About Me

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Wednesday, June 26, 2024

Release My Saving (Book?)

20-06-2024


It's Update Stupid?

वो कुत्ते बिल्ली का खेल, खेल रहे हैं? इंसानो को कबूतर, मैना-सा पेल रहे हैं? 

जब आपकी जुए की तारीखों के हिसाब-किताब से फाइल चलती हैं, तो क्या होता है? तकरीबन 3-साल regination acceptance के बावजूद saving release नहीं की जाती। क्या धंधा कर रहे हैं ये लोग? वो भी सरकारी कुर्सियों पर बैठ कर?

उल्टा, आपके आसपास को ये संदेश पहुँचा के बेवकूफ बनाया जाता है, की इसका तो कुछ बचा ही नहीं। सब खत्म हो गया? घर में घुस कर आदमी खत्म किए जाते हैं। फालतू के आदमी घर में घुसेड़े जाते हैं। और बचे-कूचों को भी ठिकाने लगाने का पूरा-पूरा इंतजाम होता है। अपने कहे जाने वाले आदमी? बड़े काम के होते हैं शायद? एक के बाद एक, धमाल पे धमाल मचाते हैं? कहीं आदमखोर, आदमी खाते हैं। तो कहीं ज़मीनखोर, ज़मीन। इस सबमें यूनिवर्सिटी का क्या रोल है?  

कहीं ये सारा सांग ही, यूनिवर्सिटी का किया धरा तो नहीं? नहीं तो 3-साल regination acceptance के बावजूद उस इंसान की savings पे भी कुंडली मारने का क्या मतलब है? कहा तो बचा-कुचा भी ख़त्म करना? शायद वही कर रही है यूनिवर्सिटी? कुछ एक emails देखें, जानने के लिए की चल क्या रहा है? 







रोचक है? वैसे ये DD black या D white या RU pink या purple जैसे शब्द क्या हैं, इन मेल्स में? IS Elements के कारनामे? और ये IS Elements क्या हैं?  स्टूडेंट्स ने पढ़ाना शुरू किया था शायद 2018 में। और थोड़ा-बहुत, इधर-उधर के मीडिया ने। शायद वही हैं? ऐसे-ऐसे महान कोड्स पर भी, कम से कम एक किताब तो बन ही सकती है। 

Release My Saving

1-7-2024

Can also be a book?

An interesting book?

Who's who kept on dragging or kept a hold on that file for so long? 

Even after going to Finance Officer table, it can take how many days? Months? Or? 

Release My Saving 1

20.06.2024

किसी एम्प्लोयी की सेविंग रिलीज़ करना भी इतना बड़ा ड्रामा हो सकता है, जैसा की यहाँ हो रहा है? शायद? अगर उसे गलत तरीके से कूट-पीट और लूट के निकाला गया हो? अगर उसे नौकरी करने ही ना दी गई हो? हालात ऐसे पैदा कर दिए हों की सामने वाले को लगे, "जान है तो जहान है"। ऐसी नौकरी का क्या मतलब, जहाँ वही ना बचे? और आप उस नौकरी को छोड़ आए या गुंडागर्दी करके निकाल दिय गए, को पढ़ने, समझने वालों पे छोड़ देते हैं। 

इस दौरान क्या हुआ, क्यों हुआ, की भी शायद कई किताबें हो सकती हैं। फिर चाहे वो मेरा यूनिवर्सिटी से सामान उठा के लाना हो। भाभी की मौत हो या किसी औरत का अजीबोगरीब तरीके से जबरदस्ती जैसे, घर आना। या उसके बाद ज़मीन के वाद-विवाद। सब एक-दूसरे से मिलता जुलता-सा है शायद? राजनीती के धंधे के अनुसार? राजनीती की भाषा में जिसे update बोलते हैं, शायद? सिस्टम update? इधर ये पार्टी और उधर वो पार्टी, अपनी-अपनी तरह के अपडेट पे लगी होती हैं। Social Engineering का हिस्सा होते हैं ये updates। इस सिस्टम अपडेट में वो सबकुछ निर्दयी और क्रूर तरीके से धकेलती हैं। फिर वो चाहे झूठी-मूठी या सच्ची बीमारियाँ पैदा करना हो। दुनियाँ से ही उठाना या Enforced Displacement को  भी बिमारियों की भाषा में ऑपरेशन बोलते हैं, शायद? कहीं सुना था, Process follow नहीं करोगे तो next option क्या होगा? ऑपरेशन। ऐसा ही कुछ किसी एक पार्टी का आसपास चल रहा है, शायद। पथ्थरी की शिकायत। काफी महीने उसके नाम पर ड्रामे। फिर कैंसर डिक्लेअर कर देना, वो भी कौन-सी स्टेज? 

