About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Monday, September 9, 2024

Today's Dhamaal

 I sent a mail today to university.

                                                   In response? I got some interesting mails.

(Rare happenings)


10 special effects?

To know the truth of these mails, which seems fake, I called  these offices.

No-one was there to pick the calls?

When something like that happened in the past?
"Mara" special call and drama, the day, I filed PIL in Supreme Court regarding murders of common people, corona times.
And what kidos call that? 
IPL? As they don't know the truth of many mishappenings in their own homes?
People are so stupid that they cannot even differentiate between PIL and IPL?
Wanna know about that "Mara" special call and drama? Maybe, some other post.

It's Joining Back

Release My Saving Or It's Joining Back?

उस मेल के बाद भी बात होती रही concerned file holders से। 

अकादमिक ब्रांच, टीचिंग। 

संगीता मैम, फाइल क्लियर हो गई क्या? एक साल से ऊप्पर तो फाइल शायद आपकी ही टेबल पर है?

जब वो कहें की एक दो-दिन में क्लियर हो जाएगी, तो यूनिवर्सिटी कोई बारिश का ड्रामा चलाएगी। जी यूनिवर्सिटी। पीछे केजरीवाल की बेल होनी थी। तारीख़ क्या थी? तारीख़ पे तारीख़ चल रहा यहाँ भी। अपनी तो समझ से बाहर है। किसी को आए तो बताना?

उस दिन या उसके अगले दिन फाइल क्लियर होनी थी। मगर, नहीं हुई। क्या? बेल या फाइल? दोनों ही। अब कोई पूछे की ये किसी टीचर की बचत की फाइल का, केजरीवाल की बेल से क्या लेना-देना? खैर! मैं उसके बाद यूनिवर्सिटी गई और क्या हुआ?

Academic Branch

संगीता मैम कहाँ हैं? 

कोई एम्प्लोयी: मैडम वो तो डीन के वहाँ मिटिंग में गए हैं। 

कब तक आएँगे?

पता नहीं 

और मैं थैंक यू बोलकर डीन ऑफिस आ गई। 

डीन असिस्टेंट रुम: अंदर कोई मीटिंग चल रही है?

अभी शुरु नहीं हुई है मैडम। शुरु होने ही वाली है। 

संगीता मैम हैं वहाँ, ऐकडेमिक से?

शायद हैं। 

एक बार बोल दो, की विजय दांगी मिलने आई हुई हैं। 

मैम, मीटिंग शुरु हो गई। 

कितनी देर चलेगी, कुछ आईडिया है? 

जी, पता नहीं। 

कौन-कौन हैं मीटिंग में?

राहुल ऋषि सर, गिल सर। और भी कई हैं। 

एजेंडा क्या है?

स्टूडेंट से रिलेटेड ही है, कोई। 

और आप थैंक यू बोलकर यहाँ से भी आगे बढे। थोड़ी देर इधर-उधर गप्पे हाँक के, रजिस्ट्रार ऑफिस के वेटिंग रुम में बैठ गए, जो डीन ऑफिस के साथ ही है। 

मोबाइल की बैटरी भाग गई। अभी तो 10% दिखा रहा था? खैर, साथ में ही चार्ज होने के लिए रख दिया। 

उधर एक फीमेल सिक्योरिटी गार्ड और दो बन्दे और बैठे हैं, जिन्हें मैं नहीं जानती। 

उनसे पूछा तो एक ने बताया, ड्राइवर परमिंदर दलाल? और दूसरा भी ड्राइवर, देवेंदर हूडा। एक प्रोफेसर राहुल ऋषि का और दूसरा प्रोफ़ेसर गिल का?

इसी दौरान थोड़ी बहुत फीमेल गार्ड से भी बात होती है, जिसे मैं पहले से जानती हूँ, नीम केस और एक दो मीटिंग के दौरान थोड़ी बहुत बात हो रखी थी, मनीषा।

बाहर से तेज-तेज आवाज़ आ रही हैं। स्टूडेंट्स का कोई प्रोटैस्ट चल रहा है, शायद? 

मीटिंग भी उसी सन्दर्भ में है क्या?

