What Media I Consume?
मीडिया में मेरे हिसाब से तो बहुत कुछ आता है। मीडिया, मेरे लिए शायद वो इकोलॉजी है, जो हमारे जीवन को किसी भी प्रकार के जीव-निर्जीव के सम्पर्क में, जाने या अंजाने आने पर, या आसपास के समाज के बदलावों से भी प्रभावित करता है। जैसे माइक्रोलैब मीडिया, सूक्ष्म जीवों को। मगर यहाँ मैंने उसे नाम दे दिया है, सोशल माइक्रोलैब मीडिया कल्चर। लैब मैक्रो (बहुत बड़ी) है, मगर उसे समझने के लिए सुक्ष्म स्तर अहम है।
जो कुछ भी मैं लिखती हूँ, वो इसी मीडिया से आता है। सामाजिक किस्से-कहानियाँ खासकर, राजनितिक पार्टियों द्वारा, ज़िंदगियों या समाज के साथ हकीकत में धकेले गए तमाशों से।
पढ़ती क्या हूँ?
कुछ एक अपने-अपने विषयों के एक्सपर्ट्स के पर्सनल ब्लोग्स (blogs)। कई के बारे में आप पहले भी किन्हीं पोस्ट में पढ़ चुके होंगे। जैसे,
Schneier on Security https://www.schneier.com/
Security Affairs https://securityaffairs.com/
कुछ यूनिवर्सिटी के Blogs, Nordic Region, Europe से खासकर। जिन्हें पढ़कर ऐसा लगे, की ये आपसे कुछ कहना चाह रहे हैं शायद, या कुछ खास शेयर कर रहे हैं।
कुछ एक न्यूज़ चैनल्स, ज्यादातर इंडियन। कुछ एक वही जो अहम है, जिन्हें ज्यादातर भारतीय पढ़ते हैं। ईधर के, उधर के, किधर के भी पढ़ लेती हूँ या देख लेती हूँ। पसंद कौन-कौन से हैं? कोई भी नहीं? थोड़ा-सा ज्यादा हो गया शायद? मोदी भक्ती वाले बिलकुल पसंद नहीं। हाँ। वहाँ भी बहुत कुछ पढ़ने लायक और समझने लायक जरुर होता है। जैसे एक तरफ, कोई भी पार्टी, मीडिया के द्वारा अपना एजेंडा सैट कैसे करते हैं? और जनमानष के दिमाग में कैसे घुसते हैं? तो कुछ में खास आर्टिकल्स या आज का विचार जैसा कुछ होता है। जो भड़ाम-भड़ाम या ख़ालिश एजेंडे से परे या एजेंडा होते हुए भी, मानसिक शांति देने वाला होता है या सोचने पर मजबूर करने वाला। कुछ एक के आर्टिकल्स, आपके आसपास के वातावरण के बारे में या चल रहे घटनाक्रमों के बारे में काफी कुछ बता या दिखा रहे होते हैं। कुछ एक फ़ौज, पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां, सिविल एरिया में रहकर या बहुत दूर होते हुए भी, काम कैसे करती हैं, के बारे में काफी कुछ बताते हैं। कुछ एक, राजनीती पार्टियों की शाखाओं जैसी पहुँच, आम आदमी तक और उनके द्वारा अपने प्रभाव या घुसपैठ के बारे में भी लिखते हैं।
दुनियाँ जहाँ की यूनिवर्सिटी के वैब पेज, मीडिया, मीडिया टेक्नोलॉजी खासकर, या बायो से सम्बंधित डिपार्टमेंट्स के बारे में। जो थोड़ा बहुत जाना-पहचाना सा और अपना-सा एरिया लगता है।
ये जानने की कोशिश की, क्या दुनियाँ की किसी भी यूनिवर्सिटी के वेब पेज या प्रोजेक्ट में ऐसा कुछ भी मिलेगा, की कोरोना-कोविड-पंडामिक एक राजनितिक बीमारी थी? और कोई भी बीमारी, राजनितिक थोंपी हुई या धकाई हुई हो सकती है? सीधा-सीधा तो ऐसा कुछ नहीं मिला। मगर, ज्यादातर बीमारियाँ हैं ही राजनीती या इकोसिस्टम की धकाई हुई, ये जरुर समझ आया। और वो इकोसिस्टम, वहाँ का राजनितिक सिस्टम बनाता है। कुछ बिमारियों पर, किसी खास वक़्त, राजनीती के खास तड़के और कुर्सियों की मारा-मारी है। उसे तुम कैसे देख या पढ़ पाओगे, सीधे-सीधे ऑनलाइन? ऑनलाइन जहाँ तो है ही, किसी भी देश के गवर्न्मेंट के कंट्रोल में। वो फिर अपने ही कांड़ों पर मोहर क्यों लगाएंगे? वो आपको सिर्फ वो दिखाएँगे या सुनाएँगे, जो कुछ भी वो दिखाना या सुनाना चाहते हैं। न उससे कम और न उससे ज्यादा।
मोदी या बीजेपी से नफ़रत क्यों?
वैसे तो मुझे राजनीती ही पसंद नहीं। फिर कोई भी पार्टी हो, फर्क क्या पड़ता है? या बहुत वक़्त बाद समझ आया, की बहुत पड़ता है।
कोई पार्टी या नेता काँड करे और आपको इसलिए जेल भेझ दे, की आप ऐसा सच बोल रहे हैं, जो उसके काँडो को उधेड़ रहा है? तो क्या भक्ति करेंगे, ऐसे नेता या पार्टी की?
