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Saturday, May 24, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 10

डोमेश्वर (D   -omeshwar?) 

Shows and Theatrics? Even Defence Theatre and Theatrics? 

डूम आ रहे हैं? 

Veterans?

और भी कितनी ही तरह के नाम दिए जा सकते हैं? रोमा, यूरोप? गड्डे लुहार, उत्तर भारत? ज्यादातर, समाज के आज के युग से दूर रहने वाले कबीले या लोग?       

और भी कितनी ही तरह के ईश्वर या भगवान या देवी-देवता? जितने इंसान, उतनी ही तरह के भगवान या देवी-देवता? जैसे भगवान और देवी-देवता घड़ना एक कला है, Art and Craft है। 

वैसे ही, और शायद उतनी ही तरह के भूत और भय पैदा करने के तरीके? किसी भी आम इंसान, परिवार या समाज के किसी हिस्से को विचलित करने के लिए? कुछ ना होने देने के लिए या कुछ खास करने या करवाने के लिए? या शायद राक्षस, डायन, विच जैसी wichhunting के लिए?  

Witchhunting? क्या बला है ये?

जिस इंसान को राजनीती, तथ्यों से काबू नहीं कर पाती, वहाँ Character Assassination और Witchhunting का प्रयोग होता है। यहाँ लिंगभेद भी नहीं होता। ये किसी भी लिंग के खिलाफ हो सकता है। या कहो की होता आया है। जितना बड़ा दॉँव लगा होता है, उतने ही ज्यादा घिनौने और बेहुदा तौर-तरीकों का प्रयोग होता है।

और ये सब करने के लिए राजनीती, कैसे और किस तरह के लोगों का प्रयोग या दुरुपयोग करते हैं?

शायद खुद आपका? आपके अपनों का या आसपास वालों का भी? ऐसे लोगों का जिनके अपने कोई निहित स्वार्थ हों? या शायद जो आपसे किसी भी तरह की चिढ़ या जलन रखते हों? या शायद जो किसी भी तरह की असुरक्षा की भावना से ग्रषित हों? जिन्हें खुद अपना महत्व या वैल्यू ना पता हो? ऐसे ही लोग, दुसरों को गिराने का काम करते हैं? क्यूँकि, उनके पास कुछ अच्छा देने के लिए होता ही नहीं? या शायद, उन्हें ऐसा लगता है? इसीलिए, असुरक्षा की भावना लिखा है। ऐसे लोग, जिन्हे खुद का महत्व न पता हो। ऐसे लोगों की असली दिक्कत आप नहीं हैं। खुद उनकी अपनी कोई समस्या, या कमी है शायद?  

जब यूनिवर्सिटी थी, तो लगता था की कुर्सियों की लड़ाई है, जिसमें ऐसे लोग भी झाड़ की तरह पिस रहे हैं, जिन्हे ऐसी-ऐसी कुर्सियों से कोई लगाव नहीं है। गाँव में आसपास के रोज-रोज के भद्दे और बेहूदा ड्रामे देखे, तो समझ आया, की ये कौन-सी कुर्सियों की लड़ाई है? यहाँ तो लोगों के पास, आम-सी सुविधाएँ तक नहीं? ऐसे-ऐसे ड्रामे, जो आदमियों को खा जाएँ? जिस किसी से ये राजनीतिक पार्टियाँ, ये सब ड्रामे करवाएँ, उन्हीं को या उनके अपनों को खा जाएँ? 

कोरोना काल, एक ऐसा दौर था, जहाँ मौतें नहीं, हत्याएँ थी। सिर्फ सत्ता द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों के सिर्फ कुछ लोगों की मिलीभगत द्वारा? दुनियाँ भर के मीडिया ने, या कहो की मीडिया कल्चर ने उसमें बहुत जबरदस्त तड़का लगाया। 

उसके बाद भाभी की मौत के बाद के ड्रामे? कई लोग तो आसपास चलते-फिरते शैतान या डायन जैसे नज़र आ रहे थे। उन बेचारों को शायद यही नहीं समझ आया, की वो बक क्या रहे थे? किसी इंसान के दुनियाँ से ही जाने के बाद, उसकी witchhunting? ऐसे क्या स्वार्थ थे, इन लोगों के? अब पूरे हो गए क्या वो स्वार्थ? Psychological manipulations at extreme जैसे? और कहीं पढ़ने-सुनने को मिला, की इसी को Psychological Warfare कहते हैं। यहाँ कोई असुरक्षा की भावना से ग्रषित इंसान, सामने वाले का किसी भी हद तक नुकसान कर सकता है। आम लोगों की छोटी-छोटी सी असुरक्षा की भावनाओं का दुहन करती, राजनीतिक पार्टियों की बड़ी-बड़ी कुर्सियों की लड़ाईयाँ? क्या का क्या बना देती है?

ये सब यहीं नहीं रुका। आसपड़ोस में भी फैला। वो भी ऐसे की बड़े-बड़े लोग, आत्महत्याएँ कैसे होती हैं या की जाती हैं, ये बता रहे हों? वो भी डॉक्युमेंटेड जैसे? कौन-सी दुनियाँ है ये? जो स्कूल के बच्चे या बच्चियों तक को ना बक्से? सिर्फ राजनीतिक पार्टियों की कुर्सियों की महत्वकाँक्षाओं की वजह से, या शायद बड़ी-बड़ी कंपनियों के बाज़ारवाद की मारकाट की वजह से?  

ऐसे अंजान अज्ञान लोगों को कौन बचा सकता है? क्यूँकि, सारी दुनियाँ तो कुर्सियों या बाजारवाद की दौड़ में नहीं है? संसार का सिर्फ कुछ परसेंट हिस्सा है। और वही मानव रोबॉट घड़ रहा है, कहीं किसी नाम पर, तो कहीं किसी नाम पर। 

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