Friday, September 19, 2025

Report card? 1

Report card?

Hustle culture?

Balanced culture?

Or sometimes?


Strange things happen in life?

Wednesday, September 17, 2025

Computer Interactions, Human and Humanoid? 4

 मान लो आपने कहीं लिखा या कहा की इस विषय पर जानकारी चाहिए। 

पैसा तो बहुत कमा लेते हैं, ठीक-ठाक गुजारे लायक, 

मगर, मेरे जैसे निक्क्मों के पास वो टिकता नहीं।  

और आपको कोई विडियो देखकर लगता है, अरे वाह !

ये सलाह तो ठीक-ठाक लग रही है।? 

बिलकुल Personalized Medicine के जैसी सी? 

जैसे?

ये? 


और ये क्या? 

वो, विडियो कहाँ गया?

मैं जब उसे देख रही थी, तभी कुछ गड़बड़ घौटाला-सा लग रहा था। वैसा सा ही कोई मैसेज, जैसा वो "You are not alone. iCall on this number  ..... "

ये मैसेज, अबकी बार आपको किसी वेबसाइट पर ले जाता है, जो ना सिर्फ बहुत ज्यादा biased है, बल्की cybersecurity के नाम पर direct-indirect आपको भी target कर रही है। अब ये जिसका विडियो है, वो इंसान या चैनल और वो मैसेज क्या एक ही हैं? या अलग-अलग? ऑनलाइन दुनियाँ के हेरफेर?

वैसे ये इस तरह के पर्सनलाइज्ड मैडिसन जैसे से ज्ञान, कई चैनल्स पर चलते मिलेंगे। जिनमें कुछ आपको अपने काम का लगेगा और कुछ नहीं नहीं भी। और बहुत कुछ टारगेटेड भी। मगर, ऐसे पहले कोई विडियो दिखाना और फिर उस लिंक को मेरे ही लैपटॉप की हिस्ट्री तक से उड़ा देना, दूर, बहुत दूर बैठे? ये थोड़ा ज्यादा ही हो गया। कम से कम हिस्ट्री को तो हिस्ट्री ही रहने दो। ये जिसका लैपटॉप है उसपे छोड़ दो, की वो कब तक कोई हिस्ट्री रखे और कब डिलीट करे।  

ये तो वही वाला सिंथैटिक जहाँ नहीं हो गया की, "मैं चाहु ये यादास्त लाऊँ और ये यादास्त मिटाऊँ, मेरी मर्जी?" Human Robotics में आपका स्वागत है।    

Computer Interactions, Human and Humanoid? 3

 पर्सनलाइज्ड मैडिसन क्या है? 

ये ऐसे है, जैसे किसी टेलर का आपका सूट सिलना। आपके स्टाइल और सुविधानुसार।  

ठीक ऐसे, जैसे आपका घर डिज़ाइन करना, आपकी जरुरत और सुविधानुसार। 

और आपकी औकात के अनुसार भी? 

जैसे?

आ चलके तुम्हें मैं ले के चलूँ, एक ऐसे जहाँ में, 

जहाँ कोई बेघर ना हो?

इत्ता सा घर तो हर किसी का अधिकार हो?

जैसे टेस्ला का ये गाड़ीनुमा घर  






रौचक है ना?
मगर यहाँ एक लफड़ा तो हो सकता है, इनका एड्रेस क्या होगा?
क्या वो एड्रेस आपकी किसी ऐसी ID से जुड़ा होगा, जो पासपोर्ट के लिए भी मान्य हो?

ये भविष्य के movable home या आपके घर के लॉन का एक अनोखा-सा कोना तो जरूर हो सकते हैं?
जब इधर उधर कहीं घूमने जाना हो, तो गाडी से जोड़ो और चल दो। 
और गरीबों के ठिकाने भी। 

Computer Interactions, Human and Humanoid? 2

Silly Co?

In Silico?

In Silico Analysis?

and Personalized Medicine?









Computer Interactions, Human and Humanoid? 1

 Human Computer Interactions and ? Inbetween connecting links?

आदमी, मशीन और इनके बीच के तत्व (खुरापाती?)

या आदमी-आदमी और इनके बीच के तत्व (मशीनें) 

या?

