"Never judge others, you don't know their story."
Or "Never judge a book by its cover. "
जिस किसी ने कहा है ये, शायद सही ही कहा होगा?
और आज के वक़्त में तो बहुत जरुरी है, इसे मानना। इसीलिए मैं कहती हूँ की हर इंसान अलग है, और हर केस। पता नहीं कैसे लोग उन्हें "ठीक ऐसे है", कह देते हैं? हाँ, सामान्तर घड़ाई कहना सही है। राजनितिक पार्टियों द्वारा की गई सामान्तर घड़ाइयाँ, और भी सही रहेगा। राजनितिक पार्टियाँ जब सामन्तर घड़ाईयाँ घड़ती हैं, तो क्रूरता के कौन-कौन से दायरे या मानक लाँघ जाती हैं? कोई सीमा नहीं है?
क्यूँकि, जब हम सामान्तर घड़ाईयोँ की बात करते हैं तो synthesis के componenets और तौर-तरीक़े जानना अपने आपमें बहुत से रहस्योँ से पर्दा उठा जाते हैं। और सतह से पर्दा उठते ही पता चलता है, की यहाँ तो कुछ भी नहीं मिल रहा। और उसके साथ-साथ कितने ही अंतर समझ आने लगते हैं। ठीक ऐसे जैसे, बच्चों को कोई दो तस्वीरें या किरदार पकड़ाकर बोलो, इनमें 10 अंतर या सामानताएँ बतायें। रावण के दस मुँह तक, अलग-अलग तरह के दस आदमी नज़र आएँगे?
ठीक ऐसे जैसे?
बिमारियों के उदाहरण देकर समझाना, अपने आसपास से ही। चलो थोड़ा सा हिंट मैं दे देती हूँ।
Skin diseases
Cancer
Fibrosis
ईधर-उधर जब इन बिमारियों को जानने की कोशिश की गई, तो यूँ लगा, की ये सच में बिमारियाँ थी या हैं या घड़ी गई थी या घड़ी गई हैं? मगर कैसे? That process or abrupt or kinda instant doses are interesting factors to know.
और भी कितनी ही बिमारियाँ, जिनकी कहानी कुछ-कुछ ऐसे ही लगती हैं। Paralysis, eyes infections, fever etc. कोई भी बीमारी का नाम लो और वो शक के दायरे में नज़र आएगी। अब वो शक का दायरा सिर्फ automatic system तक सिमित है या उससे आगे भी, ये जानना अहम हो सकता है।
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