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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Friday, May 9, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 5

यूक्रेन युद्ध शुरु हौगा।  

बला, माँ-बेटी मैं कीमे छोटी-मोटी कहा सुणी तै ना हो री?

बेटी का सामान आ गया, वो कोई घर खाली कर रही थी यूनिवर्सिटी में शायद, और इस माँ के छोटे-से घर पर इतना सामान रखने की जगह नहीं।  

ले भाई, वो अंडी नै फेसबुक पै झंडा गाड दिया। 

अच्छा। ले हाम नै भी गाड दिया, महारे प्लॉट मैं। 

यो के सौदा भाई?

दे ट्रकां, दे ट्रकां, या लेट भी आंट दी एक अ रात मैं। जै दूसरी गली कन्हाँ, दूसरा गेट ना काढ़ दिया, तै हाम भी साँ ए ना। 

दूसरी गली कन्हाँ?

हाँ। महारे सरपँच की गली। 

महारे या महारी सरपँच की?

हाँ। हाँ। गामां मैं एक अ बात होया करै। 

अच्छा? आदमी-औरत एक? 

छोड़।    

खोपरो, यो के साँग मचा राख्या सै? या पंचायती ज़मीन क्यों हड़पण लाग रे सो?

पंचायती? हाम तै नू सुणी सै अक इसके साथ जिस-जिस की ज़मीन लागै सै, उनकी सबकी सै। अर गाम का गन्दा पानी, सारा चलता कर राख्या सै ईहमैं। सुना सै, सफाई होवै सै या तै आसपास की। अर पंचायती? माहरे सरपंच कै एक कमरा-सा बताया कैदे आडै-सी, उह तै आगे सारी याहे पंचायती हड़प रहा सै अंडी। आज घर देखा सै उहका? कीत तहि पहुँच रहा सै?   

तू पंचायत की बात करै ,आङे आपनै MLA, Ex MLA, गाँव मैं सबतै घणी ज़मीन के मालक बतानियें, बेरा ना कीत-कीत की ज़मीना पै, दादागिरी मैं आपणे नाम कराएँ हॉन्डें सैं। 

और लो जी, सुना, उसी दिन कोई पुलिस भी आ गई वहाँ, ये देखने की पंचायती ज़मीन पै साँग माच रहा सै। सुना, किसे MLA नै ए भिझवाई। मगर आई और गई। अब कोई कहे, पहले सरपंच या MLA को पकड़ो, या इनकी हड़पी हुई खाली करवाओ। तो पुलिस भी आपणा-सा मुँह लेकै ए चालती बनती होगी? खैर, सुनी-सुनाई बातें, इधर-उधर की।   

बेरा ए ना, कित सो ना धर राख्या सै, अर कीत सोनी आ? कीत सोना लीका अर कित, किसे-किसे राम या बलवान धरे सैं। भुण्डा साँग सै। इस पंचायत की तरफ ये, तो उस  पंचायत की तरफ किमैं और। पंचायत या म्युनिसिपलिटी बदली, अर, उडे की ज़मीना की कहानी भी।      

ये साँग कई दिन चला। सुना यूक्रेन युद्ध चल रहा था कोई। कहीं झंडा सिर्फ फेसबुक पर गड रहा था, तो कहीं? किसी ज़मीन पर?

बस इतना-सा ही फर्क है, की कहीं सिर्फ फाइलें चलती हैं। ज्यादा हो जाए, तो कोर्ट केस। 

अमिर हों तो, सब उनके वकील निपटते हैं। साहब लोग सिर्फ उन्हें पैसे देते हैं। कोर्ट में शायद ही कभी दिखते हैं। गरीबों के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं होती। हकीकत ये होती है, की गरीब होने का मतलब ही अक्सर हार होता है? उन्हें पता ही नहीं होता, की उनके केस में चल क्या रहा होता है। जब पता चलता है, तो साहब लोग बहुत कुछ निपटा चुके होते हैं। वकील इधर का हो या उधर का, अक्सर होता इन साहब लोगों का ही है। अक्सर। तो इतना पता होते हुए, पंचायती जैसी ज़मीनों के लिए, कौन कोर्टों की तरफ देखता होगा? थोड़े बहुत पुलिस ड्रामे के बाद, सब रफ़ा-दफा हो जाता है। 

तो पुलिस आई-गई हुई? थोड़े ड्रावे के बाद? उसके बाद, आपस में मिलबैठकर खाने की बातें होती हैं। पता ही नहीं,  आधी से ज्यादा लेट पर किस, किस ने रेत डलवा दिया था, एक-दो दिन के अंदर ही। मेरे लिए इस तरह का कोई ड्रामा, यूँ आँखों के सामने होते देखना, पहली बार था। चाचा का लड़का इस सबमें फ्रंट पर था। अब पैसे तो घर से ही लिए होंगे? सुना है, इतने पैसे उसके पास नहीं होते। कभी-कभार पीने वाले भाई को भी उसने चढ़ाया हुआ था। ले, तेरी ज़मीन भी बढ़ा दी। उसकी तरफ की पीछे वाली ज़मीन पर भी रेत डलवा थी। मगर इसके आगे तो कुछ और ही साँग था। यहाँ लेट की ज़मीन से, वहाँ खेत की ज़मीन की तरफ बढ़ते ज़मीनखोर। 

मैंने एक-दो बार कहा भी, की ये क्या कर रहे हो तुम? 

दुनियाँ ने किया हुआ है, तो हमने क्या अलग कर दिया? 

दुनियाँ गोबर खाएगी, तू भी खाएगा?

और छोटू फिर गुल था। कई बार सुन चूका था, तो अब बात भी कम होने लगी थी। 

चलो, ये तो कम पढ़े-लिखे, बेरोजगार, ज्यादातर गाँव में रहने वाले हैं। ये so-called ऑफिसर, फेसबुक पर कौन-से और कैसे झंडे गाड़ रहा था? वही भारत माता की जय वाले? या किसी युद्ध वाले? ये यूक्रेन युद्ध का रोहतक के मदीना या सोनीपत के लोगों से क्या लेना-देना? ये तो पागलपन का ही दौरा हो सकता है? मगर किसे? यहाँ जो कुछ कर रहे थे, उन्हें? या उनसे जो करवा रहे थे, उन्हें? सुरँगे, राजनीतिक पार्टियों की? राजनीती कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार लोगों को अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए कैसे-कैसे दुरुपयोग करती है?

या फिर ये पागलपन का दौरा, उन न्यूज़ चैनल्स को पड़ गया था, जो खामखाँ में गला फाड़-फाड़कर, यूक्रेन युद्ध, युद्ध चिला रहे थे? कहीं पुराने विडियो चेप रहे थे, तो कहीं AC वाले न्यूज़ स्टुडिओं में बैठकर फर्जी विडियो बनाकर, उनमें स्पेशल भड़ाम-भड़ाम वाले इफेक्ट्स डाल रहे थे? 

फिर तो यूक्रेन में भी कुछ तो हुआ ही होगा? कोई युद्ध? उसकी मार झेलने वाले लोग? कहीं कुछ मरे भी होंगे? तो कितने ही विस्थापित भी हुए होंगे? घर, बेघर जैसे?

