Monday, October 13, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 20

 1 Feb 2023 को रितु की मौत के बाद 

पहला जो प्रोग्राम चला, वो था किसी औरत को उस घर में घुसेड़ना। और जल्दी ही उसका घर से बाहर होना। 

दूसरा? 

वो स्कूल जिससे निकल कर रितु आई थी इस घर में बहु बनकर, उस स्कूल के साथ वाली एक भाई की ज़मीन निगलने का काम। सुनील (भाई) की ज़मीन, लक्ष्य (भतीजा) नाम के गुंडे द्वारा धोखे से, 2 बोतल से अपने नाम करना। और एक दूसरे गुंडे अजय दांगी द्वारा ये सब करवाना। December 14 2023?  

बहन विजय दांगी के विरोध के बावजूद। 

एक भाई, चाचा का लड़का और दूसरा भतीजा दूसरे दादा के यहाँ से। वो दूर बैठ जिन्हें आप बच्चा समझते रहे? गाँव आकर पता चलता है, की वो बड़े उस्ताद हो चुके हैं। 

एक खुद को किसी खास पार्टी या कहो की खुफिया एजेंसी का लोकल ठेकेदार बता रहा था। फेँकने में यहाँ ज्यादातर अपने फ़ेंकू के जैसे ही हैं। तो दूसरे को, दिल्ली गैंग का छोटा-सा कोई प्यादा बताते हैं। बच्चे ने वहाँ से पढ़ाई की है थोड़ी। और बच्चे को अब बच्चा बोलना बँध करो।   

अगर कोई ज़मीन दो भाइयों के नाम है और उसका एक हिस्सा, कोई किसी पीने वाले को 2 बोतल देकर लेने की कोशिश करे, तो क्या वो ले सकता है? या बड़ी बहन के विरोध का कोई अर्थ है वहाँ? क्या उसकी सहमती के बिना वो ज़मीन बेची जा सकती है?  

और बेची भी कितने में? 5-6 लाख? वो ज़मीन जिसपे इन स्कूल वालों की निगाह तभी से थी, जब उन्होंने ये स्कूल बनाया (2000 या 2001?)। मगर मिली नहीं। वो ज़मीन जिसकी आज वहाँ कीमत करोड़ों में है। 2 कनाल, 5-6 लाख? सही सौदा है?

बहन ने ज़मीन के वो धोखाधड़ी वाले पेपर मिलने के बाद विरोध और तेज कर दिया। मगर साहबों के राजनीती वाले इस इलाके में औरतों की भला कौन सुनता है? यहाँ बहन बेटियों के नाम ज़मीन नहीं होती? अरे? ये क्या बोल गए ये? मेरे घर में तो मेरी अपनी बुआ के नाम है आजतक। एक ही बुआ है मेरी, दो भाईयों के बीच। ठीक वैसे जैसे मैं एक बहन, और दो भाई। तो उस घर में भी ऐसे कैसे हो सकता है की बहन की कोई सुने ही ना? या उसके विरोध करते-करते बड़े भाई लोग गुंडों की तरह व्यवहार करने लगें? अब वो लें या ना, वो उनकी अपनी मर्जी। मगर बहन की सहमती के बिना खाने का रिवाज़ कम से कम, इस घर में तो नहीं था। 

किस्सा यहीं नहीं थमा। 

उसके बाद अजय दांगी से बात हुई। उसने पहले तो मना कर दिया की उसका इस सबसे कोई लेना देना नहीं है। उसके बाद जब उसे बताया गया की सबूत हैं तेरे खिलाफ। ज़मीन बचेगी तेरी भी नहीं और ना ही तू। तो महानुभव बोलता है, उसे मैं खुद ही बेच दूँगा। और कुछ वक़्त बाद सुनने में आया की उसने भी अपनी स्कूल के साथ वाली ज़मीन इन्हें दे दी, किसी दुकान के बदले। बढ़िया। ये काम तो वो पहले भी कर सकता था। हमारे यहाँ ये कबाड़ रचना ज़रुरी था? उनके ढाई किले वैसे ही हो जाते। 

बात इतने पर भी नहीं रुकी। पीछे किसी पोस्ट में कोई खास नौटंकी पढ़ी होगी आपने। एक तरफ आर्मी कलर की गाडी और दूसरी तरफ काली थार। और इनके बीच वाले घर में काफी सालों बाद एक खास इंसान दिखा। यही स्कूल का मालिक। चल क्या रहा था वहाँ? बलदेव सिंह के एक किले से 2 कनाल और रह गई थी। वही रितु वाली, जहाँ वो स्कूल बनाने वाली थी, उसका सौदा चल रहा था? ना इसमें भी गड़बड़ हो गई थी। जिसने दी ही नहीं थी, उसकी ज़मीन गलती से अपने नाम करवा गए। बहन ने वो पकड़ लिया। तो अब दूसरे की भी ले लो, यही बढ़िया तरीका था? मगर, बहन के आते ही सब तीतर बितर हो गए। सोचो, ख़ुफ़िया तंत्र कितना ख़ुफ़िया है? या कितना खौफनाक? वो ख़ुफ़िया तंत्र आदमी खाता है, खास तारीख, खास महीना और खास साल को। और खास बीमारी और खास जगह (PGI) , एक खास रात और? वो इंसान वापस घर नहीं आता। आती है तो उसकी लाश। उसी खास ज़मीन का ये खास सौदा, खास आदमियों वाले कोडों के बीच। और? आजतक वो उस बहन से भाग रहे हैं? खुद भाग रहे हैं या वही ख़ुफ़िया तंत्र भगा रहा है उन्हें, अपने गुप्त गुप्त तरीकों से? 

