एक गाना सुने?
चाँदनी ओ मेरी चाँदनी?
या शायद?
"अरे, ये पूछना उससे की उसके पास कोई और सूट नहीं है क्या? मैं तो जब भी देखता हूँ, वो इसी सूट में होती है।
सफ़ेद पसंद है उसकी।
हाँ तो, जब देखो तब एक ही सूट डाल के चलदे?"
या शायद?
ये फोटो सिर्फ उदाहरण देने के लिए ली गई है।
जैसे दो औरतें? अलग-अलग उम्र, और? एक ने सूट डाला हुआ है और दूसरी ने? साड़ी? कुछ नहीं मिलता? पता नहीं कहाँ से क्या-क्या, देखती, पढ़ती या सुनती रहती हूँ मैं?
और भी ऐसे-सा ही कुछ इधर-उधर देखते हैं या पढ़ते हैं या सुनते हैं? कहीं भी कुछ नहीं मिलता। मगर, आपको लगता है की कुछ तो गड़बड़ है या कुछ तो मिलता-जुलता है?
इस सबको आप amplification भी कह सकते हैं और खास तरह की ट्रैनिंग भी। ऐसी-ऐसी ट्रैनिंग बहुत बार बहुत जगह आपका दिमाग लेता है, ज्यादातर आपकी जानकारी के बिना। ये ट्रैनिंग कुछ-कुछ ऐसी ही होती है, जैसे, बच्चे को बार-बार बोलकर कुछ सिखाया जाता है। या पशु-पक्षियों को ट्रैनिंग देते होता है। रोबॉटिक ट्रेनिंग या एनफोर्समेंट उससे थोड़ा आगे चलती है। वो कुछ-कुछ ऐसी होती है, जैसी आमने सामने-लड़ने वाली सेनाओं को दी जाती है।
या फिर बच्चे को? आप तो strong हैं, उठो कुछ नहीं हुआ, कितनी ही बार बच्चे को बोला होगा आपने?
अरे टाटी नहीं, दादी। बोलो बेटा, दादी। डीडी नहीं, दीदी। बोलो फिर से, दी दी।
आ, तुमने चींटी मार दी, वो देखो उसकी माँ आएगी अब। जल्दी उठो, तुम्हें तो कुछ लगा ही नहीं।
You are not so fragile.
My baby is not so weak.
अब ये तो इंसानो की ट्रेनिंग है।
और पशुओं की?
उनको खाना-पानी देने का वक़्त है। यहाँ या वहाँ बाँधने का वक़्त है। दूध निकालने का वक़्त है। नहलाने या साफ़-सफाई का वक़्त है। क्यों? ऐसा नहीं होगा तो क्या होगा? आपने जिस किसी फायदे के लिए रखे हैं, वो फायदा नहीं होगा? यही ना?
अब रोबॉट्स की ट्रेनिंग में क्या खास है? इंसानों से या पशु-पक्षियों से?
उन्हें दर्द नहीं होता?
उनके सभी पार्ट्स बदले जा सकते हैं। एकदम नए, बिल्कुल नए जैसा काम करेंगे? मतलब वो 100% बदले जा सकते हैं। जैसे आपकी गाड़ी। किसी मेजर एक्सीडेंट के बाद? और उनका नंबर रजिस्ट्रेशन वगैरह फिर भी वही रहेगा। फिर ये गाड़ियों को कहीं 10, कहीं 15 या 20 साल बाद बदलने के नियम क्यों हैं? ये बाज़ारवाद है? पुरानी चलती रहेगी, तो नई कैसे आएँगी? फिर कंपनियों को इतना फायदा कैसे होगा? ज्यादातर मध्यम वर्ग तो शायद ज़िंदगी भर ना बदले?
रोबॉट्स को कैसी भी परिस्तिथियों या मौसम में काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
उन्हें सोने या आराम करने की वैसे जरुरत नहीं पड़ती, जैसे जीवों को। हालाँकि, लिमिट्स उनकी भी होती हैं।
उनमें कोई भी खास तरह की चिप या ऐसा कोई खास पुर्जा, बिना ज्यादा साइड इफेक्ट्स की चिंता किए लगाया जा सकता है।
उनकी यादास्त उतनी ही होती है, जितना उसको फीड किया जाता है।
रोबोट्स के इन नियमों को जीव-जन्तुओं या इंसानों पर लागू कर दें तो? वो खास तरह की सेनाओं की ट्रेनिंग कहलाएगा? और सिविलियन्स के केस में ऐसा हो तो? मानव रोबॉटिकरण?
यादास्त और खास तरह की फीडिंग का उसमें कितना बड़ा हिस्सा है?
बहुत बड़ा। आदमी और कंप्यूटर या मशीन और रोबॉट्स में बहुत बड़ा फर्क यही है। इसी फर्क को राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने फायदे के लिए भुनाती है। उसमें सेल या अपने उत्पाद बेचने की कला या तरीके बड़े अहम हैं। उस सबमें भी आपके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी का होना और यादास्त को भुलाना या जगाना अहम है। चाहे उस यादास्त की अहमियत महज़ किसी आती-जाती सी कमेन्ट्री जैसी ही क्यों ना हो। बहुत बार जरुरी नहीं, उस यादास्त को जगाना ही अहम हो। हो सकता है, सिर्फ भुनाना हो, अपने फायदे के लिए? क्यूँकि, हो सकता है, सामने वाला उससे चिढ़ने ही लगा हो?
यहाँ तक तो सिर्फ पैसे जैसे से, फायदे या नुक्सान की बात है। क्या हो, अगर यही या ऐसे ही और तरीके अपनाकर यही लोग, इंसानों की ज़िंदगियाँ नर्क बनाने लगें या उन्हें बिमार करने लगें या ख़त्म ही करने लग जाएँ? वो कहीं ज्यादा खतरनाक और नुक्सान वाला है। और जिसकी भरपाई करना भी मुश्किल होता है। जैसे आपकी सेहत, खोया या गया हुआ वक़्त या शायद इंसान ही? आपके आसपास ही ऐसे कितने ही केस हो सकते हैं, जहाँ ऐसा हुआ हो या हो रहा हो? कैसे जानेंगे उसे? और कैसे निपटेंगे ऐसे खतरनाक खेल खेलने वाली इन राजनीतिक पार्टियों या बड़ी-बड़ी कंपनियों से?
जानने की कोशिश करते हैं, आगे कुछ एक पोस्ट में।
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