शिक्षा के लिए या धर्म के लिए उगाही करने वाला समाज, कितना विकसित या पिछड़ा हो सकता है? ऐसा ही, कहीं की राजनीती या राजनितिक पार्टियों पर लागू होता है? इस प्रश्न का जवाब आने वाली पोस्ट्स में अपने आप मिल सकता है। चाक या पैंसिल से शुरु करें? या पैन या मार्कर से? या स्टाइलस से (स्क्रीन पैन)?
बच्चों वाले चाक या पैंसिल से शुरु करते हैं, सुना है की जिसमें गलत होने पर, गलती को आसानी से मिटाने की सुविधा भी होती है? ऐसा ही?
लेक्चर थिएटर से शुरु करें या new age स्टूडियो से? या फिर सीधा न्यूज़ रुम चलें? या न्यूज़बुक? अरे! ये न्यूज़ बुक क्या होता है? पीछे, NDTV पर एक बड़ा ही रौचक सा कॉन्सेप्ट सामने आया। जो अचानक से, मेरे यूट्यूब मीडिया को जैसे बदल रहा था। ऐसा क्या खास है इसमें? यूँ लगा जैसे, ये तो मेरे लिए ही personalise कर दिया हो? पर्सनल मेडिसिन जैसा सा कॉन्सेप्ट? नहीं, नहीं, कुछ तो गड़बड़ है। मगर क्या? बड़ाम, बड़ाम, बड़ाम? नहीं। भड़काने वाला है ये तो? वो भी बैकग्राउंड में म्यूजिक तड़के के साथ? वो जैसे भूतों का कोई मंदिर, जहाँ से बड़ी ही अज़ीब सी आवाज़ें आ रही हों? लोग मंदिर जैसी जगहों पर, शांति के लिए जाते हैं या डरने-डराने के लिए? कलटेशवर मायानगरी जैसे?
आप भी सोच रहे होंगे, की ये शिक्षा की बात करते-करते कहाँ पहुँच गए हम? मैंने भी जब ऐसा-सा प्र्शन किया, तो मेरा यूट्यूब, NDTV के "कच हरी" पहुँचा मिला कहीं? जैसे कह रहा हो, अच्छा, तो वो कॉन्सेप्ट पसंद नहीं आया? तो लो, हम तो आप वाले शब्दों को बच्चों की तरह तोड़-तोड़ कर पढ़ने-पढ़ाने वाले कॉन्सेप्ट पर आ जाते हैं। प्रशांत किशोर और प्रीती चौधरी के India Today के पॉडकास्ट के बाद, चलें?
NDTV की "कच हरी"?
No comments:
Post a Comment