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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Saturday, August 31, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 20

खाने से शुरू करें या खेती-बाड़ी से?

कुछ वक़्त से दोनों पे ही फोकस है। इसी फोकस के चलते बड़े ही रोचक तथ्य सामने आए। आप जो खाना बचता है, उसका क्या करते हैं?

ऐसे ही खेती-बाड़ी से जो कचरा बचता है, उसका? इसमें पशुओं का कचरा भी जोड़ सकते हैं। 

कचरा किसी भी तरह का हो, बड़े काम का होता है, व्यवसायों वाले दिमागों के लिए। और पहाड़-सा भार होता है, ज्यादातर, आमजन के लिए। आजकल जितना और जितनी तरह का कचरा होता है, पहले नहीं होता था। तो कचरे के पहाड़ भी नहीं होते थे। आज भी ये कचरे के पहाड़,  विकासशील और अविकसित देशों की निशानी हैं। विकसित देशों की नहीं। विकसित देशों में पहाड़, नदियाँ, झरने, जमीन ज्यादातर साफ़ और सुन्दर होती है। ठीक ऐसे ही, जैसे उनके गाँव और शहर।     

Worms (कीड़े) 

व्यवसाय वाले कीड़ों तक का प्रयोग या दुरुपयोग कर फायदा कमाते हैं। ठीक-ठाक दिमाग होंगे तो प्रयोग ही करेंगे। मगर, कितनी ही तरह के कीड़ों का ही नहीं, बल्कि मल- मूत्र, पसीना, और कितनी ही तरह के शरीर के द्रव्यों और गतिविधियों तक का प्रयोग या दुरुपयोग कर बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी फायदा कमाती हैं। वो भी आम आदमी की जानकारी के बिना। वो जिसे आप बदबू कहते हैं या जिस पर बात तक करना पसंद नहीं करते। भला बड़ी-बड़ी कम्पनियों के वो सब किस काम का? सोचो?

बड़ी-बड़ी कंपनियों के ही नहीं, बल्कि राजनीती के भी ये सब बड़े काम का है। और सब मिलीभगत से लगे पड़े हैं आम आदमी तक की दिन-रात रिकॉर्डिंग करने। आपको नहीं मालूम? दुनियाँ भर की कितनी ही कंपनियाँ वो सब कर रही हैं? एकाध का नाम जानते हैं? नहीं? आपके हाथ में मोबाइल, कौन-सी कंपनी का है? उस मोबाइल को एक बार ढंग से जानने की कोशिश करो। उसमें क्या-क्या है? आप उन सबका कितना प्रयोग करते हैं? उन्ही का दुरुपयोग, दुनियाँ के किसी और हिस्से में बैठ कर भी, कितनी सारी कम्पनियाँ कर रही हैं? वैसे तो ये अपने आप में बहुत बड़ा विषय है दुनियाँ भर में। सुना है महाद्वीप तक इस पर एक दूसरे से लड़ रहे हैं। जैसे USA और यूरोप।

 मगर भारत का आम आदमी, जिसके पास न्यूनतम जीने लायक सुविधाएँ तक नहीं हैं, वो कहाँ इतना सोचेगा? उस बेचारे को तो पीने का साफ़ पानी, खाने को अच्छा खाना और रहने लायक कोई घर, गुजारे लायक कोई काम- धंधा या छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए, तो बहुत रहेगा। नहीं? उसपे कितने ही लोगबाग तो रहते ही कूड़े के ढेरों पर या उनके आसपास हैं। कुछ एक तो लिट्रल कूड़े के पहाड़ों पर या आसपास? सड़े गंदे नालों के आसपास? घरों में प्रयोग करने को पानी भी जैसे लैट्रिन के गढ्ढों से ले रहे हों? जनसँख्या ही इतनी है, ज़मीन कहाँ है? है ना? सिंगापुर जैसे देशों से ज्यादा जनसंख्याँ और कम ज़मीन? फिर वहाँ सब सही कैसे है? थोड़ा लोगों के दिमागों को चलाने का फर्क और थोड़ा हमारी और उनकी राजनीती के मुद्दों का भेद। हमारी राजनीती बेचारी अलग तरह के कीड़ों में घुसी हुई है। बाहर ही नहीं निकल पा रही उससे। तो ऐसी राजनीती अपने लोगों को क्या देगी? हरी-भरी सुन्दर ज़मीनो को भद्दा और बंजर करने का काम। हरे-भरे सुन्दर पहाड़ों, झीलों, झरनों और मैदानों को कूड़े के ढेरों में बदलने का काम। वरना तो ज़मीन को अपने ही जीवों से खुद को साफ़ करवाने के तरीके भी पता हैं। जिन्हें इंसान या तो दुरुपयोग करते हैं या मार देते हैं, ऐसी समस्याएँ वहाँ होती हैं। वहाँ नहीं, जहाँ उनको प्रयोग करने के तरीके पता होते हैं। 

Fertilizers (खाद)

तो आप कितना सिंथेटिक खाद प्रयोग करते हैं और कितना कचरे से बनाया हुआ? आपके हिसाब से कौन-सा ज्यादा सही है और क्यों? वैसे आपको कितनी तरह की खादों का पता है? और कितनी तरह के कीड़ों का? अगर पता होता तो शायद ना इतना सिंथेटिक खाद प्रयोग होता और ना ही कूड़े के ढेरों की समस्याएँ। 

Virals 

इस समस्या जैसी-सी ही Virals की औकात है। और सोचो हमारी राजनीती या उससे जुड़े लोगों ने कहीं, कभी-कभी उसे क्या बना दिया है? 

इससे आगे का संसार सच में खतरनाक है और उससे बचने और संभलने की जरुरत है। वो इंसान को रॉबोट बनाने वाला ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का संसार है। उसके बारे में जितना जानोगे, उतना ही खुद को और अपने आसपास को बचा पाओगे। नई पीढ़ियों को खासकर, उससे निपटने की जरुरत है। वो जब आपके बच्चों को ATM रॉबोट जैसे खेल खिलाते हैं या खास तरह के रिंग्स के, तो उनके परिणामों पे गौर करना जरुरी है। ऐसा ही कोई दुष्परिणाम पीछे किसी बच्ची ने भुगता है। ज़िंदगी बची तो ऐसी-ऐसी सामाजिक समान्तर घड़ाईयोँ पे भी कोई किताब होगी। जिसमें खासकर इनके पीछे के कारणों पे बात होगी। टेक्नोलॉजी, सर्विलांस एब्यूज और साइकोलॉजी के डैड कॉम्बिनेशन जैसे। 

Friday, August 30, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 19

आप जो कुछ भी देख, सुन या समझ सकते हैं, उस सबमें ज्ञान-विज्ञान है। कोई न कोई तर्क है, सिद्धांत है। उस तर्क या सिद्धांत के अनुसार, अगर आप टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके, किसी भी तरह का फायदा ले सकते हैं, तो वो सफलता है। अगर नहीं तो असफलता है। यही ना? नहीं, ये आपकी मंशा पर निर्भर करता है। उस जानकारी या ज्ञान-विज्ञान के अनुसार, अगर आप अच्छा करना चाहते हैं, तो अच्छा हो जाएगा। और बुरा करना चाहते हैं, तो बुरा। खासकर, अगर आपको कोई रोकने वाला नहीं है तो। या आप ज्यादा ताकतवर हैं तो। बड़े-बड़े उदाहरणों की बजाय, आम आदमी की रोजमर्रा की ज़िंदगी से ही कुछ उदाहरण लेते हैं। 

जैसे खाना बनाना, पेड़-पौधों की खेती करना, कपड़े बुनना या सिलना, घर बनाना, जूते-चप्पल बनाना, शहद की खेती या व्यवसाय करना, बिमारियों को होने से रोकना, होने पर जानना-समझना और ईलाज करना। ये सब तो इंसान कब से कर रहा है? सदियों पुराने काम हैं। वक़्त के साथ, इन सबके बारे में जैसे-जैसे जानकारी बढ़ती गई, वैसे-वैसे उदपादन, और सुख-सुविधाएँ भी। और उसी के साथ-साथ बीमारियाँ और विपदाएँ भी। जानकारी के साथ ही दोनों का लेना-देना है। एक तरफ उत्पादन, तो दूसरी तरफ मारक क्षमताएँ, एक तरफ सुख-सुविधाएँ, तो दूसरी तरफ बीमारियाँ, एक तरफ ज़िंदगी का आसान होना, तो दूसरी तरफ मुश्किलें। मगर, हर जगह एक जैसा नहीं है। जहाँ जानकारी का अभाव जितना ज्यादा होगा, बुरे असर भी उतने ही ज्यादा होंगे। जहाँ जितनी ज्यादा जानकारी होगी, वहाँ बुरे प्रभावों से बचाव भी उतना ही ज्यादा होगा। 

Social Engineering या मानव रॉबोट बनाने में इस सबकी अहम भूमिका है। 

तो आगे आते हैं इन सबपर उदाहरणों के साथ, आपकी रसोई या खेतीबाड़ी से ही शुरू करके। करते हैं जानने की कोशिश, की राजनीती और बाजार कैसे आपकी ज़िंदगी का हर पहलू, आपकी जानकारी के बिना ही घड़ रहा है। और आदमी को रॉबोट बना रहा है। 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 18

पार्टियाँ लड़ रही हैं। आम आदमी की या individual की आज भी भारत जैसे समाज में कोई अहमियत नहीं है। ये सिर्फ किसी कपिल सिबल के शब्द नहीं है, बल्कि हकीकत है। अपना हक़ माँगने वालों को हर तरह से बंद कर दिया जाता है। रोंदा जाता है। यही चल रहा है। कहीं किसी की या किन्हीं पार्टियों की हकीकत दिखानी शुरू तो नहीं कर दी आपने? आपका इंटरनेट बंद कर दिया जाता है। BSNL का यहाँ नेटवर्क चलता ही कम है। या कहो जब दिखाना हो No Service, तो ऐसा होता है? Vodaphone, तो Vi हो चुका। रॉमिंग में बैठा हुआ है। क्या हुआ अगर आप रॉमिंग में ना हों, तो भी। कलाकारियाँ? इंटरनेट बहुत ही कम चलता है उस पर।   

So-called सर्विस तो 2019 में ही जा चुकी, मेरे हिसाब से। एक ऐसा ऑफिसियल स्पेस जहाँ सबकी मिलीभगत से एक महिला फैकल्टी को पीटा जाए, क्या कहलाएगा?  Officially, 2021 में Resignation accept हो चुका। तो कौन-सा धंधा कर है यूनिवर्सिटी, उसके बावजूद किसी की सेविंग पे कुंडली मार के? वो भी इतनी सारी रिक्वेस्ट के बावजूद? कहाँ मर गए, इतने सारे कोर्ट्स के न्यायविद? ओफिसिअल जगह तक पर सिक्योरिटी देना आपके वश से बाहर है? ऐसे कांडों में शामिल लोगों को सजा देना, आपके वश से बाहर है? किसी की सेविंग तक पर कुंडली मारे हुए लोगों तक से निपटना, आपके वश से बाहर है? फिर क्यों बैठे हैं, उन कुर्सियों पर आप? छोड़ क्यों नहीं देते?          

सालों, दशकों पहले, आपकी ज़िंदगी में कोई इंसान 2-4 महीने कोई खास वीडियो या फोटो क्लिक होने तक रहता है। उसके बाद कम से कम, आपकी ज़िंदगी से तो मर जाता है। और ना ही आपका उसके बाद उससे कोई लेना-देना। फिर ये पार्टियाँ किनको और क्यों रो रही हैं, इतने सालों तक? इनके हरे, नीले, पीले, काले या सफ़ेद रंग किनको दर्शा रहे हैं? यही धंधा है। एक ऐसा गन्दा धंधा, जिसमें आप ना होते हुए भी दशकों रहते हैं, वो भी आपकी जानकारी के बिना। जानकारी होने पर, विरोध के बावजूद। ये VIP और DGP वालों का सांग तो और भी अगले स्तर पर चला गया। ये वो पार्टियाँ हैं, जो बहनचो, छोरीछो, माचो, जैसे रिश्ते घड़ने की कोशिशें कर रही हैं। ऐसे रिश्ते घड़ाईयों की सबसे बड़ी बात, इनमें थोड़ा बहुत आगे बढ़ने में भी उन्हें सबसे ज्यादा वक़्त लगता है। दशकों? और मनचाही सफलता, इतने सालों के प्रयासों के बावजूद नहीं मिलती? जानते हो क्यों? आगे किन्हीं पोस्ट्स में, इसपे काफी कुछ लिखने की जरुरत है। क्यूँकि पार्टियों के ऐसे प्रयास, कितनी ही ज़िंदगियों से तो खेल ही रहे हैं। समाज को भी गर्त में धकेल रहे हैं। वो ना बच्चों को बक्स रहे और ना ही बुजर्गों को।  

अलग-अलग अजीबोगरीब स्तर  (अपनी घड़ाईयोँ को समाज में परोसना) 

Worms कितनी तरह के होते हैं? और कहाँ-कहाँ पर प्रयोग होते हैं? कैसे-कैसे प्रयोग या दुरुपयोग होते हैं? 

Viral कितनी तरह के होते हैं? क्या करते हैं? और कितने दिन तक टिक पाते हैं? उसके बाद क्या होता है, ऐसे viruses का?

Feritilizers? कुछ और भी नाम दे सकते हैं। फ* फ* फ *? Fakistan? जो हिंदुस्तान है ना पाकिस्तान? अफगानिस्तान है ना तुर्कमेनिस्तान? क्या है फिर ये? खाद? वो जो कीड़े बनाते हैं? कितनी तरह के खाद होते हैं? कैसे-कैसे कीड़े, कैसी-कैसी खाद बनाते हैं? अलग-अलग तरह की खादों की विशेषताएँ क्या होती हैं? आप कौन-सी प्रयोग करते हैं? और क्यों? कोई दूसरी क्यों नहीं?

ये सब समाज में अपनी ही तरह की घढ़ाईयोँ के तरीके हैं। Part of Social Engineering 

किसी ने कहा Fertilizer के बाद का नहीं लिखा। जी। उसपे सोशल इंजीनियरिंग करके ब्लॉग ही अलग चलाया हुआ है। क्यूँकि, वो मैकेनिकल लेवल है। इंसानियत वहाँ बिलकुल खत्म हो जाती है। इंसान, महज़ कोई मशीन बच जाता है। वो बहुत तरह के ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का मिक्सचर है। Highly Interdisciplinry. उस लेवल को इंसान पे दोहराने के लिए, वो भी उस इंसान के पता होने के बावजूद, इंसान हर तरह से आपके कब्ज़े में होना चाहिए। कोशिशें 2018 से चल रही हैं, मगर सफल नहीं हो पा रही हैं। मतलब? वो स्तर सफल नहीं हो पा रहा तो किसी और स्तर पे रखकर कहानी खत्म करो?  

Out from University Residence. कोशिशें 2018 से शुरू हुई। रेजिडेंस नहीं छोड़ा तो दूसरे तरीके शुरू हुए बाहर करने के। वो कहीं बाहर जाने की बजाय, घर आकर बैठ गई। 

Cannot live at home. यहाँ मारकाट शुरू कर दी, ऐसे की लोगों को कुछ समझ ना आए। 

और Out from India का मतलब भी यही है। उस स्तर की सफलता के लिए, आपको उस इंसान को किसी खास तरह के सेफ जोन से बाहर निकालना पड़ता है। खास माहौल में पहुँचाना पड़ता है। जहाँ बहुत कुछ उस स्तर के डिज़ाइनरस के कब्ज़े में होता है। इंडिया से बाहर वेलकम करने वाले क्या सिक्योर माहौल दे पाएँगे? मुझे तो नहीं लगता। फिर USA में तो आगे इलेक्शन होने हैं। उसपे बच्चे तक US के गन डेंजर से डरते हैं। क्यों? वो तो US वाले बेहतर जाने या ऐसा सोचने वाले बच्चे? थोड़ा ज्यादा तो नहीं हो गया?

इंटरनेट बंद करना गलत बात। इंटरेक्शन का एकमात्र तरीका बचा है वो, यहाँ पे।                                           

Wednesday, August 28, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 17

थोड़ा हल्का-फूलका हो जाए? 

हल्का-फूलका?

 Interesting pieces from here or there

गोबर No Mics




ये विडियो सिर्फ कुछ तथ्यों की जाँच के लिए हैं। 
ऐसे ही यूट्यूब पे सामने आ गए। 
बाकी, मैंने इन दोनों ही यूटूबर के बहुत ही कम वीडियो देखे हैं। 
कुछ को देख कर ऐसा लगा की यूटूबर के इस वीडियो से पैसे कमाने वाले जहाँ को भी जानने की जरुरत हैं। 
उस पर फिर कभी।  



Worms? 
Viral/s?
and 
Fertitizers?

गोबर No Mics, मल-मूत्र की राजनीती और उसके पीछे छुपा, ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी और व्यवसाय। और दुनियाँ भर की बड़ी-बड़ी कंपनियों के साम्राज्य के राज।  

आम आदमी को समझाने के लिए, सिर्फ मोदी के जुमलों को समझाना ही जरुरी नहीं है। बल्की, बाकी सब पार्टियों के खास तरह के जुमलों के पीछे छिपे, अज्ञान या ज्ञान-विज्ञान को समझना भी बहुत जरुरी है। उन्हें जानने की कोशिश करते हैं, आगे पोस्ट में। 

Monday, August 26, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 16

Physiological Manipulations?

शरीर के बाहरी और भीतरी बदलाओं को समझने के लिए, इन हेरफेरियोँ को समझना बहुत जरुरी है। 

ये ज्ञान-विज्ञान थोड़ा अगले स्तर का है? नहीं, बिल्कुल ही सामान्य ज्ञान-विज्ञान जैसा है। मगर, किन्हीं खास विषयों के ज्ञाता होते हुए भी, आप इससे बिलकुल अंजान हो सकते हैं। या शायद समझने के लिए थोड़ा-सा तो, उस माहौल को, उसके घटकों और किर्याओं को देखना-परखना और समझना पड़ेगा।  

मान लो, आप गाएँ या भैंस रखते हैं। किसलिए? उनकी सेवा करने के लिए? या सिर्फ शौक या अपनी रुची की वजह से? या अपने घर का खर्चा निकालने के लिए? वजह क्या है रखने की? उसी अनुसार, उसका लालन-पालन का तरीका बदल जाएगा। हॉबी है, शौक है या सेवाभाव, तो आप उसे प्यार से रखेंगे। अपनी जरुरतों से ज्यादा, उसकी जरुरतों का ध्यान रखेंगे। लेकिन अगर पैसे कमाने का साधन है? या आपकी रोजी-रोटी ही उसकी वजह से है तो? उतना ही ख्याल रखेंगे, जितना आपको उससे फायदा मिलेगा? जिस किसी तरीके से मिलेगा? इसका उस पशु पे क्या असर पड़ता है, इससे आपको कोई लेना-देना नहीं? खास तरीकों से दोहन किए गए, उसके उत्पादों का समाज पर क्या असर पड़ता है, उससे भी आपको कोई लेना-देना नहीं? आपने अपने फायदे के लिए रखे हुए हैं, और वो आपको हो रहा है? इससे आगे आपको क्या मतलब? 

यही खेती पर और हर तरह के व्यवसाय पर लागू होता है। जब हर जगह, हर व्यवसाय पर यही लागू हो रहा है, तो यही हमने शिक्षा पर भी लागू कर दिया है? परिणाम? आगे किसी पोस्ट में जानने की कोशिश करेंगे। 

उससे पहले यहाँ छोटा-सा उदहारण 

जहाँ से मैं यहाँ दूध लेती थी, एक दिन ऐसे ही श्याम को दूध लेने गई, और वहाँ अंदर जाते-जाते जैसे ठिठक गई। दूध ठीक-ठाक मिलता था। बोलचाल में भी सब सही। फिर? ये एक छोटी-सी डेरी है और पुराने तरीकों से चल रही है। जैसा ज्यादातर आज भी यहाँ के गाँवों में है। मेहनत ज्यादा और कमाई कम। उसपे भैंसों को पालने-पोषने का तरीका भी वही देशी, पुराना। एक भैंस बुरी तरह पीटी जा रही थी। मेरे देखते ही देखते, वो डंडा तक टूट गया। मैंने पूछा की इतना क्यों मारा उस भैंस को? उसी से दूध लेते हो और उसी को पीटते हो? तो जवाब मिला, अरे इतना खिलाते-पिलाते हैं, फिर भी पैर उठाती है, वगैरह-वगरैह। समझ नहीं आया, की पशु खुश होके ज्यादा दूध देगा या ऐसे पीटने पर? उन्होंने कहा, डर से दे देगी। डर? शायद थोड़ा बहुत काम करता है। इतना? पता नहीं। आप क्या कहते हैं? 

खैर, मैंने उस दिन के बाद वहाँ से दूध लेना बंध कर दिया। मेरा मन नहीं माना। 

इसके साथ-साथ, इधर-उधर और भी काफी कुछ देखने, सुनने और समझने को मिला, गायों और भैंसों के बारे में। वही सब शायद कहीं न कहीं इंसानों के साथ भी हो रहा है। जैसे गोलियों और इंजेक्शंस का प्रयोग। या कोई खास तरह की जड़ी-बुटियाँ या खास तरह के केमिकल्स का प्रयोग? और सिर्फ व्यस्क ही नहीं, कहीं न कहीं बच्चे और बुजुर्ग तक वो सब भुगत रहे हैं, उनकी जानकारी के बिना। हॉर्मोन्स इंडुशेर्स या इन्फ्लुएंसर्स? किस फॉर्म में या कैसे? अभी तक कुछ खास मालूम नहीं। कई बार कुछ खास तारीखों को कुछ खास तरह के ड्रामे हुए और उनका सीधा-सीधा सम्बन्ध हीट पीरियड, लिट्रल जैसे गायों-भैंसों के साथ होता है या फिर पीरियड्स से रहा?

मालूम नहीं ये महज़ कोइंसिडेन्स होते हैं या? जानकार शायद, इस सब पर ज्यादा जानकारी दे सकते हैं। काफी कुछ किसी न किसी फॉर्म में आसपास ही देखने, सुनने या समझने को मिलता है। जो कहीं न कहीं, किसी न किसी फॉर्म में, उसी वक़्त कहीं और हो रहा होता है। जैसे कहीं कोई खास मीटिंग और कुछ-कुछ वैसे से ही, इधर-उधर जमावड़े। कोई फिजिकल या फिजियोलॉजिकल डिस्कम्फर्ट्स और कुछ-कुछ वैसे से ही डिस्कम्फर्ट्स आसपास किसी को, ज्यादातर बढ़ाए-चढ़ाए हुए बिमारियों के रुप में। या चलते-फिरते संकेत या चिन्ह जैसे। या कुछ खास लोगों का आसपास कहीं आना या जाना। या आते-जाते रस्ते पर ही खामखाँ से जैसे कुछ पड़ा होना या फैला होना। ऐसा-सा ही कुछ पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों की फॉर्म में, किसी खास परेड जैसा भी हो सकता है। बिलकुल ऐसे जैसे धकाया गया हो, इस पार्टी या उस पार्टी द्वारा। वो धकाई हुई-सी कहानियाँ जैसे, ज्यादातर बहुत ही टेम्पररी होती हैं। ज्यादातर उतने ही वक़्त, जितने वक़्त ऐसा कुछ चल रहा होता है या कभी-कभी सांकेतिक सिर्फ। जैसे किसी भी तरह का कुछ बेचने वाला, या खरीदने वाला या वाले।  

कुछ एक मौतों से पहले कुछ-कुछ शायद ऐसा ही था? मगर तब तक इन सब पर मैं इतना ध्यान नहीं देती थी। या यूँ कहो, की उतना शक नहीं था। और शायद ज्यादा कुछ पता भी नहीं था। पिछले महीने दादी की मौत से पहले कुछ-कुछ, ऐसा-सा ही था? या जब बहुत कुछ पहले ही कहा या बताया जा चुका हो, तो कई बार, खामखाँ भी आप ज्यादा सोचने लगते हैं? और कहीं न कहीं के कोइंसिडेन्स भीड़ जाते हैं?  

एक तो गर्मी से हाल-बेहाल था। उसपे लाइट और कूलर में आग लगने के ड्रामे भी चल रहे थे। 12 से 14 जुलाई तक पैरों के हाल ऐसे थे जैसे कोई काट रहा हो, खासकर रात के वक़्त। सारी रात घूम-फिर के ही कट रही थी। क्यूँकि घूमने-फिरने पे उतना फील नहीं होता। पेन किलर खाओ और जैसे-तैसे पड़ जाओ। दो दिन ऐसा होते हुए हो गए थे। यूँ लग रहा था, जैसे कोई लेजर अटैक-सा कुछ हो रहा हो। थोड़ा ज्यादा हो गया ना? ऐसे दर्द में कुछ भी सोच सकते हैं। दिन में दादी की याद आई। कई दिन हो गए थे मिले हुए। इधर-उधर से बस खबर ही मिल रही थी। हालाँकि, घर साथ में ही है। मगर जहाँ आप कुछ कर ही नहीं सकते, वहाँ रोज-रोज जाना परेशान करने जैसा-सा ही होता है। मैं गई और देखकर यही समझ आया, कहीं ये दर्द भी, कहीं कुछ दिखाना या समझाना भर तो नहीं है? उनका खाना-पीना, दवाई, सब जैसे बंद हो चुका था। ऐसे जैसे, आखिरी साँसे गिनने के लिए छोड़ दिया गया हो। अच्छा खासा ठीक-ठाक हैल्थी इंसान, कुछ ही महीनों में जैसे कंकाल हो चुका था। मेरे हाथ लगाने पे उन्होंने आँखें खोली। देख रहे थे, मगर बोला नहीं जा रहा था शायद। कुछ देर बाद मैं उठ कर आ गई। और अगले दिन पता चलता है, की दादी नहीं रहे। उस रात मेरा पैरों का दर्द भी काफी हद तक गुल था। क्या था ये, पता नहीं। महज़ कोइंसिडेन्स या?  