बीच में कुछ सुनाती हूँ। हमारे दो लड़कियाँ हैं। एक की ही शादी हो सकती है। उसके लिए दूसरी को गॉड (God?)  ना पड़ेगा? थोड़ा कहीं सुना था फोन पे। थोड़ा जो मुझे समझ आया, उस वक़्त जो कुछ चल रहा था या चलाने की कोशिशें हो रही थी, उसके हिसाब से। अब ये जिन बहनों की बात हो रही थी, उन्हें और वहाँ लोगों को सतर्क रहने की जरुरत हो सकती है। राजनीती की सामान्तर घड़ाईयोँ में कुछ भी संभव है। 2010 दोहराने की कोशिशें हुई थी कहीं। सफल नहीं हुआ? प्रोग्राम अभी तक जारी है? Pro Cess या Operation?    

जहाँ खून-खराबा, रेप, खदेड़ बाहर करना जैसा, सब जायज़ होता है? राजनीती के युद्धों के अनुसार। लोगों को कहीं खदेड़ना हो। क्या कहते हैं, वो उसे? Migration? या Enforced Displacement? निर्भर करता है, कौन-सी पार्टी बोल रही है? लोगों को किसी भी बहाने दुनिया से ही उठाना हो। नए लोगों को खदेड़े गए लोगों की जगह लाना हो। बच्चे क्या, बुजुर्ग क्या, सब जायज़ है, राजनीती के इस धंधे में? ये सब शायद ही मैं कभी जान पाती, अगर इस दौरान जो कुछ हुआ है, वो ना होता और खुद उसे ना झेला होता। या आसपास वालों को यूँ झेलते हुए, ना देखा, समझा होता। यहाँ (गाँव) के लोगों के किस्से-कहानियों ने बहुत कुछ बताया है या शायद बिन कहे भी जैसे, समझाया है। 

Dal  - al   Tiles  Pvt  Lmt  ट्रक गया है, अभी-अभी यहाँ से।     

अरे लिखते-लिखते ये बीच में कहाँ से आ गया? ये गुप्त-गुप्त युद्धों के चिन्हों, संकेतों की कहानियाँ फिर कहीं। ये इस पार्टी के गुप्त संकेत, तो वो उसके। सब सुना है, सिस्टम अपडेट कहलाता है। जो कुछ जिस वक़्त चल रहा होता है, वो या तो उस वक़्त की हकीकत गा रहा होता है या इस या उस पार्टी का धकेल एजेंडा।   

अभी इसे यहीं छोड़ते हैं, और वापस टॉपिक पे आते हैं।  तो कहाँ थे हम? Release My Saving की कहानी पे?

Release My Saving

नौकरी और घर तो, बड़े लोगों की नालायक औलादें, अपने बापों की प्राइवेट लिमिटेड बना चुके? कौन-सा और कैसा लोकतंत्र है ये? 

