About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Monday, May 26, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 80

Are you a veteran? 

No

अरे सिर्फ हाँ या ना का तो विकल्प ही नहीं है। 

ये क्या दिया हुआ है? 

लँगड़े, लूले, बहरे, कम दिखाई देता हो, कैंसर, डायबिटीज, दिमागी बिमारी, बौने, मोटे, ज्यादा लम्बे (gingantism) । ना, ये क्या लिख दिया? मोटे, ज्यादा लम्बे (gingantism)? ये तो विकल्प नहीं है। मतलब, ऐसे लोग veteran नहीं हो सकते? ये फर्क क्यों? हेराफेरी है ये तो। ऐसे नहीं लग रहा, जैसे विश्वास कुमार के बौने या बोना ताना शाह या Games of Throne की बात चल रही हो या किसी हिटलर की बात चल रही हो?                  



और Veteran ऐसे होते हैं?  
(सब फोटो इंटरनेट से ली गई हैं)
 
कौन हैं आप?
Civilian या Veteran?

आपको लग रहा है की आप Civilian हैं? और ये खास-म-खास फॉर्म भरवाने वाले, जबरदस्ती जैसे, Veteran पे हाँ करवा रहे हैं?
कौन से युद्ध में हिस्सा लिया था आपने? 
वर्ल्ड वॉर 1, 2?
भारत या पाकिस्तान या किसी चीन की लड़ाई?
या पानीपत की कोई लड़ाई?

और आपको पता भी नहीं? इन वेबसाइट वालों के सपनों में गए होंगे?

ना जी प्रॉक्सी खेला करते हाम। बेरा ना किस कै बदलए किस न धर देते।  
     
कहाँ होता है ऐसे? किसी भी वेबसाइट पे हो सकता है? खास वाली। ED की वेबसाइट पे भी और किसी और यूनिवर्सिटी या इंस्टिट्यूट की वेबसाइट पर भी? ऐसे लग रहा हो जैसे, फ्रॉड वेबसाइट क्रिएट कर दी हों? भर दो, क्या जाता है?
ऐसी किसी जॉब के कोढ़ फिर कहीं देके मारेंगे। नहीं? 
वैसे ये सिर्फ वेबसाइट पे होता है या हकीकत की दुनियाँ में भी? पता नहीं क्या का क्या बनता है यहाँ? कोढ़-म-कोढ़ जैसे?   
 Feeling grrr 

Saturday, May 24, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 10

डोमेश्वर (D   -omeshwar?) 

Shows and Theatrics? Even Defence Theatre and Theatrics? 

डूम आ रहे हैं? 

Veterans?

और भी कितनी ही तरह के नाम दिए जा सकते हैं? रोमा, यूरोप? गड्डे लुहार, उत्तर भारत? ज्यादातर, समाज के आज के युग से दूर रहने वाले कबीले या लोग?       

और भी कितनी ही तरह के ईश्वर या भगवान या देवी-देवता? जितने इंसान, उतनी ही तरह के भगवान या देवी-देवता? जैसे भगवान और देवी-देवता घड़ना एक कला है, Art and Craft है। 

वैसे ही, और शायद उतनी ही तरह के भूत और भय पैदा करने के तरीके? किसी भी आम इंसान, परिवार या समाज के किसी हिस्से को विचलित करने के लिए? कुछ ना होने देने के लिए या कुछ खास करने या करवाने के लिए? या शायद राक्षस, डायन, विच जैसी wichhunting के लिए?  

Witchhunting? क्या बला है ये?

जिस इंसान को राजनीती, तथ्यों से काबू नहीं कर पाती, वहाँ Character Assassination और Witchhunting का प्रयोग होता है। यहाँ लिंगभेद भी नहीं होता। ये किसी भी लिंग के खिलाफ हो सकता है। या कहो की होता आया है। जितना बड़ा दॉँव लगा होता है, उतने ही ज्यादा घिनौने और बेहुदा तौर-तरीकों का प्रयोग होता है।

और ये सब करने के लिए राजनीती, कैसे और किस तरह के लोगों का प्रयोग या दुरुपयोग करते हैं?

शायद खुद आपका? आपके अपनों का या आसपास वालों का भी? ऐसे लोगों का जिनके अपने कोई निहित स्वार्थ हों? या शायद जो आपसे किसी भी तरह की चिढ़ या जलन रखते हों? या शायद जो किसी भी तरह की असुरक्षा की भावना से ग्रषित हों? जिन्हें खुद अपना महत्व या वैल्यू ना पता हो? ऐसे ही लोग, दुसरों को गिराने का काम करते हैं? क्यूँकि, उनके पास कुछ अच्छा देने के लिए होता ही नहीं? या शायद, उन्हें ऐसा लगता है? इसीलिए, असुरक्षा की भावना लिखा है। ऐसे लोग, जिन्हे खुद का महत्व न पता हो। ऐसे लोगों की असली दिक्कत आप नहीं हैं। खुद उनकी अपनी कोई समस्या, या कमी है शायद?  

जब यूनिवर्सिटी थी, तो लगता था की कुर्सियों की लड़ाई है, जिसमें ऐसे लोग भी झाड़ की तरह पिस रहे हैं, जिन्हे ऐसी-ऐसी कुर्सियों से कोई लगाव नहीं है। गाँव में आसपास के रोज-रोज के भद्दे और बेहूदा ड्रामे देखे, तो समझ आया, की ये कौन-सी कुर्सियों की लड़ाई है? यहाँ तो लोगों के पास, आम-सी सुविधाएँ तक नहीं? ऐसे-ऐसे ड्रामे, जो आदमियों को खा जाएँ? जिस किसी से ये राजनीतिक पार्टियाँ, ये सब ड्रामे करवाएँ, उन्हीं को या उनके अपनों को खा जाएँ? 

कोरोना काल, एक ऐसा दौर था, जहाँ मौतें नहीं, हत्याएँ थी। सिर्फ सत्ता द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों के सिर्फ कुछ लोगों की मिलीभगत द्वारा? दुनियाँ भर के मीडिया ने, या कहो की मीडिया कल्चर ने उसमें बहुत जबरदस्त तड़का लगाया। 

उसके बाद भाभी की मौत के बाद के ड्रामे? कई लोग तो आसपास चलते-फिरते शैतान या डायन जैसे नज़र आ रहे थे। उन बेचारों को शायद यही नहीं समझ आया, की वो बक क्या रहे थे? किसी इंसान के दुनियाँ से ही जाने के बाद, उसकी witchhunting? ऐसे क्या स्वार्थ थे, इन लोगों के? अब पूरे हो गए क्या वो स्वार्थ? Psychological manipulations at extreme जैसे? और कहीं पढ़ने-सुनने को मिला, की इसी को Psychological Warfare कहते हैं। यहाँ कोई असुरक्षा की भावना से ग्रषित इंसान, सामने वाले का किसी भी हद तक नुकसान कर सकता है। आम लोगों की छोटी-छोटी सी असुरक्षा की भावनाओं का दुहन करती, राजनीतिक पार्टियों की बड़ी-बड़ी कुर्सियों की लड़ाईयाँ? क्या का क्या बना देती है?

ये सब यहीं नहीं रुका। आसपड़ोस में भी फैला। वो भी ऐसे की बड़े-बड़े लोग, आत्महत्याएँ कैसे होती हैं या की जाती हैं, ये बता रहे हों? वो भी डॉक्युमेंटेड जैसे? कौन-सी दुनियाँ है ये? जो स्कूल के बच्चे या बच्चियों तक को ना बक्से? सिर्फ राजनीतिक पार्टियों की कुर्सियों की महत्वकाँक्षाओं की वजह से, या शायद बड़ी-बड़ी कंपनियों के बाज़ारवाद की मारकाट की वजह से?  

ऐसे अंजान अज्ञान लोगों को कौन बचा सकता है? क्यूँकि, सारी दुनियाँ तो कुर्सियों या बाजारवाद की दौड़ में नहीं है? संसार का सिर्फ कुछ परसेंट हिस्सा है। और वही मानव रोबॉट घड़ रहा है, कहीं किसी नाम पर, तो कहीं किसी नाम पर। 

Friday, May 23, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 9

तुम अपने घर का स्टोर क्यों नहीं साफ़ कर लेते? उनमें सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों द्वारा बिठाए नुक्सान पहुँचाने वाले भूतों से मुक्ती क्यों नहीं ले लेते?

और स्टोर ही क्यों? बाकी घर में भी साफ-सफाई करते रहने में क्या बुराई है? दिवाली या त्योहारों पे जो खास-सफाई का चलन है, उसके पीछे शायद ये एक अहम पॉइंट है। दिवाली या त्योहारों के इंतजार की बजाय, उसे हफ़्ते या महीने भर में होने वाली सफाई क्यों नहीं बना लेते? सफाई, जो सिर्फ आपके घर तक सिमित ना रहकर, आसपास का भी ध्यान रखती हो? सफाई ना सिर्फ़ आँखों और मन को शुकुन देती है, बल्की, समृद्धि का भी प्रतीक है। ये सेहत, पैसा और सुख-शांती को आकर्षित करती है। या कहो की सफाई और सेहत, पैसा और सुख-शांती एक दूसरे के प्रतीक हैं? 

सफाई के साथ-साथ, खुले-खुले घर और खुली-खुली जगहें स्वास्थ्य का परिचायक हैं। ऐसी जगहें या घर ना सिर्फ गर्मी-सर्दी को संतुलित रखती है, बल्की, प्रदूषण को भी कम करने का काम करती हैं। कैसे?

एक हज़ार गज में 10 घर और कितने आदमी? कितना पानी, हवा या ज़मीन का प्रयोग या दुरुपयोग? जहाँ पानी नहीं आता या ज़मीन का पानी कड़वा है, वहाँ ये समस्या और भी ज्यादा है। हर घर में तकरीबन वहीँ पे बाथरुम, लैट्रिन और वहीँ पर हैंडपंप या समर्सिबल? गोबर और केमिकल्स भी वहीँ जा रहे हैं और प्रयोग करने के लिए पानी भी वहीँ से लिया जा रहा है?  

दूसरी तरफ 1000 गज में एक या दो घर और कितने आदमी? बाथरुम, लैट्रिन, हैंडपंप या समर्सिबल कितने आसपास या दूर? या शायद पानी की सप्लाई भी बाहर से ठीक ठाक आ रही हो? हैंडपंप या समर्सिबल जैसी कोई बला ही ना हो? 

एक तरफ, अंदर-बाहर दोनों खुले-खुले आँगन और बना हुआ घर। और दूसरी तरफ, खुले घर आँगन को जैसे छोटे-छोटे खामखाँ से कैबिन में बाँट दिया हो? हवा बेचारी कहाँ, कितनी आर-पार होगी? तो गर्मी या सर्दी के क्या हाल होंगे वहाँ?

खुले आँगन में ज़मीन में पेड़ लगाना? या आँगन को भी कैबिन-सा बना, पेड़ों को हटा, छोटे-मोटे एक आध गमलों को जगह? लाभदायक पेड़ों की बजाय खामखाँ से या एलर्जी वाले पेड़ों को जगह? कहीं ठीक-ठाक जगहों के होते हुए भी, तुम्हारे घरों के हुलिए तो नहीं बिगाड़ दिए सिस्टम के इन घड़ने वालों ने? और तुम्हें लग रहा है, की सब खुद तुमने किया है?     

सुना है, की घर में टूटे-फूटे सामान को रखना अशुभ माना जाता था? या तो उसे चलता कर नया ले लिया जाता था या काम का हो, तो ठीक कर लिया जाता था? या देने लायक हो, तो किसी को दान? फिर वो चाहे घर के बर्तन-भाँड़े हों या पहनने या घर में प्रयोग होने वाले किसी भी तरह के कपड़े? ऐसे ही शायद घर की टूट-फूट या रख-रखाव का होता होगा? दिवाली जैसे त्यौहार पर साफ़-सफाई, शायद, इसीलिए ईजाद की गई होगी की ऐसे-ऐसे सामान से भी मुक्ती पाई जा सके? रंग रोगन या थोड़ी बहुत रौनक लाई जा सके? ऐसे सामान से मुक्ती। आप इंसानो से ना समझ बैठना। नहीं तो कहीं कोई बुजुर्ग या बिमार इंसान ये भी कह सकता है, "हाँ, हम भी काम-धाम के नहीं रहे, कर दो चलते" :)    

Psychological warfare, know the facts about narratives 8

हर रोज यहाँ पे कुछ न कुछ घटता ही रहता है। कुछ नौटँकी, कुछ ड्रामे, कल्टेशवर (cult-eshwar?) टाइप? क्या है ये कल्टेशवर? या इस तरह के ड्रामे या नौटंकियाँ? आम लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी के अहम हिस्से जैसे? रोज-रोज उनकी ज़िंदगियों में जो होता है, वो सब। 

मैंने नौकरी से रिजाइन किया ही था, और घर आना-जाना थोड़ा बढ़ गया था। यूनिवर्सिटी में रेगुलर हाउस हेल्प्स को मैं हटा चुकी थी। और ज्यादातर वीकेंड्स पर ही लेबर को बाहर से लेकर आती थी। तो ज्यादातर वीकेंड्स पर, अलग-अलग लेबर होता था। किसी को भी घर में एंट्री से पहले ही, उसके बारे में थोड़ा-बहुत जानकारी लेना पहला काम होता था। ये जानकारी लेना, सिस्टम के कण्ट्रोल चैक पॉइंट्स को समझने में बड़ा मददगार रहा। कौन, कहाँ से है? क्या नाम है? घर में कौन-कौन हैं? रोहतक में कहाँ रहते हैं और कब से रहते हैं? किस तारीख को कौन लेबर आपको मिलेगा और कहाँ से मिलेगा? कहाँ का होगा? उसका नाम, पता क्या होगा? उसके घर पर कौन-कौन होगा? वो कितने पैसे माँगेगा और कैसा काम करेगा; तक जैसे कहीं तय हो रहा हो? और हाँ, किस दिन या तारीख को आपको लेबर नहीं मिलेगा? इतना कुछ कैसे कोई तय कर सकता है? शुरु-शुरु के कुछ महीने तो जैसे, बड़े ही अजीब लगे। और जाने कितने ही प्रश्न दे गए। 

ज्यादा घर आने-जाने ने, यूँ लगा, जैसे इस समस्या को थोड़ा कम दिया। यहाँ पे जो काम करने वाली आती थी, उनसे बात की और उन्होंने हफ़्ते, दो हफ़्ते में एक दो, बार करने के लिए हाँ कर दिया। ये लोग मेरे लिए नए थे। जो बचपन में इन घरों में काम करने आते थे, ये वो नहीं थे। खैर। मेरा काम हो रहा था। और मुझे क्या चाहिए? मगर कुछ ही वक़्त बाद, यहाँ भी आना-कानी शुरु हो गई। काम करने वालों की अपने-अपने घरों की समस्याएँ। थोड़ा बहुत जब उनके बारे में जाना तो लगा, ये तो कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा? गाँव के लोगों की समस्याएँ, अक्सर ज्यादा ही होती है? और थोड़ी अटपटी भी? मगर वो किसी सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों से भी अवगत करा सकती हैं क्या? तब तक ये cult वाली टर्मिनोलॉजी या ये सब होता क्या है, यही नहीं पता था। 

शिव सोलाह? 

