राजनीती का कीचड़ (और जनता रुपी रोबॉट्स)
हम बाँटेंगे दारु?
तुम ज़मीन खिसका लेना?
कोढ़ो के इस खेल में
घर क्या, नौकरी क्या?
क्या रिश्ते-नाते?
प्राइवेट क्या और क्या सरकारी?
सब हैं हमारे,
जुआरियों के, राजनीतिक पार्टियों के?
सब कुछ ईधर से उधर खिसका
कुछ हम अपने नाम कर लेंगें?
कुछ तुम अपने नाम कर लेना?
आम जनता तो बेचारी,
हमारे लिए काम करने को ही है?
उनकी ज़िंदगियों पे है, अधिकार हमारा?
जैसी चाबी भरेंगें हम,
वैसे ही वो चलेंगें?
जैसे मानव रोबॉट?
Social Engineering and Human Robots?
राजनीतिक पार्टियों को शायद इस धंधे से थोड़ा आगे निकलना चाहिए?
आगे? बुरे की तरफ? या भले की तरफ?
क्यूँकि, जो कुछ यहाँ लिखा जा रहा है, वो सब भी कहीं न कहीं, इन्हीं पार्टियों से निकल कर आ रहा है। मतलब, सम्भावनाएँ तो काफी हैं, अपनी-अपनी तरह की Social Engineering की या Social Designing की?
No comments:
Post a Comment