और भी कई तरह के कॉम्बिनेशन हो सकते हैं?    

चलो कुछ-एक, ईधर-उधर के उदाहरणों से जानने की कोशिश करें? 

मान लो आपको कोई दिक्कत है या आपका कोई जानबूझकर कहीं कोई काम अटका रहा है या अटका रहे हैं? आपके पास उसके या उनके खिलाफ सबूत हैं, खुद उनके दिए हुए? मान लो ऑफिसियल मेल्स या नोटिस? आपको उसको जगजाहिर करना है, अपने ब्लॉग पर रखना है या उसकी किताब निकालनी है। निकाल दो, दिक़्क़त क्या है? जिन्होंने गड़बड़ की हुई है, वो इतनी आसानी से ऐसा करने देंगे क्या? वो आपको रोकने की कोशिश करेंगे, जहाँ तक हो सके। ये रोकने की कोशिश कितनी या कितने तरह की होगी ये इस पर निर्भर करता है की ऐसे लोगों का गुनाह या के गुनाह कितने बड़े या संगीन हैं? और उनके खिलाफ सबूत कितने मजबूत हैं?

मान लो आपने सब सबूत इक्क्ठ्ठे कर लिए और उन्हें कोई किताब की सूरत देने की कोशिश कर रहे हैं। वो आपके लैपटॉप या मोबाइल में छुपे बैठे हैं और डाक्यूमेंट्स को या तो उड़ा रहे हैं या उनमें गड़बड़ कर रहे हैं। आप ऐसे-ऐसे उनके कारनामों को पहले भी काफी भुगत चुके हैं। और ऐसे-ऐसे अवरोधों के बावजूद उनके काले कारनामों की फाइल्स ऑनलाइन रख चुके हैं। या किन्हीं सुरक्षित जगह पहुँचा चुके हैं। तो ये फाइल नहीं गई होगी क्या?

अब ये सब रोकना उनके बस की बात ही नहीं। हर बाप का बाप होता है? और हर बॉस का बॉस? तो ये लोग वो सब रोकेंगे, जो उनके बस की बात है। वहाँ भी कितना वश चल पाता है, वो अलग बात है? ऐसे खतरनाक युद्धों में, ऐसे लोग बड़ी मार, इंसानों या ज़िंदगियों पर करते हैं। और इनका सबसे बड़ा भुगतान समाज का सबसे कमजोर वर्ग करता आया है और करता रहेगा। क्यूँकि, वो सबसे आसानी से खिसकाई जाने वाली कड़ी होते हैं। साइकोलॉजी, inbetween links या बिचौलियों की यहाँ हमेशा से अहम भूमिका रही है। जितना ज्यादा ऐसे लोगों को अपने बीच से हटाया जा सके, उतना ही आसान ऐसे-ऐसे लोगों के जालों से बचना होता है।                   

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 28

"पीलिया बाज़ार 

"ए हैप्पी, हैप्पी 

उह्की गाड़ी कड़े सै? आशीष की? 

उह्की गाड़ी मैं बैठ जाईए।"  

ये किसकी गाडी की बात हो रही है? 

आप तो शायद ऐसी किसी गाडी में कभी नहीं बैठे? 

ये गाड़ियों के रहस्य, आम जनता को जैसे समझाए जाते हैं या समझ आते हैं, अक्सर वो वैसे नहीं होते।  

शायद ऐसा कुछ? 

या शायद कुछ वैसा, जहाँ कोई कम पढ़े लिखे वाले कबाड़ी या जुगाड़ी वाले इंसान से, कोई पार्टी पिस्तौल वाली कोई नौटँकी करवाए? 

या फिर शायद, किसी और ऐसे से ही किसी इंसान के नाम पर, कोई और तरह का ड्रामा? 

राजनीतिक पार्टियाँ आपसे ड्रामे भी आपके और आपके आसपास के स्तर के अनुसार ही करवाती हैं? और फिर उनके परिणाम भी, वैसे से ही होते हैं? क्यूँकि, समाज के हर स्तर पर, राजनीतिक पार्टियों के पास, एक जैसे से नाम और बहुत बार एक जैसी सी सूरत वाले भी कई-कई इंसान (कोड) होते हैं। कोई एक आज यहाँ से जायगा, तो वो किसी दूसरे को, कहीं और से रख देंगे। मगर, क्या दुनियाँ से ही जाने वाला वापस आएगा?

