आप कौन सी दुनियाँ में रहते हैं?
वो दुनियाँ जो आपने बनाई है या वो दुनिया जो गुप्त सिस्टम ने आपके लिए बनाई है? आपका भूत उसी का घड़ा हुआ है। और आपका आज भी वही घड़ रहे हैं? संभव है क्या? या ऐसा कुछ हो रहा है?
एक उदाहारण आसपास से ही। कल आपको बहन के खिलाफ भड़काया जा रहा था की वो आपकी जमीन खा जाएगी? पता चला हो तो बताना की किसने खाई? या अभी भी कोशिशें जारी हैं? बची खुची को भी निपटाने की?
कहीं, किसी के बारे में किसी को कहते हुए सुना, होणी है तू होणी। आजकल ये इंसान कैसे लोगों के आसपास रहता है? क्या सुनता या सोचता है? कहीं ऐसा तो नहीं, की होणों से घिरा हुआ है? और वही इसकी होणी रच रहे हैं? गुप्त-गुप्त खेल में गुप्त-गुप्त मार भयँकर होती हैं। जमीन के बाद, ये कहीं सारा सब एक जगह इकट्ठा कर, खुद इसे निपटाने के चक्कर में तो नहीं? जल्दी में अमीरी के चक्कर में, लोगबाग अक्सर सब गवाएँ मिलते हैं।
पैसा पास हो तो पहला काम ये होना चाहिए की कैसे उससे अपना रोजगार शुरु किया जाए। ना की, ज़मीनी धंधे वालों के जालों में फँसकर, गोबर पाथ जगहों पर प्लॉटों के षड्यंत्रों में फँसकर। पर रोजगार जहाँ शुरु करना था, वो ज़मीन तो ? फँस गए षड्यंत्र कारियों के?
Kidnapped by Police?
जगह? MDU, गेट नंबर?
एटीएम? SBI?
तारिख? 26?
महीना? 4 (April)
साल? 2021?
साढ़े तीन दिन के ड्रामे के बाद?
अरे?
ये ATM कहाँ गया?
इस साढ़े तीन दिन के ड्रामे में क्या कुछ हुआ? ये केस स्टडी Memoir के रुप में amazon पर उपलभ्ध है। अरे आप तो बड़े अपने बने घूमते हैं और आपको मालूम ही नहीं, की क्या हुआ? क्यों हुआ? और कैसे हुआ? कौन-कौन थे, ये सब करने वाले? सबसे बड़ी बात ये ड्रामा घड़ने वाले स्क्रिप्ट राइटर कौन? ऐसे-ऐसे राजनीतिक ड्रामों की स्क्रीप्ट लिखी जाती हैं या सीधा डायरेक्ट की जाती हैं?
आप शायद उनमें से हैं, जो बोलते या सोचते हैं की हरामज़ादी, जेल काट कै आ री सै यो। बिना काँड करे कौन जेल जाया करै? और भी बहुत से एडजेक्टिवेस होंगे बढ़िया-बढ़िया, इस हरामज़ादी के लिए? एक से बढ़कर एक, मस्त वाली हरयाणवी गाली? चलो यहाँ तक तो सही है। अब माहौल जैसा हो, हम उससे आगे कहाँ बोल या सोच पाते हैं?
मगर क्या हो, अगर इसी केस की कहानी खुद आप और आपके बच्चे भी या तो भुगत चुके हों या भुगत रहे हों? या उनका कल उससे प्रभावित हो? इसीसे सम्बंधित कुछ समान्तर घड़ाईयाँ, आज भी आपकी या आपके बच्चों की ज़िंदगियों में घड़ी जा रही हों? आपका आसपास या बुजुर्ग तक इससे सम्बंधित बिमारियाँ या लड़ाई झगड़े झेल रहे हों? तो जानना जरुरी है इस कहानी को या नहीं? या ऐसी-ऐसी कुछ एक कहानियों को? केस स्टडीज़ को?
ये सुविधा हम जैसों को हासिल नहीं हुई। अगर हमें इतने सीधे-सीधे आगाह करने वाले या बचाने वाले होते, तो इतने सालों बाद भी जुआरियों के जाले यूँ ज़िंदगी से ना खेल पाते। ये वो केस स्टडीज़ हैं, जो आपको आपके अपने समाज का आईना दिखाती हैं। और बुरी वाली समान्तर घड़ाइयों से आगाह भी करती हैं।
ऐसी-ऐसी केस स्टडीज़ को छिपाने वाली या पब्लिश ही ना होने देने वाली ताकतें, सरकार या विरोधी पार्टियाँ, आपसे अपनी चालें और घातें छिपाने की कोशिश करती हैं। क्यूँकि, सामाजिक समान्तर घड़ाईयाँ कहीं न कहीं ऐसी सी ही राजनीतिक घड़ाईयोँ का बढ़ा चढ़ा या बिगड़ा रुप होती हैं। और वो सालों साल, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी घड़ी जाती रही हैं।
मानव रोबॉटिक्स का एक चेहरा भी दिखाती और समझाती हैं ये केस स्टडीज़। कैसे? आगे की पोस्ट में जानने की कोशिश करते हैं। Paralysis to?
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