मैं जब घर आई तो मेरे पास ढंग की रहने या पढ़ने-लिखने की जगह नहीं थी। इतने सालों खुले और ठीक-ठाक से (युनिवेर्सिटी) घरों में रहकर, एक कमरे या एक छोटे-से मकान में सिमट जाना, घुटन जैसा-सा था। अब अपना घर है और बचपन वहाँ बिता है, तो आदत तो वक़्त के साथ पड़ जाएगी। मगर, अब आप वहाँ रहोगे क्यों? किसलिए? होना तो ये चाहिए की माँ को भी वहाँ से अपने साथ कहीं ढंग की जगह ले जाओ। भाईयों को भी किसी ढंग के काम लगाओ। मगर आप जो सोचते हैं, जरुरी नहीं वो किसी आसपास को या वहाँ की राजनीती को भी सूट कर रहा हो। हुआ भी वही। जो कुछ करने की सोचो, उसी में आगे से आगे रोड़े। वो भी अपनों या आसपास द्वारा ही? या ये सब भी कहीं और से ही रिमोट कण्ट्रोल हो रहे हैं? मानव रोबॉटिकरण, यही सब देख, सुन और समझकर, पता चलने लगा था। आम लोगों में खोट नहीं है। गाँव का या कम पढ़ालिखा या आज की टेक्नोलॉजी के प्रयोग और दुरुपयोग से अंजान इंसान, आज भी पढ़े लिखे और कढ़े शिकारियों से कहीं ज्यादा भोला है। ये तो Conflict of Interest की राजनीती की पैदा की, चारों तरफ चोट हैं। ऐसे भी और वैसे भी।
मुझे कम जगह में या भीड़-भाड़ वाली जगह रहना पसंद ही नहीं। तो सबसे पहले गाँव से थोड़ा दूर जो ज़मीन है, वहाँ एक रुम सैट बनाने का इरादा था। मगर, वो सबने घर पर ये कहकर मना कर दिया, की रहने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है। ये स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर बनाने का प्लॉन भी, यहीं घर से निकल कर आया था। क्यूँकि, मुझे किसी स्कूल जैसी जगह के इतने पास रहना भी पसंद नहीं। शोर और कुछ भीड़ तो वहाँ भी होगी। खैर। कई और सहुलियत हैं, जो उस ज़मीन को ज्यादा सही बता रही थी। वहाँ पानी मीठा है, जो यहाँ के गाँवों की खास दिक्कत है। और इसीलिए ऐसी ज़मीनो के रेट भी ज्यादा हैं। गाँव के बिल्कुल साथ लगती है। आसपास घर बन चुके हैं। स्कूल तो है ही। हाईवे पर नहीं है। तो रहने के हिसाब से ज्यादा सही है। आसपास चारों तरफ खेत हैं, जिन्हें खुला पसंद है। लो जी, वहाँ की हाँ क्या की, आदमखोरों के जाले फ़ैल गए। उसके बाद तो जो कुछ हुआ, पीछे पोस्ट्स में लिखा ही जा चुका।
स्कूल वालों को क्या दिक्कत थी की वहाँ कुछ ऐसा ना बनने दें? भाभी स्कूल का प्लान बना चुके थे। अब जो स्कूल को बिज़नेस बोलते हैं और बिज़नेस की ही तरह चलाते हैं, उनके धंधे पर असर नहीं पड़ेगा? और वो तो पिछले 20-22 सालों में कितनी ही बार वो ज़मीन माँग चुके थे। और हर बार उन्हें मना किया जा चुका था। अब कोई उस ज़मीन पर अपना कुछ बनाने की भी सोचे, इतना बर्दास्त कैसे हो? नहीं तो चाचा, ताऊओं का होना तो ये चाहिए, की तुम भी बसो और आगे बढ़ो? आजकल ऐसे चाचे-ताऊ कहाँ हैं? होंगे कहीं, मगर यहाँ? यहाँ तो कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। वो भी बड़ी ही बेशर्मी से। एक दिन जुबाँ ऐसे चलेगी और अगले दिन कुछ और ही रचते नज़र आएँगे? कर दो साफ़ तीनों को और सिर्फ यही ज़मीन क्यों, बाकी सब भी तुम्हारा। लड़की का क्या है, वो तो वैसे भी किसी और घर जाती हैं। उनके अपने घर कहाँ होते हैं? कहीं भी नहीं।
अब मुझे तो वहीँ बनाना है, चाहे रहना कहीं भी हो। देखते हैं आगे-आगे, की ये लालची और हरामी भतीजा और इसके पीछे वाली सुरँगे और क्या-क्या रचती हैं? सुन बेटे, सबके बीच सुन, तूने धोखाधड़ी से उस ज़मीन पर अपना नाम भी लिखा लिया हो (खास वाली फोटो खिंचा ली हो), तो भी वो तेरी नहीं।
Clickbait Business? हाँ, यही हाल रहे तो जेल तेरी और तेरे साथ-साथ, ये सब रचने वालों की जरुर होगी। कोर्ट क्या कहते हैं, वैसे इसमें? उनके पास तो आजकल सब सबूत होते हैं।
No comments:
Post a Comment