अक्सर वो हमारे घर आते थे, माँ के पास। थोड़ी देर गपियाते और फिर वापस चले जाते। मैं अक्सर हँसती थी, दादी-बहु मिलके किसकी चुगली कर रहे हो। और वो बोलते, अपने घर की बातें खत्म हों, तो दुनियाँ की बात करें। और जब कभी पूछती, "वैसे आप एक दूसरे के क्या लगते हो?" तो माँ की पितस, बोलते थे वो। मगर उम्र में माँ से छोटे थे। मेरे हिसाब से तो बड़ा मीठा बोलते थे। मगर, जब घर आकर रहने लगी तो पता चला, मेरी जानकारी से दूर भी कोई दुनियाँ बस्ती है यहाँ। रिश्तों के उतार-चढ़ाव, छोटी-मोटी खटपट, और मीठी भाषा से दूर, कोई खास भाषा भी है यहाँ की। जिसे आप तभी जान-समझ सकते हैं, जब आप वहाँ रहने लगते हैं। उससे भी ज्यादा शायद, जब वहाँ को जानना-समझना शुरू करते हैं।
इस जानने-समझने का खास उद्देश्य, कोड के संसार को थोड़ा और जानना-समझना था। और उससे जुड़े लोगों की ज़िंदगियों के उतार-चढ़ाओं को समझना। ये सब है तो दुनियाँ के या कहो आम लोगों के हित के लिए। मगर, जाने क्यों, बड़े लोगों ने यहाँ भी दिक्क़तें खड़ा करना शुरू कर दिया था। शायद, राजनीती और सिस्टम के कर्त्ता-धर्ता नहीं चाहते, की आम लोगों को भी खबर हो, की वो उन्हें और उनकी ज़िंदगियों को कैसे गोटियों से पेल रहे हैं। माँ का ऑपरेशन और उस वक़्त चले ड्रामे, ऑफिसियल 2019 DECEMBER, Exam Fraud और उसके बाद MARCH 2020, COVID CORONA। इस दौरान देखा-समझा गया राजनीतिक मौतों का ताँडव। भला कोई कैसे पचा सकता है, इतना कुछ?
कोरोना के खत्म होने के बाद जो कुछ देखा-समझा, वो ये, की ये तो निरन्तर चल रहा है। बिन रुके, बिन थके जैसे। राजनीती है, तो बेवजह की कुर्सियों की लड़ाई है। ठीक सुना आपने, बेवजह की। आम आदमी के किसी काम की नहीं है, ये राजनीती। सिवाय उसे अपना गुलाम बनाने के या गोटियों-सा चलने के। राजनीती को विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ समझना बहुत जरुरी है। सिर्फ पढ़े-लिखों के लिए ही जरुरी नहीं है ये। बल्की, कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी। तो शायद, काफी बेवक़्त की बीमारियों या मौतों से बचा जा सकता है।
पथ्थरी, पीलिया और कैंसर। इनका आपस में क्या सम्बन्ध है? हो सकता है कोई? या शायद, nerves problems, BP या paralysis? कैसे पढ़ते हैं, या समझते हैं इन्हें आप? दर्द से? दुख, तकलीफ से? या पढ़े लिखे हैं और थोड़ा बहुत बिमारियों को समझते हैं और उनके लक्षणों से, कारणों से?
कहीं मेरी तरह तो नहीं? दर्द, तकलीफ आपको है और आप जानने-समझने की कोशिश, किसी और बीमार को कब खिसकायेंगे या ठीक कर घर पहुंचाएंगे, को जानना-समझना चाह रहे हैं? पीछे पथ्थरियों और लकवों की शिकायत वाले आसपास काफी सुनने-देखने को मिल रहे थे। उनमें से कुछ बच गए, कुछ लपेटे गए। उसके बाद ऐसे ही कैंसर के किस्से-कहानी, सुनने-देखने को मिले। अभी आसपास, जिससे कई मौतें सुनने-देखने को मिली हैं। ऐसे ही एक कल, यानी 15-07-2024 को घर-कुनबे से, ये दादी भी। कोई खास बुजुर्ग नहीं थे। यही कोई 60 के आसपास।
मात्र छह महीने पहले पथ्थरी की शिकायत। फिर पीलिया और फिर 4th stage कैंसर। सुना है डॉक्टरों ने बता भी दिया था, की 2-महीने से ज्यादा नहीं जियेंगे?
मेरे लिए ये सब मौतें उतनी ही संदिघ्द हैं, जितना कोरोना था। कोड जानने-समझने वाले, इन सबको कैसे समझते हैं? डॉक्टरों और मैडिकल से जुड़े लोगों के लिए, कोड वाले संसार को जानना-समझना शायद उतना ही जरुरी है, जितना की मैडिकल की पढ़ाई।
सबसे अहम
आपके मैडिकल या बिमारियों से जुड़े दस्तावेज और पेपर्स हैं। उन्हें संभाल कर रखो। पता नहीं कहाँ, आपके या आपके बच्चोँ के कहीं काम आ जाएँ। पहले ये सब जैनेटिक्स पढ़ने-लिखने वाले बोलते थे। और अब? पॉलीटिकल या सिस्टम कोड की समझ वाले?
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