पता नहीं, मैडम। 

थोड़ी देर बाद दो और लेडी आकर फीमेल गार्ड से बात करने लगती हैं। और शायद यही बताती हैं की बाहर तो बारिश हो रही है। जिसकी आवाज़ अंदर तक आ रही थी। क्यूँकि, इन ऑफिस के बीच, फाइबर कवरिंग है शायद? जिसपे बारिश पड़ते ही बहुत तेज आवाज़ होती है। 

इन सबके बीच, मैं कुछ मीडिया वालों की खबरें पढ़ रही थी, मोबाइल पे।    

गार्ड्स अपना खाना खा रही थी। 

लंच ब्रेक ख़त्म हुआ और मैं वापस ऐकडेमिक ब्रांच। 

संगीता मैम से पूछा, फाइल फाइनेंस ऑफिस पहुँची की नहीं?  

मैडम, अभी एक-दो दिन और लगेंगे। 

अब क्या रह गया?

आपने वो मेल नहीं किया उन्हें (GB को), आपका रेंट माफ़ कर दें। 

अरे मैडम, आपको पहले भी तो बोला, कटने दो और फाइल आगे बढ़ाओ। 

मैडम, मैं तो आपके भले के लिए ही कह रही हूँ। 

वो GB वाले वो गुंडे हैं, जो भाभी की मौत के बाद, मेरे रेजिडेंस के रेंट का फरहा, मेरे नॉमिनी को भेझते हैं। जैसे की मैं मर गई हों। 

मैडम, क्या जाता है, एक मेल से काम हो जाए तो। 

मुझे अच्छा नहीं लग रहा कोई ऐसी रिक्वेस्ट करना। वो भी किनसे? जो आदमखोरों की तरह, भाभी की मौत के बाद, मेरे रेंट का फरहा, मेरे नॉमिनी को भेझे? कैसी बेहूदा और भद्दी नौटंकियाँ हैं ये? इंसानियत कहाँ है? और फिर इतने थोड़े-से पैसे के लिए, ऐसे लोगों को रिक्वेस्ट करना?

मैडम देख लो, हो सके तो, कर देना मेल। 

आप ऐसे ही जाने दो इस फाइल को प्लीज। वैसे भी बहुत लेट हो चुकी ये फाइल।    

अभी कहीं और मुझे नौकरी करनी नहीं। अपना ही कोई प्रोजेक्ट करना है और मुझे पैसों की जरुरत है। 

कितनी अजीब बात है ना, की आप अपने ही पैसों के लिए धक्के खा रहे हैं? मन में सोचते हुए, मैं वहाँ से आ गई। क्या तारीख थी, उस दिन? 21. 08. 2024?

पहले वो यूनिवर्सिटी में आपकी नौकरी हराम करते हैं। हर जगह रोड़े अटकाते हैं। मार-कूट के वहाँ से निकालते हैं। और फिर घर पे अर्थियाँ उठाते हैं। ज़मीन-ज़ायदाद या किसी की थोड़ी बहुत बचत को भी हड़पने के चक्कर में लग जाते हैं?

एक तरफ आम आदमी और एक तरफ बड़े लोग? एक निम्न मध्य वर्ग को वो बिल्कुल मिट्टी में मिलाने का काम करते हैं। कोई पता तो करे, की इस कोरोना नाम के फर्जीवाड़े के बाद, कैसे-कैसे लोगों की प्रॉपर्टीज़ में अचानक कितना उछाल आया है या बढ़ी हैं? और किनकी उन्होंने बिल्कुल ही जैसे साफ़ कर दी? 

इसी से आपको समझ आ जाएगा की ये ज़मीनों या प्रॉपर्टी के धंधों के पीछे छुपी असली कहानी क्या है? हर केस में, समाज के ऊप्पर वाला वर्ग मार सबसे कम खाता है और फायदा हमेशा सबसे ज्यादा। उससे जैसे-जैसे, नीचे वाले वर्ग पे जाते जाओगे, पता चलेगा की वो वर्ग उतना ही ज्यादा भुगतान करता है। 

अब तो मुझे अपनी नौकरी भी चाहिए और मेरा रेजिडेंस भी। धँधाकर्मियों ने हर चीज़ को अपने बाप की प्राइवेट लिमिटेड बना लिया है। फिर वो सरकारी क्या और प्राइवेट क्या? ये कैसे लोग कुर्सियों पे बैठे हैं? जो कहते हैं, यहाँ शिक्षा का या रिसर्च का माहौल देना, हमारा काम नहीं या हमारे वश में नहीं। इतनी सिक्योरिटी वाली जगह पे, कायरों की तरह मिलजुलकर एक महिला को पीटना या पिटवाना इनका काम है? वो है जो इनके वश में है? उसी के लिए तो ये कुर्सियां मिलती हैं इन्हें? 