या हनुमान चालीसा? 

संतोषी माँ? 

या शेरा वाली माँ? 

माता धोकन जाऊँ सूँ? 

या झाड़ियाँ की धोक?   

साधारण से लोगों की साधारण-सी ज़िंदगियाँ? या ऐसे-ऐसे सिस्टम की चपेट में ज़िंदगियाँ? ऐसे-ऐसे सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों की देन?

बीमारियाँ?

भूत कहानियाँ?

मौतें? 

अनाथ बच्चे? 

एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेड की हुई औरतें?

सिमित ज्ञान और सिमित संसाधन?

और इस सबके बीच या कहो की इस सबको बनाने वाले सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों का ऐसे-ऐसे अंजान, अज्ञान लोगों का शोषण?      

और जाने क्यों, इस सबने मुझे फिर से यूनिवर्सिटी के H #16, Type-3 वाले स्टोर की याद दिला दी। "मैडम, ये स्टोर मैं साफ़ नहीं करुँगी।"

मगर क्यों? पीछे पढ़ा होगा आपने कहीं, पोस्ट में?                                     

Psychological warfare, know the facts about narratives 7

They have seasons. Season 1, season 2, season 3 and so on. 

In which season are you right now?

Evergrowing?

Everlearning?

Evergoing ahead?

Or ever losing?

Depends?


Who has asked this question and for what purpose? There is no one answer or fit for all?

Boss?

Boss? Word is bad enough and better to leave behind? Interesting? 


Is it the purpose or situation at particular time that demans your attention?

Pupose long term. Situation, temporary, but at times, demands attention as well as time.


Since some time, I am hooked to ED. 

ED?

What kind of ED is that? Kinda ED in or ED out? I got many prompts from there for my posts. At times,interesting and helping. At times, as usual like random online stuff.

Balance. Personal and professional space. Home and office duties and responsibilities as well as rights.

Here I did not find jobs, but sermons. Interesting? Job skills? Life skills? Or what's wrong and right at these two places? And how they are so interconnected? People who instead of protecting you, put you through fire? Instead of warning you, put you through trials? Are they family or calling self your people? Maybe extended family?

But then, is not that true for the surrounding also, I am living right now? Remote controlled lives via surveillance abuse? 

Be it so-called extended family or sermon givers themselves, are not they exploiting less priviledged people this way?

Saturday, May 17, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 6

 Factteller, Fictionteller or Storyteller?


Setting the narrative is art and craft? 

--to gain advantage by applying psycological measures and surveillance abuse?

Or maybe for correctional measures?

Depends?

नरेटिव घड़ना अगर कला है, तो नरेटिव के सच को जानना? 

कहानियाँ सुनाना, पुरानी कला है। पहले दादा-दादी या नाना-नानी सुनाते थे, तो बच्चे अपने बड़ों से जुड़ाव महसूस करते थे। फिर TV, मोबाइल और इंटरनेट का जमाना आया और लोगों ने अपना वक़्त बच्चों को देने की बजाय, मोबाइल, टीवी या टेबलेट्स, लैपटॉप वैगरह पकड़ाना शुरु कर दिया। इसे ये सब चलाने वालों ने समझा और एक अलग तरह का शोषण शुरु हो गया?

टीवी, मोबाइल, इंटरनेट अच्छा भी दिखाता है और बुरा भी। वक़्त इसके कारण कहाँ जाता है, पता ही नहीं चलता? माँ, बाप भी अपना काम ऐसे में आसानी से कर पाते हैं। क्यूँकि, बच्चे ये सब मिलने के बाद तो माँ, बाप को जैसे भूल ही जाते हैं? और माँ-बाप बच्चों को? दोनों का काम आसान हो गया? या मुश्किल? ये वक़्त बताता है? 

ये सिर्फ बच्चों पर लागू नहीं होता। बड़ों पर भी होता है। मतलब, लोग मोबाइल, टीवी, इंटरनेट की दुनियाँ में इतने वयस्त हो गए, की एक दूसरे को ही भूल गए? पहले मुझे लगता था की ये ज्यादातर शहरों की समस्या है। मगर, गाँव आकर समझ आया, की शहरों से ज्यादा, गाँवों या कम पढ़े लिखे लोगों की ज्यादा है? इसलिए उन्हें अपने बच्चों के बारे में ही नहीं पता होता की वो क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं या क्या कर रहे हैं? और घर के लोगों में दूरियाँ बढ़ती जाती हैं। एक दूसरे के बारे में ही नहीं पता, तो वो कैसे घर? कैसा घर-कुनबा? इसका फायदा सर्विलांस एब्यूज करने वाली पार्टियाँ और कम्पनियाँ बड़ी आसानी से भुनाती हैं। ऐसे लोगों को रोबॉट बनाना बहुत ही आसान होता है। एक दूसरे के ही खिलाफ प्रयोग करने में, ये अहम भूमिका निभाता है। 

पहले मुझे लगता था की मैं 10th के बाद ही घर और गाँव से दूर हो गई, तो शायद मेरा घर पर विचारों में मतभेद का ये अहम कारण है। क्यूँकि, मैं यहाँ रही ही कहाँ? 

यहाँ आकर पता चला, की मैं थोड़ा दूर रहते हुए भी पास थी। कम से कम फ़ोन पर तो, सबसे बात हो जाती थी। यहाँ तो पास होते हुए लोगों के पास वक़्त नहीं, एक दूसरे के लिए। लोगबाग यहाँ आसपास रहते हुए, एक-दूसरे के बारे में कहीं और से ही ज्ञान लेते हैं। और वहीं मार खाते हैं। जो बच्चे स्कूल के बाद ही पढ़ाई छोड़ देते हैं, या स्कूल के वक़्त ही उल्टे-सीधे केसों में फँस जाते हैं, उनके लिए ये दूरी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे बच्चों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ती।      

सामान्तर घड़ाईयाँ, इसका जीता जागता उदाहरण हैं। लेकिन ये सामान्तर घड़ाईयाँ हैं बड़ी अज़ीब। जैसे कुछ एक केसों में पीछे बताया, की कितना बढ़ा-चढ़ाकर या तोड़-मरोड़ कर घड़ी जाती हैं, ये सामान्तर घड़ाईयाँ। थोड़ा पता होगा तो लगेगा, यहाँ और वहाँ जैसे एक जैसा-सा हो रहा है। मगर, जब पास से हर रोज ऐसी सामान्तर घड़ायीयों को होते देखोगे, तब समझ आएगा की बढ़ाना-चढ़ाना, तोड़ना-मरोड़ना या कुछ नया मिर्च-मसाला जोड़ना, ऐसे में कितना आसान है। 

जैसे?

कहाँ फेसबुक पर झंडा गाडना और कहाँ किसी लेट को रेत से भरकर, उसपर झंडा गाडना? दोनों एक ही बात हैं क्या?

ऐसे ही जैसे, कहाँ टाँग तुड़वाकर बैड पे पड़ा होना या ऑफिस से छुट्टी लेकर फिजियो और एक्सेरसाइज़ पर सारा दिन बिताना और कहाँ वो तो live-in रह रहे थे का, किसी और स्कूल बच्चे का केस? स्कूल बच्चे का केस?

ऐसे ही जैसे, कहाँ किन्हीं रिश्तों पर जुए के नंबरों की मार और कहाँ किसी को दुनियाँ से ही उठा देना? एक ही बात हैं क्या?

ऐसे ही जैसे, एक कोई छेड़छाड़ या रेप का केस और कहाँ उन्होंने कट्टे से फलाना-धमकाना को उड़ा दिया। एक ही बात है? 

ऐसे ही जैसे, कहाँ किताबों का पढ़ना, लाब्रेरी या किताबों का लेन-देन और कहाँ CHAT-GPT, AI और उनके प्रयोग और दुरुपयोग?

ऐसे ही जैसे, कहाँ बन्दूक या पिस्तौल की गोली और कहाँ चोरी-छिपे, खाने-पानी में किन्हीं गोलियों की सप्लाई? 

ऐसे ही जैसे, कहाँ किसी चैट में या ऑनलाइन गुनाह के फूटप्रिंट्स का होना और कहाँ मकानों, दुकानों या ऑफिसों की ईमारतों और सामान में?

ऐसे ही जैसे, कहाँ राजनीति के जुए की बिमारियों की घढ़ाईयाँ और कहाँ खाना-पानी और हवा को प्रदूषित कर, लोगों की सेहत या ज़िंदगियों से ही खेलना?  

ऐसे ही जैसे?

कितने ही, ऐसे ही जैसे, आपके अपने आसपास भरे पड़े हैं। इन्हें और इनके भेदों या फर्क को समझना बहुत जरुरी है, किसी भी स्वस्थ समाज के लिए या आगे बढ़ने के लिए।   

पीछे कुछ अजीबोगरीब से ड्रामे चले। या कहो की रोज चलते ही रहते हैं। मगर, जिनसे वो करवाते हैं, उन्हें उनके दुष्परिणाम कहाँ पता होते हैं? आगे यही ड्रामे करवाने वाले, क्या करेंगे इन लोगों के साथ?  

Friday, May 16, 2025

मैं कहाँ हूँ?

सुना है, 

एक कदम US में है 

और एक यूरोप में। 

ऑनलाइन। 

बाकी, बैठी अभी तक अपने घर ही हूँ। 

है ना मजेदार दुनियाँ?


वो रस्ते (ऑफर?) भी दिखा रहे हैं 

यहाँ भी, यहाँ भी, और यहाँ भी। 

और खतरे भी बता रहे हैं (खतरे?) 

खतरे? भर्मित करने को?

यहीं पे बाँधे रखने को?   

यहाँ भी, यहाँ भी, और यहाँ भी? 


मगर ये ऑफर ऑनलाइन नहीं दे रहे 

जबकि, ऐसे हालात में, 

वो ऑनलाइन कहीं बेहतर कर सकती है।

और कहीं भी रह सकती है। 

शायद, उन्हें ऐसा रास नहीं आ रहा?

कह रहे हों जैसे -- 

निकलो, घर से निकलो। 

और कब तक पड़े रहोगे वहाँ? 

 है ना अजीब (ऑनलाइन) दुनियाँ?


एक बुआ सिर पर मेरे, 

जाने मैं उसकी बुआ हूँ, 

या वो मेरी? 

जितनी बड़ी हो रही है,

उतनी ही बड़ी तानाशाह।

इस घर का छोटा-सा हिटलर जैसे।   

गाने ज़िंदगी का ज्ञान भी देते हैं?

गाने ज़िंदगी का ज्ञान भी देते हैं? एक ही गाना कितना कुछ कह जाता है? कई बार तो, दशकों को एक छोटे-से गाने में पिरो जाता है? एक दशक पहले या दो दशक पहले या उससे भी पहले, वो आपका पसंदीदा गाना हुआ करता था? और आज भी है? गज़ब है? जैसे कुछ, बदलता ही नहीं? वही ढाक के तीन पात-सा? इस दौरान, वैसे से ही शब्द लिए या वैसा-सा ही ज्ञान लिए, कितने ही नए गाने आ जाते हैं? नए वक़्त से कदम-ताल मिलाते से जैसे? मगर, फिर भी आपकी पसंद आज भी वहीँ ठहरी-सी है जैसे?       

बुल्ला की जाना मैं कौन -- रब्बी शेरगिल 

Psychological warfare, Setting the narratives 5

सुना, कुछ लोग, कुछ पोस्ट से बुरा महसुश कर रहे हैं? 

क्यों?

किसी ने आपपे जैसे देशद्रोही सी मोहर लगा दी? पाकिस्तानी कह रहे हैं? चीनी? नेपाली? या किसी भी तरह का अंग्रेज? या अफ्रीकन? जबकि, आप तो ऐसा कहने वालों से कहीं ज्यादा पक्के भारतीय हैं? तो बुरा तो लगना ही है? कौन हैं ये लोग, जो ऐसी कोई मोहर ठोक रहे हैं आपपे?  

आपका जन्म भारत का है? 

आपके माँ, बाप, दादा, नाना सब भारत में ही पैदा हुए? 

आपकी पढ़ाई और परवरिश भी भारत में ही हुई या हो रही है?

आपके सब पहचान पत्र भी भारत के ही हैं?

फिर आपको ऐसा कहने वाले या ऐसी मोहर ठोकने की कोशिश करने वाले लोग कौन हैं? और वो ऐसा, क्यों और कैसे कर पा रहे हैं?  

ये चालाक, ध्रुत और शातिर लोग हैं। 

इनको कहानियाँ घड़नी आती हैं। 

सिर्फ कहानियाँ? अरे नहीं, वो तो कितने ही घड़ लेते हैं। 

इनको ज़िंदगियाँ तोड़नी और मरोड़नी आती हैं। 

ये काफी पढ़े-लिखे और दुनियादारी से कढ़े लोग हैं। 

अरे ! अरे ! आप वाली दुनियाँदारी नहीं। इन्होने सच की दुनियाँ देखी हुई है या शायद दुनियाँ भर में घुमते हैं या दुनियाँ जहाँ का ज्ञान है। 

ये किसी क्षेत्र या भाषा में नहीं बंधे हुए। मगर, आप जैसों को बाँधने के औजार (टूल्स) रखते हैं। 

ये आपसे ज्यादा, आप पर और आपके बच्चों पर वक़्त लगाते हैं। ये बहुत अहम है। 

इन्हें इंसानों को ही नहीं, दूसरे जीव-जंतुओं और निर्जीवों तक को अपने अनुसार घड़ना (चलाना) आता है।   

ये आपकी अपनी राजनीतिक पार्टियाँ और ज्यादातर अन्तर्देशीय कम्पनियाँ और उनके पढ़े-लिखे और कढ़े लोग हैं। 

ये समाज को अपने अनुसार घड़ने का काम करते हैं।  

तभी इन्हें पैसा और कुर्सियाँ मिलती हैं। 

ये रोज-रोज के छोटे-मोटे जीने के संसाधनों को इक्कठ्ठा करने के चक्कर में नहीं। बल्की, वर्चस्व की लड़ाई लड़ते हैं। जिनसे इन्हें और ज्यादा पैसा और ताकत मिलती है। 

कैसे?

