Metaphor?
Alligory?
सामान्तर घड़ाईयाँ?
या और भी ऐसे कितने ही नाम हो सकते हैं?
हग-मूत के जाले में उलझे वैज्ञानिकों, राजनितिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी अंतर्देशीय कंपनियों द्वारा, अलग-अलग तरह के हथकंडों से सिर्फ आपकी निजी ज़िंदगी में ही नहीं, बल्की inner wear और प्राइवेट पार्ट्स तक घुसी बेहूदगियों के इनके बाज़ारों से थोड़ा परे चलते हैं। मगर कहाँ?
वहाँ, जो जहाँ आपको कम से कम इतना सोचने समझने लायक तो बना ही दे, की आखिर इतना कुछ ये सब दूर बैठे कैसे कर सकते हैं? और क्यों कर रहे हैं? ये सब करके, इन्हें मिल क्या रहा है?
उसके लिए हमें सिर्फ अपने यहाँ के ही नहीं, बल्की, दुनियाँ के अलग-अलग देशों के शिक्षा तंत्र को समझना होगा। जिससे पता चलेगा की आज भी कुछ देश इतने गरीब और कुछ अमीर क्यों हैं? कुछ इतने शांतिप्रिय और कुछ इतने अशांत या झगड़ालू क्यों हैं? उसकी वजह क्या है? शिक्षा, उसका सिस्टम और उसके तौर तरीके उसमें अहम हैं। दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर से शुरु किया ये सफर, ऐसा ही कुछ जानते-जानते, जाने क्यों अंग्रेजों के उस हिस्से पर अटक जाता है, जिसने हमें इतने सालों गुलाम रखा। उन्होंने हमें इतने सालों गुलाम क्यों रखा या हमारी ऐसी कौन सी कमजोरियाँ थी, की वो हमें इतने सालों गुलाम रख पाए? आज क्या हम आज़ाद हैं? या आज काले अंग्रेजों के गुलाम हो गए हैं? और ये सफ़ेद अंग्रेज या काले अंग्रेज क्या हैं? इन्हें जानना बहुत जरुरी है क्या?
Sun treated या radiation treated लोग काले हैं और snow treated लोग गोरे? Beyond cast or creed, even scientifically, it is a fact. Story of melanin or human pigment evolution?
तो कहाँ से शुरु करें? पैन, पैंसिल, चाक, मार्कर, बोर्ड, किताब, लैपटॉप, नोटबुक, नैटबुक या न्यूज़बुक से? ये चर्चा का विषय होना चाहिए, हर पार्टी के लिए, हर छोटी-बड़ी कंपनी के लिए, हर तरह के मीडिया के लिए। किसी भी समाज का भविष्य यहीं से आगे बढ़ता है।
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