और इन्हीं पढ़े-लिखे और कढ़े शातिरों ने हमारे बच्चे-बड़े सब उलझा रखे हैं, अपने जालों में। सामान्तर घड़ाईयों द्वारा। वो कुछ उल्टा-पुल्टा कहलवायेंगे या करवाएंगे भी इन्हीं से। और फिर उसकी मार भी इन्हीं को देंगे। कैसे? आते हैं उसपे भी आगे पोस्ट्स में। 

जैसे कोई कहे, इसकी नौकरी छुडवानी है। 

और कोई कहे रेजिडेंस छुड़वाना है। 

कोई कहे बचत का आना नहीं मिलने देना या मिलना। 

और लम्बी लिस्ट है। जिनसे ये ऐसी-ऐसी कमेंटरी कहलवाई या करवाई, उन्हीं का इतना कुछ खा गए ये सामान्तर घड़ाईयों वाले, की जिसकी ज़िंदगी भर भरपाई नहीं हो सकती। सोचो, आपसे या आपके आसपास ही ऐसा कुछ किन-किन से कहलवाया गया या करवाने की कोशिशें हुई? और कैसे कहलवाया या करवाया? तरीके? और अंजाम? आप सोचो अभी। पढ़ेंगे को मिलेगा आगे।

Release My Saving Or It's Joining Back?

2021 में Resignation Accept हुआ। उससे पहले क्या चल रहा था? सबको नहीं तो बहुतों को मालूम है अभी तो शायद। कैंपस क्राइम सीरीज पढ़ने वालों को खासकर।  

 इधर-उधर से सलाह आने लगी, Resignation की बजाय छुट्टी ले लो। मेरा मन भी कोई खास पढ़ाई का था, तो वो भी लिख दिया। और कैंपस क्राइम सीरीज पब्लिश करना शुरु कर दिया। 6 महीने बाद GB (General Branch) वालों ने परेशान करना शुरू कर दिया। रेंट ज्यादा लगेगा, रेजिडेंस छोड़ दो। मेरा कहीं और ठिकाना ही नहीं था। अपना कोई घर लिया नहीं हुआ था और बाहर रहने का मन नहीं था। तो लिख दिया, काट लेना जो बने। कुछ वक़्त बाद उन्होंने और ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया। और ये GB पता है कौन है? Big Boss Houses के ठेकेदार? इनका काम ठीक-ठाक रहने लायक घर देना होता है, एम्प्लॉयीज को। और कोई कंप्लेन हो तो ठीक करना। इन्होंने जो किया है, अगर सही से करवाई हो तो ये ज़िंदगी भर जेल में सड़ें।   

खैर, मैंने माहौल को देखते हुए, कहीं बाहर रहने की बजाय, घर का रुख कर लिया। महाभारत, यहाँ भी नहीं रुकी, बल्की कुछ ज्यादा ही बढ़ गई और इस राजनीतिक पार्टियों की महाभारत ने लोगों को खाना शुरू कर दिया। इस सबके दौरान भी corresspondence होती रही। 

यूनिवर्सिटी ने ना तो जॉइनिंग दी और ना ही पैसा। मना भी नहीं किया। क्या कहके करते? हाँ, इधर-उधर से जरुर कहलवाया की कुछ नहीं बचा हुआ तुम्हारा। कुछ यूनिवर्सिटी को अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी समझने वालों ने? मगर unofficial या इधर-उधर के बुजर्गों के कहने का क्या? यूनिवर्सिटी ने सिर्फ बहाने पे बहाने दिए। फाइल यहाँ है। फाइल वहाँ है। कभी ये समस्या है, तो कभी वो समस्या है। जो समझ आया, वो ये की समस्या कुछ नहीं है। गुंडागर्दी है। उसी गुंडागर्दी ने पर्सनल और प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी की राह में रोड़े अटकाए हुए हैं। कुछ साल पहले तक कुछ शक थे, बिमारियों पे, मौतों पे। धीरे-धीरे वो शक हकीकत का आईना भी दिखाने लगे। और एक बहुत-ही बेहुदा और घटिया, गुप्त-सिस्टम को भी। ये पीछे जो यूनिवर्सिटी को मेल की, वो है। 

Sunday, August 25, 2024

कुछ हल्का-फुल्का हो जाए?

 हल्का-फुल्का?

"मेरे पापा ने मुझे स्कूल में जमा करा दिया", ये किसी कवि को कहीं सुना था शायद? 

आगे थोड़ा जमाबंदी से  

और कहा अबसे आपकी बंदी (बंधी पढ़ें?) है ये। 

तो नाम पड़ा होगा, जमाबंदी?

कितनी जमाबन्दियाँ हैं आपके आसपास?  

Landrecords की एक ऑफिसियल वेबसाइट है jamabandi.nic.in   

jamabandi? पे जाके आप अपनी जमाबंदी की nakal (हूबहू कॉपी) ले सकते हैं।   

और ये DSNakal क्या है?  दुशाषन या दुर्योधन नकल जैसे? 

और इसी jamabandi की वेबसाइट से आप अपनी जमीन का mut (वैसे हिंदी में इस शब्द को क्या कहेंगे?  स्टेटस भी पता कर सकते हैं।  

वैसे Mutation शब्द? के मायने कुछ-कुछ वैसे ही हैं, जैसे Biological Mutations?   

https://jamabandi.nic.in/DSNakal/CheckMutStatus

Query 

Deed 

Cadastral Map ऐसी-सी ही कुछ और रोचक जानकारी भी है इस वेबसाइट पर। उसपे फिर कभी :)

Friday, August 16, 2024

आजादी दिवस? गोली या गोला दिवस?

Independence Day?

मुझे तो आज़ादी और बेड़ियों का मतलब समझ, 2019 में ही आ गया था। तारीख क्या थी? और महीना? उसके बाद, उसी महीने में अगले साल कुछ खास था? खैर। इस दौरान जो दुनियाँ देखी, मुझे लगता है दूर से ही सही, वो एक बार तो जरुर सबको देखनी चाहिए। क्यों? अगर आप रिसर्च को खास समझते हैं तो शायद अपने पेपरों को ही या तो रद्दी के हवाले कर देंगे। या उनमें थोड़ा-बहुत तो जरुर कुछ और बेहतर करने का सोचेंगे। मगर रिसर्च ही क्यों?

आओ कुछ-एक भाषण सुनें।    

रौचक भाषण, अगर जाती से परे थोड़ा देखें तो?



मुझे नेता-वेता या राहुल गाँधी कोई खास पसंद नहीं। मगर, एक-दो सत्यपाल मलिक के भाषण सुने हैं। काफी रौचक होते हैं। कुछ एक पॉइंट्स खासतौर पर जानने लायक। थोड़े बहुत मानने लायक भी शायद। जैसे इस भाषण में शिक्षा को लेकर। 
शिक्षा पे जीतना ध्यान दोगे, उतना ही आगे बढ़ोगे। जीतना इससे दूर जाओगे, उतना ही पिछड़ते जाओगे। ये मैंने जोड़ दिया।   

"गोली अगर आए, तो उसका जवाब गोले से देना"

गोली से आप क्या समझते हैं? 

और गोले से?

हमारे मौलड़ जवाब कैसे देंगे? हथियारों से? और फिर?

ज्यादा पढ़े और उसपे कढ़े हुए लोग कैसे देंगे?    

गोली के बारे में बात बाद में। पहले गोला समझें थोड़ा?

गूगल बाबा से पूछें?  

AI (Artificial Intelligence) कभी-कभी बड़े रोचक परिणाम देती है।  
जैसे किसी साइड की तरफ से कोड-डिकोड में सहायता? 
कैसे पढ़ेंगे इस तस्वीर को आप?

आपके आसपास कोई गोले बेचने आता है क्या?
या गोली बेचने?
गोली तो शायद आप दूकान से लाते हैं? Pharma या Medicine Shop? 
आपके आसपास किन-किन की हैं, वो दुकानें?
एक ही दवाई अलग-अलग दूकान से लेकर देखो। 
किसी या किन्हीं ऐसी दवाईयों में कुछ फर्क मिलता है क्या?

ऐसे ही नारियल पानी कहाँ मिलता है?
या पानी वाला नारियल? 
या किससे मिलता है?
और वो देने वाले कहाँ से लाते हैं?
 
और गोला?
आपके आसपास आता है कोई बेचने?
कौन? कहाँ से? 
एक गोले के कितने टुकड़े करता है?
और कितने में मिलता है?
पूरा गोला कितने का और एक टुकड़ा कितने का?
और पानी वाला नारियल कितने का?
सूखे गोले में और पानी वाले नारियल में क्या फर्क है?
बिमारियों से जोड़कर देखो।     

ये सब जानकर? अब ऊप्पर वाली गूगल की गूगली वाली तस्वीर को समझने की कोशिश करो। शायद कुछ खास बिमारियों के किस्से-कहानी समझ आ जाएँ? सम्भव है? कोशिश तो करके देखो। आप जो कोई खाना या पानी ले रहे हैं, बिमारियों के काफी राज उन्हीं में छिपे हैं। उसके बाद दवाईयों या हॉस्पिटल तक जाते हो, तो बाकी कोड वहाँ मिल जाएँगे। 

उससे भी आगे, अगर कभी पहुँचना पड़े तो? जब तक बहुत सारे कोड और उनके मतलब ना पता हों, तो बहुत कुछ जानना तो मुश्किल है। मगर, खास तेहरवीं तक के वक़्त में, अगर कोई नेता या अभिनेता आ फटके, तो तारीख और वक़्त अपने आप काफी कुछ गा रहा होगा। कहीं-कहीं तो शायद ऐसा लगेगा, की इस साँप के डंक का दिन आज का है? ये साँत्वना देने आया है या अपने किन्हीं कांडों पे मोहर ठोकने जैसे? अजीब लग रहा है, ये सब पढ़कर? मगर राजनीति के इस धंधे में कुछ ऐसा-सा ही बताया। और बहुत बार तो जरुरी नहीं की नेता तक को कुछ ऐसा पता हो। क्यूँकि, वो महज़ एक proxy भी हो सकता है, किसी तरफ के किसी खास किरदार की। वो भी उसकी अपनी जानकारी के बिना। 

चलो आपने In Depen Dence का गोला या गोली फेंक ली हो, तो अगले भाषण या शायद किसी इंटरव्यू को देखें? सुने? और थोड़ा समझने की कोशिश करें?   

Saturday, August 10, 2024

किताबवाड़ा, बैठक या गतवाड़ा?

मतलब, जमवाड़ा? जमघट? किताबों का? 

मगर, राजनीती ने उसकी दुर्दशा करके यूँ लगता है, जैसे, गतवाड़ा बना दिया हो। बहुतों को शायद गतवाड़ा क्या होता है, यही नही मालूम होगा। हरियाणा और आसपास के राज्यों में, गरीब लोग गाएँ-भैंसों के गोबर के उपले बनाते हैं। वो भी हाथ से। फिर, उन उपलों को सूखा कर, स्टोर करते हैं। गरीब हैं, तो स्टोर करने तक को कोई जगह नहीं होगी, जहाँ उन्हें बारिश से बचाया जा सके। तो उपलों को खास तरकीब से तहों पे तहें रख कर, बाहर से गोबर से लेप देते हैं। उसे गतवाड़ा कहते हैं। ये गोबर से बने उपले, गैस की जगह प्रयोग होते हैं। गतवाड़े को ठेठ हरियाणवी में बटोड़ा और उपलों को गोसे भी कहते हैं।  

एक कहावत भी है, अगर कोई कुछ ढंग का बोलने की बजाय या दिखाने या समझाने की बजाय, या करने की बजाय, अगर फालतू की बकवास करे तो? हरियाणा में उसे "नरा बटोड़ा स। बटोड़े मैं त गोसे ए लकड़ेंगे।" भी बोला जाता है। राजनीती के अपमानकर्ताओं के कुछ ऐसे से ही हाल बताए। ये, ईधर के अपमानकर्ता और वो उधर के। इन हालातों को सुधारने के थोड़े शालीन तरीके भी हैं। 

जैसे, गतवाड़े अगर किताबवाड़े हो जाएँ? तो क्या निकलेगा उनमें से? तो चलो मेरे देश के खास-म-खास महान नेताओ, और कुछ नहीं तो अपने-अपने नाम से या खास अपनों के नाम से ही सही, कुछ एक किताबवाड़े ही बनवा दो? जहाँ से "फुक्कन जोगे", "अपमानकर्ता गोसे", नहीं, ज्ञान-विज्ञान के पिटारे निकलेंगे, किताबों के रुप में। और आसपास के बच्चों, बड़ों या बुजर्गों को इक्क्ठे बैठने के लिए या आपसी संवाद के लिए, या कुछ नया या पुराना सीखने के लिए, न सिर्फ जगह मिलेंगी, बल्की समाज का थोड़ा स्तर भी बेहतर होगा। उन्हें किताबवाड़े की जगह बैठक भी बोल सकते हैं। जहाँ हुक्के, ताशों या तू-तू, मैं-मैं की बजाय, थोड़ा बेहतर तरीके से संवाद हो। वैसे, जिनके पास थोड़ी बड़ी बैठकें हैं या जो अपनी बैठकों को खास समझते हैं, वो भी उन्हें कोई खास नाम देकर, ऐसा कुछ बना सकते हैं। 

ऐसे ही शायद, जैसे भगतों या शहीदों के नाम पर सिर्फ पथ्थरों की मूर्तियाँ घड़ने के, वहाँ ऐसा कुछ भी हो? तो शायद लोगों को ऐसी जगहें ज्यादा बेहतर लगेंगी।    

"चलती-फिरती गाड़ी, कबाड़ की। लाओ, जिस किसी माता-बहन ने कबाड़ बेचना है। कबाड़ लाओ और नकद पैसे लो। चलती-फिरती गाडी कबाड़ की।" अब ये क्या है?

किताबों पे या इनके आसपास के विषयों पे, जब कुछ ऐसा लिखा जाता है, तो जाने क्यों, बाहर कोई ऐसा-सा बंदा जा रहा होता है। या फिर, "काटड़ा बेच लो।"  कुछ भी जैसे? है ना :) 

Friday, August 9, 2024

Revolving around base is our system?

What kind of base is that?

आधार केन्द्रित? मूल? जिसपे ब्याज भी लगता है? और जिसका टैक्स भी कटता है? और? अगर आप इनके अनुसार ना चले, तो टैक्स भी भारी-भरकम लगता है।     

जहाँ पढ़ने वालों को क्लासों से, लैब्स से बाहर निकालने की कोशिश होती हैं। पढ़ाई-लिखाई या कैरियर ओरिएंटेड लोगों को प्रोफ़ेशनल जोन से ही बाहर धकेलने की कोशिशें होती हैं। जाने कौन-से मैट पे और कैसे-कैसे तरीकों से? जैसे, उस खास किस्म के मैट के बिना ज़िंदगी ही ख़त्म है। उसके बिना कुछ नहीं ज़िंदगी में। जैसे कुछ लोगों के हिसाब-किताब से एक उम्र तक शादी नहीं की, तो आपकी ज़िंदगी में है ही क्या? जैसे जिन्होंने शादी कर ली, उन्हीं की ज़िंदगी में सब है। शायद थोड़े से ज्यादा झमेले? और जो सारी उम्र ना करें, वो तो बिलकुल ही ख़त्म होंगे? अब किसी की शादी हो गई और बच्चे नहीं हुए या पैदा नहीं कर रहे, तो उन ज़िंदगियों में कुछ नहीं है? एक दकियानुशी दायरे में कैद सोच, जो चाहे की सब उनके दायरे वाली कैदों के हवाले रहें। उनके खास टैस्टिंग वाली लैब्स के टैस्ट से गुजरें। नहीं तो --- 

और इन खास सोच वालों के हिसाब-किताब से ना ही इन ज़िंदगियों को कुछ चाहिए। जो है वो सब उनके हिसाब-किताब वाली ज़िंदगियों को अवार्ड होना चाहिए। ऐसे लोगों को देख-सुनकर या झेलकर समझ ही नहीं आता, की तानाशाही के कितने रुप हो सकते हैं? क्यों कोई किसी के जबरदस्ती के स्टीकर उठाए घूमें? और क्यों सबकी ज़िंदगियाँ, इन खास वाले ठेकेदारों के हिसाब-किताब से चलें? 

हिसाब-किताब? बेबी को बेस पसंद है, वाले? या 

"जब वो मैट पे कुस्ती लड़ रहे थे, तो ये विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।"

--पे तो हमारी राजनीतिक पार्टियों की पॉलिसी चलती हैं?   

बताओ ऐसे-ऐसे हमारे युवा नेता, खास बाहर से पढ़े-लिखे, क्या और कितना देंगे समाज को? प्रश्न हैं, ऐसे-ऐसे कुछ अपने खास नेताओं के लिए। वो फिर इस पार्टी के हों या उस पार्टी के। ये खास "बेस पसंद सिस्टम" या "खास टच पैड सिस्टम", बाहर निकल पाएगा क्या, 23rd पेअर सैक्स क्रोमोजोम से ? महज़ XY के हॉर्मोन्स से? 44 क्रोमोजोम और भी हैं। ठीक ऐसे जैसे, इन खास जुआ खेलने वाले वर्ग के। सारे समाज को क्यों घसीटते हो वहाँ? ये कम पढ़ी-लिखी या तकरीबन अनपढ़ माएँ, चाचियाँ, ताई या दादियाँ, कैसे-कैसे पानी के खेल खेलते हो इनके साथ आप? और तो क्या कहें भाईचारे वाले इन नेताओं को, "गलत बात"। आप समाज को आगे बढ़ाने और उठाने के लिए हैं, ना की यूँ गिराने के लिए। 

ऐसे तो नेता को "अपमानकर्ता" से संबोधित करना पड़ेगा। फिर राजनीती के लिए सही शब्द क्या होगा ? "Insult to life, insult to death", के लिए एक हिंदी या हरियान्वी शब्द?                            

