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महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?
https://laymanandclever.blogspot.com/
Tried to organize some other series also but? Seems some blockage?
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एक ज़माना था जब
इलेक्शंस मारपिट , गुंडागर्दी का खेल होता था
पैसा-दारु जमकर चलता था
कोई हिसाब-किताब ही नहीं होता था
की ये गवाँरपठ्ठे बनने के बाद करेंगे क्या?
बदला है क्या कुछ?
कैसे उठते हैं उम्मीदवार?
कैसे काम करती है ये EVM?
E-state?
कौन और कैसे जीतता है?
दे दारु, दे पैसा, मारपीट, लूटमार?
साम, दाम, दंड, भेद
मुद्दा कोई कहाँ है?
वो जहाँ कहाँ है?
अब ये जो देश है तेरा, कुछ यूँ समझ आता है
कौन-सा देश बावले, कौन-सी सीमायें?
ये झन्डुओं जैसी बातें तुम कहाँ से लाये?"
जितने ज्यादा गवाँरपठ्ठे होंगे
उतने ज्यादा राजे-महाराजे और गुन्डे राज करेंगे
बस यही दशा और दिशा है भारत जैसे देशों की?
या गुंजाइश है अभी भी कुछ बदलाव की?
Immersive practical training to living organisms via their life experiences?
Dynamic dance between science, arts, society and technology?
Source Linkedin
Rhythms of Life needs some triming? Decluttre or organize a bit better, a regular process underway. Multipost series better to have their own separate address.
शब्दों की महिमा
हर शब्द कुछ कहता है। हर शब्द के पीछे कोई कोड है। जैसे?
Late या Early या on time ?
आपने अपने किसी घर के इंसान की फोटो लगाई हुई है, जो अब इस दुनियाँ में ही नहीं है? क्या लिखा है उस पर? कौन लेके आया था उसे? सोचो, वो "दिखाना है, बताना नहीं" के अनुसार क्या है? Late? और तारीख के नंबर? फोटो कौन-सी और किस वक़्त की है? कोई सुन्दर-सी है या? क्या पहना हुआ है? फोटो पे कोई माला या कुछ और भी पहनाया हुआ है? जानने की कोशिश करें?
जाने वाला late था क्या? या आपकी ज़िंदगी में तो सही वक़्त पर आया था या थी? या शायद वक़्त से पहले ही? फिर ये late क्या है? ये जो अब उस घर में बच गए, उनको late बताना या बनाना तो नहीं? या उस घर में होने वाले किसी खास या अच्छे काम को या लाभ या शुभ को? जो नंबर उस पर लिखे हैं, उनके अनुसार? मगर कौन बता रहा है? जाने वाला तो है ही नहीं। उस फोटो को लेकर कौन आया था? वो फोटो, कहाँ और किसने बनाई? वो उसे लेट कर गया? या घर के बाकी सदस्यों को? या किसी अच्छे या शुभ या लाभ वाले काम को? क्या पता खुद लाने वाले को या बनाने वाले को भी कुछ नहीं पता?
वो तो खुद जाने वाले के जाने से दुखी हो? और सोच रहे हों, की इतने जल्दी कैसे चले गए? मगर लाने वाले का मतलब ये है, की उसने उसे लेट बना दिया? किसी तरह की अड़चन खड़ी कर दी, उसके रस्ते में? या उस घर के रस्ते में? कैसे संभव है? कोई अपने ही इंसान को कैसे लेट बना सकता है? या दुनियाँ से ही ख़त्म कर सकता है? सोच भी नहीं सकता शायद?
आपने उस फोटो को कहाँ रखा या किसी ने आपसे कहकर रखवाया? अभी तक वो फोटो उसी जगह रखी है या उसकी जगह यहाँ से वहाँ या कहाँ बदली हो गई? खुद की या किसी ने कहा? माला वाला भी चढ़ा दी उस पर या ऐसे ही है? माला है? तो किस रंग की या कैसी या क्या कुछ है उस माला में?