इसलिए किसी भी मंच पर सिर्फ कोई नौटंकी करना और सच के हथियारों से खेलना या मार पिटाई या हिँसा के परिणामों के फर्क, ऐसे ही हैं जैसे, जमीन और आसमान का फर्क।  
     
ऐसे ही जैसे, किसी का सिर्फ खुद ही खाना खाना या किसी को खिलाना। और दूसरी तरफ, किसी का किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक शोषण करना। दोनों में ज़मीन और आसमान सा फर्क है। 

Friday, August 15, 2025

Happy Independence Day? झूठा मुठा ही सही

Quality of life and quality of environment or system, एक ही चीज़ हैं। जितना किसी भी सिस्टम के कोढों को और अलग-अलग पार्टियों के किरदारों को समझा जाएगा, उतना ही ज्यादा वहाँ की खामियों या समस्यायों को। जब तक किसी भी सिस्टम को जानने की कोशिश ही नहीं करोगे, तो समाधान कहाँ से निकलेंगे? जब तक किसी भी समस्या को aknowledge तक नहीं करोगे, उसके हल कैसे निकलेंगे? राजनीतिज्ञ जुआ और उस पर बाज़ारवाद का तड़का, आज की दुनियाँ की सबसे बड़ी समस्या है। समाधान, उसको जानने, समझने और जहाँ तक हो सके उसे उजागर करने में है। उसका ख़ात्मा चाहे इतना आसान ना हो, मगर, उसे उधेड़ आम लोगों की जानकारी में रखना, उस तरफ एक कदम जरुर है। 

धन्यवाद उन सब लोगों का जिन्होंने इस घिनौने कोढ़ वाले जुए के सिस्टम से अवगत कराया। जिसकी कुर्बानी, कुछ ने अपनी जान खोकर दी, तो कुछ ने कहीं सलाखों को भुगत कर और कहीं आर्थिक, सामाजिक पड़ताड़ना के रुप में। तो कितनों को ऐसे क्रूर सिस्टम से बचाव का रास्ता सिर्फ और सिर्फ माइग्रेशन नज़र आया। 


मेरा गाँव,  साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ गाँव?  

मेरा मौहल्ला, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ मौहल्ला? 

मेरा शहर, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ शहर? 

मेरा देश, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ देश? 

मेरा संसार, साफ़ सुन्दर 

और स्वस्थ संसार? 

आप एक ऐसे गाँव में हैं, जहाँ की सरपँच भी पढ़ी लिखी है, और जिस गाँव का MLA भी। जी हाँ MLA भी अक्सर इसी गाँव से रहे हैं। अब भी यहीं से हैं। मगर, लगता है या तो वो गाँव रहते ही नहीं या उनका गाँव से लेना देना कम है। खासकर गाँव की कुछ जगहों से। कुछ गलियों में वो सिर्फ मौतों के ऊप्पर कुछ ड्रामों के हिस्सों तक दिखते हैं? उससे ज्यादा नहीं? अब हो सकता है मुझे खबर कम हो, इसलिए प्रश्नचिन्ह है। ये आज आज़ाद दिवस (?) के दिन गाँव की एक गली का सुन्दर स्वस्थ सा द्रश्य है। आप भी देखिए 








ऐसे-ऐसे प्लॉट भी काफी मिल जाएँगे आसपास 

अब जिनके घरों के सामने ये सब है, वो तो यहाँ रहते नहीं, कभी कभार आते हैं।  हमारे सरपंच और MLA की तरह? तो उन्हें इस सबसे क्या लेना देना? फोटो करवाने खास दिनों को आएँगे और सोशल मीडिया के लिए थोड़ी साफ़ सुथरी जगह की फोटो इक्क्ठा कर ले जाएँगे? फिर यहाँ कीड़े, मख्खी, मच्छर, कानखजूरे या साँप कुछ भी पनपो। और ये सब आसपास वाले लोगों के स्वास्थ्य में चार चाँद लगाएँगे? जब तक यहाँ हूँ, तो जो जैसा दिख रहा है वैसा लिख रही हूँ। इससे आगे तो एक लेखक या शिक्षक क्या कर सकता है? लेबर यहाँ मिलेगा नहीं। अजीब बात? माँ वाली बात की कब तक और किस, किस के खाली घरों या प्लॉटों की सफाई करवाती रहोगी? हाँ, अगर कोई लेबर आए या लगाए तो और लगाने वाले सरपँच या MLA के पास, इतने तक पैसे ना हों, तो कम से कम मेरे जैसों से मेरी गली या आसपास ऐसे लोगों से इक्कठा कर लें।  अगर चाहें तो ऐसी सी छोटी मोटी समस्याओं के समाधान बहुत मुश्किल नहीं हैं। 


बुराई नहीं है की आप आजाद दिवस की फोटो चिपकाइये, किसी साफ़ सुथरी जगह से। उसके साथ-साथ अगर ऐसा कहीं भूले भटके ऑनलाइन ही सही नजर आए और ऐसी-ऐसी, छोटी-मोटी समस्याओं के समाधान का मन हो तो गाँव आपका भी है। 
और जरुरी नहीं है की ऐसे से छोटे मोटे काम जो अभी पंच, सरपँच या MLA हैं , वही करवाएँ। अगर आप अपने आपको Socially aware मानते हैं, तो ऐसे से काम तो आप भी कर सकते हैं, जो ये पढ़ रहे हैं और अपना भविष्य कहीं सोशल एक्टिविस्ट या राजनीती में देखते हैं।   
धन्यवाद। 

Tuesday, August 12, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 27

जैसा की पीछे पोस्ट में पढ़ा, माइग्रेशन के कारण अपनी मर्जी से हों या जबरदस्ती, वजहें तक़रीबन वही होती हैं। सुरक्षा, आगे बढ़ने के अवसर और भेदभाव रहित वातावरण या जबरदस्ती कुछ भी थोंपने की कोशिशें। अगर आपमें पोटेंशियल है, तो आप अपने रस्ते खोज ही लेंगे।   

इतने सालों बाद गाँव में वापस आकर रहने के कुछ फायदे भी हुए। उसमें एक चीज़ जो खासकर समझ आई वो ये, की आगे बढ़ते हुए लोग या परिवार, गाँव या उसी शहर में, अपनी अगली पीढ़ी में क्यों नहीं दिखते? आगे बढ़ते हुए लोग या परिवार भला इतना वक़्त एक ही जगह शिथिल कैसे रह सकते हैं? और शायद इसीलिए, इन आगे बढ़ने वाले लोगों में और पीछे रह जाने वाले लोगों में फर्क भी साफ़ नजर आता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे अपने ही घर में भाभी की मौत के बाद नज़र आया। जब माँ और भाई की insecurity का दोहन करते हुए, कुछ लोगों ने उनके दिमाग में भरा की काम वाली चाहिए। काम वाली? या घर वाली? काम वाली वो जो कुछ पैसे के बदले आपके घर के काम करे या घर वाली जो आपके घर और परिवार को आगे बढ़ाए? खैर। वो काम वाली या घर वाली तो आई और आई गई भी हुई। मगर यहाँ के लोगों को आज भी काम वाली ही चाहिए। आसपास कई बुजुर्गों से खासकर जब कुछ विषयों पे बात हुई तो यूँ लगा, ये आज भी किसी और ही सदी में रह रहे हैं। क्यूँकि, ये काम वाली सिर्फ लड़कों को नहीं, बल्की, लड़कियों को भी चाहिए, खासकर नौकरी करने वालों को। भारत में तो खासकर? या शायद काफी कुछ बदल चुका है और तेजी से बदल रहा है?

ये उन बहन, भाइयों, माँ, चाची, ताइयों, दादियों या शायद चाचा, ताऊओं और दादाओं के लिए भी? जिनके लिए एक दो लाख बहुत बड़ी बात नहीं है और काम वाली आपके अनुसार और आपके वक़्त पर काम करने के लिए हाज़िर है। है? नहीं हैं? मशीने, जो झाडू, पोचा, बर्तन, कपड़े तो साफ़ करती ही हैं, वो भी ज्यादातर काम वालियों से बेहतर। खाना बनाने में भी काफी सहायक हैं। आपके बच्चों को पढ़ाने में भी। और भी कितने ही काम, इंसानों से ज्यादा अच्छे से करती हैं। तो मिलते हैं अगली पोस्ट में ऐसी ही कुछ आधुनिक काम वालियों से।                     

Tuesday, August 5, 2025

How was the Year? 2019

ये पोस्ट 28 December 2019 को लिखी हुई है। 

(Journaling helps to know and solve many unknown puzzles.)   

