और भी जहाँ हैं शायद इन चिंटुओं-पिंटुओं से आगे।
आम-आदमी इतना आम है, की उसे फुर्सत ही कहाँ है, अपनी जरूरतों से आगे सोचने की? अलग-अलग तरह के आम-आदमियों की जरूरतें भी अलग-अलग हैं। बस, उन्हीं को पाने के लिए, वो पूरी ज़िंदगी इस चिंटू-पिंटु वाली मानसिकता से ही नहीं निकल पाता।
छोटे-मोटे चिंटू-पिंटु, छोटी मोटी जरूरतें। थोड़े बड़े चिंटू-पिंटु, थोड़ी बड़ी जरूरतें। और बड़े चिंटू-पिंटु, और बड़ी जरूरतें। कितने बड़े चिंटू-पिंटु, कितनी बड़ी जरूरतें?
काफी कुछ लिखा जा सकता है इसपे। नहीं?
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