सुना है,
एक कदम US में है
और एक यूरोप में।
ऑनलाइन।
बाकी, बैठी अभी तक अपने घर ही हूँ।
है ना मजेदार दुनियाँ?
वो रस्ते (ऑफर?) भी दिखा रहे हैं
यहाँ भी, यहाँ भी, और यहाँ भी।
और खतरे भी बता रहे हैं (खतरे?)
खतरे? भर्मित करने को?
यहीं पे बाँधे रखने को?
यहाँ भी, यहाँ भी, और यहाँ भी?
मगर ये ऑफर ऑनलाइन नहीं दे रहे
जबकि, ऐसे हालात में,
वो ऑनलाइन कहीं बेहतर कर सकती है।
और कहीं भी रह सकती है।
शायद, उन्हें ऐसा रास नहीं आ रहा?
कह रहे हों जैसे --
निकलो, घर से निकलो।
और कब तक पड़े रहोगे वहाँ?
है ना अजीब (ऑनलाइन) दुनियाँ?
एक बुआ सिर पर मेरे,
जाने मैं उसकी बुआ हूँ,
या वो मेरी?
जितनी बड़ी हो रही है,
उतनी ही बड़ी तानाशाह।
इस घर का छोटा-सा हिटलर जैसे।
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