इस महीने हुई घर-कुनबे से ही लड़की की मौत के बाद वो स्पैम मेल्स, कह रही हों जैसे, हम गवाही दे रहे हैं, ऐसा हो रहा है?  

Sunday, August 25, 2024

कुछ हल्का-फुल्का हो जाए?

 हल्का-फुल्का?

"मेरे पापा ने मुझे स्कूल में जमा करा दिया", ये किसी कवि को कहीं सुना था शायद? 

आगे थोड़ा जमाबंदी से  

और कहा अबसे आपकी बंदी (बंधी पढ़ें?) है ये। 

तो नाम पड़ा होगा, जमाबंदी?

कितनी जमाबन्दियाँ हैं आपके आसपास?  

Landrecords की एक ऑफिसियल वेबसाइट है jamabandi.nic.in   

jamabandi? पे जाके आप अपनी जमाबंदी की nakal (हूबहू कॉपी) ले सकते हैं।   

और ये DSNakal क्या है?  दुशाषन या दुर्योधन नकल जैसे? 

और इसी jamabandi की वेबसाइट से आप अपनी जमीन का mut (वैसे हिंदी में इस शब्द को क्या कहेंगे?  स्टेटस भी पता कर सकते हैं।  

वैसे Mutation शब्द? के मायने कुछ-कुछ वैसे ही हैं, जैसे Biological Mutations?   

https://jamabandi.nic.in/DSNakal/CheckMutStatus

Query 

Deed 

Cadastral Map ऐसी-सी ही कुछ और रोचक जानकारी भी है इस वेबसाइट पर। उसपे फिर कभी :)

Friday, August 23, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 15

आप बीमार हैं और किसी ऐसी बीमारी से ग्रस्त हैं, जहाँ से वापस आना मुश्किल है। डॉक्टर के अनुसार लगभग असंभव। मान लो आपको कैंसर है और डॉक्टर ने कह दिया सिर्फ 2-महीने और जियेंगे? कैंसर भी 6-महीने पहले ही डिटेक्ट हुआ है। मगर 4th स्टेज पे बताया। 

या मान लो आप कोमा में चले गए, किसी एक्सीडेंट के बाद या किसी बीमारी की वजह से। साँस चलती रहेगी। हो सकता है, थोड़ा-बहुत लोगों को पहचान भी पा रहे हों। मगर, जवाब नहीं दे पा रहे। केयर करते रहो और उम्मीद रखो की एक दिन आपका इंसान सही हो जाएगा। काफी वक़्त हो गया केयर करते और उम्मीद छोड़ रहे हैं या बहुत परेशान हो चुके। एक कोमा वाले इंसान की वजह से, कई ज़िंदगी जैसे रुकी पड़ी हैं या बहुत ही धीरे-धीरे जैसे खिसक रही हैं। तो क्या करेंगे?

मार दो उस इंसान को?  यही ऊप्पर कैंसर वाले इंसान के साथ भी है।  

मगर ठहरो। उस केस को तो डिटेक्ट ही हुए सारे 6-महीने हुए ना? अपने किसी इंसान को 6-महीने भी ढंग से नहीं भुगत सकते? उसी में हाथ उठा लिए? कोमा में 6-साल हों तो? अरे, किसी अपने इंसान के लिए इतना-सा नहीं कर सकते? या निर्भर करता है, परिस्थितियों पे? कितने इंसान हैं? उनमें से कितने करने वाले हैं? और कितने या कौन भुगतने वाले या वाला या वाली? उनकी अपनी आर्थिक स्थिति क्या है? और खुद उन्हें इधर-उधर का सहारा कितना? और भी कितने ही किस्म के "निर्भर करता है", हो सकते हैं। 

मगर, क्या आपको किसी की ज़िंदगी लेने का अधिकार है? 

वैसे तो हमारे जैसे देश में ज़िंदगी की कोई खास वैल्यू नहीं है। उसपे अगर आप समाज के ऐसे तबके से आते हैं, जहाँ आर्थिक स्थिति तक सही ना हो, तो आपकी वैल्यू कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा नहीं है। पता नहीं कहाँ और कैसे मरते ही रहते हैं। तो ऐसे में क्या तो सोचना और क्या ना सोचना?

चलो सोच लिया, उस इंसान को खिसकाना है? तो कितनी तरह के तरीके हैं, खिसकाने के? हलाल? या झटका? एक ही बार में ख़त्म करना है? या धीरे-धीरे खिसकाना है? इनके बीच के भी शायद बहुत से रस्ते हो सकते हैं। 

सुना है, मेडिकल के हिसाब-किताब से --

एक बार में ख़त्म करने के लिए इंजैक्शन सही रहता है। इंजैक्शन के नाम अलग-अलग हो सकते हैं, मगर ऑक्सीजन सप्लाई ख़त्म कर जाती है। और इंसान खत्म समझो। कुछ-कुछ ऐसे ही तब भी होता है, जब लोग फाँसी खाते हैं। या हार्ट अटैक में जैसे।   

फिर थोड़े परेशान होने वाले तरीके। जहर खाना जैसे। दवाईयों के द्वारा या खाने-पीने के किसी भी बहाने। 

ज़िंदगी का सपोर्ट-सिस्टम हटा देना। जो किसी भी वजह से इंजैक्शन ना दे पाएँ, उनके लिए ये तरीका सही बताया। इसमें दवाईयाँ या ईलाज ही नहीं बंद कर दिया जाता, बल्की, खाना तक बंद करवा देते हैं। और शरीर में बची-खुची ताकत के अनुसार, इंसान कुछ ही दिन में मौत के हवाले होता है। 

क्या हो, अगर आपके यहाँ इस सबकी अनुमति ना हो तो? तरीके या जुगाड़ निकाल लिए जाते हैं? 

इन सब कंडीशन को आप अपने आसपास कहाँ-कहाँ देखते हैं? कहीं देखा या सुना है? जरुरी भी नहीं की वो सब ऐसे ही हुआ हो, जैसे यहाँ लिखा या बताया गया है। हो सकता है, ऐसे ही कोई सामाजिक सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ दी गई हों -- राजनीती द्वारा?    

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 14

 Narratives?

Enforcements?

Truth? 

Whose?

Or how much percent? 

अगर आपका बैंक अकॉउंट तक कहीं और से ही कंट्रोल हो रहा हो?

जैसे ये 


तो फिर

 सच? 

झूठ? 

अफवाह? 

या हकीकत? 

तो कितने परसेंट? 

के क्या मायने रह जाते हैं? 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 13

 ये इमेज बदलती रहती हैं, "मौसम-सी" 

जैसे Narratives 

(और मौसम को कंट्रोल ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का एब्यूज करता है।) 

21. 08 . 2024 

कुछ खास था शायद?  


"खेल ही खेल में"?

जब किसी को मालूम ही नहीं था की ऐसे भी खेल होते हैं? और जब किसी को समझ आने लगा या समझाया जाने लगा तो ? 
मगर ऐसे क्यों खेल होते हैं? 
और किससे खेलते हैं ये खेल? 
सारे समाज से? 
ऐसे समाज से, 
जिसे उनका ABC तक भी पता नहीं होता। 
और क्यों भुगतते हैं वो, 
इन खेलों के दुष्परिणाम? 
क्यों नहीं पता हो उन्हें भी,
इस सबके बारे में? 
क्यों भुगतें वो,
बीमारियाँ और मौतें तक? 
ऐसे सिस्टम की वजह से?  

Thursday, August 22, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 12

System Creation?

Or

Ecosystem Creation? 

of any organism or human or population? How easy or how much difficult is that?

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 11

खेल ही खेल में?

क्या है ये खेल?

वो, जो हम जीते हैं दिन-प्रतिदिन?

वो, जो हम सुनते हैं, देखते हैं 

या अनुभव करते हैं दिन-प्रतिदिन? 

  

जो चमकने लगे सूरज 

आग का गोला जैसे,

और बरसाने लगे आग?

खेल ही खेल में?


या देखते ही देखते, 

बादल उमड़ने-घुमड़ने लगें 

इधर से उधर चलने लगें 

रुई के फाए से जैसे उच्छलने लगें 

रात के अँधेरे में 

पहाड़ों पर नहीं, 

बल्की, आपके सिर के ऊप्पर 

मैदानी इलाकों में?


21.8.2024 

या रजिस्ट्री वाले खास ऑफिस के 

 24 AC वाले वेटिंग रुम में, 

14 नम्बरी वाले, खास फोन चार्ज पर? 

बैठे-बिठाए अगर, 

सिर्फ उस जगह के आसपास 

झमाझम बरसने लग जाए अगर?

कुछ खास वक़्त के लिए? 


इन खास ऑफिसों के बीचों-बीच 

खास फाइबर वाली?

उस कवरिंग पर पटर-पटर, ऐसे, जैसे 

Go Gators के CJC वाला कवर जैसे?

या Go Gators song जैसे? 


दिगज्जों की लड़ाईयों बीच

पिसती कोई नन्हीं-सी जान जैसे?

दुनियाँ भर में हो रहे इन, खास इलेक्शन को

और इस खास सिस्टम को,  

जनता को कोई दिखाए या समझाय तो भला कैसे?   

की आप किस युग में हैं?


एक ऐसा जहाँ 

जहाँ, ज़िंदगी की धूप पे, छाँव पे 

बारिश पे, छोटे-मोटे भूकम्पों और आँधियों पे 

इंसान के अंदर-बाहर के बदलावों पे 

बिमारियों पे, मौतों पे, पैदाइशों पे 

और उनके होने के वक़्त पर भी  

कब्ज़ा, 

ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी का है।  

   

खाकी स्लीप पे, वो लूटी-पीटी सफेद शर्ट? 

उसपे वो खास पुलिसिया कार्गो?

कोई डेढ़ दशक पुरानी। 

बालों पे, हाथों पे, लिए खास स्टीकर 

ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी के एब्यूज के 

एक पे जैसे छाप दिया हो, मेहरबानियाँ ॐ की?

या दूजे पे, कोई blotting bands जैसे? 

और बाल, देखते ही देखते 

ढलने लगें हो किसी, विटिलिगो-सी सफेदी में? 

या चाँदनी-सी शीतल, चाँदी में जैसे? 


Thank You MDU?

या Thank You UF? 

या Thank You मीडिया?

या Thank You वो आम आदमी 

जिसे इन सबमें घसीटती हैं ये पार्टियाँ?  

ज्यादातर उसकी जानकारी के बिना?    

कितना कुछ बताने, दिखाने और समझाने के लिए?  


या Thank You, सिविल, डिफ़ेन्स?

और खास-म-खास,

इधर-उधर की पार्टियों के सामुहिक जामी-अमले?

दुनियाँ को ये सब दिखाने, बताने या सुनाने के लिए, 

और उसका माध्यम, मुझे चुनने के लिए?     

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 10

बहस

इलैक्शन होने चाहिएँ?

नहीं होने चाहिएँ। 

होने चाहिएँ। 

क्यों होने चाहिएँ? और 5-साल में कितनी बार होने चाहिएँ?

इलैक्शन में नेता लोगों को ये भी याद आता है, की उन्हें जनता से मिलना है। उन्हेँ क्या समस्याएँ हैं, ये भी जानना है। और उन समस्याओं के समाधानों के वादे भी करने हैं। अगर हम जीते तो? ब्लाह, ब्लाह, ब्लाह वादे-इरादे? इधर भी,उधर भी और उधर भी। 

मगर इस दौरान कुछ और भी खास होता है। सिर्फ वादे होते हैं। इस दौरान वादों के इलावा कुछ नहीं होता। फलाना-धमकाना नाम पे जैसे, सब कामों पे कोई स्टॉप लगा दिया जाता है। जबकि, होना उल्टा चाहिए। वादे नहीं, काम करो, वो सब जिनके वादे कर रहे हो। जो उन्हें पहले पुरे करने में सफल होगा, वही जीतेगा। उससे पीछे रहने वाले 2nd, 3rd आएँगे या हार जाएँगे। अगर ऐसे इलैक्शन होने लग जाएँ तो, फिर 5-साल में क्यों, चाहे रोज इलैक्शन हों। वैसे फिर जैसे इलैक्शन आजकल होते हैं, उनकी जरुरत ही कहाँ रहेगी? और ना ही खामखाँ के या झूठे वादे कर पाएँगे नेता या पार्टियाँ। 

Tuesday, August 20, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 9

 Goli? या गोली? मगर कौन-से वाली? और कैसे, कहाँ से?  