इसे Show, Don't Tell बोलते हैं। दिखाना है, बताना नहीं। और इसके पीछे कोई न कोई राजनितिक पार्टी होती है, गुप्त तरीके से, उसकी सुरंगें। काफी हद तक सिस्टम ऑटोमेशन (System Automation) काम करता है। जैसे कोई भी ट्रेंड चला देना या रीती रिवाज़ या प्रथा। और उसे सुविधानुसार वक़्त-वक़्त पर बदलते रहना। सुविधानुसार वक़्त-वक़्त पर बदलते रहना राजनितिक सुरँगो या तरह तरह के कितने ही तरीकों से manually होता है।
बदल दो इन लेट वाली फोटो को। इनकी जगह उस इंसान की कोई अच्छी सी फोटो लगा लो। उसपे जाने वाले को लेट नहीं लिखना और ना ही उसका दुनियाँ छोड़ने का दिन। वो सिर्फ उसका दुनियाँ छोड़ने का दिन नहीं था, बल्की, शायद आपकी या आपके घर की राह में रोड़े या अवरोध खड़ा करने का दिन था। खासकर, जब वो इंसान दुनियाँ से बहुत जल्दी गया हो। बहुत होंगी शायद आपके पास, उससे बेहतर फोटो। अगर कहीं कोई अजीबोगरीब माला वाला पहनाई हुई है, तो उसे भी हटा दो। शायद कुछ बेहतर हो।
ऐसी ही कितनी ही रोज होने वाली छोटी मोटी-सी बातें या चीज़ें राजनितिक Show, Don't Tell या दिखाना है, बताना नहीं, होती हैं। और दिखाना है बताना नहीं, सिर्फ दिखाना या बताना नहीं होता, वैसा सा कुछ करना भी होता है। उन्हें समझने की कोशिश करें। वो चाहे आपका किसी के पास आना या जाना हो या कोई भी, किसी भी तरह का काम करना। चाहे आपका कहीं किसी से बोलना हो या बोलना बंध करना। या झगड़ा करना या कहीं किसी के पास बैठना। या बीमारी या मौत ही क्यों ना हो। सारा संसार छुपे तरीके से इन राजनितिक पार्टियों ने रंगमच बनाया हुआ है। और आपको लगता है की आप खुद कर रहे हैं? धीरे-धीरे समझोगे की आप खुद कर रहे हैं या आपसे कोई छुपे तरीके से करवा रहे हैं।
बुरे को भुलाकर अच्छे को याद रखना, मतलब, अच्छी ज़िंदगी की तरफ बढ़ना। किसी भी इंसान का जन्मदिन अच्छा होता है। मरण दिन? उसे याद रखो की उस दिन वो इंसान हमें छोड़ गया। यूँ नहीं की वो लेट हो गया। और यूँ किसी फोटो पर तो बिलकुल नहीं लिखना। ऐसी फोटो को किसी ऐसी जगह बिल्कुल नहीं लगाना, की आते जाते या दिन में कितनी ही बार आप उसे देखते हों। कभी जन्मदिन या शादी वगैरह की फोटो भी लगाई है ऐसे?
किन घरों में जन्मदिन, शादी या खुशियों वाली फोटो मिलेंगी? और किन घरों में बिलकुल सामने ऐसे, गए हुए लोगों की? वो भी लेट और वो तारीख लिखकर? ये मुझे पहले कहीं हिंट मिला था और फिर आसपास के घरों में देखा तो? छोटे-छोटे से घर और सब सामने "लेट" कैसे सजाए हुए हैं? कई-कई घरों में तो कई-कई लेट? जैसे कोई शुभ-मुहरत लेट? या जाने वाला कहीं किसी और को भी लेट कर गया? वो भी खुद अपने किसी इंसान को? और आपने वो फोटो भी सजा दी? वही लेट और तारीख या शायद किसी खास माला के साथ?
कुछ अजीबोगरीब से किस्से जानते हैं आगे।
जैसे
मोदी? बहु? साला?
बहु? अकबर? पुर?
क्या कोड है ये?
या वीर?
या AV?
या नीलकंठ?
या F मिरर इमेज?
या ??????????? कितने ही या ???????????
वक़्त और अगली पीढ़ी के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता है। काफी कुछ अच्छा और शायद कुछ ऐसा भी की लगे, अच्छा नहीं है। सूचनाओं का संसार, उनमें से एक है। 24 घंटे इंटरनेट की पहुँच और टीवी भी शायद। जब बच्चों को मजाक लगे, अच्छा आप जब छोटे थे, तो टीवी पे हर वक़्त प्रोग्राम नहीं आते थे? या इंटरनेट नहीं था? ये सीरियल्स भी नहीं थे? तो क्या था?
जो भी हो, गुजरा वक़्त और बचपन हमेशा अच्छा होता है?
कैसा रहा ये साल? क्या है आपका हाल?
ये वो साल था जब लिखना और इंटरनेट ही जैसे एकमात्र सहारा था, बाहर की दुनियाँ से इंटरैक्शन का। फोन तकरीबन बंद था जैसे। चल रहा था शायद कुछ अजीबोगरीब सन्देश या कॉल्स सुनने के लिए। कुछ कोड से जैसे ईधर के, और कुछ उधर के? और कुछ खामखाँ भी।
इतने सालोँ बाद कार गुल थी ऐसे, जैसे, दुनियाँ ही थम-सी गई हो? कार हमें सच में Independent बनाती है या शायद काफी हद तक Dependent भी?
एक तरफ "Reflections" के लिए वक़्त था तो दूसरी तरफ कुछ अजीबोगरीब बावलीबूचों के कारनामों से निकला, "महारे बावली बूचां के अड्डे अर घणे श्याणे?" चाहें तो खीझ सकते हैं और चाहें तो हँस सकते हैं? Refelections से पहले शायद "दादा जी का छोटा-सा खजाना" किताब बन निकले? जिसके साथ लगता है, काफी छेड़-छाड़ हुई है। क्यों? ऐसा क्या खास था उनमें? कुछ जो मुझे पता है और कुछ शायद ही कभी पता चले। क्यूँकि, उनके ज्यादातर पत्र मैं पढ़ती थी। जब घर होती तो पढ़वाते ही मुझसे थे, खासकर हिंदी वाले। ये कुछ कहाँ से आ टपके? और एक-आध जो उनकी मर्त्यु के बाद भी मेरे पास था, वो कहाँ और कैसे गुल गए? पता नहीं। ऐसा तो कोई बहुत खास भी नहीं था उनमें। या शायद इधर-उधर हिंट आ चुके?
वैसे पापा से सम्बंधित सिर्फ एक ही पत्र पढ़ा था मैंने, दादा जी के रहते। वो भी उनकी अलमीरा की सफाई करते वक़्त मेरे हाथ लग गया था इसलिए। कुछ बहुत पुराने हैं, मेरे जन्म से भी पहले के तो शायद कभी सामने नहीं आए। दुबके पड़े थे जैसे, इस, उस डायरी में। उनसे कुछ लोग शायद अपने जन्मदिन या आसपास के कुछ इवेंट्स जान पाए, जिन्हें आज तक नहीं पता?
बाकी जो पहले से लिखने वाले प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वो तो वक़्त लेंगे। क्यूँकि, वो सिर्फ Reflections, यादें या खीझने की बजाए, satire जैसा विषय नहीं हैं।
इतने बुरे के बीच शायद, कुछ आसपास के लिए अच्छा भी रहा? बहुत सालों से ठहरी-सी या मरते-मरते बचती-सी ज़िंदगियाँ, शायद फिर से चल निकलें? उम्मीद पे दुनियाँ कायम है। ऐसी-सी ही कुछ ज़िंदगियाँ, आपको किसी भी हाल में जैसे प्रेरित करती नज़र आती हैं। कह रही हों जैसे, और कुछ ना हो सके तो थोड़ा-बहुत हमारे लिए ही कर दो। और जो शायद आप कर भी सकते हैं। शायद कोई छोटा-मोटा प्रोजेक्ट ही?
आपका कैसा रहा ये साल? Merry XMAS & Happy New Year!
मंदिर अहम है ना मस्जिद अहम है
जहाँ मन को शांती मिले वो जगह अहम है
गुरु द्वारे अहम हैं, ना गिरजे अहम हैं
जहाँ भूखे की भूख मिटे,
ठिठुरते को कपड़े मिलें
ताप में जलते को ठंडक
बेघर को छत मिले
क्रूरों के बीच दयालु
बेगानों से घिरे को अपनापन, ऐसी जगह अहम है।
ना भिखारी बनाने वाले अड्डे अहम हैं
ना अज्ञानता का पाठ पढ़ाने वाले
ना पीट-पीट कर रुंगा-सा दान करने वाले
ना बंधक बना, रोजगार का नाटक करने वाले
ना सीधे से दिखने वाले पेपरों पर हस्ताक्षर करवा
या कोरे पन्नो पर येन-केन-प्रकारेण हस्ताक्षर ले
कोढों की जाल नगरी में उलझाने वाले
सभ्य समाज में भला इनकी जगह?
कहाँ और कैसे? क्यों और किसके लिए है?
कोई भूख से कैसे मर सकता है? अगर हट्टा-कट्टा और स्वस्थ है तो? हाँ शायद, न्यूट्रिशन की कमी से जरुर मर सकता है? मगर थोड़ी-सी भी न्यूट्रिशन की जानकारी हो तो शायद नहीं? शायद?
लोग बिमारियों से मरते होंगे? शायद जबरदस्ती जैसे थोंपी हुई बिमारियों से? या मार-पिटाई से? या उससे उपजे दर्द या तकलीफों से? खासकर अगर वक़्त पर ईलाज न हो तो? शायद?
और कितने तरीकों से मर सकते हैं लोग? या शायद मारे जा सकते हैं?