ऑनलाइन संसार उनके कब्जों में वैसे ही है। पता नहीं कितनी फौजें बिठा रखी हैं, ऐसे-ऐसे लोगों ने और कहाँ-कहाँ। आप Lord, Ladies (या जो भी suitable सम्बोधन बेहतर लगे) के वश में, क्या किसी की बची-खुची बचत तक दिलवाना नहीं है? ये कौन संगीता है? या जो कोई है, जो उस बचत पे भी आदमखोर की तरह कुंडली मारे बैठी है या बैठा है? क्या सारे घर को खाके, उस बचे-खुचे रुन्गे को भी आपस में बाँटोगे? एक सस्पेन्ड एम्प्लोयी तक को महीने का गुजारा-भत्ता जैसा कुछ मिलता है। फिर यहाँ तो ससपेंड नहीं, बल्की खुद रिजाइन किया हुआ है। अब वो कैसे गुंडागर्दी से करवाया हुआ है, वो अलग बात है। मगर यहाँ तो पिछले तीन साल से धेला नहीं मिला। ऐसे हालातों में कोई अपना गुजारा कैसे करता होगा? आसपास को कुत्ता बनाने का इससे बेहतर तरीका भी, शायद कोई नहीं हो सकता? सबकुछ अपने कब्ज़े में कर लो और लोगों को कटोरे थमा दो। यही अमृतकाल है?  

बोतल थमा दो, ज़मीन ले लो, उसी का हिस्सा है। 

नंगा करवा, नोटों की बारिश और वीडियो उसी का परिणाम है? सबसे बड़ी बात नोट किसके? 

कुछ बच गया हो तो, चाकू, डंडा, हॉकी या शायद कट्टा या पिस्तौल या ऐसा कोई खिलौना भी थमा दो? बहुत बड़ी बात है क्या? बड़ी बात ये है, की ये सब अभी क्यों हो रहा है? उससे पहले क्यों संभव नहीं हुआ? थोड़ा दिमाग, टेक्नोलॉजी और थोड़े संसाधन हों, तो क्या कुछ संभव नहीं है? आज के मानव रोबोट उसी का हिस्सा हैं। मुझसे बेहतर, ये भी जानकार लोग ज्यादा जानते हैं।   


किसी ने कहा तुमने वो वाली फोटो ऑनलाइन क्यों नहीं रखी? 
9 और 10 की रात को सुबह 2 बजे के आसपास, कोई भुक्खड़ कुछ भौंक रहा था? और हाथ में खिलौने जैसा कुछ था? किसका था वो? कहाँ से लाया था? या किसने थमाया था? काला पड़ चुका, गला-सड़ा skelton, क्या बक रहा था? कौन हैं वो, जो उस प्लाट में चौकड़ी जमाए पड़े रहते हैं, मना करने के बावजूद? और माँ, बहन या बेटियों को वहाँ से निकालने या निकलवाने में?     

जब सबकुछ बड़े लोगों की जानकारी में घड़ा और किया जा रहा हो, तो मेरे पोस्ट करने या ना करने से कितना फर्क पड़ जाएगा? शायद मुझे गाँव धकेला ही इसलिए गया था की आपस में ही मरकट जाएँ, ऐसा जाल बिछाओ। कितनी ही तो कोशिशें हो चुकी। दुनियाँ जहाँ में लिखा जा रहा है। क्या हुआ, यहाँ के गंवारों को समझ नहीं आ रहा तो? तुम्हें, तुम्हारे ही खिलाफ गोटियों की तरह चला जा रहा है। ये बोतलें, ये चाकू, ये डंडे, हॉकी या पिस्तौल या खिलौने, किसी के पैसे और किसी नंग-धडंग, पियक्कड़ का विडियो? सब अपने आप और बिन वजह नहीं हो रहा। वो तुमसे रोटी, कपड़ा, ज़मीन-जायदाद छीनकर, किताबें या पढ़ाई-लिखाई छुटवाकर क्या थमा रहे हैं? सबसे बड़ी बात, उनके वीडियो भी बना रहे हैं या बनवा रहे हैं? क्यों? क्या दिखाने के लिए?

अगर ये बचत वक़्त पर मिल गयी होती, तो इनमें से ऐसा कुछ नहीं होना था। पैसे और संसाधनों के कब्जे का सारा खेल यही है। अभी भी उस बचत पर कब्जे का मतलब यही है। जो कुछ बचा है, उसे भी साफ़ करना है। आदमखोर हैं, और सबको खाना है?               