"Your phone has been recharged." direct-indirect hints somewhere 

and some relation with any kinda "extreme form of heat"? 

 

लोगों को कैसी-कैसी गोलियाँ दे रहा है, हमारा ये राजनीतिक सिस्टम? और कैसे-कैसे?  

Steroid 6g और कोई ऑफिस टी?

या धतूरा और  some form of food or water adulterants? Vomitting, headache, swelling etc.? 

मतलब किसी खास गोली की जरुरत भी कहाँ? कितनी ही तरह के जहर तो हमारे आसपास के पेड़-पौधों या सड़े-गले, खाने-पीने में ही मिल जाएँगे। या ऐसी किसी जानी-अंजानी जगहों से लेने पर, जहाँ सफाई का ध्यान कम रखा जाता हो। अपने आप उगे हुए या आपने ही लगाए हुए पेड़-पौधे, जानकारी के अभाव में? या प्रयोग करने वाले पानी के स्रोत के पास किसी भी तरह की सीपेज, जहाँ ऐसे कुछ केमिकल्स या तत्व हों। जिनका प्रभाव जरुरी नहीं, उसी वक़्त नज़र आए। 

Seepage (सीपेज), रिस-रिस के मिट्टी के कणों से होते हुए पानी का आसपास फैलना। जैसे बारिश के दौरान, नहर या रजभाए के आसपास के नलों से मिट्टी वाला पानी आना।  

कुछ बिमारियाँ लम्बे समय तक ऐसा कुछ लेते रहने के कारण हो सकती हैं। लैट्रिन वैल या गंदे नाले का जमीन से पानी लेने वाले स्त्रोत के आसपास होना। या ऐसे किसी गढे का आसपास होना, जिसमें ऐसे कुछ केमिकल्स या पैकेट्स पड़े रहते हों। जरुरी है, घर में प्रयोग करने वाले पानी को ऐसी जगहों से ना लें। या उन्हें साफ़ करने के बाद ही प्रयोग करें। गाँवों में या शहरों की बाहरी कॉलोनियों में बिमारियों का ज्यादा होना, साफ़-सफाई का अभाव, यहाँ वहाँ टूटे-फूटे पानी के पाइप या सही तरीके से गंदे पानी या कूड़े का समाधान ना होना भी है।     

पिछले कुछ सालों में आपने छोटी-मोटी कोई मेडिसिन भी बदली हैं? छोटी-मोटी पेन किलर्स या headache, fever जैसी-सी ही सही? क्यों? क्या वजह रही? दवाईयोँ के रंग-रुप, नाम या कंपनी का नाम, और उसपे लिखी छोटी-मोटी डिटेल्स पढ़ो। कहाँ से लेते हो? पहले वहीँ से क्या लेते थे, या मिलती थी? अब वो नहीं मिलती? उसकी जगह कुछ और मिलती है? ये सब किसी सिस्टम चेंज या पॉलिसी चेंज की तरफ इसारा भर भी हो सकते हैं और कहीं-कहीं जबरदस्ती धकाया हुआ भी हो सकता है। बाज़ार के इर्द-गिर्द बहुत कुछ घूमता है। या यूँ कहो, की बहुत बड़ा खेल ही पैसे का है। लोगों को बिमार करो और पैसे बनाओ?    

बाकी खाने-पीने में adulterants का होना उतना ही आम है शायद, जितना ज्यादा बिमारियों का होना। वो सब साफ़-सफाई की कमी की वजह से भी हो सकता है। या direct या indirect धकाया हुआ भी। मतलब, आप जहाँ-कहीं से खाना-पीना ले रहे हों, जरुरी नहीं उन्होंने किया हुआ हो। हो सकता है, उन्हें ऐसा कुछ पता तक ना हो। उनके खुद के वातावरण में, या खाने-पीने में शायद, बिना उनकी जानकारी के धकाया हुआ हो। क्यूँकि, ज्यादातर लोग विश्वास के लायक होते हैं। बहुत ही कम होते हैं, जो ऐसा करते हैं। अगर आपके साथ या आसपास ऐसा कुछ हो तो जरुरी है, छोटी-छोटी चीजों या बातों पे ध्यान देना। या अगर हो सके तो अपना खाना-पीना ज्यादातर, अपने घर ही उगाना। गाँवों में तो बहुत आसानी से सम्भव है ये। इतनी जगहें खाली पड़ी होती हैं और लोगों के पास वक़्त भी। उसपे पोषक तत्वों की कमी से होने वाली बिमारियों का समाधान भी होगा। क्यूँकि, ऐसी जगहों पे ऐसी बिमारियाँ भी ज्यादा मिलती हैं।  

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 8

 AI और दुरुपयोग 

AI और सम्बंधित टेक्नोलॉजी, जितना जीवन को आसान कर रही हैं, उससे कहीं ज्यादा नुक्सान तो नहीं कर रही?

मानव रोबॉट्स बनाने की प्रकिया को इन टेक्नोलॉजियों ने कहीं ज्यादा आसान तो नहीं कर दिया है? ये टेक्नोलॉजियां ना सिर्फ राजनीतिक कुर्सियों के हथियार हैं, बल्की बड़ी-बड़ी कंपनियों के गठजोड़ भी। ये सब एक तरफ अमीरों को और अमीर तो गरीबों को और गरीब तो नहीं कर रहा? कैसे? ये आगे कुछ पोस्ट्स में पढ़ने को मिलेगा।   

यहाँ AI और सम्बंधित टेक्नोलॉजियों के दुरुपयोग के कुछ उदहारण लें?  

खामियाँ, पहचानो तो जाने    

गूगल की गूगली जैसे?   


ये टेक्नोलॉजी एब्यूज की खामियाँ, लोगों को रोबॉट्स बना रही हैं। 
क्रिकेट में गूगली जैसा कोई शब्द होता है क्या?

और?

क्या है ये?

किस तरह की राजनीती?

और टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग, किस हद तक?    

लोगों की ज़िंदगियों से कैसे खेल रहा है ये टेक्नोलॉजी एब्यूज?

वो भी ऐसे लोगों से, जिन्हें इन टेक्नोलॉजी का abc तक नहीं पता।   




हमें सिर्फ अपने बच्चों को ही नहीं, बल्की इस कम पढ़े-लिखे समाज को खासकर, टेक्नोलॉजी के ऐसे-ऐसे दुरुपयोगों से सावधान करने की जरुरत है। 

आगे किन्हीं पोस्ट्स में कुछ और ऐसे से ही उदाहरण हो सकते हैं। 

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 7

बालों से इतना भी क्या लगाव?

ये लगाव महज़ बालों से नहीं, बल्की किसी तरह की जबरदस्ती से है। आपको वो बनाने की कोशिश की जा रही हों, जो आप नहीं है या नहीं बनना चाहते। जब पार्लर में बालों पे खास एक्सपेरिमेंट चल रहे थे, तो मुझे कौन याद आ रहा था? मेरा अपना सालों पुराना हुलिया नहीं, बल्की TV में या ईधर-उधर देखी सुनी गई, वृंद्धावन की औरतें। क्यों? क्यूँकि, उन दिनों शायद ऐसा कुछ आसपास काफी देखने-सुनने को मिल रहा था। उस वक़्त तक मैंने MDU रेजिडेंस नहीं छोड़ा था। जो कुछ घर पर चल रहा था, वो सब भी सिर के ऊप्पर से जा रहा था। खैर, बाल जलने के बावजूद, मैंने बाल नहीं कटवाये। एक तो अब वो शार्ट हेयर वाला लुक मुझे कोई खास पसंद नहीं था, उसपे कोई जिद भी हो गई थी। 

इसी दौरान कुछ और लुक्स उन दिनों काफी आसपास घूमते थे। विटिलिगो, और बिलकुल सफ़ेद इंसान। उसके बाद कैंसर मरीज़ जैसे-से लुक्स जैसी-सी बुजुर्ग औरतें। उससे भी बड़ा झटका लगा, जब बुआ को पास बैठकर देखा और सुना। बाकी लकवा कब हुआ और उसके बाद हॉस्पिटल और घर तक का किस्सा तो मैं पहले ही सुन चुकी थी। मैं खुद कहीं ना कहीं उस हादसे से बची थी शायद। क्यूँकि, एक रात मैंने पूरी रात कहराते हुए ऐसे गुजारी थी की शायद सुबह तक नहीं बचूँगी। एक पैर जैसे घिसट रहा था और दर्द से हाल बेहाल था, पेन किलर लेने के बावजूद। मगर हॉस्पिटल जाने का कोई इरादा नहीं था। सुबह तक कुछ आराम हो गया था। क्या था वो, पता नहीं। शायद गर्मी हद से ज्यादा? उसपे AC का काम ना करना। नीचे वाला AC पहले ही गर्म फेंक रहा था तो ज्यादातर वो बंद ही रहता था। ऊप्पर, मेरे बैडरूम वाले AC ने भी कुछ-कुछ ऐसा ही ड्रामा दिखाना शुरू कर दिया था। मगर, तब तक भी मुझे अहसास नहीं था, की गर्मी की वजह से भी ऐसा कुछ हो सकता है।   

गाँव आने के बाद, जब लाइट के तमाशों और गर्मी को झेलना शुरू किया, तब समझ आया शायद, पैरों में दर्द कब-कब और क्यों होता है। वैसे तो माँ के इस घर में AC के बिना भी गुजारा हो सकता है। मगर ऊप्पर वाले कमरे में नहीं। यहाँ कम से कम कूलर तो चाहिए। AC के बाद जब कूलर पे भी ड्रामे शुरू हुए, वो भी हद मार गर्मी में, तब यक़ीन हो चला, ये सब तो मर्डर प्लान का ही हिस्सा है। ऐसे मारो की पता भी ना चले, की हुआ कैसे है। और ऐसा खास जानकारी रखने वाले एक्सपर्ट ही कर सकते हैं। और ये सब बता भी एक्सपर्ट ही सकते हैं, की एक्सट्रीम गर्मी या सर्दी का किस तरह की बिमारियों से लेना-देना है। जब आप ऐसे हादसों से, और किसी तरह के फाइनेंसियल प्रॉब्लम्स से भी गुजर रहे होते हैं, तब शायद ज्यादा समझ आता है की ऐसे हाल या इससे भी बुरे हाल में लोगों की ज़िंदगियों को शॉर्ट-कट क्यों लग जाते हैं? दिखने में कुछ खास नहीं होता, मगर रोजमर्रा के wear and tears ज़िंदगी को घटाने का काम करते हैं। मगर ध्यान से देखें तो दिखने में भी होता है। हुलिया, बिलकुल बदल चुका होता है। आपका हुलिया, आपके स्वास्थ्य के बारे में काफी कुछ कह रहा होता है।  

टैक्नोलॉजी, एक तरफ जहाँ ज़िंदगी को आसान बनाती है। तो वहीं इसका दुरुपयोग? लोगों को पीछे धकेलने, उनके बेहाल और बिमारियों और मौतों तक का कारण बनता है। टेक्नोलॉजी, जितनी ज्यादा एडवांस है, उसका बुरा प्रभाव भी उतना ही खतरनाक। खासकर, जब गलत इरादों से किया जाए। 

आप सालों जिस वातावरण में रहते हैं, आपका शरीर भी काफी हद तक उसका अभ्यस्त हो जाता है। उससे अलग को बहुत जल्दी नहीं झेल पाता। जैसे 2021 में resignation के बाद जब घर आना शुरू किया, तो अगर रात को काफी वक़्त तक लाइट जाती, तो गाडी का सहारा होता था। मगर, धीरे-धीरे ज़िंदगी के दुश्मनों ने, जैसे सब रस्ते बँध कर दिए। यहाँ रोड़े, वहाँ रोड़े, वहाँ रोड़े। खुद के इन अनुभवों ने, काफी हद तक भाभी के केस को समझने में भी सहायता की। और आसपास की ज़िंदगियों को भी। उस घर में तो गर्मी की कुछ ज्यादा ही समस्या है। घर की बनावट ही ऐसी है। सिर्फ बैडरूम में AC, जबकि ज्यादातर वक़्त आप उसके बाहर रहते हों या काम करते हों, तो ये शायद और भी ज्यादा बुरा प्रभाव डालता है शरीर पर। कुछ-कुछ ऐसे जैसे, तपती दोपहरी में गाड़ी धूप में हो और ऐसी गाडी के 2-4 मिनट के ही सफर में सिर दर्द हो जाए, अगर आप उसका टेम्परेचर थोड़ा नॉर्मल किए बिना ही उसमें बैठ जाएँ तो। दिखने में बहुत ही छोटी-छोटी सी बातें, मगर long term में यही छोटी-छोटी सी बातें, बड़ी बिमारियों का रुप ले लेती हैं।  

Monday, August 19, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 6

 मनीष सिंह? 