क्यूँकि, उस ख़ुफ़िया तंत्र को इस सामान्तर घड़ाई में आगे भी कुछ रचना है। उसकी नीँव बड़े अच्छे से वो रच चुके हैं। मगर, इन गोटियों को अब तक भी खबर नहीं।   

जिसके ये सामान्तर घड़ाई समझ आ रही है, उससे भगाया जा रहा है? या छोटी बहन से? जैसे पहले भी कई बार लिखा, हर केस अलग होता है और सामान्तर घड़ाई बनाने के चक्कर में उनमें बहुत सी कमियाँ भी रह जाती है। उन्हीं कमियों के देखकर आप बता सकते हैं की ये सब अपने आप नहीं हुआ, बल्की, घड़ा गया है। अब एक किले के तीन अलग-अलग हिसाब-किताब और उन्हें लेने के तौर तरीकों पर ही नजर दौड़ा लो। अपने आप समझ आ जाएगा, क्या कुछ और कैसे-कैसे हुआ है। उसपर आगे कोई और पोस्ट।                    

यहाँ पर दो पार्टियाँ अहम बताई। बल्की, कहना चाहिए की ख़ुफ़िया एजेंसियाँ। ख़ुफ़िया एजेंसियाँ? भला ख़ुफ़िया एजेंसियों का ऐसे छोटे-मोटे ज़मीन के ईधर उधर होने से क्या लेना देना? एक में एक दूर का कजिन है और अकसर उसके नाम के बाद गट्टे लगाकर उसका नाम उछाला जाता है। और दूसरी ख़ुफ़िया एजेंसी में कोई दोस्त या किन्हीं दोस्तों के घर से कहना चाहिए। जिनसे बात हुए ही काफी वक़्त हो चुका। ऐसे तो कोई भी कहीं नौकरी कर सकता है। और कोई भी किसी का भी नाम उछाल सकता है। लेकिन उसके बाद जब कुछ इस पर यहाँ-वहाँ पढ़ा, तो पता चला की सारा तंत्र ही गुप्त है, जो दुनियाँ को चला रहा है। और गुप्त एजेंसियों का उसमें बहुत अहम रोल है। ये जहाँ चाहें दंगे करवा दें और जहाँ चाहें वहाँ शांति। जिन्हें चाहें बसा दें और जिन्हें चाहें उजाड़ दें। 

क्या सच में इतना आसान है ये सब? लगता है, अगर आप सामान्तर घड़ाईयोँ को समझने की कोशिश करोगे तो। जैसे? 2012 या 2013 में यहाँ कोई चमारों या चूड़ों के बच्चों का खून, so called ऊँची जाती वालों द्वारा। और फिर? उस केस की कहानियाँ और कोड। जैसे उस केस में शामिल लोगों के नाम और कट्टे (illegal pistols from UP, Ghaziabad?) के पीछे के संवाद और कहानियाँ। कट्टा अलमारी पे छिपा दिया या वहाँ की ज़मीन में गाड़ दिया। दो बहन-भाहियों की शादी और उनकी शादी की एल्बम को पुलिस द्वारा खँगालना। इसी शादी के दौरान ये काँड हुआ था और इसी ख़ूनी स्कूल में वो शादी हुई थी। सुना है की जिस किसी की शादी इस स्कूल में हुई, वहाँ आगे चलकर कबाड़े ही कबाड़े हुए? और कबाड़े भी कैसे? ये उन लोगों की शादी के बाद के लफड़ों, झगड़ों, मार पिटाईयों या कोर्ट कचहरी के केसों, तलाकों और बच्चों के अनाथ होने से समझा जा सकता है। 

2005 में रितु की शादी, शायद इस स्कूल से ऐसी कोई पहली शादी थी। मगर वो उस स्कूल में नहीं हुई। वो उस स्कूल में पढ़ाती थी। शादी के चक्कर में स्कूल छोड़ना पड़ा या कहो की लताड़ कर निकाला गया था, बड़े ही बेहुदा तरीके से। उस वक़्त के उस स्कूल के डायरेक्टर के वक़्त ये सब हुआ था और उसके बेटे के आते ही मौत और ज़मीन की धोखाधड़ी या येन केन प्रकारेण छीना झपटी।   

इन सब कहानियों, लोगों की ज़िंदगियों की हकीकत से ये समझ आता है की लोगों की ज़िंदगियाँ किस कदर इस गुप्त सिस्टम के कंट्रोल में है। लोगों को इस गुप्त सिस्टम ने ऐसा रोबॉट बनाया हुआ है जिसमें सबकुछ किन्हीं और के अनुसार ही होता है। कौन हैं वो कंट्रोलर्स? जो पुरे समाज को अपने कब्ज़े में रखते हैं? उसी का नाम गुप्त तंत्र है, जो आपको 24 घंटे ना सिर्फ रिकॉर्ड करता है किसी लैब एनिमल की तरह, बल्की, अपने ज्ञान विज्ञान का दुरुपयोग कर आपकी ज़िंदगी भी अपनी स्वार्थ सीधी के हिसाब किताब से चलाता है।  

आज के वक़्त में किसी भी देश का खुफिया विभाग या एजेंसी इस गुप्त तंत्र की एकमात्र कड़ी नहीं है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, सैमसंग जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियाँ, मीडिया, डिफेन्स, पुलिस के कुछ विभाग भी उसका एक हिस्सा हैं।  तो सोचो दुनियाँ में कितने विभाग या एजेंसियाँ आम लोगों तक को रिकॉर्ड करती हैं? सबके कारण अलग-अलग हो सकते हैं। मगर, ईरादा? ज्यादातर एक ही, अपना-अपना निहित स्वार्थ या बाजार। 

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