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Tuesday, May 6, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 3

नई सीरीज शुरु हो गई? चल तो पहले से रही है, थोड़ा पास से समझ आनी अब शुरु हुई है? पीछे की कई सारी पोस्ट को भी धीरे धीरे लगाएँगे इस सीरीज में। अभी नंबरिंग यहीं से शुरु कर दें?  

जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा?

और? 

और लूटपाट और हत्याएँ भी?

सुना आज जमीनखोर प्रधान और क्रिकेटबाज़ भतीजा, जमीन नपवा रहे थे?

किससे?

और किसे बुलाया?

ऐसे-ऐसे गिरे हुए लोग उन्हें ही बुलाते हैं, जिनसे वो आसानी से निपट सकें? भोले-भाले, कम-पढ़े लिखे लोग? जो अक्सर ऐसे-ऐसे लोगों की चालों में बड़ी ही आसानी से आ जाते हैं? 

नप गई ज़मीन? किसकी ज़मीन? उससे पहले ये तो तय हो? 

और कौन सी ज़मीन? आगे वाली या पीछे वाली? 

आज इस ज़मीनखोर प्रधान के पास इतना वक़्त कैसे निकला? ऐसी भी क्या जल्दी, भला? अरे, आपसे तो कोई न कोई मिलने आया रहता है, शायद? नहीं? स्कूल में ही इतने वयस्त हैं? फिर ये, बलदेव सिंह वाली ज़मीन की नापा-तोली से आपका क्या लेना-देना? वहाँ कैसे घुसे हुए हैं आप, चाचा और भतीजा?  

तो? जो कभी-कभी पीता (पीटा?) है? उसकी ज़मीन क्रिकेटर भतीजे ने हड़प ली? इतनी लताड़ के बावजूद, मान लेना चाहिए की औकात तो बड़ी है, बहशर्मी की भतीजे? अब चाचा जब जमीन नपवाने में साथ है, तो ये कैसे हो सकता है, की हडपम-हडपाई में साथ ना हो? कितने के लिए डूब गए? दो कनाल के लिए?

अरे नहीं किस्सा इससे आगे है? 

अजय की तो ऐसे भी और वैसे भी है ही आपकी? उससे हमें क्या लेना-देना? सही बात ना? कौन से साल में द्वार लग गए थे उधर? 

बेबे CCL दे दी के?

मिल भी ली?

अब ये कहाँ से आ गया?

चलो ABCD में नहीं उलझते? ना ही कंप्यूटर वाली मुत्तो-हागो में? तो Query क्या थी? Query ये है जी, की आम-आदमी को कितनी तरह और कैसे-कैसे लूटा जा सकता है? 

अगर कोई आम इंसान स्कूल से तंग आकर, टीचर की नौकरी छोड़कर, अपना खुद का स्कूल खोलना चाहे, तो गड़बड़ घोटाला? उस टीचर को ही ख़त्म कर दो? कितने ही तो तरीके हैं?

अब आम इंसान के ये कहाँ समझ आना? इल्जाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करो? उसके बाद तो सबकुछ ही तो तुम्हारा? कैसी-कैसी ऑक्सीजन कैसे-कैसे ख़त्म होती हैं? और ज़मीनी-धंधे वाले बेज़मीर लोग, कैसे-कैसे घर खा जाते हैं?  

ओह हो! उसके बाद तो लड़की को भी कहीं और ही भेजना था ना? सामान्तर घड़ाईयों के hype ऐसे ही घड़े जाते हैं? बुआ आ गई बीच में? बड़ा रोड़ा? नहीं, बिलकुल छोटा-सा? खिसका दो? कोशिश तो पूरी करली? नहीं अभी ख़त्म नहीं हुई हैं कोशिशें, अभी ज़ारी हैं? ये ज़मीनखोरी उसी कड़ी का एक हिस्सा है। अब क्या करेगी? जो आप चाहेंगे  वही करेगी? और दीदी कब जा रहे हो?

जाना था क्या कहीं मुझे? मुझे तो लगा ये जो ज़मीन की नापतोल की कहानी रची जा रही है, यहीं कुछ वक़्त रहना था?       

और बे बे? जग के, के हाल-चाल? 

जग से जग्गा या जगतजननी? या? जग्गा धरी? या वो दूध वाला जग, और उसकी नौटंकियाँ?  

चल छोड़। लोगों को नहीं मालूम, कैसे-कैसे ड्रामे रचे लोगों ने? इधर वालों ने भी, और उधर वालों ने भी?   

तो नप ली ज़मीन भतीजे? ओह हो! ज़मीन-खोर प्रधान को कैसे भूल रहे हो? 

तो यहाँ अजय की तरफ निकली थोड़ी-सी ज़मीन? 


यही Query थी? मुतो-हागो प्रधानों की? 

क्यों कम पढ़े-लिखे और आज की तेज-तर्रार टेक्नोलॉजी वाली दुनियाँ से अंजान, लोगों की हर तरह से ऐसी-तैसी कर रखी है?

बहन का भी कुछ तो हिस्सा होगा? छोड़ो। बहनो-बेटियों का कुछ नहीं होता यहाँ, उन्हें इधर-उधर फँसाने की कोशिश करने के सिवाय?    

तो यहाँ प्र्शन इतना-सा तो वाजिब है, की जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा? 

ये ज़मीनखोर लोग फिर किसकी ज़मीन और क्यों अपने नाम करवा रहे हैं? ऐसा ही कुछ बोला ना भतीजे ने? बुआ वो तो अब मेरे नाम हो ली?   

क्यूँकि, हमारी गिरी हुई राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे-ऐसे ज़मीनखोरों के साथ होती हैं? अब आप गिरे हुए हैं या नहीं, और गिरे हुए हैं तो कितने वो आप जाने? 

आप तो शायद नहीं गिरे हुए?  

और आप बिलकुल नहीं?

और आप तो बिलकुल ही नहीं?

हाँ तो आप पे तो ये प्र्शन ही लागू नहीं होता?   

जिसकी ज़मीन हड़पने की कोशिशें हो रही हैं, उसकी बहन की तरफ से, अगर कोई कोर्ट ज़िंदा हो, तो ये धोखाधड़ी का केस दायर कर लें, इन ज़मीनखोर चाचा-भतीजे के खिलाफ। 

किसी औरत की मौत का मतलब यहाँ, ज़मीन का धंधा है? वो भी किसके द्वारा? एजुकेशनल सोसाइटी के नाम पर, बिना हिसाब-किताब की ज़मीन-जायदाद और पैसा इक्क्ठ्ठा करने वालों द्वारा?  

ऐसे-ऐसे संस्थानों पर करवाई क्यों नहीं हो, जिनके टीचर्स को नाममात्र मिलता है और उन संस्थाओं के लोग तकरीबन हर साल, एक नई बस खरीद लेते हैं? 8-10 किले एक साल में, एक ही गाँव में खरीद लेते हैं? इस शहर, उस शहर उनके पॉश इलाकों में मकान और दूकान होते हैं? सुना है उनके बच्चों की पढ़ाई के नाम पर भी अच्छा-खासा खर्च होता है? वो भी एक ऐसा स्कूल, जो अपने आपको गरीब और दानी बताता है? सच है क्या ये?   

और एक टीचर अपनी पूरी ज़िंदगी में एक ढंग का मकान बनाने लायक नहीं होता? वो अगर अपना कुछ करना चाहे, तो उसे खा जाते हैं? घौटालों के संस्थान हैं ये, या शिक्षण संस्थान?       

Conflict of Interest की राजनीती क्या कुछ करती है और करवाती है, लोगों से?     

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