About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, April 25, 2023

माटी के कच्चे-पुतले

बच्चे जैसे?

सीधे-साधे लोग? 

भोले-भाले लोग?   

अनपढ़-गँवार लोग? 

गँवारपठ्ठे?

अपरिपक्कव इंसान?  

आसानी-से धोखा खाने वाले लोग?

आसानी-से बहकाई में आ जाने वाले लोग?


Or Gullible Crowd? Gullible People? 

कौन हैं ये लोग? शायद हममें से हर कोई? किसी न किसी रूप में, कहीं न कहीं? कुछ थोड़े-से कम, तो कुछ थोड़े-से ज़्यादा?     

बच्चे दिल के सच्चे 

बच्चों के खेलों को देखना-समझना और उसका विश्लेषण करना, अपने आप में एक दुनिया दिखाता है। 

आस पड़ोस में कई सारे बच्चे हैं -- कुछ cousins, कुछ अड़ोसी-पडोसी, कुछ इधर-उधर के। इनमें से एक बच्चा या यूँ कहुँ बच्ची, मारने-पिटने में अव्वल थी। बाकी ज़्यादातर, मार-पिटाई खाते रहते थे और शिकायतों के ढ़ेर रखते थे, उसके खिलाफ़। 2-3 साल बाद ही, सारे बच्चे मार-पिटाई के खेल-खेलने लगे।  ये सब देखके अज़ीब भी लगता, और अटपटा भी। एक-दो बच्चों के व्यवहार को बदलना, कितना आसान या मुश्किल है? बजाय की सबको लड़ाका बना देना? 

यही हाल भाषा के हैं। अब ये सब दूर से तो कहीं आएगा नहीं। सीधी-सी बात, अपने वातावरण से सीख रहे हैं। वातावरण, आप अपने बच्चे का निर्धारित कर सकते हैं या ज़्यादातर कुछ खास अपनों का। उससे आगे तो थोड़ा मुश्किल है। हालाँकि इस मुश्किल का काफी हद तक हल है। वो स्कूल, जहाँ ये बच्चे पढ़ते हैं। क्युंकि, ये वो जगह है, जहाँ वो घर के बाद अपना सबसे ज्यादा वक़्त गुजारते हैं। और घर के बाद जहाँ की मानते भी हैं। 

अजीबोगरीब प्रतिस्पर्धा: माँ-बाप बच्चों में प्रतिस्पर्धा रखते हैं, किस का एक या दो अंक कम या ज़्यादा है। किसका एक या आधा अंक कट गया? मगर --

कौन कैसे बोलता है ? क्या-क्या खेलता है ? अब इसकी प्रतिस्पर्धा कौन रखे? क्युंकि, उसके लिए तो आपको खुद को भी जिम्मेदार ठहराना पड़ेगा। खुद में भी थोड़ा-बहुत बदलाव करना पड़ेगा। बस यही वो मार है, शायद जहाँ परवरिश कैसे लोगों के बीच हुयी है, का फ़र्क दिखने लगता है।  

माटी के कच्चे पुतले धीरे-धीरे ढलने लगते हैं, अपने आसपास के रंगों की घड़ाई में।

बच्चे वो साँचा हैं, जिन्हें जिस किसी साँचे में ढालोगे, वो ढल जाएँगे। उसके बाद इंसान जितना बड़ा होता जाता है, उतना ही मुश्किल होता जाता है। हालाँकि असंभव कुछ नहीं। 

माटी का कच्चा पुतला पे पहले भी शायद कहीं कुछ लिखा था: 

Click on: माटी का कच्चा पुतला 

Or copy-paste: https://worldmazical.blogspot.com/2016/08/blog-post.html

No comments: