तुम अपने घर का स्टोर क्यों नहीं साफ़ कर लेते? उनमें सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों द्वारा बिठाए नुक्सान पहुँचाने वाले भूतों से मुक्ती क्यों नहीं ले लेते?
और स्टोर ही क्यों? बाकी घर में भी साफ-सफाई करते रहने में क्या बुराई है? दिवाली या त्योहारों पे जो खास-सफाई का चलन है, उसके पीछे शायद ये एक अहम पॉइंट है। दिवाली या त्योहारों के इंतजार की बजाय, उसे हफ़्ते या महीने भर में होने वाली सफाई क्यों नहीं बना लेते? सफाई, जो सिर्फ आपके घर तक सिमित ना रहकर, आसपास का भी ध्यान रखती हो? सफाई ना सिर्फ़ आँखों और मन को शुकुन देती है, बल्की, समृद्धि का भी प्रतीक है। ये सेहत, पैसा और सुख-शांती को आकर्षित करती है। या कहो की सफाई और सेहत, पैसा और सुख-शांती एक दूसरे के प्रतीक हैं?
सफाई के साथ-साथ, खुले-खुले घर और खुली-खुली जगहें स्वास्थ्य का परिचायक हैं। ऐसी जगहें या घर ना सिर्फ गर्मी-सर्दी को संतुलित रखती है, बल्की, प्रदूषण को भी कम करने का काम करती हैं। कैसे?
एक हज़ार गज में 10 घर और कितने आदमी? कितना पानी, हवा या ज़मीन का प्रयोग या दुरुपयोग? जहाँ पानी नहीं आता या ज़मीन का पानी कड़वा है, वहाँ ये समस्या और भी ज्यादा है। हर घर में तकरीबन वहीँ पे बाथरुम, लैट्रिन और वहीँ पर हैंडपंप या समर्सिबल? गोबर और केमिकल्स भी वहीँ जा रहे हैं और प्रयोग करने के लिए पानी भी वहीँ से लिया जा रहा है?
दूसरी तरफ 1000 गज में एक या दो घर और कितने आदमी? बाथरुम, लैट्रिन, हैंडपंप या समर्सिबल कितने आसपास या दूर? या शायद पानी की सप्लाई भी बाहर से ठीक ठाक आ रही हो? हैंडपंप या समर्सिबल जैसी कोई बला ही ना हो?
एक तरफ, अंदर-बाहर दोनों खुले-खुले आँगन और बना हुआ घर। और दूसरी तरफ, खुले घर आँगन को जैसे छोटे-छोटे खामखाँ से कैबिन में बाँट दिया हो? हवा बेचारी कहाँ, कितनी आर-पार होगी? तो गर्मी या सर्दी के क्या हाल होंगे वहाँ?
खुले आँगन में ज़मीन में पेड़ लगाना? या आँगन को भी कैबिन-सा बना, पेड़ों को हटा, छोटे-मोटे एक आध गमलों को जगह? लाभदायक पेड़ों की बजाय खामखाँ से या एलर्जी वाले पेड़ों को जगह? कहीं ठीक-ठाक जगहों के होते हुए भी, तुम्हारे घरों के हुलिए तो नहीं बिगाड़ दिए सिस्टम के इन घड़ने वालों ने? और तुम्हें लग रहा है, की सब खुद तुमने किया है?
सुना है, की घर में टूटे-फूटे सामान को रखना अशुभ माना जाता था? या तो उसे चलता कर नया ले लिया जाता था या काम का हो, तो ठीक कर लिया जाता था? या देने लायक हो, तो किसी को दान? फिर वो चाहे घर के बर्तन-भाँड़े हों या पहनने या घर में प्रयोग होने वाले किसी भी तरह के कपड़े? ऐसे ही शायद घर की टूट-फूट या रख-रखाव का होता होगा? दिवाली जैसे त्यौहार पर साफ़-सफाई, शायद, इसीलिए ईजाद की गई होगी की ऐसे-ऐसे सामान से भी मुक्ती पाई जा सके? रंग रोगन या थोड़ी बहुत रौनक लाई जा सके? ऐसे सामान से मुक्ती। आप इंसानो से ना समझ बैठना। नहीं तो कहीं कोई बुजुर्ग या बिमार इंसान ये भी कह सकता है, "हाँ, हम भी काम-धाम के नहीं रहे, कर दो चलते" :)
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