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Thursday, April 11, 2024

पानी और सभ्यता?

किसी भी जीव-जंतु को कहीं भी रहने के लिए पानी, खाना, सुरक्षा, रहने की जगह और फलने-फूलने के अवसर अहम हैं। इनमें सबसे पहले है, पानी। अगर आप किसी भी मानव-सभ्यता या जीव-जन्तुओं या पेड़-पौधों के कहीं रहने या विस्थापन का अध्ययन करेंगे, तो पता चलेगा की पानी के स्त्रोतों के आसपास झुंडों के रुप में बसना अहम है। वो पानी का स्त्रोत कैसा है? मीठा है, कड़वा है, कितना कड़वा है? या प्रयोग करने लायक ही नहीं है? झीलों और नदियों के किनारे पुरानी सभ्यताओँ और शहरों का बसना यूँ ही नहीं है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देश (महाद्वीप) को जानकार, इसे और अधिक समझा जा सकता है। जो महाद्वीप क्षेत्र के हिसाब से तो बहुत बड़ा है।  मगर, उसके बहुत ही थोड़े-से हिस्से पर ही, उसकी ज्यादातर आबादी या शहर बसते हैं। पानी के स्त्रोतों के आसपास। नदियों, झीलों या समुन्द्र के किनारे ज़्यादातर। पृथ्वी के बाकी महाद्वीपों में भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। हालाँकि, सभ्यता और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ, जहाँ पानी के स्त्रोत कम है या तक़रीबन रेगिस्तान जैसी जगहों पर भी, इंसान ने बस्तियाँ और बड़े-बड़े शहर बसाए हैं।      

इसमें ख़ास क्या है? कुछ भी नहीं। ये सब तो स्कूल जाने वाले बच्चे भी समझते हैं। समझते हैं? या सिर्फ़ पढ़ते हैं? दोनों में बहुत फर्क है। ठीक ऐसे ही, जैसे किसी भी समाज या देश की ज़्यादातर समस्याओँ के समाधान, स्कूल स्तर के ज्ञान-विज्ञान में ही हैं। उसके लिए आपको डॉक्टरेट या पोस्टडॉक्ट्रेट होने की जरुरत नहीं। मगर विड़ंबना ये, की उसके बावजूद, समाज का इतना बड़ा हिस्सा या तो गरीब है, या गरीबी के आसपास। जिसके पास आज तक मुलभूत सुविधाएँ तक नहीं हैं। क्यों? लालची पढ़े-लिखे और उसपे कढ़े शतीरों की वज़ह से? मीठे पानी के स्त्रोतों की जगहों को तो ये हड़प लेते हैं। या शायद कुछ कह सकते हैं, की इतना आसान नहीं है? बहुत कॉम्प्लेक्स विषय है? कुछ-कुछ ऐसे, जैसे आसान से आसान तथ्योँ या विषयों को भी खिचड़ी बना कर पेश करना, और कहना ये विषय सीधा-साधा नहीं है?  

पानी से ही खाना जुड़ा है और कृषि और उधोगों के फलने-फूलने के राज भी। पानी अपने आप में बहुत-सी बिमारियों की वज़ह भी है। पानी? या पानी का साफ़ ना होना? ये साफ़ ना होना, सिर्फ़ आपके घर के पानी की बात नहीं है। बल्की, आपके आसपास के पानी की बात भी है। वो पानी, जिसे आपके पशु-पक्षी या जीव-जंतु पीते हैं। वो पानी, जिसे आपके पेड़-पौधे लेते हैं। इन सबसे, ये किसी ना किसी रुप में आप तक भी पहुँचता है। हमने ज़मीन और उसके पानी को साफ़ रखने की बजाय, सिर्फ अपने घर के प्रयोग के पानी को साफ़ करने या रखने के साधन तो ढूँढ लिए। मगर भूल गए, इस सिर्फ़ अपने घर तक साफ़ पानी के चक्कर में, बाकी आसपास को भूल गए। हमने अपने घरों में जमीन से पेड़-पौधे उखाड़ कर, गमले रख लिए। और तालाब, जोड़ों को खत्म कर या सुखा कर या घेर कर, अपने मुँडेरों या छत्तों पर, पक्षियोँ के लिए छोटे-छोटे कटोरे रख दिए। कितने दानी हो गए ना हम? कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, किसी का घर छीन कर, जेल में धकेलना।  