कहीं किसी के पास बार-बार, घर खाली करो के, कोई GB (General Branch), MDU ईमेल भी भेझ रही होगी? तो कहीं, किसी अड़ोसी-पड़ोसी ससुराल से घर बैठी लड़की से भी कुछ ऐसा कहलवा रहे होंगे, मेरा घर खाली करो? चाहे उसकी क्वालिफिकेशन तक उस नौकरी के आसपास ना हों? मगर कैसे? ये अहम प्र्शन है। जितना इसे समझोगे, उतना ही Conflict of Interest की राजनीती के जालों से बच पाओगे।  

Emotional Fooling? with personal effects? 

आपको बताया या समझाया गया है, की आपके साथ ऐसा होने की वजह फलाना-धमकाना है। चाहे आपके और उसके रिश्ते में वैसा कुछ भी ना हो। वो आपके ससुराल को तो छोड़ो, पति तक को ना जानती हो। जो कहानी उनके बारे में, वो यहाँ-वहाँ आप लोगों से ही अब गाँव आने के बाद सुन रही है। वो ऐसे-ऐसे लफंडरों, गँवारों, जाहिलों या लालची लोगों को पसंद तक ना करती हो। कहाँ एक इंडिपेंडेंट इंसान और कहाँ ये गाँवों के सास-बहु के जैसे, एकता कपूर के सीरियल?  

Twisting and Manipulating Facts? 

आप यही भूल जाएँ की आप कौन हैं? और सामने वाला या वाली कौन? और उससे आपका रिश्ता क्या है? या जिनसे आप जोड़ रहे हैं, अपने भर्मित दिमाग के जालों में, उनमें और इसकी समस्याओं में फर्क क्या है? 

जैसे कोई कहदे की आप मोदी हैं। हो सकता है आपका नाम मोदी हो। मगर, आप भारत के प्रधानमंत्री मोदी तो नहीं हैं ना? या समझने लगे हैं की हैं? मान लो, आप नरेंदर हों, वीरेंदर हों, कविता हों, सुनील हों, ऋतिक हों, सोनिया या राहुल हों? मगर कौन से? कोई MLA, MP, क्रिकेट प्लेयर, या? कौन? जहाँ कहीं अपने ये फर्क समझने में गड़बड़ कर दी, वहीं आप राजनितिक पार्टियों के जालों के शिकार में हैं। जितनी ज्यादा दिमाग में वो गड़बड़, उतनी ही ज्यादा ज़िंदगी में। 

ऐसा भी नहीं है, की ये राजनीतिक पार्टियाँ आपकी मर्जी या पसंद-नापसंद से ही करेंगी। उनका तो रोबॉटिक एन्फोर्स्मेंट प्रोग्राम आपकी जानकारी के बिना भी चलता है। बल्की, ज्यादा अच्छे से चलता है। 

तो, जितना आपको ये समझ आना शुरु हो जाएगा और जितना आप इससे खुद को दूर करना शुरु कर देंगे, उतने ही इस रोबॉटिक एन्फोर्स्मेंट के दुस्प्रभावोँ से भी बचते जाएँगे।                        

Psychological and Economic Warfare?     

आज की दुनियाँ इससे बहुत ज्यादा प्रभावित है। या कहो की कोढ़ और रोबॉटिक एन्फोर्स्मेंट की राजनीती टिकी ही इस पर है। सब इस पर निर्भर करता है, की आपकी जानकारी किसी भी इंसान या विषय, वस्तु के बारे में कितनी सही है। और कितनी नहीं है? या कितनी गलत है?  

वो फिर एक तरफ, देशों के युद्ध so-called officers द्वारा फेसबुक के झंडों में हों या दूसरी तरफ, गाँवों की फालतू पड़ी ज़मीनो पर कम-पढ़े लिखों या बेरोजगारों द्वारा। 

वो फिर एक तरफ? AC studios में बैठकर, खास इफेक्ट्स डाल कर भड़ाम-भड़ाम करते और TRP और पैसा बटोरते चैनल हों। या फिर उपजाऊ ज़मीनों को शिक्षा या राजनीती के धंधे के नाम पर, हड़पते शिक्षण संस्थानों के प्रधान हों या उनके कोई अपने। 

और दूसरी तरफ? सच में किन्हीं ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते, या सेनाओं के हमलों में मरते, आम नागरिक या खुद उन सेनाओं के जवान। फर्क सिर्फ उन घरों को या लोगों को पड़ता है। बाकी, अपने-अपने और अपनी-अपनी तरह के झंडे गाड, यहाँ-वहाँ तबाही मचा या लूटपाट कर या हड़पकर चलते बनेंगे। 

वैसे उपजाऊ खेती की ज़मीनों को 2-बोतलों या औने-पौने दामों में हड़पते, शिक्षण संस्थान और किसी NSDL या Protean की वेबसाइट के नाम पर ऑनलाइन धोखाधड़ी का, आपस में कोई लेना-देना है क्या? जानने की कोशिश करते हैं आगे, किसी पोस्ट में। 

साइबर अपराध रोकने वालों के लिए

ICICI Direct और Protean या NSDL का क्या लेना-देना?

ये साइबर अपराध रोकने वालों के लिए। कल मैंने कोई NSDL या Protean की वेबसाइट नहीं खोली या कुछ अपडेट नहीं किया। एक बार लगा तो, की शायद ICICI Direct की बजाय, ये Protean दिखा रहा है। मगर दुबारा ध्यान से देखा तो, ICICI Direct ही दिखा रहा था। अगर ऐसा कोई अपडेट किसी Protean या NSDL की वेबसाइट के नाम पर हुआ है, तो वो घपला है।  

और ये पोस्ट में "नहीं" को क्यों काट रहा है?  

ये तो कुछ ज्यादा ही नहीं होने लगा की एक बार देखो तो कुछ दिख रहा है और दुबारा देखो तो कुछ और? 

Wednesday, May 7, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 3

एक दिन ऐसे ही किसी ऑफिसियल काम से चंडीगढ़ जाना था? सालों पहले की बात है, रोहतक से चली ही थी तो सोचा क्यों ना पहले सोनीपत का रुख किया जाए? कई सारे प्रश्न थे दिमाग में, जिनके उत्तर चाहिएँ थे। अब मैं उनमें से नहीं, जो सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करे। या ईधर-उधर के लोगों से बात करे। यहाँ सीधा-स्पाट बात वहीँ होती है, जहाँ के प्र्शन होते हैं। खासकर, तब तो और जरुरी हो जाता है, जब इधर-उधर से विश्वास लायक जवाब नहीं मिलते। बल्की, कुछ ऐसे मिलते हैं, की कुछ और प्र्शन दे जाते हैं? जैसे, फिर ये शादी नाम का घपला क्या है? आजकल किसी चैनल ने सुना है, कोई सिँदूर बचाओ अभियान भी चलाया हुआ है? किसका सिँदूर? अहम बात हो सकती है, यहाँ पर? मेरे आसपास कई हैं, उनका? या सोनीपत में किसी का? और RAW का या FBI का, या ऐसी ही किसी और इंटेलिजेंस एजेंसी का, ऐसे किसी सिन्दूर से क्या लेना-देना? खैर। उन दिनों आसपास के सिंदूरोँ का कोई ज्ञान ही नहीं था। या कहो की Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, वो सिँदूर पता नहीं कहाँ पढ़ रहे थे? या क्या कर रहे थे? हकीकत तो ये है, की उन दिनों Conflict of Interest की राजनीती क्या होती है, यही नहीं पता था।   