नैरेटिव सेट करके। आपके आसपास का माहौल घड़ कर। Media Culture Lab 

आपमें भी है क्या ऐसी ताकत? या आप इन्हीं लोगों की एक छोटी-सी कड़ी का काम करते हैं? अपने रोज-रोज के छोटे-मोटे जीने के संसाधनों को इक्कठ्ठा करने के चक्कर में? जानते हैं आगे, की आप क्या कर रहे हैं और ये क्या?  

Tuesday, May 13, 2025

Eurovision Song Contest, Nearby?

When you forget something integral to you, you forget life somewhere? Or there is no time for music or walk or excercize? It's a place where you can do better, only writing? As everything in the surrounding is like some prompt?

Or better have a break from writing? Oh! Forgot even that Eurovision song contest is also nearby? Is it May?

And like last year, no song is as appealing, as it used to be earlier. Why it's so?  

Freedom is not even on their selected chart? Or even freedom song was not that appealing? Euro colours seems out? It's too dark, sad kinda melancholic? Kinda saying?

Write, sing or search elsewhere your own haapy and joyful songs? Where you can find them in beautiful dresses, beautiful background or surrounding and singing beautiful happy songs?

What they have selected this year or singing on that world stage?

Georgian Freedom?


Naa! Seems a bit strange?

Then?
Shadows and Show?
C?
Y?
P?
R?
U?
S?

Too Dark?
That's where news are doing the round?

बला जी छोटी बेबे न्यूँ कह सै, 
या फ़ूं फ़ूं पाकिस्तान पै अ, चाल्य सै के?
नरे क्रिकेट खेलणीय बालक 
के होग्या, जै छोटी-मोटी बाल फैंक दे सैं तो?  

यो फूफा चीन थारा, ज़मीन हड़पें बैठा
आड़े के आँख मीच री सैं थारी?

हैं बेबे कहवै थी के किमैं?

पेपर टाइगर किते के?
Which song will fit on this?

बाजण दो भाई DJ?
इसपे  Eurovision Song Contest, 2025 का कोई गाना फिट होगा क्या?   
बोले तो कुछ भी :)

Monday, May 12, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर (New Blog)?

ये लो 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 

https://zameenkhoronkezameenidhandhe.blogspot.com/

आगे से इससे सम्बंधित सब पोस्ट इसके नए पते पर मिलेंगी। 

Rhythms of Life को वापस उसकी Rhythms दें? 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 11

 शिक्षा और राजनीती का क्या लेना-देना है, इस केस में?

राजनीती का तो सारा ही है। समाज की सब समस्याओं की जड़ है राजनीती। हालाँकि, समाधान भी वहीं हैं। मगर राजनीतिक रस्तों से अगर समाधान निकालने की कोशिश करोगे, तो शायद आपकी ज़िन्दगी ही नहीं, आपकी कई पीढ़ियों की ज़िंदगियाँ खप जाएँ। 

कोर्ट्स का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। कई केसों में तो कोर्ट्स भी लल्लू-पंजू से नजर आते हैं। ऐसा क्यों? ये शायद खुद कोर्ट्स बता पाएँ? कोर्ट्स इस सिस्टम में खुद एक कोढ़ (कोड) हैं।

इंसान, अच्छे-बुरे हर जगह और हर प्रॉफेशन में हैं। कितनी, कब, कहाँ और किसकी चलती है, ये  अहमियत रखता है, शायद। नहीं तो कितना कुछ कोर्ट्स तक, अपने सामने होते हुए भी, बेचारे से, लाचार से देखते हैं? जैसे उनके पास कोई रस्ता ही ना हो? खैर। शिक्षा का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। ये ज़मीनखोरी का एक छोटा-सा, तकरीबन-तकरीबन उसी वक़्त दिखाया-बताया जा रहा उदहारण है। जहाँ गाँव का कोई छोटा-सा स्कूल, कैसे किसी सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन, अपने ही चाचा, ताऊओं के बच्चों पर मार कर रहा है? 

यूनिवर्सिटी की फाइल्स या इमेल्स और गाँव के स्कूल वालों की घड़ाई? है ना मजेदार? 

वैसे मेरी यूनिवर्सिटी की बचत का अभी क्या चल रहा है?

भाभी की मौत के बाद, मैंने अपने नॉमिनी बदलवाने के ईमेल की। मगर हुआ कुछ नहीं। बल्की, इधर-उधर से चेतावनियाँ आनी लगी, की ऐसा मत करो। ऐसा हुआ तो, तीनों बहन-भाईयों को साफ़ करने की साज़िश है। और ऐसे लोगों के लिए, फिर गुड़िया को औना-पौना करना कितना मुश्किल होगा? समझ ही नहीं आ रहा था की क्या, कहाँ और कितना सच था। मगर मुझे भी लगा, वैसे भी जब इस घर में बच्चा ही एक है, तो अभी तो सब उसी का है। अगर तीनों बहन-भाईयों को ख़त्म करने जैसी कोई साज़िश चल रही है, तो भी उसी का है। मगर ऐसे में, वो भी कितना सुरक्षित होगी? और मैंने कुछ नहीं किया, जो पहले से नॉमिनी थे, वही रहे। ना ही यूनिवर्सिटी ने ईमेल के बावजूद बदले। बचत दो पर ईमेल होती रही। 

एक दिन यूनिवर्सिटी ने उसके लिए भी बुलाया। उसकी पोस्ट मैं पहले लिख चुकी शायद, की कुछ अजीब-सा चल रहा था। मेरे कहने के बावजूद, मेरे घर का पता नहीं बदला गया। मैंने सारे पैसे एक साथ देने को बोला, तो उन्होंने कहा की ऑप्शन ही नहीं है। 

जबकी कहीं और, ये ऑप्शन, मैंने पढ़ी और सुनी थी। 

कहने को मैं sign कर आई, मगर साथ में concerned official को ईमेल भी कर दी, जो कुछ वहाँ हुआ या मुझे समझ आया, उसके बारे में। तो अगर वो पता तक अपडेट नहीं कर रहे, तो उन sign के भी क्या मायने हैं?

आप कूट, पीट, लूटकर निकाल चुके हैं। तो छोटी-मोटी बचत तो शायद सारी दे ही देनी चाहिए। 

अब NSDL या Protean के नाम पर फ्रॉड इमेल्स के ड्रामे शुरु हो चुके थे। समझ ही ना आए, की कौन-सी ईमेल कहाँ-से है? या NSDL की कितनी ऑफिसियल वेबसाइट या ईमेल Id हैं? 

वहाँ भी ईमेल में जवाब यही था, की मुझे मेरा सारा पैसा दे दो। ताकी यहाँ अपना कुछ बंदोबस्त कर, आगे कुछ किया जाय। इस बीच जमीनखोर लोग, अगर फिर से कुछ खुरापात कर रहे हैं, तो इसका मतलब क्या है? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी और गाँव में आसपास काफी कुछ कोआर्डिनेशन में चलता है।   

और ये लड़कियों के हकों पर राजनीती करने वालों के लिए भी। किसी की ज़मीन को यूँ, इतनी टिक्कड़बाज़ियों से, किसी प्राइवेट स्कूल की तरफ खिसकाना, क्या कहलाता है? सिर्फ माँ गई है बच्ची की। बुआ, बेटी दोनों घर बैठी हैं। और हाँ। एक और बुजुर्ग औरत भी है इस घर में, दादी। तो यहाँ शायद, कोर्ट्स भी बेचारे और लाचार ना हों? 

Sunday, May 11, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 10

 स्कूल और दो कनाल ज़मीन (Protection?)

(ये पोस्ट दिसंबर 2024 की है, जब ये सब चल रहा था तभी की) 

सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से?

जिन्हें राजनीतिक जुए की मार आम लोगों पे कैसे-कैसे होती है, को जानना हो, वो इस शराब लत वाले इंसान पे फोकस कर सकते हैं। बहुत-सी मौतों के राज समझ आएंगे और तारीखों के भी। वो शराबी नहीं है, उसे शराबी सिस्टम की जरुरतों या कहो पार्टीयों की जरुरतों ने बनाया है। थोड़ा ज्यादा हो रहा है ना? और उसपे मैं ये कहूं की ये ज्यादातर आम-आदमियों पे लागू होता है। सिस्टम। 

बड़े लोग सिस्टम को बनाते हैं, अपनी जरुरतों के अनुसार। और आम-आदमी बनता है, उनकी जरुरतों का मोहरा, गोटी। इनमें वो भी हो सकते हैं, जो आज इस सिस्टम की या किसी एक पार्टी की जरुरत के अनुसार, इस सामाजिक सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन चुके हैं। जिस किसी वजह से। अगर आप गाँव के किसी स्कूल से सम्बंधित है, तो थोड़ा बहुत पैसा और ठीक-ठाक ज़िंदगी होते हुए भी, सामाजिक सँरचना के पिरामिड में आखिर वाले पायदान पे ही हैं। गाँव आज भी पिरामिड का वही हिस्सा हैं। हाँ। उस गाँव वाले पिरामिड में हो सकता है, स्तिथि थोड़ी-सी सही हो।        

सिस्टम एक पिरामिड है। इस पिरामिड के तीन अहम हिस्से हैं।  

उत्पादक (Producers) : पैदा करने वाला, जैसे खाना, कपड़ा और मकान। और भी कितनी ही तरह के उत्पाद, जो इंसान प्रयोग करता है।           

उपभोगता (Consumers) : प्रयोग करने वाला  

सफाई कर्मी (Decomposers) : साफ़-सफाई करने वाले, किसी भी तरह की 

जहाँ इन तीन हिस्सों में संतुलन है, वो घर, परिवार या समाज संतुलित है। वो इंसान संतुलित है। जहाँ इनमें से किसी एक में भी कहीं कुछ गड़बड़ है या असंतुलन है, वो समाज असंतुलित है। वो सिस्टम असंतुलित है। वो घर, परिवार,  इंसान असंतुलित है।   

स्कूल और दो कनाल ज़मीन का इस सबसे क्या लेना-देना? 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई 

चलो एक दारु-लत वाले इंसान की कहानी सुनते हैं । सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से? 

शायद इसीलिए, भतीजे ने (दूसरे दादा के बच्चे, रोशनी बुआ वाला घर), वो ज़मीन खरीद ली? क्यूँकि, उसने खुद ऐसा बोला की बुआ Protection के लिए ली है। हम नहीं लेते, तो कोई और लेता। किसके और कैसे Protection के लिए? ये समझ नहीं आया बुआ को। ये शराब दो और ज़मीन लो के गाँवों में ही इतने किस्से क्यों मिलते हैं?    

सबसे बड़ी बात, क्या वो ज़मीन बिकाऊ थी? सुना, कुछ वक़्त पहले तो वहाँ स्कूल बनने वाला था। भाभी के जाने के बाद, शायद कोई छोटी-मोटी रहने लायक जगह या कुछ ऐसा-सा ही। बुआ को हमेशा के लिए गाँव रहना नहीं, तो किसके काम आता वो? अरे वो तो पैसा यूनिवर्सिटी ने रोक रखा है ना? वैसे यूनिवर्सिटी की उस छोटी-मोटी बचत में, मैं अपने नॉमिनी बदलने की रिक्वेस्ट भी दे चुकी, काफी पहले। मगर, जाने क्यों आज तक यूनिवर्सिटी ने ना वो नॉमिनी बदले और ना ही मुझे अभी तक वो पैसा दिया। जाने क्या-क्या होता है दुनियाँ में? और क्यों होता है? क्या इसीलिए, की ये थोड़ी-सी किसी भाई की, खास जगह वाली ज़मीन बिकवाई जा सके? क्यूँकि, अब जो नॉमिनी में नाम हैं, उनमें एक ये है, जिसकी ज़मीन बिकवाई गई है। और दूसरा नाम भतीजी। माँ और छोटे भाई का हटा दिया, क्यूँकि उन्होंने कहा की उन्हें जरुरत नहीं है। इस भाई का जैसे अपहरण किया हुआ है और बोतल सप्लाई हो रही हैं। उस हिसाब से तो जल्दी ही खा जाएँगे इसे। या इसीलिए कुछ अपने कहे जाने वाले लोग, किसी गरीब का फायदा उठा रहे हैं? बहन तो कोई सहायता कर नहीं सकती, इस हाल में? बचा कौन? माँ तो वैसे ही आई-गई के बराबर है? भाई क्यों और कब तक भुगतेगा, ऐसे इंसान को?          

वैसे घर पे माँ-बहन को तो जरुर बताया होगा, ये जमीन खरीदने वाले अपनों ने? क्यूँकि, वो माँ के पास घर आता-जाता था और खाना भी वहीं खाता था। कुछ होता तो हॉस्पिटल बहन लेके जाती थी। दो बार तो शराब के नशे की वजह से एडमिट भी हो चुका और deaddiction सेंटर भी जा चुका। ये अजीबोगरीब किस्से-कहानियाँ कैसे और कहाँ-कहाँ जुड़े हैं, ये किन्हीं और पोस्ट में। अगर नहीं संभाला गया होता, तो कितने ही उसके आसपास वालों की तरह, राम-नाम-सत्य हो चुका होता।  

मगर जबसे ये ज़मीन के चर्चे शुरू हुए, खासकर भाभी के जाने के बाद, तबसे कुछ और भी खास चल रहा है। बंदा जैसे अपहरण हो रखा हो। कई-कई दिन फ़ोन बंद। उठाए तो टूल। बहन तो अब तक deaddiction centre भेझ चुकी होती, ऐसे हाल में। मगर, अबकी बार कुछ गड़बड़ है शायद? उसे शराब से दूर और पोस्टिक खाने की खास जरुरत है। मगर कहाँ का खाना, जब शराब देके सब निपट जाए?   

लगता है Protection के लिए काफी पैसे दे दिए? शराब पीने वाले को पैसा? उसे बचाने के लिए या उसका राम-नाम सत्य करने के लिए? अरे नहीं, पैसे उसे नहीं दिए। सिर्फ कोर्ट के जमीन वाले पेपर्स पे ऐसा लिखा है। 1 लाख सामने ही एक पड़ौसी हैं, उन्हें दिए हुए हैं। इन्हीं पडोसी ने बताया, की उन्हीं में से थोड़े-बहुत ले लेता है। 1.5 लाख और कहीं बताए, उस पड़ोस वाले भाई चारे ने। घर वालों से क्या खतरा था, उन्हें क्यों नहीं? अगर ये भी मान लें, की माँ या भाई ने बोलना ही छोड़ दिया है उससे, तो बहन के बारे में क्या कहेंगे? सबसे बड़ी बात, बहन जमीन खरीदने वालों के घर तक गई, जब सामने आया की ऐसा कुछ चल रहा है, या हो चुका। अपना समझ के, की ये मामला क्या है? और खरीदने वाले की माँ बोले, हमें तो खबर ही नहीं? लगता है स्कूल प्रधान चाचा को भी, अब तक भी खबर नहीं हुई? बाकी फोन उठाना या मेसेजेस का जवाब देना, शायद उसके संस्कारों में नहीं। कितने संस्कारी लोग हैं?         

विपरीत परिस्तिथियों का फायदा उठाओ और हालात के मारे को और जल्दी ऊपर पहुंचाओं? बहुत-सी बातों और हादसों पर यकीन नहीं होता। ऐसे, जैसे ज़मीन के पेपर आपके पास आ चुके हों। बेचने, खरीदने वाले और गवाहों के फोटो और अजीबोगरीब-सा, पैसे का हिसाब-किताब भी। ज़मीन, वो भी उस जगह, सच में इतनी सस्ती है? कोड़ी के भाव जैसे। कुछ वक़्त पहले, मैं खुद ज़मीन ढूढ़ रही थी, यहीं आसपास। मुझे तो इतनी सस्ती ज़मीन, कहीं सुनने को भी नहीं मिली। ये स्कूल वाले देंगे इतने में? खुद इन्होंने अभी पीछे काफी किले खरीदे हैं, कितने में? वो भी पानी भरने वाली बेकार-सी ज़मीन। इस ज़मीन के साथ वाली ज़मीन नहीं। शायद इसीलिए, माँ-बहन से बात तक नहीं करना चाहते?      

उसपे ये गवाह कौन हैं? क्या खास है उनमें? घर या आसपास से ही कोई इंसान क्यों नहीं? घर वालों के क्या आपस में जूत बजे हुए हैं? या वो देने नहीं देते? जिसकी बहन कल तक खुद ज़मीन देख रही थी, वहीं आसपास, वो वहीं की ज़मीन क्यों बेंचेंगे? मतलब, धोखाधड़ी का मामला है?

कोर्ट्स को शायद इतना-सा तो कर ही देना चाहिए की किसी को कोई आपत्ति है या नहीं, जैसा एक नोटिस, कम से कम पुस्तैनी ज़मीनो के केसों में घर तक पहुँचवा दें, अगर ज़मीन किसी के नाम हो तो भी। अगर ऐसा हो जाए, तो कितनी ही औरतें या परिवार वाले, बेवजह के कोर्ट्स के धक्कों से बच जाएँ। हमारे इन रूढ़िवादी इलाकों में हक़ होते हुए भी, पुस्तैनी जमीनों को ज्यादातर आज भी, माँ, बहनें नहीं लेती। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं होता, की कोई भी ऐरा-गैरा, नथू-खैरा या जालसाज़ उन्हें धोखे से अपने नाम कर ले। कोई इंसान पिछले कई सालों से दारु की लत से झूझ रहा हो, तो उसका मानसिक संतुलन सही है या नहीं, ये सर्टिफिकेट कौन देगा? वो जो सालों से उसे झेल रहें हैं, और बचाने की कोशिश कर रहे हैं? या वो, जिनकी निगाह, उसकी ज़मीन पे हैं? और ऐसे लोगों को ये ज़मीनों के खरीददार, पैसे भी देते होंगे? कुछ बोतल ही काफी नहीं होंगी? उसकी कहानी किसी और पोस्ट में। क्यूँकि, ऐसी कई कहानियाँ आसपास से सामने आई।      

अपने ही आदमी हैं? घर कुनबा है? इसीलिए, पब्लिक नोटिस लगाना पड़ रहा है, की किसी सुनील की कोई ज़मीन ना बिकाऊ थी, ना है। शराब लत वाले इंसान को बोतल देके, ज़मीन लेने की कोशिश ना करें। और अगर ये पेपर सच हैं, जो मेरे पास थोड़ा लेट पहुँचे हैं शायद, तो इसका साफ़-साफ़ मतलब ये है, की खरीदने वाला भगोड़ा इसीलिए हो रखा है की धोखाधड़ी है। वरना, मैसेज करो तो जवाब नहीं और घर जाओ तो गुल हो जाता है, भतीजा। 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई मुबारक हो। आखिर इस पीढ़ी का नंबर भी तो, कहीं न कहीं से तो शुरू होना ही था? कितना बढ़िया हुआ है ना? अच्छा लग रहा है? बेहतर होता, अपने आसपास की सामाजिक सामान्तर घड़ाइयों से सीख लेके, ऐसे ओछे गुनाह से बचते। अगर शराबी चाचा की सच में कोई फ़िक्र होती, तो उसके वो हाल ना होते, जो हो रखे हैं। वो आजकल है कहाँ और रहता कहाँ है, या खाना वगैरह कहाँ खाता है, ये तो अता-पता जरूर होगा? भगोड़ा होने की बजाय, बेहतर होगा की बुआ से संपर्क करें।      

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 9

कोई अपना शायद ऐसा ही सोचेगा? और ऐसा ही कुछ करने की कोशिश करेगा?

थोड़े कम पढ़े लिखे और बेरोजगार लोग, अगर अपना कुछ पढ़ाई-लिखाई से सम्बंधित शुरु करेंगे, तो ना सिर्फ साफ़-सुथरे, बने-ठने, साफ़-सुथरी जगह रहेंगे। बल्की, अच्छा बोलेंगे और कुछ न कुछ रोज नया सीखेंगे। राजनीती के दुरुपयोग करने वालों से या जालों से थोड़ा-बहुत बचेंगे। और क्या पता, चल ही निकलें। क्यूँकि, ज़िंदगी में इतना कुछ झेलने के बाद, शायद, थोड़ी-बहुत तो कुछ करने की इच्छा जाग ही जाती होगी? बशर्ते, ऐसा भला चाहने वालों के बीच रहें? 

और नाश उठाने वाले? 

ऐसे लोगों की कोई सहायता करनी तो दूर, जो थोड़ा-बहुत भी उनके पास होगा, उसे भी छीनने या ख़त्म करने की कोशिश करेंगे?

क्या चाचे-ताऊ भी ऐसा कुछ करते हैं?

दिसंबर 2024, 15 या 16?  

अजय आता है और बताता है, की लक्ष्य ने कल सुनील की ज़मीन ले ली। 

ले ली? या तेरा भी बीच में कोई लेना-देना है? ऐसे कैसे ले ली?

अशोक दांगी को फ़ोन जाता है, मगर उठाया ही नहीं जाता। कई कॉल जाती हैं, पर कोई उत्तर नहीं। चलो, व्यस्त होंगे। 

उसके बाद लक्ष्य दांगी की माँ कान्ता को फ़ोन जाता है और बोलते हैं, की मुझे तो ऐसा कुछ पता ही नहीं। पुछूंगी, लक्ष्य से। 

अगले दिन उनके घर जाकर मैं भी मिलती हूँ। मगर, कान्ता भाभी की जुबाँ कभी कुछ बोलती है, तो कभी कुछ। मतलब, सब पता है, और शायद साथ में शय भी दी हुई है।         

खैर। जब लोगों के असली रंग समझ आने लगते हैं, तो उन्हें साफ़-साफ़ बता भी दिया जाता है, की इसे धोखाधड़ी बोलते हैं। 

ऐसा ही कुछ अशोक दांगी और लक्ष्य दांगी के FB पर मैसेज भी होता है। 

उसी की कॉपी 

उन दिनों सुनील महाराज तो घर ही नहीं आ रहे थे। 
मैं प्लॉट गई देखने, तो बेचारे के ये हाल थे। 

बेचारे को ना चाल आ रही थी और पड़े-पड़े जो बक रहा था, वो तो क्या कहने?
ऐसे लोगों से, घर वालों की नाराजगी के बावज़ूद, कैसे अपने ज़मीन लेते होंगे?  
और वो ऐसे हाल में उसे पैसे भी देते होंगे?
मारने के लिए?
चल, जल्दी ख़िसक? 
या ऐसे लोगों की कॉपी भी कोई और ही सँभालते हैं?  





Saturday, May 10, 2025

संदेशवाहक, गुप्तचर, गुप्तदूत? (Social Tales of Social Engineering)

 Diversity of Messaging? 

ये पोस्ट तो? पिछले साल पढ़ी होगी आपने कहीं इसी या Social Tales of Social Engineering (40) में?

फिर आज कहाँ से आ गई?

कुछ चीज़ें एक बार में समझ नहीं आती? बार-बार पढ़ने पर या आसपास घटने पर, कहीं बेहतर समझ आती हैं? इसमें ऐसा क्या खास लगा मुझे?      

संदेशवाहक, गुप्तचर, भेदिया, विभिषण, गुप्तदूत? और भी कितने ही नाम हो सकते हैं ना? वो जो सब्ज़ी देने आते हैं। वो जो गुड़-शक्कर बेचने आते हैं। वो जो कटड़ा, भैंस बेच लो वाले आते हैं। वो जो बैडशीट बेचने आते हैं? वो जो शर्फ़ बेचने आते हैं? वो जो रद्दी लेने आते हैं। वो जो सूट बेचने आते हैं। वो जो झाड़ू, वाइपर बेचने आते हैं। वो जो चुन्नी बेचने आते हैं। वो जो शाल बेचने आते हैं। वो जो टीशर्ट, पायजामा बेचने आते हैं। 

उसपे वो जो मंदिर में सुबह-शाम भजन सुनाते हैं। या कोई खास मैसेज बताते हैं। वो जो ट्रैक्टर-ट्राली, गाड़ी, झोटा-बग्गी या कोई और व्हीकल्स आते हैं। वो जो पेड़-पौधे बेचने आते हैं। वो जो किसी के घर या दुकान के बनाने का सामान लेकर ईधर या उधर जा रहे होते हैं। वो जो साफ़-सफाई वाले आते हैं। या कब-कब आना बंद हो जाते हैं। वो जो फलाना-फलाना जाती से कुछ बुजुर्ग महिलाएँ, जो अब काम-धाम करने की हालत में नहीं हैं, सिर्फ़ खाना या कपड़े वगरैह के लिए कभी-कभार आते हैं। वो जो चप्पल-जूते बेचने वाले या ठीक करने वाले आते हैं। वो जो कुकर, गैस चूल्हा ठीक करने वाले आते हैं। 

वो जो, और भी कितनी ही तरह के पशु-पक्षी, कीट-पतंग, कीड़े-मकोड़े, सबके सब जैसे, संदेशवाहक कोई। आप जहाँ रहते हैं, उस सिस्टम की गवाही के गुप्तचर या कोढ़ कोई, ठीक आपके सामने होते हैं। कुछ ऐसा बता रहे होते हैं, जिनका अर्थ या अनर्थ उन्हें खुद नहीं पता होता। 

ये आपके आसपास के जीवन के बारे में और उनसे जुड़ी बिमारियों या रिश्तों की दरारों या कड़वाहटों, उनसे उपजे उत्पादों, कारकों के बारे में कितना कुछ बता रहे होते हैं? उनकी उत्पत्ति या प्रकिर्या के बारे में? और शायद उनके समाधानों के बारे में भी? कौन-सा जहाँ है ये? मुझे ये सब किसने और कैसे बताया? दुनियाँ के हर कोने में है, ये जहाँ। एक दुनियाँ के स्तर की बड़ी-सी लैब। जिसे जितने चाहो, उतने छोटे या बड़े स्तर पे अध्ययन के दायरे में रख सकते हैं। इससे भी मज़ेदार बात, ये लैब किसी भी विषय के लिए बंद नहीं है। जो चाहे, जिस विषय से चाहे या जिन विषयों की चाहे, मिश्रित खिचड़ी (Interdeciplinery) पका सकता है। और अध्ययन कर सकता है। आप आर्ट्स से हैं, तो आपको अपने लायक बहुत कुछ मिल जायेगा। विज्ञान से हैं, तो भी। और अर्थशास्त्र से हैं, तो भी। मर्जी आपकी, की कैसे और क्या जानना चाह रहे हैं।                          

OSLO UiO 

सोफ़े के कवर लो 

गद्दे के कवर लो 

मेज के कवर लो 

मुझे बालकनी में देख ठहर गई वो। मेरी तरफ देखा, सोफ़े के कवर ले लो। 

कहाँ से हो?

सुनारियाँ चौक से 

अरे आप कहाँ से आए हो? 

रोहतक, सुनारिया चौक 

अच्छा रहते हो वहाँ? 

हाँ! झोपड़ी है। 

वहाँ कहाँ से आए हो?

UP 

सोफे के कवर ले लो 

अरे, मैं तो मेहमान हूँ यहाँ। ऐसे ही पूछ रही थी। 

माँ आसपास होती तो सुनाती। पागल हो गई शुरू। किसी भी, कुछ भी बेचने वाले को रुकवाकर, पूछने लग जाती है। क्या मतलब हुआ, खामखाँ में? और फिर कोई भी कहानी घड़ देगी उसकी।   

जैसे हरी-भरी टोकरी और गई भैंस पानी में? या  "Don't Cross, Police Zone GAI Inspection"?

मतलब कुछ भी :)    

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 8

फोटुओं की कहानी, बड़ी अजीब होती हैं वैसे?

ये भी यहीं आकर पता चला। आसपास सुने, किस्से-कहानी। 

बला, फलाना-धमकाना मोबाइल में फलाना-धमकाना की फोटू लिए हांड्य सै। सुथरी, पढ़ी-लिखी छोरी की फोटू लागय सै, अर न्यूं कह सै अंडी, या तेरी होण आली भाभी। 

अर छोरी किहअ और की अ लेहें बताई। भाई यो साँग के सै? 

बला जी इसे-इसे तो नरे साँग सैं।  

किसे का कितय इंटरेस्ट, अर किसे का कितय। 

अब ये इंटरेस्ट, घर बनाने के लिए माँगे गए लोन पर है?

या लोन ले लो, लोन ले लो, पर्सनल लोन ले लो। अरे मैडम, लोन ले लो। कह कहकर, दिए गए one click पर्सनल लोन पर है? 

घर के लिए लोन के लिए अप्लाई करना? और उसकी मोटी-सी फाइल बनवाकर, कई दिन धक्के खिलाकर, लोन ना देना? SBI, MDU  

मगर, उसी बैंक द्वारा, कोई खामखाँ-सी app बनाकर, one click लोन, जबरदस्ती पीछे पड़कर देना? मैसेज पे मैसेज भेझकर। SBI, YONO App 

क्या कहलाता है ये?   

ये सब कहीं और मिलता-जुलता है क्या? 

Conflict of Interest की राजनीती? बला जी, इनकी चाल जा तै भाई, भतीजां नै खसम बना दें। अर बाहण, बेटियाँ नै लुगाई। लिचड़ान की, बेहुदा सुरँग बताई ये तो। और इन सुरँगों के तरीके? ऐसी जोर आजमाईश के?

भाई इस ज़मीन प किमैं ना बनाइये, बाहण नै तै कती नहीं बणाण दिए। कैंसर हो ज्या गा भाई। बयाह ना होवै फेर। या किसे का होरा हो तो? बालक ना होवैं। 

चाचे, ताउवां नै दे दो वाह ए ज़मीन? अर थाम उनके जाड़े पाड़ते हांडो फेर? ना कोय बीमारी हॉवे अर घर भी बढ़िया बसैंगे?  

कैसे-कैसे फद्दू खिंच सकते हैं ये, भोले लोगों का? और कैसे-कैसे तरीकों से एक दूसरे से भिड़ाने की कोशिश कर सकते हैं? सिर्फ ज़मीन का कोई टुकड़ा हड़पने के लिए? Conflict of Interest की राजनीती, ऐसे ही खेलती है, आम लोगों से? और कब से खेलती आई है? यहाँ पे जितना देखो, समझोगे, उतना भेझा खराब होगा। की फद्दू बनाने की कोई सीमा है?

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 7

मैं जब घर आई तो मेरे पास ढंग की रहने या पढ़ने-लिखने की जगह नहीं थी। इतने सालों खुले और ठीक-ठाक से (युनिवेर्सिटी) घरों में रहकर, एक कमरे या एक छोटे-से मकान में सिमट जाना, घुटन जैसा-सा था। अब अपना घर है और बचपन वहाँ बिता है, तो आदत तो वक़्त के साथ पड़ जाएगी। मगर, अब आप वहाँ रहोगे क्यों? किसलिए? होना तो ये चाहिए की माँ को भी वहाँ से अपने साथ कहीं ढंग की जगह ले जाओ। भाईयों को भी किसी ढंग के काम लगाओ। मगर आप जो सोचते हैं, जरुरी नहीं वो किसी आसपास को या वहाँ की राजनीती को भी सूट कर रहा हो। हुआ भी वही। जो कुछ करने की सोचो, उसी में आगे से आगे रोड़े। वो भी अपनों या आसपास द्वारा ही? या ये सब भी कहीं और से ही रिमोट कण्ट्रोल हो रहे हैं? मानव रोबॉटिकरण, यही सब देख, सुन और समझकर, पता चलने लगा था। आम लोगों में खोट नहीं है। गाँव का या कम पढ़ालिखा या आज की टेक्नोलॉजी के प्रयोग और दुरुपयोग से अंजान इंसान, आज भी पढ़े लिखे और कढ़े शिकारियों से कहीं ज्यादा भोला है। ये तो Conflict of Interest की राजनीती की पैदा की, चारों तरफ चोट हैं। ऐसे भी और वैसे भी। 

मुझे कम जगह में या भीड़-भाड़ वाली जगह रहना पसंद ही नहीं। तो सबसे पहले गाँव से थोड़ा दूर जो ज़मीन है, वहाँ एक रुम सैट बनाने का इरादा था। मगर, वो सबने घर पर ये कहकर मना कर दिया, की रहने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है। ये स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर बनाने का प्लॉन भी, यहीं घर से निकल कर आया था। क्यूँकि, मुझे किसी स्कूल जैसी जगह के इतने पास रहना भी पसंद नहीं। शोर और कुछ भीड़ तो वहाँ भी होगी। खैर। कई और सहुलियत हैं, जो उस ज़मीन को ज्यादा सही बता रही थी। वहाँ पानी मीठा है, जो यहाँ के गाँवों की खास दिक्कत है। और इसीलिए ऐसी ज़मीनो के रेट भी ज्यादा हैं। गाँव के बिल्कुल साथ लगती है। आसपास घर बन चुके हैं। स्कूल तो है ही। हाईवे पर नहीं है। तो रहने के हिसाब से ज्यादा सही है। आसपास चारों तरफ खेत हैं, जिन्हें खुला पसंद है। लो जी, वहाँ की हाँ क्या की, आदमखोरों के जाले फ़ैल गए। उसके बाद तो जो कुछ हुआ, पीछे पोस्ट्स में लिखा ही जा चुका। 

स्कूल वालों को क्या दिक्कत थी की वहाँ कुछ ऐसा ना बनने दें? भाभी स्कूल का प्लान बना चुके थे। अब जो स्कूल को बिज़नेस बोलते हैं और बिज़नेस की ही तरह चलाते हैं, उनके धंधे पर असर नहीं पड़ेगा? और वो तो पिछले 20-22 सालों में कितनी ही बार वो ज़मीन माँग चुके थे। और हर बार उन्हें मना किया जा चुका था। अब कोई उस ज़मीन पर अपना कुछ बनाने की भी सोचे, इतना बर्दास्त कैसे हो? नहीं तो चाचा, ताऊओं का होना तो ये चाहिए, की तुम भी बसो और आगे बढ़ो? आजकल ऐसे चाचे-ताऊ कहाँ हैं? होंगे कहीं, मगर यहाँ? यहाँ तो कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। वो भी बड़ी ही बेशर्मी से। एक दिन जुबाँ ऐसे चलेगी और अगले दिन कुछ और ही रचते नज़र आएँगे? कर दो साफ़ तीनों को और सिर्फ यही ज़मीन क्यों, बाकी सब भी तुम्हारा। लड़की का क्या है, वो तो वैसे भी किसी और घर जाती हैं। उनके अपने घर कहाँ होते हैं? कहीं भी नहीं। 

अब मुझे तो वहीँ बनाना है, चाहे रहना कहीं भी हो। देखते हैं आगे-आगे, की ये लालची और हरामी भतीजा और इसके पीछे वाली सुरँगे और क्या-क्या रचती हैं? सुन बेटे, सबके बीच सुन, तूने धोखाधड़ी से उस ज़मीन पर अपना नाम भी लिखा लिया हो (खास वाली फोटो खिंचा ली हो), तो भी वो तेरी नहीं। 

Clickbait Business? हाँ, यही हाल रहे तो जेल तेरी और तेरे साथ-साथ, ये सब रचने वालों की जरुर होगी। कोर्ट क्या कहते हैं, वैसे इसमें? उनके पास तो आजकल सब सबूत होते हैं।     

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 6

घरों से प्लॉट की तरफ, वहाँ पे लेट (तालाब) की ज़मीन, आसपास लगते लोगों द्वारा हड़पने की कहानी और यूक्रेन युद्ध? अज़ीब किस्से-कहानी हैं ना? और उससे भी ज्यादा अज़ीब, संसार के किसी और कौने में, ऐसे-ऐसे युद्धों की सामान्तर घढ़ाईयाँ?   

यहाँ चाचा के लड़के का अहम रोल रहा? या जो राजनीतिक सुरँगे, उससे वो सब करवा रही थी, उनका? शायद दोनों का ही? ये मोहरा? और वो अहम खिलाड़ी? जो दूर, बहुत दूर बैठे, किसी रिमोट-सा सब संभाल लेते हैं? और ये सब करने के लिए उसे पैसे देने वाले का?   

अगर कोई इंसान ये कहे, की मैं कुछ भी करुँ, मुझे मेरे घर वाले बचा लेंगे या फिर भी हमेशा साथ रहेंगे, तो गड़बड़ उस घर में या उन अपनों में भी है? या शायद, वो ऐसी हेकड़ी, सिर्फ खुद को बचाने के लिए कर रहा है? या शायद उस जगह का या ऐसी-ऐसी जगहों के माहौल ही ऐसे होते हैं? उन्हें ना खुद अपनी काबिलियत पता होती और ना उन्हें बताने वाले? उन्हें ऐसे रस्ते ही नहीं दिखाए जाते, जहाँ जितनी मेहनत ऐसे-ऐसे तिकड़म कर कुछ हड़पने की बजाय, शांति और ईमानदारी से कमाने में मिलता है? सिर्फ राजनीतिक पार्टियाँ या उनकी सुरँगे ही नहीं, बल्की, खुद अपने, कहीं न कहीं, गलत करने की तरफ धकेलने में सहायक-सी भुमिका निभा रहे होते हैं? अब वो छोटा-मोटा कुछ गलत करने से नहीं रोक रहे या उसमें सहायक बन रहे हैं, तो आगे जब वो बड़ा कुछ गलत करेगा, तब रोकेंगे क्या? या चाहकर भी रोक पाएँगे?

अब प्लॉट की ज़मीन आगे बढ़ाई है, रेत डाल-डाल कर। उसमें कुछ तो पैसे लगे ही होंगे? और थोड़ा-बहुत रिस्क और उलझन भी उठाई है? तो वो पैसे निकलेँगे कैसे और कहाँ से? ये बताने का काम भी राजनीतिक पार्टीयों की सुरँगे ही करेंगी? वो आपको आगे से आगे, छोटे-मोटे लालच देते चलते हैं? और आप लेते चलते हैं? बिना दूरगामी परिणाम जाने या समझे? खेल तो सब वही राजनीतिक पार्टियाँ और उनकी सुरँगे रच रही हैं ना? फाइल यूनिवर्सिटी में चलती हैं और ज्यादा बड़ी मार के लिए, सामान्तर घढ़ाईयाँ बढे-चढ़े रुप में, गाँवों में या ऐसी सी जगहों पर घड़ी जाती हैं? कुछ गलत तो नहीं कहा? या सब मैच कर रहा है? कब यूनिवर्सिटी में क्या हुआ या कैसी फाइल चली या ऑफिसियल ईमेल और कब गाँव में क्या कुछ घड़ा गया? इन कम पढ़े-लिखे बेरोजगारों को तो ऐसा कुछ अंदाजा तक नहीं होगा? खुद मुझे ही नहीं पता था। जब तक ये सब गाँव आकर आसपास देखना, समझना और झेलना शुरु नहीं किया।  

पहले यहाँ बच्चों के या युवाओं के ख़िलाफ़ जितने भी केस हुए, वो भी ऐसे ही हैं? अब ज्यादा पहले की फाइल्स का रिकॉर्ड तो मेरे पास नहीं, क्यूँकि, तब तक खुद मुझे नहीं मालूम था की ये सिस्टम और राजनीती काम कैसे कर रहे हैं? या आम लोगों की ज़िंदगियों को कैसे-कैसे प्रभावित कर रहे है? हाँ। जो कुछ चल रहा था, उसके किसी न किसी रुप में ऑफिसियल रिकॉर्ड हैं। और वो बड़ी आसानी-से मैच किए जा सकते हैं? 

अब पैसे उघाने हैं और उसी में थोड़े-बहुत कमाने को भी मिल जाएँगे? तो उन्हीं राजनितिक सुरँगों का अगला दाँव? स्कूल पे पास वाली खेत की ज़मीन? उसके लिए फिर से उनके काम कौन आएगा? सोचो? 

Friday, May 9, 2025

आओ बच्चो (लड़ाको?) दुनियाँ की सैर पर चलें? 2

एक हॉल है, बड़ा-सा? या शायद, ठीक-ठाक सा? उसमें एक स्क्रीन लगी है, और सब सामने स्क्रीन पर देख रहे हैं? क्या देख रहे हैं? उसके बाद, नहीं, साथ-साथ कुछ बातचीत भी कर रहे हैं? स्क्रीन पे कोई है, उससे बात कर रहे हैं? और आपस में भी कुछ विचार विमर्श हो रहा है? बच्चों की बैठक चल रही है। और दूसरे स्कूल के या शायद कॉलेज या यूनिवर्सिटी के किसी टीचर से, गेस्ट लेक्चर ले रहे हैं शायद? वो भी इतनी रुची के साथ? देखो उसमें कोई सो तो नहीं रहा? या आपस में कोई बात तो नहीं कर रहा? या शायद तो कोई अपने ही लैपटॉप पर खेल भी रहा है?

ये कैसे स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी हैं?

और ये क्या? एक ही गेस्ट लेक्चर में कितनी क्लासेज या कोर्स के बच्चे बैठे हुए हैं?

देखो तो?

जी। 

यो आपणा मोदी बैठा भाई। साथ मैं नरेंदर। अर, जय (भगवान) नै भी पकड़ कै ला रे हैं। 

ये भूत भी पकड़ लावैं सैं? 

यो रवि (इन्दर, जडेजा), अर सुनील (गावस्कर), अस्वनी अर? अर बाकियाँ के नाम अस्वनी ने बेरा। 

न्यून-सी कोए परले हेर (गिंधराण) का MLA बताया भाई। राकेश नाम है शायद? तरुण, कप्तान अर अंजू, संतोष, मंजू। और भी घणे अ सैं। 

ये कोई भी और कैसी भी भाषा चलती है क्या ऐसी क्लॉस में?

हाँ जी। सब चलता है। 

ये तो अलग-अलग क्षेत्र, अर अलग-अलग विषय के बालक बिठा रे सो भाई। हाँ। अर दादी नै बता दिए, अक अश्वनी भी मस्त पढ़अ  है, इन क्लास में। कदे आप शिकायत करो और वो गुरुकुल में भेझण की बात। 

सही। कौन-कौन से विषय के बच्चे हैं ये? और कौन-कौन से विषय पढ़ाते हैं, आपको? अब रुची तो होनी ही चाहिए, जब सिखाने वाले इस स्तर के शिक्षक हों तो?