मगर भूल गए। ऐसा करके हमने कितनी बिमारियाँ पाल ली? वातावरण को कितना नुकसान पहुँचा दिया? गमले में आप पेड़-पौधे तो सजा लेंगे, लेकिन क्या वो वैसे ही पनप पाएँगे या फल-फूल पाएँगे, जैसे जमीन के पेड़-पौधे? गमलों में उनको अपने आप फैलने या फलने-फूलने की जगह कहाँ है? वो बड़े होकर भी, आप पर ही आश्रित होंगे। कुछ तो और भी महान हैं। बहुत ही छोटे-छोटे से गमलों में ही, कई-कई, पेड़-पौधे लगा दिए। कईयों ने एक ही गमले में कई तरह के। अरे महान किसानों, आप भूल गए की पेड़-पौधों को एक दूरी पर क्यों लगाया जाता है? कैसे पेड़-पौधों को एक साथ लगा सकते हैं और वो एक दूसरे को बढ़ाने में सहायता करेंगे? और कैसे पेड़-पौधे एक साथ लगाने पर, एक-दूसरे को पनपने नहीं देंगे? अब इसके लिए डॉक्टरेट या पोस्ट-डॉक्टरेट की डिग्री कहाँ चाहिए? ये तो स्कूल बच्चोँ तक को पढ़ाया जाता है। नहीं? मगर शायद समझाया नहीं जाता? ज्यादातर टीचर्स भी सिर्फ रटवाने का काम करते हैं और बच्चों को चूहा-दौड़ का हिस्सा बना देते हैं। बच्चे एक-दो नंबर कम आने पे स्ट्रेस लेते हैं, मगर उसे सिर्फ पेपरों तक ही याद रख पाते हैं। जैसे किसी इंजीनियरिंग की Night Before Fight हो। 

ठीक ऐसे ही, जैसे जब आपने अपने आसपास के पानी के खुले संसांधनों, जैसे तालाब-जोड़ों को सूखा दिया या हड़प लिया, तो वातावरण में जो अपने आप वाष्प बनकर पानी जाता था और आपके आसपास के वातावरण के तापमान को कम रखता था। साफ़-सुथरा होकर वापस बरसता था, उसे बंद कर दिया। इसका प्रभाव? सूरज का तीख़ापन भी बढ़ गया। वातावरण बिल्कुल सूखा होगा तो क्या होगा? सूरज की वही पहले वाली किरणे, अब चुभने लगेंगे। शरीर के लिए घातक होंगी और कितनी ही बीमारियाँ आप तक मुफ़्त में परोसेंगी। इनमें न सिर्फ़ तवचा की बीमारियाँ अहम हैं, बल्की, बहुत-सी ऐसे सूखे और धूलभरे मौसम की एलर्जीज़ भी। जो पहले या तो थी ही नहीं, या बहुत ही कम होती थी और बहुत ही कम वक़्त के लिए होती थी।   

इन सबमें तड़के का काम किया है, आज की टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग ने

और बढ़ते सुख-सुविधाओँ के गलत तौर-तरीकों ने। व्हीकल्स, ए.सी. (AC), घर बनाने में सीमेंट और लोहे का बढ़ता चलन। मगर, घर की ऊँचाई का कम और दिवारों का पतला होते जाना। खिड़की, दरवाजों का छोटा और कम होते जाना। बरामदों का खत्म होना। घरों का छोटा होना। पेड़-पौधों का घरों में ख़त्म होना। घरों में खुले आँगनों का छोटा होते जाना। सर्फ़, साबुन, शैम्पू, कीटनाशक, अर्टिफिशियल उर्वरक, हार्पिक, डीओज़, ब्यूटी पार्लर प्रॉडक्ट्स आदि का बढ़ता तीखा और ज़हरीला असर। और भी ऐसे-ऐसे कितने ही, गलत तरीक़े या बुरे प्रभाव या ज़हर। तो क्या इन सबका प्रयोग ना करें? जँगली बनकर रहें? करें, मग़र सही तरीके-से और सोच-समझ कर। ये जानकर, की कितना और कैसे प्रयोग करें। इतना प्रयोग ना करें, की वो जहर बन जाए। जितना इनका प्रयोग करें, उतना ही इनके दुस्प्रभावोँ को कम से कम करने के उपाय भी करें। कैसे? आगे पोस्ट में। 

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