Sunday, June 9, 2024

यहाँ-वहाँ की बेचैनियाँ? या प्रश्न?

तुम कब तक हो यहाँ?

जब तक रस्ते ना खुलें। रस्ते बंद हैं भी, और नहीं भी शायद? 

तुम तो कहीं जा रहे थे ना? अप्लाई ही नहीं कर रहे, ऐसा क्यों?  

2022 के आखिर या 2023 के शुरू में किया था। यूँ लगा, जैसे कोई खेल चल रहा हो। जिसे ये या वो पार्टी खेल रही है। उसपे विषय थोड़ा बदला हुआ था, तो शायद थोड़ा वक़्त लगता है। भाभी के जाने के बाद अप्लाई ही नहीं किया। काफी कुछ समझना बाकी था, शायद। वही किया है, इस पिछले एक साल में।  

ये हवा का रुख क्या है?

मैं भी समझने की कोशिश कर रही हूँ :) कुछ कहते हैं मैपिंग है। तो कुछ लाइव स्ट्रीमिंग, स्क्रीन क्लोनिंग और लाइव स्क्रीन वॉच शायद। जिसमें जो कुछ भी आप ऑनलाइन देख, सुन या पढ़ रहे हैं, उसके हिसाब-किताब का एनालिसिस है शायद। मैपिंग-वैपिंग कुछ नहीं, फ्रॉड है। वो बच्चों और बुजर्गों के मैपिंग का बवंडर कैसे बनाते हैं? या बिन हुए को भी कभी-कभी, अपनी-अपनी पार्टी के हिसाब से जैसे पेलते नज़र आते हैं। 

ज्यादा तो नहीं मालूम, मगर इलेक्शन के दौरान और काउंटिंग वाले दिन बहुत कुछ रोचक था। इधर-उधर से, पिछले कुछ सालों में थोड़ा-बहुत समझ आया, की दुनियाँ के किस हिस्से की तरफ रुख का मतलब क्या है? उसी समझ के अनुसार, अगर आप इलेक्शन के दौरान, इधर वाले रुख की तरफ जाते नज़र आ रहे हैं, तो नंबर्स का आँकड़ा देखो। और फिर उसकी सच्चाई जानने के लिए इलेक्शन के परिणाम वाले दिन वो रुख बदल दो। मतलब, दुनियाँ के दूसरे हिस्से को पढ़ने लग जाओ। या वहाँ का रुख करते नज़र आओ।  

जैसे आप कोई लाइव डिबेट या इलेक्शन रिजल्ट देख रहे हों। और BJP की सीट्स, 300 पार देख गुस्से में बड़बड़ाएँ, "नीचे करो इन्हें, 270 से नीचे, 250 से भी नीचे"। बहुत हो गया 300-400 पार। और एक-दो मिंट बाद ही, एक एंकर कुछ-कुछ ऐसा बोले, लाइव खबर, BJP 300 से नीचे पहुँच गई है। नंबर और नीचे जा रहा है। और जादू-सा जैसे, सब चैनलो पे ऐसे ही चलने लगे। सिर्फ Coincidence? मगर कितने Coincidence? और नंबर, जादुई-सा जैसे 240 पे टिक जाए। तो दूसरी तरफ 99 या 100? मगर फिर कितने ही अगर-मगर हैं। ऐसे, कैसे संभव है? 

ऐसे ही जैसे, कौन नेता, कितने नंबरों से जीत रहा है? वो आम आदमी का वोट नहीं, कुछ और ही बता रहा है? और हरियाणा की फाड़-फाड़ जैसे? आधी इधर, तो आधी किधर? दिल्ली और UP समझ से बाहर। इनसे बेहतर तो शायद, बाकी राज्य समझ आ रहे हैं। राजनीती से नफ़रत करने वाला इंसान, राजनीती, इलेक्शन और इलेक्शन परिणाम समझने की कोशिश कर रहा है? सट्टा बाजार, अभी भी दूर की कोड़ी है। शायद ही कभी समझने की कोशिश हो। अपने विषय से कुछ ज्यादा ही दूर हो गया।   

मगर ये मीडिया में क्या चलता है या कैसे चलता है? कहाँ-कहाँ से चलता है? और कितना चलता है? आम जनता के लिए तो शायद, ये ज्यादा रोचक होगा जानना? Dissection of Media? या किसी भी सिस्टम में मीडिया की भूमिका? कहाँ जानने या पढ़ने को मिलेगा? References Please.  

