घरों से प्लॉट की तरफ, वहाँ पे लेट (तालाब) की ज़मीन, आसपास लगते लोगों द्वारा हड़पने की कहानी और यूक्रेन युद्ध? अज़ीब किस्से-कहानी हैं ना? और उससे भी ज्यादा अज़ीब, संसार के किसी और कौने में, ऐसे-ऐसे युद्धों की सामान्तर घढ़ाईयाँ?
यहाँ चाचा के लड़के का अहम रोल रहा? या जो राजनीतिक सुरँगे, उससे वो सब करवा रही थी, उनका? शायद दोनों का ही? ये मोहरा? और वो अहम खिलाड़ी? जो दूर, बहुत दूर बैठे, किसी रिमोट-सा सब संभाल लेते हैं? और ये सब करने के लिए उसे पैसे देने वाले का?
अगर कोई इंसान ये कहे, की मैं कुछ भी करुँ, मुझे मेरे घर वाले बचा लेंगे या फिर भी हमेशा साथ रहेंगे, तो गड़बड़ उस घर में या उन अपनों में भी है? या शायद, वो ऐसी हेकड़ी, सिर्फ खुद को बचाने के लिए कर रहा है? या शायद उस जगह का या ऐसी-ऐसी जगहों के माहौल ही ऐसे होते हैं? उन्हें ना खुद अपनी काबिलियत पता होती और ना उन्हें बताने वाले? उन्हें ऐसे रस्ते ही नहीं दिखाए जाते, जहाँ जितनी मेहनत ऐसे-ऐसे तिकड़म कर कुछ हड़पने की बजाय, शांति और ईमानदारी से कमाने में मिलता है? सिर्फ राजनीतिक पार्टियाँ या उनकी सुरँगे ही नहीं, बल्की, खुद अपने, कहीं न कहीं, गलत करने की तरफ धकेलने में सहायक-सी भुमिका निभा रहे होते हैं? अब वो छोटा-मोटा कुछ गलत करने से नहीं रोक रहे या उसमें सहायक बन रहे हैं, तो आगे जब वो बड़ा कुछ गलत करेगा, तब रोकेंगे क्या? या चाहकर भी रोक पाएँगे?
अब प्लॉट की ज़मीन आगे बढ़ाई है, रेत डाल-डाल कर। उसमें कुछ तो पैसे लगे ही होंगे? और थोड़ा-बहुत रिस्क और उलझन भी उठाई है? तो वो पैसे निकलेँगे कैसे और कहाँ से? ये बताने का काम भी राजनीतिक पार्टीयों की सुरँगे ही करेंगी? वो आपको आगे से आगे, छोटे-मोटे लालच देते चलते हैं? और आप लेते चलते हैं? बिना दूरगामी परिणाम जाने या समझे? खेल तो सब वही राजनीतिक पार्टियाँ और उनकी सुरँगे रच रही हैं ना? फाइल यूनिवर्सिटी में चलती हैं और ज्यादा बड़ी मार के लिए, सामान्तर घढ़ाईयाँ बढे-चढ़े रुप में, गाँवों में या ऐसी सी जगहों पर घड़ी जाती हैं? कुछ गलत तो नहीं कहा? या सब मैच कर रहा है? कब यूनिवर्सिटी में क्या हुआ या कैसी फाइल चली या ऑफिसियल ईमेल और कब गाँव में क्या कुछ घड़ा गया? इन कम पढ़े-लिखे बेरोजगारों को तो ऐसा कुछ अंदाजा तक नहीं होगा? खुद मुझे ही नहीं पता था। जब तक ये सब गाँव आकर आसपास देखना, समझना और झेलना शुरु नहीं किया।
पहले यहाँ बच्चों के या युवाओं के ख़िलाफ़ जितने भी केस हुए, वो भी ऐसे ही हैं? अब ज्यादा पहले की फाइल्स का रिकॉर्ड तो मेरे पास नहीं, क्यूँकि, तब तक खुद मुझे नहीं मालूम था की ये सिस्टम और राजनीती काम कैसे कर रहे हैं? या आम लोगों की ज़िंदगियों को कैसे-कैसे प्रभावित कर रहे है? हाँ। जो कुछ चल रहा था, उसके किसी न किसी रुप में ऑफिसियल रिकॉर्ड हैं। और वो बड़ी आसानी-से मैच किए जा सकते हैं?
अब पैसे उघाने हैं और उसी में थोड़े-बहुत कमाने को भी मिल जाएँगे? तो उन्हीं राजनितिक सुरँगों का अगला दाँव? स्कूल पे पास वाली खेत की ज़मीन? उसके लिए फिर से उनके काम कौन आएगा? सोचो?
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