अब जहाँ की तरफ गाडी मोड़ दी थी, मेरे हिसाब से वहाँ मैं एक नए इंसान को छोड़, बाकी सबसे मिल चुकी थी और थोड़ा बहुत शायद उन्हें जानती भी थी। तो पहुँच गई, उस घर? नहीं, उसके भाई के घर। क्यूँकि, अब वो अलग-अलग रह रहे थे, आसपास ही। थोड़ी बहुत बात हुई, और वो मुझे पास ही उस घर ले आए। पता नहीं क्यों लगा, की कुछ तो गड़बड़ है। जाने क्यों किसी ने मिलने में ही बहुत वक़्त लगा दिया। मगर क्या?  

उसके बाद थोड़ा बहुत उस पर, इधर इधर सुनने-पढ़ने को मिला। और मेरा यूनिवर्सिटी में ही कहीं आना-जाना थोड़ा ज्यादा हो गया। वहाँ सब राज छिपे थे शायद। 

यहाँ से एक अलग ही दुनियाँ की खबर होने लगी थी। इस दुनियाँ का दायरा थोड़ा और बढ़ने लगा था। और जितना ज्यादा जानना चाहा, वो बढ़ता ही गया। तो ये मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स क्या है? इसमें कौन-कौन हैं? और इसके मुद्दे कहाँ-कहाँ घुमते हैं?

Ministry of home affairs?

Psychological warfare?  

Setting the narratives?

सिँदूर की राजनीती या कांडों पे पर्दा डालने की?

With all due respect to Ministry of home affairs?


जब गाँव आई, तो Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, सिन्दूर-युद्ध के ड्रामों से आमना-सामना हुआ। शुरु-शुरु में तो समझ ही नहीं आया, की राजनीती भला इतने लोगों की ज़िंदगियों से कैसे खेल सकती है? जिनकी ज़िंदगी के युद्ध, बड़े ही छोटे-छोटे से रोजमर्रा की ज़िंदगी की, छोटी, छोटी-सी परेशानियों में दिखे। 

किसी को इतनी-सी समस्या है की वो अपनी ससुराल, खाना-पीना तक अपनी मर्जी से नहीं खा-पी सकते? पता नहीं, सास कहाँ-कहाँ ताले जड़ देती है?

किसी को इतनी-सी समस्या है, की उसे घर में बंद कर सास-पति पता ही नहीं, कौन-से सत्संग चले जाते हैं। और कई-कई दिन तक घर नहीं आते और घर में कुछ खाने तक को नहीं?

किसी की इतनी-सी चाहत है, की उसको अपने घर का रोजमर्रा का प्रयोग होने वाला सामान इक्क्ठ्ठा करना है। वही नहीं है?

किसी के हालात ऐसे बना दिए गए, की आने-जाने तक के पैसे नहीं? किसी के पास पहनने को नहीं? किसी के पास मकान नहीं? किसी के पास ये नहीं, और किसी के पास वो?

तो वो है ना जो, जो लड़की अभी-अभी घर आई है, उसके पास ये सबकुछ है, छीन लो उससे? उसे इतना तंग करो, की या तो आत्महत्या कर ले या तंगी से मर जाए। नहीं तो निकालो उसे गाँव से भी। 

ये खामियाज़ा भाभी ने भुगता? इससे भी बुरा कुछ गुड़िया के साथ करने की कोशिशें हुई, इसी Conflict of Interest की राजनीती द्वारा। फिर मैंने तो जो देखा, सुना या भुगता, ऐसे-ऐसे, रोज-रोज के ड्रामों की देन, वो कोई कहानी ही अलग कह गया शायद?

इन सब लड़कियों की दिक्कत क्या है? 

Independent ना होना? Economic Independence आपको कितनी ही तरह के अनचाहे दुखों और Conflict of Interest की राजनीती के पैदा किए, अनचाहे युद्धों तक से काफी हद तक बचाती है। मुझे लगता है, की मेरे पास अपना पैसा या इधर-उधर अगर थोड़ा-बहुत सुप्पोर्ट सिस्टम ना होता, तो मैं क्या, ये Conflict of Interest की राजनीती मुझे ही नहीं, बल्की, पूरे घर को खा चुकी होती। 

इन लड़कियों की और इन जैसी कितनी ही लड़कियों की समस्या, सिन्दूर का होना या ना होना नहीं है। हकीकत ये है, की अगर ये Economically Independept हों, तो ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है। कुछ एक Economically Independept होते हुए भी इस जाल में फँसी हुई हैं, तो वो आसपास के Media Culture की वजह से। कमाते हुए भी, उन्हें नहीं मालूम, की वो पैसे उनके अपने हैं। अपनी और अपनों की ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए हैं। किन्हीं लालची और बेवकूफ लोगों के शिकंजों में रहने के लिए नहीं। 

आगे किन्हीं पोस्ट में बात होगी, आसपास द्वारा किए गए उन रोज-रोज के ड्रामों की भी। और कौन करवाता है वो सब उनसे? सबसे अहम कैसे? Emotional Fooling, Twisting and Manipulating Facts, Psychological warfare,  Setting the narratives.     

Psychological warfare, Setting the narratives 2

आप abcd सीख रहे हैं, इकोनॉमी (economy) की? बाजार, मार्केट या स्टॉक बाजार क्या होता है, उसकी? चलो अच्छा है, देर आए, दुरुस्त आए। एक ठीक-ठाक सी ज़िंदगी जीने के लिए इसे समझना बहुत जरुरी है।

आम इंसान हर रोज युद्ध लड़ता है। उसकी ज़िंदगी में हर रोज किसी न किसी तरह की जंग चलती ही रहती है। उसकी उस जंग को थोड़ा कम करने या आसान बनाने में जो सहायता करता है, वो हैं आपके अपने? सरकारें या कोई भी राजनीतिक पार्टी, आपकी ये सहायता तब तक नहीं करती, जब तक उनकी अपनी कोई स्वार्थ सीधी ना हो? सरकारों की या राजनीतिक पार्टियों की अपनी स्वार्थ सीधी क्या होगी? कुर्सियाँ? और ज्यादा कुर्सियाँ? और ज्यादा वक़्त तक के लिए कुर्सियाँ? वो कुर्सियाँ क्या आपका भला करने के लेते हैं? इतनी मारामारी उन कुर्सियों की क्या आपके लिए होती है? संभव है क्या? ज्यादातर, उनके अपने निहित स्वार्थ होते हैं। उन निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही इन राजनीतिक पार्टियों ने Conflict of interest की राजनीती के जाले बुने हुए हैं, हर जीव और निर्जीव के इर्द-गिर्द। ये निहित स्वार्थ हैं, ज्यादा से ज्यादा पाने की होड़। पैसा, ज़मीन-ज़ायदाद और वर्चस्व। कण्ट्रोल, जहाँ कहीं और जितना आप कर सकें। 

इसमें  Psychological warfare क्या है?

कहीं आप पढ़, सुन रहे हैं, की किस कदर आपको रिकॉर्ड और मैनिपुलेट (Manipulate) किया जा रहा है? कैसे आपको रोबॉट-सा प्रयोग या दुरुपयोग किया जा रहा है? वो भी आपके खिलाफ और आपके अपनों के ही खिलाफ?

Setting the narratives, Psychological warfare है।  

युद्ध, युद्ध, युद्ध? युद्ध मुद्दा है क्या? फिर क्या है? मुद्दों से ध्यान भटकाने की राजनीती? कौन रच रहा है? राजनीतिक पार्टियाँ? बाजार? टीवी चैनल्स? या इन सबकी मिलीभगत?   

मीडिया कल्चर? और मानव रोबॉटिकरण?           

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर और युद्ध? 4

युद्ध, युद्ध, युद्ध? 

ऐसा ही कुछ सुन रहे हैं क्या आप?

या आप जो न्यूज़ चैनल्स देखते हैं, वहाँ सब शांति शांति है?

ऐसे कैसे?

ऐसी ही दुनियाँ में हैं हम?

यहाँ भी अगर आप भारत के न्यूज़ चैनल्स देखेँगे तो वो कुछ कहते नज़र आएँगे या कहो की चीखते नज़र आएँगे और पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल्स देखोगे तो वो कुछ?

ऐसे कैसे? दोनों जैसे एक दूसरे के बिलकुल विपरीत चीख रहे हों?

या आप चीखने वालों की बजाय, शाँत तरीके से सही मुद्दों के चैनल्स को देख रहे हैं? तो वो शायद, शेयर बाजार की बात तो नहीं कर रहे? ऐसा लगता है, युद्ध वहीँ चलते हैं?    

या ज़मीनो की लूटखसौट पर?  

या  

कोई ऐसे भी युद्ध होते हैं जो शिक्षा की बात करते नज़र आएँ? गरीबों की बात करते नज़र आएँ? समाज के कमजोर वर्गों, बच्चों या पिछड़ों की बात करते नज़र आएँ?

रोटी, कपड़ा, मकान, साफ़ सफाई, स्वच्छ खाना पानी वैगरह की बात करते नज़र आएँ?

नहीं? इस स्तर पर लोगों का भला करने के लिए कोई युद्ध नहीं होते?

युद्ध सिर्फ और सिर्फ मार्केट के लिए या अपनी आम भाषा में कहें, तो धंधे के लिए होते हैं?  


ये युद्ध तो नहीं चल रहा कहीं कोई?
या कोई ड्रिल चल रही है?
नौटँकी जैसे कोई?

ठीक ऐसे, जैसे पीछे वाली ज़मीनखोरों का धँधा वाली पोस्ट?  

थोड़ा डिटेल में आएँगे इस पर भी, आगे किसी पोस्ट में। 
आजकल सीख रही हूँ, थोड़ा बहुत ये वाला कोढों का जाल भी  

Tuesday, May 6, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 3

नई सीरीज शुरु हो गई? चल तो पहले से रही है, थोड़ा पास से समझ आनी अब शुरु हुई है? पीछे की कई सारी पोस्ट को भी धीरे धीरे लगाएँगे इस सीरीज में। अभी नंबरिंग यहीं से शुरु कर दें?  

जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा?

और? 

और लूटपाट और हत्याएँ भी?

सुना आज जमीनखोर प्रधान और क्रिकेटबाज़ भतीजा, जमीन नपवा रहे थे?

किससे?

और किसे बुलाया?

ऐसे-ऐसे गिरे हुए लोग उन्हें ही बुलाते हैं, जिनसे वो आसानी से निपट सकें? भोले-भाले, कम-पढ़े लिखे लोग? जो अक्सर ऐसे-ऐसे लोगों की चालों में बड़ी ही आसानी से आ जाते हैं? 

नप गई ज़मीन? किसकी ज़मीन? उससे पहले ये तो तय हो? 

और कौन सी ज़मीन? आगे वाली या पीछे वाली? 

आज इस ज़मीनखोर प्रधान के पास इतना वक़्त कैसे निकला? ऐसी भी क्या जल्दी, भला? अरे, आपसे तो कोई न कोई मिलने आया रहता है, शायद? नहीं? स्कूल में ही इतने वयस्त हैं? फिर ये, बलदेव सिंह वाली ज़मीन की नापा-तोली से आपका क्या लेना-देना? वहाँ कैसे घुसे हुए हैं आप, चाचा और भतीजा?  

तो? जो कभी-कभी पीता (पीटा?) है? उसकी ज़मीन क्रिकेटर भतीजे ने हड़प ली? इतनी लताड़ के बावजूद, मान लेना चाहिए की औकात तो बड़ी है, बहशर्मी की भतीजे? अब चाचा जब जमीन नपवाने में साथ है, तो ये कैसे हो सकता है, की हडपम-हडपाई में साथ ना हो? कितने के लिए डूब गए? दो कनाल के लिए?

अरे नहीं किस्सा इससे आगे है? 

अजय की तो ऐसे भी और वैसे भी है ही आपकी? उससे हमें क्या लेना-देना? सही बात ना? कौन से साल में द्वार लग गए थे उधर? 

बेबे CCL दे दी के?

मिल भी ली?

अब ये कहाँ से आ गया?

चलो ABCD में नहीं उलझते? ना ही कंप्यूटर वाली मुत्तो-हागो में? तो Query क्या थी? Query ये है जी, की आम-आदमी को कितनी तरह और कैसे-कैसे लूटा जा सकता है? 

अगर कोई आम इंसान स्कूल से तंग आकर, टीचर की नौकरी छोड़कर, अपना खुद का स्कूल खोलना चाहे, तो गड़बड़ घोटाला? उस टीचर को ही ख़त्म कर दो? कितने ही तो तरीके हैं?

अब आम इंसान के ये कहाँ समझ आना? इल्जाम भी उन्हीं पर लगाने की कोशिश करो? उसके बाद तो सबकुछ ही तो तुम्हारा? कैसी-कैसी ऑक्सीजन कैसे-कैसे ख़त्म होती हैं? और ज़मीनी-धंधे वाले बेज़मीर लोग, कैसे-कैसे घर खा जाते हैं?  

ओह हो! उसके बाद तो लड़की को भी कहीं और ही भेजना था ना? सामान्तर घड़ाईयों के hype ऐसे ही घड़े जाते हैं? बुआ आ गई बीच में? बड़ा रोड़ा? नहीं, बिलकुल छोटा-सा? खिसका दो? कोशिश तो पूरी करली? नहीं अभी ख़त्म नहीं हुई हैं कोशिशें, अभी ज़ारी हैं? ये ज़मीनखोरी उसी कड़ी का एक हिस्सा है। अब क्या करेगी? जो आप चाहेंगे  वही करेगी? और दीदी कब जा रहे हो?

जाना था क्या कहीं मुझे? मुझे तो लगा ये जो ज़मीन की नापतोल की कहानी रची जा रही है, यहीं कुछ वक़्त रहना था?       