माहौल (Culture Media)

माहौल कैसे प्रभावित करता है, किसी भी जीव को? उसकी ग्रोथ को या ज़िंदगी को?
छोटे-छोटे से उदहारण लेते हैं। 

आवाज़ें आ रही हैं कहीं से। किसी छोटी-सी बच्ची पे डाँट पड़ रही है शायद। 
गँवारपठ्ठे: हरामजादी, कुत्ती, सारा साल तो खेलती हाँडी, ईब बैठ क रोवै स, जब कल सर प पेपर है। ब्लाह, ब्लाह,
स्कूल के बच्चों पे इतना प्रेशर? और ये जुबान तो आम है यहाँ। 

थोड़ी देर बाद बच्चा सुबकते हुए: मरुँगी मैं। मेरे को नहीं जीना। मरुँगी मैं। 
क्या हुआ? सिलेबस पूरा नहीं हुआ ना? खेलने चले गए, मना करने के बावजूद?
पापा ले गए खेत, घुमाने। 
पापा ले गए या आप खुद गए? 

रोना बंद करो अब और लो पानी पीओ। क्या खाना है? 
गुस्से में: कुछ नहीं खाना। मरना है मेरे को। मैं भी .......  मर जाती तो ब्लाह ब्लाह ब्लाह 
ओह हो। इतना गुस्सा? इतने छोटे-से बच्चे में? पेपरों की वजह से भी कोई मरता है? ये अब गए, तो कल फिर आ जाएँगे। आज नहीं हुआ, तो कल हो जाएगा। 
चुप करो। वक़्त नहीं है, मेरे पास। 
बाप रे। अभी तो बहुत वक़्त है आपके पास। पूरी ज़िंदगी है। 
नहीं है। मरना है मुझे। 
बकवास बंद करो, नहीं तो 
नहीं तो क्या 
बैठ के पढ़ते हैं। 
नहीं होगा। सारा सिलेबस पड़ा है। 
अरे दिखाओ तो, मुझे भी पता है। इत्ता-सा तो सिलेबस है। 
इत्ता-सा?
हाँ। बस 2-4 घंटे में हो जाएगा। 
2-4 घंटे में?
हाँ। और अभी तो हमारे पास पूरी रात है। 
मैं जाग लूंगी?
मैं जगा दूंगी। 
नींद आई तो?
नहीं आएगी। नींद भगाने के तरीके होते हैं। 
अभी किताब खोलो 
और 12. 00 - 12. 30 तक सिलेबस निपट गया, समझो। 
(बच्चों का सिलेबस ही कितना होता है? मगर, बच्चों के लिए तो वही पहाड़ होगा, अगर वक़्त कम होगा या समझ नहीं आएगा तो। )    
जाओ अब सो जाओ। बाकी सुबह उठकर पढ़ लेना। मैं जगा दूंगी। 
और पेपर के बाद बच्चा, पेपर अच्छा हो गया, अच्छा हो गया, करता आ रहा है। 
 
और एक हमारी माँ करती थी। 
माँ, सुबह उठा दियो। पेपर देने जाना है। 
पेपर तेरा है या मेरा? देके आना हो तो उठ लियो।  
:)

या फिर लेट तक जाग रहे हो और कोई थोड़ा बहुत शोर हो गया।  
भाईरोई, पड़े न पड़न दे। किसे और क भी लाइट जले स? अक तू अ घणी पढ़ाकू स? 
या 
इन पोथ्यां न त बिगाड़ दी। कम पढे ए, सही रहवे ए। 
मतलब, यहाँ आजतक पढ़ाई पे खतरे हैं। बहाना कुछ भी हो सकता है। 
 
