ ये आज दादी की छत पर कौन घुम रहे थे? कोई आया हुआ था, इनके यहाँ (साथ वाले खँडहर में)? क्यूँकि, आजकल यहाँ नाम मात्र-सी, मजेदार-सी मरम्त चल रही है।
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