और बे बे? जग के, के हाल-चाल? 

जग से जग्गा या जगतजननी? या? जग्गा धरी? या वो दूध वाला जग, और उसकी नौटंकियाँ?  

चल छोड़। लोगों को नहीं मालूम, कैसे-कैसे ड्रामे रचे लोगों ने? इधर वालों ने भी, और उधर वालों ने भी?   

तो नप ली ज़मीन भतीजे? ओह हो! ज़मीन-खोर प्रधान को कैसे भूल रहे हो? 

तो यहाँ अजय की तरफ निकली थोड़ी-सी ज़मीन? 


यही Query थी? मुतो-हागो प्रधानों की? 

क्यों कम पढ़े-लिखे और आज की तेज-तर्रार टेक्नोलॉजी वाली दुनियाँ से अंजान, लोगों की हर तरह से ऐसी-तैसी कर रखी है?

बहन का भी कुछ तो हिस्सा होगा? छोड़ो। बहनो-बेटियों का कुछ नहीं होता यहाँ, उन्हें इधर-उधर फँसाने की कोशिश करने के सिवाय?    

तो यहाँ प्र्शन इतना-सा तो वाजिब है, की जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा? 

ये ज़मीनखोर लोग फिर किसकी ज़मीन और क्यों अपने नाम करवा रहे हैं? ऐसा ही कुछ बोला ना भतीजे ने? बुआ वो तो अब मेरे नाम हो ली?   

क्यूँकि, हमारी गिरी हुई राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे-ऐसे ज़मीनखोरों के साथ होती हैं? अब आप गिरे हुए हैं या नहीं, और गिरे हुए हैं तो कितने वो आप जाने? 

आप तो शायद नहीं गिरे हुए?  

और आप बिलकुल नहीं?

और आप तो बिलकुल ही नहीं?

हाँ तो आप पे तो ये प्र्शन ही लागू नहीं होता?   

जिसकी ज़मीन हड़पने की कोशिशें हो रही हैं, उसकी बहन की तरफ से, अगर कोई कोर्ट ज़िंदा हो, तो ये धोखाधड़ी का केस दायर कर लें, इन ज़मीनखोर चाचा-भतीजे के खिलाफ। 

किसी औरत की मौत का मतलब यहाँ, ज़मीन का धंधा है? वो भी किसके द्वारा? एजुकेशनल सोसाइटी के नाम पर, बिना हिसाब-किताब की ज़मीन-जायदाद और पैसा इक्क्ठ्ठा करने वालों द्वारा?  

ऐसे-ऐसे संस्थानों पर करवाई क्यों नहीं हो, जिनके टीचर्स को नाममात्र मिलता है और उन संस्थाओं के लोग तकरीबन हर साल, एक नई बस खरीद लेते हैं? 8-10 किले एक साल में, एक ही गाँव में खरीद लेते हैं? इस शहर, उस शहर उनके पॉश इलाकों में मकान और दूकान होते हैं? सुना है उनके बच्चों की पढ़ाई के नाम पर भी अच्छा-खासा खर्च होता है? वो भी एक ऐसा स्कूल, जो अपने आपको गरीब और दानी बताता है? सच है क्या ये?   

और एक टीचर अपनी पूरी ज़िंदगी में एक ढंग का मकान बनाने लायक नहीं होता? वो अगर अपना कुछ करना चाहे, तो उसे खा जाते हैं? घौटालों के संस्थान हैं ये, या शिक्षण संस्थान?       

Conflict of Interest की राजनीती क्या कुछ करती है और करवाती है, लोगों से?     

Sunday, May 4, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 2

जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा?

जब 5 लाख कुछ रुपए भाई के बैंक आए, उससे पहले एक यस बैंक का नाटक रचा गया। किस तारीख को आए ये 5 कुछ, किसी के खाते में? किस बैंक का है वो खाता? अहम है क्या, ये सब जानना? हाँ। अगर आपको राजनीतिक पार्टियों के सामान्तर घड़ाई वाले कारनामों को जानना है, तो बहुत जरुरी है। किसने सँभाली फिर वो बैंक की कॉपी? या कहो किस, किसने? कब-कब पैसे निकाले गए उससे? वो पैसे कहाँ खर्च हुए? जहाँ खर्च हुए, वहाँ उसको जरुरत थी क्या?      

चलो ये तो मात्र 5 कुछ की कहानी है। इस दौरान मैंने थोड़ी छानबीन शुरु कर दी थी। उस छानबीन के साथ कुछ एक नरेटिव यहाँ-वहाँ से आ रहे थे। 

आंटी: ना ऐसे तो नहीं करना चाहिए। ऐसा हुआ है तो गलत है। मैंने तो सुना है 30-35 लाख के आसपास दी है। 

अच्छा? वो पैसा कहाँ है? कौन से अकॉउंट में? जिन्हें खुद वो ज़मीन किसी काम के लिए चाहिए थी, वो उसे किस कीमत पे देंगे? देंगे क्या? सबसे बड़ी बात उसे कोई बो रहा है। ढंग की इन्हें पकड़ा देंगे, तो ये क्या करेंगे? 

ये तो मुझे नहीं मालूम। 

अजय का क्या रोल है, इसमें?

उसका क्या रोल होगा। कुछ नहीं है। 

वो खुद कह रहा हो तो?

गलत है। उसका क्या मतलब, ऐसे किसी की ज़मीन दिलवाने का?

वही मैं पूछ रही हूँ। आपके प्यारे हैं, पूछना उनसे, ये कैसे घपले रच रहे हैं? वैसे भी वो पहले ही कुछ केसों से मुश्किल से निकला है। फिर से क्यों कहीं फँसना चाहता है?

बावला है। नूं ना दूर रहूँ। 


दीदी आपने बुलाया मुझे?

हाँ। क्या चल रहा है, उस ज़मीन का? ये कौन-से और कैसे पैसों के लेनदेन हो रहे हैं, रुंगे जैसे से?

मुझे तो पता नहीं। 

वहीं पड़ा रहता है तू। फिर कैसे नहीं पता?

पता चला तो बताऊँगा। 

भाई घर की घर इसा साँग बढ़िया ना होता। यहाँ कुछ होगा तो आँच तुम्हारे यहाँ नहीं आएगी, ये मत सोचना। 

देख लाँगे। 


प्लॉट की तरफ घुमने गई तो कोई ट्रक आया हुआ था, ईंटों से भरा। 

अरे रुको। किसने मँगवाई हैं ये?

पड़ोस से कोई बोलता है, अजय ने। 

अच्छा, क्या चल रहा है यहाँ? कुछ बनवा रहे हैं?

शायद, प्लॉट की चारदीवारी। 


कुछ दिन बाद पता चलता है, वहाँ जो भाई का रहने का छोटा-सा कमरा है, उसपे ही लग रहे हैं वो रोड़े। और भाई अक्सर वहाँ से गुल मिलता है। कभी-कभार मिलता है, तो पॉलीथिन में कोई प्याजों की सड़ांध के साथ खाना लिए हुए। 

ये क्या है? कहाँ रहता है तू आजकल? घर क्यों नहीं खाता खाना? फिर से शुरु हो गया? कहाँ से हो रही है ये जगाधरी की सप्लाई?  

