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Wednesday, May 7, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 3

एक दिन ऐसे ही किसी ऑफिसियल काम से चंडीगढ़ जाना था? सालों पहले की बात है, रोहतक से चली ही थी तो सोचा क्यों ना पहले सोनीपत का रुख किया जाए? कई सारे प्रश्न थे दिमाग में, जिनके उत्तर चाहिएँ थे। अब मैं उनमें से नहीं, जो सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करे। या ईधर-उधर के लोगों से बात करे। यहाँ सीधा-स्पाट बात वहीँ होती है, जहाँ के प्र्शन होते हैं। खासकर, तब तो और जरुरी हो जाता है, जब इधर-उधर से विश्वास लायक जवाब नहीं मिलते। बल्की, कुछ ऐसे मिलते हैं, की कुछ और प्र्शन दे जाते हैं? जैसे, फिर ये शादी नाम का घपला क्या है? आजकल किसी चैनल ने सुना है, कोई सिँदूर बचाओ अभियान भी चलाया हुआ है? किसका सिँदूर? अहम बात हो सकती है, यहाँ पर? मेरे आसपास कई हैं, उनका? या सोनीपत में किसी का? और RAW का या FBI का, या ऐसी ही किसी और इंटेलिजेंस एजेंसी का, ऐसे किसी सिन्दूर से क्या लेना-देना? खैर। उन दिनों आसपास के सिंदूरोँ का कोई ज्ञान ही नहीं था। या कहो की Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, वो सिँदूर पता नहीं कहाँ पढ़ रहे थे? या क्या कर रहे थे? हकीकत तो ये है, की उन दिनों Conflict of Interest की राजनीती क्या होती है, यही नहीं पता था।   

अब जहाँ की तरफ गाडी मोड़ दी थी, मेरे हिसाब से वहाँ मैं एक नए इंसान को छोड़, बाकी सबसे मिल चुकी थी और थोड़ा बहुत शायद उन्हें जानती भी थी। तो पहुँच गई, उस घर? नहीं, उसके भाई के घर। क्यूँकि, अब वो अलग-अलग रह रहे थे, आसपास ही। थोड़ी बहुत बात हुई, और वो मुझे पास ही उस घर ले आए। पता नहीं क्यों लगा, की कुछ तो गड़बड़ है। जाने क्यों किसी ने मिलने में ही बहुत वक़्त लगा दिया। मगर क्या?  

उसके बाद थोड़ा बहुत उस पर, इधर इधर सुनने-पढ़ने को मिला। और मेरा यूनिवर्सिटी में ही कहीं आना-जाना थोड़ा ज्यादा हो गया। वहाँ सब राज छिपे थे शायद। 

यहाँ से एक अलग ही दुनियाँ की खबर होने लगी थी। इस दुनियाँ का दायरा थोड़ा और बढ़ने लगा था। और जितना ज्यादा जानना चाहा, वो बढ़ता ही गया। तो ये मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स क्या है? इसमें कौन-कौन हैं? और इसके मुद्दे कहाँ-कहाँ घुमते हैं?

Ministry of home affairs?

Psychological warfare?  

Setting the narratives?

सिँदूर की राजनीती या कांडों पे पर्दा डालने की?

With all due respect to Ministry of home affairs?


जब गाँव आई, तो Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, सिन्दूर-युद्ध के ड्रामों से आमना-सामना हुआ। शुरु-शुरु में तो समझ ही नहीं आया, की राजनीती भला इतने लोगों की ज़िंदगियों से कैसे खेल सकती है? जिनकी ज़िंदगी के युद्ध, बड़े ही छोटे-छोटे से रोजमर्रा की ज़िंदगी की, छोटी, छोटी-सी परेशानियों में दिखे। 

किसी को इतनी-सी समस्या है की वो अपनी ससुराल, खाना-पीना तक अपनी मर्जी से नहीं खा-पी सकते? पता नहीं, सास कहाँ-कहाँ ताले जड़ देती है?

किसी को इतनी-सी समस्या है, की उसे घर में बंद कर सास-पति पता ही नहीं, कौन-से सत्संग चले जाते हैं। और कई-कई दिन तक घर नहीं आते और घर में कुछ खाने तक को नहीं?

किसी की इतनी-सी चाहत है, की उसको अपने घर का रोजमर्रा का प्रयोग होने वाला सामान इक्क्ठ्ठा करना है। वही नहीं है?

किसी के हालात ऐसे बना दिए गए, की आने-जाने तक के पैसे नहीं? किसी के पास पहनने को नहीं? किसी के पास मकान नहीं? किसी के पास ये नहीं, और किसी के पास वो?

तो वो है ना जो, जो लड़की अभी-अभी घर आई है, उसके पास ये सबकुछ है, छीन लो उससे? उसे इतना तंग करो, की या तो आत्महत्या कर ले या तंगी से मर जाए। नहीं तो निकालो उसे गाँव से भी। 

ये खामियाज़ा भाभी ने भुगता? इससे भी बुरा कुछ गुड़िया के साथ करने की कोशिशें हुई, इसी Conflict of Interest की राजनीती द्वारा। फिर मैंने तो जो देखा, सुना या भुगता, ऐसे-ऐसे, रोज-रोज के ड्रामों की देन, वो कोई कहानी ही अलग कह गया शायद?

इन सब लड़कियों की दिक्कत क्या है? 

Independent ना होना? Economic Independence आपको कितनी ही तरह के अनचाहे दुखों और Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, अनचाहे युद्धों तक से काफी हद तक बचाती है। मुझे लगता है, की मेरे पास अपना पैसा या इधर-उधर अगर थोड़ा-बहुत सुप्पोर्ट सिस्टम ना होता, तो मैं क्या, ये Conflict of Interest की राजनीती मुझे ही नहीं, बल्की, पूरे घर को खा चुकी होती। 

इन लड़कियों की और इन जैसी कितनी ही लड़कियों की समस्या, सिन्दूर का होना या ना होना नहीं है। हकीकत ये है, की अगर ये Economically Independept हों, तो ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है। कुछ एक Economically Independept होते हुए भी इस जाल में फँसी हुई हैं, तो वो आसपास के Media Culture की वजह से। कमाते हुए भी, उन्हें नहीं मालूम, की वो पैसे उनके अपने हैं। अपनी और अपनों की ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए हैं। किन्हीं लालची और बेवकूफ लोगों के शिकंजों में रहने के लिए नहीं। 

आगे किन्हीं पोस्ट में बात होगी, आसपास द्वारा किए गए उन रोज-रोज के ड्रामों की भी। और कौन करवाता है वो सब उनसे? सबसे अहम कैसे? Emotional Fooling, Twisting and Manipulating Facts, Psychological warfare,  Setting the narratives.     

Saturday, May 3, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 1

 Psychological warfare

Setting the narratives

पीछे पोस्ट में जितनी भी फोटो हैं, वो एक ही दिन, एक छोटे से विजिट की हैं। अपने पास के ही खेत के विजिट की, जिसमें पता चला की हडपम-हडपाई का अगला दाँव चला जा रहा है। कई दिनों से जाने क्यों मुझे लग रहा था, की कुछ गड़बड़ है। भाई ने फिर से घर आना छोड़ दिया था या कई-कई दिनों में आने लगा था। यहाँ रहने के दौरान जो नोटिस किया वो ये, की ये खास तरह के कर्फ़यू, जब लगते हैं, जब कुछ खास चल रहा हो या होने वाला हो। खास तरह की सप्लाई शुरू हो जाती है और उसके आसपास के घेरे भी खास होते हैं। फ़ोन या तो बंद हो जाता है या फिर गुम हो जाता है। ये रोबॉटिकरण की एक एनफोर्समेंट वाली प्रकिर्या है। ऐसे में किसको पास रखना है और किसको दूर। जिसमें किसी भी जीव के आसपास का माहौल सैट करना होता है। उस माहौल सेटिंग में आप उसे कुछ खास लोगों से बिलकुल कट कर सकते हैं या उसकी जगह भी बदल सकते हैं। उस दौरान वो इंसान जो कुछ सुनता-समझता या देखता है, वही नैरेटिव सेटिंग (Setting the narratives) है। 

शायद सेनाएँ या उग्रवाद तैयार करने वाले भी इसी तरह की ब्रेन वाश जैसी-सी तकनीक का इस्तेमाल करती है? यही तकनीक न सिर्फ मानव रोबॉटिकरण में सहायक है, बल्की, बीमारियाँ पैदा करने और दूर करने में भी। लोगों को लाइफस्टाइल जैसी बिमारियों से, नशा मुक्ति की प्रकिया में या उसके रहने वाले इकोसिस्टम की बिमारियों से मुक्ति की भी। और लोगों को हॉस्पिटल पहुँचाने और वहाँ से ऊप्पर पहुँचाने की भी। इतनी सी बात, इतना कुछ कर जाती है?     

नैरेटिव सेटिंग के कुछ उदाहरण जानने की कोशिश करें? 

तुम हमारी जमीन खा गए। दादा ने हर जगह सारा अच्छा-अच्छा हिस्सा तुम्हें दे दिया। हमें तो कुछ भी नहीं दिया। हर जगह पीछे बिठा दिया। जब अलग हुए, तो पापा के पास कुछ भी नहीं था। 

अरे क्या बोल रहा है ये तू? दादा ने? कौन से दादा ने? 

हमारे अपने दादा ने और किसने?

अच्छा? तुझे किसने बताया ये? तेरे प्यारे दादा वालों ने? कहीं उन्होंने ही तो नहीं बाँटा सब?   

बताया क्या। अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। 

कह तो सही रहा है की अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। मेरे भाई भी यही बोलते हैं की सारा मैं खा गई। मुझे तो वहाँ भी गड़बड़ लगती है। अब मैं खा गई या हम खा गए तो कुछ तो देना बनता है। तू पढ़ ले, पैसे मैं दूँगी। बस इतना ही खा गई ना? या मैं जो कहूँ, वो करले, तेरा इंटरेस्ट भी है और उसमें पैसा भी। 

हूँ। अब वो सब नहीं होना। 

अरे अब तो और आसानी से होगा। वैसे भी जिसके लिए इतनी नफरत और मारामारी चल रही है, वो है ही क्या? और सुन, पहले घर जाके ये पूछ की ये सब बाँटा किसने था? और पहली चॉइस किसकी थी लेने की। उसके बाद बात करना। और तुम तो उस वक़्त तक पैदा ही नहीं हुए थे। या हो गए थे? कितने बड़े थे?  

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

हैलो। हाँ आ रहा हूँ। कहा ना अभी आया। 

दीदी फिर आऊँगा। फ़ोन है अभी घर से। 


ऐसे ही एक दिन जिन दिनों ये ज़मीन की बातें उड़ रही थी की भतीजे ने धोखे से ले ली और चाचा का लड़का बिचौलिया दिलवाने वाला। 

तो तूने किया है ये कबाड़? तुझे लगता है बहन देने देगी?

मैं क्यों करुँगा? मेरा क्या मतलब?

वही तो तेरा क्या मतलब? तुझे बचाना चाहिए या बिचौलिया बनकर देना? 

वैसे भी तेरी ज़िंदगी में कुछ अच्छा करने लायक नहीं बचा क्या? कितना मिल जाएगा इससे तुझे? कहीं अपनी से भी तो हाथ नहीं धो बैठेगा? अपनी क्यों नहीं दी, वो दे देते। 

मैंने कुछ नहीं किया। 

मेरे पास सबूत हैं। 

होंगे। क्या कर लोगे? 

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

सर्विलांस एब्यूज? करवाने वाली पार्टी की हर किसी पर निगाह और कान हैं। फिर क्या घर और क्या बाहर। जैसे ही सामने वाला उगलने लगता है या अपनी ही जुबाँ से फँसने लगता है। ट्रिंग ट्रिंग शुरू हो जाती है। 


एक दिन ऐसे ही भतीजा आया हुआ था साथ वाले मकान में। उसे बुला लिया। 

बातों ही बातों में 

तुमने ज़मीन कितने की ली?

जी?

जी? कितने की है वो ज़मीन? घर पूछा क्या की देंगे या नहीं? इतने सालों से क्यों नहीं दी?

अरे बुआ जी वो तो सेफ्टी के लिए ली है। 

सेफ्टी? क्या खतरा था?