जी। कोई होम अफेयर्स। कोई फॉरेन अफेयर्स। कोई डिफ़ेंस मिनिस्ट्री। कोई शिक्षा विभाग। कोई राजनीती और कोई कॉमर्स। और भी घणे ए सैं जी। 

खिलाड़ी भी हैं जी। वो भी, अलग-अलग विषय के। 

और अलग-अलग बैठक में, अलग-अलग देश और इलाके से होते हैं।  

सही। ये कौन से दिन, किस वक़्त, कौन-से रंग की बॉल, कितने बजे फेंकनी होती है, ये बताने वाले कोच कौन हैं?

जी। वो चैनल आले बतान लाग रे। आप कती अ वो चैनल ना देखते? कौन-से इलाके की लाइट गई या आई? कब गई या कब आई? किसके घर का बाहर का या अंदर का बल्ब कब जलता है और कब बंद होता है। कौन से इलाके को कब ये पाकिस्तान बोल दें और कब अमेरिका या इजराइल। कहाँ अफ़ग़ानिस्तान, कहाँ UK और कहाँ फ्रांस। ये क्रिकेटर की तरह कमेंट्री करना और कहानियाँ घड़ना तो न्यूज़ चैनल्स ही सीखा रहे हैं।  

काफी हो गया। आज की क्लास यहीं ख़त्म करते हैं। बाकी आप पढ़ते रहिए। अगर बाहर की यूनिवर्सिटी की सैर कराने का बोला है, तो आगे-आगे पोस्ट में वो भी कराएँगे।             

आओ बच्चो (लड़ाको?) दुनियाँ की सैर पर चलें? 1

पिछले कुछ साल मैंने बड़ी सैर की, ऑनलाइन। कभी US, कभी यूरोप तो कभी ऑस्ट्रेलिया। और कभी-कभार एशिया भी। अफ्रीका अभी रहता है। पता नहीं कब शुरु करुँगी? 

सोचो, जब आप चारों तरफ लड़ाकों वाले ड्रामों से घिरे हो। जहाँ कभी कोई बॉल आके गिरे किसी फाइबर पर या छत पर या कभी-कभार तो घर के अन्दर भी पता ही नहीं कब धड़ाम। कभी बाहर दरवाजे की साइड चले जाओ, तो कोई नाली या किसी तरह का गाली युद्ध चल रहा हो। या? जाने कितनी ही तरह के ड्रामे? यहाँ? यहाँ? यहाँ? इधर? उधर? उधर? या शायद फ़ोन या ईमेल पर ही?

ऐसे में, इन सबसे दूर आप किसी और ही दुनियाँ की सैर पर हो? वो भी अपने घर, अपने ही कमरे पर या नीचे बैठे हुए? क्या देख रहे हैं, उस सैर पर? कुछ खेल? या विडियो गेम्स? या ऐसी कोई डिग्री? या डिग्रीयाँ? ये तो मस्त हैं? ऐसे भी कोई पढता या पढ़ाता है?

कैसे? एक ओपन हॉल है, बड़ा-सा और एक बड़ा-सा स्क्रीन लगा हुआ है? और बच्चे वहाँ अच्छी-अच्छी कुर्सियों या सोफों पर बैठकर, सिर्फ कोई खेल नहीं देख रहे, बल्की, एक विडियो में ही पूरा चैप्टर पढ़ रहे हैं?

और अगले विडियो में? अरे, अब वो विडियो नहीं देख रहे। विडियो खेल, खेल रहे हैं। नहीं, नहीं। विडियो में ही, अगले चैप्टर की खेल-खेल में ही प्रैक्टिस कर रहे हैं। 

पता ही नहीं, कितनी ऐसी प्रैक्टिस कुछ ही दिनों में कर चुके। इन बच्चों को तो लगता है, चस्का लग गया है, पढ़ने का? पढ़ने का या विडियो गेम्स का?

अब उनका वीकली टैस्ट है। और सुना है, नंबर भी मस्त आ रहे हैं, तकरीबन सब बच्चों के? जो जितने ज्यादा विडियो खेलता है, उसके उतने ही ज्यादा नंबर हैं? 

हैं? ऐसा भी कहीं होता है?

चार हफ़्ते हो गए और कोई भी अब्सेंट नहीं? लो जी, मंथली टैस्ट आ गया? 

यहाँ भी सब बच्चों के तक़रीबन पुरे नंबर आ रहे हैं?

आओ बच्चो (लड़ाको?) दुनियाँ की सैर पर चलें?

वैसे इस मंथली टैस्ट से आगे पढ़ाई कैसे होगी? सोचो? 

Travel? By Road, Air or Water?

सुना है, Rhythms of Life को साँस लिए कई दिन हो गए? तो चलो, थोड़ा घूम लें?

कहाँ चलना है? कैसे जाएँगे?

रोड़ से? पानी से? या हवा में उड़कर?  

कितने ही तरीके हैं ना, इन सब तरीकों से कहीं भी जाने के? किसी ने कहा, गाडी नहीं है? तो Air Bike ले लो। मस्त है। ड्रोन जितनी-सी, हल्की-फुल्की सी? ये भी सही है?          

ऐसी-सी?



फिर किसी ने कहा, जब हल्की-फुल्की की ही बात है तो?
सिर्फ एक सूट बहुत नहीं रहेगा?


कितने बावलीबूच हैं ना?

हल्का-फुल्का उड़ना है? उसपे पैसे भी कम लगाने हैं? तो ख्यालों में उड़ना कैसा रहेगा? अगर बिल्कुल फ्री चाहिए तो?

और थोड़ा बहुत इंटरनेट लायक पैसा हो तो, चलो मेरे साथ, चलते हैं घुमने कहीं? मैं तो इतने से में सुना है, रोज ही उड़ती हूँ। आज इस शहर, कल उस शहर? आज इस यूनिवर्सिटी और कल उस यूनिवर्सिटी?

तो किस शहर या यूनिवर्सिटी की सैर पर चलना चाहेंगे आप? इंडिया-पाकिस्तान के चैनलों की भड़ाम-भड़ाम से दूर कहीं, बिल्कुल शाँत-सी, सुन्दर सी जगह? 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 5

यूक्रेन युद्ध शुरु हौगा।  

बला, माँ-बेटी मैं कीमे छोटी-मोटी कहा सुणी तै ना हो री?

बेटी का सामान आ गया, वो कोई घर खाली कर रही थी यूनिवर्सिटी में शायद, और इस माँ के छोटे-से घर पर इतना सामान रखने की जगह नहीं।  

ले भाई, वो अंडी नै फेसबुक पै झंडा गाड दिया। 

अच्छा। ले हाम नै भी गाड दिया, महारे प्लॉट मैं। 

यो के सौदा भाई?

दे ट्रकां, दे ट्रकां, या लेट भी आंट दी एक अ रात मैं। जै दूसरी गली कन्हाँ, दूसरा गेट ना काढ़ दिया, तै हाम भी साँ ए ना। 

दूसरी गली कन्हाँ?

हाँ। महारे सरपँच की गली। 

महारे या महारी सरपँच की?

हाँ। हाँ। गामां मैं एक अ बात होया करै। 

अच्छा? आदमी-औरत एक? 

छोड़।    

खोपरो, यो के साँग मचा राख्या सै? या पंचायती ज़मीन क्यों हड़पण लाग रे सो?

पंचायती? हाम तै नू सुणी सै अक इसके साथ जिस-जिस की ज़मीन लागै सै, उनकी सबकी सै। अर गाम का गन्दा पानी, सारा चलता कर राख्या सै ईहमैं। सुना सै, सफाई होवै सै या तै आसपास की। अर पंचायती? माहरे सरपंच कै एक कमरा-सा बताया कैदे आडै-सी, उह तै आगे सारी याहे पंचायती हड़प रहा सै अंडी। आज घर देखा सै उहका? कीत तहि पहुँच रहा सै?   

तू पंचायत की बात करै ,आङे आपनै MLA, Ex MLA, गाँव मैं सबतै घणी ज़मीन के मालक बतानियें, बेरा ना कीत-कीत की ज़मीना पै, दादागिरी मैं आपणे नाम कराएँ हॉन्डें सैं। 

और लो जी, सुना, उसी दिन कोई पुलिस भी आ गई वहाँ, ये देखने की पंचायती ज़मीन पै साँग माच रहा सै। सुना, किसे MLA नै ए भिझवाई। मगर आई और गई। अब कोई कहे, पहले सरपंच या MLA को पकड़ो, या इनकी हड़पी हुई खाली करवाओ। तो पुलिस भी आपणा-सा मुँह लेकै ए चालती बनती होगी? खैर, सुनी-सुनाई बातें, इधर-उधर की।   

बेरा ए ना, कित सो ना धर राख्या सै, अर कीत सोनी आ? कीत सोना लीका अर कित, किसे-किसे राम या बलवान धरे सैं। भुण्डा साँग सै। इस पंचायत की तरफ ये, तो उस  पंचायत की तरफ किमैं और। पंचायत या म्युनिसिपलिटी बदली, अर, उडे की ज़मीना की कहानी भी।      

ये साँग कई दिन चला। सुना यूक्रेन युद्ध चल रहा था कोई। कहीं झंडा सिर्फ फेसबुक पर गड रहा था, तो कहीं? किसी ज़मीन पर?

बस इतना-सा ही फर्क है, की कहीं सिर्फ फाइलें चलती हैं। ज्यादा हो जाए, तो कोर्ट केस। 

अमिर हों तो, सब उनके वकील निपटते हैं। साहब लोग सिर्फ उन्हें पैसे देते हैं। कोर्ट में शायद ही कभी दिखते हैं। गरीबों के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं होती। हकीकत ये होती है, की गरीब होने का मतलब ही अक्सर हार होता है? उन्हें पता ही नहीं होता, की उनके केस में चल क्या रहा होता है। जब पता चलता है, तो साहब लोग बहुत कुछ निपटा चुके होते हैं। वकील इधर का हो या उधर का, अक्सर होता इन साहब लोगों का ही है। अक्सर। तो इतना पता होते हुए, पंचायती जैसी ज़मीनों के लिए, कौन कोर्टों की तरफ देखता होगा? थोड़े बहुत पुलिस ड्रामे के बाद, सब रफ़ा-दफा हो जाता है। 

तो पुलिस आई-गई हुई? थोड़े ड्रावे के बाद? उसके बाद, आपस में मिलबैठकर खाने की बातें होती हैं। पता ही नहीं,  आधी से ज्यादा लेट पर किस, किस ने रेत डलवा दिया था, एक-दो दिन के अंदर ही। मेरे लिए इस तरह का कोई ड्रामा, यूँ आँखों के सामने होते देखना, पहली बार था। चाचा का लड़का इस सबमें फ्रंट पर था। अब पैसे तो घर से ही लिए होंगे? सुना है, इतने पैसे उसके पास नहीं होते। कभी-कभार पीने वाले भाई को भी उसने चढ़ाया हुआ था। ले, तेरी ज़मीन भी बढ़ा दी। उसकी तरफ की पीछे वाली ज़मीन पर भी रेत डलवा थी। मगर इसके आगे तो कुछ और ही साँग था। यहाँ लेट की ज़मीन से, वहाँ खेत की ज़मीन की तरफ बढ़ते ज़मीनखोर। 

मैंने एक-दो बार कहा भी, की ये क्या कर रहे हो तुम? 

दुनियाँ ने किया हुआ है, तो हमने क्या अलग कर दिया? 

दुनियाँ गोबर खाएगी, तू भी खाएगा?

और छोटू फिर गुल था। कई बार सुन चूका था, तो अब बात भी कम होने लगी थी। 

चलो, ये तो कम पढ़े-लिखे, बेरोजगार, ज्यादातर गाँव में रहने वाले हैं। ये so-called ऑफिसर, फेसबुक पर कौन-से और कैसे झंडे गाड़ रहा था? वही भारत माता की जय वाले? या किसी युद्ध वाले? ये यूक्रेन युद्ध का रोहतक के मदीना या सोनीपत के लोगों से क्या लेना-देना? ये तो पागलपन का ही दौरा हो सकता है? मगर किसे? यहाँ जो कुछ कर रहे थे, उन्हें? या उनसे जो करवा रहे थे, उन्हें? सुरँगे, राजनीतिक पार्टियों की? राजनीती कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार लोगों को अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए कैसे-कैसे दुरुपयोग करती है?

या फिर ये पागलपन का दौरा, उन न्यूज़ चैनल्स को पड़ गया था, जो खामखाँ में गला फाड़-फाड़कर, यूक्रेन युद्ध, युद्ध चिला रहे थे? कहीं पुराने विडियो चेप रहे थे, तो कहीं AC वाले न्यूज़ स्टुडिओं में बैठकर फर्जी विडियो बनाकर, उनमें स्पेशल भड़ाम-भड़ाम वाले इफेक्ट्स डाल रहे थे? 

फिर तो यूक्रेन में भी कुछ तो हुआ ही होगा? कोई युद्ध? उसकी मार झेलने वाले लोग? कहीं कुछ मरे भी होंगे? तो कितने ही विस्थापित भी हुए होंगे? घर, बेघर जैसे?

कहीं किसी के पास बार-बार, घर खाली करो के, कोई GB (General Branch), MDU ईमेल भी भेझ रही होगी? तो कहीं, किसी अड़ोसी-पड़ोसी ससुराल से घर बैठी लड़की से भी कुछ ऐसा कहलवा रहे होंगे, मेरा घर खाली करो? चाहे उसकी क्वालिफिकेशन तक उस नौकरी के आसपास ना हों? मगर कैसे? ये अहम प्र्शन है। जितना इसे समझोगे, उतना ही Conflict of Interest की राजनीती के जालों से बच पाओगे।  

Emotional Fooling? with personal effects? 

आपको बताया या समझाया गया है, की आपके साथ ऐसा होने की वजह फलाना-धमकाना है। चाहे आपके और उसके रिश्ते में वैसा कुछ भी ना हो। वो आपके ससुराल को तो छोड़ो, पति तक को ना जानती हो। जो कहानी उनके बारे में, वो यहाँ-वहाँ आप लोगों से ही अब गाँव आने के बाद सुन रही है। वो ऐसे-ऐसे लफंडरों, गँवारों, जाहिलों या लालची लोगों को पसंद तक ना करती हो। कहाँ एक इंडिपेंडेंट इंसान और कहाँ ये गाँवों के सास-बहु के जैसे, एकता कपूर के सीरियल?  

Twisting and Manipulating Facts? 

आप यही भूल जाएँ की आप कौन हैं? और सामने वाला या वाली कौन? और उससे आपका रिश्ता क्या है? या जिनसे आप जोड़ रहे हैं, अपने भर्मित दिमाग के जालों में, उनमें और इसकी समस्याओं में फर्क क्या है? 

जैसे कोई कहदे की आप मोदी हैं। हो सकता है आपका नाम मोदी हो। मगर, आप भारत के प्रधानमंत्री मोदी तो नहीं हैं ना? या समझने लगे हैं की हैं? मान लो, आप नरेंदर हों, वीरेंदर हों, कविता हों, सुनील हों, ऋतिक हों, सोनिया या राहुल हों? मगर कौन से? कोई MLA, MP, क्रिकेट प्लेयर, या? कौन? जहाँ कहीं अपने ये फर्क समझने में गड़बड़ कर दी, वहीं आप राजनितिक पार्टियों के जालों के शिकार में हैं। जितनी ज्यादा दिमाग में वो गड़बड़, उतनी ही ज्यादा ज़िंदगी में। 

ऐसा भी नहीं है, की ये राजनीतिक पार्टियाँ आपकी मर्जी या पसंद-नापसंद से ही करेंगी। उनका तो रोबॉटिक एन्फोर्स्मेंट प्रोग्राम आपकी जानकारी के बिना भी चलता है। बल्की, ज्यादा अच्छे से चलता है। 

तो, जितना आपको ये समझ आना शुरु हो जाएगा और जितना आप इससे खुद को दूर करना शुरु कर देंगे, उतने ही इस रोबॉटिक एन्फोर्स्मेंट के दुस्प्रभावोँ से भी बचते जाएँगे।                        

Psychological and Economic Warfare?     

आज की दुनियाँ इससे बहुत ज्यादा प्रभावित है। या कहो की कोढ़ और रोबॉटिक एन्फोर्स्मेंट की राजनीती टिकी ही इस पर है। सब इस पर निर्भर करता है, की आपकी जानकारी किसी भी इंसान या विषय, वस्तु के बारे में कितनी सही है। और कितनी नहीं है? या कितनी गलत है?  

वो फिर एक तरफ, देशों के युद्ध so-called officers द्वारा फेसबुक के झंडों में हों या दूसरी तरफ, गाँवों की फालतू पड़ी ज़मीनो पर कम-पढ़े लिखों या बेरोजगारों द्वारा। 

वो फिर एक तरफ? AC studios में बैठकर, खास इफेक्ट्स डाल कर भड़ाम-भड़ाम करते और TRP और पैसा बटोरते चैनल हों। या फिर उपजाऊ ज़मीनों को शिक्षा या राजनीती के धंधे के नाम पर, हड़पते शिक्षण संस्थानों के प्रधान हों या उनके कोई अपने। 

और दूसरी तरफ? सच में किन्हीं ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते, या सेनाओं के हमलों में मरते, आम नागरिक या खुद उन सेनाओं के जवान। फर्क सिर्फ उन घरों को या लोगों को पड़ता है। बाकी, अपने-अपने और अपनी-अपनी तरह के झंडे गाड, यहाँ-वहाँ तबाही मचा या लूटपाट कर या हड़पकर चलते बनेंगे। 

वैसे उपजाऊ खेती की ज़मीनों को 2-बोतलों या औने-पौने दामों में हड़पते, शिक्षण संस्थान और किसी NSDL या Protean की वेबसाइट के नाम पर ऑनलाइन धोखाधड़ी का, आपस में कोई लेना-देना है क्या? जानने की कोशिश करते हैं आगे, किसी पोस्ट में। 

साइबर अपराध रोकने वालों के लिए

ICICI Direct और Protean या NSDL का क्या लेना-देना?

ये साइबर अपराध रोकने वालों के लिए। कल मैंने कोई NSDL या Protean की वेबसाइट नहीं खोली या कुछ अपडेट नहीं किया। एक बार लगा तो, की शायद ICICI Direct की बजाय, ये Protean दिखा रहा है। मगर दुबारा ध्यान से देखा तो, ICICI Direct ही दिखा रहा था। अगर ऐसा कोई अपडेट किसी Protean या NSDL की वेबसाइट के नाम पर हुआ है, तो वो घपला है।  

और ये पोस्ट में "नहीं" को क्यों काट रहा है?  

ये तो कुछ ज्यादा ही नहीं होने लगा की एक बार देखो तो कुछ दिख रहा है और दुबारा देखो तो कुछ और? 

Wednesday, May 7, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 3

एक दिन ऐसे ही किसी ऑफिसियल काम से चंडीगढ़ जाना था? सालों पहले की बात है, रोहतक से चली ही थी तो सोचा क्यों ना पहले सोनीपत का रुख किया जाए? कई सारे प्रश्न थे दिमाग में, जिनके उत्तर चाहिएँ थे। अब मैं उनमें से नहीं, जो सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करे। या ईधर-उधर के लोगों से बात करे। यहाँ सीधा-स्पाट बात वहीँ होती है, जहाँ के प्र्शन होते हैं। खासकर, तब तो और जरुरी हो जाता है, जब इधर-उधर से विश्वास लायक जवाब नहीं मिलते। बल्की, कुछ ऐसे मिलते हैं, की कुछ और प्र्शन दे जाते हैं? जैसे, फिर ये शादी नाम का घपला क्या है? आजकल किसी चैनल ने सुना है, कोई सिँदूर बचाओ अभियान भी चलाया हुआ है? किसका सिँदूर? अहम बात हो सकती है, यहाँ पर? मेरे आसपास कई हैं, उनका? या सोनीपत में किसी का? और RAW का या FBI का, या ऐसी ही किसी और इंटेलिजेंस एजेंसी का, ऐसे किसी सिन्दूर से क्या लेना-देना? खैर। उन दिनों आसपास के सिंदूरोँ का कोई ज्ञान ही नहीं था। या कहो की Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, वो सिँदूर पता नहीं कहाँ पढ़ रहे थे? या क्या कर रहे थे? हकीकत तो ये है, की उन दिनों Conflict of Interest की राजनीती क्या होती है, यही नहीं पता था।   

अब जहाँ की तरफ गाडी मोड़ दी थी, मेरे हिसाब से वहाँ मैं एक नए इंसान को छोड़, बाकी सबसे मिल चुकी थी और थोड़ा बहुत शायद उन्हें जानती भी थी। तो पहुँच गई, उस घर? नहीं, उसके भाई के घर। क्यूँकि, अब वो अलग-अलग रह रहे थे, आसपास ही। थोड़ी बहुत बात हुई, और वो मुझे पास ही उस घर ले आए। पता नहीं क्यों लगा, की कुछ तो गड़बड़ है। जाने क्यों किसी ने मिलने में ही बहुत वक़्त लगा दिया। मगर क्या?  

उसके बाद थोड़ा बहुत उस पर, इधर इधर सुनने-पढ़ने को मिला। और मेरा यूनिवर्सिटी में ही कहीं आना-जाना थोड़ा ज्यादा हो गया। वहाँ सब राज छिपे थे शायद। 

यहाँ से एक अलग ही दुनियाँ की खबर होने लगी थी। इस दुनियाँ का दायरा थोड़ा और बढ़ने लगा था। और जितना ज्यादा जानना चाहा, वो बढ़ता ही गया। तो ये मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स क्या है? इसमें कौन-कौन हैं? और इसके मुद्दे कहाँ-कहाँ घुमते हैं?

Ministry of home affairs?

Psychological warfare?  

Setting the narratives?

सिँदूर की राजनीती या कांडों पे पर्दा डालने की?

With all due respect to Ministry of home affairs?


जब गाँव आई, तो Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, सिन्दूर-युद्ध के ड्रामों से आमना-सामना हुआ। शुरु-शुरु में तो समझ ही नहीं आया, की राजनीती भला इतने लोगों की ज़िंदगियों से कैसे खेल सकती है? जिनकी ज़िंदगी के युद्ध, बड़े ही छोटे-छोटे से रोजमर्रा की ज़िंदगी की, छोटी, छोटी-सी परेशानियों में दिखे। 

किसी को इतनी-सी समस्या है की वो अपनी ससुराल, खाना-पीना तक अपनी मर्जी से नहीं खा-पी सकते? पता नहीं, सास कहाँ-कहाँ ताले जड़ देती है?

किसी को इतनी-सी समस्या है, की उसे घर में बंद कर सास-पति पता ही नहीं, कौन-से सत्संग चले जाते हैं। और कई-कई दिन तक घर नहीं आते और घर में कुछ खाने तक को नहीं?

किसी की इतनी-सी चाहत है, की उसको अपने घर का रोजमर्रा का प्रयोग होने वाला सामान इक्क्ठ्ठा करना है। वही नहीं है?

किसी के हालात ऐसे बना दिए गए, की आने-जाने तक के पैसे नहीं? किसी के पास पहनने को नहीं? किसी के पास मकान नहीं? किसी के पास ये नहीं, और किसी के पास वो?

तो वो है ना जो, जो लड़की अभी-अभी घर आई है, उसके पास ये सबकुछ है, छीन लो उससे? उसे इतना तंग करो, की या तो आत्महत्या कर ले या तंगी से मर जाए। नहीं तो निकालो उसे गाँव से भी। 

ये खामियाज़ा भाभी ने भुगता? इससे भी बुरा कुछ गुड़िया के साथ करने की कोशिशें हुई, इसी Conflict of Interest की राजनीती द्वारा। फिर मैंने तो जो देखा, सुना या भुगता, ऐसे-ऐसे, रोज-रोज के ड्रामों की देन, वो कोई कहानी ही अलग कह गया शायद?

इन सब लड़कियों की दिक्कत क्या है? 

Independent ना होना? Economic Independence आपको कितनी ही तरह के अनचाहे दुखों और Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, अनचाहे युद्धों तक से काफी हद तक बचाती है। मुझे लगता है, की मेरे पास अपना पैसा या इधर-उधर अगर थोड़ा-बहुत सुप्पोर्ट सिस्टम ना होता, तो मैं क्या, ये Conflict of Interest की राजनीती मुझे ही नहीं, बल्की, पूरे घर को खा चुकी होती। 

इन लड़कियों की और इन जैसी कितनी ही लड़कियों की समस्या, सिन्दूर का होना या ना होना नहीं है। हकीकत ये है, की अगर ये Economically Independept हों, तो ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है। कुछ एक Economically Independept होते हुए भी इस जाल में फँसी हुई हैं, तो वो आसपास के Media Culture की वजह से। कमाते हुए भी, उन्हें नहीं मालूम, की वो पैसे उनके अपने हैं। अपनी और अपनों की ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए हैं। किन्हीं लालची और बेवकूफ लोगों के शिकंजों में रहने के लिए नहीं। 

आगे किन्हीं पोस्ट में बात होगी, आसपास द्वारा किए गए उन रोज-रोज के ड्रामों की भी। और कौन करवाता है वो सब उनसे? सबसे अहम कैसे? Emotional Fooling, Twisting and Manipulating Facts, Psychological warfare,  Setting the narratives.     

Psychological warfare, Setting the narratives 2

आप abcd सीख रहे हैं, इकोनॉमी (economy) की? बाजार, मार्केट या स्टॉक बाजार क्या होता है, उसकी? चलो अच्छा है, देर आए, दुरुस्त आए। एक ठीक-ठाक सी ज़िंदगी जीने के लिए इसे समझना बहुत जरुरी है।

आम इंसान हर रोज युद्ध लड़ता है। उसकी ज़िंदगी में हर रोज किसी न किसी तरह की जंग चलती ही रहती है। उसकी उस जंग को थोड़ा कम करने या आसान बनाने में जो सहायता करता है, वो हैं आपके अपने? सरकारें या कोई भी राजनीतिक पार्टी, आपकी ये सहायता तब तक नहीं करती, जब तक उनकी अपनी कोई स्वार्थ सीधी ना हो? सरकारों की या राजनीतिक पार्टियों की अपनी स्वार्थ सीधी क्या होगी? कुर्सियाँ? और ज्यादा कुर्सियाँ? और ज्यादा वक़्त तक के लिए कुर्सियाँ? वो कुर्सियाँ क्या आपका भला करने के लेते हैं? इतनी मारामारी उन कुर्सियों की क्या आपके लिए होती है? संभव है क्या? ज्यादातर, उनके अपने निहित स्वार्थ होते हैं। उन निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही इन राजनीतिक पार्टियों ने Conflict of interest की राजनीती के जाले बुने हुए हैं, हर जीव और निर्जीव के इर्द-गिर्द। ये निहित स्वार्थ हैं, ज्यादा से ज्यादा पाने की होड़। पैसा, ज़मीन-ज़ायदाद और वर्चस्व। कण्ट्रोल, जहाँ कहीं और जितना आप कर सकें। 

इसमें  Psychological warfare क्या है?

कहीं आप पढ़, सुन रहे हैं, की किस कदर आपको रिकॉर्ड और मैनिपुलेट (Manipulate) किया जा रहा है? कैसे आपको रोबॉट-सा प्रयोग या दुरुपयोग किया जा रहा है? वो भी आपके खिलाफ और आपके अपनों के ही खिलाफ?

Setting the narratives, Psychological warfare है।  

युद्ध, युद्ध, युद्ध? युद्ध मुद्दा है क्या? फिर क्या है? मुद्दों से ध्यान भटकाने की राजनीती? कौन रच रहा है? राजनीतिक पार्टियाँ? बाजार? टीवी चैनल्स? या इन सबकी मिलीभगत?   

मीडिया कल्चर? और मानव रोबॉटिकरण?           

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर और युद्ध? 4

युद्ध, युद्ध, युद्ध? 

ऐसा ही कुछ सुन रहे हैं क्या आप?

या आप जो न्यूज़ चैनल्स देखते हैं, वहाँ सब शांति शांति है?

ऐसे कैसे?

ऐसी ही दुनियाँ में हैं हम?

यहाँ भी अगर आप भारत के न्यूज़ चैनल्स देखेँगे तो वो कुछ कहते नज़र आएँगे या कहो की चीखते नज़र आएँगे और पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल्स देखोगे तो वो कुछ?

ऐसे कैसे? दोनों जैसे एक दूसरे के बिलकुल विपरीत चीख रहे हों?

या आप चीखने वालों की बजाय, शाँत तरीके से सही मुद्दों के चैनल्स को देख रहे हैं? तो वो शायद, शेयर बाजार की बात तो नहीं कर रहे? ऐसा लगता है, युद्ध वहीँ चलते हैं?    

या ज़मीनो की लूटखसौट पर?  

