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Saturday, May 3, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 1

 Psychological warfare

Setting the narratives

पीछे पोस्ट में जितनी भी फोटो हैं, वो एक ही दिन, एक छोटे से विजिट की हैं। अपने पास के ही खेत के विजिट की, जिसमें पता चला की हडपम-हडपाई का अगला दाँव चला जा रहा है। कई दिनों से जाने क्यों मुझे लग रहा था, की कुछ गड़बड़ है। भाई ने फिर से घर आना छोड़ दिया था या कई-कई दिनों में आने लगा था। यहाँ रहने के दौरान जो नोटिस किया वो ये, की ये खास तरह के कर्फ़यू, जब लगते हैं, जब कुछ खास चल रहा हो या होने वाला हो। खास तरह की सप्लाई शुरू हो जाती है और उसके आसपास के घेरे भी खास होते हैं। फ़ोन या तो बंद हो जाता है या फिर गुम हो जाता है। ये रोबॉटिकरण की एक एनफोर्समेंट वाली प्रकिर्या है। ऐसे में किसको पास रखना है और किसको दूर। जिसमें किसी भी जीव के आसपास का माहौल सैट करना होता है। उस माहौल सेटिंग में आप उसे कुछ खास लोगों से बिलकुल कट कर सकते हैं या उसकी जगह भी बदल सकते हैं। उस दौरान वो इंसान जो कुछ सुनता-समझता या देखता है, वही नैरेटिव सेटिंग (Setting the narratives) है। 

शायद सेनाएँ या उग्रवाद तैयार करने वाले भी इसी तरह की ब्रेन वाश जैसी-सी तकनीक का इस्तेमाल करती है? यही तकनीक न सिर्फ मानव रोबॉटिकरण में सहायक है, बल्की, बीमारियाँ पैदा करने और दूर करने में भी। लोगों को लाइफस्टाइल जैसी बिमारियों से, नशा मुक्ति की प्रकिया में या उसके रहने वाले इकोसिस्टम की बिमारियों से मुक्ति की भी। और लोगों को हॉस्पिटल पहुँचाने और वहाँ से ऊप्पर पहुँचाने की भी। इतनी सी बात, इतना कुछ कर जाती है?     

नैरेटिव सेटिंग के कुछ उदाहरण जानने की कोशिश करें? 

तुम हमारी जमीन खा गए। दादा ने हर जगह सारा अच्छा-अच्छा हिस्सा तुम्हें दे दिया। हमें तो कुछ भी नहीं दिया। हर जगह पीछे बिठा दिया। जब अलग हुए, तो पापा के पास कुछ भी नहीं था। 

अरे क्या बोल रहा है ये तू? दादा ने? कौन से दादा ने? 

हमारे अपने दादा ने और किसने?

अच्छा? तुझे किसने बताया ये? तेरे प्यारे दादा वालों ने? कहीं उन्होंने ही तो नहीं बाँटा सब?   

बताया क्या। अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। 

कह तो सही रहा है की अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। मेरे भाई भी यही बोलते हैं की सारा मैं खा गई। मुझे तो वहाँ भी गड़बड़ लगती है। अब मैं खा गई या हम खा गए तो कुछ तो देना बनता है। तू पढ़ ले, पैसे मैं दूँगी। बस इतना ही खा गई ना? या मैं जो कहूँ, वो करले, तेरा इंटरेस्ट भी है और उसमें पैसा भी। 

हूँ। अब वो सब नहीं होना। 

अरे अब तो और आसानी से होगा। वैसे भी जिसके लिए इतनी नफरत और मारामारी चल रही है, वो है ही क्या? और सुन, पहले घर जाके ये पूछ की ये सब बाँटा किसने था? और पहली चॉइस किसकी थी लेने की। उसके बाद बात करना। और तुम तो उस वक़्त तक पैदा ही नहीं हुए थे। या हो गए थे? कितने बड़े थे?  

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

हैलो। हाँ आ रहा हूँ। कहा ना अभी आया। 

दीदी फिर आऊँगा। फ़ोन है अभी घर से। 


ऐसे ही एक दिन जिन दिनों ये ज़मीन की बातें उड़ रही थी की भतीजे ने धोखे से ले ली और चाचा का लड़का बिचौलिया दिलवाने वाला। 

तो तूने किया है ये कबाड़? तुझे लगता है बहन देने देगी?

मैं क्यों करुँगा? मेरा क्या मतलब?

वही तो तेरा क्या मतलब? तुझे बचाना चाहिए या बिचौलिया बनकर देना? 

वैसे भी तेरी ज़िंदगी में कुछ अच्छा करने लायक नहीं बचा क्या? कितना मिल जाएगा इससे तुझे? कहीं अपनी से भी तो हाथ नहीं धो बैठेगा? अपनी क्यों नहीं दी, वो दे देते। 

मैंने कुछ नहीं किया। 

मेरे पास सबूत हैं। 

होंगे। क्या कर लोगे? 

