About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Friday, August 9, 2024

माहौल (Culture Media)

माहौल कैसे प्रभावित करता है, किसी भी जीव को? उसकी ग्रोथ को या ज़िंदगी को?
छोटे-छोटे से उदहारण लेते हैं। 

आवाज़ें आ रही हैं कहीं से। किसी छोटी-सी बच्ची पे डाँट पड़ रही है शायद। 
गँवारपठ्ठे: हरामजादी, कुत्ती, सारा साल तो खेलती हाँडी, ईब बैठ क रोवै स, जब कल सर प पेपर है। ब्लाह, ब्लाह,
स्कूल के बच्चों पे इतना प्रेशर? और ये जुबान तो आम है यहाँ। 

थोड़ी देर बाद बच्चा सुबकते हुए: मरुँगी मैं। मेरे को नहीं जीना। मरुँगी मैं। 
क्या हुआ? सिलेबस पूरा नहीं हुआ ना? खेलने चले गए, मना करने के बावजूद?
पापा ले गए खेत, घुमाने। 
पापा ले गए या आप खुद गए? 

रोना बंद करो अब और लो पानी पीओ। क्या खाना है? 
गुस्से में: कुछ नहीं खाना। मरना है मेरे को। मैं भी .......  मर जाती तो ब्लाह ब्लाह ब्लाह 
ओह हो। इतना गुस्सा? इतने छोटे-से बच्चे में? पेपरों की वजह से भी कोई मरता है? ये अब गए, तो कल फिर आ जाएँगे। आज नहीं हुआ, तो कल हो जाएगा। 
चुप करो। वक़्त नहीं है, मेरे पास। 
बाप रे। अभी तो बहुत वक़्त है आपके पास। पूरी ज़िंदगी है। 
नहीं है। मरना है मुझे। 
बकवास बंद करो, नहीं तो 
नहीं तो क्या 
बैठ के पढ़ते हैं। 
नहीं होगा। सारा सिलेबस पड़ा है। 
अरे दिखाओ तो, मुझे भी पता है। इत्ता-सा तो सिलेबस है। 
इत्ता-सा?
हाँ। बस 2-4 घंटे में हो जाएगा। 
2-4 घंटे में?
हाँ। और अभी तो हमारे पास पूरी रात है। 
मैं जाग लूंगी?
मैं जगा दूंगी। 
नींद आई तो?
नहीं आएगी। नींद भगाने के तरीके होते हैं। 
अभी किताब खोलो 
और 12. 00 - 12. 30 तक सिलेबस निपट गया, समझो। 
(बच्चों का सिलेबस ही कितना होता है? मगर, बच्चों के लिए तो वही पहाड़ होगा, अगर वक़्त कम होगा या समझ नहीं आएगा तो। )    
जाओ अब सो जाओ। बाकी सुबह उठकर पढ़ लेना। मैं जगा दूंगी। 
और पेपर के बाद बच्चा, पेपर अच्छा हो गया, अच्छा हो गया, करता आ रहा है। 
 
और एक हमारी माँ करती थी। 
माँ, सुबह उठा दियो। पेपर देने जाना है। 
पेपर तेरा है या मेरा? देके आना हो तो उठ लियो।  
:)

या फिर लेट तक जाग रहे हो और कोई थोड़ा बहुत शोर हो गया।  
भाईरोई, पड़े न पड़न दे। किसे और क भी लाइट जले स? अक तू अ घणी पढ़ाकू स? 
या 
इन पोथ्यां न त बिगाड़ दी। कम पढे ए, सही रहवे ए। 
मतलब, यहाँ आजतक पढ़ाई पे खतरे हैं। बहाना कुछ भी हो सकता है। 
 
इन लोगों ने देखा ही नहीं की दुनियाँ कितना-कितना पढ़ती है। और उनकी ज़िंदगियाँ मस्त हैं। कम से कम, यहाँ वाली औरतों जैसे हालात तो नहीं हैं। बोल चाल का तरीका, रहन-सहन का तरीका, सुख-सुविधाएँ, समझाने का तरीका या प्रेशर को बढ़ाने का, सिर्फ शब्दों ही शब्दों में या घटाने का, बहुत असर करता है ज़िंदगी पे। और भी कितनी ही छोटी-मोटी सी रोजमर्रा की बातें, ज़िंदगी को आगे बढ़ाने में या पीछे धकेलने में कितना तो योगदान देती हैं। तभी तो आप जो होते हैं, आपके बच्चे भी ज्यादातर वहीं तक रह जाते हैं। उससे आगे, उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। और उस मेहनत को अक्सर ये माहौल, आगे बढ़ाने की बजाय, पीछे धकेलता मिलेगा। 

ड्राफ्ट में पड़ी थी ये पोस्ट। कुछ महीने पहले की बात है। मगर जाने क्यों, पोस्ट करने का मन नहीं था। ऐसे ही जैसे कितना कुछ हम लिखते हैं, मगर सब पोस्ट कहाँ करते हैं? यूँ ही, छोटी-छोटी सी बातें समझ के। यही छोटी-छोटी सी बातें, कभी-कभी कितना कुछ बिगाड़ कर जाती हैं?            

No comments: