Tuesday, August 12, 2025

Interactions और किस्से-कहानियाँ? 27

जैसा की पीछे पोस्ट में पढ़ा, माइग्रेशन के कारण अपनी मर्जी से हों या जबरदस्ती, वजहें तक़रीबन वही होती हैं। सुरक्षा, आगे बढ़ने के अवसर और भेदभाव रहित वातावरण या जबरदस्ती कुछ भी थोंपने की कोशिशें। अगर आपमें पोटेंशियल है, तो आप अपने रस्ते खोज ही लेंगे।   

इतने सालों बाद गाँव में वापस आकर रहने के कुछ फायदे भी हुए। उसमें एक चीज़ जो खासकर समझ आई वो ये, की आगे बढ़ते हुए लोग या परिवार, गाँव या उसी शहर में, अपनी अगली पीढ़ी में क्यों नहीं दिखते? आगे बढ़ते हुए लोग या परिवार भला इतना वक़्त एक ही जगह शिथिल कैसे रह सकते हैं? और शायद इसीलिए, इन आगे बढ़ने वाले लोगों में और पीछे रह जाने वाले लोगों में फर्क भी साफ़ नजर आता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे अपने ही घर में भाभी की मौत के बाद नज़र आया। जब माँ और भाई की insecurity का दोहन करते हुए, कुछ लोगों ने उनके दिमाग में भरा की काम वाली चाहिए। काम वाली? या घर वाली? काम वाली वो जो कुछ पैसे के बदले आपके घर के काम करे या घर वाली जो आपके घर और परिवार को आगे बढ़ाए? खैर। वो काम वाली या घर वाली तो आई और आई गई भी हुई। मगर यहाँ के लोगों को आज भी काम वाली ही चाहिए। आसपास कई बुजुर्गों से खासकर जब कुछ विषयों पे बात हुई तो यूँ लगा, ये आज भी किसी और ही सदी में रह रहे हैं। क्यूँकि, ये काम वाली सिर्फ लड़कों को नहीं, बल्की, लड़कियों को भी चाहिए, खासकर नौकरी करने वालों को। भारत में तो खासकर? या शायद काफी कुछ बदल चुका है और तेजी से बदल रहा है?

ये उन बहन, भाइयों, माँ, चाची, ताइयों, दादियों या शायद चाचा, ताऊओं और दादाओं के लिए भी? जिनके लिए एक दो लाख बहुत बड़ी बात नहीं है और काम वाली आपके अनुसार और आपके वक़्त पर काम करने के लिए हाज़िर है। है? नहीं हैं? मशीने, जो झाडू, पोचा, बर्तन, कपड़े तो साफ़ करती ही हैं, वो भी ज्यादातर काम वालियों से बेहतर। खाना बनाने में भी काफी सहायक हैं। आपके बच्चों को पढ़ाने में भी। और भी कितने ही काम, इंसानों से ज्यादा अच्छे से करती हैं। तो मिलते हैं अगली पोस्ट में ऐसी ही कुछ आधुनिक काम वालियों से।                     

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