अजय: 2 महीने हो गए, होटल पे खाता है। 

2-महीने? घर क्या फिर इसका भूत जाता है खाने?

मैंने लगवाया हुआ है?

ओह। धन्यवाद बताने के लिए। तो ज़मीन के नाम का ये रुंगा होटल पर या रेस्टोरेंट में जाएगा? इसीलिए, ज़मीन बिकवाई है? तुझे कितने मिले खाने को? खुद भी खाता है क्या होटल पे, बिना कुछ कमाए? कितने दिन चल जाएँगे इतने से पैसे होटल या रेस्टोरेंट? इसीलिए इसे घर नहीं आने दिया जाता? ऐसे तो जल्द ही काम तमाम कर दोगे इसका। दारु और होटल, मस्त काम है। 

छोटू वहाँ से खिसक चूका है, अपने प्लॉट की तरफ। 

और यहाँ मत दिखा कर मेरे को। तेरे जैसे भाइयों के होते दुश्मनों की क्या जरुरत?


मैंने बोला, यहाँ मत दिखा कर। और पता चला वहाँ मेरा ही ईलाज भांध दिया गया, की मैं ही वहाँ ना दिखूँ। इस दौरान घर पर बैड पर चाकू या डंडा रख जाना, जैसे कारनामे भी शुरु हो चुके थे, इसी भाई द्वारा जिसकी ज़मीन बिकी थी? बिकी थी? या रायगढ़ के होटल के नाम हुई थी? और ईधर-उधर, चेतावनियाँ भी आने लगी थी। संभल कर, तेरा पक्का ईलाज बँधवाने के चक्कर में हैं। रोड़ा है तू, जिस घर को वो उजाड़ने चले हैं, उसे बचाने का काम कर रही है। बोतल वाले को ऐसे ख़त्म कर रहे हैं, तुझे उसी के हाथों करवाने के प्लान हैं। 

कौन हैं ये लोग? और क्यों? अपने घर को ऐसे-ऐसे लोगों से कौन नहीं बचाने की कोशिश करेगा?

और जवाब मिला, Conflict of interest की राजनीती। जो लोगों को आपस में ही भीड़वाकर, इधर भी खाती है, और उधर भी।  छोटे-मोटे से लालच, छोटे-मोटे से डर पैदा कर लोगों के दिमाग में।      

Saturday, May 3, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 1

 Psychological warfare

Setting the narratives

पीछे पोस्ट में जितनी भी फोटो हैं, वो एक ही दिन, एक छोटे से विजिट की हैं। अपने पास के ही खेत के विजिट की, जिसमें पता चला की हडपम-हडपाई का अगला दाँव चला जा रहा है। कई दिनों से जाने क्यों मुझे लग रहा था, की कुछ गड़बड़ है। भाई ने फिर से घर आना छोड़ दिया था या कई-कई दिनों में आने लगा था। यहाँ रहने के दौरान जो नोटिस किया वो ये, की ये खास तरह के कर्फ़यू, जब लगते हैं, जब कुछ खास चल रहा हो या होने वाला हो। खास तरह की सप्लाई शुरू हो जाती है और उसके आसपास के घेरे भी खास होते हैं। फ़ोन या तो बंद हो जाता है या फिर गुम हो जाता है। ये रोबॉटिकरण की एक एनफोर्समेंट वाली प्रकिर्या है। ऐसे में किसको पास रखना है और किसको दूर। जिसमें किसी भी जीव के आसपास का माहौल सैट करना होता है। उस माहौल सेटिंग में आप उसे कुछ खास लोगों से बिलकुल कट कर सकते हैं या उसकी जगह भी बदल सकते हैं। उस दौरान वो इंसान जो कुछ सुनता-समझता या देखता है, वही नैरेटिव सेटिंग (Setting the narratives) है। 

शायद सेनाएँ या उग्रवाद तैयार करने वाले भी इसी तरह की ब्रेन वाश जैसी-सी तकनीक का इस्तेमाल करती है? यही तकनीक न सिर्फ मानव रोबॉटिकरण में सहायक है, बल्की, बीमारियाँ पैदा करने और दूर करने में भी। लोगों को लाइफस्टाइल जैसी बिमारियों से, नशा मुक्ति की प्रकिया में या उसके रहने वाले इकोसिस्टम की बिमारियों से मुक्ति की भी। और लोगों को हॉस्पिटल पहुँचाने और वहाँ से ऊप्पर पहुँचाने की भी। इतनी सी बात, इतना कुछ कर जाती है?     

नैरेटिव सेटिंग के कुछ उदाहरण जानने की कोशिश करें? 

तुम हमारी जमीन खा गए। दादा ने हर जगह सारा अच्छा-अच्छा हिस्सा तुम्हें दे दिया। हमें तो कुछ भी नहीं दिया। हर जगह पीछे बिठा दिया। जब अलग हुए, तो पापा के पास कुछ भी नहीं था। 

अरे क्या बोल रहा है ये तू? दादा ने? कौन से दादा ने? 

हमारे अपने दादा ने और किसने?

अच्छा? तुझे किसने बताया ये? तेरे प्यारे दादा वालों ने? कहीं उन्होंने ही तो नहीं बाँटा सब?   

बताया क्या। अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। 

कह तो सही रहा है की अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। मेरे भाई भी यही बोलते हैं की सारा मैं खा गई। मुझे तो वहाँ भी गड़बड़ लगती है। अब मैं खा गई या हम खा गए तो कुछ तो देना बनता है। तू पढ़ ले, पैसे मैं दूँगी। बस इतना ही खा गई ना? या मैं जो कहूँ, वो करले, तेरा इंटरेस्ट भी है और उसमें पैसा भी। 

हूँ। अब वो सब नहीं होना। 

अरे अब तो और आसानी से होगा। वैसे भी जिसके लिए इतनी नफरत और मारामारी चल रही है, वो है ही क्या? और सुन, पहले घर जाके ये पूछ की ये सब बाँटा किसने था? और पहली चॉइस किसकी थी लेने की। उसके बाद बात करना। और तुम तो उस वक़्त तक पैदा ही नहीं हुए थे। या हो गए थे? कितने बड़े थे?  

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

हैलो। हाँ आ रहा हूँ। कहा ना अभी आया। 

दीदी फिर आऊँगा। फ़ोन है अभी घर से। 


ऐसे ही एक दिन जिन दिनों ये ज़मीन की बातें उड़ रही थी की भतीजे ने धोखे से ले ली और चाचा का लड़का बिचौलिया दिलवाने वाला। 

तो तूने किया है ये कबाड़? तुझे लगता है बहन देने देगी?

मैं क्यों करुँगा? मेरा क्या मतलब?

वही तो तेरा क्या मतलब? तुझे बचाना चाहिए या बिचौलिया बनकर देना? 

वैसे भी तेरी ज़िंदगी में कुछ अच्छा करने लायक नहीं बचा क्या? कितना मिल जाएगा इससे तुझे? कहीं अपनी से भी तो हाथ नहीं धो बैठेगा? अपनी क्यों नहीं दी, वो दे देते। 

मैंने कुछ नहीं किया। 

मेरे पास सबूत हैं। 

होंगे। क्या कर लोगे? 

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

सर्विलांस एब्यूज? करवाने वाली पार्टी की हर किसी पर निगाह और कान हैं। फिर क्या घर और क्या बाहर। जैसे ही सामने वाला उगलने लगता है या अपनी ही जुबाँ से फँसने लगता है। ट्रिंग ट्रिंग शुरू हो जाती है। 


एक दिन ऐसे ही भतीजा आया हुआ था साथ वाले मकान में। उसे बुला लिया। 

बातों ही बातों में 

तुमने ज़मीन कितने की ली?

जी?

जी? कितने की है वो ज़मीन? घर पूछा क्या की देंगे या नहीं? इतने सालों से क्यों नहीं दी?

अरे बुआ जी वो तो सेफ्टी के लिए ली है। 

सेफ्टी? क्या खतरा था?

दुनियाँ मंडरा रही थी उसपर। हम नहीं लेते तो कोई और लेता। 

दुनियाँ तो कितने ही सालों से मँडरा रही थी। मिली तो नहीं किसी को। मिलेगी अब भी नहीं। धोखाधड़ी के सारे सबूत धरे हैं। 

फ़ोन उठाकर बात करते हुए। हाँ आ रहा हूँ। आ गया बस। 

चले जाना जल्दी कहाँ है। वो पैसे कहाँ है ये भी बता दो। उस फरहे में पाँच कुछ हैं और आंटी 30-35 लाख बोल रहे थे। जो जमीन देनी ही ना हो, वो तो अनमोल है। उसका क्या मोल लगाओगे तुम?

भतीजा फुर्र हो चुका। 

यही नहीं ऐसे-ऐसे कितने ही नैरेटिव हैं। जहाँ, जैसे ही कुछ बात होने लगेगी, वैसे ही ये ट्रिंग ट्रिंग भी। 

बोतलों के दामों पर तो पूरी कहानी की किताब लिखी जा सकती है। वो कब क्या बोलेगा, ये इस पर निर्भर करता है की वो किनके बीच रहकर आया है। उससे भी बड़ी बात, 

कोई पार्टी किसी लड़के को लड़की या LGBT या बाबा का किरदार कब और कैसे थमाती है? 

उसे किसी ट्रिगर की तरह ब्रेक कैसे करवाती है? 

कौन से और कैसे-कैसे catalysts उसमें काम करते हैं?

Game of Imitation? Wanna limit something? Hype? Or even Hijack? Political parties use and abuse hijack mode?

आदमी को बाबा बनाना या शादीशुदा? ये भी उसका इकोसिस्टम बनाता है? और ये इकोसिस्टम कौन घड़ता है? राजनीतिक पार्टियाँ? गजब नहीं है?  


सर्विलैंस एब्यूज और मानव रोबॉटिकरण की प्रकिर्या?               

Electrical warfare?

Infecting electric appliances and wires and damaging them also? सिर्फ इकॉनमी को इम्पैक्ट करता है? या उससे आगे भी बहुत कुछ घड़ता है?  

मोदी ने घर-घर बिजली पहुँचा दी। सुना कहीं? कहाँ? कब? अब ये कैसी बिजली पहुँचाई, ये वाद-विवाद का विषय हो सकता है? क्यूँकि, बिजली तो यहाँ के गाँवों में कब से है? और ये वाली बिजली मोदी ने ही पहुँचाई है क्या? वैसे, इस खास वाली बिजली की क्या जरुरत? मोबाइल ही बहुत नहीं हैं, सर्विलांस एब्यूज के लिए तो?

सोचो आप अपने घर के बाहर खड़े हैं। एक दो और और माँ, काकी हैं। ऐसे ही कोई बात चल रही है। आपने कोई प्र्शन किया। और उन्होंने उत्तर दिया। 

वापस घर आकर आप इंटरनेट पर कुछ सर्च कर रहे हैं और गूगल सर्च इंजन वही प्र्शन दिखा रहा है? मगर, ये क्या उत्तर देते वक़्त घपला कर रहा है? ऐसा क्या खास होगा उसमें?

ऐसे ही बहुत बार यूट्यूब पर भी हुआ होगा? आप इस घर से उस घर जा रहे हैं। बच्चे ने कुछ खाने की फरमाईश की है। आपने आकर अपना काम करने के लिए यूट्यूब खोला और ये क्या? यूट्यूब के शुरू के कुछ विडियो वही खाने की रेसिपी दिखा रहे हैं। 

ऊप्पर के दोनों ही केसों में मोबाइल उस वक़्त किसी के भी पास नहीं था। फिर?

आसपास तारें, खंबे, गाड़ियाँ, मीटर और भी कितना कुछ होगा? सिर्फ गवर्नमेंट्स या लॉ इंफोरसेनमेंट एजेन्सियाँ ही नहीं, गूगल और यूट्यूब जैसे सर्च इंजन भी आप पर हर वक़्त, हर जगह निगरानी रखते हैं। और बिना पूछे उत्तर भी देते हैं। और जहाँ आप कुछ पूछना या जानना चाहें, वहाँ कभी-कभी छिपाने की कोशिश भी करते हैं? रौचक? इससे आगे भी बहुत कुछ है।                

Thursday, May 1, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 1

ज़मीन खोरों के जबड़ों में किसान और आम इंसान? 


या ज़मीन खेतखलिहान 

और

शिक्षा और राजनीती के नाम पर, ज़मीन हड़पने के अभियान?  

ये सब यही है क्या?

रोज-रोज आती 

खामखाँ-सी, फ़ालतू-सी इमेल्स? 

स्पैम जैसे कोई? 

या? 


बीच में बलदेव सिंह की ज़मीन और दोनों तरफ?
शिक्षा के नाम पर ज़मीनखोर?
ज़मीनी धंधे वाले? हरदेव सिंह की ज़मीन?   
दोनों भाईयों की बराबर नहीं थी जमीन तो?
फिर ये कैसे?
थी?
तुमने शिक्षक बनकर उनके लिए कमाया?
 और उन्होंने?
उसी शिक्षक को भी खाकर  
 
अपने धंधे को आगे बढ़ाया?  
शिक्षक ने अपना खुद का स्कूल बनाने की क्या सोची?
उसको भी ठिकाने लगा दिया?
और उस ज़मीन को भी हड़पम-हड़पायी?       

या ऐसे?


या ऐसे?
 

ऐसे?
  


या ऐसे?
 

ऐसे?


या ऐसे?
 


 या शायद ऐसे?



गोलमाल है भई, सब गोलमाल है?  

सोना से, सोनि आ?
और सोनि आ से सोना लिका?  

कहीं नेता का हिस्सा?
तो कहीं शिक्षा के नाम पर?
ज़मीनखोरों का?
ज़मीनी धंधा?

और उनके बीच 
आम इंसान पिसता ऐसे,
साँड़ों के बीच में जैसे?
 इंसान सिर्फ कोई झाड़?
जैसे चाहें, वैसे ठिकाने लगा दें?

कब किन सत्ताओं को 
या  
राजनीतिक पार्टियों को फर्क पड़ता है? 