इन लोगों ने देखा ही नहीं की दुनियाँ कितना-कितना पढ़ती है। और उनकी ज़िंदगियाँ मस्त हैं। कम से कम, यहाँ वाली औरतों जैसे हालात तो नहीं हैं। बोल चाल का तरीका, रहन-सहन का तरीका, सुख-सुविधाएँ, समझाने का तरीका या प्रेशर को बढ़ाने का, सिर्फ शब्दों ही शब्दों में या घटाने का, बहुत असर करता है ज़िंदगी पे। और भी कितनी ही छोटी-मोटी सी रोजमर्रा की बातें, ज़िंदगी को आगे बढ़ाने में या पीछे धकेलने में कितना तो योगदान देती हैं। तभी तो आप जो होते हैं, आपके बच्चे भी ज्यादातर वहीं तक रह जाते हैं। उससे आगे, उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। और उस मेहनत को अक्सर ये माहौल, आगे बढ़ाने की बजाय, पीछे धकेलता मिलेगा। 

ड्राफ्ट में पड़ी थी ये पोस्ट। कुछ महीने पहले की बात है। मगर जाने क्यों, पोस्ट करने का मन नहीं था। ऐसे ही जैसे कितना कुछ हम लिखते हैं, मगर सब पोस्ट कहाँ करते हैं? यूँ ही, छोटी-छोटी सी बातें समझ के। यही छोटी-छोटी सी बातें, कभी-कभी कितना कुछ बिगाड़ कर जाती हैं?            

Sunday, August 4, 2024

मगर कैसे?

Rhythms of Life 4th अगस्त 2011 पोस्ट, ब्लॉग्स के organization, clutter, declutter में कहीं और गई।   
आज ही के दिन कोई इंसान इस घर से गया था। जो इस घर का न होकर भी, अपने घर से ज्यादा इस घर का था। कोई बात ही नहीं थी। मेरे पास आया , स्टडी टेबल और कुर्सी दे गया। उन दिनों मै सैक्टर-14 रहती थी। घर पे भी ऐसी ही कुछ, कहानियाँ थी। मगर, ऐसी कहानियों के पीछे छिपे रहस्यों को जानना, बहुत मुश्किल भी नहीं होता शायद।  

अरविंद केजरीवाल रैली और किसान हादसा : ऐसे केसों को जानना शायद थोड़ा बहुत मुश्किल हो ? शायद ?

ऐसा-सा ही कुछ ये भी शायद?

Generally, मैं स्पैम मेल्स नहीं खोलती। उसपे gmail तो वैसे भी yahoo से कम ही प्रयोग होता है। मगर जब भी खुलता है, तो ज्यादातर स्पैम बिना पढ़े डिलीट होती हैं। शायद यही होना भी चाहिए।

 
मगर, जाने क्यों कल जब कई दिन बाद चैक किया तो स्पैम मेल्स पे निगाह ठहर गई जैसे। इमेल्स भी पीछे की तारीख में होती हैं क्या, स्पैम ही सही? या महज coincidence जैसे? या कुछ नहीं मिलता-जुलता? या मिलता भी है और नहीं भी शायद? मगर कैसे? यहाँ-वहाँ , जाने कहाँ-कहाँ, सब जैसे साथ-साथ सा ही होता है? मगर कैसे? ये अहम है। 
Cleartax ने ?

Micromaagemet upto what level ?

अपडेट नहीं करोगे तो ?

 Somewhat like, "do so and so", ELSE  

धमकियाँ जैसे? या डरावे जैसे?

ऐसा ही कुछ है इस जुए के राजनीतिक धंधे में। और अपनी इन धमकियों या डरावों को कायम रखने के लिए ये पार्टियाँ कितनी ही तरह के साम, दाम, दंड, और भेद अपनाती हैं। 

पहले भी लिखा किसी पोस्ट में, हर अपडेट, हर इंसान के लिए सही नहीं होता। और ना ही जरुरी। हाँ। अपडेट लाने वालों के लिए जरुर होता है। नहीं तो, उनके नए-नए उत्पाद कैसे बिकेंगे? और कैसे उनके व्यवसाय या धंधे आगे बढ़ेंगे? नए-नए अपडेट या उत्पाद बाजार में लाने का मतलब ही, पुरानों को ठिकाने लगाना होता है। और जरुरी भी नहीं, की नया पुराने से बेहतर ही हो। या उस बेहतर में ऐसा कुछ भी, जिसकी आपको जरुरत तक हो। जैसे पीछे भाभी गए, तो अपराधीक मानसिकता वालों ने उनके लैपटॉप का ना सिर्फ विंडो उड़ा दिया। बल्की, उसमें ऐसा कुछ भी कर दिया, जिससे, जिसे मुश्किल से विंडो दुबारा इंस्टॉल करने तक का ही ज्ञान हो, कम से कम, वो उसे फिर से ना ठीक कर पाए।  

बिमारियों, इंसानों और रिश्तों के साथ भी ऐसा-सा ही है।