Part of Bio-Physio-Chem Warfare: Pros and Cons 

लिखना शुरु कर चुकी थी। उसके बाद इसमें Psycho और Electric Warfare भी लिखना शुरु किया, खासकर गाँव आने के बाद और यहाँ के किस्से कहानियाँ और सामान्तर घड़ाईयोँ के तरीके जानने के बाद। 

Information is power, strength as well as success. Get as much as you can.

How to Fight an Unavoidable Poison Zone?

In the last few years learned one by one how to get out of the poison zone, in an invisible war zone. Wherever you suspect something or have that gut feeling of unsafe, unhealthy, downgrading or jealous attack directly or indirectly, take care of yourself in that environment. Get out of that zone wherever possible. Fight wherever cannot. Do not fall prey to people's designs and leave campus. I knew that could be the worst nightmare or finish zone. So did not, could not? Whatever!

The worst was taking poisoned tap/supply water over the years infected with urine, faeces, pesticides, lead, dhatura. Only "contaminating agents" knew better what else was there in that supply water. Who was responsible for that? None, but my own neighborhood and some known-unknown people in non-teaching or maybe even teaching. Some, even those people, who talked sweet at the face! When University did not care about such complaints and body started showing worse symptoms, the simple solution was, use everywhere purified water even for clothes washing. 

The impact was not just on skin or hairs bad health but nightmare kinda feeling was when the doctor declared "Vitiligo". Till that time sense had started working, what was happening and I did not care for that doctor or that treatment. Within a few months, self-help or maybe Biology background helped and all those signs were no more. After that few more such things happened in dental, in the surrounding. I started observing every case in the surrounding, as well as at national/news. The world we are living in is so fake that so many so-called deaths were slow murders or so-called accidents or so-called terrorists attacks! And some so-called knowledgeable people say it's nothing new! That's how things are happening since ages?

Kick out all domestic helpers. Machines still better. Though many said, it would be difficult to manage, especially in this environment. But when you decide you can, then you can.

To tackle official space and threats better to keep a record of everything. Make undestroyable record copies. Give them every chance to go offensive and illegal. And one after another, they did every that thing which they should not!

Take care of every case yourself. Connect all of them. Whoever is not giving you correct information, is your enemy err not a friend or well-wisher. Listen to all, trust few. 

The stupidity, when you take care of your home and surrounding, but do not care about outside eating habits. Realized swelling and some kind of symptoms, whenever I ate at some specific places, especially my regular places. No more!

Next in line, felt many times earlier also but was eager to get some information so kept on going, though this year became irregular. No more! 

Watched so many crime-series this year, have not seen that much TV/internet web-series in whole life. But it helped in connecting some clueless dots; the information no-one was ready to give. 

Joining this job means bad stuff had finished research even before the start. They tried to finish teaching as well and kick out from the job. I gave up in 2017, but who knew it would be kinda come back? Still not sure? Started somewhere looking (just dreaming ;) for that independent writing zone? 

Overall, it was not a bad year. Coming year gonna strengthen more, connect more, more informative and hopefully productive. 

How 2019 treated you? Look ahead.

Wish You A Happy & Healthy New Year!

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 25

 Word of the day?