उसपे अगर मोदी को फॉलो करोगे तो पता चलेगा, इसका बॉलीवुड से और फिल्मों से कुछ ज्यादा ही गहरा नाता है? क्या इसे कुछ और ना आता है? अब बॉलीवुड वालों का तो काम है, फिल्में बनाना। एक PM का उससे क्या काम है? अपनी समझ से बाहर है।
मुझे पढ़े-लिखे और समाज का भला करने वाले नेता पसंद हैं। नेता-अभिनेता नहीं। तो कुछ पढ़े-लिखे या लिखाई-पढ़ाई से जुड़े नेताओं के सोशल पेज भी फॉलो कर लेती हूँ। वो सोशल पेज, फिर से किसी सोशल मीडिया कल्चर से अवगत कराते मिलते हैं। जैसे हुडा और यूनिवर्सिटी या शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान। गड़बड़ घौटाले समझने हैं, तो उनके ख़ास प्रोजेक्ट्स और टेक्नोलॉजी। जैसे रोहतक की SUPVA से लख्मीचंद (LAKHMICHAND) बनी यूनिवर्सिटी। हर शब्द एक कोड होता है। वो किस नंबर पर है या उसके साथ वाले शब्द कौन-कौन से हैं या दूर वाले कौन से, और कितनी दूर? किस राजनीतिक पार्टी के दौर में कोई भी प्रोजेक्ट आया या इंस्टिट्यूट बना? और वो इंस्टिट्यूट किस विषय से जुड़ा है? उस वक्त की राजनीती के बारे में बताता है। उसका बदला नाम या रुप-स्वरुप या उसमें आए बदलाव, उस बदलाव के वक़्त की राजनीती या पार्टी के बारे में काफी कुछ बताते हैं।
अब lakhmi कोड का patrol crime से क्या connection? और वो कहेंगे, की किसी कुत्ती के ज़ख्मों पे डालने के लिए पैट्रॉल बोतल, पियकड़ को लख्मी आलायां ने दी थी। करवाया उन्होंने और नाम किसी का? वैसे शब्द या भाषा, वहाँ के सभ्य (?) समाज के बारे में भी काफी कुछ बताता है। Social Tales of Social Engineering, इस पार्टी की या उस पार्टी की? और उनका किसी या किन्हीं इंस्टीटूट्स में छुपे, प्रोजेक्ट्स या टेक्नोलॉजी से लेना-देना? ठीक ऐसे ही बिमारियों का और उनके लक्षणों का भी। ये सोशल मीडिया पेजेज से समझ आया है।
संकेतों या बिल्डिंग्स के नक़्शों या कुछ और छुपे कोढों को समझना हो, तो शायद, शशि थरूर का सोशल पेज भी काफी कुछ बता सकता है। और इंटरेक्शन का मीडिया, बिलकुल डायरेक्ट नहीं है। कहीं पूछो, की तुम इन सबको जानते हो या ये तुम्हें जानते हैं? मैं इन्हें या ये मुझे उतना ही जानते हैं, जितना आपको। ज्यादातर आम आदमी को। ऐसे ही पढ़ना चाहो या समझना चाहो, तो वो आप भी कर सकते हैं। उसके लिए आपको किसी को जानने या मिलने की जरुरत नहीं है। एकदम indirect, वैसे ही जैसे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले या CJI खास एकेडेमिक्स इंटरेक्शन प्रोग्राम्स। या कहो ऐसे, जैसे हम कितने ही लेखकों की किताबें पढ़ते हैं, मगर मिलते शायद ही कभी हैं।
अब वो सोशल मीडिया पेज आप-पार्टी के किसी नेता का भी हो सकता है और कांग्रेस के भी। JJP का भी हो सकता है और कहीं महाराष्ट्र की शिवसेना की आपसी लड़ाई से सम्बंधित आर्टिकल्स भी। महाराष्ट्र की शिवसेना की लड़ाई के आर्टिकल्स तो और भी आगे बहुत कुछ बताते हैं। भगवान कैसे और क्यों बनते हैं? उन्हें कौन बनाता है? उस समाज में किसी वक़्त आए या कहो लाए गए रीती-रिवाज़ों के बदलावों से उनका क्या सम्बन्ध है? ऐसे ही जैसे, JJP का ऑनलाइन लाइब्रेरी प्रोग्राम या शमशानों के रखरखाव में क्या योगदान है? GRAVEYARDS? और आगे, उसका कैसे प्रयोग या दुरुपयोग हो सकता है?
वैसे ट्रायल के दौरान किसी को जेल क्यों? बेल क्यों नहीं? या ट्रायल के दौरान ही, कोई कितना वक़्त जेल में गुजारेगा? ऐसा या ऐसे क्या जुर्म हैं? अब आम आदमियों की तो बात ही क्या करें। ये आप पार्टी के नेताओं के साथ क्या चल रहा है? फिर मोदी के साथ क्या होना चाहिए? वैसे मैं किसी बदले की राजनीती के पक्ष में नहीं हूँ। मगर, सोचने की बात तो है। मोदी जी, है की नहीं? सोचने की बात? या मन की बात?
काफी लिख दिया शायद। अब मत कहना की जो लिखती हूँ या जहाँ से आईडिया या प्रोम्प्ट या ख़बरें मिलती हैं, उनके रेफेरेंस नहीं देती। और डिटेल में फिर कभी किसी और पोस्ट में।
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