किसी भी समाज को अच्छी सरकारी शिक्षा?
जहाँ बच्चे की पैदाइश या हालात ना तय करे,
की वो क्या बनेगा?
या उसकी ज़िंदगी कैसी होगी?
पैसों के या माहौल के अभाव में।
बहुत मुश्किल है क्या?
किसी भी समाज को पीने और प्रयोग करने लायक
साफ़ पानी तक मुहैया करवाना?
वो भी 21वीं सदी के भारत में?
सुना 21वीं सदी का भारत तो बड़ी-बड़ी उड़ाने भर रहा है?
मगर कहाँ?
राजनीती के फैलाए मंदिर-मस्जिद के गोबर में?
या उसकी आग में झुलसाए या उजाड़ दिए गए गुंडों के अयोध्या में?
सुना, जहाँ उनके सपनों का मंदिर बनने के बावजूद,
राजनीती को वो नहीं मिला
जो मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे?
क्या हुआ मोदी जी?
या योगी जी?
क्या लगता है आपको और आप जैसे नेताओं को?
21वीं सदी के भारत को शिक्षा नहीं, तुम्हारे मंदिर-मस्जिद चाहिएँ?
सम्मान का रोटी, कपड़ा और मकान नहीं
तुम्हारे जैसों की रहमतों के सायों की भीख चाहिए?
खाते-पीते बच्चे भी जहाँ,
तुम्हारे जैसे नेताओं के सामने, भीख के कटोरे लेके आएँ?
तुम्हारे जैसों में वो सब आते हैं
जो गुंडागर्दी की जद में, दूसरों की कमाई पर
कुंडली मार बैठ जाते हैं।
और यहाँ-वहाँ रोड़े अटकाते हैं।
जो अपना कमाने की बजाय
दूसरों का हड़पने की फ़िराक में रहते हैं।
जो बच्चों तक से फीस माफ़ी
या स्कॉलरशिप के लालच के
पैंतरे खेलते नजर आते हैं।
क्या लगता है, ऐसे नेताओं को?
या कुर्सियों को?
21वीं सदी के भारत को, ऐसे खाते-पीते लोगों को
गरीब बनाने वाले गुंडे नेताओं की जरुरत है?
माफीनामा?
कैसा माफीनामा?
और किसको माँगना चाहिए, ये माफ़ीनामा?
उन कोर्टों को?
जो सबकुछ जानते, सुनते, देखते और पढ़ते हुए भी
लंजु-पंजू से नज़र आते हैं?
जिनके चक्करों में ज़िंदगियाँ सड़ जाती हैं?
लोग और घर के घर ख़त्म हो जाते हैं
क्यूँकि,
इस क्यूँकि का जवाब तो वही बेहतर जानते होंगे?
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