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

सर्विलांस एब्यूज? करवाने वाली पार्टी की हर किसी पर निगाह और कान हैं। फिर क्या घर और क्या बाहर। जैसे ही सामने वाला उगलने लगता है या अपनी ही जुबाँ से फँसने लगता है। ट्रिंग ट्रिंग शुरू हो जाती है। 


एक दिन ऐसे ही भतीजा आया हुआ था साथ वाले मकान में। उसे बुला लिया। 

बातों ही बातों में 

तुमने ज़मीन कितने की ली?

जी?

जी? कितने की है वो ज़मीन? घर पूछा क्या की देंगे या नहीं? इतने सालों से क्यों नहीं दी?

अरे बुआ जी वो तो सेफ्टी के लिए ली है। 

सेफ्टी? क्या खतरा था?

दुनियाँ मंडरा रही थी उसपर। हम नहीं लेते तो कोई और लेता। 

दुनियाँ तो कितने ही सालों से मँडरा रही थी। मिली तो नहीं किसी को। मिलेगी अब भी नहीं। धोखाधड़ी के सारे सबूत धरे हैं। 

फ़ोन उठाकर बात करते हुए। हाँ आ रहा हूँ। आ गया बस। 

चले जाना जल्दी कहाँ है। वो पैसे कहाँ है ये भी बता दो। उस फरहे में पाँच कुछ हैं और आंटी 30-35 लाख बोल रहे थे। जो जमीन देनी ही ना हो, वो तो अनमोल है। उसका क्या मोल लगाओगे तुम?

भतीजा फुर्र हो चुका। 

यही नहीं ऐसे-ऐसे कितने ही नैरेटिव हैं। जहाँ, जैसे ही कुछ बात होने लगेगी, वैसे ही ये ट्रिंग ट्रिंग भी। 

बोतलों के दामों पर तो पूरी कहानी की किताब लिखी जा सकती है। वो कब क्या बोलेगा, ये इस पर निर्भर करता है की वो किनके बीच रहकर आया है। उससे भी बड़ी बात, 

कोई पार्टी किसी लड़के को लड़की या LGBT या बाबा का किरदार कब और कैसे थमाती है? 

उसे किसी ट्रिगर की तरह ब्रेक कैसे करवाती है? 

कौन से और कैसे-कैसे catalysts उसमें काम करते हैं?

Game of Imitation? Wanna limit something? Hype? Or even Hijack? Political parties use and abuse hijack mode?

आदमी को बाबा बनाना या शादीशुदा? ये भी उसका इकोसिस्टम बनाता है? और ये इकोसिस्टम कौन घड़ता है? राजनीतिक पार्टियाँ? गजब नहीं है?  


सर्विलैंस एब्यूज और मानव रोबॉटिकरण की प्रकिर्या?               

Electrical warfare?

Infecting electric appliances and wires and damaging them also? सिर्फ इकॉनमी को इम्पैक्ट करता है? या उससे आगे भी बहुत कुछ घड़ता है?  

मोदी ने घर-घर बिजली पहुँचा दी। सुना कहीं? कहाँ? कब? अब ये कैसी बिजली पहुँचाई, ये वाद-विवाद का विषय हो सकता है? क्यूँकि, बिजली तो यहाँ के गाँवों में कब से है? और ये वाली बिजली मोदी ने ही पहुँचाई है क्या? वैसे, इस खास वाली बिजली की क्या जरुरत? मोबाइल ही बहुत नहीं हैं, सर्विलांस एब्यूज के लिए तो?

सोचो आप अपने घर के बाहर खड़े हैं। एक दो और और माँ, काकी हैं। ऐसे ही कोई बात चल रही है। आपने कोई प्र्शन किया। और उन्होंने उत्तर दिया। 

वापस घर आकर आप इंटरनेट पर कुछ सर्च कर रहे हैं और गूगल सर्च इंजन वही प्र्शन दिखा रहा है? मगर, ये क्या उत्तर देते वक़्त घपला कर रहा है? ऐसा क्या खास होगा उसमें?

ऐसे ही बहुत बार यूट्यूब पर भी हुआ होगा? आप इस घर से उस घर जा रहे हैं। बच्चे ने कुछ खाने की फरमाईश की है। आपने आकर अपना काम करने के लिए यूट्यूब खोला और ये क्या? यूट्यूब के शुरू के कुछ विडियो वही खाने की रेसिपी दिखा रहे हैं। 

ऊप्पर के दोनों ही केसों में मोबाइल उस वक़्त किसी के भी पास नहीं था। फिर?

आसपास तारें, खंबे, गाड़ियाँ, मीटर और भी कितना कुछ होगा? सिर्फ गवर्नमेंट्स या लॉ इंफोरसेनमेंट एजेन्सियाँ ही नहीं, गूगल और यूट्यूब जैसे सर्च इंजन भी आप पर हर वक़्त, हर जगह निगरानी रखते हैं। और बिना पूछे उत्तर भी देते हैं। और जहाँ आप कुछ पूछना या जानना चाहें, वहाँ कभी-कभी छिपाने की कोशिश भी करते हैं? रौचक? इससे आगे भी बहुत कुछ है।                

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