बहुत मुश्किल है क्या? 2

साफ़-स्वच्छ वातावरण?  

काबिल हर इंसान और हर इंसान को 

उसकी लगन और मेहनत के अनुसार काम?

या रोजी-रोटी?  

बहुत मुश्किल है क्या?


हाँ शायद?

वहाँ, जहाँ लूटेरे हों इधर-उधर?  

या इंसान-रुपी संसाधनों को प्रयोग कैसे किया जाए की बजाए, 

दुरुपयोग कैसे किया जाए, की मानसिकता वाले विद्वान?

या नेतागण या राजनीती और सट्टा बाज़ार का मिश्रण?

क्यूँकि, जैसे नेता वैसी राजनीती, वैसा समाज? 

या जैसा समाज, वैसे नेता और वैसी राजनीती?         

बहुत मुश्किल है क्या? 1

किसी भी समाज को अच्छी सरकारी शिक्षा?
जहाँ बच्चे की पैदाइश या हालात ना तय करे, 
की वो क्या बनेगा?
या उसकी ज़िंदगी कैसी होगी?
पैसों के या माहौल के अभाव में। 

बहुत मुश्किल है क्या?
किसी भी समाज को पीने और प्रयोग करने लायक 
साफ़ पानी तक मुहैया करवाना?
वो भी 21वीं सदी के भारत में?
सुना 21वीं सदी का भारत तो बड़ी-बड़ी उड़ाने भर रहा है?

मगर कहाँ?
राजनीती के फैलाए मंदिर-मस्जिद के गोबर में?
या उसकी आग में झुलसाए या उजाड़ दिए गए गुंडों के अयोध्या में?
सुना, जहाँ उनके सपनों का मंदिर बनने के बावजूद, 
राजनीती को वो नहीं मिला 
जो मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे?  
क्या हुआ मोदी जी?
या योगी जी?

क्या लगता है आपको और आप जैसे नेताओं को?
21वीं सदी के भारत को शिक्षा नहीं, तुम्हारे मंदिर-मस्जिद चाहिएँ?
सम्मान का रोटी, कपड़ा और मकान नहीं 
तुम्हारे जैसों की रहमतों के सायों की भीख चाहिए? 
खाते-पीते बच्चे भी जहाँ,
 तुम्हारे जैसे नेताओं के सामने, भीख के कटोरे लेके आएँ?
तुम्हारे जैसों में वो सब आते हैं 
जो गुंडागर्दी की जद में, दूसरों की कमाई पर 
कुंडली मार बैठ जाते हैं। 
और यहाँ-वहाँ रोड़े अटकाते हैं।  
जो अपना कमाने की बजाय 
दूसरों का हड़पने की फ़िराक में रहते हैं।  

जो बच्चों तक से फीस माफ़ी 
या स्कॉलरशिप के लालच के 
पैंतरे खेलते नजर आते हैं। 
क्या लगता है, ऐसे नेताओं को?
या कुर्सियों को?
21वीं सदी के भारत को, ऐसे खाते-पीते लोगों को 
गरीब बनाने वाले गुंडे नेताओं की जरुरत है?

माफीनामा?
कैसा माफीनामा?
और किसको माँगना चाहिए, ये माफ़ीनामा?
उन कोर्टों को?
जो सबकुछ जानते, सुनते, देखते और पढ़ते हुए भी 
लंजु-पंजू से नज़र आते हैं?
जिनके चक्करों में ज़िंदगियाँ सड़ जाती हैं?  
लोग और घर के घर ख़त्म हो जाते हैं 
क्यूँकि, 
इस क्यूँकि का जवाब तो वही बेहतर जानते होंगे?