नहीं, मनीष सिसोदिआ, MLA, आम आदमी पार्टी 

इंटरव्यू और 

ये TV9 पे 5 Editors कौन हैं? 

वैसे, ये इंटरव्यू इंटरेस्टिंग है। 



शायद ये ED iting है?
क्या केजरीवाल .. ?

What kind of techniques editors apply while editing?
Anything and Everything under the sun?
 
सारा खेल और शायद सारी राजनीती यही है? 

मेरा इस वाली एडिटिंग से खास परिचय कब हुआ? जाने क्यों मैंने अपनी केस स्टडी बुक, Kidnapped by Police, कहीं editing के लिए दे दी। किसी Micheal ने वो edit की। जब edited version पढ़ा तो लगा, बिना edited वाली ही सही है। क्या खास था edited version में? कहीं-कहीं आपने जो लिखा, उसका मतलब ही बदल देना। जैसे आप कहें police did so and so और edited version कहे, "police helped me"। यूँ लगा ये तो किसी पुलिस वाले के पास ही पहुँच गई लगता है :)

धीरे-धीरे editing के इतने प्रकार समझ आते हैं, की बस पूछो ही मत। और इस editing में सिर्फ पुलिस शामिल नहीं है। नेता, अभिनेता से लेकर, सिविल, डिफ़ेन्स में दुनियाँ जहाँ के पास ये महारत हासिल है। जितनी तरह के narratives और जितनी भी तरह की प्रेजेंटेशन संभव हैं, समझो, उतनी ही तरह की editing संभव है, इंसान की और सब जीवों की। जैसे police helped me वाला narrative पढ़ने वाले ने मान लिया, तो समझो इंसान के सॉफ्टवेयर (दिमाग) की कोई editing हो गई। ऐसी-ऐसी तो कितनी ही editing हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में होती हैं। कितना कुछ हम ऐसा सुनते या पढ़ते हैं, जिसकी हकीकत का अता-पता तक नहीं होता। और वो हमारे दिमाग में कहीं ना कहीं सैट भी हो जाता है। पढ़े लिखे फिर भी शायद खुद पर थोड़ा विश्वास ज्यादा रखते हैं और सुने सुनाए या देखे तक पर प्रश्नचिन्ह ज्यादा। कम पढ़े-लिखे या बच्चे या पढ़े-लिखे मगर, किसी खास विषय पे अंजान-अज्ञान लोग, जल्दी एडिट होते हैं शायद। इसीलिए जानकारी वो भी सही जानकारी, ज्यादा जरुरी होती है। जहाँ कही जितनी ज्यादा छुपम-छुपाई होती है, मार भी वहाँ उतनी ही ज्यादा होती है।  
 
जैसे not की जगह now, except की जगह accept, एक शब्द की जगह, कई-कई repeated sentences या words या spelling errors तक हमारी जानकारी के बिना भी बदल जाते हैं। डिपेंड करता है, ऐसे-ऐसे एडिटर्स आपको क्या और क्यों प्रेजेंट करना चाहते हैं? ऑनलाइन जहाँ में तो जैसे इसकी भरमार है। वैसे ही, ऑफलाइन लैपटॉप्स या PCs के डाक्यूमेंट्स भी कहाँ सेफ होते हैं। Mutations में जैसे होता है। Cut, copy, paste, remove, delete, replace वैगरह। ऑनलाइन या सिर्फ डाक्यूमेंट्स तक होता है, तो सिर्फ प्रोफ़ेशनल जोन पे असर पड़ता है। मगर ऐसा ही कुछ, जब हकीकत की जिंदगियों के साथ होता है तो? बच्चे exams से भागने लगते हैं, डरने लगते हैं या खामखाँ के प्रेशर लेने लगते हैं। और कहीं ना कहीं पिछड़ने लगते हैं। चिड़चिड़े होने लगते हैं, चीखने-चिल्लाने या झगड़ने लगते हैं। ऐसा करने वाले, ऐसी स्टेज पर इन बच्चों को पढ़ाई से दूसरी तरफ डाइवर्ट करने लगते हैं। और ऐसे घड़ते हैं, वो समाज में parallel घढ़ाईयाँ अपने मुताबिक। उन ज़िंदगियों से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। ये है राजनीती और सिस्टम की सोशल मीडिया कल्चर लैब। जितना इसे पढोगे, देखोगे या समझोगे, उतना ही यूँ लगेगा, हम कबसे इस मानव रोबोट्स की घड़ाईयों वाले जहाँ में हैं? जो बच्चों तक को नहीं बक्स रहा?

तो इस Editing वाले जहाँ को समझना बहुत जरुरी है। इससे भी आगे ये जहाँ, जीवों के हुलिए भी बदलता है। अपने राजनीतिक किरदारों की घड़ी हुई हूबहू कॉपियाँ बनाने के लिए। राजनीतीक सिस्टम और बिमारियों की समझ के लिए बहुत अहम है वो। ये सब मुझे शुरू-शुरू में कुछ मीडिया से या पढ़े-लिखे कुछ राजनेताओं के प्रोफाइल से समझने को मिला। तो बाद में सामाजिक केस स्टडीज़ से।  

एडिटिंग वाले या कहो मानव रोबॉट्स फैक्टरी वाले इस जहाँ को जानने-समझने के लिए पढ़े-लिखे नेताओं को खासकर सुनना चाहिए और जानने समझने की कोशिश करनी चाहिए। इसी कड़ी में एक ये इंटरव्यू। आगे हो सकता है, ऐसी-ऐसी और भी पोस्ट हों।  

Sunday, August 18, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 5

Alteration?
या 
Alterations?

या Manipulations better word I guess?

ऐसे ही जैसे 
Alter Ego?
या 
Alter Egos?     

ये alterations या manipulations जाने क्यों समाज के ऊप्पर वाले तबके से लेकर, आखिरी तबके तक जैसे मिलती-जुलती सी लगती हैं। उस ऊप्पर वाले तबके के पास इन सबसे निपटने के लिए सँसाधन हैं, तो उन्हें उतनी मुश्किल नहीं होती, जितनी जितना समाज के नीचे वाले तबकों को। इसीलिए वहाँ सिर्फ फाइल-फाइल चलता है या कहानियों तक के हादसे रहते हैं। मगर नीचे वाले तबकों में ज़िंदगियाँ ही खल्लास हो जाती हैं।

चलो कुछ एक  alter egos के उदाहरण लें? कुछ पैदाईशी ऊप्पर के तबके के लोग। कुछ अपनी मेहनत के दम पर बढ़े हुए। तो कुछ? शायद, कहीं किसी स्तर से आगे बढ़ने से पहले ही खत्म कर दिए गए। हालातों ने? इन सबके बीच में भी कितनी ही तरह के उदाहरण हो सकते हैं। 

राजनीती 
राहुल गाँधी
पोलिटिकल अफेयर्स या राजनेताओं की पर्सनल ज़िंदगी से सम्बंधित अफवाहें तक, क्या आम लोगों की ज़िंदगियों को भी प्रभावित कर सकते हैं? या कर रहे हैं? अगर हाँ, तो कैसे?   

वैसे तो किसी की भी पर्सनल ज़िंदगी को नोंचना-खरोचना शायद किसी सभ्य इंसान का तो काम नहीं हो सकता। मगर मुद्दा अगर आम लोगों से सम्बंधित बिमारियों और मौतों तक को जानना या समझना हो, तो शायद जरुरी हो जाता है। कितना सच और कितना झूठ? ये तो कहना मुश्किल है? 
गूगल की गूगली क्या कहती है? 


थोड़े अलग शब्दों के हेरफेर में कुछ एक मूवीज भी दी सर्च रिजल्ट्स में गूगल बाबा ने। 
Veroni  ka Decides to Die 2009 
Veroni  ca 2017 
Veroni  ka 2021 
वैसे मैंने ये नाम या ऐसा-सा कुछ किसके प्रोफाइल पे पढ़ा था? मनीष सिंह?  


और आजकल अफवाहें या? उस लड़की की सुरत कहीं मिलती है?
कोई लेना-देना? या मीडिया creations? 
और ये कुछ स्पैम?
खामखाँ तोड़जोड़ जैसे? कहीं का पथ्थर, कहीं का रोड़ा, भानूमती ने कुनबा जोड़ा जैसे, वाली बात? 
या हकीकत? क्यूँकि 31-जुलाई के बाद से वो स्पैम नहीं आई। कोई खास वजह? 


खेल ओलंपिक 
विनेश फौगाट
वैसे तो मैं ना राजनीती और ना ही खेलों के आसपास। मगर इस केस ने जरुर थोड़ा ध्यान अपनी तरफ खिंचा। क्या था ये?
छोटा सा किस्सा: जब मुझे ऐसे, वैसे, कैसे भी केसों की ना कोई समझ थी, और ना ही अता-पता। यूनिवर्सिटी एलुमनी मीट थी। और किन्हीं अवॉर्ड्स के विजेताओं के नाम देखकर समझ ही नहीं आया की हमारे प्रोफ़ कितने पार्शियल हो सकते हैं? लाइफ साइंसेज से एक ऐसा ही नाम देखकर, पता नहीं कितने ही सीनियर्स और बैचमेटस और जूनियर्स ही नहीं, बल्की स्टूडेंट्स तक के नाम गिना दिए थे उस वक़्त, जिसको अवॉर्ड दिया जा रहा था उससे बेहतर। 

वक़्त के साथ समझ आया की अवॉर्ड्स कैसे मिलते हैं। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे कुर्सियाँ, नौकरियाँ या रिसर्च पेपर्स और संस्थाओँ या जर्नल्स की ग्रेडिंग तक। ऐसा नहीं है की उनमें कुछ नहीं होता। बल्की कहना चाहिए की उन अवॉर्ड्स के लायक खासकर होता है, शायद? अब आपको कोढ़ ना पता हो तो क्या? कोढ़ का मतलब ही गड़बड़ घौटाले? हद तो तब हो गई, जब किसी इंस्पेक्शन के दौरान, मैं भी यूनिवर्सिटी के कुछ टीचर्स के साथ किसी लैब में थी और एक सर ने कुछ हिंट दिया। मानो कह रहे हों, ये पेपर नम्बर्स और प्रॉजेक्ट्स कुछ कह रहे हैं। 

उससे भी खास, अभी कुछ एक साल पहले, "पता चला, अभी तक पेपर क्यों नहीं पब्लिश हुए? अब हो जाएँगे। " 
अब? चाहिएँ क्या मुझे? वैसे ही, जैसे तब चाहिएँ थे?

वैसे silver मैडल का मतलब शायद यही है -- हनुमान गद्दा?
और 100 g wt? 

छोरी बाल त छोटे करवा लिए मैडल के चक्कर मैं, इब थोड़ा सेहत का भी ध्यान राखिये। 
बीमारी का प्रतीक बताए ये। ना त घर की खेती है, फेर बढ़ा लिए। 
"EDITING" या हूबहू बनाने की कोशिशों में हुलिया भी बदलने की कोशिशें होती हैं। बहाने और तरीके कितने भी हो सकते हैं। 

इससे नीचे वाले तबकों के लिए बस इतना ही, जब तक अपने आज के हालातों से आगे निकलने लायक नहीं बनोगे, ऐसे ही गाजर-मूली से लूटते-कूटते और खत्म होते रहोगे। इंसान कम से कम, इतना काबिल तो होना ही चाहिए की कुछ भी हो जाए, तो भी, उस स्थिति से बाहर निकलने लायक बचा रहे। ज़िंदगी यही है। और शायद कुछ उन्हें निकालने वाले भी चाहिएँ ?

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 4

एक होता है हेराफेरी। और एक होता है हेराफेरियाँ। 

जैसे?




  




इसे क्या बोलते हैं? Alteration? ठीक ऐसे जैसे कपड़े alter करते हैं? पढ़े-लिखे और कढ़े लोग आदमियों को alter कर रहे हैं? अपनी-अपनी जरुरतों के हिसाब-किताब से? ठीक ऐसे, मानव रोबॉट बनाना जैसे? सिर्फ ये फोटो देखकर आपको कुछ खास समझ नहीं आएगा। थोड़ी बहुत इनके आसपास के कोडों की जानकारी होगी तो शायद थोड़ा बहुत समझ आ जाए। थोड़ा और जानने-समझने के लिए, इनके जानकारों से समझना पड़ेगा। शायद कुछ पल्ले पड़ जाए?