गुप्त तरीकों से मार कर, आत्महत्या दिखाई जा सकती है? जैसे पीछे 70% केस, पहले से बताकर किया गया? मगर हकीकत में करने वालों ने (राजनीतिक पार्टियाँ) उसका माहौल कैसे इज़ाद किया होगा? आम आदमी को कैसे समझ आएगा ये सब? क्यूँकि, जो यहाँ दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं?
जैसे कोरोना के दौरान कितने ही लोगों को आदमखोरों ने मौत के घाट उतार दिया? वो भी दुनियाँ भर में। वो दिखा क्या?
चलो, आपको एक और मौत दिखाते हैं। उसकी मौत, जिसको आप यहाँ पढ़ते आ रहे हैं? वो मौत आत्महत्या होगी? या खून? इन्हीं खुँखारों द्वारा, जो इधर-उधर से लोगों को किसी ना किसी बहाने उठा रहे हैं। मगर वहाँ आपको क्या दिख रहा है? यहाँ देखने की कोशिश कीजिए। शायद कुछ समझ आए।
विजय 4 बीजेपी?
जय कांग्रेस? विजय कांग्रेस?
आम आदमी की विजय?
जय JJP? विजय JJP?
और भी कुछ लिख सकते हैं? विजय या जीत तो हर किसी को चाहिए। ऐसे या वैसे, जैसे भी चाहिए। उसके लिए चाहे आदमियों को खाना पड़े? कुछ भी, कैसे भी, जैसे भी जोड़ना, तोड़ना या मड़ोड़ना पड़े? इन सब पार्टियों के जीत हासिल करने के अपने-अपने खास तरह के नंबर हैं या कहो की कोढ़ हैं, abcd हैं। सब पार्टियाँ उसी के लिए माहौल बनाने की कोशिश करती हैं। जी, माहौल बनाने की कोशिश करती हैं। वो माहौल अगर आदमियों को खाकर भी बने, तो इन्हें परहेज नहीं। उसी माहौल बनाने में वो घरों के, ऑफिसों के माहौल बिगाड़ देते हैं, अपने-अपने अनुसार।
जैसे अगर किसी को, किसी यूनिवर्सिटी ने पढ़ाने के लिए रखा है, टीचर की पोस्ट पर। तो वे उसे पढ़ाने के इलावा और ढेरों तरह की अनाप-शनाप फाइलें पकड़ा सकते हैं। अगर वो उनके अनुसार काम ना करे तो तरीके हैं, उसे यूनिवर्सिटी से उखाड़ फेंकने के।
ये विजय 4 बीजेपी, वाली पार्टी का 75 वाले अमृतकाल का हिस्सा हो सकता है। जहाँ B को घर बैठे जैसे, B (ED) के लिए 75000 का दान चाहिए? घर बैठे अहम है यहाँ। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे रजिस्ट्रार बोले, मैडम आपके पैसे मिलने में 5-7 दिन लगेंगे? उस मैडम को यूनिवर्सिटी से खदेड़ने के बाद। और वो 5-7 दिन मौत से पहले नहीं आते? मौत के बाद, सब किसी B का है, क्यूँकि ED उस आदमी को खा जाएगी।
ये जय कांग्रेस? विजय कांग्रेस? इनका कोई 1, 3, 4 का हिसाब-किताब है शायद? इनके अनुसार आप अब भारत में काम नहीं कर सकते? कितने लाचार हैं? ये पीछे बारिश वाली नौटँकी इन्हीं की थी क्या? आप रजिस्ट्रार ऑफिस के वेटिंग रुम बैठे हैं और बारिश के साथ-साथ कोई ड्रामा चलता है। ऐसी-ऐसी नौटंकियाँ, देखने और झेलने के बावजूद, आप जाना चाहेंगे ऐसे-ऐसे ऑफिस?
आम आदमी की विजय, के नंबरों के हिसाब-किताब से तो? आप बसों में मार्शल लग सकते हो या सफाई कर्मचारी शायद?
जय JJP? विजय JJP? इनके नंबरों के हिसाब-किताब से आप नौकरी ही नहीं कर सकते, भारत में? हाँ, कोई अपना काम कर सकते हो, वो भी गाँवों में?
ऐसे ही और पार्टियों के हिसाब-किताब होंगे?
तो माहौल कहाँ तक पहुँचा बनते-बनते? या इन राजनीतिक पार्टियों द्वारा बनाते-बनाते?