दुनियाँ मंडरा रही थी उसपर। हम नहीं लेते तो कोई और लेता। 

दुनियाँ तो कितने ही सालों से मँडरा रही थी। मिली तो नहीं किसी को। मिलेगी अब भी नहीं। धोखाधड़ी के सारे सबूत धरे हैं। 

फ़ोन उठाकर बात करते हुए। हाँ आ रहा हूँ। आ गया बस। 

चले जाना जल्दी कहाँ है। वो पैसे कहाँ है ये भी बता दो। उस फरहे में पाँच कुछ हैं और आंटी 30-35 लाख बोल रहे थे। जो जमीन देनी ही ना हो, वो तो अनमोल है। उसका क्या मोल लगाओगे तुम?

भतीजा फुर्र हो चुका। 

यही नहीं ऐसे-ऐसे कितने ही नैरेटिव हैं। जहाँ, जैसे ही कुछ बात होने लगेगी, वैसे ही ये ट्रिंग ट्रिंग भी। 

बोतलों के दामों पर तो पूरी कहानी की किताब लिखी जा सकती है। वो कब क्या बोलेगा, ये इस पर निर्भर करता है की वो किनके बीच रहकर आया है। उससे भी बड़ी बात, 

कोई पार्टी किसी लड़के को लड़की या LGBT या बाबा का किरदार कब और कैसे थमाती है? 

उसे किसी ट्रिगर की तरह ब्रेक कैसे करवाती है? 

कौन से और कैसे-कैसे catalysts उसमें काम करते हैं?

Game of Imitation? Wanna limit something? Hype? Or even Hijack? Political parties use and abuse hijack mode?

आदमी को बाबा बनाना या शादीशुदा? ये भी उसका इकोसिस्टम बनाता है? और ये इकोसिस्टम कौन घड़ता है? राजनीतिक पार्टियाँ? गजब नहीं है?  


सर्विलैंस एब्यूज और मानव रोबॉटिकरण की प्रकिर्या?               

Electrical warfare?

Infecting electric appliances and wires and damaging them also? सिर्फ इकॉनमी को इम्पैक्ट करता है? या उससे आगे भी बहुत कुछ घड़ता है?  

मोदी ने घर-घर बिजली पहुँचा दी। सुना कहीं? कहाँ? कब? अब ये कैसी बिजली पहुँचाई, ये वाद-विवाद का विषय हो सकता है? क्यूँकि, बिजली तो यहाँ के गाँवों में कब से है? और ये वाली बिजली मोदी ने ही पहुँचाई है क्या? वैसे, इस खास वाली बिजली की क्या जरुरत? मोबाइल ही बहुत नहीं हैं, सर्विलांस एब्यूज के लिए तो?

सोचो आप अपने घर के बाहर खड़े हैं। एक दो और और माँ, काकी हैं। ऐसे ही कोई बात चल रही है। आपने कोई प्र्शन किया। और उन्होंने उत्तर दिया। 

वापस घर आकर आप इंटरनेट पर कुछ सर्च कर रहे हैं और गूगल सर्च इंजन वही प्र्शन दिखा रहा है? मगर, ये क्या उत्तर देते वक़्त घपला कर रहा है? ऐसा क्या खास होगा उसमें?

ऐसे ही बहुत बार यूट्यूब पर भी हुआ होगा? आप इस घर से उस घर जा रहे हैं। बच्चे ने कुछ खाने की फरमाईश की है। आपने आकर अपना काम करने के लिए यूट्यूब खोला और ये क्या? यूट्यूब के शुरू के कुछ विडियो वही खाने की रेसिपी दिखा रहे हैं। 

ऊप्पर के दोनों ही केसों में मोबाइल उस वक़्त किसी के भी पास नहीं था। फिर?

आसपास तारें, खंबे, गाड़ियाँ, मीटर और भी कितना कुछ होगा? सिर्फ गवर्नमेंट्स या लॉ इंफोरसेनमेंट एजेन्सियाँ ही नहीं, गूगल और यूट्यूब जैसे सर्च इंजन भी आप पर हर वक़्त, हर जगह निगरानी रखते हैं। और बिना पूछे उत्तर भी देते हैं। और जहाँ आप कुछ पूछना या जानना चाहें, वहाँ कभी-कभी छिपाने की कोशिश भी करते हैं? रौचक? इससे आगे भी बहुत कुछ है।