हर रोज यहाँ पे कुछ न कुछ घटता ही रहता है। कुछ नौटँकी, कुछ ड्रामे, कल्टेशवर (cult-eshwar?) टाइप? क्या है ये कल्टेशवर? या इस तरह के ड्रामे या नौटंकियाँ? आम लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी के अहम हिस्से जैसे? रोज-रोज उनकी ज़िंदगियों में जो होता है, वो सब।
मैंने नौकरी से रिजाइन किया ही था, और घर आना-जाना थोड़ा बढ़ गया था। यूनिवर्सिटी में रेगुलर हाउस हेल्प्स को मैं हटा चुकी थी। और ज्यादातर वीकेंड्स पर ही लेबर को बाहर से लेकर आती थी। तो ज्यादातर वीकेंड्स पर, अलग-अलग लेबर होता था। किसी को भी घर में एंट्री से पहले ही, उसके बारे में थोड़ा-बहुत जानकारी लेना पहला काम होता था। ये जानकारी लेना, सिस्टम के कण्ट्रोल चैक पॉइंट्स को समझने में बड़ा मददगार रहा। कौन, कहाँ से है? क्या नाम है? घर में कौन-कौन हैं? रोहतक में कहाँ रहते हैं और कब से रहते हैं? किस तारीख को कौन लेबर आपको मिलेगा और कहाँ से मिलेगा? कहाँ का होगा? उसका नाम, पता क्या होगा? उसके घर पर कौन-कौन होगा? वो कितने पैसे माँगेगा और कैसा काम करेगा; तक जैसे कहीं तय हो रहा हो? और हाँ, किस दिन या तारीख को आपको लेबर नहीं मिलेगा? इतना कुछ कैसे कोई तय कर सकता है? शुरु-शुरु के कुछ महीने तो जैसे, बड़े ही अजीब लगे। और जाने कितने ही प्रश्न दे गए।
ज्यादा घर आने-जाने ने, यूँ लगा, जैसे इस समस्या को थोड़ा कम दिया। यहाँ पे जो काम करने वाली आती थी, उनसे बात की और उन्होंने हफ़्ते, दो हफ़्ते में एक दो, बार करने के लिए हाँ कर दिया। ये लोग मेरे लिए नए थे। जो बचपन में इन घरों में काम करने आते थे, ये वो नहीं थे। खैर। मेरा काम हो रहा था। और मुझे क्या चाहिए? मगर कुछ ही वक़्त बाद, यहाँ भी आना-कानी शुरु हो गई। काम करने वालों की अपने-अपने घरों की समस्याएँ। थोड़ा बहुत जब उनके बारे में जाना तो लगा, ये तो कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा? गाँव के लोगों की समस्याएँ, अक्सर ज्यादा ही होती है? और थोड़ी अटपटी भी? मगर वो किसी सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों से भी अवगत करा सकती हैं क्या? तब तक ये cult वाली टर्मिनोलॉजी या ये सब होता क्या है, यही नहीं पता था।
शिव सोलाह?
या हनुमान चालीसा?
संतोषी माँ?
या शेरा वाली माँ?
माता धोकन जाऊँ सूँ?
या झाड़ियाँ की धोक?
साधारण से लोगों की साधारण-सी ज़िंदगियाँ? या ऐसे-ऐसे सिस्टम की चपेट में ज़िंदगियाँ? ऐसे-ऐसे सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों की देन?
बीमारियाँ?
भूत कहानियाँ?
मौतें?
अनाथ बच्चे?
एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेड की हुई औरतें?
सिमित ज्ञान और सिमित संसाधन?
और इस सबके बीच या कहो की इस सबको बनाने वाले सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों का ऐसे-ऐसे अंजान, अज्ञान लोगों का शोषण?
और जाने क्यों, इस सबने मुझे फिर से यूनिवर्सिटी के H #16, Type-3 वाले स्टोर की याद दिला दी। "मैडम, ये स्टोर मैं साफ़ नहीं करुँगी।"
मगर क्यों? पीछे पढ़ा होगा आपने कहीं, पोस्ट में?
No comments:
Post a Comment