महारे बावली बूचां के अड्डे, अर घणे स्याणे ?

Conflict of Interests और घपले ही घपले?

महारे बावली बूचां के अड्डे, अर घणे स्याणे? कई दिन हो गए ना कुछ लिखे इस पर? काफी सारा, इधर-उधर का इकट्ठा हो रखा है।  

एक स्कूल प्रधान इधर-उधर ज़मीनों पे निगाह गड़ाए, कैसे आपणे चाचा कै लड़के, छोटे भाई को भड़काता है, उसी के दूसरे भाई के खिलाफ?  

इधर-उधर सुना कहीं? 

बला वो कालिया-टकला नूं बोला, तू भाई की ज़मीन खागा. तू भी के बोलअ सै। 

हैं? इस स्कूल प्रधान कै कितनी ज़मीन है? कहाँ से आई? किस किसकी हडपाई? खरीदी? या? और जिसनै कहवै सै उह कै? मैं अपना भेझा खुजाते हुए। 

हैं के? श्याणे अ इतने सैं। 

अच्छा? तभी? महारे बावली बूचां के अड्डे, घणे स्याना के जाल्यां मैं फँसैं सैं? लागय सै, उ दादी कै समझ मैं ना आई, अक कौन सब का खागा? ये शिक्षा के नाम पै आपणे ए भाइयाँ की ज़मीन खाण आले? या जैसे-तैसे अपना गुजारा करने वाले? 

छोरे दे दे न, यो बची-खुची भी आपणे उह मेहनती भाई न दे दे, ताकि ये अंदर और बाहर दोनों तरह से कालों के मिलावटी सौदे, उह नै भी खाजां। इसे-इसे बेचारां नै या घणे श्याणा नै, छोरी, भाहण, बुआ, बेबे, माँ, बेटी जिसा तै किमैं दिखता ए ना लाग्या सै? मरगे सब उनके या ये उन नै भी मारण के चक्कर मैं सैं?  किसी शराब पीने वाले की कमी को पकड़ो, और जब तक काम ना हो किडनैप रखो, फुल सप्लाई के साथ? घर बिलकुल मत आने दो उसे? तब तक ना ही घर वालों से बात तक करने दो? दो बोतल दो और ज़मीन ले लो? जब वो इसां-इसां के चककरां मैं फंस कै मरण नै हो, तब तो ठाण नै बाहण? बाकी बुरे वक़्त मैं सँभालन नै भी ये ए माँ-बेटी? अर उसका माल खाण नै? शिक्षा के नाम पर ज़मीनों को हड़पने वाले झकोई? जिननै, बेरा ना कितने इसां-इसां की ज़िंदगी बर्बाद कर दी या खा ली?     

कालिखो, उन माँ बाहन या भाई नै मना करा था अक नहीं, अक म्हारे इतनी है ए कोनी, अक बेचां? फेर यो सिर्फ बोतल आले तै sign करवा कै, क्यूकर, थारी हो जागी वा ज़मीन? अरे नहीं, वहाँ तक तो शायद तुम आए ही नहीं।?बड़े लोग थोड़े ही छोटे लोगों के यहाँ आते हैं? बहन, आई होगी तुम्हारे यहाँ? साहब के पास तो वक़्त नहीं मिलने का? साहब फ़ोन तक नहीं उठाते?  

धोखाधड़ी करने वाले की माता (कांता) तो बेचारी इतनी भोली सै, अक मेरी बेचारी भोली-भाली भाभी  नै, आज तहि ना बेरा उसका लाडला लक्ष्य दांगी कौन से मैच खेलअ सै? कित आवै-जावै सै? अर के करै सै? वैसे भी थाम झकोईयां नै एजुकेशनल सोसाइटी खोल राखी सै या भाईयों की ज़मीन हड़पो जुगाड़ संस्थान सै यो? किसी भाई-बाहन कै मना करते-करते हड़प जाओगे? कोर्ट सिर्फ ये देखेंगे की वो ज़मीन किसके नाम सै? इस्ते आगे तो, आँख कान सब बंध सैं उनके? ओह हो ! और वो ज़मीन आगे वाली है, या पीछे वाली? या ये भी चालबाजियाँ बताती हैं?  

बला जी, रोड़ पै सबतै छोटे की? चाचा आले की? उस्तै आगै उसतै बड़े की? अर उसतै आगे? उसतै बड़े की? बला ना जी। शिक्षा के ज़मीनी धंधे वालों को नूं भी सूत ना आंती। जुकर उनकै सूत आवैगी, वा न्यूं अ हो जागी? बता, जिन नै घपलम घपलाई खेलनी हो, वें इतणा सा भी घपला ना कर सकते? जित चाहवैं उड़ै रेत गरा दें, इसे-इसे गिरे हुए? अर कह दें या महारी? चोरी करती हाण, इसी-इसी, छोटी-मोटी गड़बड़ तै होती रहा करैं? ईब पढ़ाई लिखाई तै इहका के लेना देना? क्रिकेट मैच आला बालक बताया यो? फेर खेलणीय नै इहते के लेणा-देणा, अक प्रश्न के सै, अर तू नक़ल क्यां की चेपण लाग रा सै बेटे?                

बाहन घरां बैठी हो, अर रहन न ढंग की जगाह ना हो। जित हो उह नै थाम हड़प लो? ओह हो। वो भाभी भी यूँ ही खिसकाई? किसने और कैसे और सबसे बड़ी बात क्यों? बहुत अहम है। नाम फिर किसी के लगा दो, क्या फर्क पड़ता है? कहाँ, कैसे और क्यों ऑक्सीजन ख़त्म होती हैं?   

Conflict of Interest की राजनीती? उप्पर से अगर किसी गरीब के नाम 10 पैसे चलते हैं, तो उस गरीब तक आते-आते, सुना है की उसके नाम पैसे नहीं, कर्ज का फरहा पहुँचता है? कैसे? जानते हैं आगे पोस्ट में।             

आम भाषा में क्या कहते हैं इसे? धोखाधड़ी? नहीं आदमखोर धंधा, प्राइवेट शिक्षा के नाम पर?             

राम नाम कहाँ सत्य है? नहीं है? अर्थी पे जानी है क्या वो ज़मीन तुम्हारी? 

और भाई दानी? जा दान करया गऊ साला मैं? भइय्याँ के लाखां, करोड़ां खा कै, दो-पिसा का दान करकै, फोटो खिंचवाना कती मत भूलईये? अर, भीतर-भाहर तै काले-टकले, उह नै फेसबुक पै सजाइए फेर? साँड़ कितै के?

थोड़ा ज्यादा हो गया? सुना आड़े के अंडी नुअं बोला कैरें? यो तो थोड़ा कम करकै बताई सै? ईसाए है अक भाइयो और बहनो? इब थारअ धोरै रहकै भी, थारी भाषा मैं बात ना करी, तै कह दोगे रिफ़ल री सै? जणू इह नै तै हरीयान्वी कती अ ना आंती? ईब तो बेरा पाटगा होगा, अक थारा ए खून सूं? फेर आपणी अ बोली ना आवै, वो भी घरां बैठकै, क्यूकर हो सकै सै भाई?