या  

कोई ऐसे भी युद्ध होते हैं जो शिक्षा की बात करते नज़र आएँ? गरीबों की बात करते नज़र आएँ? समाज के कमजोर वर्गों, बच्चों या पिछड़ों की बात करते नज़र आएँ?

रोटी, कपड़ा, मकान, साफ़ सफाई, स्वच्छ खाना पानी वैगरह की बात करते नज़र आएँ?

नहीं? इस स्तर पर लोगों का भला करने के लिए कोई युद्ध नहीं होते?

युद्ध सिर्फ और सिर्फ मार्केट के लिए या अपनी आम भाषा में कहें, तो धंधे के लिए होते हैं?  


ये युद्ध तो नहीं चल रहा कहीं कोई?
या कोई ड्रिल चल रही है?
नौटँकी जैसे कोई?

ठीक ऐसे, जैसे पीछे वाली ज़मीनखोरों का धँधा वाली पोस्ट?  

थोड़ा डिटेल में आएँगे इस पर भी, आगे किसी पोस्ट में। 
आजकल सीख रही हूँ, थोड़ा बहुत ये वाला कोढों का जाल भी  

Tuesday, May 6, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 3

नई सीरीज शुरु हो गई? चल तो पहले से रही है, थोड़ा पास से समझ आनी अब शुरु हुई है? पीछे की कई सारी पोस्ट को भी धीरे धीरे लगाएँगे इस सीरीज में। अभी नंबरिंग यहीं से शुरु कर दें?  

जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा?

और? 

और लूटपाट और हत्याएँ भी?

सुना आज जमीनखोर प्रधान और क्रिकेटबाज़ भतीजा, जमीन नपवा रहे थे?

किससे?

और किसे बुलाया?

ऐसे-ऐसे गिरे हुए लोग उन्हें ही बुलाते हैं, जिनसे वो आसानी से निपट सकें? भोले-भाले, कम-पढ़े लिखे लोग? जो अक्सर ऐसे-ऐसे लोगों की चालों में बड़ी ही आसानी से आ जाते हैं? 

नप गई ज़मीन? किसकी ज़मीन? उससे पहले ये तो तय हो? 

और कौन सी ज़मीन? आगे वाली या पीछे वाली? 

आज इस ज़मीनखोर प्रधान के पास इतना वक़्त कैसे निकला? ऐसी भी क्या जल्दी, भला? अरे, आपसे तो कोई न कोई मिलने आया रहता है, शायद? नहीं? स्कूल में ही इतने वयस्त हैं? फिर ये, बलदेव सिंह वाली ज़मीन की नापा-तोली से आपका क्या लेना-देना? वहाँ कैसे घुसे हुए हैं आप, चाचा और भतीजा?  

तो? जो कभी-कभी पीता (पीटा?) है? उसकी ज़मीन क्रिकेटर भतीजे ने हड़प ली? इतनी लताड़ के बावजूद, मान लेना चाहिए की औकात तो बड़ी है, बहशर्मी की भतीजे? अब चाचा जब जमीन नपवाने में साथ है, तो ये कैसे हो सकता है, की हडपम-हडपाई में साथ ना हो? कितने के लिए डूब गए? दो कनाल के लिए?

अरे नहीं किस्सा इससे आगे है? 

अजय की तो ऐसे भी और वैसे भी है ही आपकी? उससे हमें क्या लेना-देना? सही बात ना? कौन से साल में द्वार लग गए थे उधर? 

बेबे CCL दे दी के?

मिल भी ली?

अब ये कहाँ से आ गया?

चलो ABCD में नहीं उलझते? ना ही कंप्यूटर वाली मुत्तो-हागो में? तो Query क्या थी? Query ये है जी, की आम-आदमी को कितनी तरह और कैसे-कैसे लूटा जा सकता है? 

अगर कोई आम इंसान स्कूल से तंग आकर, टीचर की नौकरी छोड़कर, अपना खुद का स्कूल खोलना चाहे, तो गड़बड़ घोटाला? उस टीचर को ही ख़त्म कर दो? कितने ही तो तरीके हैं?

अब आम इंसान के ये कहाँ समझ आना? इल्जाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करो? उसके बाद तो सबकुछ ही तो तुम्हारा? कैसी-कैसी ऑक्सीजन कैसे-कैसे ख़त्म होती हैं? और ज़मीनी-धंधे वाले बेज़मीर लोग, कैसे-कैसे घर खा जाते हैं?  

ओह हो! उसके बाद तो लड़की को भी कहीं और ही भेजना था ना? सामान्तर घड़ाईयों के hype ऐसे ही घड़े जाते हैं? बुआ आ गई बीच में? बड़ा रोड़ा? नहीं, बिलकुल छोटा-सा? खिसका दो? कोशिश तो पूरी करली? नहीं अभी ख़त्म नहीं हुई हैं कोशिशें, अभी ज़ारी हैं? ये ज़मीनखोरी उसी कड़ी का एक हिस्सा है। अब क्या करेगी? जो आप चाहेंगे  वही करेगी? और दीदी कब जा रहे हो?

जाना था क्या कहीं मुझे? मुझे तो लगा ये जो ज़मीन की नापतोल की कहानी रची जा रही है, यहीं कुछ वक़्त रहना था?       

और बे बे? जग के, के हाल-चाल? 

जग से जग्गा या जगतजननी? या? जग्गा धरी? या वो दूध वाला जग, और उसकी नौटंकियाँ?  

चल छोड़। लोगों को नहीं मालूम, कैसे-कैसे ड्रामे रचे लोगों ने? इधर वालों ने भी, और उधर वालों ने भी?   

तो नप ली ज़मीन भतीजे? ओह हो! ज़मीन-खोर प्रधान को कैसे भूल रहे हो? 

तो यहाँ अजय की तरफ निकली थोड़ी-सी ज़मीन? 


यही Query थी? मुतो-हागो प्रधानों की? 

क्यों कम पढ़े-लिखे और आज की तेज-तर्रार टेक्नोलॉजी वाली दुनियाँ से अंजान, लोगों की हर तरह से ऐसी-तैसी कर रखी है?

बहन का भी कुछ तो हिस्सा होगा? छोड़ो। बहनो-बेटियों का कुछ नहीं होता यहाँ, उन्हें इधर-उधर फँसाने की कोशिश करने के सिवाय?    

तो यहाँ प्र्शन इतना-सा तो वाजिब है, की जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा? 

ये ज़मीनखोर लोग फिर किसकी ज़मीन और क्यों अपने नाम करवा रहे हैं? ऐसा ही कुछ बोला ना भतीजे ने? बुआ वो तो अब मेरे नाम हो ली?   

क्यूँकि, हमारी गिरी हुई राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे-ऐसे ज़मीनखोरों के साथ होती हैं? अब आप गिरे हुए हैं या नहीं, और गिरे हुए हैं तो कितने वो आप जाने? 

आप तो शायद नहीं गिरे हुए?  

और आप बिलकुल नहीं?

और आप तो बिलकुल ही नहीं?

हाँ तो आप पे तो ये प्र्शन ही लागू नहीं होता?   

जिसकी ज़मीन हड़पने की कोशिशें हो रही हैं, उसकी बहन की तरफ से, अगर कोई कोर्ट ज़िंदा हो, तो ये धोखाधड़ी का केस दायर कर लें, इन ज़मीनखोर चाचा-भतीजे के खिलाफ। 

किसी औरत की मौत का मतलब यहाँ, ज़मीन का धंधा है? वो भी किसके द्वारा? एजुकेशनल सोसाइटी के नाम पर, बिना हिसाब-किताब की ज़मीन-जायदाद और पैसा इक्क्ठ्ठा करने वालों द्वारा?  

ऐसे-ऐसे संस्थानों पर करवाई क्यों नहीं हो, जिनके टीचर्स को नाममात्र मिलता है और उन संस्थाओं के लोग तकरीबन हर साल, एक नई बस खरीद लेते हैं? 8-10 किले एक साल में, एक ही गाँव में खरीद लेते हैं? इस शहर, उस शहर उनके पॉश इलाकों में मकान और दूकान होते हैं? सुना है उनके बच्चों की पढ़ाई के नाम पर भी अच्छा-खासा खर्च होता है? वो भी एक ऐसा स्कूल, जो अपने आपको गरीब और दानी बताता है? सच है क्या ये?   

और एक टीचर अपनी पूरी ज़िंदगी में एक ढंग का मकान बनाने लायक नहीं होता? वो अगर अपना कुछ करना चाहे, तो उसे खा जाते हैं? घौटालों के संस्थान हैं ये, या शिक्षण संस्थान?       

Conflict of Interest की राजनीती क्या कुछ करती है और करवाती है, लोगों से?     

Sunday, May 4, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 2

जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा?

जब 5 लाख कुछ रुपए भाई के बैंक आए, उससे पहले एक यस बैंक का नाटक रचा गया। किस तारीख को आए ये 5 कुछ, किसी के खाते में? किस बैंक का है वो खाता? अहम है क्या, ये सब जानना? हाँ। अगर आपको राजनीतिक पार्टियों के सामान्तर घड़ाई वाले कारनामों को जानना है, तो बहुत जरुरी है। किसने सँभाली फिर वो बैंक की कॉपी? या कहो किस, किसने? कब-कब पैसे निकाले गए उससे? वो पैसे कहाँ खर्च हुए? जहाँ खर्च हुए, वहाँ उसको जरुरत थी क्या?      

चलो ये तो मात्र 5 कुछ की कहानी है। इस दौरान मैंने थोड़ी छानबीन शुरु कर दी थी। उस छानबीन के साथ कुछ एक नरेटिव यहाँ-वहाँ से आ रहे थे। 

आंटी: ना ऐसे तो नहीं करना चाहिए। ऐसा हुआ है तो गलत है। मैंने तो सुना है 30-35 लाख के आसपास दी है। 

अच्छा? वो पैसा कहाँ है? कौन से अकॉउंट में? जिन्हें खुद वो ज़मीन किसी काम के लिए चाहिए थी, वो उसे किस कीमत पे देंगे? देंगे क्या? सबसे बड़ी बात उसे कोई बो रहा है। ढंग की इन्हें पकड़ा देंगे, तो ये क्या करेंगे? 

ये तो मुझे नहीं मालूम। 

अजय का क्या रोल है, इसमें?

उसका क्या रोल होगा। कुछ नहीं है। 

वो खुद कह रहा हो तो?

गलत है। उसका क्या मतलब, ऐसे किसी की ज़मीन दिलवाने का?

वही मैं पूछ रही हूँ। आपके प्यारे हैं, पूछना उनसे, ये कैसे घपले रच रहे हैं? वैसे भी वो पहले ही कुछ केसों से मुश्किल से निकला है। फिर से क्यों कहीं फँसना चाहता है?

बावला है। नूं ना दूर रहूँ। 


दीदी आपने बुलाया मुझे?

हाँ। क्या चल रहा है, उस ज़मीन का? ये कौन-से और कैसे पैसों के लेनदेन हो रहे हैं, रुंगे जैसे से?

मुझे तो पता नहीं। 

वहीं पड़ा रहता है तू। फिर कैसे नहीं पता?

पता चला तो बताऊँगा। 

भाई घर की घर इसा साँग बढ़िया ना होता। यहाँ कुछ होगा तो आँच तुम्हारे यहाँ नहीं आएगी, ये मत सोचना। 

देख लाँगे। 


प्लॉट की तरफ घुमने गई तो कोई ट्रक आया हुआ था, ईंटों से भरा। 

अरे रुको। किसने मँगवाई हैं ये?

पड़ोस से कोई बोलता है, अजय ने। 

अच्छा, क्या चल रहा है यहाँ? कुछ बनवा रहे हैं?

शायद, प्लॉट की चारदीवारी। 


कुछ दिन बाद पता चलता है, वहाँ जो भाई का रहने का छोटा-सा कमरा है, उसपे ही लग रहे हैं वो रोड़े। और भाई अक्सर वहाँ से गुल मिलता है। कभी-कभार मिलता है, तो पॉलीथिन में कोई प्याजों की सड़ांध के साथ खाना लिए हुए। 

ये क्या है? कहाँ रहता है तू आजकल? घर क्यों नहीं खाता खाना? फिर से शुरु हो गया? कहाँ से हो रही है ये जगाधरी की सप्लाई?  

अजय: 2 महीने हो गए, होटल पे खाता है। 

2-महीने? घर क्या फिर इसका भूत जाता है खाने?

मैंने लगवाया हुआ है?

ओह। धन्यवाद बताने के लिए। तो ज़मीन के नाम का ये रुंगा होटल पर या रेस्टोरेंट में जाएगा? इसीलिए, ज़मीन बिकवाई है? तुझे कितने मिले खाने को? खुद भी खाता है क्या होटल पे, बिना कुछ कमाए? कितने दिन चल जाएँगे इतने से पैसे होटल या रेस्टोरेंट? इसीलिए इसे घर नहीं आने दिया जाता? ऐसे तो जल्द ही काम तमाम कर दोगे इसका। दारु और होटल, मस्त काम है। 

छोटू वहाँ से खिसक चूका है, अपने प्लॉट की तरफ। 

और यहाँ मत दिखा कर मेरे को। तेरे जैसे भाइयों के होते दुश्मनों की क्या जरुरत?


मैंने बोला, यहाँ मत दिखा कर। और पता चला वहाँ मेरा ही ईलाज भांध दिया गया, की मैं ही वहाँ ना दिखूँ। इस दौरान घर पर बैड पर चाकू या डंडा रख जाना, जैसे कारनामे भी शुरु हो चुके थे, इसी भाई द्वारा जिसकी ज़मीन बिकी थी? बिकी थी? या रायगढ़ के होटल के नाम हुई थी? और ईधर-उधर, चेतावनियाँ भी आने लगी थी। संभल कर, तेरा पक्का ईलाज बँधवाने के चक्कर में हैं। रोड़ा है तू, जिस घर को वो उजाड़ने चले हैं, उसे बचाने का काम कर रही है। बोतल वाले को ऐसे ख़त्म कर रहे हैं, तुझे उसी के हाथों करवाने के प्लान हैं। 

कौन हैं ये लोग? और क्यों? अपने घर को ऐसे-ऐसे लोगों से कौन नहीं बचाने की कोशिश करेगा?

और जवाब मिला, Conflict of interest की राजनीती। जो लोगों को आपस में ही भीड़वाकर, इधर भी खाती है, और उधर भी।  छोटे-मोटे से लालच, छोटे-मोटे से डर पैदा कर लोगों के दिमाग में।