ये रोचक ऑनलाइन ट्रैवेल, ये तो रहेगा ही रहेगा। उसके साथ-साथ हो सकता है, थोड़ा बहुत ऑफलाइन भी हो जाए। यहीं तो धकाया जा रहा है? Get Out of India? Better Word, Exile, I Guess? जैसे हालात हैं, मेरे भारत में? राजनीतिक लकवा जैसे? Political Paralysis?
इस साल, यहाँ ना रहें, शायद तो ही अच्छा? इस साल कौन-कौन यहाँ बच पाएगा? और किस-किस को ये राजनीतिक साल खा जाएगा, शायद मुश्किल है कहना? Push to that extreme जैसा-सा कुछ, चल रहा है शायद यहाँ? यहाँ? नहीं। उन कुर्सियों पे बैठे आदमखोरों का धकाया हुआ और पेला हुआ जहाँ है ये?
लिखना और पढ़ना, जब सिर्फ शौक नहीं, बल्की अहम जरुरत बन जाए। वो भी ऐसे, जैसे, किसी और जहाँ की जरुरत ही ना हो? बस, ऐसी-सी ही उम्मीदें हैं, 2024 से?
तो चलते हैं, एक ऐसी सैर पे? क्यूँकि, जिस संसार की तरफ मैंने रुख किया है, वो सच में बहुत रोचक है।
बिन कहे बहुत कुछ कहता है
बिन सुनाए बहुत कुछ सुनाता है
बिन दिखाए, बहुत कुछ दिखाता है
पास ना होकर भी,
कितना कुछ अहसास कराता है
और
कैसी-कैसी दुनियाँ की सैर पे लेकर जाता है?
उसी बिन कहे, बिन सुनाए,
बिन दिखाए के अहसास को,
यहाँ-वहाँ से चुन-चुन कर,
शब्दों या मल्टीमीडिया के द्वारा,
अगर आप तक भी पहुँचा पाई
और अहसास करवा पाई
समझा पाई, की संसार कहाँ है?
21वीं सदी में?
और आप, आमजन, आम-आदमी
थोड़े विकासशील,
या शायद थोड़े या ज्यादा ही पिछड़े कहाँ हैं?
तो ये साल और ये उड़ान,
उन उम्मीदों पे खरी उत्तरी समझो।
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