तो जानने की कोशिश करते हैं आगे।        

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 3

आदमी, पैसा, संसाधन तुम्हारे हैं। 

उनका प्रयोग या दुरुपयोग, वो कर रहे हैं या करवा रहे हैं। 

वो कौन और क्यों? 

क्यूँकि, तुम भेझे से पैदल हो। 


जैसे एक बहुत ही छोटा-सा उदहारण  

ये मशीन कौन है? Show, Don't Tell?

जो मुझे समझ आया 

जो कुछ भी कहीं टूटफूट रहा है, वो सिर्फ मशीन या कोई निर्जीव सामान नहीं है। कहीं ना कहीं कोई जीव है और शायद इंसान है। अगर टूटफूट के बाद ठीक हो रहा है तो सही। नहीं तो जानने की जरुरत है, की ये अदृशय घात कहाँ है? अगर पता चलता है तो सही, आप उसे ठीक करने की दिशा में कदम उठा सकते हैं। अगर नहीं पता चलता तो?

इस या उस पार्टी की खास Alter Egos को समझने की कोशिश करें? Alter Egos मतलब? Alteration या प्रतिबिम्ब जैसे या मुखौटा जैसे या किसी के बारे में अपनी ही तरह की घड़ाई? जो उस इंसान जैसी-सी भी हो सकती है और उससे बहुत दूर या एकदम विपरीत भी। जैसे कोई पार्टी किसी का मुखौटा बनाए और वो कहे, ये उसका मुखौटा है। जैसे वैक्स म्यूजियम में नेताओं या अभिनेताओं के मुखौटे। 

या फिर कोई पार्टी, कोई खास तरह का मुखौटा तैयार करे किसी के लिए, अपनी सतरंज की चालों में गोटी चलने के लिए। तो? वो चाल है। आप नहीं है। या वो इंसान नहीं है, जिसके बारे में वो बोल रहे हैं। यहाँ वो उसे मात्र एक मोहरा बना खेलेंगे। और अपनी राजनीती की रोटियाँ सेकेंगे। वो उस इंसान को अपने अनुसार alter करने की कोशिश कर रहे हैं। ठीक ऐसे जैसे, टेलर कपड़ों को alter करता है। मगर ये महज़ कपड़ों की alteration नहीं है। ये अल्टरेशन इंसान के सॉफ्टवेयर की अल्टरेशन के साथ शुरू होती है। इंसान का सॉफ्टवेयर, मतलब दिमाग। सारा खेल ही दिमागी है। सॉफ्टवेयर के साथ-साथ हार्डवेयर में अल्टरेशन शुरू कर देते हैं या हो जाती है। सोशल कल्चर मीडिया लैब यही है। सोशल इंजीनियरिंग का अहम हिस्सा। बिमारियों, मौतों और रिश्तों की तोड़फोड़ में इसकी अहम भुमिका है।   

अब अगर आप पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं या नौकरी कर रहे हैं तो चीज़ें उन्हीं सब के आसपास घूमेंगी। मगर, अगर आप छोटी-मोटी खेती या मजदूरी कर रहे हैं। या और कोई छोटा-मोटा काम शायद। या ये सब भी ना करके कुछ भी नहीं कर रहे? तो?

एक उदहारण लेते हैं 

मान लो मैंने अपने भाई को कुछ कपड़े दिलवाए। वो लेकर घर आ गया। जब आप घर आए तो देखा उसने अब भी फटे-पुराने से या जो आपने दिलवाए थे, उससे कहीं भद्दे कपड़े डाले हुए हैं। आप कई बार ऐसा ही होते हुए देखते हैं। और एक दिन, ऐसे ही पूछ लेते हैं की तेरे पास कपड़े नहीं हैं? ये गंदे से कहाँ से उठाए हुए हैं? जवाब मिलेगा। ये इसके पास, वो उसके पास। या हमने एक-दूसरे से बदल लिए। या तुझे पता ही नहीं कपड़े कहाँ से खरीदते हैं। खामखाँ के ब्रांडों के चक्कर में लूटती रहती है। इतने में तो मैं दिल्ली के फलाना-धमकाना मार्केट से ये-ये ले आऊँ। और पैसे भी बचा लाऊँ। 

और आप सोचें, क्या अज़ीब प्राणी है। जब ऐसे ही, इतने से पैसे बचाने का शौक है, तो मेरे क्यों खर्च करवाता है? थोड़े से पैसे ले जाया कर और यही थेक्ली से चीथड़े लाया कर। या शायद वो सही भी कह रहा हो। मगर उसके लिए दिल्ली भी क्यों जाना? उससे कहीं बेहतर और कहीं सस्ते रोहतक के किला रोड़ मिल जाएँगे। बात सिर्फ ब्रांडों की नहीं या आपस में कपड़े बदलने तक भी नहीं। यहाँ और ही तरह की हेराफेरी हो रही थी। ये वो रॉबिनहुड नहीं था, जो अमीरों से लूटकर गरीबों को दे रहा था। बल्की, यहाँ तो कोई अमीर था ही नहीं। ये गरीब और बदलने वाले? शायद थोड़े से ज्यादा ठीक-ठाक या और भी गरीब। बात इस वाली अदला बदली की थी ही नहीं।   

इसी दौरान ईधर-उधर काफी कुछ पढ़ने को मिलता है। उसके साथ-साथ कुछ खास तरह के ड्रामे भी। तब तक ये अलग-अलग पार्टियों का alter ego घड़ने वाला concept आसपास भी नहीं पता था। Alter Ego बहुत जबरदस्त घुमाऊ-फिराऊ धँधा है।  Alter Ego जैसे तेरी हेकड़ी निकाल दूँगा। या तेरा अस्तित्व ही मिटा दूँगा। या तुझे जिस पर फक्र है, वो ego है, मैं उसको ही तहस-नहश कर दूँगा। राजनीती के इन खास creations को जानने समझने के लिए बहुत कुछ जानना जरुरी है।      

जैसे? 

ये तस्वीर इंटरनेट से ली गई है। 

क्या छुपाया जा रहा है, ऐसे-ऐसे, छुपम-छुपाई वाले युद्धों में जानना थोड़ा मुश्किल होता है। मगर, जानने में क्या जाता है? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट में कुछ ऐसा ही।    

Friday, August 16, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 2

आदमी, पैसा, संसाधन तुम्हारे हैं। 

उनका प्रयोग या दुरुपयोग, वो कर रहे हैं या करवा रहे हैं। 

वो कौन और क्यों? 

क्यूँकि, तुम भेझे से पैदल हो। 


जैसे एक बहुत ही छोटा-सा उदहारण 

मेरे पास IFB की छोटे-साइज की ऑटोमैटिक मशीन थी, जब मैं H#16 में रहती थी। मगर वो जब देखो तब, खराब हो जाती। उस वक़्त इतनी समझ नहीं थी की ये सब छोटी-छोटी सी समस्याएँ, आसपास का ही क्रिएशन होती हैं। वहाँ पानी बहुत खराब आता था। तो कई बार तो फ़िल्टर ही रुक जाते थे। एक-आध बार शायद, बिजली की वजह से। कुछ साल बाद, मैंने उसे गाँव वाले घर रखवा दिया। यहाँ भाभी के पास अपनी थी। माँ और दूसरे भाई को चाहिए नहीं थी। या कहना चाहिए की चाहिए तो थी, मगर समस्या क्या थी वो जब यहाँ रहने लगी, तब समझ आई। मेरे गाँव आने के बाद भी वो ऐसे ही पड़ी थी। मैंने ऑटोमैटिक को घर भेजने के बाद सेमीऑटोमैटिक खरीद ली थी। तो यहाँ भी वही प्रयोग हो रही है। ऑटोमैटिक दूसरे भाई को दे दी। उसके पास जाने के बाद, उसमें छोटी-मोटी तोड़फोड़ हुई। कुछ ऐसी तोड़फोड़, जो बिना किए नहीं हो सकती। खैर। वो कुछ दिन चली। 

फिर एक दिन भाई ने बोला, की उसका डोर नहीं खुल रहा और छह जींस उसके अंदर ही पड़ी हैं।   

और मैंने बोला, पड़ी रहने दे। पता नहीं क्यों मुझे गुस्सा आ रहा था। 

एक-दो बार, उसने फिर से बोला। 

मुझे लगा इतनी तरह के जुगाड़ू हैं उसके आसपास, फिर एक वॉशिंग मशीन का दरवाज़ा क्या बला है?

काफी दिनों बाद कल मैं घूमने गई उधर। और वॉशिंग के हाल देखकर लगा, लोगबाग इन जैसों का कितना फद्दू काट सकते हैं? कपड़े तो उसमें नहीं थे। मगर पानी भरा था। और उसका दरवाजे का लॉक थोड़ा टूटा हुआ, मगर खुल अब भी नहीं रहा था। मैंने उसे थोड़ा बाहर की तरफ कर पानी निकालने की कोशिश की, तो काफी हद तक निकल तो गया। मगर, देखते ही देखते फिर से भर गया। फिर निकाला, तो फिर निकल गया और फिर भर गया। पाइप की साइड देखा, तो पाइप भी टूटी-सी लग रही थी। मगर, फिर से जुगाड़ कर जोड़ी हुई जैसे। वाटर स्टॉपर ऑफ नहीं था, उसे ऑफ कर दिया। तो पानी तो बंद हो गया। मगर उस वॉशिंग को अब थोड़ी-सी सर्विस चाहिए शायद। छोटी-छोटी सी प्रॉब्लम? होती रहती हैं, क्या खास है? ये सर्विस वो नहीं करवा सकते क्या, जिनके पास उसकी बैंक की कॉपी है? या उस कॉपी में कुछ बचा ही नहीं हुआ? समझ आया आपको?

ये वही भाई है, जो पीता है। उसकी वो थोड़ी-सी ज़मीन लेने वालों ने रुंगा जैसे कुछ दिया हुआ है उसे, उस ज़मीन के बदले। ज़मीन हड़पने के तरीके? और उसकी बैंक कॉपी कहीं पढ़ा, कभी यहाँ, तो कभी वहाँ होती है। जिनके पास होती है, वही उसमें से थोड़ा-बहुत, कभी-कभार दे देते हैं। मानो बैंक कॉपी ना होकर, कोई ऑफिस फाइल हो जैसे? 

कुछ-कुछ ऐसे जैसे, मेरी यूनिवर्सिटी  सेविंग पे अभी तक ताला जैसे? 3-साल Resignation acceptance के बावजूद। देने से मना किसी ने नहीं किया। मगर दे भी नहीं रहे। यही नहीं, उसमें कितने पैसे हैं। उनका हिसाब-किताब, राजनीती और बाजार के हिसाब से कैसे बदल रहा है, वो सब भी खबर मिल जाती हैं। मगर ताला है। यहाँ कुछ जुगाड़ किए बिना, बाहर कहीं आपको जाने की जल्दी नहीं। क्यूँकि यहाँ वाले, कुछ अपने-परायों के लालच के जबड़े में हैं जैसे। सबको हज़म करने के चक्कर में जैसे। और जब जरुरत के वक़्त ही आपके पैसे ना मिलें, तो उनके होने या ना होने का या वक़्त के साथ बढ़ने का भी क्या फायदा?            

