मंदिर अहम है ना मस्जिद अहम है
जहाँ मन को शांती मिले वो जगह अहम है
गुरु द्वारे अहम हैं, ना गिरजे अहम हैं
जहाँ भूखे की भूख मिटे,
ठिठुरते को कपड़े मिलें
ताप में जलते को ठंडक
बेघर को छत मिले
क्रूरों के बीच दयालु
बेगानों से घिरे को अपनापन, ऐसी जगह अहम है।
ना भिखारी बनाने वाले अड्डे अहम हैं
ना अज्ञानता का पाठ पढ़ाने वाले
ना पीट-पीट कर रुंगा-सा दान करने वाले
ना बंधक बना, रोजगार का नाटक करने वाले
ना सीधे से दिखने वाले पेपरों पर हस्ताक्षर करवा
या कोरे पन्नो पर येन-केन-प्रकारेण हस्ताक्षर ले
कोढों की जाल नगरी में उलझाने वाले
सभ्य समाज में भला इनकी जगह?
कहाँ और कैसे? क्यों और किसके लिए है?
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