Lord or Lady?
Ma'am or Sir?
Or whatever it is, you feel a better form of that.
कहीं पढ़ा की अगर ऑनलाइन काम चल सकता है, तो खामखाँ में कोर्ट्स में भीड़ ना करें। पहले ही वहाँ बहुत भीड़ होती है। वैसे भी, ये आम आदमी के लिए भी अच्छा है। जो काम घर बैठे हो सकता है, उसके लिए क्यों खामखाँ के धक्के खाना या औरों को खिलाना? उसपे बेरोजगार लोग, जो बड़े लोगों ने हर तरह से साफ़ कर दिए हैं, फिर चाहे वो, उनके आदमियों को खाना हो या बैंकों या जमीनों पे ताले जड़ना या उन्हें हड़पना। उसपे ऑनलाइन जॉब पे भी रोड़े अटकाना जैसे। तो क्या करेंगे वो?
आप ऐसे जुर्म के हवाले हों, जहाँ अपना CV तक सही से टाइप नहीं कर सकते? आपको यही नहीं मालूम की आपने जो CV या कवर लेटर कहीं अटैच किया है, वहाँ जा क्या रहा है? कैसे और कहाँ से कमाएँगे? पढ़े-लिखे काबिल लोग, कब तक कटोरा लिए B.ED करवाने वालों के हवाले रहेंगे? ये बीएड है या बिस्तर, ये हम जैसों से बेहतर तो आपको पता होगा। और ये BED करवाने वाले भी कौन? खुद कितने पढ़े-लिखे हैं वो? और घर बैठे कितना कमा लेते हैं? ऐसे ही ये अपने आपको खास-म-खास PhD डिग्रीधारी कोड वाले का है। किसकी डिग्रीयों को अपने नाम किए घुमते हैं ये? ठीक ऐसे जैसे, किसी और की नौकरी के फरहे अपने नाम करने वाले? मेरी डिग्री मेरी अपनी मेहनत की हैं। मेरा इंटरव्यू भी किसी और ने नहीं दिया। जिस हिसाब से रिकॉर्डिंग्स हैं, उस हिसाब से तो बड़े-बड़े लोगों के पास या जजों के पास भी, उसकी रिकॉर्डिंग तक होगी। एक बार सुन कर तो देखो। मैंने कोई अँगूठा नहीं लगाया। पढ़े लिखे इंसान की तरह हस्ताक्षर मिलेंगे। ये अपहरण करके, जेल में भेझकर किसकी नौकरी चली जाएगी का ड्रामा चल रहा था, अभी तक पल्ले नहीं पड़ा है। और क्यों जबरदस्ती हस्ताक्षर की बजाय अँगूठा लगवाया जा रहा था या फिंगरप्रिंट्स लिए जा रहे थे? मुझसे बेहतर ये भी शायद आप जैसे ज्यादा जानने समझने वालों को मालूम होगा। बुरा ही नहीं, बल्की बहुत बुरा लगता है, जब जिस नौकरी के लायक, जिनकी डिग्रीयाँ या क्वालिफिकेशन तक ना हो, ऐसे बच्चों या जूनियर्स भाई-बँधो से indirectly कहलवाया जाए, मेरा घर खाली कर। जैसे सरकारी नौकरियाँ और सरकारी घर भी, बड़े लोगों के नालायक बच्चों तक के जैसे प्राइवेट लिमिटेड हों।
XYZ के जो स्टीकर या 1, 2, 3, 4 जैसे जो बेहुदा टैग, गाएँ-भैंसों या कुत्ते-बिल्लियों की तरह लगा दिए गए हैं, उनसे मुक्ति कब मिलेगी? या जैसे चौराहों पे खड़े गँवार-जाहिल लोग, लड़कियों को आते-जाते तंग करते हैं, ऐसे-ऐसों को और कैसे-कैसों को वो हर जगह और सारी ज़िंदगी झेलते रहेंगे? चाहे इनमें से किस से और कब उस इंसान ने आखिरी बार बात की थी या कब मिली थी, उसे जैसे सदियाँ बीत चुकी हों। उसे ये तक मालूम ना हो, इनमें से कौन स्टीकर ज़िंदा है या मर चुका। कहाँ है, क्या कर रहा है? कैसे है, तो बहुत दूर की बातें हैं फिर। मेरा कोर्ट में जाना कोर्ट में जाना नहीं होता। बल्की एक ऐसे वकील से मिलना होता है, जो मेरा नहीं, मेरे से दूसरी पार्टी का वकील है। इसलिए सब सबूत होते हुए भी केस हार जाता है। उससे बेहतर तो अपनी वकालत मैं खुद कर सकती हूँ। यही सब देख समझकर, कहीं जज को बोला था, मेरे पास वकील नहीं है। मुझे वकील चाहिए। मेरा सब लूटकर, ऐसे कोरे पन्नो पर हस्ताक्षर कब तक करवाते रहेंगे?
कोरोना के शुरू होने से भी पहले की बात है ये
ये प्रदीप नाम के गुंडे की घड़ाई उसके बाद की है। उस दिन के बाद से, कहाँ गुल गया ये? और क्यों?
ये K या N से क्या लेना-देना है, इसका?
पिछले 20-25 सालों से यही तो खेल रहे हैं। जुआरी लोग? ईधर भी और उधर भी?
I am NO VIP
Neither belong to any XYZ
मेरे रिश्ते ना फाइलों के हवाले हैं, ना कोर्टों के और ना स्टीकरों के। मेरे लिए वो लोग ज्यादा अहमियत रखते हैं, जिनसे मैं रेगुलर बात करती हूँ या जिनके पास रहती हूँ। हकीकत की दुनियाँ को भुलाकर, ये बेहूदा राजनीती, लोगों को कहाँ धकेल रही है? एक दिन आकर, अगले दस-बीस साल राजनीती के सहारे सुर्खियाँ पाकर, कोई कहाँ किसी की ज़िंदगी में टिक सकता है? हाँ। उन ज़िंदगियों का गोबर जरुर निकाल सकता है। और उनके आसपास का भी। ज़िंदगियों को सवांरना भगोड़ों या राजनीती के पिल्लों के वश की बात कहाँ?
थोड़ा ज्यादा हो गया शायद?
धन्यवाद।
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