EC वाली स्टेज आपको पार करवाई जा चुकी है, 2021 में। ED तैयार बैठी है निगलने के लिए? अभी तक यूनिवर्सिटी द्वारा पैसे ना देने का बस इतना-सा खेल है? आप कोई और नौकरी भी नहीं कर सकते, ऑनलाइन भी नहीं। वहाँ के माहौल पर भी टाइट कंट्रोल है। वहाँ पे भी खास तरह के ड्रामे हैं।
अपना कुछ आप शुरु ना कर सकें, स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर कब्जे की और यूनिवर्सिटी वाली सेविंग पर कुंडली मारने की कहानी यही है। उसके लिए क्या कुछ माहौल बनाए इन पार्टियों ने? भाभी को खा गए।
रायगढ़ धँधा? इंस्टेंट क्लिक लोन, YONO Fraud? जिसका मतलब था, इधर लोन खाते में और उधर नौकरी खत्म। और आपको लगा, आप पढ़ने-लिखने के लिए ले रहे हैं? हेराफेरियाँ, हेराफेरियोँ में माहिर लोगों की। चलो, ये तो छोटा-सा लोन था।
चलो वो सब भी आया गया हुआ। कम से कम बचा-खुचा पैसा तो मिले। ऐसे कैसे? अभी आखिरी कील नहीं ठोंकेंगे ताबूत में अपने जाहिलनामे की?
माहौल?
पानी के नाम पर पीने या प्रयोग करने लायक पानी नहीं है ।
खाने के नाम पर खाना नहीं है। चल रहा है, जैसे-तैसे।
बीमार हो जाओ तो, दवाई नहीं।
रहने को घर नहीं और पहनने को कपड़े नहीं। रह रहें हैं जैसे-तैसे। चल रहा है काम चीथड़ों में।
"महारे बावली बूचाँ के अड्डे, अर घणे श्याणे?" में कुछ-कुछ झलक मिल सकती है, इस सबकी की, की ये राजनीतिक पार्टियाँ माहौल कैसे घड़ती हैं?
तो कितना चलेगा कोई ऐसे माहौल में? बाहर अभी कहीं जाना नहीं। अब ED के वेश्यावर्ती के धंधे वाले जाल में नहीं फँसोगे, तो कोई न कोई रस्ता तो ढूँढेंगे ना ठिकाने लगाने का? तो घड़ दिया माहौल?
गर्मियों में बिजली, AC और गर्मी या कूलर में आग लगने का तमाशा चल रहा था। तो कुछ वक़्त पहले? धूंध और acidic air? बिमार करो और मारो। माहौल ऐसा घड़ दो, की छोटी से छोटी बीमारी ले निकले। जो होता है वो दिखता नहीं, और जो दिखता है वो होता नहीं?
नौकरी से खदेड़ने के बाद, यूनिवर्सिटी सेविंग का क्या किस्सा-कहानी चल रहा है? जाने?
तो Enforced Resignation के बाद Enforced Murder? और इसके लिए उन्हें आपके पास चलके नहीं आना पड़ता, ये सब वो दूर बैठे-बैठे ही कर देते हैं।
Wonder, if eco nomy and PAN card are also cooperative modelling to fit into bigger designs of political system? -- to fit the rich people? Not the poor ones?
जाने क्यों मुझे अपने PAN card को पढ़ कर ऐसे लगा? उसके नंबर ही जैसे सीधा-सीधा कंट्रोल कहीं और बता रहे हैं।
कहीं पढ़ा की राजनीतिक पार्टियाँ सिस्टम डिज़ाइन करती हैं। जिनमें अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरह के चैक पॉइंट हैं। पार्टियाँ इन चैक पॉइंट्स के जरिए, लोगों को कंट्रोल करती हैं। एक तरफ जहाँ मानव सँसाधन हैं। तो दूसरी तरफ IDs सबसे बड़ा कंट्रोल का तरीका हैं। कोढ़ के सिस्टम में ये IDs बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। भारत में आधार कार्ड और PAN card, IDs में सबसे महत्वपूर्ण हैं। उसके साथ आपकी जन्म की तारीख और नाम।
किसी भी महत्वपूर्ण ID में कम से कम एक शब्द या नंबर आपके अपने नाम का पहला शब्द या आपके जन्म का कोई खास नंबर जरुर होना चाहिए।
कैसे डिज़ाइन करती हैं ये महत्वपूर्ण ID देने वाली एजेंसीयाँ, इनके नंबर या कोड?
Time to get rid of aadhar. Aadhar is exploitation, without information, without consent, the worst way possible. This is dh of Hydra? Who needs it? And why? By this way common people become the subject of abuse by political parties, directly or indirectly.
The worse, even childrens are at risk of exploitation and possible abuses by birth. I wonder, for what purpose, it was invented? What was the intention behind this invention?