खास है ड्रामा। राजनीतिक पार्टियाँ लोगों से ऐसे-ऐसे ड्रामे करवाती हैं, जिनमें सामान ही नहीं टूटता-फूटता। ज़मीन ही नहीं ईधर-उधर होती, या हड़पने की कोशिशें होती। कुछ-कुछ वैसा ही, आदमियों के साथ भी होता है। जो कहीं ज्यादा खतरनाक है। क्यूँकि, इन ड्रामों के रुप में ही, ना सिर्फ आदमी टूटते-फूटते हैं। बिमार होते हैं। बल्की, दुनियाँ से ही उठा तक दिए जाते हैं। उससे भी अहम, ज्यादातर जिनसे ये ड्रामे करवाए जाते हैं, उनकी जानकारी के होते हुए या बिना जानकारी के। ऐसा कुछ या तो वो खुद ही भुगतते हैं। या उनके खास अपने। या खुद भी और आसपास भी। चोट जब लगती है, तो सिर्फ आपको नहीं लगती, कहीं और भी लगती है। बीमार अगर होते हैं, तो सिर्फ आप नहीं होते, कोई और भी होता है। या कहना चाहिए की होते हैं। किसी जॉब या घर से निकलते हैं, तो सिर्फ आप नहीं निकलते, और भी भुगतते हैं। लड़ाई-झगड़े अगर होते हैं, तो सिर्फ आपके साथ नहीं होते, औरों के साथ भी होते हैं। सब जैसे मोहरे हैं। और सबपे जैसे कोई ना कोई, किसी ना किसी किस्म की मोहर ठुकती है। टैग या स्टीकर्स लगते हैं। और भी खास, उसमें सिर्फ आदमी नहीं होते, बाकी सब जीव और निर्जीव भी होते हैं। और अगर आप इतना सब जानने-समझने के बावजूद नहीं संभलते, तो नुक्सान बहुत जगह होते हैं।

ये मशीन कौन है? किस आदमी का स्वरुप घड़ दिया गया है ये? खुद जिसके पास है वो? या उसके आसपास कोई? निर्भर करता है, की कौन पार्टी करवा रही है ये? और उस पार्टी की राजनीतिक नौटंकी का वो किरदार कौन है? आदमी है? पुरुष है? LGBT या ट्रांसजेंडर घड़ दिया गया है? या कुछ और ही तरह का मिक्सचर? तो जब भी आप कहीं कोई तोड़फोड़ कर रहे हैं या गड़बड़ घौटाला कर रहे हैं। ऐसा-सा ही कुछ या शायद उससे भी बुरा, कहीं दूसरी पार्टी, आपके किसी अपने के साथ तो नहीं घड़ रही? ये जंग आमने-सामने तोड़फोड़ या मार-पिटाई की कम, छुपे हुए गुर्रिल्ला युद्धों-सी ज्यादा है। जिसमें टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।                 

रितू भाभी का केस ऐसा ही है। अभी इसी महीने जिस लड़की की मौत हुई, वो भी ऐसा ही है। और पिछले महीने दादी की मौत भी। सब अड़ोस-पड़ोस या कुनबा ही। मगर एक ही घर या कुनबा या गली-मौहल्ला होते हुए भी, स्टीकर अलग-अलग पार्टियों के जैसे। ये इधर से उठा या उठी और वो उधर से। जितना मुझे समझ आया है, संसार भर में ऐसे ही चल रहा है। और ये सब मौतों या बिमारियों तक ही सिमित नहीं है। बल्की, रिस्ते-नाते, शादी-ब्याह, लिखाई-पढ़ाई, नौकरी या व्यवसाय सब पर लागू होता है। 

एक के साथ अच्छा होता है, तो वो भी सिर्फ एक के साथ नहीं होता। यहाँ-वहाँ बहुत जगह होता है। तो आपको बुरा करने या करवाने वालों के साथ चलना है या अच्छा करवाने वालों के साथ? इन दोनों में गतवाड़े और किताबवाड़े जैसा-सा ही फर्क है। थोड़ा और जानने की कौशिश करते हैं आगे।        

आजादी दिवस? गोली या गोला दिवस?

Independence Day?

मुझे तो आज़ादी और बेड़ियों का मतलब समझ, 2019 में ही आ गया था। तारीख क्या थी? और महीना? उसके बाद, उसी महीने में अगले साल कुछ खास था? खैर। इस दौरान जो दुनियाँ देखी, मुझे लगता है दूर से ही सही, वो एक बार तो जरुर सबको देखनी चाहिए। क्यों? अगर आप रिसर्च को खास समझते हैं तो शायद अपने पेपरों को ही या तो रद्दी के हवाले कर देंगे। या उनमें थोड़ा-बहुत तो जरुर कुछ और बेहतर करने का सोचेंगे। मगर रिसर्च ही क्यों?

आओ कुछ-एक भाषण सुनें।    

रौचक भाषण, अगर जाती से परे थोड़ा देखें तो?



मुझे नेता-वेता या राहुल गाँधी कोई खास पसंद नहीं। मगर, एक-दो सत्यपाल मलिक के भाषण सुने हैं। काफी रौचक होते हैं। कुछ एक पॉइंट्स खासतौर पर जानने लायक। थोड़े बहुत मानने लायक भी शायद। जैसे इस भाषण में शिक्षा को लेकर। 
शिक्षा पे जीतना ध्यान दोगे, उतना ही आगे बढ़ोगे। जीतना इससे दूर जाओगे, उतना ही पिछड़ते जाओगे। ये मैंने जोड़ दिया।   

"गोली अगर आए, तो उसका जवाब गोले से देना"

गोली से आप क्या समझते हैं? 

और गोले से?

हमारे मौलड़ जवाब कैसे देंगे? हथियारों से? और फिर?

ज्यादा पढ़े और उसपे कढ़े हुए लोग कैसे देंगे?    

गोली के बारे में बात बाद में। पहले गोला समझें थोड़ा?

गूगल बाबा से पूछें?  

AI (Artificial Intelligence) कभी-कभी बड़े रोचक परिणाम देती है।  
जैसे किसी साइड की तरफ से कोड-डिकोड में सहायता? 
कैसे पढ़ेंगे इस तस्वीर को आप?

आपके आसपास कोई गोले बेचने आता है क्या?
या गोली बेचने?
गोली तो शायद आप दूकान से लाते हैं? Pharma या Medicine Shop? 
आपके आसपास किन-किन की हैं, वो दुकानें?
एक ही दवाई अलग-अलग दूकान से लेकर देखो। 
किसी या किन्हीं ऐसी दवाईयों में कुछ फर्क मिलता है क्या?

ऐसे ही नारियल पानी कहाँ मिलता है?
या पानी वाला नारियल? 
या किससे मिलता है?
और वो देने वाले कहाँ से लाते हैं?
 
और गोला?
आपके आसपास आता है कोई बेचने?
कौन? कहाँ से? 
एक गोले के कितने टुकड़े करता है?
और कितने में मिलता है?
पूरा गोला कितने का और एक टुकड़ा कितने का?
और पानी वाला नारियल कितने का?
सूखे गोले में और पानी वाले नारियल में क्या फर्क है?
बिमारियों से जोड़कर देखो।     

ये सब जानकर? अब ऊप्पर वाली गूगल की गूगली वाली तस्वीर को समझने की कोशिश करो। शायद कुछ खास बिमारियों के किस्से-कहानी समझ आ जाएँ? सम्भव है? कोशिश तो करके देखो। आप जो कोई खाना या पानी ले रहे हैं, बिमारियों के काफी राज उन्हीं में छिपे हैं। उसके बाद दवाईयों या हॉस्पिटल तक जाते हो, तो बाकी कोड वहाँ मिल जाएँगे। 

उससे भी आगे, अगर कभी पहुँचना पड़े तो? जब तक बहुत सारे कोड और उनके मतलब ना पता हों, तो बहुत कुछ जानना तो मुश्किल है। मगर, खास तेहरवीं तक के वक़्त में, अगर कोई नेता या अभिनेता आ फटके, तो तारीख और वक़्त अपने आप काफी कुछ गा रहा होगा। कहीं-कहीं तो शायद ऐसा लगेगा, की इस साँप के डंक का दिन आज का है? ये साँत्वना देने आया है या अपने किन्हीं कांडों पे मोहर ठोकने जैसे? अजीब लग रहा है, ये सब पढ़कर? मगर राजनीति के इस धंधे में कुछ ऐसा-सा ही बताया। और बहुत बार तो जरुरी नहीं की नेता तक को कुछ ऐसा पता हो। क्यूँकि, वो महज़ एक proxy भी हो सकता है, किसी तरफ के किसी खास किरदार की। वो भी उसकी अपनी जानकारी के बिना। 

चलो आपने In Depen Dence का गोला या गोली फेंक ली हो, तो अगले भाषण या शायद किसी इंटरव्यू को देखें? सुने? और थोड़ा समझने की कोशिश करें?   

Saturday, August 10, 2024

किताबवाड़ा, बैठक या गतवाड़ा?

मतलब, जमवाड़ा? जमघट? किताबों का? 

मगर, राजनीती ने उसकी दुर्दशा करके यूँ लगता है, जैसे, गतवाड़ा बना दिया हो। बहुतों को शायद गतवाड़ा क्या होता है, यही नही मालूम होगा। हरियाणा और आसपास के राज्यों में, गरीब लोग गाएँ-भैंसों के गोबर के उपले बनाते हैं। वो भी हाथ से। फिर, उन उपलों को सूखा कर, स्टोर करते हैं। गरीब हैं, तो स्टोर करने तक को कोई जगह नहीं होगी, जहाँ उन्हें बारिश से बचाया जा सके। तो उपलों को खास तरकीब से तहों पे तहें रख कर, बाहर से गोबर से लेप देते हैं। उसे गतवाड़ा कहते हैं। ये गोबर से बने उपले, गैस की जगह प्रयोग होते हैं। गतवाड़े को ठेठ हरियाणवी में बटोड़ा और उपलों को गोसे भी कहते हैं।  

एक कहावत भी है, अगर कोई कुछ ढंग का बोलने की बजाय या दिखाने या समझाने की बजाय, या करने की बजाय, अगर फालतू की बकवास करे तो? हरियाणा में उसे "नरा बटोड़ा स। बटोड़े मैं त गोसे ए लकड़ेंगे।" भी बोला जाता है। राजनीती के अपमानकर्ताओं के कुछ ऐसे से ही हाल बताए। ये, ईधर के अपमानकर्ता और वो उधर के। इन हालातों को सुधारने के थोड़े शालीन तरीके भी हैं। 

जैसे, गतवाड़े अगर किताबवाड़े हो जाएँ? तो क्या निकलेगा उनमें से? तो चलो मेरे देश के खास-म-खास महान नेताओ, और कुछ नहीं तो अपने-अपने नाम से या खास अपनों के नाम से ही सही, कुछ एक किताबवाड़े ही बनवा दो? जहाँ से "फुक्कन जोगे", "अपमानकर्ता गोसे", नहीं, ज्ञान-विज्ञान के पिटारे निकलेंगे, किताबों के रुप में। और आसपास के बच्चों, बड़ों या बुजर्गों को इक्क्ठे बैठने के लिए या आपसी संवाद के लिए, या कुछ नया या पुराना सीखने के लिए, न सिर्फ जगह मिलेंगी, बल्की समाज का थोड़ा स्तर भी बेहतर होगा। उन्हें किताबवाड़े की जगह बैठक भी बोल सकते हैं। जहाँ हुक्के, ताशों या तू-तू, मैं-मैं की बजाय, थोड़ा बेहतर तरीके से संवाद हो। वैसे, जिनके पास थोड़ी बड़ी बैठकें हैं या जो अपनी बैठकों को खास समझते हैं, वो भी उन्हें कोई खास नाम देकर, ऐसा कुछ बना सकते हैं। 

ऐसे ही शायद, जैसे भगतों या शहीदों के नाम पर सिर्फ पथ्थरों की मूर्तियाँ घड़ने के, वहाँ ऐसा कुछ भी हो? तो शायद लोगों को ऐसी जगहें ज्यादा बेहतर लगेंगी।    

"चलती-फिरती गाड़ी, कबाड़ की। लाओ, जिस किसी माता-बहन ने कबाड़ बेचना है। कबाड़ लाओ और नकद पैसे लो। चलती-फिरती गाडी कबाड़ की।" अब ये क्या है?

किताबों पे या इनके आसपास के विषयों पे, जब कुछ ऐसा लिखा जाता है, तो जाने क्यों, बाहर कोई ऐसा-सा बंदा जा रहा होता है। या फिर, "काटड़ा बेच लो।"  कुछ भी जैसे? है ना :) 

Friday, August 9, 2024

Revolving around base is our system?

What kind of base is that?

आधार केन्द्रित? मूल? जिसपे ब्याज भी लगता है? और जिसका टैक्स भी कटता है? और? अगर आप इनके अनुसार ना चले, तो टैक्स भी भारी-भरकम लगता है।     

जहाँ पढ़ने वालों को क्लासों से, लैब्स से बाहर निकालने की कोशिश होती हैं। पढ़ाई-लिखाई या कैरियर ओरिएंटेड लोगों को प्रोफ़ेशनल जोन से ही बाहर धकेलने की कोशिशें होती हैं। जाने कौन-से मैट पे और कैसे-कैसे तरीकों से? जैसे, उस खास किस्म के मैट के बिना ज़िंदगी ही ख़त्म है। उसके बिना कुछ नहीं ज़िंदगी में। जैसे कुछ लोगों के हिसाब-किताब से एक उम्र तक शादी नहीं की, तो आपकी ज़िंदगी में है ही क्या? जैसे जिन्होंने शादी कर ली, उन्हीं की ज़िंदगी में सब है। शायद थोड़े से ज्यादा झमेले? और जो सारी उम्र ना करें, वो तो बिलकुल ही ख़त्म होंगे? अब किसी की शादी हो गई और बच्चे नहीं हुए या पैदा नहीं कर रहे, तो उन ज़िंदगियों में कुछ नहीं है? एक दकियानुशी दायरे में कैद सोच, जो चाहे की सब उनके दायरे वाली कैदों के हवाले रहें। उनके खास टैस्टिंग वाली लैब्स के टैस्ट से गुजरें। नहीं तो --- 

और इन खास सोच वालों के हिसाब-किताब से ना ही इन ज़िंदगियों को कुछ चाहिए। जो है वो सब उनके हिसाब-किताब वाली ज़िंदगियों को अवार्ड होना चाहिए। ऐसे लोगों को देख-सुनकर या झेलकर समझ ही नहीं आता, की तानाशाही के कितने रुप हो सकते हैं? क्यों कोई किसी के जबरदस्ती के स्टीकर उठाए घूमें? और क्यों सबकी ज़िंदगियाँ, इन खास वाले ठेकेदारों के हिसाब-किताब से चलें? 

