वो गाने ऐसे देखती है, जैसे नंगी-पुंगी गुड़ियाँ । ऐसे लोगों के लिए --
वो experiment ऐसे करते हैं, जैसे सालों पहले किसी ने बोला था, एक ऐसा Forensic चल रहा है, जहाँ सब नंगा-पुंगा है। लोग इंसानों पे जानवरों से भी बदत्तर experiments कर रहे हैं। और जिसमें पुलिस, डिफ़ेंस, सिविल, इंटेलिजेंस सब शामिल हैं। ईधर भी और उधर भी।
यहाँ तक तो लैब के नंगे-पुंगे से experiments ही थे?
अरे नहीं, यहाँ Adam ruins everything भी आ गया लगता है। बच्चों के IPAD छोड़े, ना फोन।
फिर पता चले की, एक ऐसा जहाँ भी है। जहाँ उधेड़ डालते हैं। खाल ही नहीं, शरीर के अंदरुनी भाग भी। अब ये कौन-सा जहाँ है? ये राजनीतिक युद्ध हैं, जो दुनियाँ भर में चलते ही रहते हैं। 24 घंटे, 365 दिन, बिन रुके। जहाँ सब कुछ धकाया जाता है, पार्टियों के जुए के अनुसार। इधर से उधर, उधर से इधर। और लोगों को पता तक नहीं होता, की वो सब अपने आप नहीं होता। लोगों की बिमारियाँ और मौतें, उस अल्टीमेट खेल (जुए) का सबसे घिनौना खेल हैं। जिसमें किसी को नहीं बक्सा जाता। बच्चे क्या, बुजुर्ग क्या, औरत क्या, पुरुष क्या। इंसान क्या, जानवर क्या, पेड़-पौधे क्या, किट-पतंग क्या। जब आप इस जहाँ को देखने और समझने लगते हैं, तो राजनीती क्या, जैसे दुनियाँ से ही मोह भंग होने लगता है। फिर क्या बॉर्डर के इस पार और क्या बॉर्डर के उस पार?
अब अगर शशि थरुर और इमरान खान को ही लें, तो शायद कुछ कहें womanizers? जिसपे यहाँ-वहाँ कितने ही मीम और चुटकुले भी मिल जाएँगे। और कुछ कहें, अपने-अपने विषयों के अनोखे एक्सपर्ट्स? उसपे भी कितना कुछ मिल जाएगा। और भी बहुत कुछ हो सकता है।
कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, निकोल किडमैन ब्रैस्ट सर्जरी? ये सब कैसे मिलते-जुलते हैं? वैसे ही जैसे शायद, एक आम आदमी इनके बारे में बताएगा या कोई बायोलॉजी लेक्चर अपनी किसी क्लास में? किसी को उनके निजी ज़िंदगी में मिर्च-मसालों के तड़कों के बारे में बात करना पसंद आएगा। तो शायद कोई स्वास्थ्य पर बाजार के बढ़ते दुष्प्रभावों के प्रति बताता नज़र आएगा? कितने प्रतिशत चांस फलाना-धमकाना कैंसर होने के हैं और कितने सालों या डिकेड के बाद, यही जानकर आप अपनी ब्रैस्ट ही उड़वा दो? आपके पास पैसा फालतू है शायद? और जिन्होंने ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे टेस्ट इज़ाद कर दिए, उन्हें लूटने के तरीके मालूम हैं? अब वो निकोल किडमैन या ऐसी ही कोई हस्ती है, तो शायद फर्क नहीं पड़ता?
लेकिन आम इंसान हो तो? उसे भी कहाँ फर्क पड़ता है? ये धंधा आम है और उसे खबर तक नहीं होती। अब किसको कौन-सी बीमारी होगी, ये भी कोड बताएगा? और वहाँ का कोड वाला सिस्टम उसमें सहायता करेगा? ये तो हॉस्पिटल्स और डॉक्टर्स को बदनाम करने जैसा हो गया ना? नहीं। जब सिस्टम की बात होती है तो उसमें बहुत कुछ आता है। और अहम, ज्यादातर डॉक्टर्स को भी बहुत बार पता नहीं होता और डायग्नोस्टिक के सहारे ही चलते हैं? अब इसमें कितना सच है, ये तो डॉक्टर ही बता सकते हैं। या शायद कोरोना काल, कुछ-कुछ ऐसा ही गा रहा था?
यहाँ कौन सा गाना सही रहेगा? Save Earth by Micheal Jackson? या? ये थोड़ा ज्यादा हो गया, कोई और?
No comments:
Post a Comment