Infantilize 

Interesting?
Fancy word? Or a fact?  
ज़िंदगी के कुछ कड़वे अनुभव ऐसे भी हुए 
जब एक-एक करके आपको committees से निकाल फैंका गया। ये सिलसिला 2014 में शुरु हुआ था। मोदी गवर्न्मेंट आने के बाद। 
जब आपके professional development zone पर जैसे एक full stop लगा दिया था। कुछ खुद मैंने, किन्हीं कड़वे अनुभवों की वजह से। और ज्यादातर किसी या किन्हीं पार्टियों द्वारा या सुरक्षा के नाम पर। 
2015, जैसे कहीं भी निकलना बंध हो गया था। 
2017, जब घुटन ज्यादा महसूस होने लगी तो जैसे उन्होंने कहा, "ये हैं हम"। मेरे resignation के बाद एक पत्र मेरी माँ को भेझा गया, गाँव, की आपकी लड़की ने नौकरी छोड़ दी है और वो डिपार्टमेंट नहीं आ रही। जब की वो यूनिवर्सिटी (?) की नौकरी करने वाली वयस्क लड़की, उन्हें अपना पता, फ़ोन नंबर और मोबाइल नंबर तक देकर गई थी। फिर ये कैसा धंधा कर रहा था वो director, समझ से बाहर था। किसी और ही सदी में 10 पास माँ, उसमें भला क्या करती? उन्होंने मुझे बताया और मैंने कहा, जहाँ से आया है, उसी पते पर वापस भेझ दो इसे या लो ही मत। आपको मालूम क्या है की वहाँ चल क्या रहा है? मेरे जाने के बाद क्यों बुला रहे हैं वो आपको? और उन्होंने वैसा ही किया। वापस बुला कर फिर से ज्वाइन करवाने की शायद एक वजह ये भी रही। उन्हें लगा शायद घर वाले अपने आप निपट लेंगे, दकियानुशी पुराने विचारों के लोग है। पर पता चला की वो तो उनकी सुन ही नहीं रही। और अब कोशिशें हुई, फाइलों के द्वारा कंट्रोल करने की और यूनिवर्सिटी से ही बाहर फेँकने की। जिसका थोड़ा बहुत जिक्र वीरभान लैब केस और साइको ट्रीटमेंट के बाद, बाहर किराए पर मकान लेने का है। और फिर वहाँ कैसे-कैसे ड्रामे हुए जो प्लान सैक्टर 14 की तरफ इशारा थे। और मैंने यूनिवर्सिटी कैंपस छोड़ा ही नहीं। तो क्या होना था? मार-पिटाई (2019), कोविड (2020)? Kidnapped by police drama (2021)। और तंग आकर मेरा फिर से रिजाइन कर देना।  2019, 2020, 2021 फाइल्स, आज तक पब्लिश नहीं हो पाई? क्यों? ऐसा क्या है उन फाइल्स में? हालाँकि, उनकी कॉपियाँ दुनियाँ भर में बट चुकी, खासकर मीडिया के माध्यम से। राजनीती और विज्ञान का एक अलग ही रुप पेश करती हैं वो। Political और Science (Interdisciplinary Science)          

ये सब बहुत देर से समझ आया, की ये किस तरह की सामान्तर घड़ाई थी? ये कौन माँ थी, जो मेरी जानकारी के बैगर, मेरे फैसले ले रही थी? और ये भी, की बहुत कुछ इस जहाँ में ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाईयाँ खा गई। क्यूँकि, वो so called माँ, मेरी माँ से कहीं नहीं मिलती। ना उनके हालात या वातावरण। बहुत कुछ गलत इस जहाँ में, सामान्तर घड़ाइयों की वजह से है। बहुत कुछ गलत इसलिए हो रहा है या हुआ है, की कुर्सियों पर बैठे अधिकारी या कर्मचारी वो नहीं कर रहे, जिसके लिए उन्हें वहाँ बिठाया गया है। बल्की, किसी कोढ़ स्वार्थ राजनीतिक दुनियाँ के इशारों पर चल रहे हैं।           

जैसे सामान्तर घड़ाईयोँ वाली बिमारियों या मौतों की ही बात करें तो ये वो भयावह दुनियाँ है जिसकी हकीकत जानकार कोई भी थोड़ा सा भी दिमाग वाला इंसान यही सोचेगा, की कैसे लोग हैं, जो ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाइयाँ घढ़ रहे हैं?  

विटिलिगो से शुरु किया है, तो चलते हैं विटिलिगो और ऐसी सी ही दिखने वाली और बिमारियों पर। जानने की कोशिश करते हैं, की इसमें कितना ऑटोमैटिक सिस्टम अटैक है और कितना एन्फोर्स्ड?