हिसाब-किताब? बेबी को बेस पसंद है, वाले? या 

"जब वो मैट पे कुस्ती लड़ रहे थे, तो ये विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।"

--पे तो हमारी राजनीतिक पार्टियों की पॉलिसी चलती हैं?   

बताओ ऐसे-ऐसे हमारे युवा नेता, खास बाहर से पढ़े-लिखे, क्या और कितना देंगे समाज को? प्रश्न हैं, ऐसे-ऐसे कुछ अपने खास नेताओं के लिए। वो फिर इस पार्टी के हों या उस पार्टी के। ये खास "बेस पसंद सिस्टम" या "खास टच पैड सिस्टम", बाहर निकल पाएगा क्या, 23rd पेअर सैक्स क्रोमोजोम से ? महज़ XY के हॉर्मोन्स से? 44 क्रोमोजोम और भी हैं। ठीक ऐसे जैसे, इन खास जुआ खेलने वाले वर्ग के। सारे समाज को क्यों घसीटते हो वहाँ? ये कम पढ़ी-लिखी या तकरीबन अनपढ़ माएँ, चाचियाँ, ताई या दादियाँ, कैसे-कैसे पानी के खेल खेलते हो इनके साथ आप? और तो क्या कहें भाईचारे वाले इन नेताओं को, "गलत बात"। आप समाज को आगे बढ़ाने और उठाने के लिए हैं, ना की यूँ गिराने के लिए। 

ऐसे तो नेता को "अपमानकर्ता" से संबोधित करना पड़ेगा। फिर राजनीती के लिए सही शब्द क्या होगा ? "Insult to life, insult to death", के लिए एक हिंदी या हरियान्वी शब्द?                            

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 1

आदमी, पैसा, संसाधन तुम्हारे हैं। 

उनका प्रयोग या दुरुपयोग, वो कर रहे हैं या करवा रहे हैं। 

वो कौन और क्यों? 

क्यूँकि, तुम भेझे से पैदल हो। 


जैसे एक बहुत ही छोटा-सा उदहारण 

कार कहाँ है?

दे दी।  

मतलब?

बेच दी।  

क्यों? अभी तो चाहिए थी मुझे। कुछ वक़्त और रुक जाते तो क्या हो जाता?

जिन्होंने दिलवाई थी, उन्होंने ही वापस करवा दी।  वैसे भी तू कौन-सा प्रयोग कर रही थी। वो यहाँ खड़ी-खड़ी खराब ही हो रही थी। 

कभी-कभी तो जरुरत थी। फिर ऐसी ही खटारा थी वो। एक बार देने से पहले पूछ तो लेते। 

लेने से पहले पूछा था? ब्लाह, ब्लाह, ब्लाह 

मतलब यहाँ लोगों को, अपने बच्चों की जरुरतें खुद नहीं पता होती। बाहर वाले बताते हैं। जब तक उन बाहर वालों के अनुसार चल रहा है, सब सही है। जैसे ही वहाँ कुछ गड़बड़ लगी उन्हें, वो तुम्हारी जरुरत की चीज़ों को भी छीन लेंगे। पैसे तुम्हारे अपने घर के। आदमी तुम्हारे अपने। और काम किनके लिए कर रहे हैं?    

ऐसा ही यहाँ ज्यादातर ज़िंदगियों के साथ है। थोड़े बहुत सही, मगर पैसे हैं। आदमिओं के रुप में संसाधन भी हैं। मगर उनका कब, कहाँ और कैसे प्रयोग या दुरुपयोग करना है, ये बाहर वाले बताएँगे। और ये सब वो बाहर वाले, बहुत अपनों के द्वारा या आसपास वालों से ही करवाते हैं। कैसे? राजनीतिक सुरँगे, इधर की, उधर की और ना जाने किधर-किधर की। जितना ज्यादा इन राजनीतिक सुरंगों को समझा जाए, उतना ही किसी भी समाज की स्थिति को समझने के लिए सही है शायद। 

ऐसा ही जमीन का उदहारण है। बिचौलिया अपना। कहने को तो लेने वाले भी अपने हैं। बिचौलिया ठेकेदार बना घूमता है, बहुत से उल्टे-पुल्टे, खामखाँ के कामों में। क्यों? ठाली लोग, अब कुछ ना कुछ तो करेंगे। जैसा मैंने कहीं पढ़ा, वो ये सब खुद नहीं करता। उसके ऊप्पर कुछ और महान हैं। और उनके भी ऊप्पर कुछ और। है ना मस्त वाली सेंधमारी? या सुरँगे? क्या ये सुरँगे, कुछ अच्छा भी करवाती हैं? या सिर्फ उल्टा-पुल्टा? कहा ना, जब तक उनको कहीं कुछ अपने कामों या इरादों में गड़बड़ ना लगे। वो गड़बड़ लगते ही, वो किसी को भी और कैसे भी लटका देते हैं। जैसे ज्यादातर रिश्तों की गड़बड़ियाँ या बेवजह के रिश्ते जैसे।

बहुत-सी बिमारियों और मौतों का भी ऐसा ही है। 

माहौल (Culture Media)

माहौल कैसे प्रभावित करता है, किसी भी जीव को? उसकी ग्रोथ को या ज़िंदगी को?
छोटे-छोटे से उदहारण लेते हैं। 

आवाज़ें आ रही हैं कहीं से। किसी छोटी-सी बच्ची पे डाँट पड़ रही है शायद। 
गँवारपठ्ठे: हरामजादी, कुत्ती, सारा साल तो खेलती हाँडी, ईब बैठ क रोवै स, जब कल सर प पेपर है। ब्लाह, ब्लाह,
स्कूल के बच्चों पे इतना प्रेशर? और ये जुबान तो आम है यहाँ। 

थोड़ी देर बाद बच्चा सुबकते हुए: मरुँगी मैं। मेरे को नहीं जीना। मरुँगी मैं। 
क्या हुआ? सिलेबस पूरा नहीं हुआ ना? खेलने चले गए, मना करने के बावजूद?
पापा ले गए खेत, घुमाने। 
पापा ले गए या आप खुद गए? 

रोना बंद करो अब और लो पानी पीओ। क्या खाना है? 
गुस्से में: कुछ नहीं खाना। मरना है मेरे को। मैं भी .......  मर जाती तो ब्लाह ब्लाह ब्लाह 
ओह हो। इतना गुस्सा? इतने छोटे-से बच्चे में? पेपरों की वजह से भी कोई मरता है? ये अब गए, तो कल फिर आ जाएँगे। आज नहीं हुआ, तो कल हो जाएगा। 
चुप करो। वक़्त नहीं है, मेरे पास। 
बाप रे। अभी तो बहुत वक़्त है आपके पास। पूरी ज़िंदगी है। 
नहीं है। मरना है मुझे। 
बकवास बंद करो, नहीं तो 
नहीं तो क्या 
बैठ के पढ़ते हैं। 
नहीं होगा। सारा सिलेबस पड़ा है। 
अरे दिखाओ तो, मुझे भी पता है। इत्ता-सा तो सिलेबस है। 
इत्ता-सा?
हाँ। बस 2-4 घंटे में हो जाएगा। 
2-4 घंटे में?
हाँ। और अभी तो हमारे पास पूरी रात है। 
मैं जाग लूंगी?
मैं जगा दूंगी। 
नींद आई तो?
नहीं आएगी। नींद भगाने के तरीके होते हैं। 
अभी किताब खोलो 
और 12. 00 - 12. 30 तक सिलेबस निपट गया, समझो। 
(बच्चों का सिलेबस ही कितना होता है? मगर, बच्चों के लिए तो वही पहाड़ होगा, अगर वक़्त कम होगा या समझ नहीं आएगा तो। )    
जाओ अब सो जाओ। बाकी सुबह उठकर पढ़ लेना। मैं जगा दूंगी। 
और पेपर के बाद बच्चा, पेपर अच्छा हो गया, अच्छा हो गया, करता आ रहा है। 
 
और एक हमारी माँ करती थी। 
माँ, सुबह उठा दियो। पेपर देने जाना है। 
पेपर तेरा है या मेरा? देके आना हो तो उठ लियो।  
:)

या फिर लेट तक जाग रहे हो और कोई थोड़ा बहुत शोर हो गया।  
भाईरोई, पड़े न पड़न दे। किसे और क भी लाइट जले स? अक तू अ घणी पढ़ाकू स? 
या 
इन पोथ्यां न त बिगाड़ दी। कम पढे ए, सही रहवे ए। 
मतलब, यहाँ आजतक पढ़ाई पे खतरे हैं। बहाना कुछ भी हो सकता है। 
 
इन लोगों ने देखा ही नहीं की दुनियाँ कितना-कितना पढ़ती है। और उनकी ज़िंदगियाँ मस्त हैं। कम से कम, यहाँ वाली औरतों जैसे हालात तो नहीं हैं। बोल चाल का तरीका, रहन-सहन का तरीका, सुख-सुविधाएँ, समझाने का तरीका या प्रेशर को बढ़ाने का, सिर्फ शब्दों ही शब्दों में या घटाने का, बहुत असर करता है ज़िंदगी पे। और भी कितनी ही छोटी-मोटी सी रोजमर्रा की बातें, ज़िंदगी को आगे बढ़ाने में या पीछे धकेलने में कितना तो योगदान देती हैं। तभी तो आप जो होते हैं, आपके बच्चे भी ज्यादातर वहीं तक रह जाते हैं। उससे आगे, उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। और उस मेहनत को अक्सर ये माहौल, आगे बढ़ाने की बजाय, पीछे धकेलता मिलेगा। 

ड्राफ्ट में पड़ी थी ये पोस्ट। कुछ महीने पहले की बात है। मगर जाने क्यों, पोस्ट करने का मन नहीं था। ऐसे ही जैसे कितना कुछ हम लिखते हैं, मगर सब पोस्ट कहाँ करते हैं? यूँ ही, छोटी-छोटी सी बातें समझ के। यही छोटी-छोटी सी बातें, कभी-कभी कितना कुछ बिगाड़ कर जाती हैं?            

Sunday, August 4, 2024

मगर कैसे?

Rhythms of Life 4th अगस्त 2011 पोस्ट, ब्लॉग्स के organization, clutter, declutter में कहीं और गई।   
आज ही के दिन कोई इंसान इस घर से गया था। जो इस घर का न होकर भी, अपने घर से ज्यादा इस घर का था। कोई बात ही नहीं थी। मेरे पास आया , स्टडी टेबल और कुर्सी दे गया। उन दिनों मै सैक्टर-14 रहती थी। घर पे भी ऐसी ही कुछ, कहानियाँ थी। मगर, ऐसी कहानियों के पीछे छिपे रहस्यों को जानना, बहुत मुश्किल भी नहीं होता शायद।  

अरविंद केजरीवाल रैली और किसान हादसा : ऐसे केसों को जानना शायद थोड़ा बहुत मुश्किल हो ? शायद ?

ऐसा-सा ही कुछ ये भी शायद?

Generally, मैं स्पैम मेल्स नहीं खोलती। उसपे gmail तो वैसे भी yahoo से कम ही प्रयोग होता है। मगर जब भी खुलता है, तो ज्यादातर स्पैम बिना पढ़े डिलीट होती हैं। शायद यही होना भी चाहिए।

 
मगर, जाने क्यों कल जब कई दिन बाद चैक किया तो स्पैम मेल्स पे निगाह ठहर गई जैसे। इमेल्स भी पीछे की तारीख में होती हैं क्या, स्पैम ही सही? या महज coincidence जैसे? या कुछ नहीं मिलता-जुलता? या मिलता भी है और नहीं भी शायद? मगर कैसे? यहाँ-वहाँ , जाने कहाँ-कहाँ, सब जैसे साथ-साथ सा ही होता है? मगर कैसे? ये अहम है। 
Cleartax ने ?

Micromaagemet upto what level ?